प्रशांत भूषण ने पिछले 11 सालों में कई बार सुप्रीम कोर्ट के जजों को भ्रष्टाचारी कहा, उन्हें केस से हटने को कहा, यहाँ तक कहा कि उन्हें जनहित याचिका समझना नहीं आता।
'हिन्दुओं से आजादी' भी इसी एक शब्द में समेट दी गई है, जो बार-बार, रूप बदल कर हमारे कानों तक पहुँचती है। साथ ही, 'केरल माँगे आजादी' जैसे संदर्भ भी इसी शब्द में सिमटे हुए हैं।
अब्दुल आग लगाएगा, फिर ह्यूमन चेन बनाएगा, फिर फोटो भी खिंचवाएगा, फिर अच्छा अब्दुल कहलाएगा! पर अब्दुल भाई ये तो बोलो, अपने दिल के राज तो खोलो, मंदिर को बचा रहे थे किस से? जलाने वाले थे किस मजहब के!
शाह फैसल के राजनीति में आने पर खास मजहब वालों ने बढ़-चढ़कर दान दिया और समर्थन दिया था और अब जब उनके वापस से प्रशासनिक सेवा में जुड़ने की खबर आ रही है, तो वो लोग इसे कौम के साथ गद्दारी बता रहे हैं।