Saturday, November 23, 2024
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मौज में ‘डिजिटल जेहादी’ जुबैर, पर घर में कैद हैं नुपूर शर्मा: कन्हैया लाल और उमेश कोल्हे के हत्यारों को साल भर बाद भी सजा नहीं

मस्जिद में इकट्ठी हुई भीड़ ने जब नारा लगाया कि नूपुर शर्मा का सिर कहीं और फेंका हुआ मिलेगा और धड़ कहीं और, तब उनमें से कितनों को पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे डाला गया? जब वो ललकार रहे थे कि 'गाय का पेशाब पीने वालों की हैसियत क्या है', तब कानून ने उन्हें इसके लिए एक बार फटकार तक भी लगाई?

कन्हैया लाल तेली की हत्या को 1 वर्ष पूरे हो चुके हैं। अब तक हत्यारों को सज़ा नहीं हो पाई है। फिर जिन्होंने हत्यारों को पनाह दी या उन्हें संसाधन दिए, उन्हें सज़ा की बात तो भूल ही जाइए। हम उस देश में रहते हैं, जहाँ एक ऐसे व्यक्ति को सज़ा देने में 4 साल लग गए। जो आतंकी 166 लोगों का खून बहाने में शामिल था, वो 4 साल तक भारत के जेल में बैठ कर अपनी मनपसंद किताबें पढ़ता रहा और मुँहमाँगे भोजन का आनंद उठाता रहा।

ठीक इसी तरह, कन्हैया लाल के हत्यारों को सज़ा अब तक नहीं मिल पाई है। बेटा नंगे पाँव है तो क्या हुआ, अस्थियाँ अब तक विसर्जन की बाट जोह रही हैं तो क्या हुआ, विधवा पत्नी दिन भर अपने पति की सिलाई मशीन को निहारती रहती है तो क्या हुआ, पुलिसकर्मियों की मर्जी के बिना परिजन चाय पीने तक बाहर नहीं जा सकते तो क्या हुआ, उदयपुर के मालदास स्ट्रीट बाजार का पूरा धंधा ही मंदा पड़ गया तो क्या हुआ, अपराधियों को अब तक सज़ा नहीं मिल पाई।

कैमरे पर हत्या, वीडियो में लहराए हथियार, अब तक सज़ा नहीं

कैमरे पर पूरे देश ने देखा कि कैसे कन्हैया लाल तेली का गला काटा गया। पूरे देश ने ये भी देखा कि कैसे हत्यारों ने हँसते हुए वीडियो बनाया और हथियार लहरा कर अपने कारनामे पर गौरव का इजहार किया। कैमरे में सब कुछ कैद होने के बावजूद अब तक हत्यारों को सज़ा न मिलना क्या ऐसे तत्वों को प्रोत्साहित नहीं करता? कैमरे के सामने ‘सर तन से जुदा’ करने वाले भी जब जेल में ऐश करते रहेंगे, तो क्या इससे उनकी कट्टर विचारधारा से प्रेरित होने वालों की संख्या नहीं बढ़ेगी?

इस घटना में तीसरा किरदार था निजाम का। निजाम पड़ोसी था कन्हैया लाल तेली का। नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण उसने कन्हैया लाल पर FIR दर्ज करा दी थी। इसके बाद कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान की पुलिस ने कन्हैया लाल तेली को जेल में बंद कर दिया। जेल से निकलने के बाद पुलिस ने दोनों में तथाकथित सुलह करवाई। इसी निजाम ने कन्हैया लाल की रेकी की और हत्यारों को उनके बारे में सूचित किया।

उमेश कोल्हे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। राजस्थान के उदयपुर की तरह ही महाराष्ट्र के अमरावती में भी ‘सर तन से जुदा’ की घटना हुई थी। केमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या करने वालों में उनका 16 वर्षों का दोस्त युसूफ खान का मुख्य हाथ था। युसूफ ने उमेश कोल्हे का पोस्ट इस्लामी कट्टरपंथियों के व्हाट्सएप्प ग्रुप में फॉरवर्ड कर दिया। इसका सीधा अर्थ है कि वो आपके पड़ोसी हों या दोस्त, उनके मजहब की कट्टरता का उनके लिए पहला स्थान है।

