Wednesday, November 6, 2024
Home Blog Page 5296

अलवर गैंगरेप मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान में कॉन्ग्रेस सरकार को जारी किया नोटिस

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अलवर, राजस्थान दुष्कर्म प्रकरण का संज्ञान लेते हुए राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है। आयोग ने मामले में पुलिस की निष्क्रियता पर मुख्य सचिव और डीजीपी से रिपोर्ट माँगी है। वहीं, आयोग ने प्रदेश सरकार को आदेश देते हुए कहा है कि पूरे प्रकरण की 6 सप्ताह में रिपोर्ट पेश करें।

बता दें कि राजस्थान के अलवर में एक बेहद ही शर्मनाक घटना में 5 युवकों ने पति के सामने ही पत्नी के साथ कथित तौर पर गैंगरेप को अंजाम दिया। आरोपित युवकों ने गैंगरेप के बाद दलित जाति की पीड़ित युवती का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। यह घटना राजस्थान के अलवर जिले के थानागाजी इलाके की है।

विगत 26 अप्रैल को पीड़िता अपने पति के साथ बाइक पर सवार होकर दोपहर 3 बजे तालवृक्ष जा रही थी, तभी थानागाजी-अलवर बाइपास रोड पर उनकी बाइक के सामने 5 युवकों ने अपनी मोटरसाइकिलें लगा दीं। इसके बाद वे महिला एवं उसके पति को रेत के टीलों की तरफ ले गए। वहाँ उन्होंने पति के साथ मारपीट की और दंपति को बंधक बना लिया।

पाँचों युवकों ने इसके बाद दोनों पति-पत्नी के कपड़े उतरवाए। पति के साथ मारपीट की। पीड़िता के साथ भी मारपीट की और रेप की कोशिश की। शुरुआत में जब पीड़िता ने रेप की कोशिश का विरोध किया तो उसके पति को और मारा गया। अंततः पीड़िता ने अपने पति की रक्षा के लिए हार मान ली। इसके बाद उन दरिंदों ने 3 घंटे तक बारी-बारी से पीड़िता के साथ रेप किया। 11 वीडियो क्लिप भी बनाए। 

इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में प्रशासन के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश है। पुलिस ने छोटेलाल, जीतू और अशोक सहित 5-6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है। 26 अप्रैल की घटना को चार दिनों बाद 30 अप्रैल को पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। पुलिस ने IPC और SC/ST ऐक्ट की धाराओं 147, 149, 323, 341, 354B, 376(D) & 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया है।

मोदी का मुखौटा पहने लड़के को थानेदार ने बुरी तरह से मारा थप्पड़

धनबाद से एक वीडियो सामने आया है। इसमें सड़क किनारे खड़े एक लड़के को बैंक मोड़, धनबाद के थानेदार सुरेंद्र सिंह थप्पड़ मारते दिख रहे हैं। थानेदार के थप्पड़ से लड़के का मोबाइल और मुखौटा नीचे गिर गया। बाद में दूसरे पुलिसकर्मी ने उसे उसका मोबाइल उठा कर दिया। जब थानेदार ने लड़के को झापड़ मारा, उस समय आसपास खड़े लोग उस लड़के का मज़ाक उड़ाते देखे जा सकते हैं। वीडियो में लोग उस लड़के को ‘चौकीदार चोर है’ बोलने को कह रहे हैं। वीडियो में एक व्यक्ति की आवाज़ आती है- “करिए, करिए। जो करना है करिए।” नीचे ट्विटर पर शेयर की गई वीडियो में आप इस घटना को देख सकते हैं।

बता दें कि वो लड़का सड़क किनारे खड़ा था, वहाँ से राहुल गाँधी का काफ़िला गुजरने वाला था। पुलिस बार-बार उस लड़के को वहाँ से हटने को कह रही थी। थानेदार ने कहा कि विधि-व्यवस्था के लिहाज से उस लड़के पर ‘हल्का बल प्रयोग’ किया गया।

हिंदुस्तान अख़बार के स्थानीय संस्करण में छपी ख़बर

सोशल मीडिया पर वीडियो को देखने के बाद धनबाद पुलिस के उस थानेदार के प्रति गुस्सा ज़ाहिर करते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास से उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की माँग की। लोगों ने कहा कि किसी बच्चे पर इस तरह से बल प्रयोग करना सरासर ग़लत है। वीडियो पोस्ट करने वाले ट्विटर यूजर ने दावा किया कि पुलिस ने महिला भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ भी गाली-गलौज किया।

बता दें कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी कल मंगलवार (मई 7, 2019) को झारखण्ड के दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने चाईबासा में भी जनसभा को सम्बोधित किया। चाईबासा में राहुल गाँधी की सभा में कम भीड़ को देखते हुए नाराज कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने इसका आरोप मुख्यमंत्री रघुवर दास पर मढ़ा। राहुल गाँधी ने धनबाद में 35 मिनट का रोड शो कर कीर्ति झा आज़ाद के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की। राहुल गाँधी को उस समय असहज स्थिति झेलनी पड़ी, जब उनके रोड शो के दौरान भाजपा समर्थक मोदी का मुखौटा पहनकर खड़े हो गए। हालाँकि, विरोध के बावजूद उनकी रैली और रोड शो को पूरा कराया गया।

मुखबिरी के शक में नक्सली आतंकियों ने की ग्रामीण की गोली मारकर हत्या

छत्तीसगढ़ में एक बार फिर बौखलाए नक्सलियों ने एक ग्रामीण को निशाना बनाया है। बीती रात नक्सलियों ने मुखबिरी के शक में कांकेर जिले में ग्रामीण की गोली मारकर की हत्या कर दी। पुलिस के अनुसार, पखाँजूर के समीप छोटे बेठिया थाना क्षेत्र रेंगावाही गाँव के निवासी संतु गोटा को नक्सलियों ने मुखबिरी करने के सन्देह में गोली मार दी। 

स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, 15 से 20 हथियारबंद नक्सलियों ने ग्रामीण संतु गोटा को घर से जबरन निकालकर अगवा कर लिया और जंगल में ले गए। जब परिजनों ने इसका विरोध किया तो नक्सलियों ने कहा कि वह बातचीत करके छोड़ देंगे। लेकिन तभी से वह गायब हो गए। बुधवार (मई 08, 2019) को तीन दिन बाद ग्रामीण का शव रेंगावाही गाँव के सड़क के किनारे मिला। मृतक के शव पर डंडे के निशान भी पाए गए हैं।

