Monday, November 25, 2024
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पाकिस्तान में एक-दूसरे को काट रहे शिया-सुन्नी, अब तक 80+ लाशें गिरी: लखनऊ के एक दंगे से जुड़ी हैं जड़ें, जानिए पूरा मामला

लड़ाई का मूल कारण 1930 से चली आ रही दुश्मनी बताई जा रही है। 1930 के दशक में तब अविभाजित भारत में लखनऊ में शिया-सुन्नी दंगे हुए थे। लखनऊ में शिया-सुन्नी दंगों का पुराना इतिहास है। इस दंगे के दौरान शिया मौलानाओं की अपील पर पारचिनार इलाके से भी शिया लोग लड़ने के लिए लखनऊ गए थे।

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह सूबे में हाल ही में हुई हिंसा में 80 से अधिक लोगों की मौत हो गई। यह हिंसा इस सूबे के कुर्रम इलाके में हुई। हिंसा शिया और सुन्नी मुस्लिमों के कबीलों की इस लड़ाई के कारण बड़ा आर्थिक नुकसान भी हुआ। कई जगह दुकानें जलाई गईं। हिंसा के कारण बड़ी संख्या में परिवार यह इलाका छोड़ रहे हैं। इस इलाके की सीमा अफगानिस्तान से मिलती है। यहाँ इस लड़ाई में कबीलों के अलावा अलग-अलग लड़ाके भी शामिल हैं। शिया-सुन्नी के बीच इस हिंसा के पीछे कबीलाई लड़ाई के अलावा जमीन का विवाद भी बताया जाता है।

अभी क्या हुआ?

21 नवम्बर, 2024 को खैबर पख्तूनख्वाह के कुर्रम जिले के पारचिनार इलाके में एक जगह पर गाड़ियों के काफिलों पर हमला हुआ। यह काफिले राजधानी पेशावर से पारचिनार और पारचिनार से पेशावर की तरफ जा रहे थे। इन काफिलों में शिया लोग सवार थे। काफिलों में कई सवारी वाली वैन चल रहीं थीं। इनके साथ कुछ सुरक्षाबल के लोग भी थे।

यह काफिले जैसे ही निचले कुर्रम के इलाके में पहुँचे, इन पर आसपास की पहाड़ियों से हमला कर दिया गया। भारी फायरिंग और रॉकेट दागने के कारण इस हमले में कम से कम 43 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे। यह हमला सुन्नी लड़ाकों ने किया, ऐसा बताया गया है।

हमले में बड़ी संख्या में लोग घायल भी हैं। शियाओं पर हुए हमले के पीछे 12 अक्टूबर, 2024 को हुआ एक पुराना हमला कारण बताया गया है। इस हमले में 15 सुन्नी लोगों की मौत हुई थी। शियाओं पर इस ताजा हमले के बाद इलाके में हिंसा का दौर चालू हो गया।

हमले से गुस्साए शिया कबीलों ने इसके बाद सुन्नी कबीलों को निशाना बनाना चालू कर दिया। शिया लड़ाकों ने 22 नवम्बर, 2024 को बगान बाजार और कुर्रम के निचले इलाकों को निशाना बनाया। यहाँ एक बाजार में लगभग 200 दुकानें जला दी गईं।

बड़ी संख्या में सुन्नी लोगों को अगवा किया गया। हमले में सुन्नियों की दुकानों और उनके परिवारों को निशाना बनाया गया। यह सिलसिला रविवार तक जारी रहा। इस पूरी हिंसा में 80 से अधिक मारे गए जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। मरने वालों में ज्यादा तादाद शियाओं की है।

4 साल में 1600+ मौतें

पाकिस्तान के कुर्रम इलाके में शिया-सुन्नी की लड़ाई कोई नई बात नहीं है। पारचिनार, पाकिस्तान के उन कुछ इलाकों में है, जहाँ शिया आबादी सुन्नी से अधिक या उनके बराबर है। रिपोर्ट बताती हैं कि यहाँ शियाओं की आबादी लगभग 45% है। इसमें वह कुर्रम के ऊपरी इलाकों में बहुसंख्यक हैं। हालाँकि, निचले इलाकों में सुन्नी मजबूत हैं और यही इलाका इसे बाकी देश से जोड़ता है।

बीबीसी उर्दू की एक रिपोर्ट कहती है कि 2007-11 के बीच यहाँ शिया-सुन्नी की लड़ाई के कारण 1600 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। यह आँकड़ा सरकारी है। बीबीसी उर्दू की रिपोर्ट कहती है कि असल आँकड़ा कहीं ज्यादा है। घायल होने वालों की संख्या 5000 से भी अधिक बताई जाती है।

नवम्बर में हुए इस ताजा हमले से पहले अक्टूबर में यहाँ हिंसा हुई थी। इसमें भी दर्जनों लोग मारे गए थे। उससे पहले सितम्बर में यहाँ 46 लोग मारे गए थे। जुलाई, 2024 में भी यहाँ 30 से अधिक मौतें हुई थीं। यह लड़ाई कई दशकों से जारी है। लड़ाई में शिया-सुन्नी कबीलों के अलावा आतंकी समूहों के शामिल होने की बात भी कही जाती है।

