Friday, October 18, 2024
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तुम्हारे चक्कर में पाकिस्तानी एजेंट समझने लगे हैं लोग: वरिष्ठ कॉन्ग्रेस प्रवक्‍ता ने इस्तीफ़ा देकर किया टंटा खतम

एयर स्ट्राइक का सबूत माँगने पर कॉन्ग्रेस के अंदर ही ताबड़तोड़ घमासान शुरू हो गई है। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कॉन्ग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और बिहार कॉन्ग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. विनोद शर्मा ने ये कहते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है कि कॉन्ग्रेस द्वारा सैनिकों के बलिदान का मजाक बनाना और सबूत माँगना निंदनीय है, इसी वजह से लोग उन्हें और कॉन्ग्रेस पार्टी को पाकिस्तान का एजेंट कहने लगे हैं।

शर्मा ने पार्टी की इस हरकत को शर्मनाक बताते हुए पद और पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया है। डॉ. विनोद शर्मा ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और प्रियंका गाँधी के भाई राहुल गाँधी को भेजे पत्र में लिखा, “मैंने पहले भी आपको पत्र और ई-मेल के जरिये पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता की भावना से अवगत कराने का प्रयास किया, लेकिन आपने इसकी अनदेखी की। पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले के बाद पूरा देश शोकाकुल है और आक्रोशित है, इसके बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण केंद्र बालाकोट पर एयर स्ट्राइक कर के साहसिक काम किया, जिसमें सैकड़ों आतंकवादियों की जानें गईं। आज पूरा देश सेना के पराक्रम और शौर्य पर गर्व कर रहा है, लेकिन कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा एयर एयर स्ट्राइक और आतंकियों की सूची माँगना एक शर्मनाक और बचकानी हरकत है।”

विनोद शर्मा ने कहा, “कॉन्ग्रेस पार्टी सेना से पाकिस्तान के बालाकोट में मारे गए आतंकियों की सूची माँगती रही। यह निश्चित रूप से किसी भी देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी ऐसी बात करे। यह तय है कि सेना ने जो बम गिराए हैं, उससे 70 फीट गहरे गड्ढे होते हैं। 70 फीट गड्ढा और वहाँ आग का जो गोला था, ऐसे में कोई आतंकी कैसे बचेगा? यह सोचने वाली बात है। लेकिन कॉन्ग्रेस का बार-बार इस तरह की बातें उठाकर राजनीति करना, मुझे पसंद नहीं आया। मैं पिछले 30 वर्षों से पार्टी में काम कर रहा था। इस वजह से काफी दुखी मन से मैंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। पार्टी हित से ज्यादा राष्ट्रहित जरूरी है, इसलिए मैंने ऐसा किया।”

कॉन्ग्रेस प्रवक्ता विनोद शर्मा ने कहा, “राहुल गाँधी को पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावना को समझना चाहिए। पार्टी के कार्यकर्ता भी चाहते थे कि कॉन्ग्रेस इस तरह की बयानबाजी न करे। वजह ये है कि हमें सड़कों पर रहना पड़ता है। आम लोगों की बातों को सुननी पड़ती है। आम लोग चाह रहे थे कि पूरे देश के लोगों को सेना के साथ खड़ा रहना चाहिए। सभी राजनीतिक पार्टियों को सेना का साथ देना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश कॉन्ग्रेस जैसे भी हो, कहीं न कहीं गलत कदम उठा रही थी। सेना का मनोबल तोड़ने का काम कर रही थी।”

सेना के नाम पर राजनीति करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी की गतिविधियों से दुखी पूर्व कॉन्ग्रेस प्रवक्ता विनोद शर्मा ने कहा, “हम लोगों को लगा कि देश सबसे सर्वोपरि है। राष्ट्र सर्वोपरि है। कॉन्ग्रेस अपने पथ से भटक रही है। आज हम इंदिरा जी का 47 वर्षों से नाम लेते हैं कि उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए। ऐसा क्यों? उस समय वाजपेयी जी ने भी इंदिरा जी की सराहना की थी। लेकिन आज दुर्भाग्य ये है कि हमारे नेता राहुल गाँधी आम लोगों की भावना को नहीं समझ रहे हैं। सेना के पराक्रम और शौर्य को नीचा करने का काम कर रहे थे। ऐसी स्थिति में काफी दुखी मन से कॉन्ग्रेस पार्टी छोड़नी पड़ रही है।”