व्यवस्था की सुस्ती तो हमने देख ली, अब व्यवस्था की सुषुप्तावस्था का उदाहरण देख लीजिए। मोहम्मद जुबैर – ये एक कुख्यात नाम है। वही AltNews वाला मोहम्मद जुबैर, जिसका दिन भर का काम ही है इस्लामी कट्टरपंथियों और पाकिस्तान का बचाव करना। उसका काम है कि लोगों को बताना कि तुमने क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया है, तुमने बातों को ठीक से नहीं समझा, तुमने वीडियो के बाद या पहले वाला हिस्सा नहीं देखा, तुमने पुराना वीडियो शेयर किया।

इस ‘डिजिटल जिहादी’ की हिम्मत तो देखिए कि जब नूपुर शर्मा ने पूरा वीडियो डालने की चुनौती दी, तब ये जोकर वाले इमोजी लगा कर उन्हें चिढ़ाता रहा। जब नूपुर शर्मा हत्या की धमकियों को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही थीं, तब ये खुद को पत्रकार बताते हुए उन्हें चिढ़ा रहा था। उन्हें ‘गुस्ताख़-ए-रसूल’ बताए जाने वाले ट्वीट्स को आगे बढ़ाता रहा। वो नूपुर शर्मा की बर्बादी की व्यवस्था कर के इसी के नाम पर अपने फॉलोवर्स से AltNews के लिए पैसे जुटाता रहा।

‘डिजिटल जिहादी’ मोहम्मद जुबैर, जिसने शेयर किया क्रॉप्ड वीडियो

जबकि सच्चाई ये है कि मोहम्मद जुबैर वही व्यक्ति है जिसने नूपुर शर्मा का एडिटेड वीडियो शेयर किया था। एक डिबेट में उन्होंने इस्लामी पुस्तक से उद्धरण भर दिया था, अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा था। क्यों उद्धरण दिया था? क्योंकि सामने ‘मुस्लिम स्कॉलर’ बना कर मीडिया चैनल द्वारा बैठाया गया तस्लीम रहमानी बार-बार भगवान शिव का अपमान कर रहा था। काशी विश्वनाथ विध्वंस का मजाक बना रहा था। शिवलिंग पर पाँव धोने वाले अपने मजहब के साथियों का साथ दे रहा था।

नूपुर शर्मा ने जवाब में सिर्फ बताया कि उसके मजहब की एक किताब में क्या लिखा हुआ है। ‘डिजिटल जिहादी’ मोहम्मद जुबैर ने नूपुर शर्मा का क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया, फिर अपने गिरोह के साथ मिल कर क़तर जैसे इस्लामी मुल्कों को टैग करने लगा। देश भर में एक महिला के खिलाफ ‘सर तन से जुदा’ गिरोह नारेबाजी करते हुए सड़कों पर उतरा। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे की हत्या कर दी गई। और नूपुर शर्मा? उन्हें घर में कैद होने को मजबूर होना पड़ा।

इस प्रकरण के बाद से फिर नूपुर शर्मा को किसी डिबेट में नहीं देखा गया, किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं देखा गया और न ही उनका राजनीतिक करियर आगे बढ़ पाया। नूपुर शर्मा का जीवन अब भी खतरे में है। और तस्लीम रहमानी? वो इस घटना के बाद भी बेधड़क टीवी डिबेट्स में बुलाया जाता रहा। उसका रवैया वैसा ही रहा। इस्लामी कट्टरपंथ वाला प्रोपेगंडा फैलाने में उसने कहीं कोई कमी नहीं की। उसके लिए जीवन और आसान हो गया।

पिछले 1 वर्ष में नूपुर शर्मा और तस्लीम रहमानी के जीवन का जो अंतर है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ की सफलता है। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे के परिवार की आज जो दुर्दशा है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ का सुकून है। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे के हत्यारों को तक सज़ा नहीं मिली है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ का उत्साहवर्धन है। इस पूरे प्रकरण को जन्म देने वाला मोहम्मद जुबैर एक ‘डिजिटल जिहादी’ है।

