Tuesday, November 19, 2024
Home Blog Page 5201

असली गिद्ध कौन है? आपकी संवेदना बस एक नकली ब्यूटी फ़िल्टर है, और कुछ नहीं

‘मैं बंद कमरे में बैठ कर चिल्लाना चाहता हूँ, रोना चाहता हूँ’, ‘मैं इतनी पेरशान हूँ कि रातों को रोते-रोते सोई’, ‘इस घटना ने मुझे इतना विचलित कर दिया है कि मैं किसी से गले लग कर बस रोना चाहता हूँ’ आदि से लेकर ‘मोदी के पास एक ट्वीट करने का समय नहीं है?’, ‘चाँद पर आदमी भेजने वाले देश को अपने चाँद के टुकड़ों की चिंता नहीं’, ‘बच्चे मर रहे हैं और मोदी को योग सूझ रहा है’ आदि तक आप संवेदनशील होने से ज़्यादा संवेदनशील होता दिखना चाहते हैं।

अभिव्यक्ति के माध्यमों की बाढ़ आने से हर व्यक्ति, हर विषय पर राय देना चाहता है। कई बार ऐसा होता है कि जिस विषय को हम जानते भी नहीं, वहाँ भी हमारी राय होती है। जब एक खाली डिजिटल डिब्बा आपसे यह पूछता रहे कि ‘आपके दिमाग में क्या चल रहा है’ तो इसका कम्पल्शन, जो कि दिन में औसतन दो सौ बार फोन उठाने से आता है, कुछ न कुछ लिखने या ग्रहण करने के रूप में फलित होता है।

चूँकि, आप एक विषय पर कुछ पढ़ते हैं, और वो इतना सरल होता है, तो आपको लगता है कि आपको भी उस पर कुछ लिखना चाहिए। फिर आप लिख देते हैं कि ‘मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चे मर रहे हैं और मोदी को योग के आसन सूझ रहे हैं’। आपको न तो संदर्भ पता है, न ही आपको मुज़फ़्फ़रपुर के बच्चों से कोई खास मतलब है, या आप इस बात से अनभिज्ञ हैं कि प्रधानमंत्री करता क्या है।

जब आप ऐसे मुद्दों पर इस तरह की बचकानी बातें करते हुए सीधा प्रधानमंत्री तक पहुँच जाते हैं तो आपके मन में संवेदना नहीं, उस व्यक्ति के खिलाफ लिखने की लालसा होती है क्योंकि वो करना सबसे आसान है। जो लोग लिख रहे हैं कि उनका जी रोने का कर रहा है, छाती पर हाथ मार कर चिल्लाने का कर रहा है, रात में रोते-रोते सोने का कर रहा है, बेशक कर रहा होगा, लेकिन आप ये फेसबुक पर क्यों बता रहे हैं? ताकि यह पता चले कि ये आदमी बिहार के एक जिले की त्रासदी पर फेसबुक के माध्यम से संवेदनशील हो रहा है? अगर आपका उद्देश्य लोगों को यह बताना नहीं है, और आप बिलकुल वैसा ही महसूस कर रहे हैं जैसा उस बच्चे की माँ या पिता, तो फिर आप फेसबुक पर टाइप कैसे कर रहे हैं?

आप वो इसलिए कर रहे हैं ताकि लोगों को लगे कि आप भी संवेदनशील हैं। आपको भी बहुत कष्ट पहुँचा है। जबकि कष्ट पहुँचने का सीधा-सा समीकरण है: सामयिकता और दूरी। वह घटना किस समय हुई और आपसे कितनी दूर है, इस हिसाब से मानव संवेदनशील होता है। तुरंत हुई, किसी ने फोटो लगाए, किसी ने उसकी भयावहता पर लिखा और हम तक पहुँचा तो हमें ‘शॉक’ लगता है। हम अचंभित होते हैं कि यह क्या हो गया। चूँकि ये तुरंत होता है तो यह एक सहज मानवीय प्रक्रिया होती है।

लेकिन आप इसे पढ़ने के बाद क्या करते हैं? आप सब्जी काटती हैं, नॉवेल पढ़ती है, पावर प्वाइंट प्रेजेन्टेशन बनाते हैं, लेख लिखते हैं, फ़ाइलों पर दस्तखत करते हैं, कुदाल चलाते हैं, बरामदा धोते हैं, कूलर में पानी भरते हैं, खाना खाते हैं… यानी, आप हर वो चीज करते हैं जो आप कल भी कर रहे थे। आपकी प्रतिक्रिया सहज थी, स्वाभाविक थी क्योंकि आप उस ख़बर से विचलित होते हैं।

लेकिन, अगर यह घटना आपके घर में होती तो सब काम रुक जाता, पड़ोस में होती तो थोड़े समय के लिए सब काम रुक जाता। गाँव या मुहल्ले में होती तो आप वहाँ जा कर देख आते और फिर इस पर घर में बात कर के अपने काम पर चले जाते। जिले में होती तो आप पढ़ लेते इसके बारे में और इस पर चकित होने के साथ-साथ कपड़ों में आयरन करते हुए ब्रेड का स्लाइस खा रहे होते कि ‘देश में हो क्या रहा है’। आपके राज्य में होती तो आप फेसबुक आदि जैसे माध्यमों पर लिख कर खानापूर्ति करते हुए आगे चले जाते। देश में होती तो सारे काम करते हुए समय मिलने पर चर्चा करते। देश से बाहर होती तो अपनी विचारधारा के हिसाब से उस पर लिखते।

खुद से पूछिए कि क्या आप इस दायरे से बाहर हैं? क्या हर घटना पर, जो कि भारत जैसे विशाल देश में हर सप्ताह नए रूप में आती है, आप यही पैटर्न नहीं दिखाते? क्या हमारी या आपकी संवेदनाओं के अभिव्यक्त हो जाने के बाद, हम अपने कार्य में मशगूल नहीं हो जाते? क्या यही फेसबुक स्टेटस लगाने के बाद अपनी प्रेमिका से शाम को मिलने का वादा नहीं करते? क्या दूसरे मज़ाक़िया स्टेटस पर ‘हा-हा’ वाला रिएक्शन नहीं देते? क्या हम दूसरे विषय पर नहीं लिखते, किसी के द्वारा शेयर किए गए मीम पर स्टिकर नहीं चिपकाते?

