Saturday, November 16, 2024
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‘पाप में जन्मा’ पंचशील समझौता… जिसे नेहरू ने चीन से डील करने भेजा, वो चायनीज महिला के प्यार में फँस गया: तिब्बत पर चीन के कब्जे को मान्यता, सीमा विवाद ज्यों का त्यों रहा

बीजिंग में पदस्थापित भारत के राजनयिक TN कौल चीन की एक महिला से प्यार में थे और उससे शादी करना चाहते थे। यानी, चीन ने हनीट्रैप के खेल का बखूबी इस्तेमाल किया। NT पिल्लई ने तत्कालीन पीएम को याद दिलाया कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को विदेशी महिला से शादी से पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेनी ज़रूरी है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ‘पंचशील समझौते’ की तारीफ़ की है। उन्होंने कहा कि दुनिया में बढ़ रहे संघर्षों पर लगाम लगाने के लिए इस तरह का समझौता एक उदाहरण है। इसकी 70वीं वर्षगाँठ पर चीन के राष्ट्रपति ने कहा कि शांतिपूर्ण व्यवहार, सभी देशों के साथ दोस्ती और साझा विकास की भावना पर चीन काम करता रहेगा। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि ‘पंचशील सिद्धांत’ आज अंतरराष्ट्रीय संपत्ति हैं, बेहतर भविष्य का तरीका एकता, सहयोग, कम्युनिकेशन और आपसी समझ को बढ़ावा देना है।

बता दें कि 29 अप्रैल, 1954 को भारत-चीन और चीन-म्यांमार सीमा विवाद सुलझाने के लिए हुए पंचशील के सिद्धांतों में ‘एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान’, ‘गैर-आक्रामकता’, ‘एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना’, ‘समानता और पारस्परिक लाभ’, तथा ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ हैं। चीन में इसे ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के 5 सिद्धांत’ कहा गया। झ़ोउ एनलाई तब चीन के प्रधानमंत्री थे। इसके बाद ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे लगे और चीन ने पीठ में छुरा घोंपते हुए 1962 में भारत पर हमला बोल दिया।

इसे जवाहरलाल नेहरू की दूरदर्शिता-हीन सोच का परिणाम कहा जा सकता है, क्योंकि वो चीन के फेंके पास के मुग़ालते में आ गए थे और देश की सुरक्षा व्यवस्था में निवेश से लेकर रणनीति बनाने तक के लिए उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया। वर्षों तक ये प्रचारित किया गया कि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया ये समझौता ऐतिहासिक था, लेकिन ये एक बड़ी भूल थी। कारोबार और सह-अस्तित्व के नाम पर चीन ने अपने अवैध कब्जे वाले तिब्बत और भारत के बीच समझौते की चाल चली।

चीन की राजधानी बीजिंग में भारत के राजदूत N राघवन और चीन के उप विदेश मंत्री झांग हांफू के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत भारतीयों को चीन नियंत्रित जमीन में स्थित कैलाश मानसरोवर जैसे पवित्र हिन्दू स्थलों में दर्शन के लिए भी अनुमति मिली। 15 मई को संसद में जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बत में यथास्थिति को मान्यता देने की बात कही। यानी, एक स्वतंत्र राष्ट्र जिस पर चीन ने कब्ज़ा किया था, उसे उसके अधिकारों से वंचित कर नेहरू ने चीन के साम्राज्यवादी कृत्य को मान्यता दे दी।

जवाहरलाल नेहरू ने इसे वैश्विक शांति के लिए उठाया गया कदम बता दिया, भले अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था की उन्हें कोई फ़िक्र नहीं थी। कॉन्ग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ने संसद में खुल कर इस समझौते का समर्थन किया। हालाँकि, आज़ादी के समय कॉन्ग्रेस अध्यक्ष रहे आचार्य JB कृपलानी ने इस समझौते पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि चीन ने तिब्बत पर अत्याचार किया है। कुछ वर्षों बाद उन्होंने इसे पाप में जन्मा समझौता बताया था।

बीजिंग में 4 महीनों तक इस समझौते के लिए मोलभाव चला, इसके साथ ही भारत तिब्बत को लेकर अपना प्रभाव खोता चला गया। रही बात सीमा विवाद की तो ये तो आज भी वैसे का वैसा ही है। गलवान में जून 2020 में भारत के 20 सैनिक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। 13 मार्च, 1954 को विदेश मंत्रालय के सेक्रेटरी जनरल NT पिल्लई ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिख कर बताया कि कैसे भारत ने जिन अधिकारियों को चीन में तैनात कर रखा गया वो वहाँ ऐशोआराम की ज़िंदगी जी रहे हैं।

बीजिंग में पदस्थापित भारत के राजनयिक TN कौल चीन की एक महिला से प्यार में थे और उससे शादी करना चाहते थे। यानी, चीन ने हनीट्रैप के खेल का बखूबी इस्तेमाल किया। NT पिल्लई ने तत्कालीन पीएम को याद दिलाया कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को विदेशी महिला से शादी से पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेनी ज़रूरी है। एक तो लड़की के बारे में कुछ पता नहीं था, ऊपर से कौल पहले से ही शादीशुदा थे। उनके 2 बच्चे भी थे। सबसे बड़ी बात, वो भारत की तरफ से मोलभाव की जिम्मेदारी सँभाल रहे थे।

तिब्बत के साथ भारत के रिश्ते और चीन के साथ सीमा विवाद, सबका भाग्य इस समझौते पर निर्भर था और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति हनीट्रैप में फँस चुका था। पिल्लई ने कौल द्वारा 2 महीने की छुट्टी माँगे जाने के बाद कहा कि वो भारत आकर वार्ता के संबंध में जानकारी दें। शायद ही ऐसा कहीं देखा गया हो जहाँ कोई राजनयिक एक संवेदनशील वार्ता में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हो और विरोधी देश की लड़की के साथ रोमांटिक रिश्ता बना रहा हो।

तब प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू ने ये सब जानने के बाद TN कौल को तुरंत भारत तलब किया और N राघवन को आगे की वार्ता के लिए अधिकृत किया। इसके बावजूद कौल ने भारत लौटने के लिए 4 सप्ताह का समय लिया। उन्हें फिर चीन मामले का ज्वाइन सेक्रेटरी इंचार्ज बना दिया गया। फिर वो सोवियत यूनियन और अमेरिका में राजदूत रहे, विदेश सचिव भी बने’। ‘पंचशील समझौते’ के तहत जो भारत पहले तिब्बत के साथ सीमा साझा करता था, वो अब चीन के साथ करने लगा।

यही कारण है कि अब जब ‘पंचशील समझौते’ की चीन ने 70वीं वर्षगाँठ मनाई है तो भारत ने इस आयोजन से दूरी बनाए रखी। असल में TN कौल ने जो 2 महीने की छुट्टी माँगी थी, वो इसीलिए थी कि वार्ता खत्म होने के बाद वो चीन की उक्त प्रेमिका के साथ शादी कर हनीमून पर जाना चाहते थे। सोचिए, त्रिलोकी नाथ कौल ने इसके बाद कई पदों पर रहते हुए देश का कितना भला किया होगा? खैर, जब दिक्कत प्रधानमंत्री की नीति से ही थी तो अधिकारी भला क्या करते।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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