Tuesday, November 19, 2024
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‘किसी भी अवैध निर्माण’ को ध्वस्त किया जाना चाहिए: योगी सरकार ने अतिक्रमणकारियों को भेजी गई नोटिस को कोर्ट में सही ठहराया, बहराइच हिंसा में थे शामिल

उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में हलफनामा देकर अतिक्रमणकारियों को दी गई नोटिस को उचित ठहराया और कहा कि ‘किसी भी ‘अवैध’ निर्माण को ध्वस्त किया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने बहराइच हिंसा में 23 लोग को नोटिस जारी किया है। ये लोग 13 अक्टूबर की बहराइच में शामिल थे। अधिकारियों ने पाया कि ये लोग कुंडासर-महसी-नानपारा के किलोमीटर 38 पर अतिक्रमण किया है।

हलफनामे में कहा गया है कि कुंडासर-महसी-नानपारा एक बड़ी जिला सड़क (MDR) है। अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई इलाके के लोगों और परिवहन के लिए मेजर डिस्ट्रिक्ट रोड का उपयोग करने वाले लोगों के हित में है। सरकार ने कहा कि अतिक्रमणकारियों ने भवनों/मकानों का निर्माण उत्तर प्रदेश सड़क किनारे भूमि नियंत्रण नियम 1964 के नियम 7 का उल्लंघन करके किया गया है।

सरकार की ओर से यह हलफनामा देवी पाटन (गोंडा) लोक निर्माण विभाग (PWD) के मुख्य अभियंता अवधेश शर्मा चौरसिया ने 25 अक्टूबर को दायर किया। PWD की नोटिस में कहा गया है कि ये निर्माण अवैध हैं, क्योंकि इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क के केंद्रीय बिंदु से 60 फीट के भीतर बनाया गया है, जो कि स्वीकार्य नहीं है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश सड़क किनारे भूमि नियंत्रण नियम 1964 के नियम 7 में कहा गया है कि भवन निर्माण लाइनों के भीतर भवनों का निर्माण नहीं किया जाएगा। यह नियम किसी भी प्रमुख जिला सड़क (एमडीआर) की केंद्र रेखा से 60 फीट, खुले एवं कृषि क्षेत्रों के लिए 60 फीट और शहरी एवं औद्योगिक क्षेत्रों के लिए 45 फीट निश्चित की गई है।

हलफनामे में आगे कहा गया है कि जिस सड़क के किनारे ‘अतिक्रमणकारियों’ द्वारा अवैध निर्माण किए गए हैं, उसे शुरू में अन्य जिला मार्ग (ODR) के रूप में अधिसूचित किया गया था। जून 2021 में इसे उत्तर प्रदेश सड़क किनारे भूमि नियंत्रण अधिनियम 1945 की धारा 3 के तहत प्रमुख जिला मार्ग (एमडीआर) के रूप में वर्गीकृत किया गया।

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि कुंडासर-महसी-नानपारा मार्ग के किलोमीटर 38 के आसपास का क्षेत्र दुर्घटना संभावित क्षेत्र बन गया है, क्योंकि यहाँ चल रहे निर्माण ने पहले से सीधी सड़क को तीव्र मोड़ में बदल दिया है। सरकार ने कहा कि प्रमुख जिला सड़क (एमडीआर) के केंद्र से निर्धारित दूरी के भीतर किया गया कोई भी निर्माण अवैध है और उसे ध्वस्त किया जाना चाहिए।

सरकार ने बताया कि इस सड़क पर अतिक्रमित क्षेत्रों का निरीक्षण एवं सीमांकन करने के लिए 14 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। निरीक्षण के दौरान समिति ने पाया कि किलोमीटर 38 के पास निर्माण के कारण सड़क ‘S’ वक्र बन गया है। इससे दृश्यता कम हो गई है और वहाँ लगातार दुर्घटनाएँ हो रही हैं। निरीक्षण रिपोर्ट में ऐसी 24 इमारतों की पहचान की गई है।

इन लोगों ने अधिसूचित क्षेत्र में निर्माण के लिए PWD से कोई अनुमति नहीं ली थी। हलफनामे में अधिकारी का एक पत्र भी शामिल है, जिसमें कहा गया है कि किलोमीटर 38 पर भवन के निर्माण के लिए जिला मजिस्ट्रेट बहराइच के कार्यालय से कोई अनुमति जारी नहीं की गई थी। इसके बाद निरीक्षण रिपोर्ट में सूचीबद्ध 23 व्यक्तियों को नोटिस जारी किए गए।

इस नोटिस एवं ध्वस्तीकरण अभियान के खिलाफ ‘एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अताउरहमान मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने राज्य सरकार से हलफनामा दायर कर संबंधित सड़क पर निर्माण के लिए स्वीकृत मानचित्रों की संख्या निर्दिष्ट करने को कहा था।

दशहरा के दिन माता दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के दौरान रामगोपाल मिश्रा की हत्या के अगले दिन यूपी के PWD विभाग ने इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अब्दुल हमीद सहित अन्य आरोपितों को नोटिस जारी किया था। अब्दुल हमीद महरागंज के महसी का रहने वाला है। इन लोगों ने सड़क के किनारे अवैध रूप से अतिक्रमण कर रखा है।

मुँह पर कपड़ा बाँधकर तड़पाया, फिर जंगल में कर दी हत्या: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में आतंकी हमला, गाँव रक्षा समिति के 2 सदस्यों के शव मिले

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में आतंकी हमले की घटना सामने आई है। हमले में दो होमगार्ड्स (ग्राम रक्षा समूह के होमागार्ड्स) की हत्या कर दी गई। मृतकों की पहचान नजीर अहमद और कुलदीप कुमार के रूप में हुई है। वह ओहली कुंतवाड़ा गाँव के निवासी थे।

आतंकियों ने इस घटना को तब अंजाम दिया जब दोनों लोग शाम के समय में मवेशी चराने के लिए जंगल गए थे। इसी दौरान आतंकवादियों ने उन्हें अगवा किया और बाद में उन्हें तड़पाकर उनकी हत्या कर दी।

बताया जा रहा है कि आतंकवादियों ने नजीर और कुलदीप का अपहरण करने के बाद पहले उनका मुँह बंद करके उन्हें यातनाएँ दीं, फिर उन्हें मारा। अभी तक सामने आई जानकारी के अनुसार इस घटना की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद संगठन की एक शाखा, कश्मीर टाइगर्स ने ली है। संगठन ने एक पत्र जारी करते हुए कहा कि ये हत्याएँ इस्लाम और कश्मीर की आजादी के नाम पर की गई हैं।

नजीर और कुलदीप की लाश मिलने के बाद, सुरक्षा बलों ने इलाके में व्यापक तलाशी अभियान शुरू किया है। पुलिस और सेना ने मिलकर संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया है। वहीं जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और JKNC अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने इस बर्बरता की निंदा की है। सोशल मीडिया पर भी स्थानीय नेता इस घटना को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं।

बता दें कि पिछले एक महीने से आतंकी लगातार स्थानीय लोगों में डर बसाने के लिए ऐसे हमलों को अंजाम दे रहे हैं। 9 अक्तूबर को अनंतनाग में आतंकियों ने एक भारतीय सेना के जवान का अपहरण करके उनकी हत्या की थी। उस समय भी जवान को जंगल के इलाके में ले जाकर माना गया था

रवीश जी मुरझा नहीं गया है मिडिल क्लास, पर आपका जो सूजा है उसका दर्द खूब पहचानता है मिडिल क्लास: अब आपके कूथने से हिंदुओं को नहीं पड़ता फर्क

यूट्यूब पत्रकार रवीश कुमार का एक नया प्रोपगेंडा वीडियो सामने आया है। इस बार उन्होंने अपने वीडियो में भर-भरकर मिडल क्लास ‘हिंदुओं’ को गाली दी है। उन्होंने देश में हो रही अवैध घुसपैठ से लेकर चोरी होते टैक्स और बाजार में कम होती खरीदारी सबके लिए मिडल क्लास ‘हिंदुओं’ को कोसा है और नफरत से सनी इस पूरी वीडियो को टाइटल दिया है- ‘मुरझा गया है मिडिल क्लास।’

रवीश का कहना है कि मिडिकल क्लास का हिंदू अब आकांक्षी और महत्वकांक्षी नहीं रहा बल्कि अब वो सांप्रदायिक हो गया है। उसकी जेब में कुछ है नहीं और दिमाग में जहर भर गया है। रवीश के मुताबिक देश के मिडिल क्लास के हिंदुओं की भाषा एकदम कबाड़ है और वो सिर्फ इस बात से खुश हो जाता है कि मुस्लिमों के घरों को बुलडोजर गिरा रहा है।

‘हिंदू’ शब्द से रवीश को कितनी घृणा है इसे रवीश की वीडियो में हर मिनट में महसूस किया जा सकता है, लेकिन इस घृणा के पीछे का कारण क्या है ये लोग पिछले कई सालों से महसूस कर रहे हैं।

दरअसल, रवीश की खुंदस वामपंथी हिंदुओं से नहीं है रवीश की खुंदस उन हिंदुओं से है जो भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करते हैं और उन्हें वोट देकर पिछले 11 साल से सत्ता उन्हें सौंपी हुई हैं। रवीश को परेशानी इस बात से है कि आखिर हिंदू अपने आपको हिंदू कैसे समझने लगा?

