Wednesday, November 20, 2024
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15 साल की दलित नौकरानी की हत्या में गिरफ्तार हुआ मोहम्मद निशाद और उसकी बीवी, लेकिन मीडिया ने ‘दीवाली’ को घसीटा: हिंदुओं से ये कैसी नफरत TOI-HT

चेन्नई पुलिस ने 3 नवंबर 2024 को मोहम्मद निशाद और उसकी पत्नी नासिया को उनकी 15 साल की दलित नौकरानी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया। कथित तौर पर मियाँ-बीवी नाबालिग नौकरानी को प्रताड़ित करते थे। गर्म तवा और सिगरेट से दाग देते थे। बुरी तरह पिटाई करते थे।

प्रताड़ना से जब नाबालिग दलित की मौत हो गई तो मुस्लिम दंपती घर छोड़कर भाग गया। पुलिस ने नाबालिग की लाश उनके घर के बाथरूम से बरामद की। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) और हिंदुस्तान टाइम्स (HT) जैसे मीडिया संस्थान इस घटना में भी ‘दीपावली’ को घसीटकर लाने में पीछे नहीं रहे। नाबालिग की लाश 31 अक्टूबर को बरामद की गई थी और इसी दिन दीपावली भी थी।

मीडिया ने हत्या को दीपावली से जोड़ा

TOI ने इस घटना के बारे में अपने सोशल मीडिया पोस्ट में ‘दीवाली’ शब्द को प्रमुखता से छापा है। इस पोस्ट में कहीं भी आरोपितों का नाम नहीं लिखा गया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने लिखा, “दीवाली के दिन 15 वर्षीया घरेलू सहायिका की उसके मालिकों द्वारा बेरहमी से पिटाई किए जाने के बाद मौत हो गई है। दंपती ने उसे सिगरेट से दागने सहित कई गंभीर चोटें पहुँचाई और मरने के लिए शौचालय में बंद कर दिया।”

साभार- X/TOI

इसी रिपोर्ट में TOI ने आरोपितों के नाम दूसरे और तीसरे पैराग्राफ में बताए हैं। (न्यूज़ का आर्काइव लिंक)

साभार- TOI

कमोबेश ऐसी ही हरकत हिंदुस्तान टाइम्स ने भी की है। HT मीडिया ने अपनी रिपोर्ट के शुरुआती पैराग्राफ में आरोपितों के नाम का कहीं भी जिक्र नहीं किया है। लेकिन इसी रिपोर्ट की शुरुआत में ही जोर-शोर से दीपावली का जिक्र किया गया है। बाद में इस रिपोर्ट में एक अलग सेक्शन बना कर आरोपितों के नाम खोले गए हैं। (खबर का आर्काइव लिंक)

साभार- Hindustan Times

क्या है घटनाक्रम

यह घटना तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के अमिनजीकराई थानाक्षेत्र की है। यहाँ मेहता नगर में 35 वर्षीय मोहम्मद निशाद और उनकी 30 साल की पत्नी नासिया ने 15 साल की नाबालिग लड़की को नौकरानी बना कर रखा था। निशाद और नासिया आए दिन लड़की को मारते-पीटते थे। कई बार उसे ये दोनों सिगरेट और गर्म तवे से जला चुके थे। मृतका के गले पर एक निशान भी मिला है, जिससे लगता है कि उसका गला घोंटा गया था।

नाबालिग लड़की मूलतः तंजावुर की रहने वाली है। उसके पिता की मौत हो चुकी है। वह अपनी विधवा माँ की मदद घरों में काम कर के कर रही थी। 31 अक्टूबर को भी नसिया और मोहम्मद निशाद ने नाबालिग को पीटा था। पिटाई से लड़की की मौत हो गई। दोनों ने लड़की के शव को बाथरूम में बंद कर दिया और फिर एक दोस्त के घर भाग गए।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका को प्रताड़ित किए जाने का खुलासा हुआ है। नासिया और मोहम्मद निशाद की गिरफ्तारी के साथ पुलिस ने 4 अन्य लोगों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की है। इन चारों में एक भाई-बहन हैं, जिन्होंने पीड़िता को मोहम्मद निशाद के घर पर काम करने के लिए रखवाया था। इसके अलावा 2 अन्य वो पति-पत्नी हैं जिनके घर मोहम्मद निशाद और नासिया भागकर गए थे। आरोपितों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं के साथ पॉक्सो एक्ट में कार्रवाई की गई है।

माँ-बेटी को मुस्लिम बनाने की कोशिश में लगा था हसन, हिंदुओं को दिखाता था नीचा: तमिलनाडु पुलिस ने किया गिरफ्तार, SDPI का रह चुका है सदस्य

तमिलनाडु पुलिस ने शनिवार (2 नवंबर 2024) को 45 साल के हसन बधुशा को गिरफ्तार किया। उस पर एक हिंदू माँ-बेटी पर इस्लाम कबूलने के लिए दबाव डालने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप है। हसन प्रतिबंधित कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) का सदस्य रह चुका है। उसकी साजिशों के कारण पीड़ित महिला का अपने पति के साथ भी मतभेद हो गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घटना कोयंबटूर के थुडियालुर पुलिस स्टेशन क्षेत्र की है। इरोड जिले के कोल्लमपलायम निवासी 42 साल के डी सत्यमूर्ति ने 1 नवंबर को शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत में उन्होंने बताया था कि उनकी पत्नी एम आरती एक आईटी कम्पनी में जॉब करती है। हसन उनकी पत्नी का बचपन से ही दोस्त है। दोस्ती के बहाने वह अक्सर आरती से मिलने आया करता था। हसन थुडियालुर में एक स्टोर का मालिक है। उसने अपना स्टोर चलाने के लिए आरती से 2 लाख रुपए कर्ज लिया था।

इस कर्ज को चुकाने के बदले हसन ने आरती से निकाह करने का वादा किया। सत्यमूर्ति का आरोप है कि हसन ने उनके दाम्पत्य जीवन के बीच दरार डालने की काफी कोशिश की। उसने आरती से हिन्दू धर्म के खिलाफ कई आपत्तिजनक बातें की। इस दौरान उसने हिन्दू धर्म को नीचा दिखा कर आरती के मन में उसकी आस्था के प्रति नफरत पैदा करने का प्रयास किया।