किसी और पार्टी में शामिल होने के सवाल पर विनोद शर्मा ने कहा, “अभी तक किसी पार्टी से बात नहीं हुई है। लेकिन जो पार्टी देश हित में बात करेगी, पार्टी से पहले देश को तवज्जो देगी, उसके साथ जाने पर विचार कर सकते हैं। मैं देश की जनता की भावना को ध्यान में रखते हुए आम आदमी के लिए काम करूँगा। हमारे पुराने नेता नेहरू जी, इंदिरा जी ने जो काम किया, उससे आज के नेता भटक रहे हैं। देश की भावना को नहीं समझ पा रहे हैं। हम लोगों को सड़कों पर लोग पाकिस्तानी एजेंट कहने लगे हैं।”

कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता विनोद शर्मा ने कहा, “हमारा मन काफी द्रवित हुआ कि अगर हम भारत में हैं और कोई हमें ही पाकिस्तानी एजेंट कहे, कॉन्ग्रेस पार्टी के लोग को कहने लगे, तो हमारी अंतरात्मा से आवाज उठी। मैंने इस्तीफा देने का निर्णय लिया। हमारे प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा जी भी काफी आहत हैं। उन्हें भी लगता है कि राहुल गाँधी को ऐसा नहीं बोलना चाहिए। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष होने की वजह से वे खुलकर नहीं बोल रहे हैं।”

राहुल गाँधी की हरकतों से दुखी वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता का इस्तीफ़ा
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कॉन्ग्रेस प्रवक्ता के इस्तीफे के बाद भाजपा ने ट्वीट कर कहा, “एयर स्ट्राइक पर सबूत माँगने वाली कॉन्ग्रेस के बिहार प्रदेश प्रवक्ता विनोद शर्मा ने पद और पार्टी से दिया त्यागपत्र। कहा पाकिस्तान का एजेंट के रूप में कॉन्ग्रेस को लोग देखने लगे हैं, ऐसे में इस पार्टी में रहना मुश्किल।”

पिछले पाँच वर्षों में तीन बार हुए एयर स्ट्राइक, मगर जानकारी दो की ही दूँगा: राजनाथ सिंह

पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय वायु सेना की तरफ से किए गए एयर स्ट्राइक पर अभी सियासी बवाल थमा नहीं कि कर्नाटक के मंगलूरू में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकियों के खिलाफ एयर स्ट्राइक को लेकर एक एक नई जानकारी देकर सबको चौंका दिया है।

गृह मंत्री ने जानकारी देते हुए बताया कि पिछले 5 वर्षों में भारतीय सेना ने तीन बार सीमा पार जाकर एयर स्ट्राइक कर कामयाबी हासिल की है। इस दौरान राजनाथ ने साफ किया कि वह दो स्ट्राइक की जानकारी तो देंगे, लेकिन तीसरी एयर स्ट्राइक के बारे में कुछ नहीं बताएंगे।

बता दें कि राजनाथ सिंह ने शनिवार को पुलवामा आतंकी हमले को लेकर सेना के शौर्य की सराहना की और साथ ही यह बताकर सबको चौंका दिया कि भारत ने तीन स्ट्राइक में सफलता पाई है। राजनाथ ने कहा, “पिछले पाँच वर्षों में हम तीन बार अपनी सीमा के बाहर जाकर स्ट्राइक कर कामयाबी हासिल की है। दो की जानकारी दूँगा, लेकिन तीसरी की नहीं दूँगा।”

राजनाथ सिंह ने कहा कि पहली बार हमने तब सीमा पार कर स्ट्राइक की थी, जब पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर के उरी में हमारे सोए हुए जवानों पर हमला किया था। जिसमें हमारे 17 जवान बलिदान हो गए थे। वहीं दूसरी बार ऐसा ही हमला पुलवामा हमले के बाद हमारी सेना की तरफ से किया गया था। हालाँकि राजनाथ सिंह ने तीसरी एयर स्ट्राइक के बारे में तो नहीं बताया, लेकिन इतना ज़रूर कहा कि अब यह भारत कमजोर नहीं रहा।

