Tuesday, October 8, 2024
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दलितों और मुस्लिमों में हिंदुत्व-RSS का डर फैलाने के लिए पाकिस्तान ने बनाया था यह प्लान

पिछले तीन सालों में मोदी सरकार के दौरान अचानक खड़े हुए दलित, मुस्लिम और क्रिश्चियन आंदोलन या फिर उनपर बढ़ते हमलों को लेकर खूब हाय तौबा मचाई गई। एक छोटी सी घटना को भी देश के लिबरल मीडिया ने तुरंत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया। दरसअल मोदी को हराने के लिए पाकिस्तान ने बहुत सोच समझकर एक मास्टरप्लान बनाया था जिसे अक्टूबर 2016 में पाकिस्तान के उच्च सदन सीनेट की हाई पावर कमेटी ने तैयार किया था।

इस पॉलिसी गाइडलाइंस प्लान को तैयार करने में पाकिस्तान के डिफेंस मिनिस्टर ख्वाजा मोहम्मद आसिफ, डिफेंस सेक्रेटरी, पीएम एडवाइज़र सरताज़ अजीज समेत सीनेट के 13 सदस्य शामिल थे। इस प्लान को पाकिस्तान की ‘कमेटी ऑफ़ द होल’ द्वारा 4 अक्टूबर, 2016 को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया था।

इस रिपोर्ट की भाषा से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर बलोचिस्तान का नाम लेने भर से पाकिस्तान डर गया था। रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि 1971 के बाद पाकिस्तान पर भारत के किसी प्रधानमंत्री द्वारा इतना दबाव नहीं बनाया गया था जितना नरेंद्र मोदी ने बनाया था।

इस प्लान के तहत पाकिस्तान के खिलाफ नरेंद्र मोदी के रवैये को काउंटर करने लिए 22 सूत्रीय योजना बनाई गयी थी जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत के खिलाफ प्रोपगैंडा शुरू करने से लेकर, सार्क देशों समेत तमाम देशों में कश्मीर में ह्यूमन राइट्स का प्रोपगैंडा फैलाने की योजना तैयार की गयी थी।

लेकिन इस प्लान में भारत के लिए सबसे खतरनाक रणनीति भारत की ‘फॉल्टलाइंस’ पर वार करने की थी। मसलन जाति और रिलिजन के आधार पर भारत में दंगे भड़काना। इस प्लान के तहत भारत में दलित, मुस्लिम, सिख, और क्रिश्चियन समुदाय के लोगों को हिंदुत्व-आरएसएस के नाम पर भड़का कर देश को टुकड़ों में बांटने का प्लान बनाया गया था। इस प्रोपगैंडा को फैलाने के लिए पीएम मोदी के खिलाफ लिखने वाले मीडिया, एनजीओ और ह्यूमन राइट्स संगठनों की भी मदद लेने की बात कही गयी थी।

पाकिस्तान को अपने इस प्लान को भारत में लागू करने में आंशिक तौर पर सफलता भी मिली। जिसका नतीजा ये है कि देश में मोदी सरकार के दौरान दलित, मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदाय के लोगों पर हमले और फिर उसके नाम पर देश विरोधी फ़र्ज़ी आंदोलन खड़े किये गए। उन्हें हिंदुत्व और आरएसएस के नाम पर जानबूझकर भड़ाकाया गया।

यह आसानी से समझा जा सकता है कि कैसे भारतीय मीडिया और लिबरल लॉबी एक छोटा से केस की बिना जाँच परख किए, मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने लगती है।

अपने प्लान को लागू करवाने के लिए पाकिस्तान ने इंटरनेशनल स्तर पर लॉबिंग करवाने के लिए एजेंसियों को भी हायर किया था। यह भी इसका प्लान का हिस्सा था और उस रिपोर्ट में लिखा है जो पाकिस्तान की सीनेट कमेटी ने तैयार किया था। पाकिस्तान की सीनेट कमेटी की रिपोर्ट आज भी वेबसाइट पर उपलब्ध है।

गुरुग्राम: कश्मीरी छात्रा ने किया आतंकियों का समर्थन, यूनिवर्सिटी से निष्कासित

गुरुग्राम स्थित श्री गोबिंद सिंह ट्राईसेंटेनरी विश्वविद्यालय (SGTU) ने एक कश्मीरी छात्रा को यूनिवर्सिटी से निष्काषित कर दिया है। छात्रा ने सोशल मीडिया पर पुलवामा हमले को सही ठहराया था। उसने पुलवामा में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों का अपमान करते हुए व्हाट्सएप पर एक स्टेटस लगाया था। कुछ अन्य छात्रों ने इस स्टेटस को देखा और उन्होंने यूनिवर्सिटी को इसकी सूचना दी। स्क्रीनशॉट्स देखने के बाद यूनिवर्सिटी ने छात्रा को निष्काषित करने का निर्णय लिया।

यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार द्वारा हस्ताक्षरित ऑर्डर में लिखा है:

“विश्वविद्यालय कैंपस में इस तरह की अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इसलिए, यह निर्णय लिया गया है कि छात्रा को तत्काल प्रभाव से रस्टीकेट किया जाए। इस मामले की जाँच के लिए एक चार सदस्यीय पैनल गठित किया गया है।”

ख़बरों के मुताबिक़, छात्रा ने इंस्टाग्राम पर भी ऐसे पोस्ट लगाए थे, जिसे देखने के बाद अन्य छात्रों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। विश्वविद्यालय के एक अन्य छात्र ने बताया:

“लड़की ने टिप्पणी की थी और उसके पोस्ट से पता चल रहा था कि उसकी नज़र में हमारे सैनिकों के साथ जो कुछ हुआ वह सही था… हमने विरोध किया… और विश्वविद्यालय ने उसे निकाल दिया। हम इस मामले को और आगे नहीं ले जाना चाहते।”

मंगलवार (फरवरी 19, 2019) को सुबह 9 बजे से सैकड़ों छात्र जुटने शुरू हो गए थे। ‘भारत माता की जय’, ‘वन्दे मातरम्’ और ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ का नारा बुलंद करते हुए उन्होंने यूनिवर्सिटी प्रशासन पर मामले से गंभीरता से लेने का दबाव बनाया। इसके बाद यूनिवर्सिटी ने छात्रा को निकालने का निर्णय लिया। यूनिवर्सिटी के इस निर्णय के बाद विरोध-प्रदर्शन बंद हो गए।

यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता ने बताया कि अनुशासनिक समिति ने शुरुआती जाँच में छात्रा को दोषी पाया गया। उसके माता-पिता और स्थानीय अभिभावक को भी इस बारे में सूचना दे दी गई। प्रवक्ता ने बताया कि यूनिवर्सिटी में 30 से भी अधिक कश्मीरी छात्र अध्ययन कर रहे हैं।

