Tuesday, May 7, 2024
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दिल्ली दंगा केस में राज्य विधानसभा पैनल को झटका: SC ने दिया फेसबुक को राहत, कहा- 15 अक्टूबर तक कोई कार्रवाई नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा कमेटी को नोटिस जारी करते हुए एक हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक सुनवाई हो रही है तब तक फेसबुक पर कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आज (सितंबर 23, 2020) दिल्ली दंगा मामले में सुनवाई करते हुए फेसबुक को बड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक के वाइस प्रेसिडेंट अजित मोहन के खिलाफ 15 अक्टूबर तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं किए जाने का आदेश दिया है। न्यायालय ने दिल्ली विधानसभा और केंद्र को नोटिस भी जारी किया है।

दरअसल, दिल्ली विधानसभा की कमेटी ने दिल्ली हिंसा के दौरान भड़काऊ सामग्री पर रोक नहीं लगाने को लेकर फेसबुक के अधिकारियों को नोटिस जारी किया था। जिसको लेकर अजित मोहन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए याचिका दायर किया था। जिसपर जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने आज याचिका पर सुनवाई की है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा कमेटी को नोटिस जारी करते हुए एक हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक सुनवाई हो रही है तब तक फेसबुक पर कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा।

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह विधासनभा के पैनल के नोटिस के बावजूद तय तारीख पर फेसबुक के अधिकारी नहीं पहुँचे थे। कुछ समय पूर्व अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने ये दावा किया था कि फेसबुक ने जानबूझकर दिल्ली दंगों के दौरान भड़काऊ सामग्री पर रोक नहीं लगाई।

फेसबुक इंडिया के वीपी और एमडी अजित मोहन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा, “यह नोटिस मेरे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। मैं कोई जनता का सेवक नहीं हूँ, जिसके बयान की आवश्यकता है। मैं एक अमेरिकी कंपनी हूँ।”

कोर्ट में हरीश साल्वे ने कहा, “हमने 13 सिम्बर को इस बारे में कमेटी को लिखा भी है कि वो समन को वापस ले, लेकिन अजित मोहन के पेश न होने पर कमेटी ने इसे विशेषाधिकार हनन मानते हुए समन जारी कर दिया। जबकि विशेषाधिकार का मसला विधानसभा तय करती है, कमेटी नहीं।” उन्होंने आगे कहा, “आर्टिकल 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी के अंर्तगत ही किसी मसले पर न बोलने का अधिकार भी निहित है। ये मसला राजनीतिक रंग ले चुका है।”

फेसबुक की ओर से दलील देते हुए हरीश साल्वे ने कहा, “कमेटी के सामने पेश होने के लिए मज़बूर करना और ऐसा न करने की सूरत में दंड भुगतने की धमकी देना, अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार का हनन है। विधानसभा चाहे, वो फैसला लेने या कमेटी के गठन के लिए स्वतंत्र है।”

अजित मोहन को विधानसभा पैनल ने उपस्थिति होने के लिए नोटिस भेजा था। यह नोटिस उन्हें दंगों के दौरान लगे आरोपों पर पैनल को सफाई पेश करने के लिए जारी किया गया था। लेकिन अजित नोटिस के बावजूद पैनल के सामने नहीं पेश हुए। इसके बजाए पैनल को फेसबुक के डायरेक्टर ऑफ ट्रस्ट एंड सेफ्टी विक्रम लांगेह की तरफ से एक खत मिला। फेसबुक ने अपने खत में नोटिस पर सवाल खड़े करते हुए उसे वापस लेने की अपील की थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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