Tuesday, October 1, 2024
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‘सारे मोदी चोर’ बोलकर बुरे फँसे राहुल गाँधी, अब ललित मोदी करेंगे राहुल के खिलाफ केस

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपनी बदजुबानी की वजह से परेशानियों में घिरते नजर आ रहे हैं। दरअसल, राहुल गाँधी ‘सारे मोदी चोर हैं’ वाले नारे की वजह से बुरी तरह फँसते हुए दिखाई दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले ‘चौकीदार चोर है’ का नारा इजाद करने वाले राहुल अब इसी ‘चोर’ शब्द की जाल में फँस गए हैं। बता दें कि, राहुल गाँधी पिछले दिनों एक चुनावी जनसभा में पीएम मोदी को घेरने की कोशिश करते हुए एक बयान में कह दिया था कि ‘सारे मोदी चोर हैं।’ मगर अफसोस की बात तो ये है कि पीएम मोदी को घेरने निकले राहुल अपने बयान की वजह से खुद घिर चुके हैं।

राहुल के इस बयान पर अब आईपीएल के पूर्व अध्यक्ष ललित मोदी ने राहुल के खिलाफ मुकदमा दायर करने की धमकी दी है। ललित मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि राहुल गाँधी कह रहे हैं कि सारे मोदी चोर हैं, अब वह इस मामले को लेकर अदालत लेकर जाएँगे, वह यूके की अदालत में ही मामला दर्ज करवाएँगे। इस दौरान उन्होंने राहुल गाँधी पर जमकर निशाना भी साधा। ललित मोदी ने अपने ट्वीट के साथ एक वीडियो भी साझा किया है, जिसमें उन्होंने कॉन्ग्रेस के घोटालों की सूची सामने रख दी। ललित मोदी ने लिखा कि 5 दशक से गाँधी परिवार भारत में लूट मचा रहा है और आज ये लोग हम पर आरोप लगा रहे हैं।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र के नांदेड़ में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गाँधी ने पीएम नरेंद्र मोदी के ऊपर निशाना साधने के साथ ही नीरव मोदी, ललित मोदी का नाम लेते हुए कहा था कि सभी चोरों के नाम में मोदी है। जिसके बाद बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील ने राहुल गाँधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। सुशील मोदी की तरफ से कोर्ट में कहा गया था कि राहुल गाँधी वाले भाषण में मोदी सरनेम वाले व्यक्ति को चोर बताया था, जिससे समाज में उनकी छवि धूमिल हुई है। यह एक आपराधिक कृत्य है, जिसकी सजा न्यायालय द्वारा राहुल गाँधी को मिलनी चाहिए।

राहुल गाँधी के इस बयान को लेकर पीएम मोदी ने भी माढ़ा में रैली के दौरान राहुल गाँधी समेत पूरे कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि कॉन्ग्रेस और उनके सहयोगियों ने उनके पिछड़े होने की वजह से कई बार गालियाँ और हैसियत बताने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा कि वह खुद पर हुए हमले तो सह लेंगे लेकिन पिछड़े समाज के लोगों पर राहुल के हमले को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

चुनावी जनसभा के दौरान हार्दिक पटेल को पड़ा झापड़, BJP को ठहराया दोषी

2019 लोकसभा चुनावों को देखकर ऐसा लगता है मानो भारतीय राजनीति में जो कभी नहीं हुआ, वो सब इन चुनावों में देखने को मिल जाएगा। फिर चाहे इस सूची में आजम खान के बयानों को शामिल कर लिया जाए या फिर हार्दिक पटेल को पड़े थप्पड़ को।

जी हाँ, हाल ही में हुई चुनावी जनसभा के दौरान हार्दिक पटेल को थप्पड़ मारा गया है। घटना गुजरात के सुरेंद्र नगर की है। सोशल मीडिया पर यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है।

मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक हार्दिक पटेल जिस समय सभा को संबोधित कर रहे थे तभी एक व्यक्ति मंच पर पहुँचा और हार्दिक को जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। इस घटना के बाद जनसभा में हड़कंप मच गया।

इस वीडियो में हार्दिक पटेल और थप्पड़ मारने वाले शख्स के बीच नोक-झोंक भी साफ़ नज़र आई। हार्दिक ने इस तमाचे के लिए बीजेपी को दोषी ठहराया है। पटेल का कहना है कि बीजेपी उन पर हमला करवा रहे हैं। उनकी मानें तो बीजेपी चाहती है कि उन्हें (हार्दिक) मार दिया जाए। वे कहते हैं कि वे ऐसे हमलों पर चुप नहीं रहेंगे।

चुनाव जनसभा के दौरान हुई ऐसी घटना का यह पहला किस्सा नहीं है। गुरुवार(अप्रैल 18, 2019) को भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव पर जूता फेंकते हुए हमला किया गया। इससे पहले दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी 2014 में रैली के दौरान थप्पड़ पड़ चुका है।

कर्नाटक: ‘निर्भया’ जैसी दर्दनाक घटना, पेड़ से टंगी मिली इंजीनियरिंग छात्रा की अधजली लाश

कर्नाटक के रायचूर में एक बर्बरतापूर्ण वारदात को अंजाम दिया गया। यहाँ सिविल इंजीनियरिंग की एक छात्रा का अधजला शरीर पेड़ से टंगा पाया गया। मृतका की पहचान अमृता (असली नाम नहीं, रेप की भी है संभावना) के तौर पर की गई है। इस घटना से पूरे क्षेत्र के लोग गुस्से में हैं। छात्रा की संदिग्ध मौत से संदेह की स्थिति पैदा हो गई है।