इस से पहले नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (NIMS) ने चार कश्मीरी छात्राओं को सस्पेंड किया था। इन्होंने व्हाट्सएप के जरिए देशद्रोही कंटेंट को फॉरवर्ड किया था। देश भर में कई जगह से कश्मीरी छात्रों द्वारा ऐसी हरकतें करने के समाचार आए हैं। पुलवामा हमले के बाद ऐसे कई दोषियों को गिरफ़्तार भी किया जा चुका है।

मसूद अज़हर को प्रतिबंधित करने के लिए सुरक्षा परिषद पहुँचे US, UK और फ्रांस

आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित करने की दिशा में भारत को बड़ी कूटनीतिक सफलता मिलती दिख रही है। फ्रांस ने कहा है कि वह अगले कुछ दिनों में आतंकी मसूद अज़हर पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाएगा। जैश-ए-मोहम्मद को पहले ही संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित कर रखा है। इसी आतंकी संगठन ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी भी ली है। इस हमले में 40 से अधिक भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हुए। भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए कूटनीतिक अभियान चला रहा है।

इससे पहले 2009 और 2016 में मसूद अज़हर पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाया जा चुका है। 2016 में पठानकोट हमले के बाद लाए गए इस प्रस्ताव पर फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत का साथ दिया था। 2017 में अमेरिका ने ब्रिटेन और फ्रांस के समर्थन से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रेज़ोलुशन 1267 पारित किया था, जिसमें पाकिस्तानी आतंकी मसूद अज़हर पर प्रतिबंध की माँग की गई थी। आपको बता दें कि चीन हमेशा से इस प्रस्ताव के पास होने में अड़ंगा लगाता रहा है।

फ्रांस की राजधानी पेरिस में चल रही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की बैठक में पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ से ब्लैक लिस्ट वाले देशों की सूची में शामिल करने का भी प्रयास किया जाएगा। पाकिस्तान को 2018 में ग्रे लिस्ट में डालते हुए चेतावनी दी गई थी कि अगर उसने अपनी ज़मीन से संचालित हो रहे आतंकी संगठनों पर कार्रवाई नहीं की तो उसे ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाएगा। मीडिया में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और फ्रांस के कूटनीतिक सलाहकार फ़िलिप एटिन के बीच इस मसले को लेकर गहन चर्चा हुई।

पुलवामा हमले के बाद अमेरिका ने भी पाकिस्तान को मसूद अज़हर पर कार्रवाई करने को कहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान से मसूद अज़हर को आतंकियों की सूची में डालने को कहा है। ज्ञात हो कि पुलवामा हमले के 100 घंटे के भीतर भारतीय सुरक्षाबलों ने जैश के 3 आतंकियों को मार गिराया था। भारत को भी इस ऑपरेशन में बड़ी क्षति पहुँची क्योंकि सेना के एक मेजर सहित 4 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। इस मुठभेड़ में पुलवामा हमले का साज़िशकर्ता गाज़ी भी मारा गया। इस हमले का असली मास्टरमाइंड मसूद अज़हर है, जो पाकिस्तान के पंजाब स्थित बहावलपुर से आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता है।

क्विंट वालों ने टिक-टॉक विडियो से रॉकेट साइंस लगाकर ‘डेन्जरस हिन्दुत्व प्रोपेगेंडा’ कुछ यूँ निकाला

सोशल मीडिया के आने से पत्रकारिता को बहुत सारे लाभ हुए हैं। लेकिन हाँ, इसका एक बुरा असर यह भी पड़ा कि लोग इन्स्टाग्राम और ट्वीट उठाकर, उसे आर्टिकल बनाकर मेनस्ट्रीम मीडिया में रख देते हैं। इसका एक ही तरीक़ा है, जो ज़्यादातर एंटरटेनमेंट बीट के पत्रकार अपनाते हैं: किसी भी सेलिब्रिटी का इन्स्टाग्राम/ट्विटर पोस्ट लीजिए, उसमें जो लिखा है उसको पहले ‘इनडायरेक्ट स्पीच’ में लिखिए, फिर उसे डायरेक्ट स्पीच में लिखिए और अंत में पोस्ट को एम्बेड कीजिए। बन गया आर्टिकल। 

लगता है ‘द क्विंट’ के पत्रकार ऐसा करने में विश्वास नहीं रखते क्योंकि ‘ईमानदार सरकार’! चुनाव आने वाले हैं, लेकिन किसी सीट की लड़ाई में न तो जुनैद मारा जा रहा है जिसे बीफ से जोड़ा जा सके, न ही ब्राह्मिनिकल पेट्रियार्की टाइप कुछ कांड सामने आ रहा, राम मंदिर पर सिर्फ सुप्रीम कोर्ट तारीख़ दे रहा है, मोदी अपनी रैलियों में हर दिन विकास के प्रोजेक्ट्स के नाम और प्रोग्रेस गिना रहा है, तो ऐसे में वामपंथियों और पत्रकारिता के समुदाय विशेष में उनके कम्यूनल अजेंडे को हवा देने वाले लेखों का अकाल पड़ गया है।

ये जो गिरोह है पत्रकारिता के समुदाय विशेष का, असली मायनों में सबसे घटिया स्तर की जातिवादी बातें, सबसे नीच स्तर की साम्प्रदायिक बातें यही करता है। वरना, जब कुछ वैसा घटित न हो रहा हो, तब किसी एप्प से चार पोस्ट और चार हैशटैग पर क्लिक करके, उनसे डेंजरस, पोलराइजिंग, एक्सट्रीम हिन्दुत्व अजेंडा निकाल लेना, इनकी ज़िम्मेदारी है, जिसे क्विंट की इस पत्रकार ने बख़ूबी निभाया है। 

आर्टिकल की शुरुआत ही इतने कमज़ोर तरीके से हुई है मानो लॉजिक को लूज़ मोशन्स हो रखे हों! फोटो के कैप्शन से ही ‘क्विंट’ ने ‘टिक-टॉक’ के बारे में जो बात कही है, विडम्बनावश, वो क्विंट और उनके पाठकों पर सटीक बैठती है: “टिक टॉक पर यूज़र्स को पता है कि उनको देखने-सुनने वाले भी उन्हीं की तरह हैं। यही कारण है कि एप्प पर पोलिटिकल विडियोज बिलकुल बेपर्दा (अनअबैश्ड) और क्रिएटिव हैं।” पहला पैराग्राफ़ किसी यूज़र के बारे में बताता है कि उसने भगवा वस्त्र धारण किए हुए हैं और कह रहा है, “क्यूँ जाना है अयोध्या, घर बैठिए और राम का नाम लीजिए।” इसके बाद किसी रिकॉर्ड किए हुए साउंड पर वो अपने होंठ हिला रहा है, “ये हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रश्न है और इससे हम कोई समझौता नहीं कर सकते।” 

