Friday, April 19, 2024
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दिल्ली दंगों के विरोध में हिंदुओं का पीस मार्च, लगे ‘आतंकी नहीं पलने देंगे, देश नहीं जलने देंगे’ के नारे

मार्च के दौरान 'आतंकी नहीं पलने देंगे, देश नहीं जलने देंगे', 'वन्दे मातरम' जैसे नारे लगे। सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान लगे मजहबी उन्मादी नारों के उलट जिहाद के खिलाफ संदेश देते इन नारों की सोशल मीडिया पर काफी तारीफ हो रही है।

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में हुए हिन्दुओं के नरसंहार के खिलाफ शनिवार (29 फरवरी 2020) को जंतर-मंतर पर शांति मार्च निकाला गया। हजारों की तादाद में हिन्दुओं ने मार्च में हिस्सा लिया। यह विरोध-प्रदर्शन सभी राष्ट्रवादी हिन्दू संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से “दिल्ली पीस फोरम” के अंतर्गत किया गया था। रैली के आयोजकों ने बताया कि बड़ी संख्या में राष्ट्रवादियों ने इस रैली को समर्थन दिया।

अंकित शर्मा, विनोद कुमार, रतनलाल सहित दिल्ली दंगों में मजहबी भीड़ के शिकार हुए सभी मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई। दंगों के दौरान हिन्दुओं के खिलाफ सुनियोजित तरीके से हिंसा को अंजाम दिया गया। उनकी निर्मम तरीके से हत्या की गई और उनके घर, स्कूल, दुकानों, वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। ट्विटर पर ‘शांति मार्च’ के समर्थन में #DelhiAgainstJehadiViolence का हैशटैग ट्रेंड किया गया।

मार्च के दौरान ‘आतंकी नहीं पलने देंगे, देश नहीं जलने देंगे’, ‘वन्दे मातरम’ जैसे नारे लगे। सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान लगे मजहबी उन्मादी नारों के उलट जिहाद के खिलाफ संदेश देते इन नारों की सोशल मीडिया पर काफी तारीफ हो रही है। मार्च के आयोजकों ने बताया कि जो भी क्षेत्र या राज्य इतिहास में इस्लामी क्रूरता के कारण बच गए हैं, उन पर फिर से साजिश के तहत हमले किए जा रहे है। शुरुआत बंगाल से हुई और अब ये मंजर दिल्ली तक पहुँच चुका है।

मार्च में शामिल लोगों ने कहा कि अलीगढ़ की तीन मंदिरों को तहस-नहस कर दिया गया। लेकिन दिल्ली में एक मस्जिद पर झंडा लगाया जाना सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। ये पक्षपात क्यों? उन्होंने बताया कि भारत की संस्कृति पिछले कई सालों से खतरे में है। पत्रकारों का एक बड़ा गिरोह हिन्दुओं को शैतान साबित कर भारत की एकता को खंडित करने में लगा हुआ है। उन्होंने आरोप लगाया कि हालिया दिल्ली दंगों में कॉन्ग्रेस और आप द्वारा भड़काए गए गुंडों ने उत्पात मचाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से एक आईबी अधिकारी और कॉन्स्टेबल को मारा गया है, वो सब देख कर उनका ह्रदय रो रहा है।

मार्च में शामिल लोगों ने इस बात पर चिंता जताई कि जहाँ एक तरफ़ हिन्दू अपने रोजमर्रा के कार्य में व्यस्त रहते हैं, मजहबी भीड़ सड़क जाम कर अपनी साजिशों को अंजाम देने में प्रयासरत रहती है। ‘शांति मार्च’ का पूरा जोर इस बात पर था कि इस देश में हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक नहीं बनने दिया जाएगा। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के 2012 में दिए गए बयान की भी निंदा की गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार कथित अल्पसंख्यकों का है। आक्रोशित लोगों ने पूछा कि सब कुछ कथित अल्पसंख्यकों को मिल जाएगा तो 80% हिन्दुओं का क्या? रैली के आयोजकों ने बताया:

“75 दिनों तक राजधानी को शाहीन बाग से बंधक बनाने की कोशिश की गई। जब उच्चतम न्यायालय ने आपत्ति जताई तो बजाए शाहीन बाग के प्रदर्शन को बंद करने के वो उल्टा जाफराबाद में भी प्रदर्शन की तैयारी करने लगे। किस तरह संवैधानिक रूप से यह जायज है? मजहब के सामने देश को कोई मोल नहीं देते ये लोग। समझने वाली बात है कि अगर मौजूदा माहौल में हिन्दू हिंसक होते तो हिन्दू बहुल इलाके जहाँ मुस्लिमों की आबादी 15-20% है, वहाँ के मुस्लिम सुरक्षित नहीं रहते। पर दंगों का केंद्र वही इलाके हैं जो मुस्लिम बहुल हैं। स्पष्ट है कि हिंसा के जिम्मेवार कौन लोग हैं।”

मार्च का आयोजन एकदम शांतिपूर्ण रहा। सुरक्षा की भी पूरी व्यवस्था थी। किसी ने भी ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे शांति-व्यवस्था पर कोई आँच आए। लोगों ने पुलिस के साथ पूरा सहयोग किया। मार्च में शामिल आम लोगों ने इस ओर मजबूती से ध्यान दिलाया कि इस्लाम को मानने वाले चाहे किसी भी पद पर आसीन हो, विधायक हो, RJ हों, अभिनेता हो या आम आदमी हों- सब एक सुर में अपने मजहब के लोगों का समर्थन करते आए हैं और आगे भी करते रहेंगे। इसलिए, अब हिन्दुओं को भी ऐसे ही एक होने की ज़रूरत है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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