पुलवामा आतंकी हमले में बलिदान हुए जवानों में एक नाम नसीर अहमद का भी है। 14 फरवरी को इस आत्मघाती हमले का शिकार हुए नसीर एक दिन पहले ही यानि 13 फरवरी को अपना 46 वाँ जन्मदिन मनाकर ड्यूटी पर वापस लौटे थे।
22 साल सेना को दे चुके नसीर जम्मू-कश्मीर के राजौरी के हेड कांस्टेबल थे। साथ ही इस हमले से पहले नसीर उस बस के कमांडर थे, जिसे आत्मघाती हमले में निशाना बनाया गया।
नसीर अब अपने पीछे अपनी पत्नी शाजिया कौसर और दो बच्चे फ़लक (8 साल) और कशेस (6साल) को छोड़कर गए हैं। उनके पड़ोसी ने बताया कि नसीर अपने रिटायरमेंट के बाद डोदासन बाला में बसने की प्लॉनिंग कर रहे थे। 2014 में आई भीषण बाढ़ के समय नसीर पुलवामा में ही थे, इस दौरान उन्होंने दर्जन लोगों की जानें बचाई थी।
पिता की मौत के बाद नसीर को पाल पोस कर बड़ा करने वाले नसीर के बड़े भाई सिराज-दीन जम्मू-कश्मीर पुलिस में हैं और फिलहाल वहीं पर तैनात हैं।
सिराज ने बताया कि पिता ने अपने आखिरी समय में नसीर का हाथ उनके हाथ में देकर कहा था कि उसे अच्छे से रखना। उन्होंने बताया कि गुरुवार शाम को वह जम्मू में थे, जब उन्हें अपने भाई की ख़बर मिली।
नसीर के भतीजे ने बताया कि गुरुवार को दोपहर 3 बजे वो जम्मू से निकले थे। सीआरपीएफ के काफिले का उन्हें कमांडेंट बनाकर भेजा गया था। फिर अचानक ही ख़बरें आई कि 10 जवान बलिदान हो गए, कोई बोला 15 हो गए। अंत में पता चला कि हमारे अंकल भी उसी में शामिल थे।
नसीर का पार्थिव शरीर जैसे ही उनके गाँव पहुँचा तो दोदासन देशभक्ति के नारों से गूँज उठा। वहाँ मौजूद लोगों के चेहरे पर आतंकियों के प्रति गुस्सा भी देखने को मिला और काफ़ी आक्रोश भी।
नसीर अहमद का बेटा बार-बार बस यही दोहरा रहा था कि पहले वो पापा की मौत का बदला लेगा फिर अपना जन्मदिन मनाएगा।
रेलवे या ट्रेन जैसे शब्द कान में पड़ते ही मेरी तरह आपके ज़ेहन में भी आता होगा उन तमाम अव्यवस्थाओं की तस्वीर, जिनका आपने यात्रा के दौरान कभी सामना किया होगा। मसलन ट्रेन का समय पर न आना और न ही समय पर जहाँ जाना है वहाँ पहुँचा देना, गंदे टॉयलेट, गंदे ट्रैक, फिनायल की तेज गंध, ख़राब खाना, कर्मचारियों से लेकर ट्रेन अटेंडेंट का रुखा व्यवहार आदि-आदि… ऐसी कई बातें या तो हमने देखी हैं या अक्सर अपने यहाँ की ट्रेन यात्रा के बारे में कुछ ऐसा ही सुनते आए हैं।
ख़ैर, मैंने पिछले साल की शुरुआत में ही अपनी ट्रेन यात्रा के दौरान रेलवे में हो रहे निर्माण कार्य और बदलाव की व्यापकता की झलक देखी थी। जैसे ट्रेन ट्रैक का विस्तार, ट्रैक के नवीनीकरण के साथ स्टेशनों की साज-सज्जा में वहाँ की प्रमुख कलाकृतियों, संस्कृति को बढ़ावा देना जारी था। लेकिन कितना सुधार हो चुका है, इसे परखना बाकी था।
आप सोच रहे होंगे मैं ये सब क्यों बता रहा हूँ? तो असल बात ये है कि 15 फ़रवरी 2019 को “वंदे भारत एक्सप्रेस” की पहली यात्रा में एक पत्रकार के रूप में शामिल होने का मुझे भी अवसर मिला। पिछले कई सालों के जो सवाल थे, इस यात्रा में उन सभी का जवाब तलाशने का यह सुनहरा मौका था। क्योंकि, इस यात्रा में पूरे समय न सिर्फ़ रेल मंत्री बल्कि पूरा रेल मंत्रालय के साथ ही रेलवे बोर्ड भी सहयात्री के रूप में साथ ही थे और उन सभी तक पहुँच थी बेहद आसान।
हालाँकि, एक बात का यहाँ जिक्र करना चाहूँगा कि रेलवे में बदलाव की शुरुआत बहुत पहले से ही जब सुरेश प्रभु रेल मंत्री थे, तभी हो चुकी थी। फिर प्रधानमंत्री के विज़न के अनुसार देश में रेलवे के विस्तार और विकास यात्रा को तेजी से बढ़ाया वर्तमान रेल मंत्री पीयूष गोयल ने, जिसे उन्होंने खुद ही स्वीकार किया इस यात्रा में भी। अब तो बस एक पत्रकार के रूप में सभी दावों का ज़मीनी जायज़ा लेना बाकी था, तो जो कुछ जाना एक पत्रकार के रूप में वो आपसे साझा करने जा रहा हूँ।