हो सकता है कि हम में से कोई एक व्यक्ति ऐसा हो जो ऐसा न करता हो। हो सकता है वो आप हों। हो सकता है कि आप बिलकुल ही असहज हो गए हों इस घटना से क्योंकि आप एक माँ हैं, एक पिता हैं, भाई या बहन हैं, जिसके घर में ऐसे ही छोटे बच्चे हैं। हो सकता है कि हम में से एक को ऐसी घटनाओं के बारे में जानने पर तेज धड़कनों के साथ ऐसा महसूस हुआ हो कि ये मेरी भी बिटिया हो सकती थी। हो सकता है कि हममें से किसी एक ने आँसू बहाए हों। हो सकता है कि आप संवेदनशील हों और आप का दिल बैठ गया हो इस त्रासदी से। इससे इनकार नहीं है।

मैं यह नहीं मानता कि हमारी संवेदनाएँ मर चुकी हैं। लेकिन मैं यह ज़रूर मानता हूँ कि आज के दौर में उस एक को छोड़ कर निन्यानवे व्यक्ति अपने विचारों को लिखने से पहले यह देखता है कि उसकी विचारधारा के अनुरूप है वह बात या नहीं। इसलिए, जब आप बताते हैं कि आप को नींद नहीं आ रही और आप रोते-रोते सो रहे हैं, तो आप लोगों को ठग रहे हैं। आप बस यह बताना चाह रहे हैं कि इस त्रासदी पर भी आप संवेदनशील हुए जैसे आपने ‘जे सुई शार्ली’ करते हुए नीस आतंकी हमलों के बाद फ़्रांस के झंडे का फ़िल्टर प्रोफाइल पिक्चर पर लगाया था।

मोदी योग कैसे कर रहा है?

आप भोजन कैसे ग्रहण कर रहे हैं? आप पानी कैसे पी रहे हैं? आप ऑफिस कैसे जा रहे हैं? आपने तो जिस हिसाब की बातें लिखी हैं, उससे तो प्रतीत होता है कि आपने सब कुछ छोड़ रखा है, और आप हर सप्ताह नई घटना पर ऐसे ही सब कुछ छोड़ देते हैं, फिर तो वैज्ञानिक रूप से आपका लिखने लायक स्थिति में होना असंभव दिखता है!

सरकार की ज़िम्मेदारी तो आत्महत्या करते हुए व्यक्ति के जान बचाने की भी है। सरकार की ज़िम्मेदारी तो घोड़े ती टाँग टूटने को लेकर भी है, सड़क दुर्घटना में मरने वाले उस व्यक्ति की भी है जिसने हेलमेट नहीं पहना या कोहरे के बीच एक्सप्रेसवे पर सौ की स्पीड से गाड़ी चला रहा था। सरकार की ज़िम्मेदारी हर अप्राकृतिक मौत की है क्योंकि वो मौत अप्राकृतिक है और वो जान बचाई जा सकती थी।

ध्यान रहे वो ज़िम्मेदारी सरकार की है, जिसका मुखिया प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री होता है। उसके नीचे मंत्री होते हैं, डिपार्टमेंट होते हैं, अधिकारी होते हैं, पूरा तंत्र होता है जिससे सब कुछ एक तय तरीके से चलता है। इसलिए, कभी भी किसी त्रासदी के बाद कोई देश या राज्य रुकता नहीं। कई बार कुछ सरकारें इन मामलों में उदासीन रवैया अपनाती हैं, उनके मंत्री बेहूदा बयान देते हैं, और बहुत देर से प्रतिक्रिया होती है। ये दुःखद है, लेकिन यही वास्तविकता है हमारे राजनैतिक तंत्र की।

जो लोग ‘मोदी के पास समय नहीं है एक ट्वीट का’, ‘मोदी शिखर धवन को ट्वीट कर रहा है’, ‘मोदी योग करने में व्यस्त है’ आदि कह रहे हैं, वो अपनी जगह से सही भी हैं, और गलत भी। ये बात सच है कि मोदी ने ट्वीट नहीं किया, और अगर वो शिखर धवन की उँगली के लिए ट्वीट कर या करा सकता है तो एक लाइन इस त्रासदी पर भी लिख या लिखवा सकता है।

लेकिन, उसके ऐसा न करने से यह साबित नहीं होता कि उसे इस त्रासदी की फ़िक्र नहीं है, या उसने स्थिति का जायज़ा नहीं लिया। चूँकि स्वास्थ्य व्यवस्था राज्य सरकार के ज़िम्मे है, और वहाँ की निकम्मी सरकार अब हरकत में आ गई है, और यहाँ से केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी वहाँ पहले ही जा चुके हैं तो फिर मोदी के जाने, या न जाने, से क्या फ़र्क़ पड़ेगा मुझे नहीं पता। हमारे पास यह साबित करने का कोई तरीक़ा नहीं है कि मोदी ने कहा हो कि ‘जो हो रहा है होने दो, हमें क्या। हमें तो कल योग के आसन करने हैं।’

लेकिन हम में से कुछ लोग हैं जिन्हें लगता है कि मोदी को मानवीयता के कारण एक बयान तो देना ही चाहिए क्योंकि इतनी बड़ी घटना हो गई। दुर्भाग्य यह है कि अगर मोदी ने एक ट्वीट किया होता तो यही फेसबुक पोस्ट करने वाले कुछ इस तरह से प्रतिक्रिया देते:

  • ट्वीट करने से क्या होता है?
  • बस ट्वीट कर लिया मोदी जी ने और सारे बच्चे ज़िंदा हो गए
  • अरे देखो, मोदी की नींद टूटी
  • ट्वीट में बस ये लिखा कि वो स्थिति की जानकारी ले रहे हैं, अपनी सरकार को फटकार भी नहीं लगाई
  • फटकार लगाने से क्या होगा, ये तो बस दिखावा है
  • उस मंत्री को बर्खास्त क्यों नहीं किया अब तक
  • हॉस्पिटल क्यों नहीं बनवाया एक भी, डॉक्टरों को नौकरी से क्यों नहीं निकाला

इन प्रतिक्रियाओं का कोई अंत नहीं है। अंत इसलिए नहीं है कि हमें मोदी के ट्वीट या बयान से मतलब है ही नहीं, हमें मतलब है ये चिल्लाने से कि मोदी ने क्या नहीं कहा। और मोदी तब तक आपकी बातों पर खरा नहीं उतरेगा जब तक वो आपसे फोन पर पूछ न ले कि फ़लाँ विषय पर वो ट्वीट करने जा रहा है, क्या-क्या लिखना सही रहेगा। क्या वो एक ट्वीट करे या पूरा थ्रेड लिखे? हर व्यक्ति फेसबुक पर उस ट्वीट या बयान का अलग मतलब निकाल कर, उसमें क्या रह गया, यह बताने पर आ जाएगा। ये पहले हो चुका है, और आगे भी हम इसी तरह करते रहेंगे।

तो क्या हम प्रतिक्रिया देना बंद कर दें?