स्थानीय ख़बरों के अनुसार, अमृता नामक लड़की रायचूर में एक इंजीनियरिंग कॉलेज की छात्रा थी। वह 15 अप्रैल को लापता हो गई थी। उक्त छात्रा जब तीन दिन बाद तक भी घर नहीं लौटी तो उसके माता-पिता ने उसे ढूँढ़ना शुरू कर दिया। बाद में, अमृता का जला हुआ शव शहर के बाहरी इलाक़े में एक पेड़ पर लटका मिला। मृतका के शरीर पर क्रूरता और बर्बरता स्पष्ट दिखाई दे रही थी और उसे देखकर लोगों की आत्मा तक सिहर गई।

प्रथम दृष्टया यह लग रहा था कि अमृता ने आत्महत्या की है। लेकिन, उसके माता-पिता और दोस्तों को उसकी मौत पर संदेह था। इसी कारण से उन्होंने हत्या की आशंका जताई। अमृता की नृशंस हत्या के विरोध में उसके दोस्तों और कॉलेज के अन्य छात्रों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। उन्होंने माँग की है कि राज्य सरकार मौत की प्रकृति और परिस्थितियों का पता लगाने के लिए तत्काल जाँच शुरू करे।

रायचूर के लोग इस घटना की तुलना निर्भया घटना से कर रहे हैं, जिसने उस समय राष्ट्र को झकझोर दिया था। सोशल मीडिया पर एक ऑनलाइन याचिका के ज़रिए यह दावा किया जा रहा है कि पुलिस अधिकारी और कुछ प्रमुख लोग अपराधियों की मदद करके मामले को प्रभावित कर रहे हैं और मामले को आत्महत्या का रूप देकर बंद करने की कोशिश कर रहे हैं।

ऑनलाइन याचिका चलाने वालों को शक है कि अमृता का बलात्कार करने बाद उसे जलाया गया और फिर उसे अधजली हालत में पेड़ से टांग दिया गया। इस ऑनलाइन याचिका पर 50,000 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं।

फिलहाल स्थानीय पुलिस ने इस घटना की जाँच शुरू कर दी है और मामले के एक आरोपी को गिरफ़्तार कर लिया है।

कॉन्ग्रेस नेता प्रियंका चतुर्वेदी का पार्टी से इस्तीफ़ा, उपेक्षित और दुखी महसूस कर रही थीं

कॉन्ग्रेस प्रवक्ता और पार्टी का जाना-माना चेहरा रहीं प्रियंका चतुर्वेदी ने, जो टीवी पर होने वाली डिबेट्स में कॉन्ग्रेस का पक्ष मज़बूती से रखा करती थीं, पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है। कल ही वो ट्विटर पर पार्टी द्वारा मेहनती लोगों की जगह गुंडों को तरजीह देने की बात कर रही थीं। ऐसा माना जा रहा है कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को इस्तीफ़ा सौंपने के बाद वो शिवसेना में शामिल हो सकती हैं।

प्रियंका चतुर्वेदी ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को सौंपा इस्तीफ़ा
पार्टी कार्यकर्ताओं के दुर्व्यवहार से थीं आहत

चतुर्वेदी से दुर्व्यवहार पर बच निकले पार्टी सदस्य, सिंधिया की सिफारिश  

इससे पहले, राजनीति कवर करने वालीं पत्रकार विजय लक्ष्मी शर्मा ने परसों रात (अप्रैल 17, 2019) कॉन्ग्रेस के आन्तरिक संवाद के एक पत्र को ट्वीट किया। उस पत्र में उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी के सदस्य श्री फजले मसूद पार्टी के कुछ सदस्यों को यह सूचित करते हैं कि श्रीमती चतुर्वेदी से दुर्व्यवहार समेत अनुशासन के उल्लंघन के मामले में उनपर की गई कार्रवाई को निरस्त किया जा रहा है।

मामला राफेल विवाद को लेकर मथुरा में कॉन्ग्रेस की पत्रकार वार्ता के दौरान का है।

कार्रवाई की संस्तुति और मामले की शिकायत प्रियंका चतुर्वदी ने की थी, और कार्रवाई निरस्त कॉन्ग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश के पार्टी प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया की सिफारिश पर की गई थी। आरोपियों में अधिकतर मथुरा के स्थानीय कॉन्ग्रेस नेता थे, पर दो बड़े नाम प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी के सदस्य श्री अब्दुल जब्बार और महासचिव श्री उमेश पंडित के थे।

पत्र के ‘प्रतिलिपि’ खण्ड में देखा जा सकता है कि उक्त पत्र को कॉन्ग्रेस के उच्च स्तरीय सदस्यों ज्योतिरादित्य सिंधिया और एके एंटनी (कॉन्ग्रेस की अनुशासन समिति के अध्यक्ष) को भी प्रेषित किया गया था- यानि माफ़ी के इस निर्णय में केवल सिंधिया ही नहीं, कॉन्ग्रेस के पूरे ढाँचे की सहमति मानी जा सकती है।

चतुर्वेदी का क्षोभ

विजय लक्ष्मी शर्मा के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए प्रियंका चतुर्वेदी ने लिखा कि उनकी पार्टी मेहनती कार्यकर्ताओं की बजाय गुंडों को तरजीह दिए जाने से वह दुखी हैं। उन्होंने पार्टी के लिए हर तरफ से गालियाँ झेलीं पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पार्टी के भीतर ही उन्हें धमकाने वाले मामूली कार्रवाई के भी बिना बच निकलते हैं।

एक क्लर्क की गलती और… दिल्ली को बसाने वाले पांडवों का नाम मिट गया दिल्ली के नक्शे से

बतौर राजधानी अगर हम दिल्ली की बात करें तो इसके इतिहास के सिरे द्वापरयुग तक जाते हैं। भारत के इतिहास में दिल्ली को पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। चूँकि पांडवों ने ही दिल्ली को इंद्रप्रस्थ नाम के साथ सबसे पहले बसाया था।

