Monday, November 18, 2024
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जिनके पति का हुआ निधन, उनको कहा – मुस्लिम से निकाह करो, धर्मांतरण के लिए प्रोफेसर ने ही दी रेप की धमकी: जामिया में 1-2 नहीं, 27 हिंदुओं ने जो-जो झेला, सबने दी गवाही

जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ होने वाले बर्ताव को लेकर सामने आई रिपोर्ट हैरान करने वाली है। रिपोर्ट में पूरे 27 लोगों की गवाही को आधार बनाकर निष्कर्ष दिए गए हैं। इन 27 लोगों में यूनिवर्सिटी के टीचर, स्टाफ, छात्र और पूर्व छात्र शामिल हैं।

इनमें से कुछ ने यूनिवर्सिटी में हुए भेदभाव के बारे में दर्द साझा किया जबकि कुछ ऐसे थे जिन्होंने बताया कि कैसे यूनिवर्सिटी में उन्हें आगे बढ़ने के लिए इस्लाम कबूलने का दबाव बनाया जाता है और जो ऐसा नहीं करते उन्हें अनगिनत प्रताड़नाएँ दी जाती हैं।

‘कॉल फॉर जस्टिस’ की रिपोर्ट में भेदभाव से जुड़े इन 27 मामलों में कई घटनाएँ गैर मुस्लिमों के धर्मांतरण या धर्मांतरण के लिए डाले गए दबाव से ही संबंधित हैं। आइए संक्षेप में जानें कि जामिया में आखिर गैर-मुस्लिमों के साथ होता क्या है…

गवाह नंबर 1 के अनुसार वह जामिया में एक असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वह बताते हैं कि यूनिवर्सिटी में उन्हें मुसलमान बनाने की तमाम कोशिशें हुई। हालाँकि जब उन्होंने इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो उनके करियर को खराब करने के प्रयास होने लगे और उनका प्रमोशन तक रोक दिया गया।

गवाह नंबर 2, जो खुद को दलित समुदाय से आने वाली टीचिंग फैकल्टी सदस्य बताते हैं, उन्होंने कहा कि उनपर भी जामिया में धर्मांतरण का दबाव डाला गया। जब उन्होंने भी इस्लाम कबूलने से मना कर दिया तो उनके करियर में भी अड़ंगा लगाना शुरू हो गया। उन्हें जब केबिन मिला तो मुस्लिम स्टाफ ने इस तरह की बातें करनी शुरू कर दीं कि एक काफिर को केबिन मिल गया। इसके बाद उनपर केबिन खाली करने के दबाव डाले जाते थे।

गवाह नंबर 3, जो जामिया में महिला टीचिंग स्टाफ हैं, वह बताती हैं उन्होंने जामिया से ही अपनी M.ED की थी। उस समय प्रोफेसर ने उन्हें खुलेआम कहा था कि जब तक वो इस्लाम नहीं कबूलतीं तब तक वो अपनी डिग्री नहीं पूरी कर पाएँगी। फैकल्टी सदस्य के अनुसार, जिसने उन्हें ऐसी बात कही थी वो प्रोफेसर मौलाना आजाद नेशनल यूनिवर्सिटी की पूर्व कुलपति मोहम्मद मियाँ की बीवी हैं। इसके अलावा अन्य फैकल्टी सदस्य जैसे सारा बेगम और फरहाना खातून ने भी उन्हें इस्लाम कबूल करवाने की कोशिश की थी। जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनपर काम का भार बढ़ा दिया गया। हफ्ते में 24 पीरियड की जगह उन्हें 38 पीरियज दिए जाने लगे। इतना ही नहीं ये भी दबाव बनाया था कि वो मुस्लिम छात्रों को अच्छे नंबर दें। एक प्रोफेसर जिनका नाम अमुतुल हलीम था उसने तो यहाँ तक धमकी दी थी कि अगर इस्लाम नहीं कबूला तो उसका रेप हो सकता है, उसपर तेजाब फेंका जा सकता है या शायद उसे मार दिया जाए।

महिला फैकल्टी के अनुसार, जब उनके पति का निधन हुआ उसके बाद उनपर दबाव डाला गया कि वो मुस्लिम सहकर्मी से निकाह करें और धर्मांतरण कर लें। उन्होंने खुलासा किया कि यूनिवर्सिटी में एमएस कुरैशी जैसे मौलवी, जिनके पास पीएचडी तक न हो उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिया जाता है। वहीं तबस्सुम नकी जैसे मुस्लिम छात्र जिनके MED में नंबर भी न हों उन्हें पीएचडी में एडमिशन मिल जाता है।

गवाह 4, दलित-पिछड़ा समुदाय से आने वाले अन्य प्रोफेसर हैं। उन्होंने खुलासा किया कि उन्हें भी इस्लाम कबूलने को कहा गया था। हालाँकि जब उन्होंने इससे मना किया तो न केवल उनके खिलाफ झूठी शिकायतें लगाई गईं बल्कि उनका करियर भी खत्म करने का प्रयास हुआ।

गवाह 5, जो जामिया में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं उन्होंने बताया कि उन्हें भी मुसलमान बनाने की कोशिश हुई थी। हालाँकि जब उन्होंने किसी की नहीं सुनी तो उनसे कम उम्र के मुस्लिम साथियों को सीनियर बना दिया गया और उन्हें आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुँचाने की कोशिश हुई। उनका न केवल प्रमोशन रोका गया बल्कि उनके सम्मान को भी ठेस पहुँचाया गया।

गवाह 6 ने भी कहा कि यूनिवर्सिटी में उनका करियर बर्बाद करने का प्रयास हुआ और प्रमोशन लेट हुआ क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूलने से मना कर दिया था।

गवाह 7 का कहना है कि वो दलित-पिछड़ा वर्ग से आते हैं और उनको जामिया में कई तरह से प्रताड़ित किया गया। कभी उनसे चाय बनवाई गई तो कभी कप धुलवाए गए। इतना ही नहीं, झूठी शिकायतें भी उनके खिलाफ दायर करवा दी गईं। उन्हें इंसाफ के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति/जनजाति आयोग से मदद माँगनी पड़ी थी। बाद में जब हर मामले की जाँच हुई तो सब झूठ निकला, लेकिन उस हेडमास्टर को कोई सजा नहीं मिली।

गवाह 8, बताते हैं कि यूनिवर्सिटी में उन्हें इसलिए निशाना बनाया गया था क्योंकि एक तो उन्होंने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया था और दूसरा उन्होंने वंदे मातरम गीत चला दिया था। गवाह के अनुसार उनके राष्ट्रवादी होने की वजह से उन्हें अलग-अलग विभाग में पोस्ट किया जाता था जहाँ उनके लायक कोई काम तक न हो। उनके इंक्रीमेंट को रोक दिया गया और उन्हें जॉब से हटवाने के लिए फर्जी जाँच तक करवाई गई। आखिर में उन्हें काम से ही रिटायर करवा दिया गया। गवाह के अनुसार, उनके साथ एक आर्नेल कुमार था जिसने इस्लाम कबूल करके अब्दुल्ला नाम रख लिया था। यूनिवर्सिटी ने उसे प्रमोशन और लाभ दिए।

