Tuesday, November 19, 2024
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ईरान ने मार गिराया अमेरिकी ड्रोन, ट्रम्प ने कहा ‘ईरान ने एक बड़ी भूल कर दी’

अमेरिका और ईरान के बीच सम्बन्ध वर्षों से तनाव पूर्ण रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आज ईरान ने अमेरिकी सेना का एक ड्रोन मार गिराया है। जिसके बाद दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका और ईरान के बीच का तनाव एक बार खुल कर सतह पर आ गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को ईरान की ये हरक़त इतनी नागवार लगी है कि ट्रम्प ने एक ट्वीट में बहुत कम शब्दों में ईरान को चेतावनी दे दी।

ट्रम्प ने कहा, “ईरान ने एक बड़ी भूल कर दी।” इस छोटे से वाक्य में ही अमेरिका और ईरान के बीच संभावित युद्ध की आशंकाएँ उठने लगी हैं। तो वहीं ईरान से तेल खरीदने वाले देश तेल के दाम बढ़ जाने की चिंता से हलकान है।

ईरान के अमेरिकी ड्रोन मार गिराने की खबर के बाद से ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रूड यानी कच्चे तेल की कीमतों में आग लग चुकी है। कुछ ही मिनटों में क्रूड की कीमतों में 3% से ज्यादा का उछाल देखा गया। अगर दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात बने रहते है या युद्ध की नौबत आती है तो कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कच्चा तेल के दाम में 10% की बढ़ोतरी का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है।

अनुमान यह भी है कि ऐसे में भारत के लिए कच्चा तेल खरीदना और महँगा हो जाएगा। जिससे पेट्रोल-डीज़ल के दाम भी भारत में 8% तक बढ़ सकते हैं। बता दें कि तेल के दाम बढ़ने का असर देश की अर्थव्यवस्था पर साफ़ नज़र आता है। तेल के दाम बढ़ने से देश में महँगाई बढ़ेगी, जिसका आर्थिक ग्रोथ पर निगेटिव असर होता है।

जानकारी के लिए बता दें कि ईरान के सबसे बड़े तेल ग्राहक चीन और भारत हैं। भारत चीन के बाद कच्चे का सबसे बड़ा खरीदार देश है। भारत ईरान से हर रोज करीब 4.5 लाख बैरल कच्चे तेल की खरीद करता है।

मामले की तल्खी के बीच, अमेरिकी अधिकारी ने कहा है कि ईरान की सतह से हवा में मार करने वाली एक मिसाइल ने स्ट्रेट ऑफ हॉर्मूज के ऊपर अंतरराष्ट्रीय एयरस्पेस में अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया है। वहीं, ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने कहा है कि ड्रोन दक्षिणी ईरान के ऊपर उड़ान भर रहा था। मामला जो भी अब ट्रम्प की धमकी के बाद सम्पूर्ण विश्व की निगाहें इस मामले में दोनों देशों के अगले कदम पर टिक चुकी हैं।

बता दें कि अमेरिका और ईरान के बीच पिछले एक साल से तनावपूर्ण माहौल जारी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान से एक साल पहले परमाणु समझौता वापस ले लिया था। ईरान ने हाल ही में कहा था कि वह कम समृद्ध यूरेनियम के उत्पादन को बढ़ाएगा और उसने हथियार-ग्रेड स्तर के करीब इसके संवर्धन को बढ़ावा देने की धमकी दी थी। जिससे कि यूरोप पर 2015 डील के लिए दबाव बनाया जा सके।

विगत कुछ समय में अमेरिका ने एक विमानवाहक पोत को मध्य पूर्व में भेजा है और इस क्षेत्र में पहले से ही 10 हजार सैनिक तैनात हैं इसके बावजूद हजारों अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती की गई है। रहस्यमय हमलों ने तेल टैंकरों को भी निशाना बनाया क्योंकि ईरान-सहयोगी हौती विद्रोहियों ने सऊदी अरब में बम से लैस ड्रोन लॉन्च किए। इससे आशंका बढ़ गई है कि दोनों देशों के बीच संघर्ष हो सकता है। ऐसे में अगर तनाव बढ़ता है और युद्ध के हालात बनते हैं तो ऐसा ईरान की इस्लामिक क्रांति के 40 साल बाद होगा। ईरानी सेना का यहाँ तक कहना है कि वो युद्ध के लिए भी तैयार हैं। 

भ्रष्ट अधिकारियों का प्रमोशन रोके, स्वैच्छिक रिटायरमेन्ट कराए सरकार: योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार (20 जून) को कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए इस सिस्टम में कोई स्थान नहीं है और उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी जानी चाहिए। आदित्यनाथ ने उन अधिकारियों की सूची तैयार करने के आदेश भी जारी किए जिनके पास मामले काफ़ी समय से लंबित हैं या वे संदिग्ध गतिविधियों में शामिल हैं।

मुख्यमंत्री ने गुरुवार को राज्य सचिवालय के प्रशासनिक विभाग के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक के दौरान यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अदालती आदेशों से संबंधित मामलों को योग्यता के आधार पर तुरंत निपटाया जाना चाहिए। एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, मुख्यमंत्री द्वारा ‘आउटसोर्सिंग’ के ज़रिए काम पर रखे गए कर्मचारियों के लंबित वेतन को तुरंत दिए जाने का आग्रह भी किया गया है।

इसके अलावा ई-ऑफिस प्रणाली के बारे में बात करते हुए, सीएम योगी ने अपडेट के बारे में पूछताछ की और अधिकारियों को हर कार्यालय को जोड़ने के काम में तेजी लाने के दिशा-निर्देश भी दिए। इसे जिला स्तर के कार्यालयों में भी ले जाया जाना चाहिए और सचिवालय के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को संरक्षित करने की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को उन कर्मचारियों के भुगतान को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए, जो 4 महीने से अधिक समय से लंबित हैं। उन्होंने अधिकारियों को पदोन्नति से संबंधित मुद्दों पर उचित कार्रवाई करने, कर्मचारियों की रिक्तियों और सेवानिवृत्ति से संबंधित जानकारी को साझा करने के निर्देश दिए। प्रेस रिलीज़ के मुताबिक, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अधिकारियों से कहा है कि वो भ्रष्ट कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करें, उनकी पदोन्नति प्रक्रिया को रोकें और उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दें।

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि जल्द ही सचिवालय में उपस्थिति की बायो-मेट्रिक प्रणाली शुरू की जाएगी। स्वच्छता और सुरक्षा के बारे में बात करते हुए, मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को सचिवालय और अन्य संबंधित कार्यालयों में सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम के निर्देश भी जारी किए। उन्होंने निर्देश दिया, “किसी भी अवांछित व्यक्ति को अधिकारियों की अनुमति के बिना किसी भी प्रशासनिक कार्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं होनी चाहिए और अनधिकृत व्यक्तियों के लिए मोबाइल फोन पर भी प्रतिबंध होना चाहिए।”

