मध्य प्रदेश के भेल दहशहरा मैदान में जनजाति सुरक्षा मंच की तरफ से जनजाति गर्जना डी-लिस्टिंग महारैली का आयोजन किया गया। 10 फरवरी, 2023 को आयोजित महारैली में राज्य भर के 40 जिलों से आए जनजातीय समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया। प्रदर्शन कर रहे लोग धर्म बदलने वाले जनजातीय समुदाय के लोगों के डी-लिस्टिंग की माँग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अपनी संस्कृति और पूजा-पद्धति का त्याग करने के बाद भी लोग जनजातीय समुदाय को मिलने वाले सरकारी योजनताओं व मिल रहे अन्य लाभ उठा रहे हैं। ऐसे में धर्म परिवर्तन करने वालों की डी-लिस्टिंग आवश्यक है।
प्रदर्शन कर रहे लोगों की माँग है कि जिस तरह अनुच्छेद 341 (Article 341) में अनुसूचित जाति की डी-लिस्टिंग लागू की गई है, उसी तरह अनुच्छेद 342 में संशोधन कर डी-लिस्टिंग लागू की जाए। अनुच्छेद 341 में किए गए संशोधन के अनुसार यदि कोई अनुसूचित जाति का सदस्य ईसाई या मुस्लिम धर्म अपनाता है तो उसे अनुसूचित जाति को मिलने वाली सुविधाएँ मिलनी बंद हो जाती हैं। जनजातीय संगठन अनुच्छेद 342 में यही संशोधन चाहते हैं ताकि यदि जनजातीय समुदाय से जुड़ा व्यक्ति यदि धर्मांतरण करे तो उसे समुदाय को मिलने वाले सरकारी लाभ न मिल सकें।
‘जनजाति सुरक्षा मंच’ से जुड़े कालू सिंह मुजाल्दा ने पत्रकारों से कहा है कि माँग पूरी होने तक अभियान जारी रहेगा। उनका कहना है कि जनजाति संस्कृति की त्याग कर अपनी पूजा पद्धति बदलने वाला जनजातीय समुदाय को मिलने वाले लाभ का फायदा नहीं उठा सकता। उन्होंने कहा कि नौकरियों, छात्रवृत्तियों और शासकीय अनुदान के मामलों में संविधान की भावनाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। मंच से जुड़े एक अन्य नेता कैलाश निनामा ने कहा है कि अनुच्छेद 342 में संशोधन के लिए संसद अब तक कानून नहीं बना पाई है। उन्होंने कहा कि इसका मसौदा 1970 के दशक से ही संसद में विचाराधीन है।
कैलाश निनामा ने कहा कि धर्मांतरण के बाद जनजाति समुदाय का सदस्य क्रिश्चियन कहलाता है। इसके बाद कानूनन वह अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ जाता है। संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में धर्म परिवर्तन के बाद के लिए स्पष्ट प्रावधान न होने के कारण धर्मांतरित लोग दोहरी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। निनामा ने यह भी कहा कि डी-लिस्टिंग केवल योजनाओं व रिजर्वेशन के लाभ से जुड़ा विषय नहीं है बल्कि यह जनजातीय समाज के स्वाभिमान, संस्कृति के संरक्षण और अस्तित्व से जुड़ा विषय है।