सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने को लेकर यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पत्रकार प्रकाश कनौजिया को फौरन रिहा करने का आदेश दिया है। यही नहीं, मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर प्रशांत को किन धाराओं के तहत अरेस्ट किया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रशांत कनौजिया ने जो शेयर किया और लिखा, इस पर यह कहा जा सकता है कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन, उसे अरेस्ट किस आधार पर किया गया था?
Supreme Court orders immediate release of freelance journalist, Prashant Kanojia who was arrested by UP Police for ‘defamatory video’ on UP Chief Minister. pic.twitter.com/OTr47uEVSu
— ANI (@ANI) June 11, 2019
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की भी याद दिलाई। कोर्ट ने कहा कि एक नागरिक के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है, उसे बचाए रखना जरूरी है। गौरतलब है कि प्रशांत कनौजिया पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक टिप्पणी करने का आरोप है। पुलिस के मुताबिक, उन्होंने एक विडियो को शेयर करते हुए एक विवादित कैप्शन लिखा था।
Supreme Court hearing plea of freelance journalist, Prashant Kanojia, against his arrest for ‘defamatory video’ on UP CM: Supreme Court says, “Opinions may vary, he (Prashant) probably should not have published or written that tweet, but on what basis was he arrested.” pic.twitter.com/oWwX9Ujifg
— ANI (@ANI) June 11, 2019
प्रशांत की पत्नी जिगीशा अरोड़ा ने सोमवार (जून 10, 2019) को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए इस गिरफ्तारी को चुनौती दी थी। उनकी अर्जी में कहा गया है कि पत्रकार पर लगाई गई धाराएँ जमानती अपराध में आती हैं। ऐसे मामले में कस्टडी में नहीं भेजा जा सकता। याचिका पर तुरंत सुनवाई की जरूरत है, क्योंकि यह गिरफ्तारी अवैध और असंवैधानिक है। जिगिशा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (जून 11, 2019) को सुनवाई करते हुए प्रशांत की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया और तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है।
ASG Banerjee: His release will be seen as an endorsement of his tweets
— Bar & Bench (@barandbench) June 11, 2019
Justice Banerjee: It will be treated as an endorsement of his personal liberty. Even we hear the brunt on social media but does that mean it should lead to incarceration?
सुप्रीम कोर्ट के जज ने सोशल मीडिया पर टीका-टिप्पणी को लेकर एडिशनल सॉलिशिटर जनरल को कहा कि हम जज लोगों को भी यहाँ काफी कुछ सुनने को मिलता है, इसका मतलब यह नहीं कि हम किसी को भी उठा कर जेल में डाल दें।