इसके अलावा योगी आदित्यनाथ ने महान हस्तियों के नाम पर सभी सभागारों का नाम बदलने का भी निर्देश दिया। उन्होंने सचिवालय के अधिकारियों से कहा कि वे नगर निगम के साथ सहयोग करें और उन होर्डिंग्स को हटा दें जो विधान भवन और लोक भवन के सामने हैं। इस समीक्षा बैठक में अतिरिक्त मुख्य सचिव महेश कुमार गुप्ता, सचिवालय प्रशासन विभाग, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसपी गोयल और विभाग के अन्य कर्मचारी भी उपस्थित थे।

नौटंकीबाज मीसा! लालू के पेड वॉर्ड का पैसा बचाकर मुजफ्फरपुर के बच्चों की मदद क्यों नहीं करती

प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित रात्रिभोज में मीसा भारती ने सम्मिलित होने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि जितने रुपयों में यह डिनर आयोजित किया जा रहा है उस राशि से मुजफ्फरपुर में बीमार बच्चों के लिए दवाइयाँ और मेडिकल उपकरण खरीदे जा सकते हैं।

समाचार है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (गुरुवार 20 जून) को लोकसभा और राज्यसभा सांसदों को बैठक और रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया है। यह रात्रिभोज दिल्ली के अशोका होटल में आयोजित होना है। संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने सभी सांसदों इसके लिए निमंत्रण भेजा है। केंद्र में दूसरी बार एनडीए सरकार बनने के बाद सभी सांसदों के साथ यह पहली बैठक होगी।

मीसा भारती का बयान ऐसे समय में आया है जब उनके पिता लालू प्रसाद यादव खुद रिम्स (RIMS) अस्पताल के पेड वार्ड में आराम फरमा रहे हैं। बता दें कि जिस वार्ड में सजायाफ्ता कैदी लालू यादव इलाज करवा रहे हैं उसका खर्चा 1000 रुपए प्रतिदिन है। लेकिन मीसा भारती अपने पिता से जाकर यह नहीं पूछतीं कि वो एक साधारण नागरिक की तरह जनरल वार्ड में इलाज क्यों नहीं करवा रहे।

लालू यादव के इलाज में पानी की तरह बहता पैसा बचाकर भी मुजफ्फरपुर के बच्चों के परिजनों को दिया जा सकता है। उस पैसे से भी दवाइयाँ और उपकरण खरीदे जा सकते हैं। एक सजायाफ्ता कैदी जिसकी अपनी खुद की कोई कमाई नहीं है वह 1000 रुपए प्रतिदिन के वार्ड में अपना इलाज क्यों करवा रहा है इसका जवाब भी मीसा भारती को देना चाहिए।

मीसा भारती को अपने पिता के उन दिनों को याद करना चाहिए जब वे रैली नहीं ‘रैला’ किया करते थे और हेलीकॉप्टर से घूम-घूमकर प्रचार किया करते थे। बेतहाशा बहाए गए उस धन का संचय किया गया होता तो आज मुजफ्फरपुर में AES से पीड़ित बच्चों को दवाई भेजी जा सकती थी।

प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया भोज सभी सांसदों के बीच समन्वय और मित्रता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया कार्य है। प्रत्येक सांसद सदन में केवल दूसरे दल के सांसद की टाँग खींचने का काम न करे बल्कि देशहित के मुद्दों पर स्वस्थ चर्चा हो इसलिए आपसी समझ बढ़ाने के लिए इस प्रकार की बैठकें और भोज शासन व्यवस्था की अनौपचारिक अनिवार्यता है। इसे मुजफ्फरपुर की त्रासदी से जोड़ना हास्यास्पद है।

मीसा भारती उसी प्रकार ‘हीरोइन’ बनने की कोशिश कर रही हैं जैसे फ़िल्मी सितारे किसी आपदा के आने पर कोई त्यौहार न मनाने का वादा करते हैं। मीसा भारती के रात्रिभोज में न जाने से मुजफ्फरपुर के बीमार बच्चे ठीक नहीं हो जाएँगे और न ही वे वापस आएँगे जो अपने माँ बाप को छोड़कर इस दुनिया से चले गए। बल्कि सच यह है कि ये बच्चे बीमार ही नहीं पड़ते अगर लालू यादव और राबड़ी देवी (जो कि मीसा के बाप-माँ हैं) पूरी ऊर्जा के साथ बिहार की जनता के उत्थान के लिए काम करते।

बच्चों का नृत्य विचारोत्तेजक नहीं बल्कि उनकी क्षमता-शक्ति का परिचायक है, इसे सीमाओं में न बाँधें…

शैशवकाल या फिर बाल्यावस्था किसी भी मनुष्य के जीवन का वो दौर होता है, जिसमें वो अपने भीतर ऊर्जा के चरम को महसूस करता है। इस काल में शिक्षा-दीक्षा से लेकर खेल-मनोरंजन तक एक बच्चा हर चीज़ को अपने मन मुताबिक ग्रहण करता है। बच्चे के भीतर इस दौरान समय-समय पर सृजनात्मकता का विस्फोट होता है, जो कभी उसकी कला में दिखता है, कभी उसके परीक्षाफल में तो कभी घर में म्यूजिक या फिर ढोल बजते ही। बच्चा क्या अन्तग्रहण करेगा इसका निर्धारण हमारे आस-पास के माहौल द्वारा किया जाता है न कि सरकार द्वारा।

बच्चे की सृजनात्मकता का अपनी पराकाष्ठा तक पहुँचना ही उसके लिए एक बेहतर भविष्य की संभावनाओं को उजागर करता है। बच्चा इन बातों से अबोध होता है कि आस-पास के माहौल का उस पर क्या असर पड़ रहा है, वो धीरे-धीरे चीज़ों को ग्रहण करता है और अपने मनमुताबिक उसमें खुद को ढाल लेता है। वो अपने हिसाब से चीजों को देखता-समझता और उस पर प्रतिक्रिया देता है। हम बड़े उसे कितना ही क्यों न समझा लें, लेकिन वो करता वही है जो उसकी इच्छा हो, फिर चाहे वो उसके लिए ‘सीमा’ तय करने वालों की आँखों के आगे उसे पेश करे या फिर अकेले में ही उस पर काम करता रहे।

हाल-फिलहाल में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा एक एडवाइजरी जारी की गई, जिसमें कहा गया कि बच्चों की नृत्य प्रतियोगिता कराने में उनके मानसिक और शारीरिक विकास को ध्यान में रखना चाहिए। मंत्रालय का मानना है कि रियलिटी शो में बच्चों को जिन गानों पर जिस तरह के नृत्य करते दिखाया जा रहा है, मूल रूप से वह वयस्कों के लिए उपयुक्त हैं, या यूँ कह लें कि वयस्कों के लिए ये विचारोत्तेजक और उम्र के अनुकूल होते हैं। ऐसे में इन नृत्यों को छोटे बच्चों से करवाने पर उनके मानसिक और संरचनात्मक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए चैनलों को इस तरह के शो के दौरान एतिहात बरतने की सलाह दी जाती है।

