Sunday, September 15, 2024
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कॉन्ग्रेस पहले ही पतन के करीब है, अब J&K के अलगाववादी गठबंधन में शामिल होकर दिया अपने ही विनाश को न्योता

जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव होने वाले हैं ऐसे में अनेकों ना-नुकर करने के बाद गुपकार गठबंधन की पार्टियों ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि इन पार्टियों का कॉन्ग्रेस ने भी समर्थन किया है और अलगाववाद के इस गठबंधन में शामिल होकर ही वो भी चुनाव लड़ेगी।

कहते हैं कि जब मति भ्रष्ट हो तो एक के बाद एक गलतियाँ करते हैं। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कॉन्ग्रेस की हालत भी कुछ ऐसी ही है। बिहार चुनाव में महागठबंधन की हार की अघोषित जिम्मेदार कॉन्ग्रेस अब जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी पार्टियों के गुपकार समझौते में शामिल हो गई है।

इन अलगाववादी दलों के नेताओं का देश विरोधी एजेंडा किसी से छिपा नहीं है, कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे में इनके साथ अलगाववाद की मुहिम में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होने का ये फैसला कॉन्ग्रेस के लिए उसकी ताबूत में अंतिम कील साबित होगी।

कॉन्ग्रेस का गुपकार प्रेम

जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव होने वाले हैं ऐसे में अनेकों ना-नुकर करने के बाद गुपकार गठबंधन की पार्टियों ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि इन पार्टियों का कॉन्ग्रेस ने भी समर्थन किया है और अलगाववाद के इस गठबंधन में शामिल होकर ही वो भी चुनाव लड़ेगी।

एक राष्ट्रीय पार्टी का अलगाववादी नेताओं के साथ प्रेम, देश और जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक भविष्य के लिए एक चिंताजनक बात है और ये आगे चलकर साबित करेगा कि कॉन्ग्रेस दोमुँहेपन की पराकाष्ठा को पार कर चुकी है l

अलगाववादी है गुपकार गठबंधन

कॉन्ग्रेस ने जिस गुपकार गठबंधन में शामिल होने का फैसला किया है उसकी हकीकत किसी को भी हैरान कर सकती है कि देश की राष्ट्रीय पार्टी ऐसा कदम केवल सत्ता के लिए कैसे उठा सकती है। गुपकार का मुख्य एजेंडा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 और 35-A बहाली है। ये लोग तब तक भारतीय झंडे को हाथ नहीं लगाने की बात करते हैं जब तक अनुच्छेद -370 बहाल नहीं हो जाता।

इस गठबंधन में जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी समेत कई क्षेत्रीय अलगाववादी पार्टियाँ हैं, जिसमें उमर अब्दुल्ला, फारुक अब्दुल्ला,  महबूबा मुफ्ती, सज्जाद लोन आदि शामिल हैं। इन नेताओं का कहना है कि वो इस बहाली के लिए चीन से भी मदद लेने को खुशी-खुशी तैयार हैं। वहीं, ये लोग कश्मीरी युवकों को नौकरी के अभाव में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भड़काते हैं, जो कि इनके देश विरोधी एजेंडे को दर्शाता है।

कॉन्ग्रेस के लिए मुसीबत

जो नेता अपने देश के मुद्दों के लिए दुश्मन देशों से मदद माँगते हो वो देशद्रोही ही तो कहलाएँगे और इनके साथ कॉन्ग्रेस का गठबंधन उसकी प्रकृति को दर्शाता है कि असल में वो कितने निचले स्तर तक जा चुकी है। राजनीतिक जमीन के लिए देशद्रोही नेताओं के साथ जाकर उनकी पंक्ति में खड़ी हो गई है जिससे उस पर भी लोगों ने देशद्रोही होने का ठप्पा लगाना शुरू कर दिया है।

हाल हीं में कॉन्ग्रेस को बिहार चुनावों में हार का मुँह देखना पड़ा है। केवल हार ही नहीं… बिहार में कॉन्ग्रेस के कारण ही महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव के सीएम बनने की ‘संभावनाएँ’ खत्म हुई हैं जिसके चलते अब बाकी पार्टियाँ भी कॉन्ग्रेस से सतर्क हो गई हैं। चुनाव नतीजों को चार दिन नहीं हुए कि कॉन्ग्रेस को उसके ही गठबंधन के साथियों ने दबे मुँह लताड़ना भी शुरू कर दिया है। 

आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी का बयान इसकी परिणति है जिन्होंने कहा कि जब बिहार में चुनाव अपने चरम पर था, तब राहुल गाँधी बहन प्रियंका गाँधी के साथ उनके शिमला वाले घर में पिकनिक मना रहे थे। क्या पार्टी ऐसे चलती है? ये बयान बताता है कि कॉन्ग्रेस से अब उसके सहयोगी भी पीछा छुड़ाएँगे।

यूपी के 2017 विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन कर सत्ता में वापसी करने के इरादे रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अरमानों पर जब कॉन्ग्रेस की वजह से पानी फिरा तो उन्होंने भी साफ कर दिया है कि वो भविष्य में किसी भी चुनाव में देश की बड़ी राजनीतिक पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कॉन्ग्रेस का नाम नहीं लिया लेकिन अखिलेश का इशारा उसी तरफ था।

यहीं नहीं कॉन्ग्रेस के अपने लोग भी अब ये कहने लगे हैं कि कॉन्ग्रेस की वर्किंग कमेटी को ठोस कदम उठाने होंगे। कई लोगों ने तो एक बार फिर कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए राहुल गाँधी को आगे किया है जबकि वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल का कॉन्ग्रेस की कार्यप्रणाली से मोह भंग हो रहा है और वो जमकर पार्टी की आलोचना करने लगे हैं। 

सिब्बल ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि ऐसा लगता है कि पार्टी नेतृत्व ने शायद हर चुनाव में पराजय को ही अपना नियति इमान लिया है। उन्होंने कहा था कि बिहार ही नहीं, उपचुनावों के नतीजों से भी ऐसा लग रहा है कि देश के लोग कॉन्ग्रेस पार्टी को प्रभावी विकल्प नहीं मान रहे हैं। इसके अलावा पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिखा था। इस पत्र में भी राहुल और प्रियंका के शिमला में छुट्टी मनाने पर जोर दिया गया था।

जब राजनीतिक रूप से कॉन्ग्रेस को केवल असफलता ही मिल रही है और उसके साथी उसका हाथ झटक रहे हैं तो उसका जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी पार्टियों के साथ गुपकार गठबंधन में शामिल होना एक आत्महत्या के बराबर ही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कॉन्ग्रेस का ये फैसला न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश में उस पर भारी पड़ेगा और संकट में पड़े कॉन्ग्रेस के राजनीतिक भविष्य के लिए ये ताबूत में आखिरी कील का काम करेगा।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस तरफ इशारा किया है। उन्होंने गुपकार गैंग और कॉन्ग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि गुपकार गैंग कश्मीर को आतंक युग में ले जाना चाहता है। इतना ही नहीं अमित शाह ने ये भी कहा कि अगर गुपकार गैंग देश के मूड के साथ नहीं आता है, तो जनता उसे डुबो देगी। 

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