उनके हिसाब से तो हिंदू के ऊपर देश के सेकुलरिज्म को ढोने का सारा दारोमदार था…तो फिर वो क्यों तिलक लगाकर, भगवा ओढ़कर अपने धर्म को बचाने की बात कर रहा है? या 2047 तक देश को इस्लामी मुल्क बनाने वाले मंसूबों के बारे में जान रहा है।

रवीश चाहते हैं कि मिडिल क्लास ‘हिंदू’ ऐसी किसी जॉब में हो जहाँ इतना सेकुलर माहौल हो कि अगर कोई उसके भगवान को, उसके मंदिर को, उसके धर्म को गाली दे तो भी उसके पास इतना समय न हो कि वो अपनी पहचान के लिए आवाज उठा सके।

अजीब बात है कि रवीश की यह चिंता अब जाकर जगी है जब उन्हें लगता है कि हिंदू कुछ ज्यादा हिंदू बनने लगे हैं। काश, उनका सेकुलरिज्म उस समय भी उन्हें जग पाता जब समय-समय पर इस्लामी भीड़ ने सड़कों पर उतरकर दंगे किए, मस्जिदों से पत्थरबाजी की और अपने इलाकों में हिंदुओं से निकालने का काम किया।

उन्होंने तब एक भी बार ये नहीं कहा कि इस देश के मुस्लिम को थोड़ा कम मुस्लिम बनना चाहिए और देश का नागरिक ज्यादा बनना चाहिए या उन्हें भी कानून का सम्मान करना चाहिए या फिर देश में संविधान के हिसाब से चलना चाहिए…।

रवीश कुमार की यह सारी नफरत और सारा ज्ञान सिर्फ हिंदुओं से है। उन्होंने मिडिल क्लास के नाम पर उस तबके को निशाना बनाया है जो पिछले कुछ समय से धार्मिक पहचान की बात करने लगे हैं। वो समझने लगे हैं कि उन्हें किस कदर सेकुलरिज्म की पट्टी पहनाकर धर्म का पालन करने से दूर रखा गया। कभी तिलक लगाने, कभी शिखा रखने पर उनका मखौल उड़ाया गया और पूजा-पाठ करने पर उसे पिछड़ा बताया जाता रहा…।

आज हिंदू अगर अपनी सांस्कृति पहचान पर गौरवान्वित होता है और उसका प्रचार करता है तो समस्या होना तो जाहिर है।

रवीश वीडियो में एक हिंदू आईएएस ग्रुप की चर्चा करते हैं और बताते हैं कि पिता को लगता होगा कि बेटा नाम करेगा और बेटा हिंदू आईएएस बन रहा है। रवीश को ऐसे उदाहरण देते हुए साथ में समझा भी देना चाहिए कि उन्हें समस्या हिंदू के आईएएस बनने से है या फिर आईएएस बनने के बाद भी कोई हिंदू छवि को स्वीकारे रखने से है।

रवीश का राजनैतिक झुकाव किस तरफ है इसे भी वीडियो में इस्तेमाल की गई क्लिपों से समझा जा सकता है। देश में पड़े नकारात्मक प्रभावों को समझाने के लिए रवीश ‘मोदी सरकार’ के बयानों का इस्तेमाल करते हैं और मोदी सरकार को घेरने के लिए तथ्यों पर बात करने की जगह कॉन्ग्रेस नेता ‘पवन खेड़ा’ की क्लिप डालते हैं।

रवीश कहते हैं कि मिडल क्लास के दिमाग में कबाड़ भाषा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डाली है। इस दौरान उदाहरण वो पीएम के उस रोटी, बेटी और माटी वाले बयान का देते हैं तो उन्होंने झारखंड में प्रचार के दौरान दिया…। अब देखने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर गलत बोला क्या?

उन्होंने उन स्थानीय मुद्दों को उठाया जिससे झारखंड प्रभावित है। वहाँ हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर तो अदालत तक चिंता जाहिर कर चुके हैं। फिर पीएम ने ‘माटी’ का मुद्दा उठाकर क्या गलत किया। क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर बोलना अभद्र भाषा का इस्तेमला कहलाएगा।

इसी तरह झारखंड से आए दिन लव जिहाद की घटनाएँ सामने आती हैं। किसी मामले में लड़कियों को मार दिया जाता है तो किसी में घर में सोते समय उसे जला दिया जाता है। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री इन विषयों पर खुलकर स्थानीय लोगों से बात कर रहे हैं तो समस्या क्या है।

अपने आपको सबसे निष्पक्ष पत्रकार मानने वाले रवीश जी आगे मिडल क्लास की खराब होती अर्थव्यवस्था पर चिंता जाहिर करते हैं। वो ऑनलाइन शॉपिंग जैसी चीजों को नकारते हुए कहते हैं देश में दीवाली बीत गई लेकिन बाजा में भीड़ नहीं दिखी और क्या-क्या सामान कितना-कितना बिका इसकी जानकारी नहीं आई। मतलब साफ है कि मिडिल क्लास आर्थिक रूप से बेहाल है…।

रवीश जी का कहना है कि या तो मिडिल क्लास के जीवन में क्या चल रहा है, कैसे चल रहा है, उसने क्या खरीददारी की है इस सबका ब्यौरा वो अखबार में दे वरना वो यही मानेंगे किं हिंदुओं की हालत खराब है।

कुल मिलाकर रवीश की वीडियो देख साफ पता चलता है कि उनकी समस्या केवल ‘मिडल क्लास हिंदुओं’ से है। कारण- ‘अमीर’ होते हिंदुओं का उदाहरण देकर वो अपना प्रोपगेंडा चला नहीं पाएँगे और गरीब क्लास का अगर जिक्र करेंगे तो उन्हें उन योजना, परियोजनाओं के बारे में भी बताना पड़ेगा जो मोदी सरकार ने उनके लिए लाई है। दोनों काम रवीश से नहीं हो सकते…।

यही वजह है कि अपने टारगेट पर रवीश कुमार ने मिडल क्लास हिंदुओं को लिया और उन्हें ऐसे पेश किया जैसे घर में होने वाली सीलन, बाथरूम की लीकेज, किचन के सिंक में फँसे खाने, पड़ोसियों के घर हुई कलह, भाई-बहन में हुए संपत्ति के झगड़े सबके लिए सिर्फ मिडल क्लास हिंदू जिम्मेदार है और बेचारे वो लोग हैं जो हिंदुस्तान में अपने मजहब को इस कदर फैलाना चाहते हैं कि हिंदुओं की संख्या साफ हो जाए।

रवीश की थ्योरी से चलें तो देश तब तक खतरे में है जब तक हिंदू खुद को हिंदू कहता रहेगा और सेकुलर तब होगा जब मुस्लिम खुलकर हिंदुओं को ‘काफिर’ कह पाएँगे।

रवीश कुमार की पूरी वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

अब ‘डिग्री’ वाले मौलवी नहीं होंगे पैदा, पर बच्चों को आधुनिक शिक्षा से दूर रखना कितना जायज: क्या मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करेगी योगी सरकार?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 नवंबर 2024) को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इस कानून के तहत मदरसा बोर्ड की स्थापना और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा मदरसों के प्रशासन का प्रावधान किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा इस कानून को निरस्त करने के लिए फैसले को भी पलट दिया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में सुनवाई की। इसके साथ ही इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें संविधान के मूल ढाँचे के एक पहलू ‘धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों’ का उल्लंघन करने के लिए अधिनियम को निरस्त कर दिया गया था।