सरकार का यह फैसला हो सकता है आधिकारिक तौर या फिर कागजी नैतिकता के आधार पर उचित हो, लेकिन तकनीक के दौर में बच्चों के लिए ऐसे दायरे तय कर देना या उनकी सलाह देना बेहद हास्यास्पद है। आप यदि सिर्फ़ नृत्य प्रतियोगिताओं में बच्चों के प्रदर्शन मात्र को विचारोत्तजक बताकर उन पर रोक लगाना चाह रहे हैं, तो फिर आपको तकनीक से भी गुरेज़ करना चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं आज बच्चे अपनी उम्र से बड़ी बातें इसलिए करते हैं क्योंकि तकनीक ने ऐसा मुमकिन किया है।

बच्चे पूरे दिन तकनीक के इर्द-गिर्द रहते हैं, वह वो सब जानना चाहते हैं जिन्हें आपके अनुसार एक तय उम्र के बच्चों को नहीं जानना चाहिए। मैं इस बात से बिलकुल मना नहीं कर रही कि वयस्कों के नृत्य में और बच्चों के नृत्य में फर्क नहीं होना चाहिए है। होना चाहिए, लेकिन अब के समय में केवल यही एक चीज बच्चों के मानसिक विकास को प्रभावित करती है, ऐसा नहीं है। क्योंकि ये भी सच है कि कुछ समय पहले तक वयस्कों वाले गाने और धुन से बच्चों के सोचने-समझने की शक्ति पर काफ़ी फर्क पड़ता था, लेकिन तकनीक के दखल ने इस लकीर को अब लगभग धूमिल कर दिया है। अब इस बात से भी मना नहीं किया जा सकता कि सिर्फ़ ऐसे नृत्यों के प्रदर्शन पर रोक लगा देने से नैतिकता का मूल उद्देश्य बिलकुल पूरा हो जाएगा।

आज दुनिया भर में कई ऐसे रिएलिटी शो हो रहे हैं, जिसमें बच्चे आनंद ले-लेकर हर प्रकार के नृत्यों का प्रदर्शन करते हैं, और आप मानें, चाहे न मानें लेकिन विकल्पों के कारण हमें पिछले कुछ सालों में मात्र नृत्य प्रदर्शन करने से कई अच्छे कलाकार मिले हैं, जिन्हें उनके हाव-भाव के कारण ऑन स्क्रीन बतौर एक्टर और एक्ट्रेस काम करने का मौक़ा मिला। सुपर डांसर रियलिटी शो की दिपाली इसका हालिया उदाहरण है, जिसके डांस और एक्सप्रेशन के तालमेल ने उसे टीवी पर्दे पर लीड रोल दिलाया। मुमकिन है अगर इस जगह उसे दायरे में रहकर परफॉर्म करने की सलाह दी जाती, या फिर उसकी परवरिश विचारोत्तेजक नृत्य और उसकी उम्र के नृत्य में फर्क़ बताने में हुई होती तो ऐसा संभव नहीं हो पाता।

मुझे लगता है कि हमें इस बात को स्वीकार लेना चाहिए कि 90 के दशक में बनाए गए कुछ तय नियम आज किसी भी रूप में उचित नहीं हैं। एक बच्चे को मालूम है कि वो किस कार्य को बेहतर तरीके से कर सकता है और जिसे नहीं मालूम उसे हमें सही दिशा दिखानी चाहिए, उसके प्रयासों को सराहना चाहिए न कि उसमें ‘विचारोत्तेजक’ जैसे शब्द खोजने चाहिए। बच्चों के स्वभाव के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके आस-पास का माहौल उत्तरदायी होता है, न कि ऐसी चीजें जिनमें उसे मनोरंजन दिखे। अगर माहौल में मिली शिक्षा उचित है तो उस पर ऐसी फिजूल की चीजों का कोई असर नहीं पड़ेगा, जिनका हमें डर है। अबोध अवस्था की खासियत यही होती है कि इसमें हम चीजों को आँकने से ज्यादा उनसे सीखने की कोशिश करते हैं।

ऐसे निर्देश और सलाह देना कहीं न कहीं उन बच्चों की स्पर्धा पर पर्दे डालने जैसा है जिन्होंने आगे बढ़ने के लिए दायरों की कद्र नहीं की, जिन्होंने अपनी सृजनात्मकता का विकास किया, खुद को मानसिक रूप से संतुलित किया और प्रदर्शन के दौरान अपनी जी-जान झोंक दी। मैं मानती हूँ कि हमें ऐसे फैसलों और सलाह से ज्यादा बच्चों को भीतर से मजबूत बनाने की तैयारी करनी चाहिए, ताकि अगर कहीं हमारा डर सही भी हो, तो बच्चे विकल्पों के साथ समझौता किए बिना खुद को उस परिस्थिति के अनुरूप ढाल पाएँ और खुद को आगे बढ़ा पाएँ।

आज मात्र बच्चों के नृत्य प्रदर्शन से आप उनमें आत्मविश्वास, मजबूती, सहजता जैसे कई गुणों को आँक सकते हैं और उन्हें सही दिशा दिखा सकते हैं। ये बिलकुल सच है कि बच्चा नृत्य के दौरान बिलकुल हू-ब-हू उस कलाकार को अपने भीतर उतारने की कोशिश करता है लेकिन वो भी एक कला या फिर फैंटसी है जिसे वो अपने अंदर विकसित करना चाहता है। उसे सीमित करके हम न केवल उनके लिए विकल्पों को खत्म कर रहे हैं बल्कि इच्छाओं के साथ समझौता करना भी सिखा रहे हैं। उम्मीद है कि डांस रियलिटी शो और इससे जुड़े कोरियोग्राफर लोग भी इस विषय की गंभीरता को समझेंगे, जिसके कारण मंत्रालय को डर सताया कि नृत्य प्रदर्शन से बच्चों की अभद्र छवि पेश की जा रही है।

‘चमगादड़ काटते हैं बिजली’: गोभक्त कमलनाथ के अफसरों ने ढूँढ निकाले बिजली कटौती के मुख्य अभियुक्त

मध्य प्रदेश में जनता रोजाना होने वाली बिजली कटौती से परेशान है। ऐसे में कमलनाथ सरकार के अफसरों ने बिजली कटौती को लेकर बेहद अजीबोगरीब बयान दिया है। सरकार का कहना है कि बिजली आपूर्ति की उनकी सारी कोशिशों पर चमगादड़ पानी फेर रहे हैं। कमलनाथ सरकार के अफसरों की मानें तो बिजली की कटौती के लिए चमगादड़ जिम्मेदार हैं।