उसके सीने के बीचो-बीच में नक्सलियों ने गोली मारी है। मृतक के बारे में जानकारी मिलते ही घर में मातम छा गया। जिसके बाद परिजनों ने इसकी जानकारी नजदीकी पुलिस थाने में दी। मृतक के शव को पखांजुर हॉस्पिटल में पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है। इस घटना के बाद इलाके में सुरक्षाबलों ने सर्चिंग बढ़ा दी है। गौरतलब है कि इलाके में लगातार नक्सलियों का आतंक जारी है।

वाजपेयी की आलोचना, राजीव गाँधी को दण्डवत प्रणाम: यौन शोषण आरोपित ‘बड़े’ पत्रकार का दोमुँहापन

विनोद दुआ पत्रकारिता के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है, पुराना नाम है। विनोद दुआ का नाम है या फिर वो बदनाम हैं, इसका निर्णय तो जनता कर ही रही है, लेकिन इस बीच हम उनके ऐसे दोहरे रवैये को जनता के समक्ष रखना चाहते हैं, जिसे आपको देखना, सुनना व जानना चाहिए। यौन शोषण के आरोपित विनोद दुआ की बेटी मल्लिका दुआ भी तब तक पीड़ित महिलाओं के लिए ख़ूब आवाज़ उठा रही थीं, जब तक ख़ुद उनके पिता ही उसमें न फँस गए। लेकिन, उसके बाद उन्होंने अपने पिता का बचाव किया और उनके ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहा। इससे पता चलता है कि विनोद दुआ की लेगेसी सही हाथों में है। ताज़ा विवाद 2 दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्रियों को लेकर उनके द्वारा कही गई बातों से उपजा है।

दरअसल, जब अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हुआ था, तब उन्हें लेकर सोशल मीडिया पर वामपंथी कविता कृष्णन समेत कई लोगों ने भद्दी टिप्पणियाँ की थीं। विनोद दुआ ने अटल बिहार वाजपेयी के निधन के बाद कहा था कि हमारे देश में मृत व्यक्ति को अचानक से महान बना देने का एक चलन है, जो कि एक प्रकार का पाखंड है। इन्होंने वाजपेयी को दी जा रही श्रद्धांजलि की चर्चा करते हुए कहा था कि उन्हें ‘जिस तरह की’ श्रद्धांजलियाँ दी जा रही हैं, उसे पॉलिटिकली करेक्ट समझा जाता है। इसके आगे विनोद दुआ ने सच्ची श्रद्धांजलि की परिभाषा बताते हुए कहा था कि असली श्रद्धांजलि तभी हो सकती है जब निधन के बाद किसी की अच्छाइयों के साथ-साथ बुराइयों की भी चर्चा की जाए।

अभी कुछ दिनों पहले पीएम मोदी ने पूर्व पीएम राजीव गाँधी को भ्रष्टाचारी नंबर 1 कहा था। इसके बाद सियासी तूफ़ान खड़ा हो गया और कॉन्ग्रेस ने मोदी पर व्यक्तिगत व भद्दी टिप्पणियाँ करनी शुरू कर दी। तरह-तरह के विपक्षी नेताओं व कथित बुद्धिजीवियों ने कहा कि राजीव गाँधी के बारे में ऐसा कोई भी बयान देना ग़लत है क्योंकि वो मर चुके हैं। इनमें विनोद दुआ भी शामिल हो गए हैं। तमाम तरह के लोग जो वाजपेयी के निधन के बाद उनकी बुराइयाँ गिनने के इच्छुक थे, उन्होंने राजीव गाँधी, उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और सिख दंगों में उनकी भूमिका के आरोपों पर कुछ भी बोलने से नाराज़ हैं। विनोद दुआ के लिए, राजीव गाँधी के बारे में कुछ बोलने का अर्थ हुआ- ‘कुर्सी के लिए नीचे गिरना’।

विनोद दुआ ने ताज़ा वीडियो में कहा कि हमारे ‘प्रधानसेवक’ ने कुर्सी पाने की लालसा में गिरते हुए दिवंगत पीएम राजीव गाँधी के बारे में ऐसी टिप्पणी की, जो ग़लत है। विनोद दुआ ने अपने वाजपेयी के समय के स्टैंड को बदलते हुए आगे कहा कि हमारे यहाँ एक नियम है कि जो दिवंगत हो चुके हैं, जिनका निधन हो चुका है, उनके बारे में ऐसा न बोला जाए। यौन शोषण के आरोपित पत्रकार दुआ के लिए जो उस समय ‘पाखंड’ था, वो अब ‘नियम’ बन चुका है। वाजपेयी के निधन के तुरंत बाद उनकी बुराइयाँ गिना कर उन्हें ‘सच्ची श्रद्धांजलि’ देने वाले दुआ राजीव गाँधी पर भ्रष्टाचार से लेकर सिख दंगों में उनकी भूमिका को लेकर लगे आरोपों की चर्चा से खिन्न हैं। दुआ जैसे लोगों के लिए ही शायद दोमुँहे साँप वाली कहावत बड़े-बुजुर्ग लिख गए हैं।

अगर कॉन्ग्रेस मौजूदा PM को गाली देगी तो पूर्व PM के कार्यों को मैं भी गिनाऊँगा: मोदी

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए ताबड़तोड़ चुनाव-प्रचार जारी है। ऐसे में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार (मई 8, 2019) को विपक्ष की ‘गाली पॉलिटिक्स’ से लेकर ममता बनर्जी के कई आरोपों का अपने ही स्टाइल में जवाब दिया। कुरुक्षेत्र में चुनावी रैली के बाद टाइम्स नाउ से खास बातचीत में PM ने कहा कि मौजूदा प्रधानमंत्री के लिए यदि अपशब्द कहे जाएँगे, गालियाँ दी जाएँगी, झूठे आरोप लगाए जाएँगे तो पूर्व प्रधानमंत्रियों के भ्रष्टाचार का भी लेखा-जोखा लिया जाएगा। झूठ का जवाब सच से दिया जाएगा।