कोर्ट ने कहा कि संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन या विधायी क्षमता के आधार पर किसी कानून को निरस्त किया जा सकता है, लेकिन मूल ढाँचे के उल्लंघन के लिए नहीं। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह मान कर गलती की है कि मूल ढाँचे के उल्लंघन के लिए कानून को निरस्त किया जाना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि इस अधिनियम का मूल उद्देश्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना है। कोर्ट ने कहा, “अधिनियम की विधायी योजना मदरसों की शिक्षा का मानकीकृत करना है। मदरसा अधिनियम मदरसों के दैनिक कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करता है। यह राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है, जो छात्रों को उत्तीर्ण होने और एक सभ्य जीवन जीने के लिए सुनिश्चित करता है।”

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा अधिनियम के उन प्रावधानों को खारिज कर दिया, जो मदरसा बोर्ड को ‘कामिल’ (स्नातक पाठ्यक्रम) और ‘फाजिल’ (स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम) जैसे उच्च शिक्षा के लिए निर्देश और पाठ्य पुस्तकें निर्धारित करने का अधिकार देता है। न्यायालय ने कहा कि इससे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम (यूजीसी अधिनियम) का उल्लंघन होगा।

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च शिक्षा से संबंधित फाजिल और कामिल पर मदरसा अधिनियम के प्रावधान असंवैधानिक हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21A (निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम को इस तरह से पढ़ा जाना चाहिए कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान शिक्षा प्रदान कर सकें।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 22 मार्च 2024 को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को धर्मनिरपेक्षता विरोधी और असंवैधानिक बताते हुए उसे निरस्त कर दिया था। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मदरसों में मजहबी शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों को औपचारिक शिक्षा से जोड़ने के लिए भी निर्देश दिया था। इस पर जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने सुनवाई की थी।

अंशुमान सिंह राठौड़ नाम के एक व्यक्ति ने मदरसा बोर्ड के खिलाफ याचिका दायर करके इस एक्ट की कानूनी वैधता को चुनौती दी थी। इसके साथ-साथ उन्होंने निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार संशोधन अधिनियम 2012 के कुछ प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई थी। याचिका में पूछा गया था कि क्या मदरसों का उद्देश्य शिक्षा देना है या फिर मजहबी शिक्षा देना है?

याचिका में सवाल ये भी पूछा गया था कि जब संविधान सेक्युलर है तो फिर सिर्फ एक खास मजहब के व्यक्ति को शिक्षा बोर्ड में क्यों नियुक्त जाता है? इसमें सुझाव दिया गया था कि बोर्ड में विद्वान लोगों की नियुक्ति अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी दक्षता को देखते हुए बिना मजहब देखे की जानी चाहिए। इससे शिक्षा नीतियों के लाभ से मदरसे के छात्र वंचित रह जाते हैं।

याचिका में ध्यान दिलाया गया था कि जैन, सिख ईसाई इत्यादि मजहबों से संबंधित सभी शैक्षिक संस्थानों को शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संचालित किया जाता है, जबकि मदरसों को अल्पसंख्यक विभाग के तहत। इस पर हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा था कि मदरसा बोर्ड को शिक्षा विभाग की जगह अल्पसंख्यक विभाग द्वारा क्यों संचालित किया जा रहा है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय का उत्तर प्रदेश सरकार ने विरोध नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि वह हाई कोर्ट का निर्णय मानेगी। केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने भी इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया। राज्य सरकार ने कोर्ट को यह भी आश्वासन दिया था कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी स्कूलों में लिया जाएगा।

इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ मैनेजर्स असोसिएशन मदारिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी। मदारिस ने कहा था कि हाई कोर्ट के निर्णय से राज्य के 17 लाख मदरसा छात्र प्रभावित होंगे। उसने यह भी कहा कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को इकट्ठे राज्य सरकार के ढाँचे में नहीं घुसाया जा सकता है।

क्या कहता है कि यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम

मदरसा ऐसे संस्थानों को कहा जाता है, जहाँ मुस्लिम समुदाय के लोग मुस्लिमों को कुरान-हदीस के अलावा इस्लामी किताबों का अध्ययन करते हैं। आमतौर पर यह शिक्षा हिंदू, उर्दू और अरबी में होती है। इसमें आधुनिक शिक्षा की जगह मजहबी शिक्षा पर जोर होता है। इन पर मस्जिद के इमामों एवं मौलाना का अधिकतर प्रभाव रहता है। इसका विनियमन करने के लिए साल 2004 में एक कानून बना था।

इस कानून को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 कहा जाता है। इस कानून में मदरसा शिक्षा को अरबी, फारसी, उर्दू, इस्लामी अध्ययन, दर्शन और उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट अन्य शाखाओं में शिक्षा के रूप में परिभाषित किया गया था। इस कानून का घोषित उद्देश्य मदरसा के कामकाज की देखरेख करके मदरसा शिक्षा बोर्ड को सशक्त बनाना था।

मदरसा एक्ट की धारा 9 कहती है कि मदरसा बोर्ड का काम मदरसों का पाठ्यक्रम तैयार करना और मौलवी से लेकर फाजिल तक की परीक्षा का आयोजन करना है। इस ऐक्ट के तहत ही मदरसा शिक्षा बोर्ड का गठन हुआ था। इस बोर्ड में मुस्लिम ही शामिल होते हैं। अन्य वर्ग के लोगों को इसमें शायद ही शामिल किया जाता है।

क्या होती है कामिल-फाजिल की डिग्री

मदरसा शिक्षा में ‘कामिल’ को स्नातक यानी बैचलर डिग्री के बराबर रखा गया है। वहीं, ‘फाजिल’ को स्नातकोत्तर यानी PG या मास्टर डिग्री के बराबर रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड कामिल-फाजिल की पढ़ाई कराने वाले मदरसों को मान्यता नहीं दे सकता। मदरसों में अब सिर्फ बारहवीं कक्षा तक ही पढ़ाई हो सकती है।

मदरसा बोर्ड से मदरसों को तहतानिया, फौकानिया, आलिया स्तर की मान्यता दी जाती है। इनमें तहतानिया की प्राथमिक, फौकानिया का माध्यमिक और आलिया जूनियर हाई स्कूल की पढ़ाई मानी जाती है। 10वीं के समकक्ष मुंशी/मौलवी और 12वीं के समकक्ष आलिम की डिग्री दी जाती है। आलिया स्तर के मदरसों में ही कामिल और फाजिल की डिग्री दी जाती रही है।

योगी आदित्यनाथ सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्यों करना चाहिए अपील

इस कानून के खिलाफ राज्य सरकार कोर्ट में नहीं गई थी, बल्कि इसके खिलाफ सबसे पहले मुस्लिम ही खड़े हुए थे। साल 2012 में दारुल उलूम वासिया मदरसा के प्रबंधक सिराजुल हक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। साल 2014 में लखनऊ के माइनॉरिटी वेलफेयर डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज याचिका डाली।

मामला यही खत्म नहीं हुआ। आधुनिक शिक्षा के महत्व को समझते हुए साल 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद साल 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएँ लगाईं। सबसे अंत में साल 2023 में अंशुमान सिंह राठौड़ ने मदरसा शिक्षा को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर और दानिश आजाद अंसारी ने स्वागत किया। राजभर ने कहा कि देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का वे सम्मान करते हैं। वहीं, दानिश अंसारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का सरकार पालन करेगी। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार ने मदरसा शिक्षा की बेहतरी के लिए के लिए काम किया है।

योगी सरकार के मंत्रियों ने भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन कानूनी पक्ष को छोड़ दें तो व्यवहारिक पक्ष में इसके कई नुकसान हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार मदरसों के प्रबंधन में दखल नहीं दे सकती, लेकिन मदरसों में क्या पढ़ाया जाए, शिक्षा का स्तर बेहतर कैसे हो, मदरसों में बच्चों को अच्छी सुविधाएँ कैसे मिलें, इन विषयों पर नियम बना सकती है।