राज्य में खस्ताहाल बिजली व्यवस्था और अपने निकम्मेपन का दोष चमगादड़ों के सर मढ़कर कमलनाथ सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है। भीषण गर्मी में मध्य प्रदेश के लोगों को बिजली की कटौती से जूझना पड़ रहा है। इसको लेकर कमलनाथ सरकार पर लगातार सवाल भी उठ रहे हैं।

इससे पहले कमलनाथ सरकार ने बिजली की कटौती के लिए शिवराज सरकार में खरीदे गए खराब ट्राँसफॉर्मर्स को जिम्मेदार बताया था। अब कमलनाथ सरकार के अधिकारियों ने अपनी नाकामी को छिपाने के लिए बिजली कटौती के लिए पेड़ों में लटकने वाले चमगादड़ोंं को जिम्मेदार बता रहे हैं।

कमलनाथ सरकार का कहना है कि भोपाल के कमला पार्क के पास तालाब के किनारे बहुत पेड़ हैं, जिन पर सालों से चमगादड़ों का बसेरा है। इन्हीं पेड़ों के नीचे से बिजली की लाइनें निकलती हैं। अक्सर चमगादड़ इन बिजली की लाइनों से टकरा जाते हैं और इस वजह से लाइन में खराबी आ जाती है।

कॉन्ग्रेस सरकार का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है- शिवराज सिंह

वहीं, मीडिया से बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है, “पहले कॉन्ग्रेस सरकार बोल रही थी कि शिवराज सिंह चौहान ने घटिया ट्राँसफॉर्मर खरीदे और अब बोल रही है कि चमगादड़ की वजह से बिजली कट रही है। इनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है।”

बिजली संकट से परेशान होकर जब मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने बिजली विभाग के अधिकारियों की बैठक बुलाई, तो बिजली विभाग के अफसरों ने बताया कि चमगादड़ बिजली के तारों पर उल्टा लटकते हैं, जिसकी वजह से बिजली के तार आपस में चिपक जाते हैं और फॉल्ट हो जाते हैं। लेकिन अधिकारियों की ये बात आम लोगों के गले नहीं उतर रही है और न ही उनके मंत्रालय के मंत्री प्रियव्रत सिंह के।

कमलनाथ सरकार में ही पैदा हुए हैं चमगादड़

कमलनाथ से पहले पिछले 15 साल से मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। इस दौरान बिजली की इतनी गंभीर समस्या कभी भी देखने को नहीं मिली थी। ऐसे में कॉन्ग्रेस की कमलनाथ सरकार में अचानक बिजली संकट बढ़ने की वजह से अधिकारी इस समस्या के पीछे की असली वजह का पता नहीं लगा पा रहे हैं और नए-नए तर्क देकर बचने की कोशिश कर रहे हैं।

MP में कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान ही होती है बिजली समस्या

मध्य प्रदेश में इस तरह से बिजली कटौती कमलनाथ सरकार के लिए सिरदर्द बन गई है। साल 2003 में भी मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार थी और उस समय भी बिजली आपूर्ति एक बड़ा मुद्दा बन गई थी, जिस कारण जनता ने कॉन्ग्रेस सरकार को सत्ता से ऐसे उखाड़ फेंका था कि 15 साल तक कॉन्ग्रेस सत्ता में नहीं आ पाई और अब कॉन्ग्रेस के फिर से सत्ता में आते ही बिजली की समस्या पैदा हो गई है।

अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए राबड़ी को बिहार का नेहरू बना रहे हैं सुशील मोदी

सुशील कुमार मोदी- एक ऐसा नाम, जो बिहार में तब से प्रासंगिक है, जब से लालू-नीतीश-रामविलास का उद्भव हुआ। सुशील मोदी भी इन्हीं तीनों की तरह जेपी आंदोलन की उपज हैं, लम्बे समय से राजनीति में सक्रिय हैं, छात्र राजनीति से निकले हैं, बिहार की गठबंधन सरकार में दूसरे नंबर के नेता हैं और लालू परिवार के ख़िलाफ़ अदालत जाने के लिए भी इन्हें जाना जाता है। तमाम उपलब्धियों के बावजूद अगर इतने बड़े स्तर का नेता अपने निकम्मेपन का ठीकरा उस लालू-राबड़ी सरकार पर फोड़े, जिसके बारे में जानने को कुछ नया न बचा हो, जिसकी कारस्तानियाँ पूरा बिहार जानता हो, तो यह अजीब है। सुशील मोदी अपनी, अपने गठबंधन सरकार की, अपनी पार्टी की और अपने सहयोगियों के निकम्मेपन को छिपाना चाह रहे हैं।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में टाल गए सवाल, जवाबदेही से भागने का कारण क्या?

सुशील मोदी ने जब प्रेस कॉन्फ्रेंस किया तो पत्रकारों ने उनसे मुजफ्फरपुर में Acute Encephalitis Syndrome (AES) से लेकर सवाल पूछे लेकिन उन्होंने जवाब देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ये मीडिया ब्रीफिंग बैंकिंग कमिटी के सम्बन्ध में बुलाई गई है और वह मुजफ्फरपुर त्रासदी से जुड़े सवालों के जवाब नहीं देंगे। अगर कोई अन्य मंत्री या विधायक ऐसी बात करता तो यह क्षम्य था लेकिन बिहार गठबंधन के सबसे बड़े सूत्रधार और बीच के 4 वर्षों को छोड़ दें तो 2005 से लगातार बिहार सरकार में मुख्यमंत्री के बाद सबसे बड़े नेता की ज़िमेम्दारी निभाने वाले व्यक्ति को यह बात शोभा नहीं देती कि वह इस तरह के सवालों से भागे।

सवाल सुशील मोदी से बनता है, सवाल नीतीश कुमार से बनता है कि 2005 से लेकर अब तक पिछले 15 वर्षों में बिहार में स्वास्थ्य सिस्टम में बदलाव लाने के लिए क्या किया गया है? 49 वर्षों पहले बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री के नाम पर स्थापित किया गया मुजफ्फरपुर का SKMCH, मेडिकल के पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स से आज भी क्यों महरूम है? लालू-राबड़ी पर हमें जो बहस करना था कर चुके, जनता को जो हिसाब करना था वह कर चुकी और अदालत भी न्याय कर रही है- लेकिन, अगर 1990 से 2005 तक लालू-राबड़ी ने बिहार का कबाड़ा किया तो 2005 से आज तक के समय में 14 में से 9 साल शासन करने वाली राजग गठबंधन ने क्या किया और पूरे 14 साल से सत्ता पर काबिज़ जदयू ने क्या किया?