गवाह 9 के अनुसार, वो जामिया में सिक्योरिटी गार्ड थे, जब प्रशासन ने उन्हें पहले झूठे केस में जेल भिजवा दिया। फिर उनकी बीवी, बच्चों को मुस्लिम बनवा दिया। जब वो बाहर आए तो उन्हें भी फोर्स किया गया। हालाँकि उन्होंने दोबारा इस्लाम कबूलने से मना कर दिया।

गवाह 10, ने बताया कि वो 2015 में यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। उस समय जब उन्होंने पीएम मोदी से जुड़ा पोस्ट साझा किया तो जामिया छात्रों ने उन्हें निशाना बनाया। उन्हें उनकी वेशभूषा के लिए, कलावा पहनने के प्रताड़ित किया गया। इसके अलावा उन्हें गौमूत्र पीने और गोबर खाने वाला कहा गया।

गवाह 11, के अनुसार, वो जामिया के स्टाफ हैं और दलित-पिछड़ा वर्ग से आते हैं। उन्हें भी इस्लाम न कबूल करने पर बहुत कुछ झेलना पड़ा। उन्हें प्रताड़ित किया गया, झूठे इल्जाम लगाए गए, अलग-अलग जगह से धमकियाँ दी गईं। बाद में उन्होंने तंग आकर प्रोफेसर नाजिम हुसैन और शाहिद तस्लीम व नदीम हैदर के विरुद्ध एफआईआर कराई थी।

गवाह 12, ने बताया कि वो जामिया के पूर्व छात्र हैं और जैन धर्म को मानते हैं लेकिन यूनिवर्सिटी में उन्हें मुस्लिम बनाने की कोशिश हुई। वहीं उनके धर्म को गालियाँ दी गई। एक आदित्य नाम के छात्र को भी तीन मौलवियों ने इस्लाम कबूल करवाने की बहुत कोशिश की जिसमें एक मौलवी जामिया का ही था।

गवाह 13, ने बताया कि जामिया में जो इस्लाम कबूलने से मना करता है उसे तो यातनाएँ झेलनी पड़ती हैं लेकिन जो हिंदू कर्मचारी मुस्लिम बन जाता है उसे तमाम फायदे दिए जाते हैं। गवाह ने किसी चारू गुप्ता नाम की महिला का उदाहरण दिया जिसने MED के बाद इस्लाम कबूला तो उसे जामिया में प्राइमरी टीचर की नौकरी मिली वो भी पर्मानेंट। इसी तरह प्राची शुक्ला को भी जामिया में मुस्लिम बनने के बाद अपॉइंट किया गया।

गवाह 14, ने बताया कि वो इस बात की गवाह है कि उसकी सहेली भावना वशिष्ठ को दो मुस्लिम छात्र इस्लाम कबूल करवाना चाहते थे। भावना को इन्हीं कारणों से क्लास छोड़नी पड़ी। वहीं एक सिमरन सिंह जिसे इस्लाम में परिवर्तित करवाकर अलीगढ़ ले जाया गया। बाद में वो अलीगढ़ पुलिस की मदद से रिकवर की गई।

गवाह 15, ने बताया कि उन्होंने 2017-18 में जेएमआई के छात्रों के समूह द्वारा किए गए एक फेसबुक पोस्ट का विरोध किया था। उसके बाद वो जब एक दिन लाइब्रेरी से बाहर आए तो उन्हें घेरकर उनपर हमला किया गया। उन्होंने इस बाबत शिकायत भी दी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। गवाह के अनुसार, होस्टल में तबलीगी जमात के लोग आते थे जो हिंदू धर्म छोड़कर लोगों से इस्लाम कबूलने को गहते थे।

गवाह 16, ने बताया कि वो जामिया में पीएचडी छात्र हैं और उन्होंने फेलोशिप के लिए अप्लाई किया था, मगर मुस्लिम छात्रों को फेलोशिप मिल गई लेकिन उन्हें नहीं मिली। उलटा उन्हें ऑफिस के काम करने को कहा गया जबकि मुस्लिम छात्रों से ऐसा कुछ करने को नहीं कहा गया था।

गवाह 17, ने खुलासा किया जामिया के कई सीनियर प्रोफेसर जमात-ए-इस्लामी, स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के साथ करीब से जुड़कर काम करते हैं जबकि इन संगठनों का काम ही गैर-मुस्लिमों को मुस्लिम बनाकर देश को इस्लामी मुल्क बनाना बै।

गवाब 18, ने अपने बयान में बताया कि वह जामिया में भारतीय संस्कृति और सभी धर्मों के बारे में पढ़ने गए थे। हालाँकि वहाँ हिंदू धर्म, बुद्धा धर्म, जैन धर्म के बारे में एक हफ्ते में पढ़ा दिया गया जबकि बाकी पाँच महीना सिर्फ इस्लाम पढ़ाया गया। इस दौरान सभी धर्मों को तुच्छ बताया गया और कहा गया कि अगर जीवन में शांति चाहिए तो इस्लाम कबूलें। इसके अलावा एक हिंदू छात्रा को हिजाब भी पहनने को कहा गया

गवाह 19, ने बताया कि जामिया में मुस्लिम छात्र गैर मुस्लिमों पर कुरान पढ़ने, हदीस पढ़ने का दबाव डालते हैं और कहते हैं कि हर अन्य धर्म इस्लाम से छोटा है। रमजान के वक्त तो क्लास ही मुस्लिम छात्रों की सहूलियत के हिसाब से चलती है। गवाह के अनुसार, अगर यूनिवर्सिटी में कोई लिबरल मुस्लिम भी होगा तो वो कट्टरपंथियों की संगत में कट्टरपंथी हो ही जाता है।

गवाह 20, ने बताया कि वो पीएचडी में एडिमशन लेना चाहते थे, लेकिन प्रोफेसर नजीम हुसैन जाफरी ने कहा कि अगर वो इस्लाम कबूलेंगे तो ही उन्हें पीएचडी में एडमिशन मिलेगा और एक-दो साल में असिस्टेंट प्रोफेसर भी बना दिए जाएँगे। गवाह के अनुसार, उन्होंने प्रोफेसर अल्ताफ हुसैन को एक लड़की का यौन उत्पीड़न करते भी देखा। हालाँकि लड़की जब दबाव के बावजूद मुस्लिम नहीं बनी तो उसे यूनिवर्सिटी छोड़नी पड़ी। इसी तरह एक नवनीत नाम की लड़की को भी मुस्लिम बनाया गया था।

गवाह 21, जामिया में पढ़ाई कर रहे छात्र ने बताया कि पहले दिन से उन्हें यहाँ भेदभाव झेलना पड़ रहा है। उन्हें एडमिशन के वक्त कहा गया मुस्लिमों के लिए सिर्फ जामिया और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ही है, फिर भी हिंदू यहाँ आ जाते है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि जामिया में उन्हें दीवाली मनाने से भी रो गया और धमकाया गया कि अगर हिंदूवादी प्रोग्रामों का हिस्सा रहे तो कभी पीएचडी पूरी नहीं होगी। छात्र ने यह भी बताया कि रमजान में हिंदू छात्रों को उनके साथ पानी तक लाने नहीं दिया जाता। होली मनाने पर मुस्लिम छात्र नारा-ए-तकबीर और अल्लाहू अकबर के नारे लगाते हैं।