फिर बात आती है कि आम आदमी क्या करे? आम आदमी हमेशा यह ख़्याल रखे कि तंत्र कैसे चलता है और वो जो माँग रहा है, वो पूरा हो सकता है या नहीं। जब हमारे पास यह जानने का ज़रिया नहीं है कि प्रधानमंत्री ने इस पर संज्ञान लेकर अपने स्वास्थ्य मंत्री को बिहार भेजा या नहीं, तो हमें यह कहने का हक़ नहीं है कि उसकी मानवता मर गई है, अपना बच्चा मरता तो शायद पता होता आदि।

एक पूरा समूह ऐसा है जो गिद्ध की तरह ऐसे मौक़ों पर पूरी सरकार को नाकाम बताने में लगा रहता है। ये पूरा गिरोह हर ऐसी त्रासदी पर सीधा इस्तीफा माँगने से लेकर, सरकारों के हर अच्छे काम को भी नकार देता है, पर वह यह नहीं बता पाता कि चलो भाजपा सरकार इस्तीफा दे देगी लेकिन ऐसी कौन-सी सरकार है जिसमें ऐसी त्रासदी न हुई हो, और उसने बाकी काम करना बंद कर पूरे मंत्रीमंडल के साथ घटनास्थल पर टेंट लगा कर डेरा डाल दिया हो कि इसको सही करो तभी जाएँगे।

अगर आप इतनी संवेदना उड़ेलने के बाद भी ऑफिस जाते हैं क्योंकि आपकी मजबूरी है, तो मोदी के भी ऑफिस की भी तो मजबूरी है जिसके सर पर पूरे देश की ज़िम्मेदारी है! एक ही व्यक्ति तो पूरे तंत्र का हर हिस्सा नहीं देख रहा, वरना मंत्रियों की, राज्य सरकारों की, उनके मंत्रियों की, विभागों की, कर्मचारियों की, अफ़सरों की क्या ज़रूरत है?

मोदी की जवाबदेही कॉन्ग्रेस शासित सरकारों के राज्य में हो रही किसानों की आत्महत्या की भी उतनी ही है जितनी भाजपा शासित राज्यों में हो रही इन बच्चों की मौतों की। त्रासदी आने पर देश न तो रुकता है, न रुकना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि उसके भीतर की संवेदना मर चुकी है या उसे पता ही नहीं है कि वहाँ सौ से ज़्यादा बच्चे मर गए। चूँकि मोदी ने हमें फेसबुक लाइव के ज़रिए नहीं बताया कि वो इस स्थिति पर नजर जमाए हुए है, और रिपोर्ट ले रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वो काम हो ही नहीं रहा। हम मोदी के कितने ट्वीट पढ़ते हैं, और कितनी देर की बातें जानते हैं? क्या उन चंद मिनटों के अलावा मोदी सोता रहता है?

फिर आप क्या कर रहे हैं? हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था बेकार है। लेकिन पिछले पाँच सालों में जागरुकता और बचाव के तरीके अपना कर क्या हमने बाल मृत्यु दर नहीं घटाई? क्या स्वच्छता अभियान के कारण बीमारियों में कमी नहीं आई? क्या हरियाणा जैसे राज्य में लैंगिक अनुपात बढ़ा नहीं? क्या ज़्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा रहे? क्या कुपोषण आदि से बचने के लिए हर स्तर पर आँगनबाड़ी से लेकर सस्ते दामों पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए सरकारों ने प्रयास नहीं किए?

लेकिन, फिर भी चूक होती है। मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चों की मौत दो वजहों से हुई हैं। पहला यह कि सरकार ने जागरुकता अभियान नहीं चलाया ताकि लोगों को पता चले कि सीज़न की शुरुआत में सफ़ाई रखनी है, पानी कहाँ से पीना है, क्या खाना है, कहाँ सोना है आदि। दूसरा यह कि बीमारी के लक्षण दिखते ही उन्हें हॉस्पिटल ले जाना। साथ ही, प्राइमरी हेल्थ सेंटर नाम की चीज़ें बस काग़ज़ों में ही हैं। डॉक्टरों की कमी है, मेडिकल शिक्षा महँगी है, सरकारी जगहों पर सीट बहुत कम है, जनसंख्या बहुत ज़्यादा है। ये सारी ज़िम्मेदारी सरकार की ही है।

इसके लिए बजट में प्रावधान होते हैं। लेकिन बजट तो सीमित है। इसी बजट से पाकिस्तान और चीन को देखने के लिए भी पैसे चाहिए, प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के शोध के लिए भी पैसे चाहिए, वेलफ़ेयर स्कीम के लिए भी पैसे चाहिए, इन्फ़्रास्ट्रक्चर के लिए भी पैसे चाहिए, रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए लोन के लिए भी पैसे चाहिए… कुल मिला कर बात यह है कि स्वास्थ्य और शिक्षा किसी भी सरकार के लिए युद्धस्तर की प्राथमिकता नहीं रही है। बाकी की क्षति सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार कर देती है क्योंकि जिस कुपोषण ने इन बच्चों की जानें ली हैं, उसके लिए कई योजनाएँ हैं लेकिन वो इन तक पहुँच नहीं रही।

इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ सारे जनप्रतिनिधि। आप इन बातों को तार्किकता के साथ रखिए और कोसिए कि कहाँ का बजट स्वास्थ्य में डाला जाए, कैसे भ्रष्टाचार को रोका जाए, कैसे मेडिकल शिक्षा में बेहतरी की जाए। ये बातें सबकी समझ में आती हैं लेकिन इन पर लिखना मुश्किल है। इसके लिए आपको पता करना होगा कि बजट कितना था, पहले से ज्यादा था कि कम, हॉस्पिटल कितने हैं, कितना पैसा किस योजना में गया, स्वास्थ्य का मुद्दा किस सरकार के अंतर्गत आता है, उसमें कौन सा विभाग ऐसी हत्या के लिए ज़िम्मेदार है।

ये करना बहुत कठिन है। आसान है यह लिख देना कि बच्चे मर रहे हैं और मोदी जी को योग सूझ रहा है। इससे आप संवेदनशील होते भी दिख जाते हैं, और आपकी पोलिटिकल प्वाइंट स्कोरिंग में भी गोल्ड क्वाइन वाली चमक आ जाती है। इससे तुरंत आप मोदी को धोबीपछाड़ दे देते हैं और फेसबुक पर मोदी अपना मुँह छुपाता फिरता है। और आपसे वो आँखें तो बिलकुल नहीं मिला पाएगा, लेकिन क्या आप अपनी गिद्धों वाली इन करतूतों के बाद, खुद से आँखें मिला पाते हैं?

अंततः, वाक्य के आधे हिस्से में संवेदना दिखाते हुए, दूसरे हिस्से में जो आप सिनिकल हो जाते हैं उससे पता चलता है कि आपको बच्चों की मौत से कोई मतलब नहीं। आपको मुद्दा चाहिए ताकि आप आउटरेज करते रहें। आप चौबीस घंटे इसी मोड में रहते हैं, जैसे कि सत्ता के पक्ष में लिखने वाला चौबीस घंटे उसके बचाव में लगा रहता है। दोनों को ही बच्चों की मौत से कोई वास्ता नहीं, क्योंकि दोनों का लक्ष्य एक व्यक्ति है। इसलिए, इन संवेदनशील होते दिखने वाले लोगों को मैं गिद्ध कहता हूँ जो बच्चों की मौतों को अपनी पोलिटिकल लीनिंग्स के हिसाब से भुनाना चाहते हैं।

फेसबुक पर मौजूद लोगों में से एक बहुत बड़ा हिस्सा कभी भी मुद्दे पर विवेचना करना नहीं चाहता क्योंकि उसकी इच्छा चर्चा करने की नहीं है। वो चाहता है कि उसे एक नाम पकड़ा दे कोई और फिर वो जी भर कर उसे कोस दे। ताकि उसकी टाइम लाइन पर आने वाले लोगों को लगे कि ये आदमी सही है, ये सत्ता के विरोध में है, इसकी लेखनी में आग है, ये सीधा सत्ताधीश से सवाल पूछ लेता है, असली काम तो यही कर रहा है, आखिर मोदी योग कैसे कर रहा है! सारा प्रयास खुद को कुछ ऐसा करते दिखाने में है जो आप वास्तव में कर नहीं रहे। चूँकि आपका पूरा जीवन इसी दिखावे की वृत्ति में गुज़रा है तो आपको दरकार होती है प्रधानमंत्री से भी एक दिखावे की कि वो ट्वीट क्यों नहीं कर रहा!

CWG-2022 में महिला क्रिकेट हो सकता है शामिल, निशानेबाजी आउट

इन दिनों पूरी दुनिया पर क्रिकेट का खुमार छाया हुआ है। सबकी नज़रें इंग्लैंड में चल रहे विश्व कप पर टिकी हुई हैं और इसी बीच क्रिकेट फैंस, खासकर महिला क्रिकेट फैंस के लिए एक अच्छी खबर आ रही है। खबर के अनुसार, 2022 में बर्मिंघम में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला क्रिकेटर चौके-छक्के मारती दिखेंगी। 2022 के कॉमनवेल्थ के लिए गुरुवार (जून 20, 2019) को कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन (CGF) द्वारा इसका नामांकन किया गया। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) और इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के इस फैसले का स्वागत किया है।

हालाँकि, आईसीसी ने एक विज्ञप्ति जारी करते हुए इस बात की जानकारी दी कि सीजीएफ सदस्यों द्वारा अभी इस पर अंतिम मंजूरी दी जानी बाकी है। जानकारी के मुताबिक, इसका अंतिम फैसला 71 सदस्यीय संघ द्वारा दिए गए वोट पर निर्भर करता है। इसके लिए सीजीएफ के 51 फीसदी सदस्यों की मंजूरी मिलना जरूरी होता है। 6 सप्ताह के भीतर इस पर लिया गया अंतिम निर्णय सार्वजनिक किया जाएगा। बर्मिंघम गेम्स 2022 के सीईओ इयान रीड ने इस बारे में बात करते हुए कहा, “हमने काफी समीक्षा के बाद महिला क्रिकेट, बीच वॉलीबॉल और पैरा टेबल टेनिस को शामिल करने का सुझाव दिया।”

आईसीसी ने हाल ही में महिला क्रिकेट को कॉमनवेल्थ गेम्स में शामिल करने की वकालत की थी। परिषद का कहना है कि वह क्रिकेट के जरिए महिला सशक्तीकरण को दुनिया में बढ़ावा देना चाहता है। आईसीसी के मुख्य कार्यकारी मनु साहनी ने कहा, “हम महिला क्रिकेट को बर्मिंगम खेल 2022 में शामिल करने की पेशकश का स्वागत करते हैं। मैं सीजीएफ और बर्मिंगम 2022 में सभी को धन्यवाद देता हूँ।”

वहीं, दूसरी तरफ कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में निशानेबाजी को शामिल नहीं किया गया है। इससे भारत को करारा झटका लगा है क्योंकि निशानेबाजी में भारत हमेशा ही अच्छा प्रदर्शन करता है और यह उन खेलों में शामिल है जिसमें भारत सबसे ज्यादा पदक जीतता है। साल 2018 में हुए कॉमनवेल्थ गेम में  भारत ने 7 स्वर्ण समेत 16 पदक जीते थे।

