अमेरिका के विवादास्पद अरबपति जॉर्ज सोरोस (George Soros) भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को लेकर आपत्तिजनक बयान दे चुके हैं। उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को प्रभावित करने की कई बार कोशिश की है। उन्होंने पीएम को हालिया अडानी-हिंडेनबर्ग विवाद से जबरदस्ती जोड़ने की कोशिश की थी। उनके बयान पर विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री जयशंकर ने कहा कि सोरोस ने पिछले दिनों पीएम मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि वे भारत जैसे लोकतंत्रिक देश के नेता हैं, लेकिन वे खुद लोकतांत्रिक नहीं हैं। वो मुस्लिमों साथ हिंसा और अन्याय कर तेजी से बड़े नेता बने हैं। उन्होंने कहा सोरोस के पसंद के व्यक्ति जीते तो लोकतंत्र बढ़िया है, वर्ना खराब है।
जयशंकर ने कहा कि सोरोस पुराने विचारों वाले व्यक्ति हैं और न्यूयॉर्क में बैठकर वे अभी भी सोचते हैं कि उनके विचारों के अनुसार ही दुनिया चले। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग अपने नैरेटिव के लिए अपने संसाधनों का निवेश करते हैं। ऐसे लोग खतरनाक होते हैं। उन्होंने सोरोस को बुजुर्ग, अमीर, मतलबी और कहानियाँ बनाने में माहिर बताया।
#WATCH | Mr Soros is an old, rich opinionated person sitting in New York who still thinks that his views should determine how the entire world works…such people actually invest resources in shaping narratives: EAM Dr S Jaishankar pic.twitter.com/k99Hzf3mGK
— ANI (@ANI) February 18, 2023
सोरोस ने 16 फरवरी 2023) को जर्मनी में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर क्रोनी कैपटलिज्म को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि उद्योगपति गौतम अडानी और प्रधानमंत्री के बीच मधुर संबंध हैं। सोरोस ने अडानी समूह के कथित हेरफेर में प्रधानमंत्री के भी शामिल होने का आरोप लगाया था। इसको लेकर स्मृति ईरानी ने उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई थी।
कौन हैं जॉर्ज सोरोस?
जॉर्ज सोरोस एक अमेरिकी अरबपति हैं, जो स्टॉक मार्केट में निवेश करके लाभ कमाते हैं। उनका जन्म 1930 में पश्चिमी देश हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में एक यहूदी परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब यहूदियों पर अत्याचार हो रहा था, तब उन्होंने झूठा पहचान पत्र बनाकर अपना और अपने परिवार की जान बचाई थी।
जब विश्वयुद्ध खत्म हुआ और हंगरी में कम्युनिस्ट सरकार बनी तो वे 1947 में इंग्लैंड की राजधानी लंदन चले गए। वहाँ उन्होंने रेलवे स्टेशन पर कुली और क्लबों में वेटर का भी काम किया। इस दौरान वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की। इसके बाद कुछ समय तक उन्होंने लंदन मर्चेंट बैंक में भी काम किया।
साल 1956 में वे लंदन छोड़कर अमेरिका आ गए और फाइनांस एवं इन्वेस्टमेंट में कदम रखा। उसके बाद उनकी किस्मत चमक उठी और रात दूनी दिन चौगुनी तरक्की करने लगे और खूब संपत्ति इकट्ठा की। वित्तीय पत्रिका फोर्ब्स मैगजीन के अनुसार 17 फरवरी 2023 तक उनके पास 6.7 बिलियन डॉलर (लगभग 55,455 करोड़ रुपए) की संपत्ति है।