कुछ दिनों बाद हसन ने आरती और उसकी 14 वर्षीय बेटी को पढ़ने के लिए कुरान दिया। सत्यमूर्ति ने इसे उनकी बेटी और पत्नी को इस्लाम कबूल करवाने की हसन द्वारा रची गई साजिश करार दिया है। थोड़े समय बाद सत्यमूर्ति और आरती के रिश्तों में खटास पड़नी शुरू हो गई। 1 जून 2024 को सत्यमूर्ति अपने परिवार के साथ इरोड के कोल्लमपलायम में रहने लगे। इससे नाराज हो कर 8 जून को हसन बधुशा ने सत्यमूर्ति पर हमला भी किया।

आरोप है कि हसन ने आरती को अपने पति से तलाक लेने के लिए उकसाया। उसने खुद को आरती से निकाह करने को तैयार बताते हुए हिन्दू धर्म के बारे में कई गलत बातें की। पुलिस ने इस शिकायत का संज्ञान ले कर हसन बधुशा के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। FIR धारा 294, 323, 153, 298, और 506 (2) के तहत दर्ज हुई है। आरोपित को हिरासत में ले कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया है।

इस मामले के सामने आते ही SDPI ने हसन बधुशा से अपना पल्ला झाड़ लिया है। एक बयान में SDPI ने कहा है कि हसन अब उनसे जुड़ा नहीं है। बकौल SDPI हसन को लगभग 6 माह पहले ही SDPI के सभी पदों से मुक्त कर दिया गया था।

भारत-बांग्लादेश-म्यांमार को काटकर ईसाई मुल्क बनाने की रची जा रही साजिश? जिस अमेरिकी खतरे से शेख हसीना ने किया था आगाह, वह मिजोरम CM के बयान से फिर खड़ा हुआ

मिजोरम के मुख्यमंत्री पू लालदुहोमा के एक हालिया बयान पर विवाद हो गया है। यह बयान लालदुहोमा ने अमेरिका में दिया था। लालदुहोमा ने इस बयान में उत्तरपूर्व क्षेत्र में एकीकृत जो लोगों का देश बनाने की बात की तरफ इशारा किया। लालदुहोमा ने कहा था कि हमें (जो ईसाइयों) तीन अलग-अलग सरकारों के अंतर्गत रहना पड़ रहा है, जो स्वीकार्य नहीं है। लालदुहोमा के बयान में साफ़ में था कि वह भारत, म्यांमार और बांग्लादेश रहने वाले जो लोगों को एक निजाम के अंतर्गत चाहते हैं।

लालदुहोमा ने यह बयान अमेरिका में 4 सितम्बर, 2024 को दिया था। यह बयान जो समुदाय की एक बैठक में दिया गया जहाँ पर उन्होंने उत्तरपूर्व में एक संगठित चर्च बनाने की चर्चा भी छेड़ी थी। उन्होंने यहीं तीनों देशों में बिखरे ईसाइयों के एक साथ एक देश में होने की बात भी कही।

लालदुहोमा ने क्या कहा?

लालदुहोमा ने कहा, “अमेरिका की यात्रा पर आने का मुख्य कारण हम हमारी एकता का एक रास्ता तलाशना है। हम लोग एक ही हैं और एक दूसरे से अलग रहने का जोखिम नहीं उठा सकते… हमें गलत तरीके से बाँटा गया है और तीन अलग-अलग देशों में तीन अलग-अलग सरकारों के अधीन रहने के लिए मजबूर किया गया है, यह ऐसी बात है जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।”

लालदुहोमा का तीन अलग-अलग सरकारों से तात्पर्य भारत, बांग्लादेश और म्यांमार से था। लालदुहोमा के बयान से साफ़ है कि उन्हें ईसाई समुदाय का तीन अलग-अलग देशों में अलग-अलग देशों में रहना पसंद नहीं है और वह इन तीनों क्षेत्रों को एक करने के लिए एक रास्ता तलाशना चाहते हैं।

इसी बयान में लालदुहोमा ने कहा, “मैं चाहता हूँ कि हम यह दृढ़ विश्वास और इच्छाशक्ति रखें कि एक दिन, ईश्वर की कृपा से, जिसने हमें एक देश बनाया है, उसी के नेतृत्व में हम एक देश बन कर उठेंगे और अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगे।” उन्होंने बाद में यह भी कहा कि कोई एक देश सीमाओं के तौर पर बंटा भी हुआ हो सकता है।

लालदुहोमा की इस बात से साफ़ है कि वह एक ऐसे देश की बात कर रहे हैं जिसमें यह तीनों जगह के लोग शामिल हों लेकिन एकदम अलग होगा और यह ईश्वर की कृपा से बनेगा। लालदुहोमा यह बयान तब दे रहे हैं जब वह स्वयं भारतीय गणराज्य के अंतर्गत एक संवैधानिक पद पर हैं और उन्होंने देश की एकता और अखंडता को लेकर शपथ ली है।

शेख हसीना ने जताई थी इसी की आशंका

जिस तरह की बात लालदुहोमा कर रहे हैं, इसी से सम्बन्धित बात बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना कह चुकी हैं। शेख हसीना ने बांग्लादेश में तख्तापलट से पहले मई 2024 में शेख हसीना ने कहा था कि गोरी चमड़ी वाले देश बांग्लादेश और म्यांमार के एक हिस्से को तोड़ कर ईसाई देश बनाना चाहते हैं।

उन्होंने तब भारत का नाम नहीं लिया था लेकिन साफ़ था कि यह देश भी उसी तर्ज पर बनता, जिसकी दुहाई लालदुहोमा ने दी है। लालदुहोमा का भी कहना है कि ईसाइयों को उत्तर पूर्व में एक होना होगा और ईश्वर ने चाहा तो उनका एक देश का सपना जरूर पूरा होगा।