Make in India की नई मिसाल: भारत में ही बनेंगी नौसेना की 6 पनडुब्बियाँ

भारतीय नौसेना ने मेक इन इंडिया के तहत करीब 45 हजार करोड़ की लागत से 6 पी-75(आई) पनडुब्बियों के निर्माण के लिए संभावित रणनीतिक भागीदारों (potential strategic partners) को छाँटने के लिए कॉन्ट्रैक्ट जारी किया है। इसकी जानकारी रक्षा मंत्रालय ने बृहस्पतिवार (जून 20, 2019) को दी।

नौसेना के मुताबिक इस प्रोजेक्ट से देश में पनडुब्बियों के निर्माण की दिशा में स्वदेशी डिजाइन और निर्माण की क्षमता विकसित होगी और परियोजना के हिस्से के तौर पर पनडुब्बी का आधुनिक डिजाइन एवं प्रौद्योगिकी देश को हासिल होगा।

नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक रक्षा खरीद परिषद (Defence Acquisition Council) ने इस प्रोजेक्ट के लिए 31 जनवरी को मंजूरी दी थी। जिसके मद्देनजर अब भारतीय रणनीतिक भागीदारों के चयन के लिए सर्कुलर रक्षा मंत्रालय और भारतीय नौसेना की वेबसाइट पर उपलब्ध होगा। नौसेना ने बताया है कि मूल उपकरण निर्माताओं के चयन के लिए 2 सप्ताह में सर्कुलर जारी किए जाएँगे।

बता दें रणनीतिक भागीदारों को मूल उपकरण निर्माताओं के साथ मिलकर देश में इन पनडुब्बियों के निर्माण हेतु संयंत्र लगाने को कहा गया है। बताया जा रहा है ऐसा करने के पीछे देश को पनडुब्बियों के डिजाइन एवं उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है।

आतंकी हमले के समय उरी में तैनात कमांडरों को किया जा सकता है सेवानिवृत्त

सितंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में भारतीय सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ था। उस समय सुंजवान मिलिट्री कैंप और नगरोटा आर्मी बेस के कमांडर उरी ब्रिगेड के प्रभारी थे। सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का मन बना लिया है। सरकार को यह लगता है कि उस आतंकी हमले के दौरान सुरक्षा में हुई चूक के लिए वरिष्ठ कमांडर ज़िम्मेदार हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार, नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी कि सरकार ने भारतीय सेना को अपने इस फ़ैसले से अवगत भी कराया है। उन्होंने बताया कि सरकार अनिवार्य रूप से यह चाहती है कि अधिकारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लें। सरकार का यह भी कहना है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले अधिकारियों को वे सभी लाभ प्राप्त होंगे जिसके वे हक़दार हैं।

एक अन्य अधिकारी ने भी नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि भारत सरकार और सेना के बीच हुई चर्चा में यह तय किया गया था कि नई सरकार के शपथ ग्रहण के बाद कमांडर्स अपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति संबंधी दस्तावेज़ जमा करा दें।

भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) द्वारा अप्रैल-मई के आम चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ लेने के बाद एक महीने से भी कम समय में सरकार का यह निर्णय सामने आया है।

ख़बर के अनुसार, उरी में तीन हमलों में कुल 36 सैन्यकर्मियों की मौत हुई थी। इनमें से दो- 2016 में नगरोटा बेस और उरी ब्रिगेड पर हुए थे, और तीसरा हमला- सुंजुवान कैंप पर हुआ था। कमांडर्स की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से संबंधित इस जानकारी की पुष्टि के लिए जब भारतीय सेना के प्रवक्ता से पूछा गया जो उन्होंने कहा, “मेरे पास कोई जानकारी नहीं है।”

उरी हमले ने भारतीय सेना को 28 सितंबर, 2016 को आतंकवादी शिविरों पर सीमा पार “सर्जिकल स्ट्राइक” करने के लिए प्रेरित किया। यह एक ऐसी कार्रवाई थी जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंकाओं को जन्म दिया।

एक तीसरे अधिकारी के अनुसार, कमांडर्स के ख़िलाफ़ इस तरह की कार्रवाई कोई नया प्रस्ताव नहीं है। एनडीए के पिछले शासन के दौरान, तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई पर ज़ोर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना और वायु सेना प्रमुखों के साथ बातचीत में हमलों पर अपनी अत्यधिक नाराज़गी व्यक्त की थी। अधिकारी ने यह भी बताया कि सेना ने सरकार के इस निर्णय का विरोध किया था। नाम न छापने की शर्त पर चौथे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार उन वरिष्ठ नेतृत्व (कमांडर्स) को ज़िम्मेदार ठहराना चाहती है जो आतंकी हमलों का ख़ुद भी शिकार हो सकते थे।

भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय सेना ऑपरेशनल मुद्दों के कारण कमांडर्स को सेवानिवृत्त करने के लिए उत्सुक नहीं है। हमलों की जाँच की गई है। आवश्यक कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि बेस के एक कमांडर ने हमले के दो दिन पहले ही कमान संभाली थी।

सेना ने सरकार द्वारा इस आधार पर अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करने के पिछले प्रयासों का विरोध किया था कि इस तरह की कोई भी कार्रवाई एक बुरी मिसाल कायम कर सकती है और ऐसे निर्णय से भविष्य में आतंकवाद रोधी कार्रवाई में बाधा उत्पन्न हो सकती है। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का भी कहना था कि “कमांड (सेवा) से हटा दिया जाना अपमानजनक होता है।”

हिस्ट्रीशीटर फ़िरोज़ करता था पागलपन का नाटक, जब पहुँचा ‘मेंटल वार्ड’ तो खुल गई पोल

एक हिस्ट्री शीटर अपराधी की उल-जुलूल हरकतों से परेशान होकर पुलिस ने उसे सबक सिखाने के लिए दिमागी रूप से बीमार लोगों के अस्पताल में भेज दिया। कमाल की बात ये हुई कि पुलिस की तरकीब काम कर गई और दोषी ने 24 घंटों के अंदर ही वहाँ से बाहर आने के लिए स्वीकार कर लिया कि वो ऐसी हरकतें इसलिए करता था ताकि पुलिस की हिरासत से छूट सके।