गवाब 22, जामिया के पूर्व कर्मचारी ने बताया कि उन्हें भी मुस्लिम बनाने के प्रयास हुए थे। उन्होंने कहा कि सर्विस के वक्त अगर कोई हिंदू कर्मचारी की मौत हो गई तो फिर उसकी पेंशन, उसके मुआवजे को हमेशा लेट किया जाता था। अनुसूचित जाति के लोगों को कोशिश होती थी कि मुस्लिम बना दिया जाए। हाल ये हैं कि जामिया में भेदभाव इस कदर है कि कक्षा 1-2 में दाखिला भी लकी ड्रॉ से तय होता है ताकि कोई हिंदू दाखिला न ले ले।

गवाह 23, साल 2012 में सुपरवाइजर बनने के बाद भी उनकी असली पहचान यूनिवर्सिटी में नहीं दिखाई जाती थी। वो देखती थीं कि जब कोई हिंदू वहाँ नमस्ते कहता है तो तुरंत उसे सलाम कहकर जताया जाता है कि वो एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी है।

गवाह 24, जामिया मिलिया के पूर्व एम्प्लॉय ने बताया कि जामिया में उनके रिश्तेदार अजय को इस्लाम कबूल करवाया गया था। वहीं एक सफाई कर्मचारी भी मुसलमान बन गया था। क्लास-4 के कर्मचारियों को भी 5 लाख रुपए देकर धर्मांतरित कराया गया था। वहीं क्लास 3 के कर्मचारियों को प्रमोशन का लालच देकर

गवाह 25, जामिया की पूर्व छात्रा ने बताया कि अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने देखा कि कैसे छात्राओं को इस्लाम कबूलने को कहा जाता था। उनके मुस्लिम कल्चर, मुस्लिम साहित्य और नमाज पढ़ने पर उनसे इकोसिस्टम खुश रहतालथा

गवाह 26, एक पूर्व कश्मीरी छात्रा जिन्हें कश्मीर मामले में थीसिस जमा करनी थी, मगर चूँकि आयशा नाम की क्लर्क उनके लिए टॉपिक से नाखुश थी इसलिए उसने वो थीसिस जमा करने में ही लेट करती रही। इसके अलावा छात्रा ने बताया कि होस्टल में वो मुस्लिम के साथ रहती थीं जो उन्हें उनके देवी-देवता की मूर्ति भी कमरे में नहीं लगाने देती थी।

गवाह 27, जामिया की पूर्व छात्रा ने बताया कि वहाँ हिंदू लड़कियों को टारगेट बनाया जाता है। उन्हें मुस्लिमों के साथ रिश्ते में आने का दबाव होता है और फिर उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने के प्रयास होते हैं। छात्रा के अनुसार, उन्होंने खुद ये सब झेला था जिसके कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा।

एक अन्य मामले का जिक्र जो इस रिपोर्ट में पढ़ने को मिलता है वो हरषिता नाम की लड़की का है। लड़की ने सोशळ मीडिया पर बताया कि कैसे जामिया में उसे प्रताड़ित किया गया। उस पर इस्लामी वेशभूषा में रहने और धर्मांतरण करने का दबाव डाला गया।

गौरतलब है कि रिपोर्ट कहती है कि जामिया मिलिया इस्लामियों से जुड़े इतने मामले होने के बावजूद ऐसे केसों को जामिया मिलिया पुलिस थाने में दर्ज नहीं किया जाता क्योंकि अहम पयाम सिद्दीकी नाम का आईपीएस ऑफिसर जानिया में रजिस्ट्रार है। वो किसी को जामिया के खिलाफ या उसके प्रशासनिक स्टाफ के खिलाफ थाने में शिकायत नहीं दर्ज करने देता।

ये भी मालूम हो कि जो छात्र जामिया में ऐसी घटनाओं पर आवाज उठाने हैं उन्हें आरएसएस सदस्य कह दिया जाता है, सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाना है। जतिन जैन नाम का लड़का इसका उदाहरण है जिसने इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई तो उसकी कंप्लेन लिखे जाने की जगह उसे आरएसएस वाला बता दिया गया। पुलिस ने तब भी उसकी एक नहीं सुनी जब उसके हाथ पर मुस्लिम छात्रों की हिंसा के कारण चोट आई। उलटा उसी के विरुद्ध जाँच बैठा दी गई।

‘गालीबाज’ देवदत्त पटनायक का संस्कृति मंत्रालय वाला सेमिनार कैंसिल: पहले बनाया गया था मेहमान, विरोध के बाद पलटा फैसला

केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करने वाली साहित्य अकादमी ने देवदत्त पटनायक को भारतीय पुराणों पर सेमिनार के उद्घाटन भाषण के लिए आमंत्रित किया था, जिसका महिलाओं को गालियाँ देने का लंबा अतीत रहा है। हालाँकि विरोध के बाद इस कार्यक्रम को फिलहाल के लिए कैंसिल कर दिया गया। साहित्य अकादमी ने कहा है कि इस कार्यक्रम के आयोजन के बारे में सूचना आगे दी जाएगी।

अपने आमंत्रण पत्र में साहित्य अकादमी ने देवदत्त पटनायक को ‘महत्वपूर्ण माइथॉलॉजिस्ट’ बताया, और उसके विवादास्पद बयानों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया।

हालाँकि देवदत्त को मेहमान बनाए जाने का सोशल मीडिया पर तीखा विरोध हुआ। इस मामले में साहित्य अकादमी के सेमिनार को स्थगित करने के निर्णय पर शेफाली वैद्य ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने देवदत्त को मेहमान बनाए जाने का खुलकर विरोध किया था।

बता दें कि हिंदू ग्रंथों में छेड़छाड़ के अलावा भी पटनायक ट्विटर (अब एक्स) पर महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा से जुड़ी टिप्पणियाँ करता रहा है, ताकि वो अपने विरोधियों की आवाज को दबाकर उन बहसों में खुद को जीता साबित कर सके।

पटनायक “मैं तेरी माँ से पूछ लूँगा”, “वो कुत्ती बेशर्म है… BDSM, बिच स्लट” जैसी गाली-गलौज करते हुए महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करता रहा है।

देवदत्त पटनायक के ट्वीट का स्क्रीनशॉट
देवदत्त पटनायक के ट्वीट का स्क्रीनशॉट

देवदत्त पटनायक कई बार हिंदू प्रथाओं का मजाक उड़ाता रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी अपमान कर चुका है।

देवदत्त पटनायक के ट्वीट का स्क्रीनशॉट

देवदत्त पटनायक का अतीत एंटी-हिंदू ट्वीट्स करने का रहा है। वो उन लोगों का मजाक उड़ाता रहा है, जो उसके हिंदू विरोधी वामपंथी विचारधारा के खिलाफ बोलते हैं।

स्वघोषित माइथॉलॉजिस्ट को अक्सर सनातन धर्म के इतिहास पर अजीबोगरीब टिप्पणियाँ करने के कारण विवादों में फंसते देखा गया है।

जुलाई 2020 में उसने नेपाल के प्रधानमंत्री का दावा दोहराया कि भगवान राम नेपाल से थे और भारत को ‘बंदरों की जमीन’ कहा, साथ ही भगवान हनुमान का भी मजाक उड़ाया था।

वो अक्सर सोशल मीडिया पर उन लोगों के खिलाफ गंदे शब्दों का इस्तेमाल करता है, जो उसके विचारों से असहमत होते हैं।

नाथूराम गोडसे का शव परिवार को क्यों नहीं दिया? दाह संस्कार और अस्थियों का विसर्जन पुलिस ने क्यों किया? – ‘नेहरू सरकार का आदेश’ है सारे सवालों का जवाब