सोचिए, अगर आज मुजफ्फरपुर के सबसे महत्वपूर्ण अस्पताल में पीडियाट्रिक्स (बाल चिकित्सा) विभाग में पोस्ट ग्रेजुएट की 10 सीटें भी होतीं तो स्थिति में कितना सुधार होता? शायद तब मुजफ्फरपुर में आसपास के जिलों से डॉक्टर नहीं बुलाने पड़ते। अब मीडिया में बात आने व इतनी संख्या में मौतों के होने के बाद अब नीतीश ने अस्पताल प्रशासन को इस सम्बन्ध में योजना तैयार करने को कहा है। इन छोटी-छोटी चीजों से बदलाव लाया जा सकता है, राबड़ी की आलोचना करने से नहीं। राबड़ी देवी को बिहार का नेहरू बनाने की ज़रूरत नहीं है। राबड़ी और लालू काल जा चुका है, उसके बाद हमने शासन को ट्रैक पर चलते भी देखा है, इसीलिए अब भी इस चीज के लिए लालू-राबड़ी की आलोचना करने का अर्थ है अपने निकम्मेपन को छिपाना।

लम्बे समय तक राज्य का वित्त मंत्री रहने के बावजूद ऐसी निष्क्रियता?

सुशील मोदी ने वो तमाम चीजें गिनाई जिनसे इस रोज के उन्मूलन का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि रोगियों को अस्पताल लाने का ख़र्च सरकार दे रही है, मुफ़्त में इलाज कर रही है, मृतकों के परिजनों को 4 लाख रूपए दिए जा रहे हैं और स्कूल-कॉलेज गर्मी के कारण बंद करा दिए गए। इनमें से कौन-सा ऐसा क़दम है जो इस बात की तस्दीक करता हो कि अगले वर्ष फिर से मासूमों की जानें नहीं जाएगी? इतना ही नहीं, सुशील मोदी ने उल्टा राजद से सवाल दागे कि राबड़ी काल में अस्पतालों को आवारा पशुओं का तबेला बना दिया गया था एवं मेडिकल कॉलेजों की दुर्दशा की गई थी। सुशील मोदी से बस एक सवाल, अगर किसी सरकार ने बिहार के स्वास्थ्य सेवा सिस्टम का कबाड़ा कर भी रखा था तो उसे ठीक करने में कितने दिन लगते हैं?

सुशील मोदी को जीएसटी के कार्यान्वयन के समय वित्त मंत्रियों की समिति का अध्यक्ष बनाया गया था, कई बजट पेश कर चुके मोदी को इसकी सभी बारीकियाँ पता हैं और योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर फंडिंग के सिस्टम को समझने वाला उनसे बेहतर शायद कोई न हो। इतना सब कुछ समझने के बावजूद सुशील मोदी ने आज तक कितनी बार केंद्रीय वित्त मंत्री के साथ बैठकों में बिहार के अस्पतालों का मुद्दा उठाया? 2014 में भी इस बीमारी से 400 के लगभग बच्चों की जानें गई थी। उसके बाद 4 वर्षों में नीतीश सरकार ने क्या कोई ऐसी योजना पेश की, जिसके आधार पर केंद्र से फंडिंग ली जा सके और व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त किया जा सके? 2017 में फिर से वित्त मंत्री बने मोदी ने क्या 2018 बजट के दौरान केंद्र से इस सम्बन्ध में बात की?

सुशील मोदी और बिहार त्रासदी से जुड़ी गंभीर बातों को आगे बढ़ाने से पहले एक छोटी-सी कहानी बिलकुल संक्षेप में जान लीजिए। भस्मासुर नामक राक्षस ने तपस्या कर के शिव को प्रसन्न कर दिया और यह वर माँगा कि वह जिसके भी सिर पर अपना हाथ रख दे, वह जल कर राख हो जाए। वर मिलने के बाद वह बदनीयत से शिव की ओर ही दौड़ पड़ा। इसके बाद रास्ते में एक मोहिनी ने उसे आकर्षित किया उसके साथ और नृत्य करते-करते ऐसे स्टेप्स तैयार किए जिससे भस्मासुर ने ख़ुद के ही सिर पर हाथ रख डाला। परिणाम- वह अपने ही वरदान का शिकार होकर राख में तब्दील हो गया। अब वापस लौटते हैं वास्तविक चर्चा पर।

राजद और उनके नेताओं की निष्क्रियता पारम्परिक रही है

जवाबदेह लालू-राबड़ी नहीं हैं। लालू की अनुपस्थिति में पार्टी के सर्वेसर्वा बने तेजस्वी यादव का कोई अता-पता नहीं है। वरिष्ठ राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह अंदेशा जताते हैं कि वह वर्ल्ड कप का मैच देखने गए होंगे। पप्पू यादव कई दिनों से मुजफ्फरपुर में बैठ कर बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं और अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं। तेजस्वी कहाँ हैं? 80 विधायकों के साथ भी अगर कोई पार्टी निष्क्रिय हो कर बैठी हुई है तो ज़रूर उसका अंत निकट है। अब जिसका अंत निकट है, उसपर आरोप लगाना सक्षम सत्ता का कार्य नहीं है। केंद्र में राजग की सरकार है, राज्य में राजग की सरकार है और बिहार से गिरिराज सिंह, रामविलास पासवान, अश्विनी कुमार चौबे, रविशंकर प्रसाद, नित्यानंद राय और आरके सिंह मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं।

जिस राज्य से 6 मंत्री देश की प्रचंड बहुमत वाली सरकार का हिस्सा हों, सवाल भी उनसे ही पूछा जाएगा। सुशील मोदी शायद अब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ होने वाली बैठक में बिहार के अस्पतालों का मुद्दा उठाने वाले हैं। शुक्रवार (जून 21, 2019) को सीतारमण ने सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों की बैठक बुलाई है और उसमें सुशील मोदी इन्सेफ़्लाइटिस से हो रही मौतों का मुद्दा उठा कर अतिरिक्त सहायता की माँग करेंगे। इस बैठक में प्रखंड स्तर पर बच्चो के लिए आईसीयू और वायरल शोध केन्द्र स्थापित करने के लिए केन्द्रीय मदद की माँग की जाएगी। आख़िर यह सब पहले क्यों नहीं हुआ? क्या लगभग एक दशक की समयावधि तक राज्य का उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहा नेता इसके लिए जवाबदेह नहीं है, राबड़ी हैं?