सबसे पहले बात करते हैं ट्रेन-18 अर्थात “वंदे भारत एक्सप्रेस” के बारे में। यह इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई में मेक इन इंडिया के तहत बनाया गया भारत का पहला सेमी स्पीड ट्रेन प्रोजेक्ट है। इस ट्रेन की ख़ास बातों का जवाब देने के लिए स्वयं इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के जनरल मैनेजर राहुल जैन जी मौजूद थे। जिन्होंने विस्तार से वंदे भारत एक्सप्रेस की ख़ास बातों से परिचय कराया जैसे- क्विक एक्सेलरेशन अर्थात स्टार्ट होते ही तेजी से स्पीड पकड़ लेने की क्षमता। आधुनिक यात्री सुविधाओं से युक्त इस ट्रेन को भारतीय इंजीनियरों ने मात्र 97 करोड़ रुपए की लागत में 18 महीने की अल्प अवधि में वैश्विक मानदंडों के अनुरूप तैयार कर कीर्तिमान रच दिया।
वंदे भारत एक्सप्रेस: 16 कोच, 1128 सीट
12 कोच नॉर्मल चेयर कार (प्रत्येक में सीट संख्या 78)
2 कोच एग्जीक्यूटिव चेयर कार (प्रत्येक में सीट संख्या 52)
2 ड्राइविंग-ट्रेलर कोच (प्रत्येक में सीट संख्या 44)
ड्राइवर केबिन से लेकर पूरी ट्रेन इंटेलिजेंट कूलिंग सिस्टम अर्थात मौसम के हिसाब से ख़ुद ही तापमान सेट होने में सक्षम वातानुकूलित तकनीक से लैस है। हर दूसरा कोच मोटिव मोटर से युक्त है ताकि ट्रेन के एक्सेलरेशन और डीएक्सेलरेशन दोनों को तेजी से बढ़ाया-घटाया जा सके। मतलब ट्रेन पल भर में अपनी औसत ऑपरेशनल गति 160 किलोमीटर की रफ़्तार पकड़ लेगी। अचानक ब्रेक लगाने की ज़रूरत पड़े तो भी इलेक्ट्रो न्यूमैटिक ब्रेक सिस्टम ऐसा है कि ट्रेन 600 मीटर से भी कम दूरी में बिना किसी ख़ास जर्क के रूक जाए। हालाँकि, ट्रेन की टेस्टिंग स्पीड 180 किलोमीटर प्रति घंटा की है फिर भी दिल्ली-वाराणसी रूट पर ट्रैक का नवीनीकरण पूरा न होने और अधिकांश जगहों पर बाड़ न लग पाने के कारण अभी इसे कुछ दूरी तक ट्रैक की क्षमतानुसार 110 तो कुछ जगह 130 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलाया जा रहा है।
सुरक्षा की दृष्टि से यह एहतियात मुझे सही भी लगा क्योंकि आमतौर पर आज भी कुछ लोग आँख मूंदे ही ट्रैक पर निकल लेते हैं। कुछ अपने मवेशी छोड़ देते हैं यूँ ही टहलने के लिए। पहली यात्रा से जब ट्रेन वापसी में वाराणसी से दिल्ली खाली ही आ रही थी तो टूंडला के पास ट्रेन को ऐसे ही किसी मवेशी से टकरा जाने पर रोकना पड़ा। और कुछ मीडिया संस्थानों ने जितना इस विकास यात्रा को कवर नहीं किया था उससे ज़्यादा ये साबित करने में लग गए कि ट्रेन अपनी पहली यात्रा में ही ख़राब हो गई। व्यक्तिगत रूप से ख़ार खाए कुछ तथाकथित पत्रकार बड़ी चालाकी से मवेशी हिट की घटना को छिपा गए। उस समय हम लोग दूसरी स्पेशल ट्रेन से दिल्ली वापस आ रहे थे। जब ये ख़बर ब्रेक हुई कि इसमें कुछ पत्रकार घायल भी हुए हैं तो ख़ुद को हँसने से नहीं रोक पाया।
आपको यहाँ एक बात बता दूँ कि इस ट्रेन में थ्री फेज IGBT बेस्ड प्रोपल्शन सिस्टम है, जिसके लिए फुली सस्पेंडेड थ्री फेज इंडक्शन टाइप ट्रैक्शन मोटर लगाए गए हैं। इस ट्रेन का शुरुआती एक्सेलरेशन 0.8 मीटर/सेकण्ड स्क़्वायर है। यह तुरंत गति पकड़ने में लगने वाले समय को 10-15% तक कम कर देता है। इस ट्रेन के सभी इक्विपमेंट VCC अर्थात व्हीकल कण्ट्रोल कंप्यूटर सिस्टम से संचालित होते हैं। इस ट्रेन के सभी कोचेज के सभी इक्विपमेंट आपस में ईथरनेट से जुड़े हैं। उस दिन अचानक से मवेशी के टकरा जाने से इसी कम्युनिकेशन सिस्टम में कुछ ख़राबी आ गई थी। लग रहा है तकनीक कुछ भारी हो गया! ख़ैर ये जानकारी उनके लिए जो अक्सर कौआ कान ले गया में कान नहीं देखते बल्कि कौए के पीछे दौड़ लगा देते हैं।
कोई भी तकनीक जब अपनी प्रारंभिक अवस्था में होती है तो सावधानी की थोड़ी ज़्यादा आवश्यकता होती है। पर हमारे यहाँ, थोड़ा तो अंध-विरोध और थोड़ी सी लापरवाही के कारण ऐसे कई एक्सीडेंट होते रहते हैं। फिर भी अगर पिछले कई सालों के आकड़ों पर नज़र डालूँ तो मोदी सरकार की तारीफ़ करनी होगी कि इस दौरान ट्रेन दुर्घटनाओं में व्यापक कमी देखी गई। साथ ही ट्रेन की टाइमिंग में भी पिछले कुछ सालों में काफ़ी सुधार आया है। क्योंकि आजकल ऐसी ख़बरें ब्रेकिंग न्यूज़ बनना बंद हो गई हैं, मतलब कुछ ठीक तो हुआ है। जिसकी पुष्टि स्वयं रेल मंत्री के ज़वाब से हो गई।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, “जगह-जगह ऑटोमेटिक टाइम लॉगर लगाने से, सिग्नलिंग और लाइटिंग, ट्रैक के उन्नयन, बैरीगेटिंग, मानवरहित सिग्नलों के ख़त्म करने से ऐसा सम्भव हुआ है।”