आजादी के बाद सन् 1955 में पुराने किले के दक्षिण पूर्वी भाग में हुई पुरातात्विक खुदाई से कुछ ऐसे पात्र प्राप्त किए गए थे जो महाभारतकालीन की वस्तुओं से मेल खाते थे। जिनके आधार पर माना गया कि यही वे स्थल है जिसे इतिहास में पांडवों की राजधानी कहा जाता था। इसके बाद कई बार खुदाई हुई और हर बार यह बात पुख्ता होती गई कि जिस दिल्ली में हम रह रहे हैं, जिसका इतिहास में मौर्य काल से लेकर मुगल काल तक की बसावट है, वह किसी और की नहीं बल्कि पांडवों की ही देन है।

आज हम दिल्ली घूमते हुए हर नामी शख्स के नाम से दिल्ली की सड़को को पहचानते हैं। फिर चाहे वो अकबर रोड हो, डॉ. अब्दुल कलाम रोड हो, कस्तूरबा गाँधी रोड हो, महात्मा गाँधी रोड हो। लेकिन क्या कारण है कि हम पूरी दिल्ली को घूमते हुए कहीं पर भी पांडव रोड नहीं देखते…जोकि सबसे महत्तवपूर्ण है। क्या दिल्ली की इन नामवर शख्सियतों के बीच पांडवों के इंद्रप्रस्थ के साथ इंसाफी हुई या कहानी कुछ और है?

दरअसल  दिल्ली में जिस तरह से हर नामी शख्सियत को सम्मान देने के लिए राजधानी की सड़को के नाम रखे गए, उसकी तरह पांडवों के नाम पर भी एक सड़क का नामकरण हुआ था। 10 फरवरी 1931 को नई दिल्ली विधिवत उद्घाटन से पहले यहाँ कि सभी सड़कों के नाम तय किए गए।

इसके लिए बकायदा एक कमेटी गठित की गई जो इस पर काम कर रही थी, लेकिन एक सरकारी बाबू की ज़रा सी गड़बड़ी के कारण उसे सरकारी रिकॉर्ड में अंग्रेजी में पांडव लिखते हुए अंग्रेजी के अक्षर ‘वी’ की जगह ‘आर’ लिख दिया गया। मात्र इसी लेखन त्रुटि के कारण आज दिल्ली उस सड़क को पंडारा रोड के नाम से जानती है। मात्र एक ‘व’ और ‘र’ के फ़र्क़ ने पांडवों के नामोंनिशान को दिल्ली के नक्शे विलुप्त कर दिया। हैरानी की बात तो ये है कि इस गलती को सुधारने का दोबारा कभी प्रयास भी नहीं किया गया।

आज पंडारा रोड को दिल्ली की उन टॉप 10 जगहों में गिना जाता है, जहाँ का ज़ायकेदार खाना खाने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इंडिया गेट से क़रीब इस मार्ग के बारे में अगर आप इंटरनेट पर भी सर्च करने का प्रयास करेंगे तो इसके नाम के इतिहास से ज्यादा वहाँ मौजूद रेस्टरां के नाम आपको देखने को मिलेंगे। बता दें कि आधुनिक दिल्ली में यहाँ की नाइट लाइफ भी बहुत मशहूर है।

भारत के गौरवशाली इतिहास का एक हिस्सा कई सालों से वर्तनी की त्रुटि के कारण दबा हुआ है। जिन पांडवों ने भारतवर्ष को इंद्रप्रस्थ दिया, उसी इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) में उनका नाम कहीं भी नहीं है। आज सोशल मीडिया पर कई लोगों द्वारा इस विषय पर सवाल उठाए जा रहे हैं। लेकिन जवाब में वहीं एक किस्सा सुनाया जा रहा है, जिसका उपरोक्त जिक्र हुआ है। बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस में आज इस विषय पर एक खास रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है।


RaGa इधर उद्योगपतियों को कोसते हैं, उधर अंबानी-कोटक युवा कॉन्ग्रेस नेता को सांसद बनाने के लिए लगाते हैं गुहार

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमेन मुकेश अंबानी ने मुंबई दक्षिण लोकसभा सीट से कॉन्ग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। इस सीट पर 29 अप्रैल को चुनाव होना है। एशिया के सबसे अमीर बैंकर उदय कोटक ने भी देवड़ा को अपना समर्थन देने की घोषणा की है।

हाल ही में, देवड़ा ने अपने ट्वविटर हैंडल से एक वीडियो शेयर किया है। इसमें अंबानी कहते हैं, “मिलिंद दक्षिण मुंबई का आदमी है… 10 साल तक दक्षिण मुंबई का प्रतिनिधित्व करने के बाद, मेरा मानना ​​है कि मिलिंद को दक्षिण मुंबई के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का गहन ज्ञान है। उनके नेतृत्व में, छोटे और बड़े उद्यम दक्षिण मुंबई में पनपेंगे।”

एक उम्मीदवार के समर्थन में उद्योगपतियों का खुलकर सामने आना सामान्य नहीं है। इसके अलावा, देवड़ा के लिए अंबानी का समर्थन ऐसे समय में आया है जब कॉन्ग्रेस राफ़ेल सौदे से कथित रूप से लाभ के लिए उनके भाई अनिल अंबानी को लगातार निशाना बना रही है।

मुकेश और अनिल अंबानी अलग-अलग हस्तियाँ हैं: देवड़ा

वीडियो में कोटक कहते हैं, “सही मायने में मुंबई का कनेक्शन देवड़ा है। मेरा मानना ​​है कि मिलिंद दक्षिण मुंबई को समझते हैं, उनका परिवार लंबे समय से मुंबई से जुड़ा हुआ है, उनका परिवार (एक) नई दिल्ली में व्यापार और उद्योग का समर्थक है।” वीडियो में अन्य उद्यमी, व्यापारी और सामान्य नागरिक भी देवड़ा को समर्थन देते दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें हाल ही में कॉन्ग्रेस की मुंबई शहर इकाई अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