पुणे मिरर में प्रकाशित खबर के मुताबिक फिरोज़ मकबूल खान उर्फ़ बबली नामक यह व्यक्ति नानापीठ का रहने वाला है। 46 वर्ष की आयु में इस व्यक्ति पर मारपीट और संपत्ति अपराध के 49 मामले दर्ज हैं। साथ ही ये व्यक्ति आर्म्स एक्ट और आईपीसी धारा 392 और 506(2) के तहत गिरफ्तार भी हो चुका है। जानकारी के मुताबिक 8 जून को फिरोज ने एक सिगरेट बेचने वाले से मारपीट की क्योंकि दुकानदार ने उसे मुफ्त में सिगरेट देने से मना कर दिया था। इस घटना के बाद दुकानदार आरीफ़ रमजान तंबोली ने अगले दिन शिकायत दर्ज करवाई और क्राइम ब्रांच पुलिस ने फिरोज को उसके घर से 14 जून को गिरफ्तार किया।

इसके बाद पुलिस जैसे ही उसे थाने लेकर आई तो फिरोज ने वहाँ अपने नाटक शुरू कर दिए और पागलों जैसी हरकतें करने लगा। पुलिस ने उसे लश्कर थाने में बंद किया, लेकिन वहाँ भी उसके नखरे कम नहीं हुए। 15 जून को 1:30 बजे खान को ससून जनरल अस्पताल में भर्ती करवाया गया। फिरोज़ ने यहाँ भी अपना नाटक बंद नहीं किया। फिरोज़ के इन हरकतों को देखकर डॉक्टर और पुलिस ने तय किया कि उसे वार्ड नंबर 26 में भेजा जाएगा जो दिमागी रूप से बीमार लोगों का वार्ड था।

इस फैसले के बाद 24 घंटों के भीतर ही फिरोज अपने असली रूप में आ गया। वार्ड में मरीजों की हालत देखकर उसने वहाँ खाना और दवाई लेने से मना कर दिया। उसे डर था कहीं वाकई में उसकी दिमागी हालत पर फर्क न पड़ जाए। उसने तुरंत डॉक्टर और जाँच अधिकारी को बुलवाया और उसे वहाँ से बाहर ले जाने की भीख माँगने लगा। उसे लग रहा था कि उसे जल्द ही यरवदा के पागलखाने भेज दिया जाएगा। लेकिन सच्चाई बताने के बाद भी डॉक्टरों ने फैसला किया कि आगे की जाँच के लिए उसे तीन दिन तक अस्पताल में रखा जाएगा। जाँच पूरी होने के बाद 18 जून को उसे कोर्ट में हाजिर किया गया जहाँ ससून के डॉक्टर ने फ़िरोज़ को मानसिक रूप से स्वस्थ करार दिया। इसके बाद उसे दो दिन की पुलिस कस्टडी में रखा गया।

इस तरह फिरोज के खेल में पुलिस ने बड़ी समझदारी से उसे हराया। पुलिस ने बताया कि हर बार जब भी उसे हिरासत में लिया जाता था तो वो अजीब-अजीब हरकतें करता था। कभी वो अपने मुँह में ब्लेड दबा लेता था तो कभी खिड़की से कूद जाने की धमकी देता था। इन हरकतों से कोर्ट फिरोज की मानसिक हालत पर सहानुभूति दिखाती थी और उसके पक्ष में अपना फैसला देती थी। आरोपित ने खुद स्वीकारा कि वो दिमागी रूप से बीमार नहीं है, वो ऐसी हरकतें इसलिए करता था ताकि वो पुलिस से बच सके।

अवैध मस्जिद निर्माण के खिलाफ बोलने पर BJP सांसद को ‘मीम सेना’ ने दी धमकी

पश्चिमी दिल्ली से भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा को सरकारी जमीन और सड़क के किनारे अवैध रुप से मस्जिदों के निर्माण का मामला उठाने के मामले में धमकियाँ मिल रही हैं। प्रवेश वर्मा ने गुरुवार (जून 20, 2019) को पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को चिट्ठी लिखकर बताया है कि उन्हें फोन पर एसएमएस भेजकर और सोशल मीडिया के जरिए जान से मारने की धमकियाँ दी जा रही है। उन्होंने इस मामले की जाँच कर आरोपितों का पता लगाने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की माँग की है।

प्रवेश का कहना है कि उन्होंने 17 जून को वेस्ट दिल्ली में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्ज़ा कर वहाँ मस्जिदें और कब्रिस्तान बनाने का मुद्दा उठाते हुए दिल्ली के उप राज्यपाल को चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने माँग की थी कि सभी संबंधित विभागों के अधिकारियों की कमिटी का गठन करके इस पूरे मामले की जाँच कराई जाए और अवैध निर्माणों को हटाया जाए जिसके बाद से उन्हें इस तरह की धमकियाँ मिलनी शुरू हुईं हैं।

अपनी चिट्ठी के साथ प्रवेश ने धमकी भरे मैसेज के फोटो खींचकर भी बतौर सबूत पेश किया है। प्रवेश के मुताबिक, मीम सेना नामक एक संगठन के नैशनल प्रेसिडेंट शादाब चौहान के नाम से उन्हें धमकी भरे मैसेज भेजकर चेतावनी दी जा रही है कि अगर उन्होंने मस्जिदों को टारगेट किया, तो मीम सेना उन्हें सबक सिखाएगी। ट्विटर पर मिली धमकी में लिखा गया है, “अगर तुमने हमारी मस्जिदों को निशाना बनाया तो तुम्हें सबक सिखा दिया जाएगा। तुम हमारी ताकत नहीं जानते, मैं तुम्हें चैंलेज करता हूँ, तुम हमारी एक भी अवैध मस्जिद को छूकर दिखाओ।”

INX मीडिया केस में चिदंबरम के सहयोगी पूर्व अधिकारी फँसे, चलेगा केस

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने INX मीडिया से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में 4 सेवानिवृत्त नौकरशाहों के ख़िलाफ़ अभियोग चलाने के लिए प्रथम दृष्टया मामले को मंजूरी दी है। इसमें NITI Aayog की पूर्व सीईओ सिंधुश्री खुल्लर और पूर्व MSME सचिव अनूप पुजारी भी शामिल हैं, जिन्होंने वित्त मंत्रालय में पी चिदंबरम के अधीन आर्थिक विभाग में काम किया था। बता दें इस मामले में पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम पर भी रिश्वत लेने का आरोप है

