चुनावी नतीजों को तय करने में एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर, यानी सत्ता विरोधी लहर भी काम करती है। कई बार मतदाता नए चेहरे को मौका देने के नाम पर भी बदलाव कर देते हैं। लेकिन, बीते तीन दशक से बिहार की गया नगर सीट पर ऐसा कोई भी फॉर्मूला काम करता नहीं देखा गया है।
यहाँ से बीजेपी के प्रेम कुमार 1990 से विधायक हैं। लगातार आठवीं जीत को लेकर भी वे पूरी तरह आशवस्त दिखते हैं। राज्य के निवर्तमान कृषि मंत्री प्रेम कुमार छोटी-छोटी सभाएँ करते हैं। देर रात खुद एक-एक कार्यकर्ता से दिनभर की फीडबैक लेते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार मंत्री होते हुए भी वे सुलभ हैं।
तो क्या यह मान लिया जाए गया में सबकुछ चकाचक है?
गया राज्य के प्रमुख शहरों में एक है। भगवान बुद्ध से जुड़े होने के कारण यहाँ विदेशी सैलानियों का आना लगा रहता है। पितरों का पिंडदान करने के लिए भी देश के अलग-अलग हिस्सों से लोगों यहाँ आते हैं। हालाँकि वैश्विक कोरोना संकट की वजह से यह सब बंद है। जाम इस शहर की पहचान है। शहर की सड़कें संकरी हैं। हालिया स्वच्छता सर्वेक्षण में 10 लाख से कम की आबादी वाले शहरों में गया देश में सबसे गंदा पाया गया है।
बावजूद इसके प्रेम कुमार की सफलता का राज क्या है? क्यों हर बार विपक्ष को उनके खिलाफ चेहरा बदलना पड़ता है?
हमने अपनी यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों से जो बात की उससे निम्नलिखित तथ्य उभरकर सामने आए:
- प्रेम कुमार लगातार जनता के संपर्क में रहते हैं। किसी भी स्थिति में आप उनसे संपर्क करें, वे उपलब्ध हो जाते हैं।
- कारोबारियों का कहना है कि उन्हें धंधा करने में सहूलियत है। कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरी है। इस सीट पर करीब 50 हजार वोटर वैश्य हैं।
- सड़क और बिजली की स्थिति में सुधार की बात भी लोग करते हैं। प्रेम कुमार के नगर विकास मंत्री रहते हुए शहर में हुए काम की भी वे चर्चा करते हैं। जैसा कि धनंजय शर्मा कहते हैं, “आप कभी भी गया में आइए विकास का कुछ न कुछ काम होता रहता है।”
- लॉकडाउन की वजह से रोजी-रोजगार प्रभावित होने की शिकायत भी लोग करते हैं। पंडा भी नाराज हैं। उद्योगों के अभाव में पलायन की मजबूरी का दर्द भी लोग बयाँ करते हैं।
इस संबंध में पूछे जाने पर प्रेम कुमार कहते हैं कि जाम की समस्या से शहर को निजात दिलाने के लिए पटना की तरह जगह-जगह फ्लाइओवर बनाने की योजना है। दो परियोजनाओं का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि इनके पूरा होने पर बाहर जाने वाले वाहनों को शहर में आने की जरूरत नहीं होगी। इस बार उनका मुख्य वादा हर घर तक पीने के लिए गंगा का जल पहुँचाना है। अगले साल तक वे इसके पूरा हो जाने की बात करते हैं।
विस्तृत बातचीत आप नीचे सुन सकते हैं;
गंदगी का ठीकरा वे कॉन्ग्रेस शासित नगर निगम पर फोड़ते हैं। दिलचस्प यह है कि इस बार उनके मुकाबले कॉन्ग्रेस ने डिप्टी मेयर अखौरी ओंकार नाथ उर्फ मोहन श्रीवास्तव को उतारा है।
गया जिले का गणित
गया जिले में विधानसभा की 10 सीटें हैं। ये हैं- गया नगर, बोधगया, वजीरगंज, टिकारी, अतरी, इमामगंज, गुरुआ, बेलागंज, बाराचट्टी और शेरघाटी। इमामगंज, बोधगया और बाराचट्टी सुरक्षित सीटें हैं।इन सभी सीटों पर पहले चरण में 28 अक्टूबर को वोट डाले जाएँगे। फिलहाल इन 10 सीटों में सबसे अधिक 4 सीटें राजद के खाते में हैं। इस बार राजद ने यहाँ की 7 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। कॉन्ग्रेस तीन सीटों पर लड़ रही है। भाजपा और जदयू ने पिछले चुनाव में तीन-तीन सीटें जीती थीं। इस बार भाजपा 4, जदयू 3 और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की हम 3 तीन सीटों पर लड़ रही है।