जहाँ एक तरफ मुकेश अंबानी देवड़ा का समर्थन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राहुल गाँधी उनके भाई अनिल अंबानी पर हमलावर रुख़ अपनाते रहे हैं। इस स्थिति को लेकर जब देवड़ा से प्रश्न पूछा गया, तो उन्होंने TOI से कहा, “मुकेश और अनिल अलग-अलग हस्तियाँ हैं, दोनों की एक-दूसरे से तुलना करना अनुचित होगा।” उन्होंने एक टीवी चैनल से कहा कि उन्हें इस बात पर भी समान रूप से ही गर्व है कि उन्हें छोटे व्यापारियों और पानवालों का भी समर्थन मिल रहा है।

दिवंगत कॉन्ग्रेस नेता मुरली देवड़ा के पुत्र, मिलिंद को शिवसेना सांसद अरविंद सावंत के ख़िलाफ़ खड़ा किया गया है, जिन्होंने 2014 में उन्हें 1.28 लाख वोटों के अंतर से हराया था। मिलिंद देवड़ा 2004 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए थे, जब उन्होंने भाजपा के जयवंतीबेन मेहता को 10,000 मतों के अंतर से हराया था। 2009 के चुनावों में, उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बाला नंदगांवकर को 1.12 लाख मतों के अंतर से हराया था।

देवड़ा को इस समय पूरे दक्षिण मुंबई में व्यापारी वर्ग की तरफ से समर्थन मिल रहा है। स्टेनलेस स्टील मर्चेंट एसोसिएशन, बुलियन, रत्न और ज्वेलरी एसोसिएशन ऑफ ज़ावेरी बाज़ार, डायमंड मर्चेंट्स फेडरेशन और अन्य प्रमुख व्यापारिक समूहों ने उन्हें अपना समर्थन दिया है। भारत डायमंड बोर्स में हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में, भरत शाह ने देवड़ा की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुंबई को उनके जैसे नेता की ज़रूरत थी जो चौबीसों घंटे सुलभ रहें।

त्रिपुरा कॉन्ग्रेस अध्यक्ष की गुंडागर्दी: थाने में घुसकर युवक को जड़ा थप्पड़… लेकिन किस्मत खराब, वीडियो हो गया Viral

त्रिपुरा के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष प्रद्योत किशोर देव बर्मन का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वो थाने में घुसकर एक शख्स को थप्पड़ मारते हुए नजर आ रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, जिस शख्स को बर्मन थप्पड़ मारते हुए नजर आ रहे हैं, उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर रखा था। इस शख्स पर प्रद्योत देव बर्मन की बहन व त्रिपुरा कॉन्ग्रेस उम्मीदवार प्रज्ञा देव बर्मन के काफिले पर हमला करने का आरोप है। पुलिस आरोपी शख्स को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ कर रही है। इस बीच थाने में घुसकर आरोपी शख्स को थप्पड़ मारने का त्रिपुरा के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष प्रद्योत देव बर्मन का ये वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल होने लगा है।

प्रद्योत किशोर को जब आरोपी के गिरफ्तार होने की बात पता चली, तो वो अपने समर्थकों के साथ पुलिस स्टेशन पहुँचे और आरोपी शख्स को जोरदार तमाचा जड़ दिया। पुलिस स्टेशन में मौजूद पुलिस वालों ने बीच बचाव किया, लेकिन प्रद्योत किशोर का पारा सातवें आसमान पर था। वो किसी की भी बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। पुलिस उप महानिरीक्षक अरिंदम नाथ के अनुसार, आरोपी इंडिजिनियस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) का समर्थक है।

इस मामले पर बात करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता रतन लाल नाथ ने कहा कि वीडियो में ये साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि कैसे प्रद्योत किशोर ने अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने-धमकाने की कोशिश की है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर ये इंसान पुलिस स्टेशन के अंदर किसी शख्स के ऊपर हाथ उठा सकता है, तो फिर तो ये कहीं भी किसी की भी हत्या कर सकता है। त्रिपुरा में 23 अप्रैल को तीसरे चरण में मतदान होना है और आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद भी त्रिपुरा कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का थाने में घुसकर थप्पड़ मारने की घटना उनको मुश्किल में डाल सकती है।

बता दें कि, प्रज्ञा देव बर्मन त्रिपुरा संसदीय सीट से कॉन्ग्रेस प्रत्याशी हैं और त्रिपुरा ईस्ट से चुनाव लड़ रही हैं। इस मामले में प्रज्ञा का भी बयान सामने आया है। प्रज्ञा ने कहा है कि वो तुलाशिखर में सभा को संबोधित करके लौट रही थी, तभी आईपीएफटी के समर्थकों ने उनके काफिले पर ईंट फेंक कर हमला किया। उन्होंने कहा कि ऐसा लगा था कि इस शख्स के साथ कुछ और लोग भी थे। इसके साथ ही प्रज्ञा ने कहा कि जनता से मिल रहे समर्थन को देखते हुए राजनीतिक ईर्ष्या के तहत उनकी कार पर पथराव करने का प्रयास किया गया।

वहीं, प्रद्योत ने थप्पड़ मारने वाली घटना के बाद कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। इस व्यक्ति ने मेरी बहन पर ईंट से हमला किया था, जिससे वह बाल-बाल बचीं। मैं अपने खिलाफ होने वाले हर कार्रवाई के लिए तैयार हूँ, लेकिन मैंने वही किया जो कोई भी भाई या त्रिपुरा का एक जिम्मेदार नागरिक करता।” जबकि आईपीएफटी ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि उसके समर्थकों ने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के काफिले पर कोई पत्थरबाजी नहीं की थी।

कलियुग का ‘एकलव्य’: BSP को देना चाहता था वोट, गलती से दे दिया BJP को – अफसोस में काट डाली उँगली

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत गुरुवार (अप्रैल 18, 2019) को उत्तर प्रदेश के आठ सीटों पर वोट डाले गए। इस दौरान बुलंदशहर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया। दरअसल, यहाँ के शिकारपुर क्षेत्र में एक मतदाता को बसपा को वोट करना था, लेकिन गलती से उन्होंने बीजेपी को वोट डाल दिया। जिसके बाद उन्हें अपनी इस गलती से इतना पछतावा हुआ कि उन्होंने जिस उँगली से मतदान किया था उसे ही काट डाला।