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार सूत्रों ने बताया है कि डीईए, सीबीआई और डीओपीटी ने सीवीसी से राय मांगी थी जिसके आधार पर सीवीसी ने इन चारों पूर्व अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है। जिसमें हिमाचल प्रदेश सरकार में वर्तमान प्रमुख सचिव प्रबोध सक्सेना और डीईए के पूर्व अवर सचिव रबिन्द्र प्रसाद का भी नाम है।

जाँच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सीवीसी ने आईएनएक्स मीडिया के एफडीआई प्रस्ताव को एफआईपीबी को मंजूरी देने में चार सेवानिवृत्त/सेवारत अधिकारियों की कथित भूमिका की जाँच करने के लिए सीबीआई को मंजूरी दे दी है, लेकिन एफआईपीबी विनियमों के अनुसार आईएनएक्स न्यूज प्राइवेट लिमिटेड में 26% “डाउनस्ट्रीम निवेश” को मंजूरी नहीं दी है।

खबरों के अनुसार इस मामले में अधिकारियों पर आरोप है कि इन्होंने चिदंबरम के साथ मिलकर आईएनएक्स मीडिया को अवैध रूप से एफआईपीबी मंजूरी दी थी। उस दौरान ये अधिकारी उस समय पी चिदंबरम के अधीन आर्थिक कार्य विभाग में काम कर रहे थे। खुल्लर उस समय आर्थिक मामलों के विभाग में अतिरिक्त सचिव थीं और इससे पहले वह चिदंबरम की ओएसडी भी रह चुकी हैं। वहीं इस दौरान पुजारी संयुक्त सचिव थे और सक्सेना वित्त मंत्रालय में निदेशक थे।

पहली बार दुनिया भर के राजनयिकों ने UN महासभा के भीतर मनाया Yoga Day

आज भारत समेत दुनिया भर में 5वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राँची में योग दिवस के कार्यक्रम में भाग लिया और जनता को संबोधित किया। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा, “योग अनुशासन है, समर्पण हैं, और इसका पालन पूरे जीवन भर करना होता है। योग आयु, रंग, जाति, संप्रदाय, मत, पंथ, अमीरी-गरीबी, प्रांत, सरहद के भेद से परे है। योग सबका है और सब योग के हैं।”

भारत में जहाँ योग दिवस को पूरे जोश के साथ मनाया जा रहा है, वहीं संयुक्त राष्ट्र महासभा के भीतर योग दिवस मनाया गया। इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के भीतर बंद कमरे में योग किया गया। इसकी जानकारी संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने दी। उन्होंने इस दौरान उम्मीद जताई कि जनरल असेंबली हॉल में किया गया ये पहला इनडोर योग सत्र योग करने वालों के लिए भविष्य में इसके महत्ता को और अधिक सुदृढ़ करेगा और खुशहाली लेकर आएगा।

यूँ तो दुनिया भर के कई देशों में लोग स्वस्थ रहने के लिए योग करते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरुआत भारत की पहल के चलते हुई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 27 सितंबर 2014 को दुनियाभर में योग दिवस मनाने का आह्वान किया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव आने के बाद 11 दिसंबर 2014 को यह निर्णय लिया कि प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा।

इसके बाद दुनिया भर के लोग हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाते हैं। 21 जून 2015 को पहला अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस मनाया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में 35 हजार से अधिक लोगों और 84 देशों के प्रतिनिधियों ने दिल्‍ली के राजपथ पर योग के 21 आसन किए थे।

ईरान-अमेरिका में टकराव की संभावना से फारस की खाड़ी में भारत ने शुरू किया ‘ऑपरेशन संकल्प’

फारस की खाड़ी में ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ती तनातनी को देखते हुए भारत ने यहाँ से गुजरने वाले जहाजों को सुरक्षित निकालने के लिए ‘ऑपरेशन संकल्प’ शुरु कर दिया है। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय नौसेना के युद्धपोतों को जिम्मेदारी दी गई है कि फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी और होरमुज़-स्ट्रेट से गुजर रहे भारत के जहाजों को सुरक्षित वहाँ से निकालना है।

इस अभियान के तहत भारतीय नौसेना ने अपने दो युद्धपोतों आईएनएस चेन्नै और आईएनएस सुनयना को फारस की खाड़ी में तैनात किया है। ये दोनों भारतीय युद्धपोत समुद्री सुरक्षा ऑपरेशन करेंगे। यहाँ नौसेना के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि गुड़गाँव स्थित इन्फार्मेशन फ्यूजन सेंटर के जरिए खाड़ी के क्षेत्र में पोतों की आवाजाही पर नजदीकी नजर रखी जा रही है। प्रवक्ता ने बताया कि खाड़ी के इलाके में भारतीय नौसेना के समुद्री टोही विमानों की मदद से भी सुरक्षा हालात पर हवाई नजर रखी जा रही है।

गौरतलब है कि फारस की खाड़ी में अमेरिका के युद्धपोत तैनात हो चुके हैं। ईऱानी नौसेना भी इस इलाके में अपनी तैनाती बढ़ा चुकी है। आशंका है कि ईरान औऱ अमेरिकी नौसेना के बीच टकराव की वजह से दूसरे देशों के पोत चपेट में आ सकते हैं। इसीलिए भारतीय व्यापारिक पोतों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये भारतीय नौसेना ने अपने दो पोत वहाँ भेजे हैं।

अमेरिका और ईरान के बीच सम्बन्ध वर्षों से तनाव पूर्ण रहे हैं। आज ही ईरान ने अमेरिकी सेना का एक ड्रोन मार गिराया है। जिसके बाद दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका और ईरान के बीच का तनाव एक बार खुल कर सतह पर आ गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को ईरान की ये हरक़त इतनी नागवार लगी है कि ट्रम्प ने एक ट्वीट में बहुत कम शब्दों में ईरान को चेतावनी दे दी है।

हिमालये तु केदारं: एक नजर बाबा केदार तक के आध्यात्मिक सफर पर

वाराणस्यां तु विश्वेशं
त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं
घुश्मेशं च शिवालये॥