2015 के चुनाव में बीजेपी गया नगर और गुरुआ में जीती थी। इस बार उसने गया नगर, वजीरगंज, गुरुआ और बोधगया से उम्मीदवार उतारे हैं। जदयू पिछली बार शेरघाटी और टिकारी से जीती थी। अबकी बार शेरघाटी, बेलागंज और अतरी के मैदान में है। हम को 2015 में इमामगंज में सफलता मिली थी। इस बार उसे लड़ने के लिए इमामगंज, बाराचट्टी और टिकारी मिली है। गया टाउन, वजीरगंज और टिकारी में कॉन्ग्रेस ने इस बार उम्मीदवार उतारे हैं। पिछली बार उसे वजीरगंज में सफलता मिली थी। 2015 में बेलागंज, बोधगया, बाराचट्टी और अतरी में जीत हासिल करने वाली राजद ने इन चार सीटों के अलावा इमामगंज, शेरघाटी, गुरुआ से भी उम्मीदवार उतारे हैं।
5 सीटें परिवारों के प्रभाव वाली
जिले की 5 सीटें ऐसी हैं जहाँ कमोबेश अरसे से एक ही परिवार का प्रभाव बना रहा है। मसलन, बेलागंज से सुरेंद्र यादव सात बार विधायक रहे हैं। इस बार भी वे राजद के उम्मीदवार हैं। अतरी में राजेंद्र यादव के परिवार का दबदबा है। पिछली बार यहाँ से उनकी पत्नी कुंती देवी जीतीं थी। वजीरगंज से अवधेश सिंह 5 बार जीत चुके हैं। पिछली बार भी महागठबंधन उम्मीदवार के तौर पर वही जीते थे। इस बार कॉन्ग्रेस ने उनके बेटे शशि शेखर सिंह को उतारा है। इमामगंज से कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे उदय नारायण चौधरी 5 बार विधायक रहे हैं। इस बार वे राजद के टिकट पर मैदान में हैं। बाराचट्टी में भगवती देवी के परिवार का प्रभाव है। खुद भगवती देवी तीन बार विधायक रहीं। 2015 में उनकी बेटी समता देवी जीतीं। इस बार भी वे राजद की उम्मीदवार हैं। गया सुरक्षित सीट से सांसद भी भगवती देवी के बेटे विजय कुमार हैं। हालाँकि विजय जदयू के साथ हैं।
एक वीआईपी सीट यह भी
इमामगंज के चुनावी टक्कर की चर्चा भी जोरों से हैं। यहाँ राज्य को दो राजनीतिक दिग्गजों उदय नारायण चौधरी और जीतनराम मांझी के बीच मुकाबला है। दोनों का इलाके में अपना-अपना प्रभाव है। जदयू के साथ होने से मांझी की स्थिति मजबूत बताई जाती है। सीधे मुकाबले वाले इस सीट पर तीसरा कोण लोजपा की शोभा सिन्हा बना रही हैं। बताया जाता है कि शोभा सिन्हा बीजेपी के टिकट पर बोधगया से दावेदार थीं। मौका नहीं मिलने पर लोजपा से टिकट लेकर वे इमामगंज के मैदान में हैं।
बोधगया से बीजेपी के उम्मीदवार हरि माँझी हैं। वे 2005 में इस सीट से विधायक रहे हैं। सांसद भी रह चुके हैं। जीतनराम माँझी का भी इस सीट पर खासा प्रभाव है और वे भी यहाँ से विधायक रह चुके हैं। इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है। इस सीट पर यादव और माँझी के बराबर वोट हैं। पासवान, चौधरी, वैश्य, चंद्रवंशी, कुशवाहा, राजपूत, भूमिहार, भोक्ता और अल्पसंख्यक वोट निर्णायक माना जाता है। राजद ने निवर्तमान विधायक सरबजीत को मैदान में उतारा है।
टिकारी में हम के अनिल कुमार और कॉन्ग्रेस के सुमंत कुमार के बीच मुकाबला है। लोजपा के कमलेश शर्मा यहाँ जीत-हार का अंतर पैदा कर सकते हैं। बाराचट्टी में भी जीतनराम मांझी की प्रतिष्ठा दांव पर है। हम की उम्मीदवार उनकी समधन ज्योति देवी हैं। ऐसे ही बेलागंज में लोजपा के रामाश्रय शर्मा निर्णायक फैक्टर बताए जा रहे हैं। गुरुआ और अतरी में सीधा मुकाबला है।
सबसे रोचक लड़ाई शेरघाटी की है। मुख्य मुकाबला निवर्तमान जदयू विधायक विनोद प्रसाद यादव और राजद की मंजू अग्रवाल के बीच है। लेकिन नतीजे लोजपा के मुकेश कुमार यादव और पप्पू यादव की पार्टी जाप के उम्मैर खां को मिलने वाले वोट तय करेंगे। अतरी से जदयू ने विधानपार्षद मनोरमा देवी को तो राजद ने अजय यादव उर्फ रंजीत यादव को उतारा है। दोनों नए चेहरे हैं।
गांव: केनार चट्टी
— Ajit Jha (@JhaAjitk) October 20, 2020
विधानसभा: वजीरगंज
जिला: गया#BiharElections2020 pic.twitter.com/QkrQZch3NZ
पिछला चुनाव हारने के बावजूद इलाके में लगातार सक्रिय रहने का फायदा वजीरगंज के बीजेपी उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह को दिखता है। हालाँकि कुरकीहार जैसे कुछ भूमिहार बहुल गाँवों में पूर्व सांसद अरुण कुमार की पार्टी को वोट मिलने की बात भी लोगों ने कही।
चिंटू भैया… उ दान-दहेज भी दिया है। धर्म का काम किया है…
— Ajit Jha (@JhaAjitk) October 20, 2020
कुरकीहार (वजीरगंज)#BiharElections2020 pic.twitter.com/caIB9geELx