महात्मा गाँधी की हत्या भारतीय इतिहास की एक अत्यंत विवादास्पद घटना रही है। यह घटना 30 जनवरी 1948 को घटी, जब नाथूराम गोडसे ने दिल्ली में बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा के दौरान गाँधीजी पर तीन गोलियाँ चलाईं। यह सुनियोजित षड्यंत्र था, जिसे गोडसे और उसके सहयोगियों ने अंजाम दिया। नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को महात्मा गाँधी की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई, लेकिन इस दौरान दिल्ली से लेकर अंबाला तक जो कुछ भी हुआ, उसका बहुत कम ही ब्यौरा सामने आ पाया है।

दरअसल, नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी देने के बाद जेल के अंदर ही गुपचुप तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। यह प्रक्रिया अत्यधिक गोपनीय तरीके से की गई और इसके लिए ‘दिल्ली’ से विशेष निर्देश आए थे। जिलाधिकारी की टीम ने गोडसे और आप्टे के शवों का दाह संस्कार किया और उनकी अस्थियाँ एकत्रित कीं। इन अस्थियों को एक बख्तरबंद वाहन में रखकर घग्गर नदी के एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया, जहाँ उन्हें प्रवाहित किया गया। इस दौरान पुलिस का एक वाहन भी सुरक्षा के लिए साथ था। प्रशासन ने सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया के दौरान कोई बाहरी व्यक्ति वहाँ मौजूद न हो, ताकि अस्थियाँ किसी के हाथ न लग सकें। इसके लिए नदी के एक ऐसे स्थान का चयन किया गया था, जहाँ से अस्थियों का पुनः प्राप्त करना असंभव हो।

नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के साथ ये ठीक उसी तरह से हुआ, जैसा आजादी से पहले सरदार भगत सिंह और उनके साथियों के साथ अंग्रेजों ने किया था। ब्रिटिश प्रशासन ने उनके शवों को गुपचुप तरीके से सतलुज नदी के किनारे जलाया था और अधजली अस्थियाँ नदी में फेंक दी थीं। नाथूराम गोडसे के मामले में भी, उसी तरह का गुप्त और शीघ्र निर्णय देखने को मिला। यह प्रक्रिया दिखाती है कि स्वतंत्र भारत के प्रशासन ने ब्रिटिश सरकार के तरीकों को अपनाया, जो एक विडंबना है। ऐसा आदेश कौन दे सकता था? वही, जिसकी सरकार हो और उस समय प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू। तो जवाहरलाल नेहरू और अंग्रेजों में जरा भी फर्क नहीं था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर सवाल उठता है कि क्या उनके प्रशासन ने इस तरह के निर्देश देकर गोडसे के मामले को अंग्रेजों के समान ही कठोरता से निपटाया था।

वैसे, दिल्ली से मिले आदेशों के मुताबिक आजाद भारत में नाथूराम गोडसे की अंतिम इच्छा का सम्मान करने की कोशिश तक नहीं की गई, बल्कि उसे दबाने और मिटाने की कोशिश की गई। वो तो भला हो, हिंदू महासभा के अत्री नाम के कार्यकर्ता का, जो उनके शव के पीछे-पीछे गए थे। उनके शव की अग्नि जब शांत हो गई तो, उन्होंने एक डिब्बे में उनकी अस्थियाँ समाहित कर लीं थीं। उनकी अस्थियों को अभी तक सुरक्षित रखा गया है।

15 नवंबर 1949 को जब नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी के लिए ले जाया गया तो उनके एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा ध्वज। फाँसी का फंदा पहनाए जाने से पहले उन्होंने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया और नारे लगाए। आज भी गोडसे की अस्थियाँ सुरक्षित रखी गई हैं। हर 15 नवंबर को गोडसे सदन में शाम छह से आठ बजे तक कार्यक्रम होता है जहाँ उनके मृत्यु-पत्र को पढ़कर लोगों को सुनाया जाता है।

नाथूराम गोडसे की आखिरी इच्छा थी कि उनकी राख सिंधु नदी में विसर्जित की जाए। हालाँकि, उनकी यह इच्छा अभी पूरी नहीं हुई है। गोडसे की अस्थियाँ पुणे के शिवाजी नगर इलाके में एक दफ़्तर में रखी हैं। दफ़्तर के मालिक और गोडसे के भाई के पोते अजिंक्य गोडसे के मुताबिक, अस्थियों का विसर्जन सिंधु नदी में तभी होगा, जब उनका अखंड भारत का सपना पूरा हो जाएगा। नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर के मुताबिक, उनकी अस्थियों को सिंधु में ही प्रवाहित किया जाए, भले ही इसमें 3-4 पीढ़ियों तक का समय क्यों न लग जाए।

बताया जाता है कि 15 नवंबर 1949 को गोडसे को फाँसी दिए जाने से एक दिन पहले परिजन उससे मिलने अंबाला जेल गए थे। गोडसे की बेटी, भतीजी और गोपाल गोडसे की पुत्री हिमानी सावरकर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह फाँसी से एक दिन पहले अपनी माँ के साथ उनसे मिलने अंबाला जेल गई थी। उस समय वह ढाई साल की थी।

गिरफ़्तार होने के बाद नाथूराम गोडसे ने गाँधी के पुत्र देवदास गाँधी (राजमोहन गाँधी के पिता) को तब पहचान लिया था, जब वे गोडसे से मिलने थाने पहुँचे थे। इस मुलाकात का जिक्र नाथूराम के भाई और सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब गाँधी वध क्यों, में किया है। गोपाल गोडसे ने अपनी किताब में लिखा है, देवदास शायद इस उम्मीद में आए होंगे कि उन्हें कोई वीभत्स चेहरे वाला, गाँधी के खून का प्यासा कातिल नजर आएगा, लेकिन नाथूराम सहज और सौम्य थे। उनका आत्मविश्वास बना हुआ था। देवदास ने जैसा सोचा होगा, उससे एकदम उलट।

नाथूराम ने देवदास गाँधी से कहा, “मैं नाथूराम विनायक गोडसे हूँ। आज तुमने अपने पिता को खोया है। मेरी वजह से तुम्हें दुख पहुँचा है। तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुँचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है। मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है और ना ही कोई ख़राब भाव।” देवदास ने तब पूछा, “तब तुमने ऐसा क्यों किया?” जवाब में नाथूराम ने कहा- “केवल और केवल राजनीतिक वजह से।” नाथूराम ने देवदास से अपना पक्ष रखने के लिए समय माँगा लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं करने दिया।

इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत में गोडसे ने स्वीकार किया था कि उन्होंने ही गाँधी को मारा है। अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा, “गाँधी जी ने देश की जो सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूँ। उनपर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था किंतु जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है। गाँधी जी ने देश को छल कर देश के टुकड़े किए। क्योंकि ऐसा न्यायालय और कानून नहीं था जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गाँधी को गोली मारी।”

अदालत में नाथूराम ने अपना बयान दिया था, जिस पर अदालत ने पाबंदी लगा दी, हालाँकि अब सबकुछ किताब की शक्ल में बाहर आ चुका है और सारी दुनिया गोडसे के बयान को पढ़, समझ और जान चुकी है।

