Monday, November 25, 2024
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अजीत भारती

पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

आखिर कॉन्ग्रेस पार्टी ने स्वयं ही राजीव गांधी को ‘नीच डकैत’ क्यों कहा?

एक पिता के तौर पर तो बच्चों को हमेशा परिवार के साथ खड़े रहना चाहिए, लेकिन वो पिता प्रधानमंत्री भी था, और दुर्भाग्य से चोर और हत्यारा भी। देश उनके पिता से बड़ा है और अगर ये दोनों देशभक्त हैं तो राहुल या प्रियंका को मोदी की बात सुन कर चुपचाप रोने के बाद, आँसू के घूँट पीकर, रैली में किसी और विषय पर भाषण देते रहना चाहिए था।

बिहार की बच्चियों का कोई माय-बाप नहीं: बलात्कार से हत्या तक सिर्फ़ एक चुप्पी है

हमारे आँगनों से हमारी बहनें, बेटियाँ अचानक से गायब हो जाती हैं। जब कोई ख़बर आती है कि कहीं बिना शिनाख़्त की कुछ बच्चियों की हड्डियाँ पोटली में मिली हैं, तो दिल बैठ जाता है। वो मेरी बहन हो सकती थी, वो किसी की बेटी रही होगी।

जावेद भाई, उस ‘आवरण’ का इस्तेमाल बम फोड़ने के लिए भी होता है… 11 से 4 ज़्यादा मुल्कों ने बैन किया है

बुर्क़े के भीतर आप बम बाँधे हो सकते हैं, RDX या IED बैग में लेकर घूम रहे हों, विस्फोटकों को एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे हों, लेकिन आप पर संदेह नहीं किया जा सकता। बुर्क़े के भीतर कुछ भी हो सकता है लेकिन आपको यही मानना होगा कि भीतर एक मजहबी महिला है जिसे उसका मज़हब इसी तरीके से उनके कल्चर को ढोने के लिए निर्देश देता है।

रवीश कुमार इतना ज्ञान क्यों बाँच रहे हैं? एंकर तो आप भी बना दिए गए हैं, मैनेज तो आप भी हो रहे हैं

शब्दों का इस्तेमाल गलत कार्य के लिए मत कीजिए। किसी दिन उँगली जवाब दे देगी और गला सूख जाएगा। कई बार ऐसा होता है कि ज्ञान का इस्तेमाल गलत कार्य के लिए हो तो वह ज्ञान गायब हो जाता है।

‘द वायर’ के हिसाब से भारतीय हिन्दू ही आतंकी हैं जिन्होंने समुदाय विशेष पर हिंसा की है! हाउ क्यूट!

मतलब, संकट मोचन मंदिर से लेकर लोकतंत्र के मंदिर संसद तक हमले में मरने वाले अधिकतर लोग हिन्दू ही होते हैं (क्योंकि जनसंख्या ज्यादा है और टार्गेट पर भी वही होते हैं) और मारने वाले हर बार कट्टरपंथी होते हैं, फिर भी असली हिंसा तो गौरक्षकों द्वारा गौतस्करों को सरेराह पीट देना है।

मोदी के ग्रेजुएशन की डिग्री बनाम राहुल का बर्थ सर्टिफ़िकेट: सबूत नहीं माँगोगे शोना बाबू?

ऐसे आदमी के शर्ट में एक छेद हो, तो उँगली डाल कर पूरा फाड़ कर देख ही लेना चाहिए कि भाई तुम्हारे 2009, 2014 और 2019 के चुनावी हलफ़नामे में इतने बदलाव क्यों हैं? आखिर बैकऑप्स नामक कम्पनी का डायरेक्टर प्रियंका को चुनावों के तुरंत पहले क्यों बना दिया गया था?

आदिवासी प्रेमी राहुल गाँधी, 1966 में मिज़ोरम पर बम किसने बरसाए थे याद है?

राहुल गाँधी व्यक्तित्व नहीं, एक मानसिक अवस्था है। कभी-कभी व्यक्ति व्यक्तिवाचक संज्ञा से ऊपर उठ कर जातिवाचक संज्ञा हो जाता है, और उनमें से राहुल गाँधी जैसे महज़ चंद लोग ऐसे होते हैं जो व्यक्ति होते हुए भी विशेषण बन जाते हैं।

लिंगलहरी कन्हैया कुमार के गुंडे चुनावी गाड़ियों में डंडे-ईंट-पत्थर लेकर क्यों चलते हैं?

हिंसा और सेक्स तो कामरेडों का प्रमुख हथियार है, यूनिवर्सिटी में तो जबरदस्ती करते ही हैं, बाद में, विद्यार्थी से नक्सली बनने तक, जंगलों में 'नारी देह कम्यून की प्रॉपर्टी है' के नाम पर महिला काडरों को आईसिस की तर्ज़ पर सेक्स स्लेव बना कर रखते हैं।