कर्नाटक में कोप्पल तालुका के मेटागल (Metagal) गांव में रहने वाले एक परिवार के 6 सदस्य शनिवार सुबह मृत पाए गए। इसके पीछे अंदेशा ये लगाया जा रहा है कि परिवार के सदस्यों ने कि शुक्रवार देर रात ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली थी। खेती से जुड़े कर्ज़ को इस आत्महत्या की वजह बताया जा रहा है।
शुरूआती पूछताछ के मुताबिक, मृतकों की पहचान किसान शेखरैय्या, जयम्मा, परम्मा, बसम्मा, गौरम्मा और सावित्री के रूप में हुई है।
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, शेखरैय्या ने बैंकों और निजी ऋणदाताओं से 6 लाख रुपये का ऋण लिया था। पड़ोसियों ने कहा कि परिवार शुक्रवार की रात हमेशा की तरह सोने चले गए, लेकिन शनिवार को देर सुबह तक नहीं उठे।
घटना का पता शनिवार सुबह तब चला जब भयभीत स्थानीय ग्रामीणों ने घर के दरवाज़े खोले। संयोग से, कृषि मंत्री एन.एच. शिवशंकर रेड्डी शनिवार को अपने किसी निजी काम से कोप्पल में ही मौजूद थे।
कृषि मंत्री, डिप्टी कमिश्नर पी.सुनील कुमार और पुलिस अधीक्षक रेणुका सुकुमार ने गाँव का दौरा किया। आत्महत्या संबंधी यह मामला वहाँ स्थित कोप्पल ग्रामीण पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया है। जानकारी के मुताबिक मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए ज़िला स्तर के अस्पताल में लाया गया है।
एसपी ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से आत्महत्या के कारण और तरीक़े के बारे में अधिक जानकारी मिल सकती है। वहीं डीसी ने बताया कि मृतकों के अंतिम संस्कार करने का निर्णय मृतक शेखरैय्या के भाइयों के साथ परामर्श के बाद ही लिया जाएगा।
किसानों द्वारा आत्ममहत्या किये जाने की ये ख़बर कोई नई नहीं है, लेकिन सवाल ये उठता है कि आख़िर कॉन्ग्रेस द्वारा किये जाने वाले उन वायदों का क्या जिसका दंभ हमेशा से ही कॉन्ग्रेस पार्टी भरती आई है। कॉन्ग्रेस ने अपने चुनावी दौर में इस कर्ज़ माफ़ी के वाक्य को चुनाव के दौरान जमकर भुनाया था नतीजतन राजस्थान और मध्यप्रदेश की सत्ता कॉन्ग्रेस के हाथों आई।
इन परिस्थितियों में क्या ये मान लिया जाए कि सत्ता की बागडोर हाथ में आते ही पार्टी ने अपना रंग बदल लिया है या फिर अपनी धुर विरोधी पार्टी बीजेपी को बेवजह बदनाम करने से ही फ़ुर्सत नहीं मिल पा रही है।
किसानों की दशा तो राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी वही है जो अन्य कॉन्ग्रेस-शासित राज्यों में है। ऐसे में, कर्नाटक के कोप्पल में किसान परिवार की यह आत्महत्या कॉन्ग्रेस को ना सिर्फ़ कटघरे में ला खड़ा करती है बल्कि कॉन्ग्रेस की कार्यशैली पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है, जो हक़ीकत से परे है।
हाल ही में, यह बताया गया कि कर्नाटक राज्य सरकार ने स्वयं स्वीकार किया था कि 44,000 करोड़ रुपये की कर्ज़ माफ़ी ने राज्य में केवल 800 किसानों की मदद की थी। उन्होंने पुष्टि की थी कि तथाकथित कर्ज़ माफी से केवल कुछ ही किसानों को लाभ हुआ था।