बहरहाल, नाथूराम गोडसे का नाम भारतीय इतिहास में हमेशा एक विवादास्पद व्यक्ति के रूप में रहेगा। उनके कार्य, विचारधारा और उनके अंतिम क्षणों की कहानी ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने में गहरी छाप छोड़ी है। गोडसे के अंतिम संस्कार की गोपनीय प्रक्रिया और उनकी अस्थियों का रहस्य बताता है कि इस मामले में किस तरह से प्रशासन ने अत्यधिक सावधानी बरती।

पटाखे बुरे, गाड़ियाँ गलत, इंडस्ट्री भी जिम्मेदार लेकिन पराली पर नहीं बोलेंगे: दिल्ली के प्रदूषण पर एक्शन के लिए ‘लिबरल’ दिमाग के जाले साफ़ करना जरूरी

देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण का मौसम आ गया है। आज से 10 वर्ष पूर्व इसे ठंड का मौसम कहा जाता था, जिसकी शुरुआत रातरानी के फूलों की महक के तेज होने और शरीर में लगने वाली हलकी झुरझुरी से होती थी। अब यह ट्रेंड बदल गया है।

अब यह मौसम अपने आने का ऐलान दिल्ली को धुंध की चादर में लपेट कर और लोगों को सांस लेने दिक्कत और आँख में जलन का उपहार देकर करता है। जब मीडिया और सोशल मीडिया में ‘पराली, स्मॉग, प्रदूषण, विजिबिलिटी और AQI’ जैसे शब्द सुनाई देने लग जाएँ तो समझ जाइए कि कभी ठंड कहे जाने वाले मौसम का आगमन हो चुका है।

दिल्ली में प्रदूषण के साथ ही AQI का रोजनामचा आने लगा है। आज 15 नवम्बर, 2024 है। आज के दिन दिल्ली के आनंद विहार, चाणक्यपुरी और बाकी इलाकों में AQI का स्तर सुबह 400 के पार था जो कि दिन चढ़ते-चढ़ते 300 से नीचे आ गया। अँधेरा होते ही फिर ऊपर चला जाएगा। दिन में दिल्ली के AQI मीटर डाटा तक नहीं दिखा रहे।

दिल्ली-NCR में प्रदूषण को रोकने की खातिर CAQM नाम के सरकारी विभाग ने GRAP-3 नियम लागू कर दिए हैं। इसके तहत अब सड़कों पर BS-III वाहन बिलकुल नहीं चलेंगे जबकि BS-IV स्टैण्डर्ड के डीजल वाहनों के चलने पर भी रोक है। हर प्रकार की निर्माण गतिविधि भी प्रतिबंधित कर दी गई है।

इन नियम कानूनों से प्रदूषण को कितना फर्क पड़ता है, यह सबको पता है। दिल्ली में प्रदूषण कोई नई बात नहीं है। पिछले कम से कम 10 सालों से कमोबेश यही स्थिति चली आ रही है। हर साल इस पर हो हल्ला होता है और फरवरी-मार्च आते-आते लोग वापस निद्रा में चले जाते हैं।

प्रदूषण रोकने के लिए छोड़ना होगा ‘दोगलापन’

यह काफी कठोर शब्द है लेकिन दिल्ली में प्रदूषण रोकना है, तो सबसे पहले उन लोगों को दोगलापन छोड़ना होगा, जो अपने आप को पर्यावरणविद कहते हैं। जब भी आप प्रदूषण को लेकर बहस सुनते हैं तो सबसे पहले नाम दिवाली के पटाखों का आता है। इसके बाद गाड़ियों का और फिर उद्योग धंधों का।

इस जमात के लोग दिवाली के पटाखों पर रोक लगवाते हैं, इसको लेकर याचिकाएँ लगाते हैं। क्योंकि वह हिन्दू त्यौहार का हिस्सा हैं। बता दिया जाता है कि किसी भी शास्त्र में नहीं लिखा दिवाली पर पटाखे जलाए जाएँ। खूब शोर मचाया जाता है। गाड़ियों पर तुरंत रोक लगवा दी जाती है। क्योंकि इसे उपयोग करने वाला मिडिल क्लास है।

वह भी समस्या सह लेगा लेकिन सड़क पर उतर कर हंगामा नहीं करेगा। उद्योग धंधे तो आम तौर पर भारत में हर नेता और बुद्धिजीवी के निशाने पर रहते ही हैं। इस मामले में भी उन्हें दोषी बना दिया जाता है। उनको बंद करने की माँग कर दी जाती है।

लेकिन एक मुद्दा है, जिस पर कभी आपको बुद्धिजीवी वर्ग लेख लिखते, चर्चाएँ और गोष्ठियाँ करते और सोशल मीडिया पर प्रलाप करते हुए नहीं दिखेगा। यह है पराली का जलना। इस पर आपको बुद्धिजीवी वर्ग कभी ना विरोध करता मिलेगा और ना ही इसे दोषी ठहराएगा।

इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि नवम्बर माह में दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएँ का हिस्सा 30% के पार था। यह दिन के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है। यानि हम जो आज दिल्ली में स्मॉग देख रहे हैं इसका बड़ा जिम्मेदार पंजाब-हरियाणा से आने वाली हवा है। इसमें भी पंजाब में कहीं कहीं अधिक मात्रा में पराली जली है।

लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग इस पर नहीं लिखता क्योंकि उसे पता है कि इस पराली जलाने वाले वर्ग के पास स्ट्रीट पॉवर है। वह दिल्ली की सीमाएँ जाम कर सकता है, किसानी के नाम पर लालकिले पर चढ़ सकता है, महीनों तक पंजाब और हरियाणा के बीच सड़कों को बंद कर सकता है।

पंजाब में 2024 में पराली जलाने की 7500 से अधिक घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। यह आँकड़े पंजाब सरकार के ही हैं। एक और आँकड़ा बताता है कि 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में पंजाब का हिस्सा 93% था। पंजाब में हरियाणा के मुकाबले कम से कम 15 गुना अधिक पराली जलाई गई थी।

लेकिन फिर भी इसके खिलाफ एक्शन लेने से सरकारें बचती हैं। दिखावे के लिए कुछ लोग पकड़े जाते हैं, कुछ पर जुर्माना लगता है लेकिन कमोबेश स्थिति वही रहती है। इसके पीछे मुद्दा वोट का है। यदि वह एक्शन ले लेंगी तो वोट जाने का खतरा है।

तेरा-मेरा वाली राजनीति भी जिम्मेदार

प्रदूषण क्यों नहीं रुकता, इसके लिए तेरा-मेरा वाली राजनीति जिम्मेदार है। दिल्ली के भीतर प्रदूषण रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी आम आदमी पार्टी सरकार की आती है। लेकिन खुले में जलते कूड़े का प्रबंधन करने, दिल्ली में निर्माण गतिविधि को सही से नियमित करने और कोयला जलना रोकने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त है।

जब पंजाब में AAP की सरकार नहीं थी तब वह पंजाब-हरियाणा पर पूरा दोष डालती थी। जब पंजाब में उसकी सरकार बन गई तो उसके निशाने पर हरियाणा और यूपी की बसें और पराली आ गईं। वह खुद एक्शन लेने के बजाय केंद्र सरकार को अब जिम्मेदार ठहराती है।

