भावनाएँ आहत होना हमारा राष्ट्रीय उद्योग बन चुका है, और सुप्रीम कोर्ट का हर भावना को बचाने के लिए समय निकाल कर दही हाँडी की ऊँचाई से लेकर जलीकट्टू के सांड की सींग और होली के पानी तक के प्रयास का आम जनता जबरदस्ती सम्मान करती रही है।
आपकी बेटी नक्सलियों के साथ जंगलों में एरिया कमांडर के सेक्स की भूख नहीं मिटा रही। आपका बेटा सीआरपीएफ़ के लिए माइन्स नहीं बिछा रहा। आप बुद्धिजीवी बनते हैं और मौन वैचारिक सहमति देते हैं क्योंकि प्यादों की लाइन ही राजा को बचाने के लिए पंक्तिबद्ध होती है।
अब आप इसी हत्या की कहानी के नाम बदल दीजिए, प्रकाश को ट्रक पर बिठा दीजिए, फ़ैयाज़ और क़ुरैशी को पुलिस बना दीजिए। तब ये घटना, भले ही इसमें घृणा का एंगल न हो, साम्प्रदायिक हो जाएगी।
सिर्फ दो सेक्टर ने इतने लोगों को नौकरियाँ दी हैं, जबकि मुद्रा लोन, इन्फ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर से लाखों लोगों को काम देने की बात या स्वरोज़गार करते लोगों की संख्या आदि का कोई आधिकारिक या सरकारी आँकड़ा न होने के कारण ये कहना आसान हो जाता है कि ये ग्रोथ 'जॉबलेस' या रोज़गारहीन है।