सुशील मोदी ने मौत के आँकड़ों को मनगढ़ंत बताया है। क्या इस त्रासदी का स्तर गिनने का मापदंड अब मृत मासूमों की संख्या रह गई है? कितनी गंभीरता से काम किया जाना है, वो इस बात पर निर्भर करेगा कि 200 बच्चों की मौतें हुई हैं या फिर 300 की? इससे क्या फ़र्क पड़ता है? अगर कोई बीमारी फ़ैल रही है तो उससे बच्चों की एक भी मौत हुई या नहीं हो, उसके उन्मूलन के लिए सरकार ने ज़रूरी क़दम क्यों नहीं उठाए? वो भी तब, जब यह सिलसिला दशकों से चला आ रहा हो। जितनी बच्चों की मौतें हुई हैं, असल आँकड़ा निश्चित ही उससे ज्यादा है क्योंकि कई सारे ऐसे भी होंगे जो अस्पताल तक पहुँच भी नहीं पाए होंगे। सुशील मोदी को राबड़ी को बिहार का नेहरू बनाने की बजाए बिहार का योगी आदित्यनाथ बन कर काम करना चाहिए और जैसे गोरखपुर व आसपास के 14 जिलों में एइएस को नियंत्रित किया गया, उसी तरह की इच्छाशक्ति यहाँ भी दिखानी चाहिए

भविष्य की सोचें अब, क्या अगले साल भी मौतें होंगी?

अगर अब भी कोई योजना बनती है तो सुशील मोदी को जनता को इस बात की गारंटी देनी चाहिए कि जितने बेड के अस्पताल बनाने का निर्णय लिया जाएगा, जब वह बन कर तैयार होगा तो उसमें उतने ही बेड होंगे। सुशील मोदी इस बात की कड़ी मॉनिटरिंग करें कि सभी प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स तय समयसीमा के भीतर पूरे होंगे। यह सब करने में वह और उनकी सरकार अभी तक बुरी तरह से विफल रही है। अगर आगे यह सब हो भी जाता है तो भी सरकार को इन मौतों के लिए माफ़ नहीं किया जा सकता। राबड़ी देवी का नाम जपना बंद किया जाए, विस्तृत कार्य-योजना बना कर केंद्र से फंडिंग माँगी जाए, केंद्र में किसी विपक्षी दल की भी सरकार नहीं है कि आप आरोप प्रत्यारोप का खेल खेलें।

केंद्र सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती जब स्थानीय जनप्रतिनिधि निकम्मे और उदासीन बने रहें। समान गठबंधन की केंद्र व राज्य में सरकार होने का फायदा अगर आप नहीं उठा पा रहे हैं तो इसकी जवाबदेही लालू-राबड़ी-तेजस्वी पर डालने से कोई फायदा नहीं। जनता ने नरेन्द्र मोदी और उनके विकास मॉडल के नाम पर वोट दिया है, वरना आपके नाम पर पार्टी का 2015 विधानसभा चुनाव में क्या हाल हुआ था, यह किसी से छिपा नहीं है।

इसीलिए सुशील मोदी द्वारा राजद को चुनाव परिणाम को लेकर धमकी देना एक बचकानी हरकत है। यह लूडो का खेल नहीं है जिसमें बच्चे बहस करते रहें कि कौन जीता, यह देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव की बात है। राजद पर एक भी सांसद नहीं होने का तंज कस कर आप अपनेआप को और ज्यादा निकम्मा साबित कर रहे हैं क्योंकि सीटों की संख्या बढ़ने के साथ ही जवाबदेही, जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व भी बढ़ता है, वो भी चक्रवृद्धि दर से।

बंगाल में हिंसा जारी, दो गुटों में झड़प, 1 की मौत, धारा 144 लागू

पश्चिम बंगाल में हिंसक घटनाओं का दौर अभी भी जारी है। ताज़ा समाचार राज्य के भाटपारा क्षेत्र से है जहाँ गुरुवार (20 जून) को दो गुटों के बीच हुई आपसी झड़प में एक व्यक्ति की मौत और चार अन्य के घायल होने की ख़बर सामने आई है। भाटपारा और जगतदल के अधिकारियों ने क्षेत्र में बढ़ते तनाव के चलते चार से अधिक व्यक्तियों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगाते हुए धारा 144 लागू कर दी है। मृतक की पहचान रामबाबू शॉ के रूप में हुई है।

ख़बर के अनुसार, इस झड़प के दौरान दोनों गुटों ने एक-दूसरे पर कच्चे बम फेंके और गोलियाँ भी बरसाई। स्थिति पर नियंत्रण के लिए जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने आँसू गैस के गोले दागे। फ़िलहाल घायलों को इलाक़े के एक निजी अस्पताल (बीएन बोस) में भर्ती कराया गया है। पश्चिम बंगाल सरकार के गृह सचिव, अलपन बंदोपाध्याय ने मीडिया को बताया, “इन क्षेत्रों में कुछ असामाजिक और आपराधिक तत्व सक्रिय रहे हैं। कुछ बाहरी तत्व भी स्थानीय असामाजिक तत्वों में शामिल हो गए। सरकार इन घटनाओं को गंभीरता से असाधारण मानती है।”

गृह सचिव, अलपन बंदोपाध्याय ने बताया, “आईपीएस, एडीजी संजय सिंह को दक्षिण बंगाल को तत्काल प्रभाव से बैरकपुर पुलिस आयुक्तालय का विशेष प्रभार सौंपा गया है। बैरकपुर आयुक्तालय के एडीजी प्रभारी जल्द ही घटनास्थल पर पहुँच रहे हैं। सीआरपीसी की धारा 144 को भाटपारा और जगतदल पुलिस थाना क्षेत्रों में लागू किया गया है।

चुनाव के बाद की हिंसा को ध्यान में रखते हुए, बैरकपुर पुलिस आयुक्तालय ने क़ानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए भाटापारा में एक नया पुलिस स्टेशन स्थापित करने का निर्णय लिया था। इस सुविधा का उद्घाटन होना अभी बाक़ी है।

इससे पहले 18 जून को पश्चिम बंगाल के कूच बिहार ज़िले में बीजेपी की युवा शाखा के कार्यकर्ता आनंद पाल (28 वर्षीय) की हत्या कर दी गई थी। इसके लिए बीजेपी ने तृणमूल को ज़िम्मेदार ठहराया था। इससे पहले बंगाल के बशीरहाट में बीजेपी कार्यकर्ता सरस्वती दास की हत्या की ख़बर भी सामने आई थी। वहीं, उत्तर परगना ज़िले के संदेशखली में TMC और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच हुई हिंसक झड़पों में दो बीजेपी और एक TMC कार्यकर्ता की मौत हो गई थी।

फ़िलहाल, इलाक़े में तनाव की स्थिति को देखते हुए रैपिड एक्शन फोर्स को तैनात किया गया है। पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के समय से ही हिंसात्मक गतिविधियाँ जारी हैं, और अब दिन-प्रतिदिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

‘द वायर’ ने बर्खास्त, बेआबरू पुलिस अफसर संजीव भट्ट की उम्रकैद में भी घुसा दी अपनी मोदी-घृणा