IIT कानपुर कि एक रिपोर्ट बताती है कि यदि दिल्ली में 9000 रेस्टोरेंट के भीतर तंदूरों में जल रहे कोयले को रोका जाए, कूड़ा जलाना बंद किया जाए, रेत और मौरंग जैसे मैटेरियल ढंके जाएँ, कंक्रीट बनाते समय पानी छिड़का जाए और कूड़े को जलाने समेत ऐसे ही 10 एक्शन लिए जाएँ तो दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 100 के नीचे आ सकता है।

लेकिन यह सब करने के बजाय दिल्ली की AAP सरकार इस बात में ज्यादा विश्वास रखती है कि वह जिम्मेदारी से बच जाए। इसका एक और उदाहरण NGT की एक रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में यमुना नदी 54 किलोमीटर बहती है। इसमें 22 किलोमीटर का हिस्सा पूरी यमुना में मिलने वाली 76% गंदगी का जिम्मेदार है।

ऐसे में यदि दिल्ली सरकार यमुना की ही सफाई पर काम कर ले तो हम हर साल छठ पर झाग की तस्वीरें ना देखें। लेकिन जब आप यमुना पर AAP सरकार से प्रश्न करेंगे तो वह कहेगी कि केंद्र सरकार ने क्या किया, नमामि गंगे का क्या हुआ, यह नहीं बताएगी कि आखिर उसने क्या काम किया।

यदि यह राजनीति ना हो और इस पर केंद्र तथा राज्य सरकार मिल कर काम करें तो हमें दिल्ली में सर्दियों में साफ़ आसमान देखने को मिल सकता है। चीन ने बीजिंग समेत कई शहरों में यह कर दिखाया है। यदि ईमानदारी से काम हो तो दिल्ली भी रहने लायक हो सकती है।

माँग का सिंदुर धुलवा गंगा में हिंदुओं का हो रहा था सामूहिक धर्मांतरण: बिहार के बक्सर में 3 पादरी गिरफ्तार, सिर पर क्रॉस का ठप्पा लगा बना रहे थे ईसाई

बिहार के बक्सर में हिंदुओं का ईसाई में सामूहिक धर्मांतरण कराने का मामला सामने आया है। यहाँ दो पादरी (कुछ रिपोर्ट में तीन) पर 50 से 60 हिंदू महिला एवं पुरुषों को ईसाई बनाने का मामला सामने आया है। इसका एक वीडियो भी सामने आया है। इसमें दिखकर रहा है कि पादरी महिलाओं को गंगा में नहवाने के बाद उनकी माँग से सिंदूर धुलवा रहे हैं और फिर उनके सिर पर क्रॉस बनवा रहे हैं।

वीडियो सामने आने के बाद हिंदू संगठनों ने जबरदस्त विरोध किया। इसको बाद पुलिस ने दोनों पादरी को गिरफ्तार कर लिया है। पादरी का कहना है कि सभी व्यक्ति अपनी मर्जी से आए थे और बाइबिल पढ़कर उन्होंने खुद धर्मांतरण का निर्णय लिया है। यह मामला गुरुवार (14 नवंबर 2024) को सामने आए सिमरी थाना के नगपुरा गाँव की महावीर गंगा घाट का है।

इनमें से एक पादरी सैमुएल तमिलनाडु से आया था, वहीं दो पादरी- राजू राम मसीह और राजीव रंजन राम बिहार के रहने वाले हैं। भोजपुर के रहने वाले दलित समाज के पादरी राजू राम ने बताया कि उनके पास कई लोग आए और उन्होंने अपनी बीमारियों के बारे में बताया। राजू राम ने कहा, “हमने उन्हें कहा कि आप दवाई लीजिए। मैं जीसस से प्रार्थना करूँगा कि आपकी बीमारी ठीक हो जाए।”

पादरी राजू राम ने आगे बताया, “जिनके कष्ट दूर हुए, वे अपनी मर्जी से हमारा धर्म अपनाना चाहते हैं। वे आए तो हमने उन्हें बाइबिल के बारे में बताया। उन्हें ईसाई धर्म के बारे में शिक्षा दी। हमने किसी पर दबाव नहीं डाला। ये सारे लोग अपनी मर्जी से यहाँ आए थे।” उन्होंने कहा, “इसलिए हम पुलिस से माँग करेंगे की निष्पक्ष जाँच हो, क्योंकि जिसे जो धर्म अपनाना है वो अपना सकता है।”

सिमरी थानाध्यक्ष कमल नयन पांडेय के अनुसार, प्राथमिक पूछताछ में पता चला है कि इनमें से सभी लोग गाँवों से आए हुए हैं। इन्हें गंगा घाट पर बाइबिल के अनुसार गुरु दीक्षा के लिए लाया गया था। स्थानीय प्रशासन ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए चेतावनी दी है कि धर्मांतरण कानून का उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

वहीं, भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने कहा कि पहले आदिवासियों के साथ छेड़छाड़ किया गया। अब गरीबों को प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून लाने की आवश्यकता है। हर जिला इससे परेशान है। चमत्कार दिखाकर, स्वास्थ्य और शिक्षा के नाम पर परिवर्तन करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

थीसिस पेश करने से लेकर, डिग्री पूरी होने तक… जानें जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ होता है कैसा बर्ताव, सामने आई रिपोर्ट

दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुसलमानों के साथ होने वाले भेदभाव और उनपर डाले जाने वाले धर्मांतरण के दबाव को लेकर एक 65 पेज की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट सामने आई है। ये रिपोर्ट ‘कॉल फॉर जस्टिस’ ट्रस्ट की छह सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम द्वारा तैयार की गई है जिसमें गैर मुस्लिम फैकल्टी, छात्र, पूर्व छात्र और कर्मचारी से बात करके निष्कर्ष दिए गए हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार एक गैर मुस्लिम महिला सहायक प्रोफेसर ने बताया कि उन्होंने यूनिवर्सिटी में शुरू से ही भेदभाव महसूस किया जहाँ मुस्लिम कर्मचारी गैर मुसलमानों के साथ दु‌र्व्यवहार और भेदभाव करते थे। उन्होंने बताया कि पीएचडी थीसिस प्रस्तुत करते समय मुस्लिम क्लर्क ने उन पर अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं और कहा कि वह कुछ भी हासिल नहीं कर पाएँगी।

इसी तरह दलित समुदाय से संबंध रखने वाले फैकल्टी सदस्य ने बताया कि जब उनको कॉलेज में अपना केबिन अलॉट हुआ तो उन्हें मुस्लिम कर्मचारियों ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि प्रशासन ने एक काफिर को केबिन दे दिया।

अगले मामले में एक अनुसूचित जनजाति के एक पूर्व छात्र ने बताया था कि कैसे Med पूरा करने के दौरान एक मुस्लिम शिक्षक ने उनसे क्लास में कहा था कि जब तक वह इस्लाम का पालन नहीं करते, उसकी MED पूरी नहीं होगी। उसके सामने ऐसे छात्रों का उदाहरण रखा गया जिनके मतांतरण करने के बाद अच्छा व्यवहार होने लगा।

बता दें कि कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट की फैक्ट फाइंडिंग टीम द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट को निष्कर्ष तक पहुँचने में 3 महीने से ज्यादा का समय लगा। वहीं इसे तैयार दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा के नेतृत्व में किया गया। छह सदस्यीय इस फैक्ट फाइंडिंग टीम में दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एसएन श्रीवास्तव भी शामिल थे। रिपोर्ट तैयार होने के बाद टीम सदस्यों ने इसकी सूचना गृह मंत्री (राज्य) नित्यानंद राय को दी।

बांग्लादेश में संविधान का ‘खतना’: सेक्युलर, समाजवादी जैसे शब्द हटाओ, मुजीब से राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीनो – सबसे बड़े सरकारी वकील ने दिया सुझाव

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद देश के इस्लामीकरण की तैयारी हो रही है। बिना किसी चुनाव के सत्ता चला रही युनुस सरकार बांग्लादेश के संविधान से ‘सेक्युलर’ शब्द निकालने की तैयारी कर रही है। युनुस सरकार इसी के साथ बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने वाले बंगबंधु मुजीबुर्रहमान का राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीनना चाहती है। यह बात खुले तौर पर बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल ने देश के हाई कोर्ट में कही है।

क्या है युनुस सरकार का प्लान?