15 शहर, 30 विश्वविद्यालय, 300 शिक्षाविद, 1 लक्ष्य: देश को मोदी चाहिए दोबारा

लोकसभा चुनावों की औपचारिक घोषणा की आहट के साथ राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को पुनः चुनाव जिताने के उद्देश्य के साथ जेएनयू, पटना विश्वविद्यालय, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, विभिन्न आईआईटी समेत देश के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों के 300 शिक्षकों ने एक स्वतन्त्र समूह का निर्माण किया है। “एकेडेमिक्स4नमो” (Academics4NaMo) नामक इस समूह की शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर स्वदेश सिंह और उनके कुछ साथी शिक्षाविदों ने की थी, जिससे कि अब 15 विभिन्न शहरों के 30 विश्वविद्यालयों के शिक्षाविद जुड़ चुके हैं। इनका उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में वैचारिक, शैक्षिक, और बौद्धिक जगत के ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों का सार्वजनिक समर्थन जुटाना और भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चल रहे ‘एंटी-इंटेलेक्चुअलिज्म’ के मिथक को तोड़ना है।

यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि केवल भारत ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में दक्षिणपंथी राजनीति पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि यह ‘एंटी-इंटेलेक्चुअल’ या वैचारिकता/बौद्धिकता के विरोधी है। इस आरोप के ‘फ्लेवर्स’ में ‘इंटेलेक्चुअल लेज़ीनेस’ (वैचारिक आलस्य) से लेकर ‘इनेप्टिट्यूड’ (बौद्धिक दिवालियापना) तक शामिल हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की ही अगर बात करें तो उनके भाजपा का प्रधानमन्त्री प्रत्याशी बनने के पहले से उनके खिलाफ वामपंथी बौद्धिकों का आन्दोलन शुरू हो गया था। ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित कन्नड़ लेखक यूआर अनंतमूर्ति ने तो देश को यह धमकी तक दे डाली कि यदि देश ने मोदी को प्रधानमंत्री बन जाने दिया तो वे विरोधस्वरूप देश का त्याग कर देंगे हालाँकि बाद में अपने उस बयान को वस्तुतः न लिए जाने की गुज़ारिश करते हुए अनंतमूर्ति ने कहा कि वह बयान उन्होंने भावातिरेक में दिया था।

जब अख़लाक़ हत्याकाण्ड सुर्ख़ियों में आया तो उसे मोदी और हिन्दुत्ववादियों के बेलगाम हो जाने के सबूत के तौर पर प्रचारित करते हुए लगभग 40 लेखकों, फ़िल्म तकनीशियनों, बौद्धिकों ने “अवार्ड वापसी” आन्दोलन शुरू किया, जो कि भाजपा के बिहार चुनाव हारने के बाद हवा हो गया।

इस बार ‘Academics4NaMo’ समूह इसी ‘नैरेटिव’ का प्रत्युत्तर तैयार करना चाहता है

दो विश्वविद्यालयों- नरेन्द्र देव कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, अयोध्या (तत्कालीन फैजाबाद), व बीआर अम्बेडकर समाजशास्त्र विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति रह चुके आरएस कुरील के अनुसार वह नरेंद्र मोदी की गरीब-समर्थक नीतियों से खासे प्रभावित हुए हैं। अंग्रेज़ी पोर्टल “द प्रिंट” को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने मोदी की नीतियों और योजनाओं को गरीबों और महिलाओं के सशक्तिकरण की ओर केन्द्रित बताया।

बीएचयू में इंडोलोजी के चेयर प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय के अनुसार वामपंथी विचारधारा से प्रेरित अवार्ड वापसी गैंग बहुत समय तक सार्वजनिक बहस में अकेली आवाज़ बना रहा, और यह समय (उनके जैसे विचार रखने वाले बौद्धिकों के लिए) मोदी के पक्ष में खुल कर खड़े होने और हमारी खोई हुई सांकृतिक परम्पराओं के गौरव को पुनः प्राप्त करने का है।

जेएनयू की वंदना मिश्रा कहतीं हैं कि उन्हें मोदी के महिला सशक्तिकरण के लिए उठाए गए कदमों ने आकर्षित किया। लाखों गरीब महिलाओं को उज्ज्वला योजना के लाभ, मातृत्व अवकाश को 6 महीने तक बढ़ाए जाने, महिलाओं को सशस्त्र सेनाओं में कमीशन दिए जाने आदि को वह उदाहरण के तौर पर पेश करतीं हैं।