शेख हसीना ने यह भी कहा था कि अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश उनके चुनाव और सरकार में इसलिए अड़ंगा लगा रहे हैं क्योंकि वह बंगाल की खाड़ी में एक बेस चाहते हैं। हसीना ने कहा था कि इस ईसाई मुल्क में चट्टोगाम भी शामिल होगा, जो खाड़ी का एक प्रमुख बंदरगाह है। उन्होंने कहा था कि एक गोरी चमड़ी वाले आदमी ने उनको यह सारे ऑफर दिए थे।

इसी के कुछ दिनों के बाद शेख हसीना की सत्ता चली गई थी। उन्हें आनन फानन में अपना देश छोड़ कर निकलना पड़ा था। वर्तमान में वह भारत में शरण लेकर रह रही हैं। लेकिन उनके द्वारा जताई गई चिंता एक बार फिर मिजोरम CM के बयान के रूप सामने आई है।

नई नहीं है ईसाई देश की बातें

भारत के उत्तर पूर्व में एक ईसाई देश बनाने की यह बात कोई नई नहीं है। शेख हसीना ने मई में इसको लेकर अपने नेताओं से भी चिंता जताई थी। स्वराज्य की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शेख हसीना ने आवामी लीग के नेताओं से बताया था कि जोगम नाम का एक देश बनाने की साजिश चल रही है। शेख हसीना ने बताया था कि इस देश में म्यांमार के सागाइंग डिवीजन और चिन राज्य का बड़ा हिस्सा, भारत का मिजोरम और मणिपुर के कुकी बहुल इलाके और बांग्लादेश के चटगांव डिवीजन के बंदरबन जिले और आसपास के क्षेत्र शामिल होंगे।

भारत के भीतर भी मिजोरम में सत्तारूढ़ ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM), विपक्षी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) और साथ ही कॉन्ग्रेस पार्टी की राज्य इकाई मिजोरम स्थित ZRO द्वारा की गई एकीकरण की माँग का समर्थन करती है, इसका मुख्य उद्देश्य तीनों देशों में सभी ज़ो-आबादी वाले क्षेत्रों का एकीकरण करना है। बताया गया है कि चर्च और विशेष रूप से अमेरिका स्थित बैपटिस्ट चर्च इस “ज़ो-एकीकरण” की माँग को बढ़ावा दे रहा है। इन चर्च के अमेरिका की CIA से घनिष्ठ संबंध होने की सूचना है।

मणिपुर में हिंसा में बड़ा रोल निभाने वाले कुकी लड़ाके भी धार्मिक आधार जो लोगों के साथ जुड़े हैं। कुकी वर्तमान में म्यांमार के भीतर बड़ा इलाका नियंत्रित करते हैं। मणिपुर में हिंसा फ़ैलाने में म्यांमार से आने वाले घुसपैठियों का बड़ा हाथ रहा है। यह कुकी भी उस कुकी-चिन-जो समुदाय का हिस्सा हैं, जिसका एक वर्ग अलग ईसाई देश चाहता है।

मिजोरम में ईसाइयत का प्रभाव

मिजोरम की लगभग 90% जनसंख्या ईसाई है। मिजोरम में ईसाइयत का प्रभाव 20वीं शताब्दी की शुरुआत से ही चालू हुआ है। इससे पहले यहाँ की अधिकांश जनता जनजातीय परम्पराओं को मानती थी। हालाँकि, मिशनरियों ने यहाँ लम्बे समय तक ईसाइयत का प्रचार किया जिससे राज्य की अधिकांश जनता ईसाई हो गई।

मिजोरम के अलावा नागालैंड और मेघालय भी ईसाइयत की बहुलता वाले राज्य हैं। हालाँकि, मिजो लोगों का फैलाव सीमाओं के पार भी है, ऐसे में इनके एकीकरण के साथ ही एक देश बनाने की बातें भी उठती रही हैं। CM लालदुहोमा का बयान यही कहानी बताता है।

अयोध्या में दीपोत्सव पर बजा रहे थे- राम आएँगे तो अँगना… रईस खान के खानदान ने कर दिया हमला: कहा- मादर$द तुम बड़े रामभक्त हो गए हो

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में एक रामभक्त मुस्लिम परिवार पर दूसरे मुस्लिम परिवार ने हमला कर दिया। घटना शुक्रवार (1 नवंबर 2024) की है। पीड़ित का नाम अनीस खान उर्फ बबलू है।

आरोपों के अनुसार अनीस खान अपने कार्यालय में दीपोत्सव मनाते हुए भगवान राम का भजन सुन रहे थे। इसी दौरान रईस खान के खानदान के लोगों ने हमला कर दिया। हमले में कुल्हाड़ी और लाठी-डंडों के अलावा बंदूक का भी प्रयोग किया गया। आरोपितों को गिरफ्तार कर पुलिस ने जेल भेज दिया है।

यह घटना अयोध्या कोतवाली थाना क्षेत्र की है। शुक्रवार को अनीस खान ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। शिकायत में उन्होंने खुद को रामभक्त बताया है। कहा है कि भगवान राम के मंदिर का समर्थक होने की वजह से उनको कई बार विदेशों से भी मौत की धमकियाँ मिल चुकी है। घटना का जिक्र करते हुए अनीस खान ने बताया है कि शुक्रवार को उनके कार्यालय में दीपोत्सव का कार्यक्रम था। रात 8:30 से 8:45 के बीच उनके कार्यालय में ‘राम आएँगे तो अँगना…’ वाला भजन बज रहा था।

अनीस खान के मुताबिक इस दौरान रिश्ते में उसका भाई रईस अपने 2 बच्चों जावेद और कैफ के साथ वहाँ आ धमका। इन सभी के हाथों में बंदूक, कुल्हाड़ी और लाठी-डंडे थे। इन तीनों ने अनीश से कहा, “मादर$द, तुम बड़े रामभक्त हो गए हो।” इतना कह कर तीनों ने अनीस के घर वालों पर हथियार तान दिए।

हमले से बचने के लिए अनीस ने खुद को परिवार सहित घर में बंद कर लिया। इसके बाद हमलावरों ने घर का दरवाजा तोड़ डाला और अनीस के साथ उनके बेटे अदनान, अयान और आसिफ को बेरहमी से पीटा। पीड़ित मोहम्मद अनीस ने आरोपितों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। पुलिस ने अनीस की शिकायत पर रईस, जावेद और कैफ के खिलाफ FIR दर्ज कर ली है। इन सभी पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115 (2), 352, 109 (2), 333 और 324 (4) के तहत कार्रवाई की गई है।