लखनऊ से है इस लड़ाई का कनेक्शन

लड़ाई का मूल कारण 1930 से चली आ रही दुश्मनी बताई जा रही है। 1930 के दशक में तब अविभाजित भारत में लखनऊ में शिया-सुन्नी दंगे हुए थे। लखनऊ में शिया-सुन्नी दंगों का पुराना इतिहास है। इस दंगे के दौरान शिया मौलानाओं की अपील पर पारचिनार इलाके से भी शिया लोग लड़ने के लिए लखनऊ गए थे। इन्हें रोकने के लिए यहाँ के सुन्नी मौलानाओं ने अपील की थी।

इस लड़ाई की जड़ वहीं से पड़ गई थी। इसके अलावा यहाँ रहने वाले शिया और सुन्नी कबीलाई लोग हैं। इन इलाकों में सर के बदले सर का नियम चलता है। बन्दूक रखने को यहाँ सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। कबीलाई लड़ाई में एक और मामला जमीन से जुड़ा हुआ है।

बीबीसी उर्दू की एक रिपोर्ट बताती है कि 1890 में अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान यहाँ पर यह कबीले बसाए गए थे। इस इलाके में उसी हिसाब से जमीन भी आवंटित की गई थी। इसी जमीन पर कब्जा शिया का होगा या सुन्नी का, इसी के विवाद में लगातार हिंसा होती है।

जिन जमीनों को लेकर लड़ाई है, उनके कोई भी आधिकारिक दस्तावेज मौजूद नहीं हैं। ऐसे में मालिकाना हक़ को लेकर लड़ाई होती रहती है। जमीन पर लड़ाई इसलिए भी है, क्योंकि यही जमीन इस इलाके में उर्वरा है। यहाँ चावल, फल और बाकी चीजों की खेती होती है।

कबीलाई और दूरस्थ इलाके होने के कारण यहाँ आय के और कोई साधन नहीं है। ऐसे में जमीन की महत्ता और भी बढ़ जाती है। जमीन की यह लड़ाई पारचिनार के कम से कम 10 गाँवों में है। एक शिया परिवार की दूसरे सुन्नी परिवार से लड़ाई भी कबीलाई जंग का रूप ले लेती है। हालाँकि, मसला सिर्फ जमीन को लेकर ही नहीं है।

आपसी मतभेद भी बड़ा मामला

शिया और सुन्नी के बीच लड़ाई का मामला जमीन तक सीमित ना होकर पाकिस्तान की सीमा भी लाँघता है। गौरतलब है कि पाकिस्तान में अधिकांश आबादी सुन्नी है। जिस इलाके में यह लड़ाई हो रही है, वह तीन तरफ से अफगानिस्तान से घिरा है और यह इलाके तालिबान जैसे आतंकी संगठनों का गढ़ हैं। इन आतंकी संगठनों में सुन्नी आतंकी ही शामिल हैं।

अफगानिस्तान में 1979 से चालू हुए जिहाद के बाद इस इलाके में भी सुन्नी आतंकियों की आमद हुई है। शिया कबीलों का आरोप है कि यहाँ के रहने वाले सुन्नी बाहरी आतंकियों को बुला कर उन्हें निशाना बनाते हैं। हमले 1930 के बाद 1960, 1970 और 1990 के दशक में भी हुए हैं।

1971 में यहाँ एक मीनार के निर्माण पर शिया और सुन्नी में लड़ाई हुई थी। 1977 में एक मस्जिद के इमाम की हत्या के बाद भी हिंसा हुई। 2007 में यहाँ चालू हुए दंगों में लगभग 2000 लोग मारे गए थे। इस इलाके के कुछ गाँवों पर अल कायदा और तालिबान ने भी कब्जा करने का प्रयास किया।

अब क्या है स्थिति?

21 नवम्बर से चली आ रही यह लड़ाई 24 नवम्बर को 7 दिनों के लिए शांत हुई। खैबर पख्तूनख्वाह के मुख्य सचिव, कानून मंत्री और पुलिस मुखिया ने यहाँ मौके पर जाकर सुन्नी-शिया कबीलों से बातचीत की और समझौता करवाया। दोनों समूह 7 दिनों के लिए लड़ाई रोकने को राजी हो गए हैं। दोनों समूहों ने एक दूसरे के बंधकों को लौटाने पर भी सहमति दी है। सरकार ने इस मामले में रिपोर्ट भी माँगी है। सरकार के प्रतिनिधियों ने उम्मीद जताई है कि आगे यहाँ हिंसा देखने को नहीं मिलेगी। यह समझौता कितने दिन टिकता है, यह भविष्य के गर्भ में है।

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अर्पित त्रिपाठी
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