अब वापस से वंदे भारत एक्सप्रेस पर आते हैं एक तरफ़ कॉन्टिनिवस विंडो जहाँ इसे बेहतरीन लुक दे रहें हैं वहीं बेहतरीन कलर स्कीम इसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है। इसके साथ ही चाहे वो वाई-फाई इंफोटेनमेंट सिस्टम हो या GPS आधारित यात्री सूचना तंत्र, बायो वैक्यूम इंडियन एंड वेस्टर्न, फिजिकली चैलेंज्ड लोगों के लिए भी सुविधासम्पन्न, ऑटो सेंसर टैप युक्त टॉयलेट हो या डिफ्यूज्ड LED लाइटिंग के साथ अलग से टच बेस्ड पर्सनल रीडिंग लाइट, चार्जिंग की सुविधा, मॉड्यूलर लगेज रैक हो या आधुनिक पैंट्री और फ़ूड सर्विस सिस्टम या स्लाइडिंग डोर और एग्जीक्यूटिव क्लास में रोटेशनल सीट सब मिलकर ट्रेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बना रहे थे।
CCTV का पूरे ट्रेन में इतना बड़ा जाल बिछा है कि आसानी से ऑटोमेटिक दरवाजों के साथ सिग्नल और प्लेटफॉर्म पर भी ड्राइवर केबिन से नज़र रखी जा सकती है। साथ ही ट्रेन को आपात स्थिति में रोकने के लिए एमर्जेन्सी अलार्म के साथ टॉक बैक सुविधा भी है। मतलब अब ट्रेन रोकने के लिए चेन खींचने के बजाय ड्राइवर को बताना होगा कि समस्या क्या है? ज़रूरी लगने पर ट्रेन रोकना ड्राइवर केबिन के हाथ में है।
हमारे संपादक अजीत भारती ने भी इस यात्रा से पहले मुझे अपनी बीजिंग और मास्को यात्रा की कई कहानियाँ सुनाई थी, वहाँ के अत्याधुनिक ट्रेनों की खूबियों के बारें में उन्हीं से जाना। इससे पहले सिर्फ़ फिल्मों में देखा था या कहीं थोड़ा-बहुत पढ़ा। कोई ये भी कह सकता है कि कुछ कुछ मिलती-जुलती सुविधाओं वाली दिल्ली मेट्रो तो पहले से ही चल रही है। एक तरफ़ जहाँ दिल्ली मेट्रो छोटी दूरी के लिए निर्धारित है वहीं लम्बी यात्रा के लिए भारत में इससे पहले ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। और भी बहुत कुछ है जहाँ दिल्ली मेट्रो काफी पीछे छूट जाती है।
वंदे भारत एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं का अपने देश में आनंद उठाना गौरव का क्षण था। वैसे इस ट्रेन की लागत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार के हिसाब से लगभग 200 करोड़ रुपए से ज़्यादा आती। लेकिन अपने ही देश में इस कीमत की आधे से भी कम में ऐसे उम्दा प्रोडक्ट का बनना सुकून देता है। ट्रेन के अंदर तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी और ही देश में हूँ। जानकारी के लिए बता दूँ कि मात्र 18 महीने में इसे ICF चेन्नई में डिजाइन और निर्मित किया गया। इस ट्रेन के निर्माण में लगभग 80% सामानों का निर्माण पूर्णतः स्वदेशी है।
भारत में इस ट्रेन से पहली बार ‘ट्रेन कैप्टेन’ रेल परिवहन तंत्र में शामिल हुए। खाने का स्वाद और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए पिंड बलूची का खाना, साथ ही चाओस की चाय के साथ बढ़िया पौष्टिक और स्वादिष्ट नाश्ता भी आपको शानदार एवं सुखद रेल यात्रा का अनुभव कराएगा। साथ ही वेल ड्रेस्ड डेडिकेटेड क्लीनिंग एंड कैटरिंग स्टाफ आपको बेहद ख़ास महसूस कराएगा।
ट्रेन की सुविधाओं और व्यवस्थाओं से संतुष्ट होने के बाद अब बारी थी रेल मंत्री से मिलने की। एक-एक कर उनसे जो भी सवाल पूछे गए, उन्होंने इत्मीनान से सभी का जवाब दिया, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए भारत के निर्माण के सपने से भी अवगत कराया। पीएम मोदी के नए भारत पर सोचता हूँ तो पिछले कई सालों में जिन चीजों के बारे में हमने सोचा भी नहीं था, उस पर भी कोई व्यक्ति हमारे लिए न सिर्फ़ सोच रहा है बल्कि लगातार पूरी तत्परता से कार्य भी कर रहा है। ये हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
ख़ैर, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बताया, “जल्द ही ऐसे 30 और ट्रेनों के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा। एक ट्रेन तो जल्द ही इस बेड़े में शामिल हो जाएगी। जनता के रिस्पॉन्स से गदगद रेल मंत्री ने ये आश्वासन भी दिया कि जल्द ही इस सीरीज के 100 और ट्रेनों के लिए भी मंजूरी देने की योजना है। साथ ही ट्रेन-18 सीरीज में स्लीपर कोच भी बनाने का प्रावधान है, जो आने वाले समय में शताब्दी ट्रेनों को रिप्लेस करेंगी।”