ऑपइंडिया के पास FIR कॉपी मौजूद है। वहीं एक वीडियो बयान में अनीस खान उर्फ बबलू ने बताया है कि दीपोत्सव के समय वे अपने कुछ मित्रों के साथ ‘राम आएँगे तो अँगना…’ वाला सुन रहे थे। इसी ख़ुशी में अनीस का एक साथी नाचने लगा। ये रईस और उसके परिवार को नागवार गुजरा। उन्होंने पहले सबको गालियाँ दीं और बाद में अनीस के परिजनों को पीटा। DSP अयोध्या आशुतोष तिवारी ने बताया कि मामले में जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई की जा रही है।

खालिस्तानियों ने किया हमला, पर कनाडा की पुलिस ने हिंदुओं को ही पीटा: छड़ी-मुक्का मारते वीडियो वायरल, बच्चों का भी गला दबोचा

कनाडा में हिंदू मंदिर पर खालिस्तानी हमला किए जाने के बाद कनाडाई पुलिस का चेहरा उजागर हुआ है। कुछ वीडियोज सामने आई हैं जिसमें घटनास्थल पर खड़े हिंदू आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस ने उन खालिस्तानियों के साथ कुछ नहीं किया जिन्होंने हमला किया उलटा हिंदुओं पर ही छड़ी मारनी शुरू कर दी।

इस वीडियो को कनाडाई पत्रकार डेनियर बोर्डमैन ने साझा किया है। ट्वीट के मुताबिक, ये वीडियो 3 नवंबर वाली घटना का है जब सरे में हिंदू मंदिर को निशाना बनाया गया। डेनियर वीडियो शेयर करते हुए बताते हैं कि कनाडाई पुलिस भीड़ में जाकर हिंदुओं को धक्का दे रही है और उन खालिस्तानियों को बचा रही है जो दीवाली पर हिंदू श्रद्धालुओं को निशाना बनाने आए थे।

वीडियो में देख सकते हैं कि हिंदुओं के सिर पर मुक्के मारे जा रहे हैं और उन्हें लाठी से पीटा जा रहा है। कुछ पुलिस अधिकारी हिंदुओं को बचाने की बजाय उन्हीं पर आगे बढ़कर हमले कर रहे हैं वहीं कुछ पुलिस अधिकारी शांत खड़े हैं और विरोध करने वाले हिंदुओं को पीछे ढकेल रहे हैं।

इस पूरे वाकये को एक हिंदू महिला ने रिकॉर्ड किया है। वीडियो में वह उस पुलिस अधिकारी की ओर इशारा भी कर रही है और दिखा रही है कि इसी अधिकारी ने हिंदू को मारा है। महिला कहती है कि छड़ी से उन लोगों पर हमले किए गए और खालिस्तानियों को कुछ भी नहीं कहा गया।

वीडियो में लोगों के चिल्लाने और रोने की आवाजे भी आ रही है मगर फिर भी कना़डाई पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। एक वीडियो में तो तीन पुलिसकर्मी बच्चे का गला दबोचकर उसे जमीन पर लिटाए हुए हैं और फिर उसका हाथ मोड़ रहे हैं। पीछे से आवाज सुनाई पड़ रही है- उसे कुछ मत करो वो एक बच्चा है।

एक अन्य वीडियो में दावा है कि सरे में कनाडाई पुलिस हिंदुओं का रास्ता रोककर खड़ी हो गई थी। ऐसे में पूछा जा रहा है कि क्या खालिस्तानी और कनाडाई पुलिस मिलकर हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे हैं।

कुछ वीडियो में मंदिर में आए लोगों को ही कनाडाई पुलिस उठाकर कार में डालती दिख रही है जिसे देख लोगों ने पूछा कि जब हमला हिंदू मंदिर पर हुआ तो ये खालिस्तानियों की जगह हिंदुओं को क्यों पकड़ा जा रहा है। ये भेदभाव नहीं तो क्या है। लोगों ने पूछा ‘क्या- ये खालिस्तानी पुलिस है?’ पीछे से आवाज सुनाई पड़ी है कि एक व्यक्ति पंजाबी में कनाडाई पुलिस की कार्रवाई के लिए उ्हें धन्यवाद दे रहा है।

इन सारी घटनाओं को रिपोर्ट करते हुए कहा, कनाडाई पत्रकार डैनियल बोर्डमैन कहते हैं, “हाल ही में हुआ हमला भयानक है…इसने नई सीमाएँ लांघ दी हैं…यह इस देश में हिंदू भक्तों पर पहला दिनदहाड़े हमला है। पुलिस की प्रतिक्रिया घृणित थी…इसे पूरी तरह से रोका जा सकता था…हम कनाडा में इसे हर समय देखते हैं, जहाँ पुलिस अपने मन से कार्रवाई करती है। कनाडाई सरकार बिलकुल नहीं सुनती।”

बता दें कि कनाडा में खालिस्तानी हमले लगातार बढ़ रहे हैं। कल पहले खबर आई कि सरे में हिंदू मंदिर को निशाना बनाया गया, फिर पता चला कि ब्रैम्पटन में भी अटैक हुआ है। दोनों घटनाओं की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।

ट्रक में भरकर गोवंश मेवात ले जा रहे थे तस्कर, राजस्थान पुलिस ने रोका तो बरसाई गोलियाँ: जवाबी कार्रवाई के बाद भागे, सर्च ऑपरेशन में मिले 100+ गोवंश

राजस्थान के भरतपुर जिले में गोतस्करों और पुलिस के बीच रविवार (3 नवंबर 2024) की रात मुठभेड़ हो गई। इसके बाद तस्कर ट्रक छोड़ भाग गए। इस दौरान मौके पर गोरक्षा दल के सदस्य भी मौजूद थे। इन सभी ने मिलकर 25 से 30 गोवंश बचाए। इन्हें काटने के लिए मेवात ले जाया जा रहा था।