इसमें प्रोपेगेंडा क्या है और किसी व्यक्ति का ‘अयोध्या’ को लेकर प्रेम ‘एक्सट्रेमिज्म’ कैसे है, यह मेरी समझ से बाहर है। क्या हमें संविधान इसकी अनुमति नहीं देता, या फिर भगवा वस्त्र पहनने भर से आदमी आतंकवादी हो जाता है? क्या अपने भगवान में आस्था, उनके मंदिर बनाने की बात पर अडिग रहना, उसे अपने स्वाभिमान से जोड़ना और एक पंद्रह सेकेंड का विडियो बनाना ‘हिन्दुत्व प्रोपेगेंडा’ है? और ऐसा साबित करने का लॉजिक (जो नीचे है) वो इतना कुत्सित और बेकार है कि कोई भी समझदार आदमी माथा पीट लेगा। 

आर्टिकल में लिखा है कि यूँ तो यहाँ पोलिटिकल विडियो बहुत हैं, जिसमें राहुल गाँधी के स्पीच आदि भी हैं, लेकिन इन सबको #RSS, #rammandir, #hindu and #bjp लोकप्रियता में पछाड़ देता है। यह कहते-कहते मोहतरमा वहाँ पहुँच जाती हैं जहाँ कॉमन सेन्स नहीं पहुँच सकती, “ये विडियोज़ खतरनाक तरीके से ध्रुवीकरण करने वाले प्रोपेगेंडा की तरफ चले जाते हैं।” 

फिर पत्रकार ने लिखा है कि कैसे मनोरंजन और अभिव्यक्ति का यह माध्यम ‘एक्सट्रीम पोलिटिकल विचारों’ का प्लेटफ़ॉर्म बनता जा रहा है। और वो एक्सट्रीम पोलिटिकल विचार क्या हैं? विडियो क्लिप पर आए 132 कमेंट में से एक @jitenkpatel नामक यूज़र का यह कमेंट, “टिकटॉक मनोरंजन के लिए है फिर भी मंदिर वहीं बनाएँगे।” ये कमेंट सबसे अधिक ख़तरनाक और समाज को बाँटने बाला रहा होगा क्योंकि पत्रकार ने इसे इतनी अहमियत दी। आप पढ़ लीजिए, और सोचिए कि इसमें ‘डेंजर’ या ‘एक्सट्रीम’ कहाँ है?

क्या राम मंदिर बोलने से, भगवा वस्त्र पहनने से, अयोध्या की बात करने से व्यक्ति हिन्दुत्व प्रोपेगेंडा करने लगता है? क्या हिन्दू धर्म को मानने वाले अपने देवता के लिए मंदिर निर्माण की बात, एक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर करने भर से एक्सट्रेमिस्ट हो जाते हैं? फिर तो तिलक लगाकर घूमने वाले साधुओं को क्विंट मानव बम कह सकता है। (ऊप्स! मैंने तो इन्हें नया आइडिया दे दिया कि ‘कुम्भ में पहुँचे लाखों मानव बम, हिन्दुत्व पूरी मानवता के लिए ख़तरा’)

ये अपने आप में हास्यास्पद बात है कि #RSS हैशटैग पर 63 मिलियन व्यूज़ होना प्रोपेगेंडा है, ख़तरनाक है, समाज को तोड़नेवाला है, साम्प्रदायिक है, ध्रुवीकरण करने वाला है! आर्टिकल को लम्बा करने के लिए (क्योंकि एक भी सही तर्क नहीं है सिवाय चार हैशटैग और उससे जुड़े कमेंट पर एकतरफ़ा फ़ैसला सुनाने के) बीच-बीच में यह समझाया गया है कि ये एप्प है क्या, कैसे काम करता है, किस भाषा में है, यहाँ पर कैसे लोग हैं, वो कितने ‘सिली’ हैं, या ‘धरती हिला देने वाले टैलेंट’ लेकर नहीं आए हैं।  

ऐसे ही एक और विडियो का उदाहरण दिया गया है जिसमें कोई माया नायर नाम की यूज़र मलयालम में कहती हैं कि उन्हें RSS पसंद है, और उनकी पसंद में कोई बदलाव नहीं आने वाला। उसके बाद बताया गया कि उस विडियो पर 7.9 हजार लाइक्स और 906 कमेंट हैं। उसके बाद एक और विडियो का उदाहरण है जो RSS हैशटैग से जुड़ा है। इसमें RSS ‘नेशनल सॉन्ग’ (ये क्या है?) की बात करते हुए पत्रकार महोदया ने लिखा है कि यूज़र कहती है, “जीवन संघ के नाम, दिल संघ के नाम, और मैं बेटी संघ की हूँ।”  

इस उदाहरण का उद्देश्य समझ में नहीं आया सिवाय इसके कि भारत में ‘संघ’ की बात करना शायद जर्मनी में हिटलर के क्रॉस की तरह बैन है। लेकिन ऐसी बात तो बिलकुल नहीं है। संघ की शाखाएँ हैं, संघ के स्कूल हैं, संघ हर आपदा में आगे खड़े होकर मदद करता है, संघ में तमाम बड़ी शख़्सियतें जाती रहती हैं, वहाँ से जुड़े लोग देश के प्रमुख पदों पर बैठे हैं, और ऑक्सफोर्ड-हार्वर्ड वालों से बेहतर काम कर रहे हैं। फिर ‘संघ’ का नाम ले लेना ही ‘एक्सट्रेमिस्ट अजेंडा’ हो जाता है? पत्रकार को भारतीय इतिहास से लेकर अपने संविधान, कुछ कानूनी बातें और नागरिक के मौलिक अधिकारों पर क्रैश कोर्स कर लेना चाहिए ताकि वो ऐसी वाहियात बातें लिखकर चार फैशनेबल शब्दों की बात अंग्रेज़ी में करके लहरिया लूटने की नाकाम कोशिश न करे। 

और तो और, खुद ही टिक टॉक के विडियो की गुणवत्ता की बात करते हुए पत्रकार महोदया लिखती हैं कि ऐसा नहीं है कि कोई ग़ज़ब का टैलेंट है इधर, लोग तो अंग्रेज़ी बोलते ही नहीं, और उसमें गर्व भी महसूस करते हैं। मतलब, स्वयं ही इस प्लेटफ़ॉर्म पर जो हो रहा है उसका उपहास कर रही हैं, बताती हैं कि दो-तीन दोस्तों द्वारा घर के बरामदे में चादर की आड़ में ‘अदृश्य होते आदमी’ वाले जादू का प्रदर्शन कर रहे हैं, जो कि कोई धरती-धमक टैलेंट तो नहीं है लेकिन बताता है कि यहाँ किस तरह का कंटेंट है। 