टाइम्स नाउ की पत्रकार ने प्रधानमंत्री मोदी से सवाल किया कि विपक्ष के हमलों पर आप क्या कहेंगे? इस सवाल का जवाब देते हुए मोदी ने कहा, “जब मैं 2014 का चुनाव लड़ रहा था तो मुझे कम गालियाँ सुनने को मिलती थीं। अब विपक्ष का हमला बढ़ गया है। गालियों को पचाने का मेरी पाचन शक्ति (डाइजेशन पावर) बढ़ गई है। 2019 में गालियों को पचाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है।”

अगला सवाल ममता के मोदी को अपना प्रधानमंत्री न मानने को लेकर था। यहाँ तक कि फानी चक्रवात के बाद ममता बनर्जी ने मोदी का फोन तक उठाने से इनकार कर दिया था। पत्रकार ने सवाल किया कि ‘ममता बनर्जी ने आपको प्रधानमंत्री मानने से इंकार कर दिया है’, इस पर मोदी ने तंज किया, “उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री पीएम लगता है लेकिन भारत का पीएम उन्हें प्रधानमंत्री नहीं लगता। इसका जवाब देश की जनता देगी।”

हाल ही में कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका ने मोदी की तुलना महाभारत के दुर्योधन से कर दी थी तो इस पर उनका जवाब था, “मैं इसका जवाब मौन रहके दूँगा।”

लगभग पाँच चरण के मतदान सम्पन्न हो चुके हैं, अभी तक के रुझानों के अनुसार बीजेपी बढ़त बनाए हुए है। इसी को मद्देनज़र रखते हुए जब पूछा गया कि उन्हें क्यों लगता है उनकी सरकार 2019 में दोबारा आएगी? इस पर मोदी ने भरोसा जताया कि “मैंने पाँच सालों तक देश का भ्रमण किया है। मैं देश की जनता से जुड़ा हुआ हूँ। हमारा काम बोलता है। 2019 में चुनाव प्रचार के दौरान पहली बार देश में सरकार के पक्ष में (प्रो इन्कम्बैंसी) लहर है। भाजपा इस बार 282 से ज्यादा सीट जीतेगी। हमारे सहयोगियों की सीटें भी बढ़ेंगी। हमारा वोट शेयर भी बढ़ेगा। यह चुनाव सफलताओं से भरा होगा।”

चुनाव प्रचार में अब जब मुद्दे गायब होने लगे हैं और विपक्ष ने पुराने राग फिर से छेड़ना शुरू कर दिया है। फिर से मोदी को गाली देने का चलन बढ़ गया है। विपक्ष विकास के मुद्दे से कतराने लगा है। तब पत्रकार ने मोदी से पूछा कि इस चुनाव में मुद्दे क्या हैं? इस पर प्रधानमंत्री ने कहा, “चुनाव में मुख्य मुद्दा विकास है लेकिन विपक्ष इससे कन्नी काट रहा है। विपक्ष की जिम्मेदारी है कि वह विकास के मुद्दे पर आए लेकिन वह इससे भाग रहा है। हम चुनावों में आतंकवाद की चर्चा करते हैं। आतंकवाद जब पड़ोस से आएगा तो क्या इस पर चुप रहना चाहिए?”

राहुल के ‘चौकीदार चोर है’ के जवाब में हाल ही में मोदी ने राजीव गाँधी पर वॉर करते हुए उन्हें उनके पूर्व के कामों के आधार पर ललकारा, उसी बयान को आधार बना जब उनसे पूछा गया कि आपके ‘भ्रष्टाचारी नंबर-1’ बयान पर कॉन्ग्रेस हमलावर है। आप क्या कहेंगे? इस सवाल के जवाब में मोदी ने कहा, “कॉन्ग्रेस पार्टी के ‘नामदार’ ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि हम किसी भी प्रकार से मोदी की छवि ध्वस्त करना चाहते हैं। मैंने चुनौती दी है कि अगर कॉन्ग्रेस मौजूदा प्रधानमंत्री को गाली देगी तो पूर्व प्रधानमंत्रियों के कार्यों का भी लेखा-जोखा लिया जाएगा। 1984 में सिखों के कत्लेआम, भोपाल गैस कांड, बोफोर्स में भ्रष्टाचार पर कॉन्ग्रेस को जवाब देना ही होगा।”

पत्रकार ने आगे पूछा हमेशा मसूद अजहर का बचाव करने वाला चीन अपना रुख बदलने को कैसे तैयार हुआ? इस पर मोदी ने कहा, “आतंकवाद के संबंध में भारत की बात अब दुनिया मानने लगी है। दुनिया आज कश्मीर के पुराने गाने सुनने को तैयार नहीं है। हमने भारत की सच्चाई से लोगों को अवगत कराया है। एक समय ऐसा था जब रूस भारत के साथ होता था और दुनिया कमोबेश पाकिस्तान के साथ हुआ करती थी लेकिन आज आतंकवाद सहित वैश्विक मुद्दों पर दुनिया हमारे साथ है। हम अपनी बात दुनिया को समझाने में सफल हुए हैं।”

भोपाल में दिग्विजय हिन्दू वोटरों को लुभाने के लिए कम्प्यूटर बाबा के नेतृत्व में हठयोग का अनुष्ठान करवा रहे हैं। हालाँकि, कभी हिंदुत्व को भगवा आतंक से जोड़ने का षड़यंत्र रचने वाले दिग्विजय का यह रूप उनकी बेबसी को दर्शाता है। जब टाइम्स नाउ की पत्रकार ने पूछा कि भोपाल में दिग्विजय सिंह ने हजारों साधु-संतों को उतार दिया, इस बारे में आप क्या कहेंगे? इस पर प्रधानमंत्री ने कहा, “दिग्विजिय सिंह ने भारत की पाँच हजार साल पुरानी परंपरा को आतंकवादी करार दिया। वह जाकिर नाइक को भी ला सकते हैं।”

मोदी 2014 Vs मोदी 2019: चुनाव प्रचार और रैली के मामले में 68 साल की उम्र में भी Josh High