फरार तस्करों की तलाशी के दौरान पुलिस ने रात भर सर्च ऑपरेशन चलाया। तस्कर पकड़ में नहीं आए। लेकिन 100 से अधिक गोवंश बरामद किए हैं। इन सभी को गोशाला में भिजवा दिया गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घटना भरतपुर के चौकी झील इलाके की है। रविवार रात लगभग 12:30 पर गोरक्षा दल से जुड़े लोगों ने QRT (क्विक रेस्पॉन्स टीम) को गोतस्करी की सूचना दी। इस सूचना पर पुलिस की अलग-अलग टीमों का गठन हुआ। पुलिस को बताया गया कि गोतस्कर खोहरा बछेना गाँव के जंगलों से ट्रक ले कर गुजरेंगे। पुलिस टीम ने घेराबंदी की तो सूचना सही पाई गई।

गोरक्षा दल के सदस्यों द्वारा बताई गई ट्रक आई तो पुलिस ने उसे रोकने की कोशिश की। इस पर ट्रक चालक ने पुलिस पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की। रात में अँधेरे में दोनों तरफ से लगभग 7 राउंड फायरिंग हुई। इसके बाद गोतस्कर ट्रक छोड़ भाग निकले। ट्रक में लगभग 20 से 25 गोवंश मिले। माना जा रहा है कि इन्हें मेवात ले जाया जा रहा था।

पुलिस टीम ने फरार गोतस्करों की तलाश में रात भर सघन अभियान चलाया। कई घंटों की तलाशी के बाद एक भी गोतस्कर हाथ नहीं लगा। हालाँकि इसी तलाशी में लगभग 100 जीवित गोवंश मिले। सभी गोवंशों को बरामद कर बयाना की रुदावल श्रीकृष्ण गोशाला और भरतपुर की इकरन गोशाला भेज दिया गया है। पुलिस के अनुसार गोवंश अधिनियम, पुलिस टीम पर फायरिंग करने और राजकार्य में बाधा डालने का केस दर्ज किया जाएगा।

12 हजार मौतों से वे 72 साल पहले सीख गए, हम कितनी पीढ़ियों की साँसों में धुआँ भरकर सीखेंगे? पटाखे-पराली से अधिक दिल्ली के बकैत सत्ताधीश घोंट रहे दम

दिल्ली की स्थिति बढ़ते प्रदूषण के कारण बदहाल हैं। ठंड से पहले आसमान में कोहरे की परत है जिसके संपर्क में आते ही आँखों में जलन और साँस लेने की तकलीफ होने लगती है।

हर रोज राजधानी का बढ़ता AQI नए रिकॉर्ड बना रहा है। आनंद विहार में तो आज AQI ने 600 का आँकड़ा पार कर लिया था। वहीं बवाना में ये आज सुबह 406 के आसपास था।

दिल्ली सरकार और उसके मंत्री हर साल कहते हैं कि वो प्रदूषण कंट्रोल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं और जल्द स्थिति बेहतर होगी… लेकिन हकीकत यह है कि अगर प्रयास वाकई हो रहे होते तो पिछले 10 वर्षों में AQI का ग्राफ लगातार बढ़ नहीं रहा होता और न दिल्ली के हालात इतने गंभीर होते।

AQI.IN साइट के अनुसार दिल्ली में 4 नवंबर की सुबह दिल्ली का AQI 400 पार था और खबर लिखने तक प्रदूषण मामले में सबसे खराब स्थिति वाले शहरों में दिल्ली नंबर 1 पर आ गया है।

ऐसे गंभीर हालातों में दिल्ली सरकार एक्शन लेने के नाम पर दीवाली में पटाखों पर बैन लगाने जैसी कार्रवाई कर रही है या फिर दूसरे राज्य की सरकारों पर सारे प्रदूषण का ठीकरा फोड़ रही है। मगर इसका स्थायी निवारण क्या है इस पर कोई बात नहीं हो रही। अगर दीवाली पर फूटे पटाखों को दिल्ली के बढ़े प्रूषण का कारण मानते हैं तो फिर आपको 28 अक्तूबर (जब देश में दीवाली नहीं मनाई गई थी) का रिकॉर्ड देखना चाहिए। 28 अक्तूबर 2024 को दिल्ली का औसत एक्यूआई 356 रिकॉर्ड किया गया था जबकि दीवाली के अगले दिन औसत AQI 351 था।

इन दो आँकड़ों से ये बात तो स्पष्ट है कि पटाखे फोड़ने से वायु प्रदूषण होता जरूर है मगर इसका सीधा असर दिल्ली में बढ़ते AQI से बिलकुल नहीं है। क्योंकि अगर ऐसा होता तो दिल्ली में सामान्य दिन की आबो हवा से दीवाली की अगली सुबह में फर्क होता।

2018 से 2023 का हर महीने का AQI

खैर! हर वर्ष दीवाली से पहले शायद पटाखे बैन करके आम आदमी पार्टी को ऐसा लगता हो कि वो युद्ध स्तर पर AQI कंट्रोल करने में लगे हुए हैं। जबकि रिजल्ट देख लगता है कि सरकार दिल्ली की हालत को सुधारने की जगह उसमें ढिलाई दिखाने में लगी हैं।

कभी इसी सरकार ने स्वच्छता के मायनों में दिल्ली को लंदन जैसा बनाने की बात कही थी, मगर लापरवाही देख यह लगता है कि दिल्ली को लंदन-पेरिस बनाने के सपने देखने वाली सरकार ने लंदन को देख कुछ नहीं सीखा। अगर सीखा होता तो आज दिल्ली में दमघोंटू हवा नहीं चल रही होती।

1952 में लंदन में ऐसे ही प्रदूषण से इकट्ठा हुआ स्मॉग दिखाई दिया था। 4 दिन में इस कोहरे ने 2 लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया था और 12000 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। उस घटना ने लंदन को उनके पर्यावरण को लेकर सतर्क कर दिया और उसके बाद कभी वैसा धुआँ या कोहरा लंदन पर नहीं देखा गया। वहाँ ‘राइट टू क्लीन एयर’ कानून बना और लंदन समेत सभी यूरोपीय देशों ने वाकये से सीख ली।