मानवी जी, इस घटना को विरोधाभास कहते हैं। जब ये प्लेटफ़ॉर्म इस तरह की जोकरई और मूर्खतापूर्ण हरकतों से, सलमान और अजय देवगन के गीतों पर रोते हुए लड़कों को विडियो से भरा हुआ है, तो वहाँ आपको राम मंदिर को लेकर भी ‘ख़तरनाक राजनीति’ करने वाले, या ‘एक्सट्रीम हिन्दुत्व अजेंडा’ के नाम पर सबसे ख़तरनाक पोस्ट यही मिलेगा कि ‘मैं आरएसएस को पसंद करती हूँ’, या यह कि ‘मेरा जीवन संघ के लिए है।’

अगर वहाँ और ज़हरीले कमेंट होते तो मुझे पता है क्विंट निकाल लेता तथा एक बड़ा आर्टिकल लिख देता कि कैसे ये ‘ख़तरनाक हिन्दुत्व अजेंडा’ वाले लोग दो-तीन दिन में तलवार लेकर सड़कों पर निकल सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य कहिए, या सौभाग्य, कि ऐसा वास्तविक जीवन में नहीं होता। जिनको राम मंदिर चाहिए वो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतज़ार कर रहे हैं। जिस पार्टी को चाहिए, उसने भी कह दिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट के हिसाब से चलेंगे। 

पूरे आर्टिकल में एक ऐसा उदाहरण नहीं है जिससे कि आर्टिकल का शीर्षक या अंत जस्टिफाय किया जा सके। इस पर अपने सात मिनट बर्बाद करने के बाद आपको यही पता चलेगा कि अगर आपने आर्टिकल लिखने से पहले, रिसर्च से पहले ही हायपोथिसिस को प्रूव करने का इरादा कर लिया हो, टैम्पलेट बना रखा हो, तो आपका कन्क्लूजन कुछ ऐसा ही होगा, “टिक-टॉक भारत के हज़ारों युवाओं की अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। अपने फ़ैन्स, अपनी बेपर्दा राजनैतिक अभिव्यक्ति, अपने आक्रामक हिन्दुत्व और वृहद् यूज़र बेस के लिए। क्या भारत इसकी उपेक्षा कर सकता है?”

मैंने आर्टिकल का लिंक भी दे दिया है, उसमें जो सबसे ख़तरनाक अजेंडा की बातें थी, वैसी बातें जो बेपर्दा राजनैतिक अभिव्यक्ति है, वैसे पोस्ट जो आक्रामक हिन्दुत्व का स्वरूप हैं, सब आपको हिन्दी में दे दिया है। डिसाइड कर लीजिए कि क्विंट में काम करने वालों को वैसे विशेषणों से विशेष प्रेम है जिसका मतलब वो नहीं जानते, या फिर ‘हिन्दुत्व’, ‘प्रोपेगेंडा’, ‘एक्स्ट्रेमिज्म’ लिखकर कुछ भी चला दिया जाएगा? इससे कहीं बेहतर तो इन्स्टाग्राम से दीपिका पदुकोन और रणवीर सिंह के लवी-डवी कमेंट पर पोस्ट बना दिया जाता! प्रोसेस तो मैंने बता ही दिया है! 

इमरान खान, AK47 गाड़कर आतंकियों के ग्रेनेड से रिवर्स स्विंग मत कराइए, फट जाएगा

झंडा लगाकर, सीरियस चेहरा बनाकर इमरान खान ने एक वीडियो के माध्यम से जो बातें कही हैं उससे एक बात जो ज़ाहिर है कि इस व्यक्ति को पाकिस्तान के बारे में कुछ ज़्यादा जानकारी नहीं है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने लगातार दबाव बनाया है, कुछ निर्णय लिए हैं जो कि पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था से लेकर उसके प्रायोजित आतंकवाद के लिए सही नहीं दिख रहे। 

पूरे विडियो में, जो कि अपने हिसाब से तथाकथित जमहूरियत के असली मालिकों को खुश रखने के लिए एडिट किया गया है, एक भी बार इमरान खान ने पुलवामा जैसे हमले की निंदा नहीं की, बल्कि यही गुनगुनाते रहे कि दहशतगर्दों से पाकिस्तान को बड़ा नुकसान हुआ है, और सौ बिलियन डॉलर के साथ 70,000 पाकिस्तानियों की जान गई है। 

मतलब, क्या कहना चाह रहा है ये आदमी? तुम दहशतगर्दी से परेशान हो तो बाक़ियों की परेशानी तुम्हारे कारण नहीं हो सकती? इनिंग के उत्तरार्ध में रिवर्स स्विंग डालकर बल्लेबाज़ों को कन्फ्यूज किया जा सकता है, लेकिन ग्रेनेड से गेंदबाज़ी नहीं चल सकती। क्योंकि तथ्य सामने हैं कि पाकिस्तान में मसूद अज़हर से लेकर हाफ़िज़ सईद तक परोपकारी संस्थाओं के नाम पर आम जीवन जी रहे हैं। यही किसी दिन बिलबिला कर पेशावर जैसा कांड करेंगे तो पता चलेगा कि पालतू कुत्ते ठीक होते हैं, आतंकी नहीं।

सबूत माँगे हैं इमरान ने यह कहकर कि ये नया पाकिस्तान है और सबूत देने पर वो कार्रवाई करेंगे। ‘नया पाकिस्तान’ सिर्फ कहने से नहीं बन जाता, या फिर अपनी भैंस बेचकर, गधे एक्सपोर्ट करके पैसे जुटाना किसी राष्ट्र को नई दिशा नहीं देता। नयापन आमूलचूल परिवर्तन से, या उसकी इच्छा से आता है। इस मामले में पाकिस्तान वहीं है, जहाँ वो अलग इस्लामी देश बनने के समय में था। नया पाकिस्तान का मतलब यह तो नहीं कि इन आतंकियों को अब व्यवस्थित तरीके से अपनी सेना में रखने का विचार चल रहा है?

