Tuesday, November 5, 2024
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सम्राट अशोक के 2300 साल पुराने शिलालेख को बना दिया था मजार, अब ASI ने वापस लिया नियंत्रण: चंदन पहाड़ी के स्मारक पर चढ़ा दी थी चादर

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि सासाराम (232 या 231 ईसा पूर्व) के अशोक शिलालेख में ब्राह्मी लिपि में आठ पंक्तियाँ हैं। शिलालेख का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है।

बिहार के सासाराम में कट्टरपंथियों द्वारा सम्राट अशोक के लगभग 2300 साल पुराने शिलालेख पर कब्जा करके उस पर मजार बनाने के मामले में एक नई जानकारी सामने आई है। मंगलवार (29 नवंबर 2022) को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, “सम्राट अशोक के शिलालेखों का लंबे समय तक अतिक्रमण किया गया। अब इस जगह की चाबी, जो एक संरक्षित स्मारक है, जिला अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद ASI के अधिकारियों को सौंप दी गई है।”

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि सासाराम (232 या 231 ईसा पूर्व) के अशोक शिलालेख में ब्राह्मी लिपि में आठ पंक्तियाँ हैं। शिलालेख का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है। शिलालेखों में संभवतः बुद्ध की मृत्यु का उल्लेख करने वाली एक तिथि भी शामिल है, लेकिन इसकी कोई ठोस जानकारी अभी तक नहीं मिली है।

मालूम हो कि रोहतास की चंदन पहाड़ी में स्थित महान मौर्य सम्राट अशोक के एक ऐतिहासिक शिलालेख पर मजार बना दी गई थी। पूरे देश में अशोक के ऐसे आठ शिलालेख हैं, जिनमें बिहार में केवल एक ही है। इस शिलालेख पर चूने से पोताई करवाकर चादर चढ़ा दी गई थी। इसके बाद से इसे सूफी संत की मजार घोषित कर सालाना उर्स का आयोजन किया जा रहा था। यही नहीं, शिलालेख की घेराबंदी करने के बाद कट्टरपंथियों द्वारा उसके गेट पर ताला लगाकर रखा जा रहा था।

गौरतलब है कि स्वतंत्रता के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस शिलालेख को वर्ष 2008 में संरक्षित स्मारक घोषित किया था। सासाराम शहर की पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड (GT Road) और नए बाइपास के बीच कैमूर पहाड़ी श्रृंखला में आशिकपुर पहाड़ी की चोटी से लगभग 20 फीट नीचे स्थित कंदरा में स्थापित शिलालेख के पास ASI ने संरक्षण संबंधी बोर्ड भी लगाया था, लेकिन अतिक्रमणकारियों ने इसे साल 2010 में उखाड़कर फेंक दिया।

साल 2008, 2012 और 2018 में ASI ने अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी (DM) से कहा था। इसके बाद जिलाधिकारी ने सासाराम के एसडीएम को कार्रवाई का आदेश दिया था। एसडीएम ने शिलालेख पर अवैध कब्जा करने वाले मरकजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी तत्काल प्रशासन को सौंपने के कहा था, लेकिन कमिटी ने आदेश को अनसुना कर दिया था। धीरे-धीरे यहाँ एक बड़ी इमारत अवैध रूप से बना दी गई। इस शिलालेख को ब्रिटिश राज में खोजा गया था और साल 1917 में इसे संरक्षित किया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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