युनुस सरकार में अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्ज़माँ ने हाई कोर्ट में देश के संविधान से ‘सेक्युलर’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की वकालत की है। उन्होंने यह बात हाई कोर्ट में संविधान के 15वें संशोधन पर हो रही बहस के दौरान दिया है। युनुस सरकार बांग्लादेश के संविधान का 15वां संशोधन रद्द करना चाहती है। असदुज्ज्माँ ने कहा, “हम चाहते हैं कि संविधान से ‘सेक्युलर’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटा दिए जाएँ… ‘समाजवाद’ नहीं, बल्कि ‘लोकतंत्र’ राज्य की नीति का मूल सिद्धांत हो सकता है।”

असदुज्जमाँ ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद करवाने की लड़ाई के हीरो, पहले राष्ट्रपति और तख्तापलट से हटाई गईं प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता मुजीबुर्रहमान को ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा दिए जाने का भी कोर्ट में विरोध किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें 15वें संविधान संशोधन से यह दर्जा मिला है, जो ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि इसको लेकर गंभीर बहस चल रही है।

कैसे सेक्युलर बना था बांग्लादेश, क्या है 15वाँ संशोधन?

15वाँ संविधान संशोधन 2011 में शेख हसीना की सरकार लेकर आई थी। इस संविधान संशोधन के जरिए ही सेक्युलर और समाजवादी शब्द जोड़े गए थे। इसके साथ ही इसी संविधान संशोधन से मुजीबुर्रहमान को राष्ट्रपिता घोषित किया गया था। इस संशोधन के जरिए सत्ता पर असंवैधानिक तरीकों से कब्ज़ा किया जाना भी अवैध करार दे दिया गया था। इसके अलावा इस संशोधन के जरिए अस्थायी सरकार बनाए जाने का नियम खत्म कर दिया था।

15वाँ संविधान संशोधन उन लोगों पर भी चुनाव लड़ने की रोक लगाता है जिनको 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की मदद और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए सजा मिली हो। इस संशोधन में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर भी प्रावधान किए गए थे। देश में सत्ताधारी अपनी मनमानी ना कर पाएँ, इसके लिए आपताकाल की अधिकतम सीमा भी 120 दिनों के लिए ही कर दी गई थी। अब युनुस सरकार इसी संविधान संशोधन को खत्म करना चाहती है।

क्या इस्लामी मुल्क बनाने की तैयारी में है युनुस सरकार?

अब जब युनुस सरकार 15वाँ संशोधन खत्म करने की तैयारी में है। इसको लेकर बांग्लादेश में हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई है। युनुस सरकार सरकार याचिका लगाने वालों के पक्ष में है। उसके तरफ से वकीलों की फ़ौज खड़ी करके इस संशोधन को असंवैधानिक करार दिए जाने की कोशिश हो रही है। युनुस सरकार की कोशिशों का सीधा अर्थ यह है कि वह बांग्लादेश को इस्लामी बहुलवाद वाला एक देश बनाना चाहती है और यह भी संभव है कि वह आगे चल कर सेक्युलरिज्म हटा कर इस्लाम को देश का आधिकारिक धर्म घोषित कर दे।

यदि वह आधिकारिक तौर पर इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म नहीं भी घोषित करती तो भी सेक्युलर शब्द हटाए जाने के बाद इस्लामी उसूलों को थोपना आसान हो जाएगा। समस्या सिर्फ यहीं नहीं रुकती है। मुजीबुर्रहमान से राष्ट्रपिता का दर्जा छीनना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। यह दिखाता है कि वह उस आदमी के योगदान को भुलाना चाहती है जिसने करोड़ों बंगालियों को पाकिस्तान के अत्याचार से बचाया। मुजीब के राष्ट्रपिता रहते हुए देश को इस्लामीकरण की तरफ ले जाना मुश्किल होगा, क्योंकि इस्लामीकरण के यह सिद्धांत, मुजीब के सिद्धांतों के एकदम उलट दिखेंगे।

इसके अलावा इस संशोधन के खत्म होने से युनुस सरकार को संवैधानिक दर्जा भी मिल सकेगा और वह कार्यवाहक के नाम पर बिना आम जनता से चुने हुए देश को नियंत्रित कर सकेंगे। यदि यह संशोधन खत्म हुआ तो देश के अल्पसंख्यक दोयम दर्जे के नागरिक हो जाएँगे और उनको मिले विशेषाधिकार भी खत्म होंगे। बांग्लादेश के हिन्दू पहले ही इस्लामी कट्टरपंथ का सामना कर रहे हैं, 15वाँ संशोधन हटने के बाद वह अपनी आवाज भी नहीं उठा पाएँगे।

हाई कोर्ट 1- नाबालिग बीवी से सेक्स मतलब रेप, हाई कोर्ट 2- नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण-रेप के आरोपित जावेद को बेल: कानून में इतना कंन्फ्यूजन क्यों?

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिंदू नाबालिग लड़की का अपहरण करके उसके साथ रेप करने के आरोपित जावेद आलम नामक व्यक्ति को जमानत दे दी। ये आरोप बजरंग दल के एक सदस्य ने लगाए थे और जावेद के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। बजरंग दल के उस सदस्य ने आरोपित जावेद को पकड़कर पुलिस के हवाले किया था। जिस समय यह हुई उस समय लड़की की उम्र करीब 17 साल थी।

न्यायमूर्ति समीर जैन की पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 161 और 164 के बयान में पीड़ित लड़की ने कहा कि जब प्राथमिकी दर्ज की गई थी तब उसकी उम्र 17 वर्ष से अधिक थी। अपने बयान में उसने यह भी कहा कि वह आरोपित जावेद आलम के साथ विवाह किया है और अपनी इच्छा से आरोपित के साथ गई थी। पीड़िता ने अपने हलफनामा में आरोपित को अपना शौहर बताया है।

पीड़िता की उम्र अब 18 साल से अधिक है। पीड़िता के वकील ने इस दलील पर विचार किया कि अगर आवेदक को जमानत पर रिहा किया जाता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। अदालत ने आरोपित को जमानत देते हुए कहा, “…यह दर्शाता है कि पीड़िता आवेदक की कंपनी में शामिल होने और अपने वैवाहिक कर्तव्यों को निभाने के लिए इच्छुक है।” आरोपित जावेद मई 2023 से जेल में था।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदू संगठन के सदस्य ने आरोपित के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 366, 506, 323, 376 और POCSO अधिनियम की धारा 3/4 के साथ-साथ और उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 की धारा 3/5 (1) के तहत भी मामला दर्ज किया गया था।।