क्या सबूत चाहिए? एलओसी के पास के आतंकियों की ट्रेनिंग कैम्प के बारे में इमरान को पता नहीं है, या फिर लॉन्च पैड के बारे में जहाँ से भारत में होनेवाले आतंकी हमलों की प्लानिंग की जाती है? अगर ये नहीं पता तो आईएसआई वालों को बहुत निराशा होगी, क्योंकि प्रधानमंत्री को इतना तो जानना ही चाहिए कि वो आतंकी देश के प्रधानमंत्री हैं और वहाँ की सत्ता सेना और आतंकी चलाते हैं, जबकि चेहरा जमहूरियत का रहता है। 

भारत से पाकिस्तान में आतंकियों के होने के सबूत माँगना उतना ही हास्यास्पद है जितना यह कहना कि आतंकवादी ने अगर गोली चलाई तो हमें यह बताइए कि उसके हाथ थे! लेकिन पाकिस्तान के पीएम जैश-ए-मोहम्मद और जमात-उद-दवा के पाकिस्तान में सक्रिय होने के बावजूद, उनके द्वारा हमलों की ज़िम्मेदारी लेते रहने के बाद भी, यही रिकॉर्ड बजाते हैं कि उन्हें सबूत चाहिए! वैसे, इमरान जी, ओसामा जहाँ था उसका नाम ‘चाँद’ तो नहीं रख दिया था आप लोगों ने क्योंकि उसके होने को तो उसके मरने तक आप लोग नकारते रहे थे। 

मुझे याद है जब पेशावर के आर्मी स्कूल के हमले में 105 बच्चों की जान गई थी। पूरा भारत उठ खड़ा हुआ था आतंकियों के ख़िलाफ़। जब सच में इस तरह की घटनाएँ होती हैं तो देश की भावना से ऊपर उठकर व्यक्ति मानव मात्र के तौर पर सोचता है, द्रवित हो उठता है। ऐसी घटना दोबारा होगी, तो दोबारा भारत के लोग खड़े होंगे क्योंकि वही मानवता है। 

इतना बड़ा विडियो बनाया तो दो शब्द उन जवानों के नाम भी कह देते जो किसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त नहीं हुए, बल्कि अकारण ही वो चले गए। किसने किया, ये तो अलग बात है लेकिन मानव मात्र के नाम पर, एक पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री के नाम पर आपके पास संवेदना के दो शब्द नहीं हैं, लेकिन आप सबूत माँगे जा रहे हैं! 

अगर ये नया पाकिस्तान है, तो भारत भी पुराना नहीं रहा। यही कारण है कि आपको सामने आकर ये सब कहना पड़ रहा है। आपके यहाँ चीन का पैसा लगा हुआ है, और अगर भारत ने थोड़ा सा भी रुख़ कड़ा किया, बलूचिस्तान आदि जगहों पर थोड़ी-सी एक्टिविटी बढ़ी तो पैसों के वापस जाने में देर नहीं लगेगी। आपको भी पता है कि नया भारत कहाँ मारता है, कैसे मारता है। 

खासकर, मोदी सरकार ने जो आतंकी हमले के बाद सीधा फ़ैसला सेनाओं के हाथ छोड़ दिया है, तब से खलबली मचनी उचित है। पाकिस्तान में जो पानी जाता है, वो भी भारत से होकर जाता है, जिस पर मोदी ने पहले ही कह रखा है कि पानी और ख़ून एक साथ नहीं बह सकते। अमेरिका अब ट्रम्प के आने के बाद से तुम्हारे साथ रहा नहीं। ले-दे कर चीन है, और अगर हालात खराब हुए तो वो भी अपना पैसा लेकर चला जाएगा। अब आपको डर है कि अगर भारतीय सेना ने बिना युद्ध छेड़े पाकिस्तान को सीमित तरीके से तबाह करना शुरु किया, तो आप कहीं के नहीं रहेंगे। ये जो क्राउन प्रिंस आए थे डॉलर लेकर, वो भी शायद ऐसे पाकिस्तान में पैसे न लगाना चाहें जहाँ लगातार युद्ध जैसी स्थिति बनी रहे।  

ज़लालत और जहालत का पर्याय बन रहे इमरान खान ने ये भी कहने की कोशिश की कि भारत में चुनाव होने वाले हैं तो ये सब किया जा रहा है! पाकिस्तान में तो आप ही कह रहे हैं कि बहुत दहशतगर्दी है, फिर क्या वहाँ भी चुनाव होने वाले हैं? आतंकवाद से अगर आप परेशान हैं तो फिर नामी आतंकी वहाँ कैसे रह रहे हैं? क्या आप उनका इस्तेमाल चुनावों के दौरान करने वाले होते हैं? जिस देश में चुनाव जीतने का एक ही फ़ंडा हो कि कौन सी पार्टी भारत के नाम पर कितना ज़हर उगल सकती है, वो ‘चुनावों के साल’ की बात न ही करे तो बेहतर है।

इमरान ख़ान ने एक और ग़ज़ब की बात कही कि भारत को सोचना चाहिए कि कश्मीर का युवा अपने आपको मारने पर क्यों उतारू है! अब अगर यह बात भी इमरान को समझ में नहीं आ रही तो लानत है पाकिस्तान के मदरसों पर जो उन्हें बहत्तर हूर के कॉन्सेप्ट ठीक से नहीं समझा पाया!

इमरान अगर आतंक को लेकर गम्भीर हैं तो पुरानी स्क्रिप्ट देखकर बोलना बंद करें और सही मायनों में नई सोच दिखाएँ। नई सोच यही कहती है कि अपनी गिरती इकॉनमी की चिंता करें और आतंक के इन्फ़्रास्ट्रक्चर में कम बजट लगाएँ। भैंस, गधे और कार बेचकर पैसे जुटाने वाले प्रधानमंत्री को यह सोचना चाहिए कि बंदूक़ों और आरडीएक्स के साथ-साथ आतंकियों को सैलरी पर रखना पाकिस्तानी हुकूमत की अजीबोग़रीब नीतियों की तरफ इशारा करता है।

कश्मीरी राष्ट्रवादी, जो माँ-पिता को खो चुका है, PM से सुरक्षा की गुहार कर रहा है

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवम् गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह के नाम खुला ख़त 

महोदय,

नमस्ते, आदाब! 

मैं श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) का रहने वाला हूँ। मैं यह खुला ख़त आपको इसलिए लिख रहा हूँ ताकि मैं अपनी तरफ आपका ध्यान आकर्षित कर सकूँ। कश्मीर घाटी के हालात से आप अच्छी तरह से वाक़िफ़ हैं। साथ ही, आप यह भी जानते हैं कि हर राष्ट्रवादी कश्मीरी यह मानता है कि कश्मीर का भविष्य भारत के साथ ही सुरक्षित है। यहाँ के अलगाववादियों और आतंकियों का एक ही मक़सद है कि निर्दोष कश्मीरियों को जिहाद के नाम से काट दिया जाए और कश्मीर को नरसंहार और बर्बादी का पर्याय बना दिया जाए। ऐसे लोगों को रोकने के लिए और कश्मीर के लोगों को उनका असली एजेंडा समझाने के लिए मैं रात-दिन काम कर रहा है।

सर, मैं अपने कई दोस्तों के साथ कश्मीर के युवाओं को मुख्यधारा में लाने और उन्हें भारत देश की परिकल्पना समझाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा हूँ। हम देशभक्त लोग हैं और अपने देश के लिए बहुत बड़े बलिदान कर चुके हैं, जिसमें हमारे माता-पिता, भाई-बहन और कई क़रीबी संबंधियों की शहादत शामिल है। हमने कई सारे इनिशिएटिव लिए हैं ताकि युवा इस चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनें और शांति के प्रयास में हमारा साथ दे सकें। मेरे परिवार के कुछ सदस्य आतंकियों द्वारा पिछले कुछ सालों में मारे जा चुके हैं और यह बताता है कि यहाँ मेरी ज़िंदगी को कितना ख़तरा है। 