किसी भी संस्थान की गुणवत्ता एवं उत्कृष्टता में प्रबंधन का बड़ा हाथ होता है। IIT, IIM जैसे संस्थान इसके उदाहरण हैं। अब अक्सर मदरसों का प्रबंधन अगर एक ही समुदाय के व्यक्तियों के पास रहता है, जो आधुनिक शिक्षा के बजाय दीनी शिक्षा पर ज्यादा फोकस करते हैं तो इसका सीधा प्रभाव संस्थान द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे शिक्षा पर पड़ेगा। आज जहाँ भी मदरसे दिख रहे हैं, उनमें अधिकांश में इस्लामी शिक्षा को तरजीह दी जाती है।

अगर राज्य सरकार इन मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए पाठ्यक्रम तय कर भी दे तो प्रबंधन उसे अच्छे से लागू नहीं करे तो उसका लाभ क्या बच्चों को मिल पाएगा? शायद नहीं है। इस तरह बच्चों की आधुनिक शिक्षा की बुनियाद ही कमजोर हो जाएगी। वे आगे जाकर आधुनिक शिक्षा को ग्रहण करना भी चाहें तो उनके सामने तमाम तरह की परेशानियाँ खड़ी होंगी।

सबसे महत्वपूर्ण है धर्मनिरपेक्षता की बात है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मदरसा बोर्ड धर्मनिरपेक्षता विरोधी बताया था। भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों सहित सबको अपनी धार्मिक शिक्षा लेने-देने एवं उसके लिए स्कूल-कॉलेज खोलने का अधिकार है, लेकिन मदरसा बोर्ड द्वारा राज्य बोर्ड के बराबर दर्जा एक समानांतर व्यवस्था की तरह है। आखिर एक संस्थान, जो सिर्फ अपने मजहब के लोगों को अपने मजहब से संबंधित शिक्षा देता है, उसे राज्य सरकार द्वारा अनुदान क्यों देना चाहिए, ये एक महत्वपूर्ण सवाल है।

मदरसों की हर कक्षा में इस्लाम की पढ़ाई करना जरूरी है। आधुनिक विषय या तो नहीं के बराबर पढ़ाए जाते हैं या फिर वे वैकल्पिक होतेे हैं। मदरसे में शिक्षा पाने वाले बच्चे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के तहत डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसी शिक्षा हासिल करने में पिछड़ जाते हैं। सरकार की मदद के बावजूद वे आगे चलकर अपना एवं अपने परिवार का जीवन बेहतर बनाने में पिछड़ जाते हैं।

मुस्लिमों की मदरसों की तरह ही अगर हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, लिंगायत आदि भी अपने-अपने धर्मशास्त्रों के अनुसार अपने समाज के बच्चों को शिक्षा देने लगे तो भारत में आधुनिक शिक्षा ह्रास सा हो जाएगा और अंततोगत्वा इसका सीधा असर देश पर पड़ेगा। इसलिए जहाँ पढ़ाई का मामला है वहाँ सभी वर्ग के लोगों को समान शिक्षा दी जानी चाहिए। धार्मिक शिक्षा परिवार का आंतरिक विषय होना चाहिए कि वो कैसे अपने बच्चों को पढ़ाए या सिखाए।

अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब एक दशक पहले तक मुस्लिमों में पिछड़ापन और अशिक्षा की बात करके मुस्लिम समाज के लोग सच्चर कमिटी रिपोर्ट को लागू करने की माँग करते थे। दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश रहे राजिंदर सच्चर की 2005 में गठित कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में मुस्लिम क्षेत्रों में सरकारी स्कूल खोलने और रोजगार में उनकी साझेदारी बढ़ाने की सिफारिश की थी।

मदरसों में बच्चों को बढ़ती संख्या के पीछे गरीबी और शैक्षणिक पिछड़ना है। जिन मुस्लिम परिवारों के लोग आगे बढ़ गए हैं, वे अपने बच्चों की शिक्षा मदरसों में नहीं दिलाते। वे आधुनिक शिक्षा के महत्व को बखूबी समझते हैं। पीएम मोदी और सीएम योगी ने इसके लिए कई उपाय भी किए, लेकिन दीनी शिक्षा के बल पर रोजगार पाना और सरकारी स्कूलों के बजाय मदरसों में मुस्लिम बच्चों की उपस्थिति ने इस पर पानी-सा फेर दिया है।

उत्तर प्रदेश में लगभग 16.5 हजार मदरसों में 17 लाख बच्चे पढ़ते हैं। उनके भविष्य का ख्याल रखना सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर अपील करती है तो यह मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए एक बड़ा कदम होगा। इससे मुस्लिम समाज में उच्च शिक्षा में बढ़ोतरी के साथ-साथ उनके परिवार में समृद्धि भी आएगी।

हिंदू राष्ट्र पर बात ‘विभाजनकारी’, लव जिहाद पर बात ‘विद्वेष’: क्या है ये NBDSA जिसने बाबा बागेश्वर का वीडियो हटाने को कहा, क्यों इसे हर उस बात से होती है दिक्कत जिससे चिढ़ता है इस्लामी-वामी गैंग

पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ‘बाबा बागेश्वर’ के साथ न्यूज18 के एक इंटरव्यू को द न्यूज ब्रॉडकॉस्टिंग कास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBDSA) ने हाल ही में यूट्यूब समेत बाकी प्लेटफॉर्म से हटाने का आदेश दिया है। NBDSA ने यह एक्शन एक शिकायत के बाद लिया है। यह शिकायत पुणे के एक व्यक्ति ने की थी। NBDSA ने कहा है कि कायर्क्रम से धार्मिक तनाव पैदा होता है।

कौन सा इंटरव्यू हटाने का आदेश, इसमें ऐसा क्या?

NBDSA ने यह आदेश 9 जुलाई, 2023 को न्यूज18 इंडिया पर प्रसारित एक इंटरव्यू को लेकर दिया है। यह इंटरव्यू एंकर किशोर अजवाणी ने बाबा बागेश्वर के साथ किया था। इंटरव्यू को न्यूज18 इंडिया के स्टूडियो के अंदर ही शूट किया गया था और इसका लाइव प्रसारण हुआ था।

इस इंटरव्यू के दौरान एंकर किशोर अजवाणी ने बाबा बागेश्वर से उनके जीवन और धार्मिक जीवन को लेकर प्रश्न पूछे थे। अजवाणी ने इस दौरान बाबा बागेश्वर के बचपन को लेकर भी सवाल पूछे थे। बाबा बागेश्वर ने बताया था कि बचपने में उनके दादा जी और गुरु के पास लोग समस्या लेकर आते थे। बाबा बागेश्वर ने बताया था कि उनके परिवार पर हनुमान जी की की विशेष कृपा है।

बाबा बागेश्वर ने बताया था कि उनके दादाजी लोगों को बता देते थे कि आखिर किसी का जानवर अगर खो गया है तो किस दिशा में मिलेगा। उन्होंने इस दौरान ओडिशा का भी एक ऐसा ही उदाहरण दिया था जहाँ लोगों की समस्या का हल ताम्रपत्र पर उभरने की बात उन्होंने कही थी।

इसी इंटरव्यू के दौरान बाबा बागेश्वर ने कहा कि उन्होंने छोटे पर मध्य प्रदेश के पन्ना में हीरे मिलने को लेकर भी कुछ लोगों को जानकारी दी थी लेकिन बाद में मना किए जाने पर उन्होंने ऐसा करना छोड़ दिया था। उन्होंने बताया था कि वह खुद कुछ हीरे लेकर आए थे जो कि ₹42000 के बिके थे।

बाबा बागेश्वर ने इस दौरान परिवार और बाक़ी जीवन के बारे में भी बात की। बाबा बागेश्वर ने इस इंटरव्यू में कहा था कि वह देश को हिन्दू राष्ट्र देखना चाहते हैं लेकिन केवल कागजों पर ऐसा राष्ट्र हो, उनकी यह इच्छा नहीं है। बाबा बागेश्वर ने बताया था कि वह अपनी कथाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से इस संबंध में प्रयास कर रहे हैं।

उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह किसी धर्म के विरुद्ध नहीं हैं। उन्होंने हिन्दू राष्ट्र का मतलब भी समझाया था। वीडियो के दौरान उन्होंने लव जिहाद जैसे सामाजिक मुद्दों पर भी बात की थी। इसी वीडियो को लेकर NBDSA के पास बाद में शिकायत दर्ज करवाई गई थी।

किसने की शिकायत, क्या थे आरोप?