रेल मंत्री ने ये भी बताया कि ‘साथ ही ट्रेन-20 पर भी काम चल रहा है और भारत में हमारे प्रधानमंत्री जल्द ही पहली बुलेट ट्रेन चलाने की परियोजना पर भी पूरा जोर दे रहे हैं, जिसके लिए युद्ध स्तर पर कार्य प्रगति पर है।’
साथ ही उन्होंने अपने रेल मंत्री के रूप में कुछ कार्यों से भी परिचय कराया। जैसे बिना किराया बढ़ाए सातवाँ वेतन आयोग का सारा ख़र्च रेलवे के अपने संसाधनों से पूरा करना। लगभग सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगवाना, स्टेशनों के विकास के साथ ही प्रतिदिन दोगुनी तेजी से रेलवे ट्रैक का निर्माण, स्टेशनों के साथ आम ट्रेनों में भी साफ-सफ़ाई का विशेष ध्यान, गंदे फिनायल की जगह अलग-अलग खुशबुओं में क्लीनर का इस्तेमाल, ट्रेनों की टाइमिंग में ऑटोमेटिक टाइम लॉगर से ट्रेन की टाइमिंग का रिकॉर्ड रख ट्रेन के संचालन में सुधार।
साथ ही रेल मंत्री ने इस बात का आश्वासन भी दिया कि कई वर्षों से प्रधानमंत्री देश को करप्शन मुक्त करने के लिए कृत संकल्पित हैं। इसी कड़ी में अब हम ट्रेनों के चार्ट सिस्टम को जल्द ही ऑनलाइन करने जा रहे हैं, जिससे यात्री को भी ट्रेन में यात्रा करते समय पता हो कि ट्रेन में कौन सी सीट खाली है, जिसे वो IRCTC की साइट पर जाकर ख़ुद ख़रीद सके। अब टीटी से लेकर सभी अधिकृत ट्रेन वेंडरों को नेम प्लेट के साथ POS मशीन रखना अनिवार्य किया जाएगा ताकि तुरंत हुए भुगतान की, वो यात्री को रसीद दे सकें। अगर रसीद नहीं देता है तो उस सुविधा को फ्री समझा जाए। जल्द ही इन सुविधाओं की जानकारी रेलवे अपनी एक अलग वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा।
रेल मंत्री ने जो भी कहा चाहे वो ट्रेन की सुविधाओं के बारे में हो या जो कार्य हो चुका है उसके बारे में मुझे जैसे ही मौका मिला मैंने रास्ते के चारों स्टेशनों पर उसकी पुष्टि की तो दावा खोखला नहीं था। बल्कि थोड़ी और जानकारी के लिए मैंने इन स्टेशनों के अन्य स्थानीय लोगों से भी बात की तो सभी एक सुर में सहमति व्यक्त करते नज़र आए। इस पूरी यात्रा में मैंने रेल परिवहन तंत्र में व्यापक बदलाव के प्रधानमंत्री के सपनों को हक़ीक़त में बदलते हुए देखा, जिस बदलाव की पहल जारी है, उसकी ज़मीनी हक़ीक़त से वन्दे भारत एक्सप्रेस की इस पूरी यात्रा में, मैं ख़ुद गवाह हूँ।
फिर भी अभी कई जगहों पर सुधार की और आवश्यकता है जैसे अगर अभी आगे की एक ट्रेन में प्रॉब्लम आती है तो उसका ख़ामियाजा पीछे के कई ट्रेनों को भुगतना पड़ता है। इसकी वैकल्पिक व्यवस्था? जिस पर रेल मंत्री ने कहा कि तेजी से नए ट्रैक बिछाने का कार्य प्रगति पर है, जल्द ही इस समस्या का समाधान भी हो जाएगा। फिर, हम ट्रेनों को निर्धारित समय पर चलाने में सक्षम होंगे।
क्या देश का सबसे ग़रीब तबका भी कभी AC ट्रेनों में सफर कर पाएगा? इस पर रेल मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री का सपना है भारत की सभी ट्रेनें पूरी तरह से वातानुकूलित हों। मेक इन इंडिया के तहत ये सभी परियोजनाओं पर देश के मुखिया की नज़र है। तो उम्मीद की जा सकती है क्योंकि देश उनकी कथनी और करनी से वाकिफ़ है, किसी भी तरह के कठोर से कठोर निर्णय लेने से भी कभी उनको पीछे हटते नहीं देखा।
चलते-चलते इस देश का युवा क्या चाहता है? ये बात भी मैंने रेल मंत्री के जरिए प्रधानमंत्री तक पहुँचाने की कोशिश की। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इसका भी जवाब दिया कि प्रधानमंत्री रोजगार के नित नए साधनों के विस्तार के लिए हर सम्भव प्रोजेक्ट में ये क्लॉज ज़रूर जुड़वाते हैं कि इसका तकनीक भी देना होगा, साथ ही इसका निर्माण भारत में हो ताकि हमारे देश के युवाओं को रोज़गार मिल सके।