जेएनयू में ही भाषा विभाग के सुधीर प्रताप के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने समाज के हर वर्ग के जीवन में कुछ-न-कुछ सुधार लाने के अलावा सीमा सुरक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। उनके अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने “अपने कार्यों के ज़रिए सशक्तिकरण, शिक्षा, रोज़गार, और उद्यम में हर वर्ग की अधिकतम भागीदारी का मार्ग प्रशस्त किया है”।

“एकेडेमिक्स4नमो” के फेसबुक पेज के अनुसार इस समूह का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव भारत के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होंगे और अतीत के भ्रष्टाचार और निराशावादी दौर बनाम नए भारत की उम्मीदों और महत्वाकांक्षाओं के अंतर को ठोस तरीके से रेखांकित व स्थापित करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी जीत में सहायता के लिए यह समूह विभिन्न विषयों पर चर्चाओं और राजनीतिक बहसों का आयोजन करने के अलावा इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न ऑनलाइन मंचों पर अपनी बात लेखों के द्वारा रखेगा। उनका उद्देश्य अधिक से अधिक बौद्धिकों, विचारकों, पत्रकारों, आदि तक प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के सही एजेंडे, और विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय को रखना होगा।

#JaichandList – कौन है जयचंद? क्यों बन गया है यह टॉप ट्विटर ट्रेंड

ट्वीटर पर #JaichandList सबसे ऊपर ट्रेंड कर रहा है। देखकर उत्सुकता का जगना स्वभाविक है। इस तरह के ट्रेंड जनता के मूड को प्रदर्शित करते हैं। पुलवामा आतंकी हमले और एयर स्ट्राइक्स के बाद लगातार भारतीय सेना और सरकार पर सवाल उठाकर, पाकिस्तान तक अपना प्रेम जताने वाले लोगों के विरोध में #JaichandList ट्रेंड कर रहा है। बता दें कि जयचंद इतिहास में अपनों को ही धोखा देने वाले के रूप में कुख्यात है। जयचंद की वजह से ही पृथ्वीराज चौहान की हार हुई थी। आप भी एक नज़र डालिए आज के #JaichandList के ट्वीटर ट्रेंड पर—

सौतेली बेटी से किया निकाह, विरोध करने पर अपनी दूसरी पत्नी को दिया तुरंत तलाक

ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन। इस सुन्दर ग़ज़ल में शायद सही कहा गया है कि प्यार करने की कोई उम्र और सीमा नहीं होती है। शुक्रवार (मार्च 08, 2019) को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश के एक अधेड़ सौतेले पिता तस्लीम अहमद द्वारा तलाकशुदा सौतेली बेटी (तबस्सुम) से शादी करने का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। जसपुर पुलिस से इस बारे में शिकायत करने वाली महिला ठाकुरद्वारा की निवासी आरोपित की पत्नी है।

जसपुर (उत्तराखंड, जिला उधम सिंह नगर) के एक गाँव निवासी तस्लीम अहमद ने अपनी पत्नी की मौत होने के बाद क्षेत्र के एक गाँव की विधवा महिला से निकाह किया था। महिला के साथ उसकी एक बालिग बेटी (तबस्सुम) भी साथ आई थी। कुछ समय बाद महिला ने अपनी बेटी की शादी मुरादाबाद के पाकबड़ा में कर दी। लेकिन पति से कहा सुनी होने पर उसे (तबस्सुम को) उसके पति ने तलाक दे दिया।

तब से वह अपनी माँ के साथ मायके में रह रही थी। युवती की माँ का आरोप है कि इस बीच 22 वर्षीय युवती को उसके 45 वर्षीय सौतेले पिता ने अपने प्रेम जाल में फाँस लिया। तस्लीम ने कुछ दिन पहले सौतेली बेटी को अन्य स्थान पर ले जाकर उलेमा को गुमराह कर युवती से निकाह कर लिया। जिसकी जानकारी युवती (तबस्सुम) की माँ को लगी तो उसने हंगामा शुरू कर दिया। जिस पर उसके पति ने महिला को तलाक दे दिया और पत्नी की जगह अपनी सौतेली बेटी को ही साथ रखने की बात कही।

इस पर सौतेली बेटी की माँ ने जसपुर कोतवाली में प्रार्थना पत्र देकर आरोपित पति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की माँग की। लेकिन पुलिस ने दोनों पक्षों को यह कहकर शांत कर घर भेज दिया कि मामला आपस में मिलकर सुलझा लें।