जानकारी के मुताबिक, शिकारपुर तहसील के गाँव अब्दुल्लापुर हुलासन निवासी 22 वर्षीय पवन कुमार वोट डालने को लेकर काफी उत्साहित थे। गुरुवार को पवन कुमार मतदान केंद्र पर खुशी-खुशी अपना वोट डालने पहुँचे। निर्धारित प्रक्रिया पूरी करने के बाद जब पवन कुमार ईवीएम पर वोट डालने के लिए गए तो गलती से हाथी के निशान वाला बटन दबाने की जगह कमल के निशान का बटन दब गया।

वीवीपैट मशीन से पवन ने अपना वोट भाजपा को जाते देखा तो उन्हें काफी अफसोस हुआ। इसके बाद वह घर पहुँचे और उसने अपने बाएँ हाथ की तर्जनी उँगली का अगला हिस्सा धारदार हथियार से काट लिया। इसका पता चलने पर परिजनों में हड़कंप मच गया। परिजन तत्काल पवन को अस्पताल ले गए, जहाँ उनका उपचार किया गया। परिजनों के पूछने पर घायल पवन ने सारी बात बताई। उन्होंने सोशल मीडिया ट्विटर पर एक वीडियो जारी करते हुए इसके पीछे का कारण बताया। उन्होंने कहा, “अपनी गलती पर पश्चाताप करने के लिए मैंने अपनी उंगली काटी है।”

पवन कुमार बहुजन समाज पार्टी के समर्थक हैं और वह बसपा-सपा-आरएलडी के गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने उतरे प्रत्याशी योगेश वर्मा को वोट देने पहुँचे थे, लेकिन उनसे गलती से वोट भाजपा को चला गया। जिसका पवन को इतना अफसोस हुआ कि उन्होंने गुस्से में आकर अपने आपको सजा देते हुए यह कदम उठा लिया।

मॉडर्न वॉरफेयर का पहला उदाहरण हनुमानजी द्वारा रामायण में दिखाया गया था

म्यांमार और नियंत्रण रेखा (LoC) के पार की गयी सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में तो सभी जानते हैं। परन्तु क्या आपको पता है कि विश्व में पहली सर्जिकल स्ट्राइक किसने की थी? चलिये अपनी समझ से हम बताते हैं। सबसे पहले हम ये समझते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक क्या होती है। इसे समझने के लिए हमें सर्जरी को समझना होगा। शरीर दो प्रकार से अस्वस्थ होता है- पहला तब जबकि शरीर की रासायनिक क्रियाएँ (metabolism) प्रभावित हों, दूसरा तब जब किसी अंग विशेष में विकार उत्पन्न हो।

सामान्यतः किसी अंग विशेष की सर्जरी तभी की जाती है जब औषधियों के सेवन मात्र से व्यक्ति स्वस्थ नहीं हो पाता। यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि सर्जरी पूरे शरीर की नहीं की जा सकती। किसी अंग विशेष को ही सर्जरी द्वारा ठीक किया जा सकता है जिसके उपरांत समूचा शरीर स्वास्थ्य लाभ करता है। अतः सर्जिकल स्ट्राइक का अर्थ है शत्रु के शरीर रूपी क्षेत्र में भीतर घुस कर किसी विशेष अंग को नेस्तनाबूत कर देना। यह अंग शत्रु का कोई महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाना हो सकता है। युद्धनीति में इसे स्पेशल ऑपरेशन कहा जाता है।

शत्रु के चंगुल से किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति या व्यक्तियों को छुड़ा लाना भी स्पेशल ऑपरेशन में आता है। सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ऑपरेशन सेना की सामान्य टुकड़ियां नहीं करतीं। इस कार्य के लिए विशेष बल (Special Operation Force) का गठन किया जाता है। अब हम रामायण काल में चलते हैं। जब समुद्र तट पर श्रीराम की सेना पहुँची तो प्रश्न उठा कि समुद्र पार कर सीता जी का हालचाल लेने लंका कौन जायेगा। तब जाम्बवंत जी ने हनुमान जी से कहा: “जाम्बवंत कह सुनु हनुमाना, का चुपि साध रहे बलवाना।”

इस पर हनुमान जी को अपने बल और शक्ति का ज्ञान हुआ जो शाप के कारण विस्मृत हो गई थी। उसके पश्चात जो हुआ वो सेना की स्पेशल ऑपरेशन फ़ोर्स के क्रियाकलाप से बहुत मेल खाता है। कथित सर्जिकल स्ट्राइक सेना के सामान्य सैनिक नहीं बल्कि स्पेशल फ़ोर्स के दस्ते करते हैं। हनुमान जी भी पूरी रामायण में विशेष स्थान रखते हैं। हनुमान जी उड़ कर लंका गए थे उसी तरह जैसे किसी भी स्पेशल ऑपरेशन में तीव्र गति से उड़ने वाले विमान का प्रयोग किया जाता है।

अब यह देखिये कि जब सुरसा को चकमा देकर हनुमान जी लंका पहुँचे तो उन्होंने सूक्ष्म रूप धारण कर लिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि स्पेशल ऑपरेशन में गोपनीयता का बहुत महत्व है। सैनिकों को अपनी पहचान छुपा कर टास्क पूरा करना पड़ता है। इसके पश्चात हनुमान जी इंटेलिजेंस अर्थात गुप्त रूप से सूचना इकठ्ठा करने का कार्य पूर्ण करते हैं। वे जाकर सीताजी से मिलते हैं, अंगूठी दिखाते हैं और पूरा समाचार कह सुनाते हैं। इतना ही नहीं अशोक वाटिका में श्रीराम और सीताजी से सहानुभूति रखने वाली कुछ राक्षसियाँ भी थीं। यानि शत्रु के देश में लॉजिस्टिक्स सपोर्ट देने वाले कुछ लोग भी थे जो स्पेशल ऑपरेशन को आसान बना देते हैं।