हम लगातार यहाँ पर यह प्रयास कर रहे हैं कि युवावर्ग इलेक्टोरल पॉलिटिक्स का हिस्सा बने और यही कारण है कि हम आतंकियों की निगाह पर चढ़ चुके हैं, और हमें लगातार डराया-धमकाया जाता है। मैं कई बार अपने ऊपर हुए आतंकी हमले से बच चुका हूँ। मुझे सोशल मीडिया पर भी लगातार जान से मारने की धमकियाँ मिलती रही हैं जिसे मैं संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में लाता रहा हूँ। हुर्रियत और उनके कई एजेंट्स कई बार मुझे धमकी दे चुके हैं कि मैं कश्मीर में अपना काम रोक दूँ।

मैं कई बार राज्य की पुलिस और जम्मू-कश्मीर के ADGP (सिक्योरिटी) के संज्ञान में इन सब बातों को ला चुका हूँ। मैंने होम मिनिस्ट्री, जम्मू कश्मीर के गवर्नर, गवर्नर के सलाहकार एवम् जम्मू कश्मीर DGP तक, सबको लिखा है, उन्हें हर बात बताई है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। 

सर, सरकार तो उन लोगों को भी सुरक्षा दे रही है जिनके माता-पिता आतंकियों द्वारा मारे गए थे लेकिन वो लगातार देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं, जैसा कि श्री राम माधव जी ने अपने बयान में कहा था।  सर, जैसा कि मैंने आपको अपने काम और अपने परिवार के बारे में बताया है, मैं आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि आप इन बातों की तरफ़ अपना ध्यान देंगे और मुझे सुरक्षा प्रदान करवाएँगे ताकि मैं अपने राष्ट्रवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाता रहूँ। 

इस मदद के लिए मैं आपका सदैव आभारी रहूँगा। 

सादर,

ट्विटर हैंडल @ibne_sena

श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर


हिंदी हृदय सम्राट रवीश कुमार जी! थोड़ी अंग्रेजी भी पढ़ लीजिए, फ़र्ज़ीवाड़ा कम फैलाएँगे… हेहेहे!

ऐसा लगता है कि आदरणीय प्राइम कुमार उर्फ रवीश कुमार ने प्रोपेगेंडा फैलाने का ठेका ले रखा है। दैनिक जागरण में रुपए की जिस ख़बर का हवाला देते हुए उन्होंने एक लंबा फर्जी लेख ”मीडिया विजिल” में लिख मारा है, वह पूरी स्टोरी विशेषज्ञों के हवाले से लिखी गई है। लेकिन उन्हें न तो विशेषज्ञ नजर आ रहे हैं, और नहीं स्टोरी समझ में आ रही है।

दैनिक जागरण (अख़बार) की वो स्टोरी, जिसे फ़र्ज़ी कहते हुए लिख मारा लेख

बात करते हैं स्टोरी पर। मूल स्टोरी ब्लूमबर्ग में प्रकाशित हुई है और उसे देश के सभी महत्वपूर्ण अखबारों ने प्रकाशित किया है। बिजनेस स्टैंडर्ड में ”Rupee could weaken past 75 if Modi fails to win second term: Expert”, हेडलाइन के साथ।

फाइनैंशियल एक्सप्रेस में ”Rupee vs Rupiah: Indonesian currency holds edge as polls near”, हेडलाइन के साथ। इसके अलावा ब्लूमबर्ग क्विंट में यह खबर छपी।

ब्लूमबर्ग में प्रकाशित ऑरिजिनल स्टोरी

ऐसे में रवीश के हिंदी विरोध की ग्रंथि फट पड़ी और उन्होंने प्रवचन दे मारा, ”हिन्दी अख़बारों से सावधान रहें। इस पर विचार करें कि या तो हिन्दी के अखबार बंद कर दें या हर महीने अख़बार बदल दें। आख़िर झूठ पढ़ने के लिए आप क्यों पैसा देना चाहते हैं? किसी दिन हॉकर के आने से पहले उठ जाइए और मना कर दीजिए। एक दिन जाग जाइए बाकी दिनों के लिए अंधेरे से बच जाएँगे। हिन्दी के अख़बार हिन्दी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं। सावधान!”

लेकिन पूरी स्टोरी को देखने के बाद लगता है कि रवीश कुमार अंधे हो गए हैं, ज्ञान के गुमान में। उनका कई दफे बर्ताव ट्रोल से बुरा होता है, उन्हें इस बात भ्रम हो गया है कि जो मैं कह रहा हूँ, वही सही है, जो और जहाँ से मैं देख रहा हूं, वह सही है, बाकी सब कुएं में पड़े हैं।

हिंदी खबर में दो विशेषज्ञों के जरिए बात रखी गई है, जिसे हूबहू अंग्रेजी की मूल खबर में पढ़ा जा सकता है। लेकिन रवीश कुमार ने फिर भी फर्जीवाड़ा फैलाया।

पहला, सिंगापुर स्थित टॉरस वेल्थ एडवाइजर्स के कार्यकारी निदेशक रेनर माइकल प्रीस ने कहा, ‘रुपए के मुकाबले रुपया निवेशकों के लिए बेहतर रिस्क-रिवॉर्ड ऑफर कर रहा है। इंडोनेशिया के मामले में हमारी राय है कि वहां यदि यथास्थिति बनी रहती है, तो यह अच्छी बात होगी। दूसरी तरफ यदि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनने में सफल नहीं हो पाते हैं तो लोग इसे नकारात्मक परिघटना मानेंगे, नतीजतन रुपए में भारी गिरावट आ सकती है।’

अंग्रेजी का पैरा वो भी ग्राफ के साथ

अगला पैरा, जिसमें रुपए के एक तय स्तर से नीचे जाने का जिक्र है, उसे भी विशेषज्ञ के हवाले से लिखा गया है।

आइएनजी का आकलन: सिंगापुर स्थित आईएनजी ग्रुप एनवी के अर्थशास्त्री प्रकाश सकपाल का कहना है कि यदि मोदी एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री नहीं चुने जाते हैं तो ऐसी स्थिति में रुपया कमजोर होकर 75 प्रति यूएस डॉलर से भी नीचे आ सकता है।

अंग्रेजी का पैरा रुपया और रुपैया के डेटा के साथ

ब्लूमबर्ग की मूल स्टोरी और हिंदी की खबर में साफ लिखे जाने के बाद प्राइम कुमार को यह नजर नहीं आया, और उन्होंने यह फर्जीवाड़ा कर डाला। वह लिखते हैं, ”कहीं इन बातों की आड़ में भ्रम फैला कर माहौल तो नहीं बना रहे हैं? इनका कहना है कि मोदी दोबारा नहीं चुने गए तो इंडोनेशिया की मुद्रा भारत के रुपए से आगे निकल जाएगी। ये नहीं बताया कि भारत का रुपया किन मुद्राओं से पीछे है? क्यों इंडोनेशिया के रुपैया से ही अचानक तुलना करने लगे हैं? डॉलर छोड़ अब हमें इंडोनेशिया के रुपए से होड़ करनी है क्या?”