उधर जसपुर की चाँद मस्जिद के इमाम शाकिर हुसैन का कहना है कि सौतेली बेटी से निकाह करना शरियत के हिसाब से हराम है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को ऐसे लोगों का बहिष्कार करना चाहिए। यह घटना क्षेत्र में भी चर्चा का विषय बनी हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक झटके में राम मंदिर मुद्दे को 30 साल पीछे ढकेल दिया

अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट का पिछले दिनों एक बड़ा फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अयोध्या मसले का समाधान मध्यस्थता से निकाला जाए। मध्यस्थता के लिए पूर्व जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक पैनल बनाया जाएगा। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर, वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू होंगे। मध्यस्थता की प्रक्रिया फैज़ाबाद में होगी और यह पूरी तरह से गोपनीय होगी।

इस फैसले के क्या परिणाम होंगे? कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। हालाँकि, अयोध्या मामले के इतिहास पर नज़र डाले तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला घड़ी को उल्टी दिशा में घुमाकर 30 साल पीछे ले जाता दिखता है। क्योंकि, इससे पहले ऐसी ही कोशिश 1990 में की गई थी। अंतर बस इतना है कि उस समय यह पहल केंद्र सरकार ने की थी और इस बार इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है।

सबसे पहले इस तरह की मध्यस्थता और बातचीत के पहल की शुरुआत 1986 में हुई थी। उस समय के काँची के शंकराचार्य और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट मौलाना अबुल हसन नदवी ने नेगोशिएशन की शुरुआत की थी। पर मामला बन नहीं पाया।

इसके बाद एक बार फिर, 1990 में तब के प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने कोर्ट के बाहर कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर इस मामले को सुलझाने का प्रयास किया था। इससे पहले कि वो कुछ कर पाते, उनकी सरकार गिर गई और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने।

1991 में चंद्रशेखर ने भी, चंद्रास्वामी को मध्यस्थ बनाकर ऐसा ही प्रयास किया। उस समय चंद्रास्वामी ने दोनों पक्षों के साथ कई मीटिंग की, पर नतीजा शून्य रहा। उसके बाद गृह राज्य मंत्री सुबोध कान्त सहाय ने तीन मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव, शरद पवार, भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। लेकिन यह समिति इससे पहले कि अपना कोई प्रभाव छोड़ पाती उससे पहले ही संसद भंग हो गई।

कालांतर में, 1992 में पी वी नरसिम्हा राव ने फिर बात आगे बढाई। चंद्रास्वामी को फिर से कमान सौपी गई। इससे पहले कि बातचीत पटरी पर आती। विश्व हिन्दू परिषद् ने कार सेवा की अपील कर दी, जिसकी परिणति बाबरी विध्वंश के रूप में हुई। इसके बाद तो लम्बे समय तक दोनों पक्ष अपने-अपने दावों पर डटे रहें।

लम्बे अंतराल के बाद, एक बार फिर 2000-02 के बीच अटल बिहारी बाजपेयी ने पीएमओ में अलग से अयोध्या सेल बनाकर बात आगे बढ़ाई। विश्व हिन्दू परिषद् और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बीच कई दौर की बातचीत चली। इस बातचीत को आगे बढ़ने में एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी कुणाल किशोर की बड़ी भूमिका थी। लेकिन यह प्रयास भी विफल रहा।  

इसके बाद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को फिर से बातचीत के लिए 2002-2003 में अप्रोच किया काँची कामकोटी पीठ के नए शंकराचार्य ने। काँची के शंकराचार्य अपने प्रस्ताव के साथ लखनऊ में दारुल उलूम के साथ कई दौर की बातचीत की पहल की। प्रस्ताव के कई पॉइंट्स AIMPLB ने ख़ारिज कर दिए, फलस्वरूप वार्ता एक बार फिर बेपटरी हो गई।

इसके बाद मनमोहन सिंह सरकार अयोध्या के मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। हालाँकि इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज पुलक बसु ने 2010 में एक सिग्नेचर अभियान चलाया और अंततः इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मध्यस्थता अयोध्या के स्थानीय लोगों पर छोड़ देनी चाहिए।

तो कुल मिलाकर, जब भी अयोध्या के मुद्दे को वार्ता या मध्यस्थता से सुलझाने की कोशिश की गई नतीजा कोई खास उत्साहवर्धक नहीं रहा। खैर, इस बार मध्यस्थता की कमान ख़ुद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में संभाली गई है। अब देखना यह है कि इस मध्यस्थता के क्या परिणाम सामने आते हैं?