वहीं दिल्ली में हालात साल दर साल बदतर हो रहे हैं। शोध के नजरिए से देखें तो इसके कई कारण हैं जैसे जनसंख्या वृद्धि के कारण दिल्ली में बढ़ते वाहन और उनसे निकलने वाला धुआँ, औद्योगिक गतिविधियाँ, निर्माण कार्य, जलवायु परिवर्तन, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की संख्या आदि। अब दिल्ली सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए क्या कर रही है? इस पर कहीं कुछ स्पष्टता से नहीं बताया जा रहा है। लेकिन राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप लगातार जारी हैं। एक तरफ खबरों में आता है कि पराली जलाने का 93% प्रदूषण पंजाब से आता है तो सीएम आतिशी प्रेस के सामने दावा करती हैं कि उनकी सरकार आने के बाद पंजाब में पराली जलाने की संख्या कम हुई है।

ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली की आबो-हवा सुधारने से ज्यादा बड़ा मुद्दा अपनी पार्टी की छवि सुधारने का है। हर बार एक्शन पर बात करने की जगह किसी अन्य राज्य पर सारा ठीकरा फोड़ना AAP की आदत हो गई है।

ये बात सभी जानते हैं कि अगर प्रदूषण इतना बढ़ा है और हवा इतनी खराब हुई है तो प्रशासन शांति से नहीं बैठेगा। मगर सवाल यहाँ ये है कि जो कार्य दिल्ली सरकार प्रदूषण रोकने के लिए कर रही है… क्या वे काफी हैं या इसमें सख्ती की जरूरत और है। अगर जवाब ‘हाँ’ है तो सवाल उठता है कि अगर अभी तक उठाए कदम पर्याप्त हैं तो फिर बीते सालों में ठंड आते ही बढ़ने वाले प्रदूषण में फर्क क्यों नहीं दिखा और अगर जवाब ‘नहीं’ है तो फिर सवाल ये है कि बावजूद ये जानने के कि इनसे दिल्ली की हवाल नहीं सुधर रही या आगे कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे। क्या सिर्फ दूसरे राज्यों पर प्रदूषण का ठीकरा फोड़ने से दिल्ली की हालत सुधर जाएगी।

गौरतलब है कि मीडिया में अलग-अलग जगह से जानकारियाँ इकट्ठा करने पर पता चलता है प्रदूषण रोकने के लिए दिल्ली में GRAP-1 को लागू किया गया है। इसके अलावा प्रदूषण करने वाले वाहनों पर कार्रवाई हो रही है और साथ ही धूल को नियंत्रित करने के लिए मैकेनिकल रोड स्विपिंग मशीनें, पानी छिड़कने वाली मशीनें और एंटी स्मॉग गन का उपयोग किया जा रहा है।

9 मुस्लिम, ₹90 लाख का फ्रॉड, अग्रिम जमानत पर सवाल… UP पुलिस ने गाजियाबाद कोर्ट में क्यों भाँजी लाठियाँ, क्यों हड़ताल पर वकील: सारे सवालों का जवाब एक साथ

उत्तर प्रदेश के वकील 4 नवंबर 2024 को हड़ताल पर हैं। दिल्ली बार एसोसिएशन भी इसका समर्थन कर रहा है। यह पूरा विवाद 29 अक्टूबर को गाजियाबाद जिला कोर्ट में हुए लाठीचार्ज से पैदा हुआ है। कथित तौर पर जालसाजी के एक मामले में मुस्लिम आरोपितों की अग्रिम जमानत को लेकर जज अनिल कुमार और वकीलों के बीच बहस हुई। फिर पुलिस की एंट्री हुई। अब यह मामला लाठीचार्ज की SIT जाँच को लेकर हाई कोर्ट में याचिका से हड़ताल तक पहुँच चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने भी पुलिस लाठीचार्ज की निंदा करते हुए कहा है कि जिला जज अनिल कुमार के आदेश पर वकीलों पर लाठीचार्ज किया गया। SCBA ने एक प्रस्ताव पारित कर जिला जज अनिल कुमार के आचरण की जाँच इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में कराने की माँग की है। गाजियाबाद बार एसोसिएशन लाठीचार्ज की SIT जाँच की माँग कर रहा है। इसको लेकर एडवोकेट जवाहिर यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका घटनास्थल के CCTV फुटेज सुरक्षित रखने और FIR में नामजद वकीलों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील की गई है।

गाजियाबाद जिला कोर्ट में वकीलों पर लाठीचार्ज

29 अक्टूबर को दोपहर के समय जिला जज अनिल कुमार की अदालत में कई वकीलों का जमावड़ा हो गया था। कुछ ही देर में कोर्ट परिसर में शोर-शराबा मच गया। तभी अचानक कैम्पस में पुलिस की एंट्री हुई। घटना के वायरल वीडियो में से कुछ में पुलिसकर्मी वकीलों पर बल प्रयोग करते दिख रहे हैं। वकीलों को भी कुर्सियाँ उठा कर फेंकते देखा जा सकता है।

वकीलों के मुताबिक लाठीचार्ज के लिए जिला जज जिम्मेदार

इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले एडवोकेट जवाहिर यादव का दावा है कि एक मामले में जमानत को लेकर घटना की कुछ वकील जिला जज अनिल कुमार की अदालत में बहस कर रहे थे। इसी दौरान किसी बात पर वकीलों और जज में गर्मागर्म बहस हो गई। आरोप है कि जज अनिल कुमार ने अपना आपा खो दिया और डायस पर खड़े हो कर वकीलों को गंदी-गंदी गालियाँ देने लगे।

एडवोकेट जवाहिर यादव के अनुसार थोड़ी देर बाद जज अनिल कुमार के आदेश पर पुलिस कोर्ट रूम में घुसी और वकीलों को पीटना शुरू कर दिया। जज पर आरोप है कि वे पुलिस को बार-बार वकीलों को गोली मारने के लिए उकसा रहे थे। घटना के बाद में कोर्ट कैम्पस में CRPF की टुकड़ी तैनात कर दी गई। इसके पीछे भी वकील जज अनिल कुमार को ही बता रहे हैं।

पुलिस की FIR में क्या?

