जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है कि अब यह निर्धारित करने के लिए शिक्षकों की परफॉर्मेंस की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी कि उनकी नौकरी जारी रहनी चाहिए या उन्हें केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के अनुसार समय से पहले सेवानिवृत्त किया जाना चाहिए।
इस फैसले की जामिया टीचर्स एसोसिएशन (Jamia Teachers Association) द्वारा आलोचना की जा रही है और शिक्षक और यूनिवर्सिटी प्रबंधन आमने-सामने आ गए हैं। एसोसिएशन का कहना है कि सीसीएस (Central Civil Services) के नियम विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए लागू नहीं होते हैं, इसलिए आदेश को वापस लिया जाए। एसोसिएशन ने इस संबंध में बुधवार (जनवरी 20, 2021) को एक मीटिंग बुलाई, जिसमें समस्त शिक्षकों ने इस आदेश का विरोध किया।
समाचार पत्र ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के आदेश में कहा गया है कि अब शिक्षकों के परफार्मेंस का रिव्यू किया जाएगा, इसके आधार पर तय होगा कि उनकी नौकरी जारी रखी जाए, या उन्हें केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के अनुसार समय से पहले सेवानिवृत्त कर दिया जाए।
जामिया टीचर्स एसोसिएशन के सचिव मोहम्मद इरफान कुरैशी ने कहा कि पूरे जेटीए चुनाव आयोग की एक राय थी कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया एक स्वायत्त निकाय है, जहाँ सीसीएस नियम लागू नहीं किया जा सकता है। इसलिए, JTA रजिस्ट्रार, JMI से माँग करता है कि वह तत्काल प्रभाव से कार्यालय के आदेश को वापस ले ले।
JNU के शिक्षकों ने जताई थी अटेंडेंस के नियमों पर आपत्ति
उल्लेखनीय है कि इससे पहले, कायदे-कानून विकसित करने या उनके अनुसरण पर JNU के शिक्षक भी जमकर नौटंकी कर चुके हैं। साल 2018 में JNU प्रशासन ने कहा था कि अगर कोई शिक्षक अटेंडेंस के नियम को नहीं मानेगा तो उसे छुट्टी नहीं दी जाएगी। यूजीसी के रेगुलेशंस के मुताबिक, पूरे साल के 180 टीचिंग के दिनों में शिक्षक का सप्ताह का वर्कलोड 40 घंटे से कम नहीं होना चाहिए। इस मानक को ही लागू करने के लिए अटेंडेंस के यह नियम बनाए गए, जिसके तहत शिक्षकों को अटेंडेंस रजिस्टर साइन करना जरूरी बताया गया। लेकिन शिक्षक एसोसिएशन ने इसका विरोध किया और JNU में ‘बिगड़ते हालात’ का हवाला देते हुए 24 घंटे की भूख हड़ताल करने की बात कही थी।
परफॉर्मेंस की समीक्षा से समस्या क्या है?
चाहे केंद्रीय यूनिवर्सिटी हो, किसी राज्य का कोई विद्यालय या फिर कोई अन्य सरकारी कार्यालय, अक्सर यही मानसिकता हर बड़े-छोटे स्तर पर देखने को मिलती रहती है। सवाल यह उठता है कि अपने काम की समीक्षा से भय किस बात का? वह भी तब, जब आप एक प्रतिष्ठित संस्थान का हिस्सा हों और किसी न किसी तरह से बाकी लोगों से अलग होने का विचार अपने भीतर रखते हों।
खासकर, शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों का ही नियम-कानून और कायदों के प्रति विरोधाभास हास्यास्पद विषय बन जाता है। यह एक ओएमआर शीट पर कुछ चिन्हों पर निशान लगाकर कम से काम साठ साल की राशन का जुगाड़ कर देने वाली मानसिकता ही इस देश में ‘क़्वालिटी’ के साथ सबसे बड़ा खिलवाड़ साबित होती आई है। इससे भी अधिक चिंताजनक सवाल यह है कि जिस तंत्र में मूल्याँकन और समीक्षा को लेकर इतना भय व्याप्त है, वह ‘क्रांति’ की बातें सोच भी कैसे पाता है?