राहुल गाँधी ने मुझे मेरी जगह दिखा दी है: सिद्धू

पिछले काफी दिनों से अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर से चर्चाओं में आ गए हैं, लेकिन इस बार चर्चा में आने की वजह अलग है।

दरअसल कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने गुरुवार को पंजाब के मोगा में एक रैली को संबोधित किया। इस दौरान पंजाब के कई प्रमुख नेता उपस्थित थे। जहाँ पर स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को अपने ही राज्य में आयोजित कॉन्ग्रेस अध्यक्ष की रैली में मंच पर आसीन होने के बावजूद भी बोलने का मौका नहीं दिया गया।

जिसके बाद सिद्धू काफी नाराज दिखे। उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि- “यदि मैं राहुल की रैली में बोलने के लिए ठीक नहीं हूँ, तो मैं एक वक्ता और प्रचारक के रूप में भी ठीक नहीं हूँ। आगे मुझे बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है या नहीं, लेकिन इस रैली ने मुझे मेरी जगह दिखा दी है और साथ ही यह भी साफ हो गया है कि कौन से लोग आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रचार करेंगे।”

सिद्धू इतने पर ही नहीं रूके, उन्होंने पुरानी बातों को याद करते हुए कहा कि- “साल 2004 में भी बादल की रैली में मुझे बोलने से रोका गया था। उसके बाद यह पहली बार है कि जब मुझे स्पीच नहीं देने दी गई।” सिद्धू ने कहा कि वह बालाकोट हवाई हमले पर पीएम मोदी पर निशाना साधने की तैयारी करके आए थे।

आपको बता दें कि सिद्धू पिछले कुछ समय से पार्टी लाइन के विपरीत चल रहे हैं, जो कि पार्टी को रास नहीं आ रहा है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के मना करने के बावजूद उनका पाकिस्तान जाने का फैसला, पुलवामा हमले के बाद उनका यह कहना कि आतंकवाद का कोई देश, जाति और धर्म नहीं होता और फिर बालाकोट में वायु सेना द्वारा की गई कार्रवाई में मारे गए आतंकवादियों की संख्या पर सवाल उठाना आदि ऐसी घटनाएँ हैं, जिनके कारण पार्टी में ही उनका काफी विरोध हुआ है।

Modi is our daddy, he is our daddy, India’s daddy: तमिल नाडु मंत्री राजेंद्र बालाजी

“मोदी इज आवर डैडी” ऐसा किसी और का नहीं बल्कि अम्मा की राजनीति के गढ़ से कहा गया है और यह कहा है, तमिलनाडु सरकार में मंत्री के टी राजेंद्र बालाजी ने। बालाजी ने कहा कि अम्मा की बात और थी, उनका अपना निर्णय था, लेकिन आज जब अम्मा नहीं हैं तो “मोदी इज आवर डैडी, ही इज आवर डैडी, इंडिआज डैडी।”

एक तरह से यह बात कह कर बालाजी ने तमिलनाडु की जनता को यह एहसास कराने की कोशिश की कि बेशक आज अम्मा नहीं हैं, पर तमिलनाडु अनाथ नहीं है। दक्षिण भारत से किसी मंत्री के द्वारा ऐसे विचार रखना बताता है कि पीयूष गोयल द्वारा किए गए भाजपा-AIADMK गठबंधन सकारात्मक परिणाम ला सकता है।

ऑपइंडिया को दिए गए साक्षात्कार में जब हमने पीयूष गोयल से पूछा था कि तमिलनाडु के लिए क्या योजनाएँ हैं, तो उन्होंने कहा था, “भाजपा विभिन्न दलों के साथ बातचीत कर रही है। दलों ने कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन किया है, उनका पूरी तरह से सफ़ाया हो गया है। अभिनेता रजनीकांत एक “अच्छे दोस्त” हैं और हम उनसे भी मिलने की कोशिश करेंगे।”

छत्तीसगढ़: ‘कॉन्ग्रेस नेता पुत्र’ बिना परीक्षा दिए बना डिप्टी कलेक्टर

छत्तीसगढ़ सरकार ने पूर्व कॉन्ग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के बेटे आशीष कर्मा को डिप्टी कलेक्टर नियुक्त किया है। यह एक प्रशासनिक पद है। आम तौर पर इस पद के लिए अभ्यर्थियों को छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग (CGPSC) की परीक्षा को पास करना होता है, जिसके लिए निश्चित रूप से बहुत सारे अभ्यर्थी दिन-रात मेहनत करते हैं। लेकिन कॉन्ग्रेस ने परिवारवाद की राजनीति में एक बार फिर साबित कर दिया है कि कॉन्ग्रेस है तो मुमकिन है।