बेशक सही आँकड़ों की उपलब्धता न होने से हमें ये भ्रम हो कि भारत में रोजगार का सृजन नहीं हुआ, पर जिस तरह से इंफ़्रास्ट्रक्चर से लेकर इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग सुधरी है, ज्ञात हो कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस दिशा में बेहतर प्रदर्शन करते हुए चार सालों में भारत को 57 रैंक ऊपर पहुँचाया है। जब कार्यकाल शुरू किया था, 2014 में भारत 134वें रैंक पर था, जबकि 2018 में 190 देशों में 77वें रैंक पर है। यह वास्तव में भारत के लिए आने वाले समय में और तेज़ विकास का संकेतक भी है।
पुलवामा हमले में 44 जवानों के बलिदान का बदला लेना सेना ने शुरू कर दिया है। पुलवामा हमले के बाद देश की आम जनता में जो गुस्सा है वही गुस्सा देश के सुरक्षाबलों में भी है। सोमवार (फ़रवरी 18,2019) को ही जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर गाजी राशिद उर्फ़ कामरान को ढेर कर दिया गया। और अब घाटी मे जैश के बिखरे हुए 60 एक्टिव आतंकियों का ख़ात्मा करने की बारी है।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद ने अपने आतंकियों का जाल बिछाया हुआ है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस समय पूरी घाटी में मौजूद 60 आतंकी अलग-अलग जिलों में फैले हुए हैं। इनमें से 35 आतंकी पाकिस्तानी हैं, जो कि घाटी में तबाही मचाने को पूरी तरह से तैयार हैं।
यह भी कहा जा रहा है कि घाटी में आतंकी लगातार अपनी लोकेशन बदल रहे हैं। इतना ही नहीं सरहद के पार पाकिस्तान की सेना भी इन आतंकियों को भारतीय सेना के कोप से बचाने में जुट गई है। बॉर्डर पर पाकिस्तानी सेना भी अलर्ट पर है, पाकिस्तानी सेना ने उस पार स्थित आतंकी ठिकानों और आतंकियों को भी लॉन्च पैड से शिफ्ट करना शुरू कर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आज ही सीआरपीएफ के डीजी आर.आर. भटनागर गृह मंत्रालय में गृह सचिव को पुलवामा हमले की पूरी जानकारी देंगे। इसके अलावा सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत भी आज रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात करेंगे और जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात पर रिपोर्ट देंगे।
ज्ञात हो कि 14 दिसंबर को भारत ने अपने 44 जवानों को एक आत्मघाती आतंकी हमले में खोया था, जिसके बाद से ही सुरक्षाबलों ने घाटी में आतंकियों के ख़ात्मे के लिए ऑपरेशन तेज कर दिया है। आज सोमवार को पुलवामा में एक मुठभेड़ में सेना ने जैश ए मोहम्मद के गाजी समेत दो आतंकियों को ढेर कर दिया। इस एनकाउंटर में 4 जवान भी बलिदान हो गए हैं।
‘मी टू (Me Too)’ के अंतर्गत यौन शोषण के आरोपों में फँसे विनोद दुआ की बेटी मल्लिका दुआ ने फिर से बेहूदा और विवादित बयान दिया है। मल्लिका दुआ ने पुलवामा हमले में वीरगति को प्राप्त सीआरपीएफ के जवानों का अपमान करते हुए कहा कि लोग रोज़ मरते हैं। अपने-आप को स्टैंडअप कॉमेडियन के तौर पर पेश करने वाली मल्लिका दुआ अक़्सर विवादित बयानों और उलूल-जलूल हरकतों के कारण सुर्ख़ियों में छाई रहती हैं। इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए गए वीडियो में मल्लिका दुआ ने बेशर्मीपूर्वक कहा:
“ये बातें सिर्फ मुझसे नहीं कही जा रही हैं। इस बारे में लोग प्रोटेस्ट करते नजर आ रहे हैं। मैं यहाँ पूछना चाहती हूँ कि हर रोज़ लोग भुखमरी, बेराजगारी, डिप्रेशन जैसी कई वजहों से मरते हैं। ऐसा सिर्फ हमारे देश में नहीं होता, पूरी दुनिया में लोग मरते हैं। तब क्या आप अपनी ज़िंदगी रोक देते हैं? क्या सिर्फ़ शोक मनाना ही हमारा काम है? ऐसे में तो हर रोज हमें शोक मनाने की जरूरत है। ये क्या नॉनसेंस बातें लगा रखी हैं। सब पूरी बकवास है।”
मल्लिका दुआ यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने भारतीय जवानों के बलिदान पर गुस्साए लोगों को धमकी देते हुए कहा:
“जो लोग फेसबुक पर ये लिख रहे हैं कि जंग छेड़ेंगे हम, उनकी औकात ही क्या है। तुम तो फोन करके एक पिज्जा नहीं ऑर्डर कर सकते हो तुम क्या जंग करोगे। हर मुस्लिम को ये कहना बंद करो कि वो पाकिस्तान जाए, अगर यही सोच है तो मुस्लिम तो दुनिया के अलग-अलग देशों में भी हैं।”
Mallika Dua ( yes, yes, defender & daughter of alleged molester Vinod Dua ) says so many people die daily due to hunger, depression etc etc.
