Tuesday, November 26, 2024
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अजीत भारती

पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

कठुआ और अलीगढ़ का अंतर हमारे कथित लिबरल बिना बोले बताते हैं, इन्हें छोड़िए मत

इनकी बिलों में हाथ डालना पड़े तो बेशक डालिए, ये चिंचियाते रहें, इन्हें पूँछ पकड़ कर बाहर निकालिए और इनसे पूछिए कि वो जो ट्वीट तुमने लिखा है कि हमें इसका राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए, वो तुम्हारे उसी बाप ने लिख कर दिया है जिसके नाम के कारण तुम हीरो और हीरोईन बने फिरते हो, या किसी पेड़ के नीचे नया ज्ञान प्राप्त हुआ है।

प्रिय होम मिनिस्टर, आतंकियों की लाशें परिवार को सौंप कर उन्हें हीरो बनाना कब बंद होगा?

इस दूसरे कार्यकाल में इन आतंकियों को हीरो बनाने से रोकना एक प्राथमिकता होनी चाहिए। जिसने निर्दोषों को क़त्ल के लिए बंदूक उठा ली, वो मानव नहीं है। जो मानव नहीं है, उसके न तो अधिकार हैं, न परिवार।

हिन्दी भाषा का बवाल और पत्रकारिता का वह दौर जब कुछ भी छप रहा है, कोई भी लिख रहा है

तर्क हों तो आप लेख की शुरुआत विदेशी लेखक का नाम लेकर करें या फिर 'लगा दिही न चोलिया के हूक राजा जी' से, मुद्दे पर फ़र्क़ नहीं पड़ता। कुतर्क हों तो आप अपने पोजिशन का इस्तेमाल दंगे करवाने के लिए भी कर सकते हैं, कुछ लोग वही चाह रहे हैं।

रोजगार पर ज्ञान देने वाले ज्ञानी समुदाय के नाम

अगर आप रोजगार के तमाम आँकड़ों को न मान कर ‘मैं जब मुखर्जीनगर पहुँचा तो वहाँ सारे युवा बेरोज़गार थे’ वाला लॉजिक लेकर चलिएगा तो मैं कहूँगा कि ‘मैं जब सायबर हब पहुँचा तो वहाँ सारे लोग लाखों की सैलरी पाने वाले थे, भारत बदल गया है, बेरोज़गारी शून्य प्रतिशत है’।

स्वरा भास्कर का फ़र्ज़ी फेमिनिज़्म और आँकड़े: राहतें और भी हैं ऑर्गेज्म की राहत के सिवा

स्वरा भास्कर के लिए ऑर्गेज्म यानी संभोग के दौरान चरमसुख पाना लैंगिक समानता का मसला हो सकता है, उन तमाम औरतों को लिए नहीं जिनके लिए ज़िंदा रहना ही सबसे बड़ा संघर्ष है।

एक सौ सोलह ‘वायर’ के लेख… चुनावी रिपोर्टिंग में वायर का हर विश्लेषण गलत

यह महज़ संयोग है या फिर साज़िशन ऐसा किया गया? क्या 'द वायर' की पोलिटिकल रिपोर्टिंग वाक़ई बकवास और अनुभवहीन है, या जान-बूझ कर चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऐसे लेख लिखे गए?

लिबरल गिरोह, जले पर स्नेहलेप लगाओ, मोदी के भाषण पर पूर्वग्रहों का ज़हर मत डालो

उसी भविष्य में मत जाओ जहाँ तुमने 2014 की मई में कहा था कि अब तो सड़कों पर हिन्दू नंगी तलवारें लिए दौड़ेंगे, अल्पसंख्यकों को तो काट दिया जाएगा, गली-गली में दंगे होंगे, मस्जिदों का तोड़ दिया जाएगा, उनकी बस्तियों पर बम गिराए जाएँगे… और वैसा कुछ भी नहीं हुआ

गुजरात के 20 बच्चों की हत्या हुई है, ज़िम्मेदारी भाजपा सरकार की है, एलियन्स की नहीं

क्या सही में ज़िम्मेदार सरकारी अफ़सरों पर इन बच्चों की हत्या का मुकदमा चलेगा? क्या विभाग के मंत्री पर ग़ैर-इरादतन हत्या का केस चलेगा? या फिर सिस्टम के सबसे निचले कर्मचारी को महीने भर के लिए निलंबित कर पल्ला झाड़ लिया जाएगा?