हनुमान जी बस एक जगह चूक जाते हैं। जब उनको भूख लगती है तब रावण की बगिया उजाड़ देते हैं। किंतु चूँकि हनुमान जी रुद्रावतार थे इसलिए उनके पास डैमेज कण्ट्रोल के साधन भी थे। अब जरा हिंदी व्याकरण की पुस्तक में अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण याद कीजिए तो ध्यान आयेगा कि ‘हनूमान की पूँछ में लगन न पाई आग, और लंका ससुरी जर गयी गए निसाचर भाग’। लंका के जलने से आपको यह भी याद आयेगा कि उस कांड में लंका के किसी भी साधारण नागरिक की जान नहीं गयी थी, केवल राक्षस मरे थे और लंका के भवन जले थे वह भी इसलिए क्योंकि रावण को सबक सिखाना था।

इससे मिलता जुलता उदाहरण आप हॉलीवुड की फ़िल्म Lone Survivor में देख सकते हैं जब यूएस नेवी सील के जवान अफगानिस्तान के नागरिकों को इसीलिए छोड़ देते हैं क्योंकि यदि वे उन सामान्य नागरिकों को मार देते तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार वाले हो हल्ला मचाने लगते। रामायण काल में हनुमान जी ने इसका भी ध्यान रखा था। अंत में यह देखिए कि सब कुछ करने के पश्चात हनुमान जी श्रीराम के पास लौट आये थे। यह स्पेशल ऑपरेशन जैसा ही था क्योंकि एक तरफ जहाँ पारंपरिक युद्ध में प्रत्येक सैनिक की जान बचा पाना कठिन होता है वहीं स्पेशल ऑपरेशन फ़ोर्स दल के हर सैनिक को निर्धारित समय पर काम ख़त्म करने के पश्चात लौट आने के सख्त निर्देश दिए जाते हैं।

प्रश्न यह भी है कि क्या रावण ने सीताजी को मात्र रूप सौंदर्य देखकर वासना से ग्रसित होकर अपहृत किया था। यदि ऐसा होता तो जब रावण ने सीताजी को छुप कर देखा तभी राम लक्ष्मण की हत्या का विचार उसके मन में क्यों नहीं आया? वस्तुतः रावण के मन में सीताजी के सौंदर्य के प्रति आसक्ति के अतिरिक्त रणनीतिक भाव भी था। सीताजी के अपहरण से पूर्व ऋषि विश्वामित्र की प्रेरणा से श्रीराम ने रावण के उत्तर और दक्षिण स्कंधावार नष्ट कर खर दूषण त्रिशिरा समेत चौदह हजार राक्षसों का वध कर डाला था। रावण को इसका प्रतिशोध लेना था इसलिए वह श्रीराम की शक्ति का आकलन करने आया था।

श्रीराम द्वारा राक्षसों का वध रावण की विस्तारित होती राक्षसी सत्ता को प्रत्यक्ष चुनौती थी। इसीलिए रावण मनोवैज्ञानिक छद्म युद्ध लड़ने का इच्छुक था। उसने श्रीराम को सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक रूप से पराजित करना चाहा। इसीलिए उसने उनकी पत्नी सीताजी का अपहरण किया था। आजकल सैन्य शब्दावली में इसे PSYOPS अर्थात Psychological Operations कहा जाता है। इसका उत्तर श्रीराम ने Information Warfare के रूप में दिया। जब श्रीराम सीताजी को ढूंढने निकले तब मार्ग में वन, पर्वत हर स्थान पर इसका प्रचार किया गया कि सीताजी अर्थात नारी का अपहरण दुष्ट रावण ने किया है इसलिए रावण से प्रताड़ित सभी जन एवं पशु श्रीराम के नेतृत्व में युद्ध लड़ें, यही धर्मसंगत है। क्षत्रिय वंश के श्रीराम की सेना में कोल, किरात, वानर, शूद्र सभी सैनिक बन गए थे। श्रीराम की इस सेना को ब्राह्मण ऋषि मुनियों का आशीर्वाद प्राप्त था। सैन्य प्रशिक्षण तो छोड़िये इस सेना में किसी ने किसी का वर्ण तक नहीं पूछा क्योंकि उनका शत्रु एक था- रावण।

वास्तव में यह Information या Propaganda Warfare साधारण जनमानस को अपनी पक्ष में करने की तकनीक होती है। आज पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत विरोधी प्रोपगैंडा चलाता है। भगवान राम ने इस युद्धनीति का उपयोग रावण के आतंक को समाप्त करने के लिए किया था लेकिन आज पाकिस्तान उसी तकनीक का प्रयोग भारत के विरुद्ध जिहादी छद्म युद्ध में करता है। वह हमारी सेना को लक्षित कर सैनिकों के शीश काट कर ले जाने जैसे घृणास्पद कार्य कर हमारा मनोबल गिराने की यथासंभव चेष्टा करता है क्योंकि भारतीय सेना हमारे मान सम्मान की रक्षा करने वाला संस्थान है। इस प्रकार के युद्ध को भली भाँति समझने की आवश्यकता है। क्योंकि ऐसा कर के पाकिस्तान हमें मनोवैज्ञानिक रूप से पराजित करना चाहता है।

इस प्रकार हमें पता चलता है कि आज की युद्धनीति रामायण काल में भी थी। यह मात्र एक संयोग नहीं है, हमें हमारे प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन केवल प्रेम वात्सल्य और भक्ति की कथा सुनने के लिए नहीं करना चाहिए। हमारे ग्रंथों में राष्ट्रीय सुरक्षा के तत्व भी हैं जिनपर शोध की आवश्यकता है।

बंगाल जो चुनावी हिंसा का पर्याय है, ममत्व ऐसा कि भाजपाइयों की लटकती लाश आम दृश्य है