मल्लिका दुआ के इस बयान पर सोशल मीडिया में उन्हें लोगों ने जमकर लताड़ा। एक ट्विटर यूजर ने कहा कि वह मल्लिका दुआ के बयानों से बिलकुल सहमत हैं। उन्होंने मल्लिका को याद दिलाया कि कैसे उन्होंने ‘मी टू’ को लेकर अच्छा-ख़ासा हंगामा मचाया था लेकिन जब उनके पिता विनोद दुआ पर यौन शोषण के आरोप लगे, तब वो ख़ामोश हो गई थीं। यूजर ने कहा, “सही बात है, लोग असली ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर सकते। मल्लिका ने भी कुछ नहीं किया था जब उनके पिता यौन शोषण के आरोपों में घिरे थे।“
I agree with @MallikaDua that one can only show anger through keyboard and can’t do anything in real. Like she did show a lot of anger for #MeToo accused only till her father also got accused, then she couldn’t do anything in real. ?
एक यूजर ने मल्लिका दुआ को यही सलाह आतंकियों को देने को कहा।
मल्लिका दुआ ने हर आतंकवादी के घरवालों को यही उपदेश देना चाहिए. यह भी बताना चाहिए कि जनाजे के साथ भीड़ भी बेकार है. लोग तो रोज ही मरते हैं! https://t.co/sFowpDtCoz
— Major Ramesh Upadhyay (Retired) (@MajorUpadhyay) February 18, 2019
एक अन्य यूजर ने मल्लिका दुआ के बयान को उनके पिता पर लगे यौन शोषण के आरोपों से जोड़ते हुए उन्हें आइना दिखाया। ज्ञात हो कि विनोद दुआ पर लगे आरोपों पर मल्लिका दुआ ने कहा था कि वह अपने पिता के साथ खड़ी हैं।
Mallika Dua, I can understand you are suffering from acute depression.The words uttered by you signify extreme mental retardness.Get yourself checked…You might become chronic and then finally Mental Asylum
ट्विटर पर एक यूजर ने मल्लिका दुआ को किसी अच्छे अस्पताल में दिखाने की सलाह देते हुए कहा कि वह दिन पर दिन मानसिक रूप से विक्षिप्त होती जा रही हैं। मल्लिका दुआ ने एक कॉमेडी शो के दौरान अक्षय कुमार द्वारा मज़ाक में कही गई बात पर हंगामा खड़ा कर दिया था। उस दौरान उनके पिता विनोद दुआ भी अक्षय पर हमलावर हो उठे थे।
पुलवामा में गुरुवार को आत्मघाती हमले में महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के दो जवान संजय राजपूत और नितिन राठौर हमेशा के लिए अपने घर, परिवार, शहर, जिले सबको अलविदा कह गए।
संजय राजपूत का परिवार जिले के मलकापुर के लखानी प्लॉट में रहता है। 20 साल की सेवा पूरी करने के बाद भी उन्होंने देश के लिए अपनी सेवा को पाँच वर्ष के लिए आगे बढ़वाया था। उन्हें क्या मालूम था उनका यह फ़ैसला उन्हें हमेशा के लिए परिवार से दूर कर देगा।
संजय के दो बच्चे हैं, जिनकी उम्र 13 और 10 साल है। उनके परिवार में चार भाई और एक बहन हैं। जिसमें से एक भाई को पहले ही परिवार एक्सिडेंट में खो चुका है।
इस हमले के कुछ देर पहले ही संजय ने अपने बड़े भाई राजेश से फोन पर बात की थी। राजेश ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उन्हें नहीं मालूम था कि यह उनकी भाई से आखिरी बातचीत है।
राजेश ने बताया कि संजय श्रीनगर में 115 वीं बटालियन के साथ अपनी नई पोस्टिंग के लिए 11 फरवरी को नागपुर से कश्मीर गए थे। राजेश ने संजय को गुरुवार को सुबह करीब 9.30 बजे फोन किया, तब संजय ने उन्हें बताया कि वह अपनी नई पोस्टिंग में शामिल होने के लिए सुबह 3.30 बजे जम्मू से रवाना हुए हैं।
देश के नाम हुए बलिदान नितिन और संजय के लिए प्रभादेवी सिद्धीविनायक मंदिर ट्रस्ट ने परिवार को 51 लाख रुपए की सहायता राशि देने का ऐलान किया है। इसके अलावा मंदिर ट्रस्ट की तरह पुणे के मेरी टैक्निकल इंस्टिटयूट ने भी परिवारों को 25 लाख रुपए देने का ऐलान किया।
महाराष्ट्र सरकार ने भी वीर जवानों के परिवार को 50 लाख रुपए देने की घोषणा की है। साथ ही सरकार परिवार के पुनर्वास की जिम्मेदारी भी उठाएगी।
भारत की सबसे तेज़ रफ़्तार ट्रेन ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ एक नया इतिहास रचने की दिशा में अग्रसर है। दुर्भाग्य इस बात का है कि जिस ट्रेन को लेकर पूरी केंद्र सरकार उम्मीद लगाए बैठी है, उसी को लेकर कुछ लोग अफ़वाहें फैला रहे हैं। बेवजह ही इस ट्रेन को टारगेट करके ख़ामियों का जामा पहनाने की कोशिश की जा रही है।