तस्लीम रहमानी आज ईद-बकरीद दोगुनी ख़ुशी से मना रहा है, नूपुर शर्मा के लिए होली-दीवाली सब उदास रहा। तस्लीम रहमानी अबकी बकरीद पर भी इस्लामी कट्टरपंथियों का बचाव करता हुआ घूम रहा है, नूपुर शर्मा के लिए अगली दीवाली पर त्योहार की बधाई या शुभकामना सन्देश देना भी आफत है। एक तस्लीम रहमानी ऐसी कई नूपुर शर्माओं के जीवन को तबाह करने की क्षमता रखता है, क्योंकि उसके साथ एक ‘डिजिटल जिहादी’ है।

आज कन्हैया लाल तेली एक पोटली में बंद हैं, मोहम्मद जुबैर ‘डिजिटल जिहाद’ में दोगुने जोश के साथ लगा हुआ है। व्यवस्था की सुषुप्तावस्था देखिए कि जब जम्मू कश्मीर में एक मस्जिद से ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगे, तब इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और इस्लामी कट्टरपंथियों को इसे वास्तविकता में तब्दील करने में समय नहीं लगा। जब मुस्लिम भीड़ जम्मू के डोडा के भद्रवाह स्थित मस्जिद में इकट्ठी होकर कह रही थी कि अजान या नमाज का विरोध करने वालों को मार डाला जाएगा, उस समय क्या कार्रवाई हुई?

कहीं मस्जिद में नारे, कहीं पुतला टाँगा: सोई रही व्यवस्था

उस मस्जिद में इकट्ठी हुई भीड़ ने जब नारा लगाया कि नूपुर शर्मा का सिर कहीं और फेंका हुआ मिलेगा और धड़ कहीं और, तब उनमें से कितनों को पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे डाला गया? जब वो ललकार रहे थे कि ‘गाय का पेशाब पीने वालों की हैसियत क्या है’, तब कानून ने उन्हें इसके लिए एक बार फटकार तक भी लगाई? अरे, वहाँ मौजूद लोग तो उलटा कह रहे थे कि प्रशासन उनका साथ देता है, आशा है आगे भी ऐसे ही साथ देता रहेगा।

जब कर्नाटक के बेलगावी में नूपुर शर्मा के पुतले को फाँसी के फंदे पर टाँग दिया गया, तब कितने लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई? हत्या की धमकियों और रिहर्सल पर अगर व्यवस्था चुप रहेगी तो हत्या को कैसे रोका जा सकता है? एक महिला का पुतला बना कर लोगों में खौफ पैदा करने के लिए बीच सड़क पर टाँग दिया जाता है, कहीं कोई हलचल नहीं होती। यही कारण है कि एक के बाद एक हत्याएँ होती हैं और हत्यारों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता।

जले पर नमक छिड़कते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज टिप्पणी करते हैं कि नूपुर शर्मा के कारण पूरे देश में आग लगी हुई है और उन्हें राहत देने से इनकार कर देते हैं। सोचिए, इससे उन आतंकियों का मनोबल कितना बढ़ा होगा। न्यायपालिका ने कभी मोहम्मद जुबैर से पूछा कि उसने एडिटेड वीडियो क्यों शेयर किया? भारत के आंतरिक मामले में बाह्य हस्तक्षेप की माँग क्यों की? तस्लीम रहमानी ने क्या बोला था, ये क्यों छिपाया? नूपुर शर्मा ने जो कहा था, वो सच में किताब में लिखा है या नहीं?

‘डिजिटल जिहादी’ ने इसका फैक्ट-चेक करने की जहमत नहीं उठाई, क्योंकि ये उनके एजेंडे में था ही नहीं। लेकिन, न्यायपालिका कहाँ थी? नूपुर शर्मा को डाँटने-फटकारने वाली ये न्यायपालिका आज तक कैमरे के सामने हत्या करने वालों को सज़ा नहीं दे पाई, तो भविष्य में भला इनसे हम क्या उम्मीद रखें। मोहम्मद जुबैर द्वारा क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया जाना, जम्मू के मस्जिद में नारा लगना और नूपुर शर्मा का पुतला टाँगा जाना – ये हत्याएँ तो तभी हो गई थीं क्योंकि ऐसा करने वालों को व्यवस्था की सुषुप्तावस्था पर पूरा यकीन था।

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अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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