पुलिस द्वारा दर्ज करवाई गई FIR में वकीलों को हिंसा का जिम्मेदार बताया गया है।सब इंस्पेक्टर संजय कुमार ने कवि नगर थाने में केस दर्ज करवाया है। अपनी तहरीर में उन्होंने बताया है कि 29 अक्टूबर को वे साथी सिपाहियों के साथ कचहरी में ड्यूटी पर थे। तभी एक अदालत में करीब 50 वकीलों के इकट्ठा हो कर हंगामा करने की सूचना मिली।

संजय कुमार की शिकायत के अनुसार हंगामे के दौरान वकील कुर्सियाँ फेंकते हुए गंदी-गंदी गालियाँ दे रहे थे। उन्होंने अन्य पुलिसकर्मियों के साथ हंगामा कर रहे वकीलों को अदालत से बाहर निकाला। इसके बाद नीचे आकर वकीलों ने पुलिस बल पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। कचहरी में बनी पुलिस चौकी में आग लगा दी। वकीलों की भीड़ ने चौकी के आसपास लगे CCTV कैमरे भी तोड़ दिए।

सब इंस्पेक्टर संजय कुमार ने बताया है कि वकीलों की पत्थरबाजी में कोर्ट परिसर के लगे कई शीशे टूट गए। दारोगा राजेश कुमार के सिर पर चोटें आईं हैं। इस हंगामे से कचहरी में भगदड़ मच गई। हालत संभालने के लिए कोर्ट कैम्पस में CRPF के साथ PAC की टुकड़ी तैनात करनी पड़ी।

संजय कुमार की तहरीर पर लगभग 50 अज्ञात वकीलों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। उन पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 191 (2), 191 (3), 121 (1) और 121 (2), 131, 352, 324 (4), 326 (G), 61 (2), 3 (5) और 118 (1) के साथ आपराधिक कानून 1932 की धारा 7 व सार्वजनिक सम्पत्ति नुकसान निवारण अधिनियम के सेक्शन 3/4 के तहत केस दर्ज हुआ है। ऑपइंडिया के पास FIR की कॉपी मौजूद है।

गाजियाबाद पुलिस के एडिशनल कमिश्नर दिनेश कुमार ने बताया है कि जिला जज के चैंबर की तरफ बढ़ रही हमलावर वकीलों की भीड़ को पुलिस ने जैसे-तैसे काबू किया था। उन्होंने बताया कि जब पुलिस जिला जज को सुरक्षित करने में जुटी थी तभी वकीलों ने नीचे उतर कर आगजनी की है। बकौल एडिशनल सीपी सबूत और तथ्य जुटाए जा रहे हैं जिनके आधार पर कार्रवाई की जाएगी।

न्यायिक कर्मचारी की FIR में भी वकील ही हिंसा के जिम्मेदार

पुलिस के अलावा एक दूसरी FIR न्याय विभाग के कर्मचारी संजीव गुप्ता ने दर्ज करवाई है। गाजियाबाद कचहरी में नाजिर के पद पर तैनात संजीव गुप्ता की तहरीर में बताया गया है कि 29 अक्टूबर को एडवोकेट नाहर सिंह यादव, उनके बेटे अभिषेक यादव तथा उनके रिश्तेदार दिनेश यादव ने कोर्ट परिसर में साजिशन हंगामा किया। हंगामे में 40 से 50 अन्य अराजक लोग भी शामिल थे।

संजीव की शिकायत के अनुसार अराजक भीड़ ने कोर्ट रूम में घुस कर न्यायिक कार्य में बाधा डाली। खिड़कियों और शीशों को तोड़ दिया। फर्नीचरों को उठा कर फेंक दिया। सर्वर मशीन को तहस-नहस कर दिया।

जिस मामले में जमानत से शुरू हुआ विवाद, उसमें मुस्लिम आरोपित, हिंदू वकील पीड़ित

जिस मामले में जमानत को लेकर वकीलों और जज के बीच बहस की बात कही जा रही है वह एक जालसाजी से जुड़ा केस है। इस जालसाजी के शिकार वकील जितेंद्र सिंह हैं। उनकी शिकायत पर इस मामले में गुलरेज आलम, रिजवान अली, हसमुद्दीन, मोहम्मद फहीम, नसरुद्दीन, फातिमा परवीन, जफरुद्दीन, ख़ुर्शीदन और हाजी आरिफ अली नामजद हैं।

इन सभी पर जमीन के सौदे के नाम पर जितेंद्र सिंह से 90 लाख रुपए की धोखाधड़ी का आरोप है। अदालत के आदेश पर यह FIR 2 अक्टूबर 2024 को दर्ज हुई थी। आरोपितों पर IPC की धारा 420, 406, 467, 468, 471 और 120 बी लगाई गई है। ऑपइंडिया के पास इस FIR की कॉपी भी मौजूद है।

ऑपइंडिया से बात करते हुए वकील जितेंद्र सिंह ने बताया कि नियमों के विरुद्ध जाते हुए जिला जज अनिल कुमार ने आरोपितों को अग्रिम जमानत दी थी। वकील इस केस पर सुनवाई की माँग कर रहे थे। लेकिन अनिल कुमार इसके लिए तैयार नहीं थे। उनके यह भी दावा है कि यही जज पूर्व में 18 लाख की एक अन्य धोखाधड़ी केस में अग्रिम जमानत याचिका ख़ारिज कर चुके हैं।

भगवान विष्णु को तुलसी भी अर्पित नहीं कर सकते श्रद्धालु, क्योंकि गुरुवायुर मंदिर के उस बोर्ड ने लगाई रोक जिसका चेयरमैन है एक वामपंथी: कीटनाशक का दिया हवाला

केरल के त्रिशूर जिले में स्थित गुरुवायुर मंदिर के प्रबंधन बोर्ड ने श्रद्धालुओं से तुलसी ना अर्पित करने को कहा है। बोर्ड ने कहा है कि श्रद्धालुओं द्वारा लाई तुलसी पूजा में काम नहीं आती और इसमें केमिकल की मात्रा भी ज्यादा होती है, ऐसे में इन्हें ना चढ़ाया जाए। बोर्ड के इस फैसले पर विवाद हो गया है। इस बोर्ड के मुखिया CPM के नेता वीके विजयन हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंदिर बोर्ड ने हाल ही में श्रद्धालुओं को बाहर से खरीद कर तुलसी मंदिर में ला लाने की सलाह दी। श्रद्धालु यह तुलसी गुरुवायुर भगवान (भगवान विष्णु के रूप) पर चढ़ाते थे। बोर्ड ने कहा कि बाहर से लाई गई तुलसी को माला बनाने या भगवान की पूजा के लिए उपयोग नहीं किया जाता है।

