क्या लद्दाख के बौद्ध लोगों का डर नाजायज है कि जब कश्मीरी आतंकी वहाँ लहसुन-ए-हिन्द चिल्लाकर नारा-ए-अदरक लगाते आएँगे तो उन्हें वहाँ से भाग कर कहीं और नहीं जाना पड़ेगा?
हर परंपरा में उच्च स्थान बाँधने वाले को दिया जाता है कि उसका दिया गया सूत्र (धागा) बँधवाने वाले की रक्षा करेगा क्योंकि इसमें उसने अपनी अराधना, आत्मीयता, स्नेह आदि की शक्ति संचित कर दी है। फिर यहाँ स्त्री हीन कैसे है ये समझ से परे है।
पाकिस्तान की समस्या यह है कि उसका दम्भ भी भीख पर टिका हुआ है और अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों ने उसके कटोरे में सिक्के डालने से मना कर दिया है। अब पाकिस्तान उस कटोरे को बेच कर नान और टिमाटर का जुगाड़ कर सकता है, लेकिन भारत से युद्ध की सोचने पर भी, उसकी हालत यह होगी कि वहाँ की जनता भारत के बमों से नहीं, भूख से मर जाएगी।
इनकी मूर्खता आप देखिए कि खुद खाने के लाले पड़े हैं और चाहते हैं कि कश्मीर ले कर उन्हें भी अपने जैसा बना देंगे। यही तो खिलाफत है कि खलीफा के शासन में सारे लोग सिर्फ इसलिए खुश रहें कि अब तो हम इस्लामी खिलाफत में हैं और शरिया कानून है यहाँ। वो रुक कर ये तक नहीं सोचते कि ऐसे शासन में उनका जीवन स्तर क्या होगा?
अनुभवी आदमी शब्दों को अपने हिसाब से लिख सकता है कि वो एक स्तर पर श्रद्धांजलि लगे, एक स्तर पर राजनैतिक समझ की परिचायक, और गहरे जाने पर वैयक्तिक घृणा से सना हुआ दस्तावेज। रवीश अनुभवी हैं, इसमें दोराय नहीं।
JNU में तो दो बार से सारे वामपंथियों के नितम्ब चिपक कर एक होने के बाद ही चुनाव जीते जा रहे हैं, इस साल कितने चिपकेंगे ये देखने की बात है। घर में कॉफी पीने वाला लेनिनवंशी पब्लिक में लाल चाय पीने लगता है और छत पर मार्लबोरो फूँकता माओनंदन कॉलेज के स्टाफ क्लब में बीड़ी पीता दिखता है।
किताबें तो मैंने भी बहुत पढ़ी हैं, और पेज नंबर मुझे भी याद हैं, लेकिन मैं अभी तक इतना धूर्त नहीं बन पाया कि उस ज्ञान का इस्तेमाल अपनी फर्जी विचारधारा और मालिकों के प्रोपेगेंडा की रोटी सेंकने में कर सकूँ। वो तरीके रवीश को ही मुबारक हों।
सौ करोड़ की आबादी, NDA के 45% वोट शेयर में आखिर किसके वोटर कार्ड हैं? फिर सवाल कौन पूछेगा इन हुक्मरानों से? आलम यह है कि तीन चौथाई बहुमत वाले योगी जी के राज्य में, हिन्दुओं को अपने घरों पर लिखना पड़ रहा है कि यह मकान बिकाऊ है!