Friday, October 18, 2024
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पाकिस्तानियों के कहने पर नेहरू हटवा रहे थे रामलला को, जिस ऑफिसर ने कॉन्ग्रेसी PM-CM दोनों को दिखाया ठेंगा… उन्हें रात में निकाल दिया सरकारी आवास से

रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हो इसके लिए सरकार भी आज पूरा सहयोग कर रही हैं। लेकिन 1949 का एक समय ऐसा भी था जब केंद्र सरकार ने ही यूपी की सरकार को निर्देश दिए थे कि जल्द से जल्द प्रकट हुई रामलला की मूर्ति को हटाया जाए।

आज रामलला के आगमन से पहले केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार में जो उत्साह दिख रहा है वैसा पहले कभी किसी सरकार का नहीं था। एक समय था जब केंद्र की नेहरू सरकार ने उत्तर प्रदेश की सरकार को कहा था कैसे भी करके रामलला की मूर्ति हटवाई जाए। 1949 के इस वाकये का जिक्र 2024 में किया है पूर्व केंद्रीय संस्कृति सचिव राघवेंद्र सिंह ने

उन्होंने बताया कि कैसे 1949 में रामलला की मूर्ति हटाने के लिए केंद्र ने यूपी सरकार को आदेश दिए थे, जिसकी वजह से उनके दादाजी, गुरु दत्त सिंह जो कि तत्कालीन फैजाबाद (अब अयोध्या), सिटी मजिस्ट्रेट और एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे, उन्हें बहुत दबाव झेलना पड़ा था।

वह बताते हैं कि उस समय यूपी के मुख्मंत्री गोविंद वल्लभ पंत थे। बाबरी ढाँचे में रामलला की मूर्ति प्रकट होने से हर जगह इसकी बात थी। इसी बीच पाकिस्तान ने अपने रेडियो पर खबर चलाई कि विभाजन के बाद समुदाय विशेष की जो जगहें खाली थीं उसपर हिंदू कब्जा कर रहे हैं। इस खबर से नेहरू सरकार को काफी फर्क पड़ा। उन्होंने वल्लभ सरकार से रामलला की मूर्ति हटाने को सुनिश्चित करने को कहा था।

इसके बाद तत्कालीन फैजाबाद (अब अयोध्या), सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त ने इस मामले पर संज्ञान तो लिया लेकिन जैसा कि सरकार चाहती थी कि 22-23 दिसंबर 1949 को प्रकट हुई मूर्ति को तुरंत हटाया जाए, वैसा नहीं हो सका। राघवेंद्र बताते हैं कि ये सब सिर्फ इसलिए था क्योंकि पाकिस्तान ने अपने रेडियो से इस मामले पर खबर चला दी थी।

बाद में उनकी ये खबर आग की तरह फैली और दिल्ली तक पहुँची। राघवेंद्र बताते हैं कि केंद्र के निर्देश थे इसलिए राज्य सरकार रामलला की मूर्ति को कैसे भी हटवाना चाहती थी। वह कहते हैं,

“जब मेरे दादा ने इस पर अपने तरीके से रिपोर्ट किया तो यह उनके (सरकार के) खिलाफ गया। जब इस बारे में केंद्र सरकार को पता चला तो वहाँ से कुछ स्पष्ट निर्देश आए। केंद्र से मिले निर्देश के आधार पर तत्कालीन यूपी के सीएम गोविंद बल्लभ पंत ने तत्काल जिला मुख्यालय फैजाबाद को संदेशा भिजवाया।”

इसके बाद जब पंत फैजाबाद (अब अयोध्या) आए। उन्हें लेने गुरुदत्त पहुँचे और रास्ते में ही उन्हें मिलकर ये समझाया कि रामभक्त केंद्र और यूपी सरकार की मंशा जान चुके हैं। ऐसे में मूर्ति को नहीं हटाया जा सकता। अगर हुआ तो कानून व्यवस्था बिगड़ेगी।

उन्होंने पंत को सारी संभव स्थिति समझाई और ये भी कहा कि फैजाबाद में उनका रुकना ठीक नहीं हो सकता। उनकी बात पर बहस गर्म हो गई। पंत को लगा कि न तो गुरु दत्त उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ले रहे हैं और न ही रामलला की मूर्ति हटा रहे हैं।

गुरुदत्त समझ गए थे सही बात कहने के बदले उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। मगर फिर भी उन्होंने सीएम को उस जगह जाने की इजाजत नहीं दी। बाद में उन्होंने अपने आप इस्तीफा दे दिया।

इन फैसलों के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया। उनके इस्तीफा देते ही बाद में उनका सामान देर रात उनके सरकारी आवास से निकालकर रोड पर रख दिया। उन्होंने सारी रात रोड पर बिताई। इसके बाद वो अपने दोस्त भगवती बाबू के के फ्लैट पर रहे। पूर्व सचिव कहते हैं कि उनके दादा ने अपने निर्णय की यह कीमत चुकाई थी। लेकिन आज वो पीछे मुड़कर देखते हैं और सोचते हैं तो लगता है कि ये कितना बहादुरी से भरा और जरूरी निर्णय था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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