Sunday, November 24, 2024
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कहानी उस गोले की जहाँ है तुगलक प्रदेश, जहाँ के शहंशाह हैं सर जी!

सर जी तो सर जी ठहरे। आजकल 2022 के चुनावी प्रदेशों को बनाने में लगे हैं। चुनावी प्रदेश बनेंगे? जवाब अगले बरस मिलेंगे।

मुस्कुराइए क्योंकि कहानी इस गोले की नहीं है। उस गोले की है जहाँ तुगलक प्रदेश है। जिस प्रदेश में खुशहाली का ओवरडोज है। जो प्रदेश ध्वनि की रफ्तार से भी फास्ट फ्री वाईफाई की स्पीड से दौड़ती है। जहाँ 18 लाख सीसीटीवी कैमरे की हर स्पीड पर नजर है।

मुस्कुराइए क्योंकि इस प्रदेश में पानी का बिल नहीं आता। बिजली के झटके फ्री के हैं। 500 स्कूल, 40 कॉलेज, 6 स्टेट यूनिवर्सिटी और 2 लाख सार्वजनिक शौचालय तो कल ही बने हैं।

मुस्कुराइए क्योंकि यहाँ जनलोकपाल है। घूस देना नहीं है। भ्रष्टाचारी जेल में बाप-बाप कर रहे हैं। पारदर्शिता इतनी है कि प्रचार ही प्रचार है। स्पीडब्रेकर तक का प्रचार है।

मुस्कुराइए क्योंकि इस प्रदेश में जनता से कोई पर्दा नहीं है। टैक्स देना नहीं है। झुग्गी-झोपड़ी नहीं हैं। सबके पक्के मकान बन गए हैं। सुरक्षा में 4 लाख महिला कमांडो तैनात हैं। संतरी नाम की सैलरी पर खट रहे हैं। बंगला-गाड़ी और दूसरे तामझाम तो भूल ही जाइए।

मुस्कुराइए क्योंकि यहाँ झमाझम बारिश है। जलजमाव है। ट्रैफिक जाम है। और हर समस्या का गुनहगार पड़ोसी प्रदेश है। फिर भी प्रचार चकाचक है।

मुस्कुराइए क्योंकि इस चमत्कारिक प्रदेश के शहंशाह हैं सर जी!

सर जी जमीन से उठे आदमी हैं। आज वाले गोलगप्पे गालों पर मत जाइए। कभी पूरा बदन सुखाड़ था। गले में किचकिच ऐसी, पूछिए ही मत। लेकिन गाल तब भी अच्छा बजा लेते थे। बजाने और बनाने में इनका कोई सानी नहीं। प्रदेश की पुरानी रानी कहती थी- मेरा प्रदेश मैं ही सँवारूँ। वो सर जी थे जिनमें सूखे बदन भी तनकर खड़े होने का गुर्दा था। सो खाँसते मुँह कह दिया- मुझे कुछ कहना है। पूछ दिया- तू क्यों सँवारे, जब सजना है मुझे सजना के लिए।

सर जी के सौंदर्य बोध पर जनता लहोलोहाट हुई और वे राजा बन गए। फिर फुल वॉल्यूम बजवाते- डीजे वाले बाबू मेरा गाना बजा दो। इतनी बजवाई की पब्लिक बजती गई।

वैसे सर जी को कभी-कभी उजाड़ने की भी सनक होती है। एक बार इसी सनक में जाते ठंड में प्रदेश से काफिर उजाड़े जाने लगे। जो बच गए उन्हें इतनी जबर ऑक्सीजन सप्लाई दी, इतने बेड बनाए कि श्मशान से लेकर कब्रिस्तान तक भी कह उठे- मान गए सर जी!

सर जी की एक और सनक है। कहीं भी चुनाव की डुगडुगी बजने को हो तो उनका मन जोर-जोर से चीखने लगता है- जिया बेकरार है… इसी बेकरारी में एक बार गंगा किनारे तौलिए बदन डुबकी लगावा दी गुर्गों ने।

खैर छोड़िए। आप भी किन गलियों में भटक गए। जिस गली में तेरा घर न हो बालमा, उधर जाना नहीं है। तो अपने सर जी हुनर के मुताबिक तुगलक प्रदेश के बाहर भी बजा लेते हैं। आजकल प्रदेशे-प्रदेशे फ्री बिजली की डुगडुगी बजा रहे हैं। वैसे बीच-बीच में कोई मनचला आकर इनको भी बजा जाता है। पर दयालु-सहृदय-सेकुलर शहंशाह बुरा नहीं मानते। बुरा तो लॉन्ग लॉन्ग एगो में तब माने थे जब नारद के एक मानस पुत्र ने तुगलक कह दिया था। सर जी का उस बार गजब बजा था। तड़प-तड़प के उस नारद पुत्र की रोटी छीनने के लिए उसके मालिक को सुबह-शाम बजाने लगे थे।

लेकिन आप मुस्कुराइए क्योंकि आप तुगलक प्रदेश में हैं। इस प्रदेश के जो बाहर हैं वे क्या जाने आपका सुख। उनको सर जी का बनाना भाता नहीं। पर सर जी तो सर जी ठहरे। आजकल 2022 के चुनावी प्रदेशों को बनाने में लगे हैं। चुनावी प्रदेश बनेंगे? जवाब अगले बरस मिलेंगे।

तब तक आप संगीत सम्राट अल्ताफ राजा की आवाज में सुनिए;
गेसुओं के साए में कब हमें सुलाओगे…

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अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

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