अर्थात, वाराणसी में विश्वनाथ के रूप में, गोमती नदी के तट पर त्रयम्बकेश्वर के रूप में, हिमालय पर केदारनाथ और अंतिम घृष्णेश्वर के रूप में शिव विराजमान हैं।

हिन्दू धर्म में चार धाम यात्रा का बहुत बड़ा महत्त्व है। इस यात्रा का विशेष महत्त्व यह है कि लोग अपने पितरों के मोक्ष एवं उद्धार के लिए पूरे भारत भर में स्थापित पवित्र धामों और तीर्थस्थलों तक पहुँचते हैं। हालाँकि, कुछ लोग इस बात से भी परिचित नहीं हैं और वो चार धाम यात्रा का अर्थ सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंड में स्थापित श्री बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और कालिंदी पर्वत पर स्थित यमुनोत्री को ही समझ लेते हैं। जबकि इनमें से भारत में स्थापित कुछ धामों में से मुख्य धाम बद्रीनाथ और केदारनाथ ही हैं।

एक नजर उत्तराखंड दूरस्थ हिमालय में बसे इन धामों की खूबसूरती पर

सुबह की पहली धूप के साथ कोहरे और चमकते हिमालय में विराजमान महादेव कुछ इस तरह नजर आते हैं

शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय की केदार नामक शिखा पर दुर्गम रूप में स्थित है। समुद्र की सतह से करीब साढ़े 12 हजार फीट की ऊँचाई पर केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम का सर्वोच्य स्थान है। साथ ही यह पंच केदार में से एक है।

केदार का शाब्दिक अर्थ है दलदल

केदारनाथ धाम में भगवान शिव के पृष्ट भाग के दर्शन होते हैं। त्रिकोणात्मक स्वरूप में यहाँ पर भगवान का विग्रह है। केदार का अर्थ दलदल है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली के मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया था। जबकि आदि शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर की विशेषता यह है कि 2013 की भीषण आपदा में भी मंदिर को आँच तक नहीं पहुँची थी। मंदिर के कपाट अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलते हैं।

त्थरों द्वारा कत्यूरी शैली में निर्मित मंदिर

स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहाँ पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर को बनवाया था।

बाबा भूखूड भैरव
श्री त्रियुगीनारायण मंदिर, जहाँ पर भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह हुआ था  

श्री त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ही स्थित है और केदारनाथ मंदिर से पहले पर्यटक यहाँ पर अवश्य आते हैं। यही वो स्थान है जहाँ पर भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। स्थानीय गढ़वाली भाषा में इसे त्रिजुगी नारैण कहते हैं।

रुद्रप्रयाग में स्थित ‘त्रिजुगी नारैण’ एक पवित्र जगह है, माना जाता है कि सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब यह ‘हिमवत’ की राजधानी थी। जिस हवन कुण्ड की अग्नि को साक्षी मानकर विवाह हुआ था वह अभी भी प्रज्वलित है। आज भी इस स्थान पर उस विवाह वेदी की धुनि जलती हुई दिखाई जाती है।
इस मंदिर का नाम तीन शब्दों यथाः त्रि यानी तीन, युग यानी सतयुग, त्रेता और द्वापर युग, नारायण यानी विष्णु का ही एक नाम इस तरह त्रियुगी नारायण नाम पड़ता है।

इसी पवित्र स्थान के आस-पास ही विष्णु मंदिर भी है। इस मंदिर की वास्तुशिल्प शैली भी केदारनाथ मंदिर की ही तरह है। इस जगह के भ्रमण के दौरान पर्यटक रुद्र कुण्ड, विष्णु कुण्ड और ब्रह्म कुण्ड भी देख सकते हैं। इन तीनों कुण्डों का मुख्य स्त्रोत ‘सरस्वती कुण्ड’ है। मान्यताओं के अनुसार, इस कुण्ड का पानी भगवान विष्णु की नाभि से निकला है।

शाम की आरती के समय चमकता केदारनाथ मंदिर
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
शाम होते ही मंदिर का माहौल आध्यात्मिक रूप ले लेता है
मंदिर के बाहरी हिस्से में विराजमान नंदीश्वर महाराज
देवी सती के शव के साथ शिव

2013 की भीषण आपदा के बाद केदारनाथ मंदिर को नए तरीके से सजाया गया। हालाँकि, यह कार्य अभी तक भी जारी है।

मंदिर परिसर में शिव के त्रिनेत्र को दर्शाती पेंटिंग
अर्धनारीश्वर रूप
प्रत्येक वर्ष एक निश्चित दिन पर मंदिर के कपाट श्रद्दालुओं के लिए खोले जाते हैं

श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट इस वर्ष 9 मई की सुबह भक्‍तों के लिए खोल दिए गए। उससे पहले पूरे विधि विधान के साथ केदारनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। इस मौके पर पूरे मंदिर परिसर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है।

बद्रीनाथ के दर्शन से पूर्व केदारनाथ के दर्शन करने का महात्म्य माना जाता है
केदारनाथ में रात के समय हिमालय के शिखर से झाँकता हुआ चन्द्रमा
केदारनाथ
बर्फ की चट्टानों के बीच से ही श्रद्धालुओं को लगभग 20 से 25 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना होता है
बाबा केदार के दर्शन के बाद थकान मिटाते और ‘चिल’ करते हुए श्रद्धालु
एक ही तस्वीर में पुरुषार्थ : 20 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ पाने में असमर्थ लोग “कंडियों” के सहारे बाबा केदार के दर्शन करने पहुँचते हैं

हाल ही में उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी किए गए आँकड़ों में पाया गया है कि इस वर्ष प्रतिदिन औसतन केदारनाथ पहुँचने वाले पर्यटकों की सँख्या 18-20,000 हो चुकी है। यानी 1 महीने में 6 लाख से अधिक श्रद्धालु अभी तक केदारनाथ पहुँच चुके हैं। इस तरह से पर्यटकों ने विगत सभी वर्ष के आँकड़ों को पीछे छोड़ दिया है। इसमें कुछ योगदान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाती हुई तस्वीरों का भी माना जा रहा है। प्रकृति इतना भार वहन कर पाने में सक्षम है या नहीं यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन उत्तराखंड को इन चार धामों के माध्यम से पर्यटन के रूप में अच्छी पहचान मिली है।