- इंदिरा माँ का बलिदान युग-युग याद करता रहेगा हिंदुस्तान। 35वीं पुण्यतिथि पर उनको श्रद्धांजलि।
- केंद्र ने यहाँ एक राक्षस को नियुक्त कर दिया है। वह योजनाओं को लागू करने में बाधा पहुँचा रही है।
एक देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री। दूसरी, पहली महिला जिसने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) को चुना। दोनों ही महिला सशक्तिरण की मिसाल। लेकिन, शुक्रवार यानी 31 अक्टूबर 2019 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी की पुण्यतिथि पर ही दूसरी महिला यानी पुडुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी की तुलना ‘राक्षस’ से की गई।
ट्वीट कर इंदिरा को माँ बताने वाला भी कॉन्ग्रेसी और बेदी को भरी सभा में राक्षस कहने वाला भी कॉन्ग्रेसी। फर्क केवल इतना कि एक नया-नया बना कॉन्ग्रेसी, तो दूसरा पार्टी की मुखिया सोनिया गाँधी का पुराना वफादार। दिल्ली कॉन्ग्रेस की प्रचार समिति के अध्यक्ष कीर्ति आजाद ने इंदिरा गॉंधी को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘माँ’ कहा। वहीं, पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने पुण्यतिथि पर कॉन्ग्रेस की ओर से आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, “हम विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के जरिए लोगों की प्रगति के लिए कड़े प्रयास कर रहे हैं। लेकिन केंद्र ने यहाँ एक ‘राक्षस’ को नियुक्त कर दिया है और वह योजनाओं को लागू करने में बाधा पहुँचा रही हैं।”
इंदिरा गाँधी से आपके वैचारिक मतभेद हो सकते हैं। उनके फैसलों की भी आलोचना हो सकती है। यह भी सच है कि अपने ही सुरक्षाकर्मियों के हाथों उनके मारे जाने के बाद देश भर में सिखों का नरसंहार हुआ था। लेकिन, इस तथ्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि वे देश की प्रधानमंत्री थीं। उनके नेतृत्व में देश ने कई मुकाम हासिल किए। इसलिए, कीर्ति आजाद की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने इंदिरा को श्रद्धांजलि देते हुए माँ कहा। वरना, पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद ने दिसंबर 2013 में बकायदा ऐलान किया था, “सोनिया गाँधी सिर्फ राहुल गाँधी की माँ नहीं हैं। वे हमारी भी माँ हैं और पूरे देश की माँ हैं।” गनीमत यह थी कि उस वक्त प्रियंका गाँधी ने खुद को रायरबेली और अमेठी तक ही सीमित कर रखा था। नहीं तो खुर्शीद साहब इस बयान में यकीनन प्रियंका गाँधी का नाम भी एडजस्ट कर लेते।
इंदिरा मां का बलिदान युग युग याद करता रहेगा हिंदुस्तान 35 वीं पुण्यतिथि पर उनको भावभीनी श्रद्धांजलि pic.twitter.com/y0eFTvCCFF
— Kirti Azad (@KirtiAzaad) October 31, 2019
असल में, यही कॉन्ग्रेसियों का चरित्र है। उनके लिए नारी सम्मान का मतलब ही मैडम जी की चाटुकारिता है। इसलिए, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे का मजाक उड़ाने से वे नहीं चूकते। वे एक एयरहोस्टेस की अकाल मौत का इस्तेमाल अपनी सुविधा से राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए कर लेते हैं। चंद दिन ही बीते हैं जब महिला कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने भाजपा अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पूछा था कि उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है? सत्ता या महिला सुरक्षा? सुष्मिता देव ने यह पत्र इस बिना पर लिख दिया था कि एयरहोस्टेस की आत्महत्या के मामले में आरोपित निर्दलीय विधायक ने बिना माँगे भाजपा को समर्थन का ऐलान कर दिया था, जबकि यह निर्दलीय विधायक कॉन्ग्रेसी सरकार में मंत्री रह चुका है।
श्री @AmitShah जी
— Sushmita Dev (@sushmitadevinc) October 25, 2019
गोपाल कांडा जैसे अपराधी से गठजोड़ करना बेटियों की सुरक्षा को लेकर @BJP4India की प्रतिबद्धता के साथ साथ नैतिकता पर भी सवाल उठाता है. आज देश की बेटियां ये देख रही हैं कि आपके लिए क्या ज्यादा महत्त्वपूर्ण है – सत्ता या महिला सुरक्षा. #KandaBJPSeBetiBachao pic.twitter.com/BaqHT8Gvwu
इस निर्दलीय विधायक के समर्थन को ठुकरा कर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसके लिए महत्वपूर्ण क्या है। अब बारी कॉन्ग्रेस की है। नारायणसामी के बयान के बाद उसे बताना चाहिए कि कॉन्ग्रेस के लिए नारी सम्मान का मतलब क्या है? क्या कॉन्ग्रेस का नारी सम्मान गॉंधी परिवार की चौखट तक ही बॅंधा है?
Remembering this breakfast meeting with Mrs Indira Gandhi in Jan 1975.
— Kiran Bedi (@thekiranbedi) November 19, 2018
It is her birth anniversary today.
Have fond memories of this day and years of serving her. pic.twitter.com/GyI6bVwEOh
आखिर वो कौन सी सोच हो सकती है जिससे प्रेरित होकर एक सीएम पद का लिहाज न रखे। मर्यादाओं को भूल जाए। नारी के सम्मान का ख्याल न करे। इंदिरा, सोनिया और आने वाले कल में प्रियंका में माँ तलाशने वाली परंपरा के नेता को यह भी याद नहीं रहा कि जिस महिला को वे राक्षस कह रहे हैं, वह एक बेटी की मॉं भी हैं। शालीनता की कथित प्रतिमूर्ति मनमोहन सिंह की कैबिनेट की शोभा रहे नारायणसामी को शायद यह भी याद नहीं रहा होगा कि जिस महिला की तुलना वे राक्षस से कर रहे हैं, नाश्ते की मेज पर कभी उसकी मेजबानी इंदिरा गॉंधी ने की थी। 1975 में 26 जनवरी की परेड के अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा ने किरण बेदी को नाश्ते पर बुलाया था। बकौल किरण बेदी, “पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी इस बात से खुश थीं कि परेड में एक दस्ते का नेतृत्व महिला कर रही थी।” खैर, परिवार के बाहर की जो सोच लें वो भला कॉन्ग्रेसी कैसा!