Sunday, November 24, 2024
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अजीत भारती

पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

प्रिय सुप्रीम कोर्ट, हिन्दुओं को निशाना बनाने के लिए इतना समय कहाँ से लाते हो?

भावनाएँ आहत होना हमारा राष्ट्रीय उद्योग बन चुका है, और सुप्रीम कोर्ट का हर भावना को बचाने के लिए समय निकाल कर दही हाँडी की ऊँचाई से लेकर जलीकट्टू के सांड की सींग और होली के पानी तक के प्रयास का आम जनता जबरदस्ती सम्मान करती रही है।

ऑल्ट न्यूज़ वाला प्रतीक सिन्हा: दोमुँहापन, नंगई और बेहूदगी का पर्याय

वैसे प्रतीक सिन्हा के कुकर्मों की शृंखला से यह संभावना तो लगती नहीं कि इसमें सुधार की गुंजाइश है, फिर भी उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।

येचुरी का लेनिन प्रेम: माओवंशियों पर तर्क़ के हमले होते हैं तो वो ‘महान विचारों’ की पनाह लेता है

आपकी बेटी नक्सलियों के साथ जंगलों में एरिया कमांडर के सेक्स की भूख नहीं मिटा रही। आपका बेटा सीआरपीएफ़ के लिए माइन्स नहीं बिछा रहा। आप बुद्धिजीवी बनते हैं और मौन वैचारिक सहमति देते हैं क्योंकि प्यादों की लाइन ही राजा को बचाने के लिए पंक्तिबद्ध होती है।

इम्तियाज़ और अब्दुल ने कॉन्स्टेबल प्रकाश को पिकअप ट्रक चढ़ाकर मार दिया, कहीं ख़बर पढ़ी?

अब आप इसी हत्या की कहानी के नाम बदल दीजिए, प्रकाश को ट्रक पर बिठा दीजिए, फ़ैयाज़ और क़ुरैशी को पुलिस बना दीजिए। तब ये घटना, भले ही इसमें घृणा का एंगल न हो, साम्प्रदायिक हो जाएगी।

रोज़गार कहाँ हैं? सिर्फ़ ऑटो और प्रोफ़ेशनल सेक्टर ने दी 1.8 करोड़ नौकरियाँ

सिर्फ दो सेक्टर ने इतने लोगों को नौकरियाँ दी हैं, जबकि मुद्रा लोन, इन्फ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर से लाखों लोगों को काम देने की बात या स्वरोज़गार करते लोगों की संख्या आदि का कोई आधिकारिक या सरकारी आँकड़ा न होने के कारण ये कहना आसान हो जाता है कि ये ग्रोथ 'जॉबलेस' या रोज़गारहीन है।

मैं तो बस एक झूठ लेकर चला था, ‘वायर’ जुड़ते गए, और ‘कारवाँ’ बनता गया…

कारवाँ एक ऐसा मैगजीन है जिसके बारे में आप तभी सुनते हैं जब रवीश कुमार फ़ेसबुक पर लेख लिखकर जताते हैं कि उस शाम के प्राइम टाइम में क्या कवर किया जाएगा।

नक़ाबपोश एक्सपर्ट के समर्थकों, तुम्हारे कपड़ों का ही नक़ाब उसने पहना है!

आख़िर सवाल यह है कि क्यों करा ली जाए जाँच? क्या लगातार हो रहे चुनावों में अलग-अलग पार्टियों की जीत इस सवाल का स्वतः जवाब नहीं दे देती?

‘द वायर’, NDTV किंकर्तव्यविमूढ़ हैं मोदी राज में, महँगाई बढ़े तब संकट, घटे तब संकट!

महँगाई घटने की ख़बर सकारात्मक है। लेकिन कुछ मीडिया पंडित (या मौलवी, जैसी आपकी श्रद्धा) इसे अब किसानों पर संकट के तौर पर देख रहे हैं।