एफआईआर में आरोप लगाया गया कि आवेदक ने 10वीं कक्षा की एक हिंदू नाबालिग लड़की का ट्रेन में अपहरण कर लिया। वहाँ वह रोती हुई पाई गई थी। प्राथमिकी में आगे कहा गया है कि लगभग आठ महीने पहले आरोपित ने लड़की को बहला-फुसला लिया, उसका धर्म बदल दिया और उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित करना शुरू कर दिया।

इस मामले में जमानत की माँग करते हुए आवेदक के वकील ने कहा कि आरोपित पर केवल इस कारण से झूठा मामला दर्ज किया गया क्योंकि वह मुस्लिम समुदाय से है, जबकि लड़की हिंदू समुदाय से है। वकील ने यह भी कहा कि उस समय लड़की की उम्र 18 साल से अधिक थी। वहीं, पीड़िता के वकील ने भी कहा कि आरोपित को जमानत दी जाए, ताकि वे वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा कर सकें।

नाबालिग बीवी से सहमति से संबंध भी रेप: बॉम्बे हाई कोर्ट

बता दें कि जिस 12 नवंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट नाबालिग लड़की के अपहरण और शारीरिक संबंध बनाने के आरोपित को वैवाहिक कर्तव्य पूरा करने के लिए जमानत दे रहा था, उसी दिन बॉम्बे हाई कोर्ट एक अलग निर्णय दे रहा था। बॉ़म्बे हाई कोर्ट एक मामले के फैसले में कहा कि यदि कोई पुरुष 18 साल से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ सहमति से भी यौन संबंध बनाता है तो उस पर बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर पीठ के सिंगल बेंच जज गोविंद सनप ने 12 नवंबर को पारित आदेश में कहा, “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून कि पत्नी होने के नाते संभोग को बलात्कार नहीं माना जाएगा, स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस मामले में यह कहने की जरूरत है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बलात्कार है, भले ही वह शादीशुदा हो या नहीं।”

कोर्ट ने कहा, “18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ संभोग बलात्कार है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर मौजूदा मामले में पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने के बचाव को स्वीकार नहीं किया जा सकता। यहाँ तक ​​कि अगर उनके बीच तथाकथित विवाह हुआ था, फिर भी पीड़िता द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर कि यह उसकी सहमति के खिलाफ यौन संबंध बनाया गया था, बलात्कार होगा।” 

पुलिस की वर्दी पहन असली पुलिस को ही वीडियो कॉल कर बैठा साइबर ठग: करने चला था डिजिटल अरेस्ट, घबराकर काटा फोन – देखें वायरल वीडियो

आजकल साइबर ठगी के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं, और अपराधी नित नए तरीके खोज रहे हैं लोगों को फंसाने के लिए। हाल ही में केरल के त्रिशूर शहर में एक ऐसी घटना सामने आई, जिसमें एक ठग ने पुलिस की वर्दी पहनकर साइबर सेल को ही कॉल कर डाली। ठग ने पूरी तैयारी के साथ कॉल किया, मानो वह खुद पुलिस अधिकारी हो। लेकिन किसे पता था कि वह ठग इस बार असल पुलिस वालों के साथ फंसने वाला है!

साइबर सेल के अधिकारियों ने ठग की इस गलती का फायदा उठाया। शुरुआत में साइबर सेल के पुलिस अधिकारी ने वीडियो कॉल पर कैमरा खराब होने का बहाना बनाते हुए पुलिस अधिकारियों ने ठग से उसकी सारी जानकारी ले ली। ठग की सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद पुलिस अधिकारी ने कैमरा ऑन किया। जालसाज तब हैरान रह गया जब उसे एहसास हुआ कि वह असली पुलिस अधिकारियों से बात कर रहा है।

पुलिस अधिकारी ने उसे बताया कि उसकी लोकेशन और व अन्य सारी जानकारी उनके पास है। इसके बाद जैसे ही ठग को एहसास हुआ कि वह असली पुलिस से बात कर रहा है, वह बुरी तरह घबराया और कॉल काट दी।

यह घटना एक बड़ा संदेश देती है कि ठग चाहे जितना भी चालाक हो, पुलिस अब पूरी तरह से सतर्क है। ठगों को अपनी काबिलियत पर इतना घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि अब साइबर ठगी से बचने के लिए पुलिस भी पूरी तरह से तैयार है। इस घटना ने यह भी साबित किया कि अगर आप साइबर ठगी करने का सोच रहे हैं, तो बेहतर है कि आप अपनी मंशा बदल लें, क्योंकि पुलिस आपकी हर हरकत पर नज़र रख रही है। आखिरकार, ये ठग भी समझ गए होंगे कि उनके ‘अच्छे दिन’ अब खत्म हो चुके हैं।

बता दें कि पीएम मोदी ने भी साइबर ठगी पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने डिजिटल अरेस्टिंग जैसे मुद्दे पर बात करके लोगों को जागरुक भी किया था।

दारू, ड्रग और हिंसा वाले गाने ना गाएँ दिलजीत दोसांझ, तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने थमाया नोटिस: हैदराबाद में हो रहा है कॉन्सर्ट

पंजाबी सिंगर दिलजीत दोसांझ का 15 नवंबर यानी आज हैदराबाद में ‘दिल-लुमिनाटी’ कॉन्सर्ट होना है लेकिन उससे पहले सिंगर को राज्य सरकार ने कानूनी नोटिस भेजा है। नोटिस में शर्त रखी गई है कि दिलजीत इस कॉन्सर्ट में शराब, ड्रग्स और हिंसा से जुड़े कोई गाने न गाएँ।

पंजाबी सिंगर को यह नोटिस चंडीगढ़ के प्रोफेसर पंडितराव धरनेवर की शिकायत के बाद जारी किया गया है। उन्होंने शिकायत में बताया था कि दोसांझ ने लाइव शो में दारू आदि से जुड़े गाने गाए। इसके साथ उन्होंने वीडियो एविडेंस भी दिए थे।

इसी शिकायत के बाद रंगारेड्डी जिले के महिला एवं बाल, विकलांग और वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण विभाग के जिला कल्याण अधिकारी द्वारा 7 नवंबर को जारी नोटिस जारी किया गया। नोटिस में कहा गया है,”हम आपके लाइव शो में दारू, ड्रग्स और हिंसा को बढ़ावा देने से रोकने के लिए एडवांस में यह नोटिस जारी कर रहे हैं।”

नोटिस में यह भी कहा गया, “विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, व्यस्कों को 140 डेसिबल से ज्यादा साउंड प्रेशर के कॉन्टैक्ट में नहीं आना चाहिए और बच्चों को 120 डेसिबल से ज्यादा… इसलिए, बच्चे लाइव शो के दौरान मंच पर नहीं आने चाहिए क्योंकि स्टेज पर साउंड प्रेशर 120 डेसिबल से ऊपर हो जाता है।”

उल्लेखनीय है कि आज शाम 7 बजे हैदराबाद के एयरपोर्ट एप्रोच रोड स्थित जीएमआर एरिना में ‘दिल-ल्यूमिनाटी’ कॉन्सर्ट आयोजित होगा। इस शो का प्रचार राज्य में जोरो-शोरों से हुआ है। इससे पहले दिलजीत का प्रोग्राम दिल्ली के जेएलएन स्टेडियम में हुआ था जहाँ अगले दिन हर जगह दारू की बोतल पड़ी मिली थी