बाबा बागेश्वर के इस इंटरव्यू को लेकर इंदरजीत घोरपड़े नाम के एक शख्स ने शिकायत दर्ज करवाई थी। यह शिकायत 11 जुलाई, 2023 को दर्ज करवाई गई थी। शिकायत में इंदरजीत ने कहा था कि किया था कि इस इंटरव्यू में धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने अलौकिक शक्ति का उपयोग करके लापता जानवरों को ढूंढ सकने और लोगों को ठीक करने सबंधी दावे किए थे।

इंदरजीत ने अपनी शिकायत में कहा था कि बाबा बागेश्वर ने इस इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने अपनी अलौकिक शक्तियों का उपयोग करके पन्ना में हीरे ढूंढे हैं और उनके पास चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करने की शक्ति है। इंदरजीत का कहना था कि NBDSA की उस गाइडलाइन के खिलाफ थे जिसके अंतर्गत न्यूज चैनल अंधविश्वास का महिमामंडन नहीं कर सकते।

इंदरजीत ने आपनी शिकायत में कहा था कि लाइव प्रसारण के दौरान बाबा बागेश्वर को टोका नहीं गया और उनके दावों को ठीक वैसे ही प्रसारित कर दिया गया, साथ ही में स्क्रीन पर कोई भी चेतावनी नहीं लगाई गई। इंदरजीत ने शिकायत में यह भी कहा था कि बाबा बागेश्वर के हिन्दू राष्ट्र वाला कथन समाज में धार्मिक तौर पर दरार पैदा करता हैं।

अपनी शिकायत में इंदरजीत ने आरोप लगाया था कि इस दौरान बाबा बागेश्वर ने लव जिहाद को लेकर भी बात की और घृणा को बढ़ावा दिया। इंदरजीत ने कहा था कि लव जिहाद के मामले को बताते हुए ‘निष्पक्षता’ नहीं बरती गई। इंदरजीत ने इस मामले में चैनल पर कार्रवाई की माँग की थी।

शिकायतकर्ता इंदरजीत घोरपड़े इससे पहले भी न्यूज18 इंडिया के अन्य कई प्रोग्राम को लेकर शिकायत कर चुका है जिनमें लव जिहाद और ऐसे ही मामलों पर बात हुई हो। इंदरजीत घोरपड़े खुद को सामजिक कार्यकर्ता बताता है और पुणे का रहने वाला है। उसकी ट्विटर टाइम लाइन से पता चलता है कि वह दिल्ली दंगों में शामिल रहे उमर खालिद की रिहाई चाहता है।

इंदरजीत घोरपड़े कनाडा में अत्याचार के विरुद्ध प्रदर्शन करने वाले हिन्दुओं को भक्त बताता है। इंदरजीत ने न्यूजलांड्री को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि वह यस वी एक्सिस्ट नाम की एक संस्था चलाता है और कानून की समझ बढ़ाते हैं।

NBDSA ने क्या कहा, किस बात पर आपत्ति?

इंदरजीत घोरपड़े की शिकायत पर NBDSA ने न्यूज18 से पहले जवाब माँगा था। हालाँकि, जवाब से घोरपड़े और NBDSA संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने दोबारा शिकायत कर दी। इसके बाद मामले में NBDSA ने खुद इस मामले की जाँच चालू की।

NBDSA ने अपने 4 नवम्बर, 2024 को दिए गए फैसले में लिखा है कि उसने शिकायत और न्यूज चैनल के जवाब को देखा है और अपना फैसला इसके बाद दिया है। NBDSA ने कहा कि न्यूज चैनल किसी भी व्यक्ति को अपने कार्यक्रम में बुला सकते हैं, उन्हें इस बात की स्वतंत्रता है लेकिन इसके लिए गाइडलाइन का पालन होना चाहिए।

बाबा बागेश्वर की टिप्पणियों के बारे में NBDSA ने कहा, “न्यूज चैनल द्वारा आमंत्रित संत ने प्रसारण के दौरान कई ऐसे दावे किए, जो अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा, प्रसारण के दौरान संत ने हिंदू राष्ट्र और धर्म के बारे में कई ऐसे बयान दिए, जो लोगों को बाँटने वाले थे।”

NBDSA ने कहा कि चैनल ने ऐसे में अंधविश्वास से संबंधित रिपोर्टिंग को कवर करने के लिए दिए गए गाइडलाइन का उल्लंघन किया है। NBDSA ने यह भी कहा कि इस कार्य्रकम में समाज को बाँटने की बात की गई थी, ऐसे में इस कार्यक्रम का प्रसारण नहीं होना चाहिए था।

NBDSA ने कहा है कि उसने चैनल को ऐसे कार्यक्रम के संबंध में चेतावनी भेजी है और साथ ही उसे सलाह दी है बाबा बागेश्वर जैसे लोगों को चैनल पर जगह ना दें। NBDSA ने इसी के साथ आदेश दिया है कि न्यूज18 बाबा बागेश्वर के 9 जुलाई, 2023 के इंटरव्यू को अपने यूट्यूब चैनल, वेबसाइट और साथ ही बाकी सभी जगहों से 7 दिनों के भीतर हटा ले।

NBDSA है क्या?

NBDSA एक ऐसी संस्था है जो न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) द्वारा बनाई गई है। NBDA में 26 प्रसारक शामिल हैं और यह 119 न्यूज चैनल या फिर ऐसी ही संस्थाएँ चलते हैं। NBDA इन्हीं द्वारा बनाई गई एक संस्था है जो मीडिया के मानक तय करने को लेकर काम करती है। यह समूह न्यूज चैनल के हितों को लेकर काम करता है।

इसी की बनाई NBDSA न्यूज चैनल पर प्रसारित खबरों और अन्य प्रोग्राम को लेकर दिशानिर्देश देती है और साथ ही इनका उल्लंघन होने पर कार्रवाई भी कर सकती है। NBDSA का मुखिया न्यायपालिका से जुड़े किसी विख्यात व्यक्ति को बनाया जाता है। इसके अलावा इसमें बड़े पत्रकार और इस फील्ड से जुड़े लोग भी शामिल होते हैं।

NBDSA कोई सरकारी संस्था नहीं है लेकिन यह शिकायतों पर कार्रवाई करती है। यह किसी भी न्यूज चैनल पर दिखाए गए समाचार को लेकर शिकायत लेने और उसके बाद उस पर कार्रवाई तय करने का अधिकार रखती है। NBDSA में कोई भी व्यक्ति अपनी शिकायत लेकर जा सकता है। यह इस शिकायत को लेकर न्यूज चैनल से जवाब माँगती है।

यदि जवाब संतोषजनक नहीं होता तो यह कार्रवाई के आदेश भी देती है। इसने बाबा बागेश्वर वाला वीडियो हटाने के के आदेश से पहले यह संस्था एक बार और इसी चैनल पर ₹50,000 का फाइन लगा चुकी है। संस्था इसके अलावा टाइम्स नाउ नवभारत, आज तक और इंडिया टुडे समेत तमाम चैनल पर भी प्रोग्राम हटाने या जुर्माने की कार्रवाई कर चुकी है।

NBDSA की स्थापना करने वाली संस्था NBDA विवादों में भी घिरी रह चुकी है। 2018 में NBDA के पास रिपब्लिक टीवी की एक रिपोर्टर शिवानी गुप्ता ने JNU में अपने साथ हुए उत्पीड़न और खींचातानी की घटना की शिकायत कि थी। इस दौरान शिवानी गुप्ता के साथ छेड़छाड़ भी हुई थी।

NBDA ने इस मामले में कार्रवाई करने के बजाय उलटे रिपब्लिक को कठघरे में खड़ा कर दिया था और साथ ही माफ़ी तक माँगने को कहा था। शिवानी ने कहा था कि जिसने उनको परेशां किया, उसी व्यक्ति को NBDA ने सुनवाई में उनके साथ बिठा दिया।

आखिर लव जिहाद और हिन्दू राष्ट्र पर खबर से दिक्कत क्या?