लेकिन अगर श्रीमान ने एक बार खबर के मूल सोर्स को पढ़ने की कोशिश की होती है, तो उन्हें यह भान होता कि खबर अंग्रेजी में लिखी गई थी और यह उसका अनुवाद था। दूसरी सबसे अहम बात उनके इस प्वाइंट को लेकर है,

”क्यों इंडोनेशिया के रुपैया से ही अचानक तुलना करने लगे हैं? डॉलर छोड़ अब हमें इंडोनेशिया के रुपैया से होड़ करनी है क्या?”

स्टोरी का पहला पैरा (सबसे ऊपर लगाई गई इमेज) ही इसका जवाब देता है, जिसमें साफ कहा गया है कि ”Two of Asia’s biggest emerging economies will soon elect leaders, and wagers are already being placed on their currencies। The consensus: Indonesia’s rupiah will trump India’s rupee।”

मतलब ”एशिया की दो बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं जल्द ही चुनाव का सामना करने जा रहे हैं और सबसे बड़ा दांव इन दोनों देशों की मुद्राओं पर लगा हुआ है।” जिन्होंने स्टोरी लिखी, उन्हें यह एंगल दिलचस्प लगा होगा क्योंकि इस साल भारतीय रुपया जहां 2 फीसद तक लुढ़क चुका है, वहीं इंडोनेशियाई रुपैया 2 फीसद से अधिक मजबूत हो चुका है। इंडोनेशियाई रुपैया थाई करेंसी के बाद सबसे शानदार प्रदर्शन वाली करेंसी है जबकि रुपए की चाल बेहद खराब रही है।

इसका यह मतलब नहीं होता कि रुपया की तुलना डॉलर के बदले इंडोनेशियाई रुपैया से होगी। लेकिन प्राइम कुमार आज कल जज की भूमिका में हैं। उन्हें जजमेंट देने की पुरानी आदत हैं। वह भावुक होते हैं तो कोई बात नहीं होती है, दूसरा भावुक होता है तो उन्हें दुनिया में अंधेरा छाता दिखने लगता है।

अब रही बात हिंदी की तो प्राइम कुमार अक्सर अपील करते रहते हैं। लेकिन प्राइम कुमार यह भूल जाते हैं कि हिंदी जगत की अधिकांश खबरें अनुवादित होती हैं और उनका सोर्स एजेंसियां होती हैं। बिजनेस के मामले में यह प्रतिशत और भी ज्यादा होता है। लेकिन लगता है रवीश खुद कभी अनुवाद नहीं किए हैं… हेहेहे!

पाकिस्तानी आतंक की सड़ाँध ईरान और अफ़ग़ानिस्तान तक है

दुनिया के पहले इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान से केवल भारत ही नहीं अपितु उसके पड़ोसी ईरान और अफ़ग़ानिस्तान भी त्रस्त हैं। कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान द्वारा समर्थन प्राप्त आतंकी संगठन जैश-अल-अदल ने एक आत्मघाती हमला कर ईरान रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के 27 फ़ौजियों को मार डाला और 10 अन्य को घायल कर दिया। यह हमला भी उसी प्रकार किया गया था जैसे कश्मीर के पुलवामा में CRPF के काफ़िले पर 14 फरवरी को किया गया था।

जैश-अल-अदल नामक सुन्नी सलाफ़ी विचारधारा वाला आतंकी संगठन ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में सक्रिय है और इसे पाकिस्तान का परोक्ष समर्थन प्राप्त है। ईरान का सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत से सटा हुआ है। ईरान ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि वो जैश-अल-अदल पर तुरंत कार्रवाई करे अन्यथा ईरान अपने तरीके से बदला लेगा।

पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद से भारत के बाद जो देश सबसे ज्यादा त्रस्त है वह है अफ़ग़ानिस्तान। हाल ही में पाकिस्तान में तालिबान और इमरान खान के बीच मीटिंग होने वाली थी जिसके लिए सारी तैयारियाँ की जा चुकी थीं। इस्लामाबाद में स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए थे और सार्वजनिक छुट्टी का ऐलान कर दिया गया था। जिस दिन तालिबान के साथ मीटिंग होने वाली थी उसी दिन सऊदी अरब के प्रिंस को भी इस्लामाबाद बुलाया गया था।

कहा तो यह भी जा रहा था कि इस्लामाबाद में तालिबान के साथ अमरीकी अधिकारियों की मीटिंग होने वाली थी। हास्यास्पद रूप से यह मीटिंग आखरी वक्त में निरस्त कर दी गई क्योंकि तालिबान के लीडरों को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका द्वारा आतंकवादी घोषित किया गया है इसलिए वे अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार नहीं जा सकते।

अफ़ग़ानिस्तान ने इस मीटिंग पर संयुक्त राष्ट्र में अपने स्थाई मिशन के हवाले से कड़ी आपत्ति जताते हुए पाकिस्तान से अपनी सरज़मीं पर पनपने वाले आतंकवाद को खत्म करने को कहा। अमेरिका के साथ होने वाली कथित गुप्त मीटिंग से करीब एक पखवाड़े पहले तालिबान के ‘प्रवक्ता’ ने एक साक्षात्कार दिया था जिसमें उसने कहा था कि तालिबान चाबहार परियोजना की सुरक्षा करेगा और अफ़ग़ानिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं और सिखों के हितों की रक्षा करेगा।

वह गुप्त मीटिंग तो नहीं हो पाई लेकिन इस पूरे प्रकरण से जो बात निकलकर सामने आई वह यह है कि तालिबान आज भी खुद को एक शासक (ruling regime) की तरह प्रोमोट करता है। वह अमेरिका से सैन्य टुकड़ियों की वापसी (withdrawl of troops) के बारे में बात करने को इच्छुक है, वह चाबहार परियोजना और हिन्दू और सिख जैसे समुदायों की रक्षा की बात करता है। वह भी तब उसके कथित ‘लीडर’ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घोषित आतंकवादी हैं।