सन 1973 में उन्होंने सोरोस फंड मैनेजमेंट की स्थापना की और कथित अत्याचार पीड़ितों की मदद करने लगे। इस दौरान उन्होंने ब्लैक लोगों की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप देना शुरू किया। उनका दावा है कि उन्होंने अब 32 अरब डॉलर (2.62 लाख करोड़ रुपए) जरूरतमंदों को दे चुके हैं। सन 1984 में उन्होंने ओपन सोसायटी नामक संस्था की स्थापना की। आज यह संस्था 70 से अधिक देशों में कार्यरत है।
इन सब मानवीय सेवाओं और दानों के पीछे उनका एक विकृत चेहरा भी है। उन्होंने लाभ कमाने के लिए कई संस्थानों और देशों में वित्तीय संकट खड़ा कर दिया। इसके अलावा, उन्होंने कई देशों की सरकारों के खिलाफ प्रोपगेंडा फैलाने और उन्हें गिराने के लिए फंडिंग करने का काम किया। ओपन सोसायटी का इसमें नाम आया है। इस तरह के आरोप उन पर लगते रहे हैं।
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को हटाने के लिए अथाह पैसे खर्च किए थे। साल 2003 में उन्होंने कहा था कि जॉर्ज बुश को हटाना उनके लिए जिंदगी और मौत का सवाल है। उन्होंने कहा था कि अगर बुश को सत्ता से हटाने की अगर कोई गारंटी लेता है और वे अपनी पूरी संपत्ति उस पर लुटा देंगे। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ बुश की कार्रवाई का भी खूब विरोध किया था। बुश को हराने के लिए उन्होंने 250 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए थे।
सोरोस को चीन, भारत के नरेंद्र मोदी, ब्लादिमीर पुतिन, अमेरिका पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता पसंद नहीं हैं। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को ठग और पीएम मोदी को तानाशाह कहा था। उन्होंने दुनिया में ‘राष्ट्रवाद’ के बयार से लड़ने के लिए लगभग 100 अरब डॉलर की फंड की स्थापना की है। इन फंड का इस्तेमाल इन लोगों के खिलाफ प्रोपगेंडा फैलाने के लिए किया जाता है। दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में उन्होंने कहा था कि दुनिया में राष्ट्रवाद तेजी से बढ़ रहा है। इसका सबसे खतरनाक नतीजा भारत में देखने को मिला है।
सोरोस ने वित्तीय संकट पैदा किया और लाभ कमाया
जॉर्ज सोरोस को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जिसने बैंक ऑफ इंग्लैंड को बर्बाद कर दिया। बैंक ऑफ इंग्लैंड यूनाइटेड किंगडम का केंद्रीय बैंक और यह भारत के RBI के समानांतर है। हेज फंड मैनेजर सोरोस ने अपनी साजिशों से ब्रिटिश मुद्रा पाउंड की वैल्यू को गिरा दिया था। इससे उन्होंने लगभग 1 बिलियन डॉलर (8277 करोड़ रुपए) का लाभ कमाया था। उन्हें वित्तीय युद्ध अपराधी तक कहा गया है।
यह कुछ हिंडनबर्ग रिसर्च की तरह ही है। हिंडनबर्ग भी अपनी रिपोर्ट में किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति को खराब बताया है। इससे उसके शेयर गिरने लगते हैं और उसे शॉर्ट सेल करके लाभ कमाता है। अडानी मामले में भी हिंडनबर्ग ने यही तरीका अपनाया। इसके पहले भी वह ऐसा ही करता है। जॉर्ज सोरोस ने बैंक ऑफ इंग्लैंड के मामले में लगभग यही रणनीति अपनाई थी।
साल 1997 में थाईलैंड की मुद्रा बाहत पर सट्टेबाजी हमलों (Speculative Attack) के लिए सोरोस को जिम्मेदार ठहराया गया था। थाईलैंड की मुद्रा में आई गिरावट के कारण उस साल एशिया के अधिकांश देशों में वित्तीय संकट फैल गया था। मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहम्मद ने भी वहाँ की मुद्रा रिंगित की गिरावट के लिए सोरोस को जिम्मेदार ठहराया था। हालाँकि, सोरोस ने इसका खंडन किया था।