NBDSA ने जो आदेश दिया है, उसमें उसने कहा है कि उसे अन्धविश्वास बढ़ाने वाली खबरों से दिक्कत है। गौरतलब है कि कुछ सालों पहले तक कॉन्ग्रेस के एक बड़े नेता से जुड़ा हुआ एक चैनल दिन के कुछ घंटे निर्मल बाबा का एक प्रोग्राम दिखाता था। इस प्रोग्राम में निर्मल बाबा किसी को हरी चटनी तो किसी को लाल धागा लेने के उपाय बताते थे।

तब इस चैनल के खिलाफ NBDSA ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। भले ही यह विज्ञापन की शक्ल में रहा हो, लेकिन इसको लेकर जवाबदेही तो बनती ही है। रही बची बात लव जिहाद जैसे मुद्दों की, तो इस पर तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कानून तक बन चुके हैं। लिबरल गैंग कितना भी अस्वीकार करे कि लव जिहाद नहीं होता लेकिन सच्चाई यह है कि आप रोज ऐसी घटनाएँ सुनते हैं।

यदि कोई हिन्दू संत ऐसी घटनाओं के बारे में बोलता है तो यह घृणा बढ़ाना कैसे हो गया। आखिर सामाजिक मुद्दों पर भी अगर हिन्दू संत नहीं बोलेंगे तो आखिर कौन बोलेगा। रही बची बात हिन्दू राष्ट्र की तो बाबा बागेश्वर ने खुद कहा कि वह कागजों पर नहीं बल्कि लोगों के हृदय में इसे चाहते हैं। उन्होंने इसका मतलब भी समझाया।

NBSDA को समझना होगा कि वह इस तरह किसी भी शिकायत पर हिन्दू संतों का मुंह नहीं बंद करवा देगी। यदि वह चैनलों से बंद करवाएगी तो संत और बाक़ी लोग दूसरा रास्ता खोज लेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप को बनाया सबका ‘किंग’, राम मंदिर के लिए उठाई आवाज: मिलिए भारतवंशी काश पटेल से, बन सकते हैं अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के चीफ

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद एक कश्यप पटेल उर्फ काश पटेल नाम की चर्चा बहुत तेज है। कहा जा रहा है कि अमेरिका में ट्रंप के इस कार्यकाल में खुफिया एजेंसी सीआईए का चीफ काश पटेल को बनाया जाए या फिर ट्रंप की कैबिनेट में उन्हें कोई अन्य ऊँचा पद मिलेगा। रिपोर्ट्स बताती हैं कि ट्रंप ने उन्हें इस पद पर नियुक्त करने का विचार पहले ही बना लिया था चर्चाएँ बस उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद शुरू हुई है।

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप के करीबी के तौर पर पहचाने जाने वाले काश पटेल भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक हैं, जिनका जन्म 1980 में न्यूयॉर्क में हुआ, लेकिन उनकी जड़े गुजरात के वडोदरा से हैं। उन्होंने अमेरिका में कानून की पढ़ाई की है और विभिन्न सरकारी पदों पर काम किया है और बाद में उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन में कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं।

उन्होंने ट्रंप के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में आतंकवाद विरोधी सलाहकार के रूप में कार्य किया और कार्यवाहक रक्षा सचिव के चीफ ऑफ स्टाफ का पद भी संभाला। इसके अलावा उन्होंने कई महत्वपूर्ण अभियानों का नेतृत्व किया जैसे ISIS और अलकायदा आदि।

बताया जाता है कि 2016 में ट्रंप की सत्ता आने के बाद रूसी हस्तक्षेप को लेकर बनी एक समिति में शामिल किया गया। इस पर काम करने के दौरान ट्रंप का उनपर विश्वास बढ़ा और वो सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए। अमेरिका के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए काश ने कभी अपने धर्म का मखौल नहीं बनाया। उन्होंने समय-समय पर हिंदुओं के लिए आवाज उठाई।

इसके अलावा जब राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तब भी वह खुलकर राम मंदिर के समर्थन में आए थे। उन्होंने विदेशी मीडिया को लताड़ लगाते हुए कहा था कि मीडिया ने अयोध्या के 50 सालों की बात की जबकि हिंदू मंदिर का इतिहास 5000 साल पुराना है और मीडिया वो बताने से बची ताकि भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार किया जा सके।

काश पटेल, ट्रंप के प्रति निष्ठा कई बार जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने ट्रम्प को बच्चों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए एक किताब द प्लॉट अगेंस्ट द किंग लिखी है। इसके अलावा उन्होंने “गवर्नमेंट गैंगस्टर्स: द डीप स्टेट, द ट्रुथ, एंड द बैटल फॉर अवर डेमोक्रेसी” नाम की एक किताब लिखी है। इसमें उन्होंने बताया है कि सरकार में किस कदर भ्रष्टाचार फैला हुआ है।

जिस हिंदू महिला को गुलामुद्दीन ने बीवी संग मिल काटकर गाड़ दिया, 8 दिन बाद भी उसके शव का न तो पोस्टमार्टम-न अंतिम संस्कार: जानिए अनीता जाट हत्याकांड की हर एक डिटेल

राजस्थान के जोधपुर में ब्यूटीशियन अनीता चौधरी उर्फ अनीता जाट की हत्या के 8 दिन बाद भी परिवार एक करोड़ रुपए मुआवजा, सरकारी नौकरी और सीबीआई जाँच की माँग को लेकर धरने पर बैठे हैं। शव का अभी तक ना ही पोस्टमार्टम हो पाया है और ना ही अंतिम संस्कार। प्रशासन ने इसके लिए परिवार को नोटिस भी दिया था। हालाँकि, परिवार के नहीं मानने पर अब उन पर कार्रवाई हो सकती है।

भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, मृतक अनीता चौधरी के शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए पुलिस ने दो दिन पहले परिवार को नोटिस दिया था। इसके बाद बुधवार (6 नवंबर 2024) को प्रशासन और अनीता के परिजनों के बीच बातचीत भी हुई, उनकी माँगों को लेकर कोई सहमति नहीं बनी। अब प्रशासन ‘राजस्थान मृतक शरीर सम्मान विधेयक-2023’ के तहत परिवार पर कार्रवाई की तैयारी कर रहा है।

शव का पोस्टमार्टम नहीं हुआ, मृतक के परिवार पर हो सकती है कार्रवाई

इस कानून को मृतक के शरीर की गरिमा बनाए रखने और विरोध-प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए लाया गया था। इस कानून के तहत शव के साथ विरोध-प्रदर्शन करने पर 6 महीने से 5 साल तक जेल या जुर्माने का प्रावधान है। साथ ही प्रशासन शव को अपने कब्जे में ले सकता है। इस कानून के अगर कोई परिजन मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं करता तो उसे एक साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है।

वहीं, बुधवार को सर्व समाज ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर अपनी माँगें रखीं। उसमें माँगें नहीं मानने पर जोधपुर बंद की चेतावनी दी गई है। वहीं, बुधवार की रात को पुलिस ने शांतिभंग की धारा में मृतक अनीता के पति और अनीता की सहेली सुमन उर्फ सुनीता को गिरफ्तार कर लिया है। कुछ दिन पहले दोनों के बीच बातचीत का ऑडियो वायरल हुआ था। ऑडियो वायरल करने के लिए गिरफ्तार किया गया है।

हत्याकांड में कई गिरफ्तार

इस मामले में सरदारपुरा पुलिस ने कृष्णलीला नगर निवासी सुमन उर्फ सुनीता सेन, बागर चौक निवासी मोहम्मद यासीन अली, राबडिया निवासी जैफू खान, निवार घरों का मोहल्ला निवासी मोहम्मद शरीफ उर्फ मुन्ना, कलीमुद्दीन उर्फ कालिम, मोहम्मद हमीमुद्दीन, मकबुल अहमद, मोईनुददीन, मोहम्मद अज्जरम, युनुस को गिरफ्तारी किया है। इससे पहले मंगलवार को पुलिस ने 5 लोगों को गिरफ्तार किया था।

बता दें कि इस हत्याकांड का मुख्य आरोपित गुलामुद्दीन अब तक फरार है। उसे पुलिस खोज नहीं पाई है। हालाँकि, पुलिस ने वारदात की साथी उसकी बीवी आबिदा को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस ने इस मामले में 20 से अधिक लोगों से पूछताछ भी की है। पुलिस ने प्रॉपर्टी डीलर तैयब अंसारी के बंगले पर भी दो दिन छापेमारी की थी। हालाँकि, हत्या की वजह की तह तक अभी भी वह नहीं पहुँच पाई है।

