पिछले दिनों मीडिया में खबर आई थी कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुजरात (Gujarat) की निचली अदालत के 68 न्यायिक अधिकारियों के जिला जज के रूप में प्रमोशन पर रोक लगा दी है। इनमें हरीश वर्मा का नाम भी बताया गया था। उन्होंने मानहानि केस में राहुल गाँधी को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। लेकिन प्रमोशन पर स्टे लगाने वाले जस्टिस एमआर शाह का कहना है कि मीडिया ने आदेश को गलत तरीके से रिपोर्ट किया है। साथ ही यह भी बताया है कि इस आदेश के दायरे में राहुल गाँधी को सजा सुनाने वाले जज नहीं आएँगे।
बार ऐंड बेंच ने जस्टिस शाह के हवाले से कहा है कि यह स्टे योग्यता के आधार पर होने वाले प्रमोशन पर लागू नहीं होगी। उन्होंने कहा, “जजों के प्रमोशन पर रोक लगाने वाले आदेश का किसी एक व्यक्ति से लेना-देना नहीं है। मामला यह था कि प्रमोशन का पैमाना योग्यता सह वरिष्ठता हो या फिर वरिष्ठता सह योग्यता। सोशल मीडिया पर चल रही खबरों में कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी 68 जजों के प्रमोशन पर रोक लगा दी है। लेकिन ऐसे लोगों ने आदेश नहीं पढ़ा है। केवल ऐसे प्रमोशन पर रोक लगाई गई है जिन्हें मेरिट लिस्ट में नहीं होने के बाद भी केवल वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन दिया गया था।”
जस्टिस शाह के अनुसार जज हरीश वर्मा रोक के इस पैमाने के दायरे में नहीं आते। उन्होंने कहा, “मैंने पढ़ा है कि सज्जन (राहुल गाँधी केस में सूरत कोर्ट के जज) को प्रमोशन नहीं मिल रहा है। यह भी सच नहीं है। उन्हें मेरिट के आधार पर प्रमोशन मिल रहा है। वह योग्यता के मामले में 68 में पहले स्थान पर हैं।”
बता दें कि शुक्रवार (12 मई, 2023) को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने जजों के प्रमोशन पर रोक लगाई थी। फैसले में जस्टिस कहा गया था, “राज्य सरकार ने याचिका लंबित रहने के दौरान अधिसूचना जारी की है। हम हाई कोर्ट की सिफारिश और राज्य सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाते हैं और जजों को उनके मूल पद पर वापस भेजते हैं।”
क्या है मामला
बता दें कि 68 जजों के प्रमोशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सीनियर सिविल जज कैडर के दो अधिकारियों ने अपनी याचिका में कहा था कि 65 प्रतिशत कोटा नियम के तहत इन जजों का प्रमोशन किया गया, जो कि अवैध है। याचिका में दलील दी गई थी कि प्रमोशन मेरिट कम सीनियरिटी के सिद्धांत पर की जानी चाहिए।
याचिका दाखिल करने वाले न्यायिक अधिकारी रवि कुमार मेहता और सचिन प्रजापराय मेहता ने अपनी अर्जी में कहा था कि कई ऐसे जज हैं, जिन्होंने पदोन्नति के लिए हुई परीक्षा में ज्यादा अंक हासिल किए हैं। इसके बावजूद उनका सिलेक्शन नहीं किया गया और उनसे कम अंक पाने वाले जजों को प्रमोट किया गया।