नामी हिन्दी अख़बार नवभारत टाइम्स भी अफ़वाह फैलाने से अछूता नहीं रहा। अख़बार ने 18 फरवरी को अपने पाठकों के समक्ष दो अलग-अलग एडिशन में अलग-अलग ख़बर परोसी। नवभारत टाइम्स ने गाज़ियाबाद के एडिशन में पेज-16 यानी आख़िरी पन्ने पर ‘वंदे भारत को रास्ते भर लगे झटके’ हेडिंग के नीचे एक ख़बर लिखी – ‘ट्रेन से कटकर युवक ने दी जान।’ ख़बर के मुताबिक एक शख़्स ने तब ख़ुदकुशी कर ली जब ट्रेन वाराणसी से दिल्ली आ रही थी।
वहीं दूसरी तरफ नवभारत टाइम्स अपने दिल्ली एडिशन के उसी पेज-16 पर उसी हेडिंग के नीचे इसी ख़बर को लिखता है – सही फैक्ट के साथ। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि इस ख़बर में एक लाइन और दिखती है और वो ये कि ख़ुदकुशी का यह हादसा पिछले महीने ट्रायल के दौरान हुआ था।
ये बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि इन ख़बरों को पढ़ने वाला पाठक दोनों एडिशन को पढ़े। क्योंकि दोनों क्षेत्र अलग-अलग हैं। दिल्ली वाले दिल्ली एडिशन पढ़ेंगे और गाज़ियाबाद वाले गाज़ियाबाद एडिशन। लेकिन इस ख़बर को पढ़ने वालों पर इसका असर अलग-अलग तरीके से होगा। गाज़ियाबाद वाले पाठक इस हादसे को बीते कल (17 फरवरी) का समझेंगे, जो ग़लत संदेश के रूप में अपना प्रभाव छोड़ जाएगा।
सोशल मीडिया के ज़माने में मीडिया कुछ भी बोल-लिख-दिखा दे और ग़लतफ़हमी पैदा कर दे यह अब संभव नहीं। कुछ ऐसे भी पाठक होते हैं जो ख़बरों को गंभीरता से पढ़ते हैं और उटपटांग लगने पर अपनी प्रतिक्रिया भी दर्ज करते हैं। ऐसे ही एक ट्विटर यूज़र अनुज गुप्ता की नज़र नवभारत टाइम्स की इन दोनों ख़बरों पर अटक गई और उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया ट्वीट के माध्यम से दर्ज कर दी।
Two editions of Navbharat times – One published a month old news as today’s news to show delay in Vande Bharat express. A new low in journalism. pic.twitter.com/taJzvbLPz1
अब यह तो किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं कि इतने बड़े मीडिया हाउस से भूल हो। और अगर मान भी लिया जाए कि यह भूल ही है, तो भी इसकी माफ़ी हो ही नहीं सकती। क्योंकि इसकी ठोस वजह यह है कि यह कोई छोटा-मोटा अख़बार नहीं है बल्कि इसकी पहुँच देश-दुनिया भर में है।
इस अख़बार को पढ़ने वालों की सँख्या लाखों में है। इन बड़े मीडिया हाउस पर लोग भरोसा करते हैं, अख़बार में इनके द्वारा परोसी गई विषय सामग्री पर पाठक आँख मूंदकर भरोसा करते हैं। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि नवभारत टाइम्स जैसे नामी अख़बार की यह ग़लती किसी अपराध से कम नहीं और यह कृत्य उसके पाठकों के साथ एक धोखा भी है।
पुलवामा में गुरुवार को आत्मघाती हमले में महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के नितिन राठौर हमेशा के लिए अपने घर, परिवार को अलविदा कह गए। अपने घर के अकेले कमाने वाले नितिन राठौर बुलढाणा जिले के लोणार तालुका चोरपांगरा गाँव के रहने वाले थे। घर में नितिन की पत्नी वंदना, बेटा जीवन, बेटी जीविका माँ सावित्री बाई, पिता शिवाजी, भाई प्रवीण समेत दो बहनें हैं।
मात्र 23 की उम्र में साल 2006 में नितिन सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। राठौर के छोटे भाई प्रवीण ने बताया कि आधी रात में इस ख़बर के मिलने के बाद से ही उनका पूरा परिवार बिखर गया है। प्रवीण ने बताया कि वो अपने माता-पिता के साथ खेती में मदद करता है। खेती के अलावा उन्हें सिर्फ़ नितिन का ही सहारा था जो अब नहीं रहा।
नितिन की पत्नी वंदना ने बताया कि एक हफ्ते पहले ही वो सब साथ में भोजन कर रहे थे और खूब खुश थे। इस खबर को मिलने के बाद हिम्मत दिखाते हुए वीर की पत्नी ने कहा कि वो अपने बेटे को भी सेना को समर्पित करेंगी क्योंकि यह उनके पति (नितिन) का सपना था।
नितिन की मौत की ख़बर सुनने के बाद गाँव के लोगों ने अपने घरों में खाना नहीं बनाया। लोगों में एक तरफ जहाँ गुस्सा था, वहीं सरकार को पाकिस्तान के ख़िलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की माँगें भी शामिल थी।
नितिन के बचपन के दोस्त राजू राठौर ने नितिन को याद को याद करते हुए बताया कि वह काफ़ी मेहनती था। राजू ने नितिन के साथ स्नातक तक पढ़ाई की थी। सिर्फ 13 साल की उम्र से ही वो सेना में शामिल होना चाहते थे। इतना ही नहीं नितिन को कॉलेज में कई दफा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी घोषित किया जा चुका था।