30 साल पहले तक ऑटो चलाता था तैयब, अब बड़ा प्रॉपर्टी डीलर

अनीता के पति मनमोहन चौधरी और अनीता की ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली सुनीता उर्फ सुमन सेन के बीच बातचीत का एक ऑडियो कुछ दिन पहले वायरल हुआ था। इसमें सुनीता अंसारी का नाम ले रही थी। अंसारी को केस में नामजद तैयब अंसारी माना जा रहा है। इसमें सुनीता अपनी जान को खतरा बताती है और कई लोगों के नाम भी लेती है।

शव मिलने से पहले की इस बातचीत में सुनीता ने मनमोहन से कहा था कि तैयब अंसारी सुनीता चौधरी को मार सकता है। सुनीता ने मनमोहन से कहा था, “तैयब दीदी (अनीता) को निपटा दिया होगा। अब मैं अंसारी को फोन करूँगी तो चार दिन के अंदर वह मुझे भी मरवा देगा।” मृतक अनीता के पति ने ऑडियो की पुष्टि की है। अब इस मामले में कई मोड़ आ गए हैं।

अनीता के पति मनमोहन और उसकी सहेली सुनीता की कॉल रिकार्डिंग बाहर आने के बाद पुलिस की रडार पर कई लोग आ चुके हैं। इनमें लोगों में कई डॉक्टर, ब्यूटी पार्लर संचालक, पाली के प्रॉपर्टी डीलर, बदमाश एवं अपराधी, व्यवसायी, अधिकारी और नेता भी शामिल हैं। तैयब अंसारी के घर छापेमारी के दौरान पुलिस ने यहाँ से मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर सहित कई दस्तावेज बरामद किए हैं।

तैयब अंसारी 30 साल पहले तक पाली में ऑटो चलाता था। अब वह प्रॉपर्टी का कारोबार करता है। पाली में कुछ विवादित जमीनें भी ले रखी हैं। मारवाड़ के इलाकों में विवादित प्रॉपर्टी को लेकर तैयब अंसारी का नाम कई बार सामने आ चुका है। जोधपुर में सोजती गेट इलाके में एक होटल और जैसलमेर बाइपास पर उसका एक फार्म हाउस सह मैरिज गार्डन है। पाली और जोधपुर रोड पर भी एक फार्म हाउस है।

तैयब अंसारी से भी अनीता की थी बातचीत

पुलिस को मिली जानकारी के मुताबिक, 50 वर्षीय मृतक अनीता और 42 के मुख्य आरोपित गुलामुद्दीन फारूकी तथा 55 वर्षीय प्रॉपर्टी डीलर तैयब अंसारी के बीच बातचीत होती थी। फोन की सीडीआर से पुलिस के हाथ कई सुराग लगे हैं। आशंका कि अनीता की मौत के पीछे प्रॉपर्टी का विवाद भी हो सकता है। इसे सत्यापित करने के लिए पुलिस अनीता के नाम की प्रॉपर्टी की जानकारी जुटा रही है।

सूत्रों के अनुसार, अनीता औऱ तैयब अंसारी के बीच प्रॉपर्टी को लेकर रिश्ते थे। आशंका है कि अंसारी ने अनीता के नाम पर काफी प्रॉपर्टी खरीद रखी है। इसमें से कुछ प्रॉपर्टी तैयब अंसारी ने बेच दी। इसके बाद अनीता उससे नाराज थी। अनीता की हत्या से 15 दिन पहले से ही अंसारी और अनीता के बीच अनबन हुई थी। इसके बाद अनीता और अंसारी ने सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को ब्लॉक कर दिया था।

पुलिस ने गुलामुद्दीन के घर की गहन तलाशी ली थी, लेकिन वहाँ खून का एक भी धब्बा नहीं मिला। पुलिस को शक है कि अनीता की हत्या किसी दूसरे जगह पर की गई है। हत्या से पहले उसे प्रताड़ित भी किया होगा। अनीता के शव को 6 टुकड़ों में काटा गया था। ऐसे में हत्याकांड वाली जगह पर खून के धब्बे नहीं मिलना पुलिस को आशंका पैदा करता है। गुलामुद्दीन की गिरफ्तार बीवी आबिदा भी कह चुकी है कि हत्या करने में कई लोग शामिल हैं।

मंदिर पर हमले के बाद जस्टिन ट्रूडो की नई चिरकुटई: खालिस्तानियों से सुरक्षा का भरोसा नहीं दे रहा कनाडा, भारतीय दूतावास को रद्द करने पड़े कई कार्यक्रम

कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार खालिस्तानियों के पैरों में लोटते हुए और भी नीचता पर उतर आई है। कनाडा ने भारत के अस्थायी काउंसिलर कैम्प कार्यक्रमों को सुरक्षा देने से मना कर दिया है। यह जानकारी भारत के टोरंटो स्थित वाणिज्य दूतावास ने दी है। यह कैम्प कनाडा में रहने वाले भारतीयों को जीवन प्रमाण पत्र समेत बाकी सुविधाएँ देने के लिए लगाए जाते रहे हैं।

टोरंटो स्थित भारत के वाणिज्य दूतावास ने एक्स (पहले ट्विटर) पर जानकारी देते हुए लिखा, “सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कम्युनिटी कैम्प आयोजकों को थोड़ी भी सुरक्षा प्रदान करने में अपनी असमर्थता जताने के बाद वाणिज्य दूतावास ने पहले से निर्धारित वाणिज्य दूतावास कैम्प को रद्द करने का निर्णय लिया है।”

भारतीय दूतावासों के काम को इससे पहले भी रोका गया है। खालिस्तानी कट्टरपंथी लगातार ऐसे कैम्पों के बाहर हंगामा करते आए हैं और कनाडा की पुलिस उनको सुरक्षा देने के बजाय खालिस्तानियों को ही प्रश्रय दे रही है। इसी कारण से आगामी कार्यक्रम रोकने पड़े हैं।

इससे पहले कनाडा में स्थित भारतीय हाई कमीशन ने भी 3 नवम्बर, 2024 को उसके कामकाज में डाली गई बाधा के बारे बताया था। हाई कमीशन ने बताया था कि टोरंटो में हिन्दू सभा मंदिर में आयोजित किए गए एक ऐसे ही कैम्प में हिंसक खालिस्तानियों ने हंगामा किया और हमला किया।

भारतीय हाई कमीशन ने बताया था कि वह हर साला इस तरह के कैम्प आयोजित करता है और इस बार उसने ऐसी ही योजनाई थी। हाई कमीशन ने बताया कि इसके कनाडा की पुलिस से सुरक्षा भी माँग ली गई थी एल्किन फिर भी टोरंटो में यह हंगामा हुआ। हाई कमीशन ने बताया था कि इससे पहले 2-3 नवंबर को वैंकूवर और सरे में आयोजित कैम्प में भी हंगामा किया गया था।

हाई कमीशन ने बताया था कि वह इन कैम्प जीवन प्रमाण पत्र देता है और इससे हजारों लोग लाभान्वित होते हैं। हाई कमीशन ने बताया था कि उसने हंगामे के दिन भी 1000 अधिक जीवन प्रमाण पत्र जारी किए। उसने कहा है कि आगे वह सुरक्षा ना होने के चलते ऐसी सुविधाएँ नहीं दे पाएगा जिससे भारतीय और कनाडाई, दोनों ही जगह के नागरिकों को असुविधा होगी।

गौरतलब है हिन्दू सभा मंदिर के बाहर प्रदर्शन कर रहे खालिस्तानियों ने बाद में हिन्दुओं पर हमला भी कर दिया था। उन्होंने मंदिर में आए हुए श्रद्धालुओं पर लाठी डंडे से वार किया था। इस हमले के बाद पुलिस ने खालितानियों पर कार्रवाई करने के बजाय हिन्दुओं को ही मारना पीटना चालू कर दिया था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस हमले की निंदा की थी। कनाडा इससे पहले भी भारतीय राजनयिकों को लेकर लापरवाह रवैया अपनाता रहा है। आए दिन कनाडा में स्थित भारतीय हाई कमीशन और दूतावास के बाहर खालिस्तानी प्रदर्शन करते हैं और कई बार हिंसक भी हो जाते हैं, उनके खिलाफ भी कनाडाई प्रशासन कार्रवाई नहीं करता है।