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस उम्र में भी चुनाव प्रचार के मामले में युवा नेताओं तक को टक्कर दे रहे हैं। प्रधानमंत्री इस वर्ष अपनी रैलियों से ख़ुद को ही चुनौती दे रहे हैं। 17 मई को इस लोकसभा चुनाव के सातों चरणों के चुनाव प्रचार ख़त्म हो जाएँगे और तब तक प्रधानमंत्री कुल 130 रैलियाँ कर चुके होंगे। हालाँकि, नरेंद्र मोदी ने सितम्बर 2013 से मई 10, 2014 तक 425 रैलियाँ की थी। इस वर्ष उन्होंने 28 मार्च को उत्तर प्रदेश स्थित मेरठ में अपनी रैली के साथ चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की। इस उम्र में भी मोदी एक दिन में औसतन 2 रैलियाँ कर रहे हैं, जिसकी तुलना उनके 2014 के परफॉरमेंस से की जा सकती है। कुछ दिन तो ऐसे होते हैं, जब प्रधानमंत्री मोदी 3 रैलियों को सम्बोधित करते हैं, वो भी 3 अलग-अलग राज्यों में।

जैसे कि अप्रैल का उदाहरण लीजिए। इस दिन पीएम मोदी ने बिहार के फारबिसगंज, पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर और उत्तर प्रदेश के एटा में रैलियाँ की, यानी एक दिन में तीन अलग-अलग राज्यों में तीन रैलियाँ। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने नाम न बताने की शर्त पर हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि प्रधानमंत्री 17 मई तक इस चुनाव में 130 रैलियों को सम्बोधित कर चुके होंगे। एचटी के इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक, मोदी के 2019 चुनाव प्रचार अभियान की बात करें तो उन्होंने अबतक 107 रैलियाँ सम्बोधित की हैं और उनके द्वारा 2 दर्जन और रैलियाँ सम्बोधित की जाने की संभावना है। अभी 2 चरणों का लोकसभा चुनाव बाकी है और 5 चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है।

नरेंद्र मोदी ने बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में प्रमुख रैलियों को सम्बोधित की। 4 मई को 5वें चरण के लिए चुनाव प्रचार की अंतिम तारीख़ थी और उस दिन प्रधानमंत्री ने बिहार में 1 और उत्तर प्रदेश में 2 रैलियों को सम्बोधित किया। बिहार के वाल्मिकीनगर और उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ और बस्ती में उनकी जनसभाएँ हुईं। उनकी रैलियाँ मार्च में शुरू हुईं लेकिन उन्होंने किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ा। पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत से लेकर उत्तर-पूर्वी राज्यों तक, मोदी ने हर जगह जनसभाएँ की। बंगाल, बिहार और यूपी में सातों चरणों में चुनाव हो रहे हैं। हिमाचल की 4 सीटों पर 19 मई को अंतिम चरण में चुनाव होंगे।

2014 में मोदी के गहन प्रचार अभियान का कमाल ही था कि भाजपा पिछले 32 वर्षों में अपने दम पर बहुमत पाने वाली पहली पार्टी बनीं। इस बार मोदी के प्रचार अभियान को लेकर 2 से 3 संसदीय क्षेत्रों के कई समूह तैयार किए गए हैं, जहाँ मोदी रैली करते हैं और वहाँ उन सभी संसदीय क्षेत्रों के भाजपा प्रत्याशी मंच पर उपस्थित रहते हैं। भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव का कहना है कि पिछले 5 वर्षों में मोदी की लोकप्रियता में और इज़ाफ़ा ही हुआ है। विश्लेषकों का मानना है कि 2019 के मोदी के टक्कर में एक ही व्यक्ति है, और वो हैं 2014 वाले मोदी।

भारत में जनता हमेशा अपने नायकों को अपने सामने देखना चाहती है, चाहे वो फ़िल्मी हीरो हों या मोदी जैसे लोकप्रिय बड़े नेता। उन्हें टीवी पर देखने और सामने मंच पर देखने में अलग-अलग बातें हैं। नरेंद्र मोदी अपनी एक रैली से किसी भी संसदीय क्षेत्र का चुनावी गणित बदलने की क्षमता रखते हैं और इस उम्र में भी उनका ये अथक प्रयास प्रेरणादायक है।

सैटलाइट इमेज से ख़ुलासा: चीन ने ढाह दी 36 मस्जिदें, शिनजियांग में रोज़ा रखने पर भी प्रतिबन्ध

चीन में मुस्लिमों पर की जा रही कार्रवाई रमजान महीने में थमने का नाम नहीं ले रही है। इस्लाम के इस पवित्र महीने में चीन स्थित टकलामकान रेगिस्तान में हज़ारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग आया करते थे। यहाँ कुछ ऐसी मस्जिदें स्थित थीं, जहाँ 8 वीं शताब्दी के एक इस्लामिक योद्धा की याद में लोग नमाज़ पढ़ते थे। लेकिन, इस साल यह स्थल खाली पड़ा हुआ है। ‘द गार्डियन’ के एक ख़ुलासे के अनुसार, चीनी मुसलामानों के लिए हज की तरह महत्व रखने वाला ये स्थल आज खाली इसीलिए पड़ा हुआ है क्योंकि इसे ढाह दिया गया है। चीन ने इमाम आसीन दरगाह के गुम्बद को छोड़ कर इसके बाकी हिस्से को मिट्टी में मिला दिया है। यहाँ लगे झंडे और चढ़ावे गायब हो गए हैं।

2010 में कुछ यूँ गुलजार था ईमान वसीम दरगाह (साभार: द गार्डियन)

2016 से अब तक अकेले शिनजियांग प्रांत में ही 25 से अधिक मस्जिदों को तोड़-फोड़ दिया गया है। ‘द गार्डियन’ ने कुछ अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर चीन की 100 मस्जिदों को ट्रैक किया। इसमें उसने पाया कि 91 में से 31 मस्जिदों को बड़ी क्षति पहुँचाई गई है, वो भी 3 वर्षों के भीतर। इनमें से 15 मस्जिदों को तो गायब ही कर दिया गया, वहीं कुछ के गुम्बद गायब हैं तो कुछ की मीनारों का अता-पता नहीं है। कुछ मस्जिदों से उनका गेटहाउस ही गायब है। इसके अलावा 9 अन्य छोटे-मोटे मस्जिदों को भी ख़ासा नुकसान पहुँचाया गया है। चीन ने चुन-चुन कर उन मस्जिदों को ज्यादा तबाही पहुँचाई है, जहाँ उइगर मुसलमान भारी संख्या में जाया करते थे।