शीर्षक एक रक्तरंजित माहौल की बात कहता है। शीर्षक बताता है कि बंगाल में क्या हो रहा है, और किस स्तर पर हो रहा है। शीर्षक बताता है कि सत्ता पाकर कुछ लोग किन तरीक़ों से तंत्र का दुरुपयोग करते हैं। शीर्षक बताता है कि नैरेटिव पर जिनका क़ब्ज़ा है वो अब लालू के जंगल राज को याद नहीं कर पा रहे, क्योंकि बंगाल बिहार के उस दौर से कहीं ज्यादा गिर चुका है।

मुख्यमंत्री का नाम है ममता। ममता शब्द का मूल है ‘मम्’ अर्थात् अपना। उसमें जब ‘ता’ प्रत्यय लगता है तो अर्थ होता है वैसा भाव जो स्नेह, अपनापन या मोह लिए हो। यह एक सकारात्मक नाम है। यह शब्द सुन कर किसी भी हिन्दीभाषी व्यक्ति के मन में एक शांत, स्नेहिल छवि बनती है। लेकिन आज के दौर में ममता सुनते ही बनर्जी भी साथ ही आ जाती है और गूगल के हजारों चित्रों की तरह इस शब्द का मूल अर्थ इस संदर्भ में गौण हो जाता है।

बंगाल ममता बनर्जी का राज्य है। वो वहाँ की मुख्यमंत्री हैं। लालू बिहार के मुख्यमंत्री थे, और लालू बिहार की मुख्यमंत्री के पति भी थे। उस दौर की चुनावी हिंसा की कहानियाँ अखबारों और पत्रिकाओं का काला पन्ना बन कर हम जैसे बिहारियों के भविष्य पर एक कालिख की तरह पुत जाया करती थीं। बिहार की बदनामी में लालू का सत्ता पर क़ब्ज़ा, और हिंसा के दौर का सबसे बड़ा हाथ था। चूँकि लालू उस समय कॉन्ग्रेस से अलग थे, तो नैरेटिव ने उनको क़ायदे से जंगल राज का खुल्ला राजा बना कर बेचा। ऐसा नहीं है कि वो नैरेटिव गलत था, लेकिन अगर वो कॉन्ग्रेस के साथ होते तो, शायद बिहार भी ‘भद्रलोक’ टाइप सिर्फ इंटेलेक्चुअल बातों के लिए जाना जाता।

बंगाल का नाम सुनते ही अब दंगे, अराजकता, हिन्दुओं के हर पर्व पर समुदाय विशेष के आतंक, मालदा में छपने वाले नकली नोट, पंचायत चुनावों से लेकर लोकसभा चुनावों तक के हर चुनाव में विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ता और समर्थकों की लाश, कानून व्यवस्था की उदासीनता आदि दिमाग में घूमने लगते हैं।

लेकिन क्या ग़ज़ब की बात है कि आपको कभी भी उस आतंक की दास्तान किसी भी चैनल पर सुनाई नहीं देती। छोटे रिपोर्ट्स जरूर आते हैं, लेकिन इस कुव्यवस्था और हिंसक होते राजनैतिक माहौल पर कोई डिबेट या परिचर्चा नहीं होती। क्या बात है कि हेलिकॉप्टर नहीं उतरने देने की बात पर चर्चा हो जाती है, लेकिन कार्यकर्ता की लाश पेड़ से लटका कर, कहीं तार पर बाँध कर, यह धमकी दी जाती है कि भाजपा को वोट देने वालों के साथ यही होगा, ऐसी बातों पर चर्चा नहीं होती।

इस पर चार बजे तक फेसबुक पर सक्रिय रहने वाला पत्रकार कुछ नहीं लिख पाता। जब लिखता है तो तीन साल का लेखा-जोखा एक लेख में और मुख्यमंत्री का नाम तक नहीं ले पाता! ये वही व्यक्ति है जिसने पिछले साल की रामनवमी के मौक़े पर बिहार के एक जिले में समुदाय विशेष के गाँव में जुलूस पर चप्पल फेंके जाने पर ‘मेरा बिहार जल रहा है’ वाला लेख लिखा था। उसने लिखा था कि बिहार को जाति और मज़हब के नाम पर बाँट कर लोगों को भड़काया जा रहा है।

बंगाल में चुनावों के दौरान क्या नहीं हुआ, और क्या नहीं हो रहा! आज ही की ख़बर है कि एक जगह ईवीएम पर भाजपा के प्रत्याशी के नाम और चिह्न पर काला टेप लगा हुआ मिला। दूसरी ख़बर यह आई कि समुदाय विशेष बहुल गाँव में हिन्दुओं के पहुँचने से पहले ही वोट डाल दिए गए थे। कहीं से ट्वीट आया कि ममता के तृणमूल पार्टी के लोग सीआरपीएफ़ की वर्दी पहन कर घूम रहे हैं। एक ख़बर थी कि तृणमूल नेता ऑडियो क्लिप में बूथ क़ब्ज़ा करने की बात कह रहा है। एक ख़बर थी कि तृणमूल नेता अपने कार्यकर्ताओं को कह रहा है कि सीआरपीएफ़ आदि के जवानों को खदेड़ कर मारो और भगा दो। भाजपा कार्यालय से लेकर पेड़ तक पर भाजपा कार्यकर्ताओं की लाशें लटकी होने की ख़बर इतनी आम हो गई हैं कि सुन कर पहले ही सोच लेता हूँ कि बंगाल की ही ख़बर होगी।

नहीं, ये मेरे दिमाग की समस्या नहीं है। यह समस्या ममता द्वारा चलाए जा रहे आतंक के राज की है। अगर एक आईपीएस अफसर यह लिखकर आत्महत्या कर लेता है कि ममता ने बंगाल को नर्क से भी बदतर बना दिया और ख़ौफ़ से वो मरना चुन लेता है, तो मेरा दिमाग नहीं, ममता का शासन खराब है। सीबीआई को घुसने से रोक देना, केन्द्र सरकार के खिलाफ पुलिस के आला अफसर का ममता के समर्थन में धरने पर बैठ जाना आदि सुनना आपको आश्चर्य में नहीं डालता क्योंकि ‘चिल मारिए, आप बंगाल की बात कर रहे हैं’ टाइप की फीलिंग आती है।