2 मार्च को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (INC) के निवास पर हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में पूर्व कॉन्ग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के बेटे आशीष कर्मा को अनुकंपा नियुक्ति देने का निर्णय कर सीधा डिप्टी कलेक्टर पद दे दिया गया। बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर रहे कर्मा की 2013 में झीरमघाटी में नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। इस हमले में कॉन्ग्रेस नेता के साथ CRPF और राज्य पुलिस को मिलकर कुल 28 अन्य लोगों की भी मृत्यु हुई थी। आशीष कर्मा की पढ़ाई पूरी नहीं होने के कारण अनुकंपा नियुक्ति का मामला पेडिंग था, उन्होंने मात्र स्नातक की डिग्री प्राप्त की है।

छत्तीसगढ़ में वर्तमान कॉन्ग्रेस सरकार का ये पक्षपातपूर्ण निर्णय ऐसे समय में आया है जब कॉन्ग्रेस पार्टी लगातार मोदी सरकार को घेरने के लिए बलिदानी सैनिकों का सहारा लेकर लगातार राजनीति कर रही है। सोशल मीडिया पर अभ्यर्थी निरंतर रूप से सरकार से इस बात का जवाब माँग रहे हैं कि आखिर यह सामंतवादी और पक्षपातपूर्ण विचारधारा अन्य अभ्यर्थियों पर क्यों थोपी जा रही है? ट्विटर पर हैकिंग के माध्यम से पाकिस्तान सरकार की नाक में दम करने वाले अंशुल सक्सेना से लेकर सभी लोगों ने इस पर आवाज उठाने का प्रयास किया है।

कॉन्ग्रेस सरकार के इस पक्षपात से आहत कुछ अभ्यर्थियों ने ट्विटर के माध्यम से अपनी बात रखते हुए कहा है कि सरकार अन्य अभ्यर्थियों के मनोबल को गिरा रही है और उनके प्रयासों का मजाक बनाकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।

अभ्यर्थियों का कहना है कि इस घटना को 6 दिन से ज्यादा हो गए हैं लेकिन अभी तक किसी भी मीडिया द्वारा इस खबर को नहीं उठाया गया है। कुछ ट्विटर यूज़र्स का कहना है कि कॉन्ग्रेस द्वारा संचालित यह गोदी मीडिया छत्तीसगढ़ सरकार के इस निंदनीय कृत्य पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है।

जैश का प्रवक्ता है पाकिस्तान, दो मिग गिराए तो सबूत दो: भारत

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने शनिवार को नई दिल्ली में पाकिस्तान के झूठ को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। रवीश कुमार ने कहा कि अगर पाकिस्तान ‘नया पाकिस्तान’ होने का दावा करता है तो उसे आतंकी संगठनों के खिलाफ ‘नया एक्शन’ भी लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान लगातार झूठ फैलाने का काम कर रहा है, जबकि उसे भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बात मानकर आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

रवीश कुमार ने कहा कि भारत के खिलाफ एफ-16 विमान का इस्तेमाल करके पाकिस्तान बेनकाब हो गया है, “पाकिस्तान का दावा है कि उसने भारत के दूसरे विमान को मार गिराया है और उसके पास इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग है, तो उसने इसे अभी तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ साझा क्यों नहीं किया है? भारत ने एफ-16 गिराने के सबूत दिए हैं तो वह क्यों नहीं दे रहा है? वह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रवक्ता की तरह काम कर रहा है। पाकिस्तान को आतंकवादियों पर ठोस कार्रवाई करनी चाहिए।”

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “हमने अमेरिका से कहा है कि वह इस बात की जाँच करे कि एफ-16 का भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना बिक्री के नियमों और शर्तों के अनुसार है या नहीं। यदि पाकिस्तान दावा करता है कि वह नई सोच वाला नया पाकिस्तान है तो उसे आतंकी समूहों और सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ नया ऐक्शन दिखाना चाहिए। यह खेदजनक है कि पाकिस्तान अभी भी जैश-ए-मोहम्मद के पुलवामा हमले के पीछे होने के दावे से इनकार कर रहा है।”