Sunday, November 17, 2024
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आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं, याचिका पर नहीं होगी सुनवाई: OBC के लिए 50% आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट

"कोई भी आरक्षण के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का दावा नहीं कर सकता है। आरक्षण देने से इनकार करना किसी भी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। रिजर्वेशन मौलिक अधिकार नहीं है और यही आज का कानून है। आप अपनी याचिका वापस लें और मद्रास हाईकोर्ट जाएँ।"

आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। ये बड़ी टिप्पणी गुरुवार (जून 11, 2020) को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेज में ओबीसी छात्रों को 50% रिजर्वेशन देने की माँग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की। इसी के साथ कोर्ट ने आगे इस याचिका पर कोई सुनवाई करने से भी इनकार कर दिया।

बार एंड बेंच के अनुसार, DMK-CPI-AIADMK समेत तमिलनाडु की कई अन्य पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में NEET के तहत मेडिकल कॉलेज में सीटों को लेकर 50 फीसदी OBC आरक्षण के मामले पर याचिका दायर की थी।

इसी पर, सुनवाई करते हुए जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने कहा“कोई भी आरक्षण के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का दावा नहीं कर सकता है। आरक्षण देने से इनकार करना किसी भी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। रिजर्वेशन मौलिक अधिकार नहीं है और यही आज का कानून है। आप अपनी याचिका वापस लें और मद्रास हाईकोर्ट जाएँ।

यहाँ बता दें कि कुछ समय पहले राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र द्वारा ऑल इंडिया कोटा के तहत तमिलनाडु में अंडर ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट मेडिकल और डेंटल कोर्स में ओबीसी को 50% कोटा ना दिए जाने के फैसले का विरोध किया था। इसमें कहा गया था कि कॉलेजों में नीट के तहत हो रही काउंसिलिंग पर फैसला आने तक रोक लगाई जाए।

अपनी याचिका में सभी राजनैतिक पार्टियों ने कहा था तमिलनाडु में ओबीसी, एससी, एसटी के लिए 69% रिजर्वेशन है। इसमें ओबीसी का हिस्सा 50% है।

याचिका में कहा गया था कि ऑल इंडिया कोटा के तहत तमिलनाडु को दी गई सीटों में से 50% पर ओबीसी कैंडिडेट्स को एडमिशन दिया जाना चाहिए।

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं में दिए गए तर्क से प्रभावित नहीं हुआ और सवाल किया कि जब आरक्षण का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, तो अनुच्छेद 32 के तहत याचिका कैसे बरकरार रखी जा सकती है।

कोर्ट ने कहा, “किसके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है? आर्टिकल 32, केवल मौलिक अधिकारों के हनन के लिए अस्तित्व में है।”

कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “हमें लगता है कि आप सिर्फ़ तमिलनाडु के लोगों के अधिकारों से मतलब रखते हैं। लेकिन आरक्षण का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है।”

अदालत ने कहा कि तमिलनाडु के विभिन्न राजनीतिक दलों को एक कारण के लिए एक साथ आने की सराहना करता है, लेकिन शीर्ष अदालत इस याचिका पर विचार नहीं कर सकती है।

जब कोर्ट को यह बताया गया कि मामलों का आधार तमिलनाडु सरकार द्वारा आरक्षण कानून का उल्लंघन है, तो पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को मद्रास उच्च न्यायालय जाना चाहिए।

रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि AIADMK, DMK, तमिलनाडु कॉन्ग्रेस, वाइको, CPI और CPI (M) सहित सभी याचिकाकर्ता अपनी याचिका वापस ले लें और संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएँ।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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