करगिलिक मस्जिद की पहले और बाद की सैटेलाइट तस्वीरें (साभार: द गार्डियन)

रेगिस्तान में जाफरी सदैव नामक इस्लामिक शख़्सियत की याद में एक मस्जिद था। यहाँ आने के लिए मुस्लिम 70 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक दुर्गम यात्रा किया करते थे। कहा जाता है कि उन्होंने ही इस प्रान्त में आकर इस्लाम धर्म को फैलाया था, इसका प्रचार-प्रसार किया था। न सिर्फ़ यहाँ स्थित मस्जिद और दरगाह, बल्कि मुस्लिम आगुन्तकों के लिए ठहरने वाले स्थल को भी तोड़ डाला गया है। दक्षिण शिनजियांग में करगिलिक मस्जिद इस क्षेत्र का सबसे बड़ा मस्जिद था। यहाँ हर सप्ताह मुस्लिम नमाज़ पढ़ने के लिए जमा होते थे। अब इसका कोई अता-पता नहीं है। ऐसा लगता है, जैसे यहाँ कुछ रहा ही न हो।

होतन के पास युटियन एटिका (Yutian Aitika) नामक एक मस्जिद था, जिसका इतिहास काफ़ी पुराना है। ये पिछले 800 वर्षों से यहाँ स्थित था। ये भी अपने इलाक़े का सबसे बड़ा मस्जिद था। अब इसी जगह बस कुछ खँडहर बचा है। चीन का मानना है कि वह सभी धर्मों के क्रियाकलापों को पूरी स्वतन्त्रता देता है लेकिन लोगों का कहना है कि चीन इस्लाम का चीनीकरण करने के लिए एक अभियान चला रहा है, जिसके तहत मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं और उइगर मुस्लिमों को गिरफ़्तार कर प्रताड़ित किया जा रहा है। राहिले दावुत, जो चीन में स्थित मस्जिदों एवं दरगाहों के बारे में लिख रहे थे, वो अचानक से गायब हो गए।

राहिले का कहना था कि जिस तरह से चीन की नीतियाँ चल रही हैं, उससे लगता है कि कुछ दिनों बाद उइगर मुस्लिमों को अपने इतिहास एवं संस्कृति का ज्ञान ही नहीं रहेगा। उधर चीन ने शिनजियांग में रमजान महीना शुरू होते ही सरकारी अधिकारियों, छात्रों और बच्चों के रोज़ा रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इन सब ख़बरों के बीच पाकिस्तान भी चुप है और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ऐसे सवालों को टाल जाते हैं या गोलमोल जवाब देकर चलते बनते हैं।

BJP जीतेगी 300 सीटें, भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिर्विज्ञान के प्रोफेसर मध्य प्रदेश में निलंबित

उज्जैन स्थित विक्रम विश्वविद्यालय में कार्यरत ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला के प्रमुख को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में निलंबित कर दिया गया है। उन्होंने ताज़ा लोकसभा चुनाव में भाजपा के 300 सीटें जीतने की घोषणा की थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रोफेसर ने कहा था कि भाजपा अकेले अपने दम पर 300 सीटें जीतेगी, वहीं पूरे राजग गठबंधन के खाते में 300 से अधिक सीटें आएँगी। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव डीके बग्गा ने बुधवार (मई 8, 2019) को कहा, “सोशल मीडिया पर राजनीतिक पोस्ट डालकर आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन पर इस संस्थान की ज्योर्तिविज्ञान अध्ययनशाला के अध्यक्ष राजेश्वर शास्त्री मुसलगाँवकर को निलंबित कर दिया गया है।

मुसलगाँवकर पर जिस फेसबुक पोस्ट को लेकर कार्रवाई की है, उसे उन्होंने 28 अप्रैल को लिखा था। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा था, “अभी भाजपा 300 के पास और राजग 300 के पार।” हालाँकि, अगले ही दिन उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगने के बाद इस पोस्ट को हटा भी लिया था। इसके अगले दिन 29 अप्रैल को शेयर किए गए फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा “मेरे द्वारा आकलित ज्योतिषीय आकलन मात्र शास्त्रीय प्रचार की दृष्टि किया गया था, यदि मेरे प्रयोग से किसी की भावना आहत होती है तो मैं क्षमा चाहता हूँ।” पुलवामा हमले के बाद हुई एयर स्ट्राइक के बाद भी प्रोफेसर शास्त्री ने मृत आतंकियों की गिनती पर सवाल उठाने वालों को आड़े हाथों लिया था।

प्रोफसर शास्त्री के निलंबन आदेश का पत्र

भाजपा ने प्रोफेसर शास्त्री के निलंबन का विरोध किया है। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता उमेश शर्मा ने इस पर पार्टी का रुख स्पष्ट करते हुए कहा, “विभिन्न विषयों पर ज्योतिषीय आकलन जाहिर करना ज्योतिर्विज्ञान के प्राध्यापकों के अध्ययन-अध्यापन का अनिवार्य अंग होता है। ऐसे में मुसलगाँवकर जैसे विद्वान ज्योतिषाचार्य पर निलंबन की कार्रवाई सरासर अनुचित है। उनके निलंबन आदेश को शीघ्र रद्द किया जाना चाहिए।” भाजपा ने प्रोफेसर शास्त्री के बचाव में उनका निलंबन रद्द करने की माँग की।

बकलोल गालीबाज ट्रोल स्वाति का मोदी-शाह प्रेम और ‘द वायर’ की नई कलाकारी

स्वाति चतुर्वेदी यूँ तो स्वयं को पत्रकार बताती हैं लेकिन इंटरनेट पर गाली देने, ट्रोलिंग और फेक न्यूज फैलाने में वो अपनी पीढ़ी और विचारधारा में अग्रगण्य मानी जाती हैं। इनकी विचारधारा का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इनके लेख ‘द वायर’ जैसे प्रोपेगेंडा पोर्टल पर लगातार छपते हैं।