कनाडा का यह रवैया प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की खीझ को दिखाते हैं। उनके द्वारा भारत पर लगाए निज्जर की हत्या समेत बाकी आरोप धराशायी हो चुके हैं और वह स्वयं कह चुके हैं कि उनके पास इस संबंध में कोई सबूत नहीं है। इसके बाद वह अब भारती राजनयिकों और दूतावासों को निशाना बना रहे हैं।

वक्फ ट्रिब्यूनल होने का मतलब कोर्ट की कोई औकात होना नहीं: केरल हाई कोर्ट ने कर दिया क्लियर, कहा- सिविल कोर्ट को आदेश लागू कराने का अधिकार; जानिए क्या है मामला

केरल हाई कोर्ट ने वक्फ को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा कि वक्फ न्यायाधिकरण होने के बावजूद सिविल कोर्ट को पुराने वक्फ विवादों से संबंधित अपने आदेशों को लागू करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि न्यायाधिकरण की स्थापना से पहले शुरू किए गए वक्फ विवादों से संबंधित आदेशों को निष्पादित करने के सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर रोक नहीं लगता है।

हाई कोर्ट ने कहा कि वक्फ अधिनियम में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि वक्फ न्यायाधिकरण वक्फ विवादों से संबंधित डिक्री को निष्पादित करने वाला एकमात्र मंच है। वक्फ अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के गठन के बाद भी सिविल कोर्ट के पास वक्फ न्यायाधिकरण द्वारा पारित डिक्री को निष्पादित करने का अधिकार क्षेत्र बना हुआ है।

न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने कहा, “मेरा मानना ​​है कि वक्फ न्यायाधिकरण के गठन के बाद भी सिविल न्यायालय द्वारा वक्फ विवाद से संबंधित पारित डिक्री को निष्पादित करने पर कोई रोक नहीं है।” इसमें प्रिवी काउंसिल द्वारा 1872 में की गई टिप्पणी का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया था, “भारत में एक वादी की मुश्किलें तब शुरू होती हैं, जब वह डिक्री प्राप्त कर लेता है।”

उच्च न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामला उस भावना का स्पष्ट उदाहरण है, क्योंकि इसमें डिक्री वर्ष 2000 में जारी की गई थी, जो 1996 में दायर एक मुकदमे में थी। यह डिक्री अभी भी निष्पादन की प्रतीक्षा कर रहा है। यहाँ तक कि इसके निष्पादन के लिए उचित मंच का प्रश्न भी अनसुलझा रह गया था। इस मामले में याचिकाकर्ता ने एक मस्जिद पर कानूनी मान्यता और नियंत्रण की माँग की थी।

याचिकाकर्ता ने बताया कि उसके पूर्वजों ने केरल राज्य वक्फ बोर्ड में पंजीकृत कुट्टिलांजी मुस्लिम मस्जिद बनवाई था। आरोप है कि प्रतिवादियों ने मस्जिद के प्रशासन के लिए गैर-कानूनी तरीके से एक समिति बनाई और मस्जिद पर नियंत्रण की कोशिश की। इस तरह, याचिकाकर्ताओं ने 1996 में मस्जिद की घोषणा, स्थायी निषेधाज्ञा और कब्जे की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया।

जब मुकदमा शुरू हुआ था, तब केरल में वक्फ ट्रिब्यूनल का गठन नहीं हुआ था। मुकदमा लंबित रहने के दौरान इसे स्थापित किया गया। ट्रिब्यूनल के गठन के बाद प्रतिवादियों ने वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 85 का हवाला देते हुए सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि उक्त प्रावधान न्यायाधिकरण के गठन के बाद सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को समाप्त कर देता है।

वक्फ अधिनियम की धारा 85 सिविल न्यायालयों, राजस्व न्यायालयों और अन्य अधिकारियों को वक्फ संपत्ति, विवादों, प्रश्नों और अन्य मुद्दों से संबंधित मामलों पर कानूनी कार्रवाई करने से रोकती है। उस अधिनियम में कहा गया है कि इन मुद्दों को वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए।

सिविल कोर्ट ने साल 2000 में याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें मस्जिद पर नियंत्रण दे दिया। साल 2016 में अपील अंतिम होने पर डिक्री को बरकरार रखा गया। जब याचिकाकर्ताओं ने सिविल कोर्ट (निष्पादन न्यायालय) में इस डिक्री को निष्पादित करने की माँग की तो अदालत ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 37(B) का हवाला दिया।

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को उचित अदालत के समक्ष निष्पादन याचिका दायर करने का आदेश दिया, जिसमें कहा गया कि केवल वक्फ न्यायाधिकरण ही डिक्री को निष्पादित कर सकता है। इस आदेश से दुखी होकर याचिकाकर्ताओं ने केरल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आखिरकार हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को बरकरार रखा।

हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि निष्पादन न्यायालय ने सीपीसी की धारा 37(बी) की गलत व्याख्या की है, क्योंकि उसने उसकी धारा 38 और आदेश XXI नियम 10 की अनदेखी की है। इसमें स्पष्ट रूप से किसी डिक्री को या तो उसे जारी करने वाली अदालत द्वारा या किसी भी अदालत द्वारा निष्पादित करने की अनुमति देता है, जिसे इसे निष्पादन के लिए स्थानांतरित किया गया है।

न्यायालय ने आगे कहा कि अधिनियम की धारा 7(5) यह सुनिश्चित करती है कि ट्रिब्यूनल के गठन से पहले सिविल अदालतों में शुरू किए गए पहले से मौजूद मामले वक्फ ट्रिब्यूनल के चालू होने के बाद भी सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में रहेंगे। अंत में न्यायालय ने निष्पादन न्यायालय को तीन महीने के भीतर डिक्री को लागू करने का निर्देश दिया।

अकबरुद्दीन ओवैसी ने फिर उगला ’15 मिनट’ वाला जहर, महाराष्ट्र की रैली में भीड़ बजाती रही ताली: समर्थन में जोर-शोर से नारेबाजी

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी की वीडियो फिर से विवादों में है। इसमें उन्होंने अपने 15 मिनट वाले विवादित बयान को दोहराया है और भीड़ उनका उत्साह बढ़ाती दिख रही है।

अकबरुद्दीन ओवैसी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान औरंगाबाद में अपना ’15 मिनट वाला’ विवादास्पद भाषण दिया। अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा, “अरे भाई 15 मिनट बाकी है, सब्र करिए, न वो मेरा पीछा छोड़ रही है न मैं उसका पीछा छोड़ रहा हूँ। चल रही है मगर क्या गूंज है।” इसके बाद भीड़ उनका भाषण सुन जोर-जोर से चिल्लाती, तालियाँ बजाती और 15 मिनट-15 मिनट के नारे लगाती दिखी जैसे उन्हें संदर्भ समझ आ गया हो।

इस वीडियो के वायरल होने के बाद एक बार फिर ओवैसी की कट्टरपंथी मानसिकता पर सवाल उठ गया है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर एमपी-एमएलए कोर्ट ने इसे क्यों बरी किया था। कहा जा रहा है कि अकबरुद्दीन जैसे लोगों का इलाज सिर्फ सजा है

बता दें कि अकबरुद्दीन ओवैसी ने साल 2012 में 15 मिनट वाला भड़काऊ बयान दिया था, तब उन्होंने कहा था कि देश से 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो तो पता चलेगा कौन ज्यादा ताकतवर है।

2012 का विवादित बयान

अपने बयान में अकबरुद्दीन ने कहा था, “ऐसे कई मोदी आए और चले गए। आज लोग कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात जीत लिया है और एक दिन वह देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, हम भी देखेंगे कि ऐसा कैसे होता है। लोग मुसलमान को डरा रहे हैं। मोदी है, मोदी है, काहे का मोदी। एक बार हैदराबाद आ जाओ बता देंगे। तसलीमा नसरीन आई, कहाँ है किसी को नहीं मालूम। हम 25 करोड़ हैं, तुम 100 करोड़ है न… ठीक है तुम तो हमसे इतने ज्यादा हो… 15 मिनट पुलिस को हटा लो हम बता देंगे कि किसमें कितना दम है। एक हजार क्या? एक लाख क्या एक करोड़ नामर्द मिलकर भी कोशिश कर लें तो भी एक को पैदा नहीं कर सकते। और ये लोग हमसे मुकाबला नहीं कर सकते। जब मुसलमान भारी पड़ा तो यह नामर्दों की फौज आ जाती है।”