बोर्ड ने बताया कि इस तुलसी को एक निजी संस्था को दिया जाता है जो बाद में इससे कई अन्य उत्पाद तैयार करती है। बोर्ड ने कहा कि बाहर से लाई गई तुलसी में कीटनाशक की मात्रा अधिक होती है इसलिए श्रद्धालु उसे लाने से बचें। बताया गया है कि गुरुवायुर मंदिर में पूजा के फूल या माला लाने का काम कुछ परिवार पीढ़ियों से करते आ रहे हैं।

मंदिर के कुछ स्टाफ ने मीडिया को बताया कि बाहर से लाई गई तुलसी से उनके हाथों से खुजली मचती है और इससे एलर्जी भी होती है। मंदिर बोर्ड ने श्रद्धालुओं को सलाह दी है कि वह तुलसी की जगह कमल के फूल लेकर मंदिर के भीतर आएँ।

मंदिर बोर्ड के इस फैसले को लेकर विवाद हो गया है। श्रद्धालुओं ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि उनके अधिकार पर बोर्ड कब्जा कर रहा है। गौरतलब है कि गुरुवायुर देवासम बोर्ड के चेयरमैन वी के विजयन हैं जो कि केरल में CPM के बड़े नेता हैं।

वी के विजयन इस बोर्ड के चेयरमैन मार्च, 2024 में बने थे। यह उनका दूसरा कार्यकाल है। स्थानीय हिन्दू संगठनों ने बोर्ड के तर्कों पर हमला करते हुए तुलसी चढ़ाने से मना करने का विरोध किया है। उन्होंने पूछा है कि बोर्ड आखिर फिर बाकी ऐसे चीजें क्यों लेता है जो पूजा में नहीं उपयोग की जाती।

क्षेत्र रक्षा समिति के सचिव एम बिजेश ने कहा, “अगर बोर्ड कार और सोने के आभूषण जैसी वस्तुओं को स्वीकार कर सकता है जिनका उपयोग पूजा के लिए नहीं किया जा सकता, तो उसे भक्तों को भगवान को कुछ प्रिय वस्तुएँ चढ़ाने से नहीं रोकना चाहिए। तुलसी चढ़ाने से मना करने के बजाय उनका कुछ अच्छा उपयोग क्यों नहीं तलाशा जाता?”

इससे पहले केरल के मंदिरों में मई 2024 में अराली का फूल भी बैन कर दिया गया था। इस फूल की वजह से एक 24 साल की नर्स की मौत हो गई थी। इसके बाद दो बड़े मंदिर बोर्ड ने मंदिरों में यह फूल लाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

गुरुवायुर मंदिर हिन्दुओं के लिए काफी महत्व रखता है और यह सदियों पुराना है। बताया जाता है कि यह मंदिर 14वीं शताब्दी में पूरा हुआ था। मंदिर में भगवान विष्णु की 4 भुजाओं वाला एक विग्रह स्थापित है, इसी रूप को गुरुवायुर कहा जाता है।

कनाडा में खालिस्तानी हमले के बाद ‘बटेंगे तो कटेंगे’ की गूँज, एकजुट हुए हिंदू: मंदिरों ने नेताओं की एंट्री पर लगाया बैन, सुविधा का नहीं कर सकेंगे इस्तेमाल

कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर खालिस्तानी हमले के बाद हिंदुओं ने एकजुट होने का आह्वान किया है। एक वीडियो सामने आई है जिसमें हिंदू सभा मंदिर के सामने भीड़ जुटी है और धोती-कुर्ता पहने हिंदू पुजारी लोगों को ‘बँटोगे तो कटोगे’ का संदेश दे रहे हैं।

हिंदू पुजारी लोगों से नारे लगवाते हुए कहते हैं, “बटोगे तो कहोगे।” इसके बाद उन्होंने कहा, “ये हमला कोई अकेला हमला नहीं है। ये हमला हिंदू सभा पर हमला नहीं है। ये हमला पूरे विश्व में जितने हिंदू हैं उनके ऊपर है।”

आगे उन्होंने कहा, “सुनिए, आज समय आ गया है जब हमें अपने लिए नहीं बल्कि अपनी संतति के बारे में सोचना पड़ेगा। सबको एक होना पड़ेगा। हम किसी का विरोध नहीं करते हैं लेकिन कोई हमारा विरोध करता है तो हम छोड़ेंगे नहीं उसे तोड़ेंगे।”

इसके अलावा ये भी खबर सामने आई है कि कनाडा की राष्ट्रीय हिंदू परिषद और हिंदू फेडरेशन ने मंदिर के नेताओं और हिंदू समूहों के साथ मिलकर हिंदू मंदिर पर हमले के बाद एक आधिकारिक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि अब किसी राजनीतिक दलों के किसी राजनेता को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मंदिर की सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

बता दें कि कुछ दिन पहले सीएम योगी आदित्यनाथ ने मंच से बटोगे तो कटोगे का बयान दिया था। इसके बाद इस पर चर्चा तेज हो गई। आज इसकी आवाज कनाडा से भी उठी वो भी तब जब खालिस्तानियों ने हिंदू मंदिर के परिसर के भीतर घुसकर हमला कर दिया। इस अटैक के दौरान खालिस्तानियों ने न हिंदू महिलाओं को छोड़ा और न बच्चों को। सबपर लाठी-डंडे से हमले किए गए।

इस घटना के बाद कनाडाई नेताओं ने इस हमले की निंदा की, लेकिन कुछ नेता निंदा करते समय खुलकर खालिस्तानियों का नाम लेने से बचे। वहीं ओटावा स्थित भारतीय उच्चायोग ने भी इस घटना के बाद भारतीयों की सुरक्षा पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटना कनाडा में निराश करने वाली हैं।