ख़ैर, कुछ लोग वैसे होते हैं जिन्हें अचानक से दो शब्द याद आते हैं और वो सोचते हैं कि अब इन पर एक लेख लिख दिया जाए। जैसे कि सप्ताह भर पहले ‘बैंजल’ नाम के हैंडल से ट्विटर पर कुख्यात तथाकथित पत्रकार को ‘डॉग व्हिसल’ और ‘वल्चर पोलिटिक्स’ जैसे वाक्यांशों का कहीं इस्तेमाल करने की इच्छा जगी होगी तो उन्होंने दिन रात एलईडी लाइट में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर टाइप मेहनत करके कुछ लेख जैसा लिखा, जिसे यूँ तो एक शब्द में वाहियात कहा जा सकता है, लेकिन इन छद्म-लिबरलों की क्षीण मेधा को सबके सामने लाना भी मानवता के लिए आवश्यक है, इसलिए मैं पूरा लेख लिखूँगा।

बकलोल ट्रोल दीदी ने पहले ही पैराग्राफ़ में यह साबित कर दिया कि हेडलाइन में भी वो शब्द होने चाहिए, शुरुआती पैराग्राफ़ में भी और जब लोगों को लगने लगे कि ये क्या चल रहा है लेख में, तो अंत में भी वही चार शब्द घुसा दिए जाएँ।

न तो इस ट्रोल को लोकतंत्र के कॉनसेप्ट से कोई लेना-देना है, न ही ‘द वायर’ को, क्योंकि इनके फ़ंडामेंटल्स हिले हुए हैं। लोकतंत्र में बहुमत से जब कोई चुन कर आता है, तो इसका सीधा मतलब है कि उसे ज़्यादा लोग चाहते हैं। इसलिए उसकी राजनीति पर कमेंट करना आपका हक़ है, लेकिन उसे इस तरह से दिखाना कि बाकी दुनिया ही पागल है, ये आपका अहंकार है।

बैंजल नामक ट्रोल ने प्रोपेगेंडा पोर्टल की सफ़ेद पिक्सलों को काला करते हुए लिखा है कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में नेहरू को भला-बुरा कहने से शुरू किया और दूसरे कार्यकाल के लिए राजीव गाँधी को, जिनकी हत्या 21 साल पहले हो गई, ‘भ्रष्टाचारी नंबर एक’ कहा है।

इसमें मोदी ने गलत क्या कहा, यह कहने की ज़रूरत ‘द वायर’ या उसके ट्रोल ने नहीं उठाई। इन्हें लगता है कि ये जो लिखते हैं वो ब्रह्मवाक्य है। पीएम मोदी ने नेहरू को भला बुरा नहीं कहा बल्कि उसकी गलत नीतियों से देश को हुए नुकसान से अवगत कराया जिसे इरफ़ान हबीब से लेकर गुहा और रोमिला थापर जैसे कहानीकारों, यानी फ़िक्शन रायटर्स, ने इतिहास के नाम पर महिमामंडन करके हीरो की तरह दिखाया। नेहरू को ऐसे पढ़ाया गया जैसे उसके लम्बे कार्यकाल में कोई गलती थी ही नहीं।

वैसे ही, राजीव गाँधी की मृत्यु उन्हें बाकी के अपराधों से मुक्ति नहीं दे देती। इस ट्रोल ने, या इस प्रोपेगेंडा पोर्टल ने यह तो कभी नहीं लिखा ‘चौकीदार चोर है’ का नारा कैट व्हिसल पोलिटिक्स है या फिर नकली गाँधी परिवार के संस्कारों की अभिव्यक्ति। जिस व्यक्ति पर कोई आरोप तक कोर्ट ने मानने से इनकार कर दिया हो, उसे हर रैली में राफेल से लेकर जीएसटी और नोटबंदी जैसी बातों पर हत्यारा, लुटेरा और पता नहीं क्या-क्या कहा गया। तब तो मर्यादा और तथ्यों की बात इस ट्रोल और ‘द वायर’ पर नहीं दिखी!

राहुल गाँधी के जवाब को ग्रेसफुल कहने वाली ट्रोल भूल गई कि ‘चौकीदार चोर है’ में जो ग्रेस है, वो दिन में तीस बार सबको सुनाई देता है। लेकिन फिर याद आता है कि चाटुकारिता भी तो एक गुण है जो सबके पास स्वाति चतुर्वेदी वाली सहजता से नहीं आता।

इस बकलोल ने आगे लिखा है कि मोदी ने राहुल के ग्रेसफुल रिप्लाय के बाद अपना ज़हर और तेज कर दिया और राजीव गाँधी से जुड़ी बातों को लगातार उठाया। अरे ट्रोल पत्रकार मैडम, ये तो बताओ कि मोदी ने जो आरोप लगाए वो सही हैं कि गलत? ये तो बताओ कि उस पर कोर्ट का फ़ैसला और जन सामान्य में किस तरह की चर्चा है या फिर उसे बैलेंस करती रहोगी?

बैलेंस करने में भी फिर वही घमंड कि हमने जो लिख दिया वही तथ्य है। मोदी कार्यकाल के पाँच सालों को ट्रोल ने लिखा है कि वो ‘एबिसमल’ थे। उसके बाद लिखा है कि मोदी ने अपनी असफलताओं को नेहरू के नाम कर दिया। लेकिन मोदी की असफलताएँ क्या हैं, इस पर पूरे लेख में कुछ नहीं है।

मोदी की सफलताएँ इसलिए ज्यादा उभर कर सामने आती हैं क्योंकि सच में पिछली सरकारों ने सामान्य जनजीवन को खेल समझ रखा था और ग़रीबों को सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया। सड़कें और ढाँचे तो खराब होते और बनते रहते हैं, लेकिन पिछली सरकारों ने बिजली, पानी, आवास, शौचालय, जैसे मुद्दों पर क्या किया था कि आज करोड़ों लोगों के लिए मोदी को इनकी व्यवस्था में लगना पड़ा?