‘The Wire’ मामला कुछ भी हो पर अजेंडाबाजी से कभी पीछे नहीं हटता। ऐसे पोर्टल न कोर्ट की सुनते हैं, न मानते हैं और न कानून की इन्हें परवाह है। तभी तो 30 साल पुराने मामले में एक आरोपित पूर्व आईपीएस, आरोप सिद्ध होने के बाद उम्र कैद की सजा पाता है, तो ‘अजेंडा परमो धर्मः’ की राह पर चलने वाला Wire बड़ी चालाकी से अपने हैडलाइन में लिखता है, “IPS Officer Who Questioned Modi’s Role in Gujarat Riots Gets Life in 30-Year-Old Case” जैसे कोर्ट ने अपराधी संजीव भट्ट को उम्र कैद की सजा उसके 30 साल पुराने अपराध के कारण नहीं बल्कि ‘मोदी के गुजरात दंगों शामिल’ होने की बात कहने के लिए दिया गया है।

जबकि ‘लायर’ The Wire को अच्छी तरह पता है कि किस मामले में संजीव भट्ट को सजा हुई है और वो भी 30 साल पुराने मामले में, जहाँ न्याय की जल्द से जल्द दरकार थी। खैर, यहाँ प्रोपेगेंडा पोर्टल Wire का न्याय से कोई मतलब नहीं है, मतलब है तो बस अपने अजेंडे से और अजेंडा एकसूत्री है- येन-केन-प्रकारेण मोदी विरोध। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मोदी के गुजरात दंगों के मामले में सभी आरोपों से बरी होने के बाद भी, ऐसे प्रोपेगेंडा पोर्टल के स्वघोषित जज बार-बार ऐसा दिखाने और लिखने का प्रयास करते हैं जैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला इन्हें आज भी मान्य नहीं है क्योंकि वह इनके नैरेटिव को सूट नहीं कर रहा। इससे इनके अजेंडाबाजी में बाधा उत्पन्न हो रही है।

जबकि इसी वायर ने अपने हिंदी साइट पर ऐसी हरकतों से बचा है। वहाँ पर जो खबर है वही रिपोर्ट हुई है। लेकिन The Wire अपने अजेंडे पर कायम है। खैर,यह पहली बार नहीं है जब The Wire ने इस तरह की रिपोर्टिंग की हो। पहले भी सत्ता विरोध के नाम पर कई बार ये फेक न्यूज़ या भड़काऊ आर्टिकल पोस्ट करते नज़र आए हैं।

चलिए जान लीजिए कि पूरा मामला क्या है, क्यों यहाँ जानबूझकर The Wire ट्विस्ट दे रहा है। गुजरात के बरख़ास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को कोर्ट ने उम्रकैद की सज़ा दी जो कि कस्टोडियल डेथ के मामले में सुनाई गई। यह 1990 का मामला है और यह घटना जोधपुर की है। हिरासत में हुई मौत का यह मामला 30 साल पुराना है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने संजीव भट्ट से पूछा था कि उन्होंने हाई कोर्ट के 16 अप्रैल के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में पहले क्यों चुनौती नहीं दी? सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में निचली अदालत ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है और फैसला सुनाने की तारीख़ तय कर दी है। आज वही निर्णय निचली अदालत ने सुनाया।

विवादित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट का आरोप था कि इस घटना में 300 गवाह थे जबकि पुलिस ने सिर्फ़ 32 गवाहों को ही बुलाया। दरअसल, 1990 में भारत बंद के दौरान गुजरात के जामनगर में भी हिंसा हुई थी। उस समय संजीव भट्ट वहाँ पर एएसपी के रूप में पदस्थापित थे। उस दौरान पुलिस ने 133 लोगों को गिरफ़्तार किया था, जिसमें से 25 घायल हुए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उस दौरान प्रभुदास नामक व्यक्ति की हिरासत में ही मौत हो गई थी।

बता दें कि संजीव भट्ट सोशल मीडिया पर विवादित ट्वीट्स करने के लिए भी कुख्यात हैं। उनके ट्वीट्स अक़्सर विवाद का विषय बनते थे। उनकी पत्नी ने उनके जेल जाने के बाद मोदी सरकार पर बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि मोदी के पीएम बनने के बाद से ही उन पर कार्रवाई शुरू हो गई।

वैसे, चाहे जितनी बार, The Wire जैसे पोर्टल बदनाम क्यों न हो जाए लेकिन अजेंडेबाज़ी से बाज आ जाएँ तो करेंगे क्या? यही प्रमुख कारण है कि ऐसे पोर्टल अपनी विश्वश्नीयता खोते जा रहे हैं।

घर के अंदर कब्र और वहीं खाना-पीना-सोना: UP के छह पोखर गाँव के मुस्लिम आबादी की स्थिति दयनीय

सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास – लोकसभा में दूसरी बार जीत कर पहुँचे पीएम मोदी के इस नारे को उत्तर प्रदेश प्रशासन को जरूर सुनना चाहिए। और न सिर्फ सुनना चाहिए बल्कि इस पर अमल भी करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि छह पोखर गाँव की मुस्लिम आबादी को विश्वास में लेना बहुत जरूरी है। छह पोखर आगरा में है। और यहाँ के लोग अपने घरों में ही मृतक परिवार वालों को दफनाने के लिए मजबूर हैं।

छह पोखर गाँव के लोग कब्रों के साथ रहने को मजबूर हैं। किसी के घर में चूल्हे के पास कब्र है तो किसी के बरामदे में। गाँव में अधिकांश लोग गरीब और भूमिहीन हैं। नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर में रिंकी बेगम बताती हैं कि उनके घर के पीछे पाँच लोगों को दफनाया गया है, इनमें उनका दस महीने का बेटा भी है। इसी गाँव की गुड्डी कहती हैं, “हम गरीब लोग इज्‍जत की मौत भी नहीं मर सकते। हमें कब्रों के ऊपर ही बैठना और चलना पड़ता है। घर में जगह की कमी है।”

यहाँ रहने वाले अधिकांश मुस्लिम परिवार गरीब और भूमिहीन हैं। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में ऐसे घरों में एक से ज्यादा (खासकर बच्चे) मौतें होती हैं। गाँव में कब्रिस्तान के नहीं होने से लगभग हर घर में एक से ज्यादा लोगों की कब्रे हैं। जगह की कमी की समस्‍या के कारण घर में ताजा बनी कब्रों को सीमेंट से पक्‍का नहीं किया जाता क्‍योंकि इससे ज्‍यादा जगह घिरती है। एक कब्र को दूसरी कब्र से अलग दिखाने के लिए उनके ऊपर छोटे-बड़े पत्‍थर रख दिए जाते हैं।

फोटो साभार: वन इंडिया

छह पोखर गाँव में कब्रिस्तान है ही नहीं। गाँव वालों ने कुछ समय पहले जब प्रशासन से इस बाबत अनुरोध किया था तो ‘पूर्णतः सरकारी ढंग’ से कब्रिस्तान के लिए जगह आवंटित कर दी गई थी। ‘पूर्णतः सरकारी ढंग’ इसलिए लिखना पड़ा क्योंकि जो जमीन कब्रिस्तान के लिए आवंटित की गई थी, वो एक तालाब के बीचोबीच पड़ती है।