इसके अलावा, सोरोस पर अन्य अनैतिक तरीकों से संपत्ति कमाने का आरोप लगा है। वर्ष 2002 में फ्रांस की अदालत ने सोरोस को अनैतिक और अनधिकृत व्यापार का दोषी पाते हुए उन पर 23 लाख डॉलर का जुर्माना लगाया था। सोरोस ने अदालत के इस फैसले को फ्रांस की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने सोरोस पर लगाए गए इस जुर्माने को बरकरार रखा।
अमेरिका में भी जॉर्ज सोरोस पर बेसबॉल खेलों में पैसा लगाकर अनैतिक तरीके से लाभ कमाने का आरोप लगा। इसी तरह इटली की फुटबॉल टीम एएस रोमा को लेकर भी सोरोस विवादों में आए था। इतना ही नहीं, सोरोस ने साल 1994 में खुलासा किया था कि उन्होंने आत्महत्या करने में अपनी माँ मदद की थी।
सरकारों के खिलाफ प्रोपगेंडा और भारत
राफेल डील में जाँच के लिए फंडिंग: फ्रांस से भारत ने 36 राफेल विमानों को खरीदा था। इसको लेकर विपक्षी दल कॉन्ग्रेस ने हंगामा किया था और कहा था कि इसमें दलाली हुई है। हालाँकि, यहाँ की सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था। इसके बाद फ्रांस की एनजीओ शेरपा एसोसिएशन ने इसमें भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज कराकर जाँच की माँग की थी। इस एनजीओ को जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से फंड जारी किया जाता है।
भारत जोड़ो यात्रा और सोरोस: कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा से भी जॉर्ज सोरोस के नाम जुड़े हैं। 31 अक्टूबर 2022 को सलिल शेट्टी नाम का एक व्यक्ति राहुल गांधी की कर्नाटक के हरथिकोट में उनकी भारत जोड़ी यात्रा में शामिल हुआ। सलिल शेट्टी जॉर्ज सोरोस द्वारा स्थापित ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन के वैश्विक उपाध्यक्ष हैं। इसके पहले शेट्टी एमनेस्टी इंटरनेशनल से जुड़े थे।
CAA प्रोटेस्ट: सीएए प्रोटेस्ट में भी जॉर्ज सोरोस का नाम जुड़ा है। कहा जाता है कि नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर हुए विरोध को हवा देने के लिए जॉर्ज सोरो ने फंडिंग की थी। इसकी पुष्टि उनके बयानों से भी होती है। सोरोस ने भारत में लागू किए जा रहे NRC और CAA को मुस्लिम विरोधी बताया था।
कश्मीर से धारा 370 का खात्मा: इसी तरह कश्मीर से जब केंद्र की मोदी सरकार ने धारा 370 को खत्म कर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त किया था, तब भी सोरोस सामने आए थे। उन्होंने मोदी सरकार के इस फैसले का विरोध किया था। सोरोस ने कहा था कि भारत हिंदू राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है। इसी तरह किसान आंदोलन और भारत द्वारा कोरोना का वैक्सीन बनाने के बाद उसके खिलाफ वैश्विक मुहिम चलाने में भी सोरोस का नाम आ चुका है।
दरअसल, जॉर्ज सोरोस की भूमिका उन हर बातों में लगभग सामने आई, जो केंद्र की भाजपा सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ रही। जॉर्ज सोरोस की नरेंद्र मोदी के खिलाफ कितनी नरफत है, इसका वे तानाशाह कहकर सबूत दे चुके हैं और समय-समय पर अन्य आरोपों के जरिए इसकी पुष्टि भई करते रहते हैं। वैसे तो सोरोस की कहानी सैकड़ों पन्नों में भी नहीं खत्म होगी, लेकिन फिलहाल संक्षिप्त में इतना ही।