दो साल पहले सरस्वती पूजा पर पुलिस ने विद्यार्थियों को निर्ममता से पीटा था, इस साल मंदिर में घुस कर पुलिस ने फिर से तोड़-फोड़ की। दुर्गा पूजा के विसर्जन की तारीख़ बदलने की क़वायद तो आपको याद ही होगी कि मुहर्रम है, तो नहीं होगा विसर्जन। यहाँ तक कि मुहर्रम के एक दिन पहले या बाद होने तक में विसर्जन पर रोक या दिन बदलने की बात ममता सरकार ने ‘संवेदनशील’ होने के नाम पर कोर्ट में कही।

बर्धमान, धूलागढ़, कालियाचक (मालदा), इल्लमबाजार, हाजीनगर, जलांगी, मिदनापुर, पुरुलिया, रानीगंज, मुर्शीदाबाद, आसनसोल… ये वो जगह हैं, जहाँ ममता काल में दंगे हुए। उसके बाद दुर्गा पूजा, रामनवमी और मुहर्रम पर होने वाली हिंसक घटनाएँ, तो हर साल इतनी आम हो कि उस पर बात भी नहीं होती।

इसकी बात कोई नहीं करता कि ये जो माहौल बना है, ये किस तरह का माहौल है। क्या ये डर का माहौल है? क्या ये आपातकाल वाला माहौल है? क्या दो-चार गौरक्षकों और गौतस्करों वाली घटनाओं पर सीधे मोदी से जवाब माँगने वाले पत्रकारों का समुदाय विशेष यह बताएगा कि आखिर ऐसा क्या है बंगाल में कि मजहबी दंगे हर जगह पर कुकुरमुत्तों की तरह हो जाते हैं। यहाँ पर किसकी शह पर यह हो रहा है?

बंगाल की हिंसा पर और ममता की मनमानी पर सब-कुछ यहाँ पढ़ें

क्या यही माहौल यह सुनिश्चित नहीं करता कि लोग चुनावों में ममता और उसकी पार्टी से डर कर रहें? क्या आपका पड़ोसी किसी दिन पेड़ पर ख़ून से लथपथ लटका मिले और संदेश हो कि भाजपा को वोट देने पर यही हश्र होगा, तो आप कौन-सा विकल्प चुनेंगे? पंचायत चुनावों में आप कैसे प्रत्याशी बनेंगे जब तृणमूल के गुंडे सर पर तलवार लेकर मँडरा रहे हों? आखिर आप नोमिनेशन कैसे करेंगे?

यही तो कारण है कि आज के दौर में भी 48,650 पंचायत सीटों में से 16,814; 9,217 पंचायत समिति सीटों में से 3,059; और 825 ज़िला परिषद सीटों में से 203 पर निर्विरोध चुनाव हुए। आप यह सोचिए कि तृणमूल लगभग एक तिहाई, यानी 30% सीटों पर निर्विरोध जीत जाती है! कमाल की बात नहीं है ये? बीरभूम जैसी जगहों पर 90% सीट पर तृणमूल के खिलाफ कोई खड़ा ही नहीं हुआ!

आपने बिहार के बारे में खूब सुना होगा, पर इन प्रतिशतों पर, इन आँकड़ों पर कोई विश्लेषण नहीं किया जाता। यहाँ न तो जंगलराज आता है, न आपातकाल। क्योंकि भद्रलोक और छद्मबुद्धिजीवियों की जमात हर जगह बैठी हुई है जिसे ममता में ममता ही दिखती है, उसकी निर्ममता नहीं। आज कै दौर में अगर लालू आता है, तो अपने साथ हिंसा भी लाएगा। वस्तुतः, नितिश के साथ सरकार आते ही बिहार में हिंसा का भयावह दौर वापस आया था, लेकिन मीडिया और लिबरल्स की निगाह नहीं गई क्योंकि वहाँ भाजपा या मोदी सत्ता में परोक्ष रूप में भी नहीं था।

आज जब बंगाल सही मायनों में जल रहा है, और चुनावी हिंसा चरम पर है, तब भी स्टूडियो से कैम्पेनिंग और रैली करते पत्रकारों को कुछ गलत नहीं लग रहा। ये दंगे शायद सेकुलर हैं, ये चुनावी हिंसा किसी खास रंग की है। इस जगह की सत्ता में जब ममता है, तो फिर उसके राज्य में हिंसा कैसे होंगे, शायद यही सोच कर चैनल वाले इस विषय को छूते भी नहीं।

लेकिन, ऐसे पैंतरे आपको बहुत देर तक सत्ता में नहीं रख सकते। लालू जैसे चोरों का राज भी गया, आपके भी गिन लद गए हैं। आपको भी पता है कि पकड़ ढीली हो रही है, और जिस आशा की रोटी आपने बंगाल को बेची थी, उसमें ख़ून के थक्के भरे हुए हैं। यही कारण है कि आपको असम में हो रहे बंगलादेशी घुसपैठियों की शिनाख्त पर आपत्ति हो जाती है। यही कारण है कि शारदा जैसे घोटालों के लिए सीबीआई को आप बंगाल में घुसने नहीं देतीं। यही कारण है कि आप अपनी रैलियों में अपने कर्म गिनाने की बजाय मोदी को ज़्यादा गाली देती रहती हैं।

लेकिन ध्यान रहे ममता दीदी, होश सबको आता है। जनता ने आपको वामपंथियों की हिंसा से परेशान होकर चुना था। लेकिन आपने हिंसा का वही दौर, शायद उससे भी भयावह, वापस लाया है। मरने वाले तो बंगाली ही है, उन्हें होश आएगा, और आपका भी हिसाब होगा।