“मैं वहाँ मौजूद नहीं था। मैं खुद अपने बच्चों और परिवार को बचाने की कोशिश कर रहा था। यह बहुत दुख की बात है कि उन्होंने (अंकित के माता-पिता) अपने बच्चे को खो दिया, लेकिन वे जो चाहें कह सकते हैं। मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं है। ये आरोप झूठे हैं और इसके लिए मुझे फ्रेम करना गलत है।”
मोबाइल गुलेल, जी हाँ मोबाइल गुलेल! रिक्शे पर लोहे के एंगल को वेल्डिंग कर के बनाई गई। इसे मोबाइल गुलेल कहा जाता है। जहाँ चाहे, वहाँ ले जाओ और हिंसा को अंजाम दो। हिंदू घरों को टारगेट कर इस मोबाइल गुलेल से पेट्रोल बम की बोतलें, बड़े-बड़े पत्थर फेंके गए।
"कमरे के अंदर आओ तो मेरे बेटे राहुल को लेकर ही आना, नहीं तो वापस चले जाना।" एक मॉं के इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं था। आपके पास भी नहीं होगा। इसलिए इस दंगाई भीड़ की पहचान जरूरी है ताकि कल कोई राहुल फिर बेमौत मारा न जाए।
मार्च में शामिल लोगों ने इस बात पर चिंता जताई कि एक तरफ़ हिन्दू अपने रोजमर्रा के कार्य में व्यस्त रहते हैं, वहीं समुदाय विशेष वाले सड़क जाम कर अपनी साजिशों को अंजाम देने में लगे रहते हैं।
24 फरवरी को हिंसा भड़कने के बाद श्याम दुकान बंद ही कर रहे थे कि दंगाइयों की भीड़ अचानक से पत्थरबाजी करती हुई आई। दंगाइयों ने पहले लूटपाट और तोड़फोड़ की। इसके बाद दुकान को आग के हवाले कर दिया।
यमुना विहार में दंगाइयों ने प्रीति के घर को घेर रखा था। पेट्रोल बम फेंका। घर में आग लग गई। अंदर प्रीति अपने पति और दो बच्चों के साथ फॅंसी थी। आज भी प्रीति उस वक्त को याद कर सिहर जाती हैं। आँखों में मौत का खौफ दिखाई देता है और गला भर आता है।
ताहिर हुसैन से अब आप पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है। लेकिन, पार्टी से निलंबित किए जाने के कुछ मिनटों के भीतर ही विधायक अमानतुल्लाह ने उसका बचाव किया। अमानतुल्लाह ने ताहिर को क्लीनचिट दिया है।
26 फरवरी को रवीश कुमार ने जिस तरह से तथ्यों को प्राइम टाइम में पेश किया वह इस बात का सबूत है कि मेनस्ट्रीम मीडिया दंगाई के मुस्लिम होने पर न केवल उसका नाम छिपाता है, बल्कि उसे क्लीनचिट भी देता है।
दिल्ली पुलिस ने दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में 12 से अधिक लोगों की पहचान कर ली है। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हुई हिंसा में दो गैंग इरफ़ान छेनू और नासिर गैंग के शामिल होने की बात भी की है।
इस नैरेटिव से बचिए और पूछिए कि जिसकी गली में हिन्दू की लाश जला कर पहुँचा दी गई, उसने तीन महीने से किसका क्या बिगाड़ा था। 'दंगा साहित्य' के कवियों से पूछिए कि आज जो 'दोनों तरफ के थे', 'इधर के भी, उधर के भी' की ज्ञानवृष्टि हो रही है, वो तीन महीने के 89 दिनों तक कहाँ थी, जो आज 90वें दिन को निकली है?