साल 2018 की बात है। फेसबुक पर मजाक उड़ाया जा रहा था। वजह थी एक पत्रकार की नई नौकरी। मजाक उड़ाने वाले उस पत्रकार के जानने-पहचानने वाले दोस्त-यार थे। ‘वहाँ पत्रकारिता नहीं होती’ का ज्ञान उसे दिया जा रहा था। दोस्त ‘शुभचिंतक’ बन चुके थे। कुछ तो दार्शनिक भी।
खैर, पत्रकार ने नौकरी शुरू की। चमड़ी मोटी थी उसकी। सोशल मीडिया के सवाल-जवाब उसे बेमानी लगते थे… और नई नौकरी की खुशी के समय तंज कसने वाले दोस्त बेमंटा। वो पत्रकार मन लगा कर काम करने लगा। जो-जो टास्क दिया जाता, वो समय से पूरा हो – यह सुनिश्चित करने का काम उसने तन-मन से किया।
करत-करत अभ्यास ते, जडमति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान॥
ऊपर वाली कहावत सिर्फ कहने भर को नहीं है। यही असली जीवन दर्शन है। उस पत्रकार के ‘शुभचिंतक’ दोस्तों को यह बात शायद पता नहीं थी। साल 2019 की 12 जनवरी से लेकर 2022 की 12 जनवरी तक रस्सी को घिस-घिस कर उस पत्रकार और उसके संस्थान ने पत्रकारिता भी की और ‘पत्रकार’ बने लोगों को इसके मायने भी बखूबी समझाया।
वो पत्रकार मैं हूँ और संस्थान है ऑपइंडिया हिंदी। आप पाठकों के बीच हमने शुरुआत की थी 12 जनवरी 2019 से। तब से लेकर अब तक धीरे-धीरे टीम बनी भी, बढ़ी भी। पाठकों तक पैठ भी हमने धीरे-धीरे बढ़ाई। पहले मेनस्ट्रीम मीडिया और उसकी पत्रकारिता के सहारे खबरें जानने-समझने वाले भी तीखे-चुभते तथ्यों को खोल कर सामने रख देने वाली हमारी पत्रकारिता को समझने लगे। और तो और… पत्रकारिता क्या होती है, शीर्षक क्या होना चाहिए आदि-इत्यादि – अब दूसरे संस्थान भी हमें इस मामले में फॉलो करने लगे हैं।
3 साल के साथ-समर्थन का धन्यवाद
यह सब संभव हुआ है आप जैसे पाठकों के भरोसे। सच मानिए यह हवाई बात नहीं है। न ही इस बात से आपको खुश करने की मेरी मंशा है। क्योंकि पत्रकारिता के कई मॉडल, कई दुकान और भी खुले। सबका हश्र वही है – डब्बा बंद। इसके विपरीत मेनस्ट्रीम मीडिया और उनके भारी-भरकम कॉर्पोरेट मॉडल के आगे ऑपइंडिया हिंदी न सिर्फ टिका हुआ है बल्कि मजबूती से पाँव भी जमाए हुए है तो उसका श्रेय टीम से ज्यादा पाठकों पर जाता है।
आप हमारे वो पाठक हैं, जो न सिर्फ पढ़ते हैं बल्कि टोकते भी हैं। और यही हमारी शक्ति है। हर दिन सीखने, गलती करने पर सुधारने-संभलने के लिए आप ही हमें प्रेरित करते हैं। जब-जब बिग-टेक कंपनियों ने हमारे ऊपर उठने की गति पर ब्रेक लगाने की कोशिश की, आप ही हमारी सीढ़ी भी बने। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो ऑपइंडिया हिंदी की पूरी टीम अगर मशीन है तो उसके पाठक हैं फ्यूल। आप जलते हैं तो हम चलते हैं।
आगे भी चाहिए साथ
समय कठिन है। और यह बात सिर्फ भारत की नहीं है। पूरी दुनिया के वामपंथी लामबंद हो चुके हैं। उनके साथ तमाम पंथ-पक्ष-कंपनी-कॉर्पोरेट (भले मौका-परस्त ही) खड़े हैं। इनका लक्ष्य है दक्षिणपंथी सोच-तर्क पर चोट करना। गूगल-फेसबुक-ट्विटर सब इसी सोच के साथ चल रहे हैं। हमें इनके बीच ही चलना है… और इन्हें मात भी देना है। कैसे?
आप के भरोसे हैं हम। आप हमारे पाठक हैं। आप हमें पढ़ते हैं। अच्छा लगे तो उस पढ़े को आगे भी बढ़ाइए। यार-दोस्त-परिवार के साथ शेयर कीजिए। यही आने वाले वर्षों में हमारी ताकत होगी। यही अब तक हुई भी है। कंटेंट के मामले में कुछ जोर हम लगा रहे हैं, प्रचार-प्रसार के मामले में कुछ जोर आपसे लगाने की उम्मीद कर रहे हैं।
उर्जावान स्वामी विवेकानंद की जयंती पर ऑपइंडिया हिंदी की शुरुआत हुई थी। वो और उनके विचार हमेशा से हम सबकी प्रेरणा रहे हैं, रहेंगे। आज उनकी जयंती पर पूरी ऑपइंडिया हिंदी की टीम उनको नमन कर रही है। उन्हीं के विचारों से प्रेरित होकर आपसे एक अपील भी कर रहे हैं – कोरोना-काल में स्वस्थ रहें, सतर्क रहें।