Sunday, May 5, 2024
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5 कारण जो ‘#TirupatiVirus’ को झूठा साबित करते हैं: खोलते हैं लिबरलों और वामपंथियों के प्रोपेगेंडा की पोल

दिलचस्प बात यह है कि ये वामपंथी वही हैं जिन्होंने जमात की निंदा पर लोगों को इस्लामोफोबिया से ग्रसित करार दे दिया था। लेकिन जब बात तिरुपति की आई तो महामारी चरम तक पहुँचने के बाद वह इसे तिरुपति वायरस कह रहे हैं और इसके लिए हिंदुओं को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

मार्च 2020 के फ्लैशबैक में जाएँ तो याद आएगा कि उस समय देश भर में 30% से अधिक कोरोना वायरस संक्रमण फैलाने (प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से) वाले तबलीगी जमात के कारनामे को कैसे वामपंथियों और कट्टरपंथियों ने अपने तर्कों से धोने-पोछने का काम किया था। 

वामपंथियों ने कहा था कि यह समारोह उस समय आयोजित हुआ जब दिल्ली पुलिस ने किसी प्रकार की कोई सूचना नहीं दी थी। (हालाँकि, उस समय यह तर्क तब झूठा साबित हो गया। जब पुलिस अधिकारी की एक वीडियो सामने आई जिसमें वह जमात प्रशासन से समारोह को रोकने की अपील कर रहा था।)

अब अगस्त 2020 को देखिए। यही वामपंथियों और कट्टरपंथियों ने एक नया ट्रेंड चलाया है- “Tirupativirus” इसमें दावा किया जा रहा है कि 75% कोरोना वायरस भारत में मंदिरों से फैला। अब इस इंफोग्राफिक के जरिए जो आँकड़े दर्शाए जा रहे हैं उसका दावा है कि यह इंडिया टुडे का ‘अनऑफिशियल इंफोग्राफिक’ है।

दिलचस्प बात यह है कि ये वामपंथी वही हैं जिन्होंने जमात की निंदा पर लोगों को इस्लामोफोबिया से ग्रसित करार दे दिया था। लेकिन जब बात तिरुपति की आई तो महामारी चरम तक पहुँचने के बाद वह इसे तिरुपति वायरस कह रहे हैं और इसके लिए हिंदुओं को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

वामपंथियों के पाखंड और दोहरे रवैये का अंदाजा इस बात से भी लग सकता है कि उन्हें यह तिरुपति वायरस का ट्रेंड चलाने में इतनी उत्सुकता है कि वह वास्तविक जानकारी भी नहीं जानना चाहते। इनके द्वारा चलाए जा रहे प्रोपगेंडा में इतनी कमियाँ हैं कि यह एक बार फिर हिंदुओं को बदनाम करने के अपने प्रयास में असफल हो रहे हैं।

लेफ्ट-लिबरल्स की इस हार के पीछे 5 महत्तवपूर्ण कारण हैं:

1.कोई प्रमाणिक स्रोत नहीं है दावा साबित करने के लिए

इस आर्टिकल को लिखने के समय तक, इस बात के कोई सबूत कहीं भी नहीं थे कि देश में कोरोना वायरस संक्रमण बढ़ने का कारण मंदिर है। इस इंफोग्राफिक में भी इस बात का कहीं उल्लेख नहीं है कि जो आँकड़े उन्होंने बताए वो कहाँ से लिए।

2.सरकारी प्रशासन से तिरुपति श्रद्धालुओं ने खुद को छिपाया नहीं

तबलीगी जमातियों की तरह तिरुपति श्रद्धालुओं ने खुद को प्रशासन से छिपाने के लिए या जाँच प्रक्रिया से बचाने के लिए मंदिरों में नहीं छिपाया हुआ था। उन्होंने खुद का टेस्ट खुद ही करवाया और खुद को क्वारंटाइन भी किया।

3. तिरुपति श्रद्धालु ऐसा नहीं मानते हैं कि कोरोना वायरस हिंदू धर्म को न मानने वालों के लिए दंड है

मरकज के दौरान तबलीगी जमात के मौलाना साद ने यह दावा किया था कोरोना वायरस उन लोगों के लिए अल्लाह की ओर सजा है जो उसको नहीं मानते। इसलिए संप्रदाय विशेष के लोगों को इस संक्रमण से डरने की आवश्यकता नहीं है। जबकि तिरुपति श्रद्धालुओं को न ऐसा कुछ बताया गया और न ही उन्होंने ऐसा कुछ सोचा। उन्होंने अधिकारियों और डॉक्टरों के साथ सहयोग भी किया।

4. तिरुपति श्रद्धालु कभी भी स्वास्थ्यकर्मियों के साथ बदसलूकी नहीं की

तिरुपति श्रद्धालुओं ने कभी भी स्वास्थ्यकर्मियों से अपना इलाज करवाने से मना नहीं किया और न ही उनको इलाज के दौरान प्रताड़ित किया। वहीं तबलीगियों के रवैये को याद करें तो उन्होंने कानपुर अस्पताल में नर्सों के साथ दुर्व्य्वहार किया और उनके साथ हिंसा भी की थी।

5. कोई विदेशी श्रद्धालु तिरुपति मंदिर में जुलूस के समय शामिल नहीं हुआ

तबलीगी जमातियों का मामला उजागर होने के बाद पूरे देश में कोरोना के मामलों में औचक बढ़ौतरी देखने को मिली। क्योंकि वहाँ बिना दिशा निर्देश का पालन करने वाले बाहरी लोगों को काफी संख्या थी। लेकिन, तिरुपति मंदिर में केवल यहीं के श्रद्धालु आए थे। कोई बाहरी श्रद्धालु नहीं था।

इसलिए, इन दोनों घटनाओं की तुलना बेहद हास्यास्पद है। वामपंथियों ने बस जमातियों की तुलना तिरुपति श्रद्धालुओं से करके और कोरोना के लिए मंदिरों को जिम्मेदार बताकर, एक बार दोबारा अपने पाखंडी रवैये को उजागर किया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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