आखिर किस तरह की नीतियाँ रही थीं पिछली सरकारों की कि असम और बंगाल में बंग्लादेशी भरे पड़े हैं? आखिर क्या मजबूरियाँ थी पिछली सरकारों की कि जन धन के माध्यम से फायनेंशियल इन्क्लूजन के लिए खाते खोलने की ज़िम्मेदारी मोदी ने उठाई। क्योंकि खाते में पैसे जाने से चोरों को फायदा नहीं मिलता। इनकी पार्टियों के फ़ंड सूख जाते। इसलिए, इन्होंने बेशक योजनाएँ बनाईं लेकिन उन्हें वृहद् स्तर पर लागू नहीं किया।

इसलिए, ये चम्पक लेफ़्ट-लिबरल ईकोसिस्टम जितना चिल्ला ले कि मोदी ने तो कॉन्ग्रेस की योजनाओं का नाम बदल दिया, लेकिन सत्य यही है कि योजना का सिर्फ नाम ही नहीं बदला, उस पर काम भी किया, और करोड़ों ज़िंदगियों को उन छोटी सुविधाओं से छुआ, बेहतरी दी, जो साउथ और नॉर्थ ब्लॉक में बैठे लोगों के लिए नगण्य या इन्सिग्निफिकेंट थीं। आपके और हमारे लिए बिजली, पानी, छत, शौचालय सुविधा की तरह नहीं दिखती, लेकिन जिनके पास एक्सेस नहीं है, उनके लिए ये फ़र्क़ ज़मीन-आसमान का है। इसलिए मोदी तो नेहरू को भी कोसेगा, मनमोहन को भी और सोनिया को भी।

आगे बकलोल ट्रोल और ‘द लायर’ ने सफ़ेद पिक्सलों को गंदा करते हुए कहा है कि आखिर मोदी अपनी नोटबंदी की सफलताओं और गुड गवर्नेन्स की बातों पर क्यों नहीं चुनाव लड़ रहा। फिर वही बात कि आपको मोदी की स्पीच सुन कर हृदयाघात पहुँचता है, तो उसका क़तई मतलब नहीं कि मोदी विकास की बातें नही कर रहा रैलियों में। हर रैली में मोदी अपनी योजनाओं, उनसे होने वाले फ़ायदों, नोटबंदी, जीएसटी, वन रैंक वन पेंशन राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार के रुख़ की ही बातें करता है। यही कारण है कि लोगों को यह सब दिखता है, लायर जैसे प्रोपेगेंडाबाजों को नहीं।

जब मोदी की बात हो तो ऐसे ट्रोल पत्रकार 2002 की बातें कैसे नहीं करेंगे! वो तो आएगा ही। वर्तमान की बातें नहीं होंगी। बॉगी में बैठे कारसेवकों को बेरहमी से जला देने वाली भीड़ का नाम नहीं लिखा जाएगा, पुलवामा के बलिदानियों को लिए ‘मारे गए’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल होगा। बताया जाएगा कि उनकी लाशों की राजनीति हुई है। अरे बकलोल, पहले खुद तो वीरगति को प्राप्त हुए जवानों के लिए थोड़ी संवेदना तो दिखा दो। मैं जानता हूँ कि ये लोग ऐसे शब्द जानबूझकर लिखते हैं, क्योंकि आदत से मजबूर हैं। जितना राजनीतिकरण इन लोगों ने पुलवामा का यह कह कर किया है कि वो हमला हुआ ही कैसे, उतनी बार तो मोदी ने इस पर रैलियों में बात भी नहीं की होगी।

इन लिबरलों की कितनी सुलगी हुई है मोदी और योगी से उसका उदाहरण आगे बैंजल ने दिया है कि योगी जैसे एक्सट्रेमिस्ट साधु को मुख्यमंत्री बना दिया। हालाँकि, सिवाय अफ़वाहों के योगी पर एक भी केस साबित नहीं हुआ, लेकिन इस ट्रोल ने ऐसा लिखा है, और वायर ने पिक्सल आवंटित कर रखे हैं गंदे करने को लिए, तो लिखा जा रहा है, पढ़ा जा रहा है।

आगे प्रज्ञा ठाकुर को खींच लाई, जो कि एक नेचुरल प्रोग्रेशन है- मोदी से योगी, योगी से प्रज्ञा। बकलोल ट्रोल दुःखी हो गई कि ये कितनी गलत बात है कि आतंक के आरोपित को इन्होंने उम्मीदवार बनाया है। हालाँकि आरोपितों की बात करते हुए वीआईपी क्षेत्रों के ज़मानती सांसदों और ख़ानदानी घोटालेबाज़ों के नाम लेना स्वाति जी भूल गईं। ऐसे समयों पर वामपंथी पत्रकारों से स्मृतिदोष हो ही जाता है। ये मानसिक डिफॉर्मिटी है, जो छद्म लिबरलों में नेचुरली दिखता है।

योगी आदित्यनाथ द्वारा मोदी की सेना पर बयान जारी करने के बाद भी उसे ऐसे दिखाना कि भारतीय सेना मोदी की बपौती सेना थी, योगी ने वही बोला था, दिखाता है कि जब पहले से ही मन बना लिया हो कि क्या साबित करना है, फिर QED पन्ने के नीचे में लिख कर, नीचे से ऊपर की ओर बढ़ा जाता है।

और अंत में, जब इतनी बातें हो गईं तो स्वाति जी के गुप्त सूत्रों ने उन्हें एक ग़ज़ब की जानकारी दे दी, जो शायद मोदी और शाह को भी न पता हो। स्वाति जी लिखती हैं कि मोदी और शाह ने RSS को कह दिया है कि जब भाजपा सत्ता में वापसी करेगी तो संविधान में बदलाव किए जाएँगे ताकि भारतीय बहुसंख्यक आबादी के भावों को प्रधानता मिले और ‘सेकुलरिज्म’ पर टैक्स लगाया जाएगा।

कुछ दिनों पहले ऐसे ही इनके ईकोसिस्टम ने यह बात फैलाई थी कि मोदी चुनाव ही बंद करवा देगा। वो फर्जीवाड़ा चल नहीं पाया। हर दिन आपातकाल लाने वाले इस गिरोह और पत्रकारिता ताकि समुदाय विशेष, पाक अकुपाइड पत्रकारों का नया प्रपंच है कि संविधान को ही बदल दिया जाएगा। ये इनका पुराना हथियार है कि लोगों में डर फैलाओ यह कह कर कि मोदी डर फैला रहा है। वस्तुतः, लोगों को हर रात डराने का काम इनका गैंग करता रहा है।