इस समस्या को लेकर कई बार धरने-प्रदर्शन भी हुए। लेकिन नतीजा आज तक सामने नहीं आया। 2017 में इसी गाँव के मंगल खान की मौत हो गई थी। उनके परिवार के लोगों ने मृत शरीर को दफनाने से तब तक इनकार कर दिया, जब तक गाँव को कब्रिस्‍तान के लिए जमीन आवंटित नहीं करा दी जाती। अधिकारियों ने तब आश्वासन भी दिया था, परिवार वालों को समझा-बुझा के मंगल खान को तालाब के किनारे दफनवा भी दिया था। लेकिन तब से लेकर अब तक वो सरकारी आश्‍वासन खोखला ही साबित हुआ है।

जब इस बात की जानकारी जिलाधिकारी रविकुमार को मिली तो उन्‍होंने कहा, “मैं अधिकारियों की एक टीम गाँव में भेजूंगा। कब्रिस्‍तान के लिए आवश्‍यक जमीन का ब्‍यौरा मँगवा कर देखूँगा और उचित निर्णय लूँगा।” उम्मीद है जिलाधिकारी का यह आश्वासन भी पिछले कई वादों की तरह खोखली न साबित हो।

सरफराज पर हो सकती है अंदरूनी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’, वर्ल्ड कप के बीच में ही जा सकती है कप्तानी

भारत से हार के बाद पाकिस्तान के सेमीफाइनल में पहुँचने की राह काफी मुश्किल हो गई है। वर्ल्ड कप 2019 में पाकिस्तान की यह लगातार दूसरी हार थी और वह अब तक कुल तीन मैच हार चुका है। पाकिस्तान को अगर सेमीफाइनल में पहुँचना है तो बाकी के सभी चार मैच जीतने होंगे।

लेकिन मीडिया में आ रही ख़बरों से ऐसा लगता है कि पाकिस्तान टीम के इस ख़राब प्रदर्शन का नुकसान कप्तान सरफराज को हो सकता है। भारत से मिली करारी हार के बाद से ही पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में अंदरूनी कलह और विवाद की ख़बरें आ रही हैं। इसका नतीजा यह हो सकता है कि कप्तान सरफराज को टूर्नामेंट के बीच में ही कप्तानी छोड़नी पड़े।

भारत से हार के बाद इस तरह की खबरें भी सुनाई देने लगीं हैं कि पाकिस्तानी टीम में ही कई गुट बन गए हैं और कप्तान सरफराज बिल्कुल अलग-थलग पड़ गए हैं। हालाँकि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने इसे महज अफवाह बताया है और कहा है कि पूरी टीम सरफराज के साथ खड़ी है।

दबंग इंजमाम उल हक़ का हो सकता है बड़ा रोल

पाकिस्तान क्रिकेट टीम के मुख्य चयनकर्ता इंजमाम उल हक़ और कप्तान सरफराज अहमद के बीच भी सम्बन्ध नाजुक चल रहे हैं और यह विवाद की एक और वजह हो सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टीम के चयन में इंजमाम उल हक़ की बात का ज्यादा वजन रहता है और वो अपने रुतबे का पूरा इस्तेमाल करते हैं।

इंजमाम अपनी मौजूदगी का एहसास हमेशा कराते हैं लेकिन सवाल ये है कि मुख्य चयनकर्ता के तौर पर पाकिस्तान की टीम को उनका कितना फायदा मिल रहा है? पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि मुख्य चयनकर्ता के तौर पर इंजमाम का वर्ल्ड कप की टीम में काफी दखल रहा है। जब भारत से हार के बाद पाकिस्तान में कप्तान सरफराज अहमद, कोच मिकी आर्थर और कई खिलाड़ियों के लिए अपमानजनक बातें कही जा रही हैं ऐसे में अब इंजमाम की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं।

पाकिस्तान के चैनलों की टीवी रिपोर्ट में सवाल पूछे जा रहे हैं कि इंजमाम को जवाब देना चाहिए कि बुरी तरह से फ्लॉप रहे शोएब मलिक को वर्ल्ड कप के लिए क्यों चुना गया? वो इंग्लैंड में पाकिस्तान की टीम के साथ हैं और अहम फैसलों में उनका दखल है। जियो टीवी की रिपोर्ट के अनुसार सरफराज और मिकी ऑर्थर में वैसी दंबगई नहीं है कि इंजमाम को नियंत्रण में रख पाएँ इस वजह से इंजमाम खुलकर मनमानी करते हैं।

वर्ल्ड कप के लिए पाकिस्तान के प्लेइंग इलेवन में जिन लोगों को शामिल किया है उससे लोग नाखुश हैं। इस टीम में इंजमाम उल हक के भतीजे इमाम उल हक भी शामिल हैं जो भारत के खिलाफ बुरी तरह से फ्लॉप रहे।

PCB भी है कप्तान सरफराज से नाराज

वहीं, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने भी कप्तान सरफराज अहमद को जमकर लताड़ लगाई है। PCB का कहना है कि सरफराज अहमद टीम को सही दिशा में नेतृत्व और खिलाड़ियों को प्रेरित करने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में अगर पाकिस्तान की टीम दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के खिलाफ होने वाले आगामी मैचों में भी हारती है तो सरफराज अहमद को कप्तान के पद से हटाया जाना तय है।

सेमीफाइनल में जगह बनाने के लिए पाकिस्तान के लिए बाकी के चार मैच जीतना आसान नहीं है। पाकिस्तान का अगला मैच 23 जून को दक्षिण अफ्रीका से है। हालाँकि दक्षिण अफ्रीका इस बार कमजोर टीम दिख रही है। दक्षिण अफ्रीका इंग्लैंड, बांग्लादेश और भारत से हार चुका है।

इसके बाद पाकिस्तान बर्मिंघम में 26 जून को न्यूजीलैंड के साथ खेलेगा। पाकिस्तान के लिए यह सबसे मुश्किल मुकाबला है। न्यूजीलैंड ने अब तक सारे मैच जीते हैं बस भारत से मैच बारिश के कारण नहीं हो पाया था। पाकिस्तान को न्यूज़ीलैंड को हराने के लिए बेहतरीन खेलना होगा।

पाकिस्तान के बाकी दो मैच लीड्स में अफगानिस्तान से और लॉर्ड्स में बांग्लादेश से हैं। अफगानिस्तान को पाकिस्तान हरा सकता है, लेकिन पाकिस्तान वॉर्मअप मैच में अफगानिस्तान से हार चुका है। पाकिस्तान का आखिरी मैच बांग्लादेश से है जो कि बढ़िया खेल रही है और उसने 17 जून को वेस्टइंडीज को 322 रन चेज करके हराया है, इसलिए पाकिस्तान के लिए बांग्लादेश को हराना भी आसान नहीं होगा।