इन आतंकवादियों को पाकिस्तान और सऊदी से निरंतर खाद-पानी मिलता है। जानने लायक बात यह है कि अफ़ग़ानिस्तान की आम जनता पाकिस्तान की जनता की भाँति भारत विरोधी नहीं है। अफ़ग़ानिस्तान के लोग भारत से प्रेम करते हैं। अफ़ग़ानिस्तान के उप विदेश मंत्री हेकमत खलील करज़ई Terrorism in Indian Ocean Region पुस्तक में प्रकाशित अपने लेख में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के मध्य संबंधों पर लिखते हैं “ये मुहब्बत है दिलों का रिश्ता, ऐसा रिश्ता जो ज़मीनों की तरह, सरहदों में कभी तक़सीम नहीं हो सकता।”

करज़ई लिखते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के बॉर्डर पर सर्वाधिक आतंकी कैंप मौजूद हैं। ये अफ़ग़ानिस्तान को विश्वभर में आतंक फ़ैलाने के लॉन्च पैड के रूप में प्रयोग करते हैं। ज़ाहिर है कि इन सभी गुटों को पाकिस्तान द्वारा समर्थन और आर्थिक सहायता प्राप्त है। इनमें प्रमुख रूप से तालिबान, हक़्क़ानी नेटवर्क, तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-तय्यबा आदि के अलावा चीन में ऑपरेट करने वाला संगठन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट और जुंदल्लाह भी शामिल है। जुंदल्लाह ही वह संगठन है जिसने 2012 में जैश-अल-अदल को जन्म दिया था जो आज ईरान में आतंकी गतिविधियों के ज़िम्मेदार है।    

सवाल यह है कि इतने सालों तक अमरीकी फ़ौज की मौजूदगी होते हुए भी अफ-पाक सीमा पर से आतंकवादियों का ख़ात्मा क्यों नहीं हो सका? उप विदेश मंत्री करज़ई इसके कारण बताते हुए लिखते हैं कि इन आतंकियों को ‘स्टेट’ (अर्थात पाकिस्तान) द्वारा संरक्षण प्राप्त है। इसके अतिरिक्त ड्रग्स, ग़ैर क़ानूनी रूप से खुदाई इत्यादि से भी होने वाली कमाई भी आतंक को पोषित करती है। यही नहीं इस क्षेत्र में सऊदी अरब से काफी पैसा आता है जो ‘टेरर फाइनेंसिंग’ में मददगार है।  

पाक ने ICJ में कुलभूषण जाधव को RAW एजेंट साबित करने को लिया ‘The Quint’ का सहारा

सोमवार (फरवरी 18, 2019) को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत द्वारा पाकिस्तान की बखिया उधेड़ने के बाद आज मंगलवार को पाकिस्तान ने अपना पक्ष रखा। कुलभूषण जाधव मामले में सुनवाई चार दिनों तक चलेगी, जिसका आज दूसरा दिन था। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान ने जाधव को भारतीय एजेंसी RAW का जासूस साबित करने के लिए भारतीय मीडिया का सहारा लिया। भारत द्वारा दी गई दलीलों के जवाब में पाकिस्तान के वकील क़ुरैशी ने कहा कि जाधव रॉ के एजेंट थे।

पाकिस्तानी वकील ने पत्रकार करण थापर द्वारा लिखे लेखों से यह साबित करने की कोशिश की कि जाधव रॉ के जासूस थे। पाकिस्तान ने 2017 में थापर द्वारा इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख का सहारा लिया। इस लेख में थापर ने भारतीय विदेश मंत्रालय को कटघरे में खड़ा करते हुए पूछा था कि जाधव को लेकर उनका स्टैंड क्या है? आपको बता दें कि करण थापर कपिल सिब्बल और पी चिदंबरम समर्थित समाचार चैनल हार्वेस्ट टीवी में नज़र आने वाले हैं।

तत्पश्चात कुरैशी ने फ्रंटलाइन में प्रवीण स्वामी द्वारा लिखे गए लेख का जिक्र किया। यह लेख जनवरी 2018 में ‘India’s Secret War’ की हैडिंग के साथ लिखा गया था। इस लेख में स्वामी ने दावा किया था कि जाधव पाकिस्तान में भारत के गुप्तचर थे और भारत द्वारा इस से इनकार करना असंभव है।

इन दोनों लेखों के अलावा पाकिस्तानी पक्ष ने चन्दन नंदी द्वारा ‘दी क्विंट’ में लिखे गए एक लेख का भी सहारा लिया। इस लेख में नंदी ने दावा किया था कि जाधव के पास दो पासपोर्ट थे- एक उनके असली नाम से, और एक हुसैन मुबारक पटेल के नाम से। अब यही सारे लेख अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान द्वारा सबूत के तौर पर पेश किए जा रहे हैं।

ज्ञात हो कि इस लेखों को पाकिस्तानी मीडिया द्वारा भी ख़ूब प्रचारित एवं प्रसारित किया गया था। आपको यह भी जानना चाहिए कि यह पहली बार नहीं है जब भारतीय मीडिया के लेखों का भारत के ख़िलाफ़ ही प्रयोग किया जा रहा हो। जब लंदन की अदालत में विजय माल्या को भारत में प्रत्यर्पण संबंधी सुनवाई चल रही थी, तब माल्या के वकील ने भारतीय मीडिया द्वारा सीबीआई के ख़िलाफ़ लिखे गए लेखों को दिखाया था, जिसे जज ने नकार दिया था।

पुलवामा आतंकी हमला: 23 जवानों के कर्जे को SBI ने किया माफ़

गुरुवार (फरवरी 14, 2019) को हुए पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान वीरगति को प्राप्त हुए जबकि 5 जवान जख्मी हुए। देश पर बलिदान हुए इन जवानों के जाने के बाद इनके परिवारों में मातम का माहौल पसरा हुआ है। ऐसे में एसबीआई ने इन जवानों के परिवार वालों को राहत देने के लिए एक घोषणा की है। इस घोषणा में एसबीआई ने बलिदान हुए जवानों के कर्ज को माफ़ करने का निर्णय लिया है।

भारतीय स्टेट बैंक ने बताया है कि बलिदान हुए 40 जवानों में से 23 सीआरपीएफ कर्मियों ने बैंक से कर्ज लिया हुआ था और इसी दिशा में बैंक ने तत्काल प्रभाव से बकाया कर्ज माफ़ करने का निर्णय किया है।

बता दें कि यह सारे जवान एसबीआई के ही ग्राहक थे। उनका वेतन भी इसी में आता था। इन
खातों पर बैंक प्रत्येक रक्षाकर्मियों को 30-30 लाख रुपए का बीमा कवर उपलब्ध कराता है।

एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा है कि आतंकवादी हमले में हमेशा देश की सुरक्षा के लिए खड़े सुरक्षाकर्मियों का वीरगति को प्राप्त होना बहुत दु:खद और पीड़ादायी है।

इसलिए एसबीआई ने उन परिवारों को राहत देने के लिए छोटा सा कदम उठाया है, जिसमें उन्होंने एक यूपीआई बनाया है ताकि इन जवानों के परिजनों की मदद के लिए लोग अपना हर संभव योगदान दे सकें।