लोग हैं कि राज्यों में भाजपा की सरकार को चुनते जा रहे हैं। फिर, आने वाले दिनों में आप इस तरह की हेडलाइन पढ़ेंगे जिसमें भारतीय जनता को ही ये लोग गरियाते मिलेंगे कि ये लोग कितने मूर्ख हैं जिन्होंने मोदी को दोबारा सत्ता दे दी।

जो बकलोल है, जो ट्रोल है, उसकी बातों को तो गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, लेकिन ‘द वायर’ के प्रोपेगेंडा पर लगाम ज़रूरी है। मुझे अच्छा लगा कि इस गालीबाज ट्रोल बैंजल को कहीं न कहीं यह आशा तो है कि मोदी वापस आएगा, और अगर इसे राजनीति का थोड़ा भी ज्ञान है तो यह भी पता होगा कि संविधान में बदलाव के लिए कितनी संख्या चाहिए। इस कारण से फ़िलहाल तो इनके मुँह में घी-शक्कर।

रवीश का रूहअफजा – ठन्डे शरबत का गरम मामला

महागठबन्धन के मंच पर न्यूट्रल गियर वाले पत्रकार जी की तस्वीर सामने आई है। इस तस्वीर पर रवीश कुमार जी ने सफाई देते हुए कहा है कि वे तो रूहअफजा पिलाने गए थे, तभी उनकी फोटो खींच ली गई। प्राइम टाइम पर भाव न मिलने के कारण उन्होंने रैलियों में शरबत पिलाने का ठेका लिया है।

रवीश जी ने बताया कि भाजपा की रैली में आमरस और गठबंधन की रैली में रूहअफजा की माँग रहती है। कॉन्ग्रेस की रैली में सप्लाई राहुल जी स्वयं करते हैं। एक बार जब आम के बागों में बहार आई, तो वे चुन-चुन कर आम लाए और बीजेपी की रैली में आमरस का ठेला लगाया लेकिन राष्ट्रवादियों ने उन्हें ही ठेल दिया। उनकी शक्ल भी आम की गुठली जैसी हो गई, लेकिन मोदी जी ने न उनके आम पर ध्यान दिया न रस पर। रवीश को जानकर भारी झटका लगा कि मोदीजी तो केवल ख़ास आमों का रस पीते हैं। इसलिए बचा हुआ आमरस लेकर उन्हें बेगूसराय जाना पड़ा।

उसके बाद से वे केवल रूहअफजा की सप्लाई ही करते हैं, क्योंकि उसका रंग लाल होता है, और जब हर ग्लास में रूहअफजा भरते हुए लाल सलाम कहते हैं तो उनकी आत्मा को ठंडक मिलती है।

जादू जी ने कहा है कि उनकी सरकार बनने पर रूहअफ़ज़ा की सप्लाई हर टोंटी में की जाएगी। जब किस्मत के तारे करवट लेंगे, हम हर टोंटी में शरबत देंगे। इस पर महागठबंधन की सुपर कमांडर ने पर्ची में से पढ़ कर बताया कि टोंटी वालों को अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। वे गर्मी का मौसम निकलने के बाद रूहअफजा की सप्लाई करेंगी। वो इसके लिए एक लाख मूर्तियों का ऑर्डर देंगी और हर मूर्ती के पैरों में रूहअफजा का फव्वारा लगाया जाएगा।

सबसे बड़ी देवी ने बताया कि उन्होंने देश का सबसे बड़ा तबेला चलाया है, ये समझिए एक पूरे राज्य को अपने तबेले से कम नहीं समझा। जब उनके पति जेल में नहीं थे तो भैंस के दूध में डालकर रूहअफ़ज़ा पीते थे। तबेले में सब कितना खुश रहते थे, उनकी भैंसें भी बिना रूहअफजा के पानी न पीती थीं। अब तो सब बदला निकाला जा रहा है।

कुमारस्वामी से रूहअफजा के विषय में पूछने पर वे फफक-फफक कर रो पड़े और कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

उधर पश्चिम बंगाल की सुल्ताना ने रूहअफ़ज़ा को बैनर्जी की एनर्जी बताते हुए कहा है हम चुनाव में सब बीजेपी वालों का सर फोड़-फोड़ कर चेक कर रहे हैं कि उन्होंने शरीर में रूहअफ़ज़ा तो नहीं छुपा रखा। जिस पर चुनाव आयोग ने चुप रहने का साहसिक फैसला किया है।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री ने गरीबों का अगड़म बगड़म करोड़ बोतल रूहअफजा अम्बानी की जेब में डाल दिया है। घबराइए मत, वो हमदर्द बनेंगे और आप सबकी जेब में रूहअफजा डालेंगे। पंचवर्षीय प्रदर्शनी जी ने कहा है कि अगर पार्टी चाहेगी तो वो रूहअफजा भी पी लेंगी।

झाड़ू गैंग ने आम को बस कुछ ही दिनों का फल कहते हुए कहा है कि लोग आमरस पीकर अपने पैसे बर्बाद न करें। रूहअफजा को राष्ट्रीय शरबत बनाना चाहते हैं तो उन्हें चंदा दें, वे मोहल्ला शरबत केंद्र खोलकर सबको मुफ्त शरबत देंगे। उसमें वैज्ञानिक कारणों से थोड़ा कीचड़ भी मिलाएँगे।

विख्यात बुद्धिजीवी शरबती लाल का मानना है कि बाज़ार से रूहअफजा गायब होने में केंद्र सरकार का हाथ हो सकता है। बनाना शेक का ठेला चलाने वाले शेक-हर ने रूहअफजा न मिलने को देश पर भारी संकट बताते हुए इसे केंद्र सरकार की बड़ी नाकामी बताई है। जिसके जवाब में राममाधव ने कहा कि इसमें हमारी केवल उँगलियाँ हैं। जो काम उँगलियों के इशारे पर हो सकता है, उसमें पूरा हाथ नहीं डालते।

देश के इकलौते विश्वसनीय पोल बाबू ने बिना पोल के ही रूहअफजा को शरबतों का शरबत कहते हुए इसे राष्ट्रीय समस्यायों में बड़ी समस्या घोषित कर दिया है। उन्होंने बताया कि आचार संहिता लगी होने के कारण वे अभी आँकंड़े नहीं बता रहे हैं।

लेखक: अजय चंदेल