देश के नाम बलिदान हुए नितिन के लिए प्रभादेवी सिद्धीविनायक मंदिर ट्रस्ट ने परिवार को 51 लाख रुपए देने का ऐलान किया है। इसके अलावा मंदिर के ट्रस्ट की तरह पुणे के मेरी टैक्निकल इंस्टिटयूट ने भी परिवार को 25 लाख रुपए देने का ऐलान किया।
महाराष्ट्र सरकार ने भी परिवार को 50 लाख रुपए देने की घोषणा की है। साथ ही सरकार परिवार के पुनर्वास की जिम्मेदारी भी उठाएगी।
नितिन के इस तरह से चले जाने के बाद इंटरनेट पर कुछ दिनों पहले बनाई गई उनकी एक वीडियो खूब शेयर हुई। इस वीडियो में वो काफ़ी भावुक होते नज़र आ रहे हैं। लोगों ने अलग-अलग गानों के साथ इसे शेयर किया है।
पुलवामा में आतंकियों के कायरतापूर्ण हमले में पंजाब के 4 जवान वीरगति को प्राप्त हुए जिसमे से एक नाम कुलविंदर सिंह का भी है। रूपनगर ज़िला स्थित नूरपुर बेदी क्षेत्र के राउली गाँव निवासी कुलविंदर के वीरगति को प्राप्त हो जाने की ख़बर सुनते ही उनके पिता सन्न रह गए। पेशे से ट्रक ड्राइवर दर्शन सिंह यह मानाने को तैयार ही नहीं थे कि उन्होंने अपने जवान बेटे को सदा के लिए खो दिया है। बूढ़े दर्शन सिंह ने हमले वाले दिन से ही अपने बेटे की वर्दी पहन रखी थी। उनके इस जोश को देख कर अन्य लोग भी अभिभूत थे।
Met the family of Shaheed Kulwinder Singh in Ropar. Have announced a ₹10K monthly pension for the bereaved parents. Village school & main road will be named after the martyr as well. I stand by the families of the bravehearts who made the supreme sacrifice in #Pulwama. pic.twitter.com/0a43q4vxhr
मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने रोपड़ जाकर कुलविंदर के परिजनों से मुलाक़ात की। कुलविंदर के वीरगति को प्राप्त होने के बाद अब उनके माता-पिता अकेले रह गए हैं। कुलविंदर उनके इकलौती संतान थे। सीएम ने शोक-संतप्त माता-पिता के लिए ₹12 लाख की अनुग्रह राशि के अलावा आजीवन प्रतिमाह ₹10,000 के पेंशन की घोषणा की। साथ ही, सीएम ने स्थानीय विद्यालय का नाम कुलविंदर के नाम पर रखने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि कुलविंदर के गाँव से आनंदपुर साहिब जाने वाली सड़क का नामकरण भी उन्ही की याद में किया जाएगा।
बेटे की वर्दी पहले कुलविंदर के वृद्ध पिता ने तिरंगे के साथ-साथ अपने बेटे की तस्वीर भी सीने से चिपका रखी थी। नम आँखों के साथ चिता को मुखाग्नि देने के बाद उन्होंने पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई करने की भी माँग की। कुलविंदर की मंगेतर भी अपने ससुराल आई और भारत माता के वीर सपूत की अंतिम यात्रा में शामिल हुई। उन्होंने वीरगति को प्राप्त अपने मंगेतर के पार्थिव शरीर को सैल्यूट ठोक शत्-शत् नमन किया।
कुलविंदर की मंगनी गाँव लोदीपुर वासी अमनदीप कौर से लगभग ढाई साल पहले हुई थी। आठ नवंबर को शादी होनी तय थी। कुलविंदर के पार्थिव शरीर को देख अमनदीप कौर कई बार बेहोश हुईं। दो लोगों ने सहारा देकर उसे गुरुद्वारा साहिब से घर तक पहुँचाया। अंतिम संस्कार के बाद अमनदीप कौर ससुराल पहुँची तो अपने होने वाले ससुर दर्शन सिंह के गले लग कर काफी देर तक रोती रहीं।
नूरपुर बेदी Ropar (Pb)में आतंकवाद के खिलाफ उतरे सैकड़ो लोग लोग शहीद कुलविंदर सिंह अमर रहे के नारे गूंजे … pic.twitter.com/bpXNyJsDk0
क़रीब दो किलोमीटर लंबी अंतिम यात्रा में हज़ारों लोग शामिल हुए। स्थानीय विधायक अमरजीत सिंह संदोआ ने भी उन्हें कन्धा दिया। कुलविंदर के गाँव के 14 जवान भारतीय सेना में सेवारत हैं, वहीं रिटायर्ड सैनिकों ने 40 शहीदों के ख़ून का बदला लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कश्मीर में आर्मी को खुली छूट देने की अपील की है। दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, कुलविंदर के पिता दर्शन सिंह ने कहा:
“अब सरकारों को कुछ सोचना चाहिए। हमारे जैसे परिवारों का आख़िरकार क्या बनेगा। फौजी भर्ती तो कर लिए जाते है, बंदूक भी थमा दी जाती है। लेकिन गोली चलाने वाले हाथ बांध दिए जाते हैं, जबकि उन पर डंडे बरसाने वालों का कुछ नहीं किया जाता। खैर अब से तिरंगा ही मेरा कुलविंदर है तथा आज से पहले में शायद ड्राइवर कहलाता था। अब मुझे इस बात का फ़ख़्र होगा कि मैं शहीद का पिता हूँ।”
क्रिकेट और फुटबॉल के शौक़ीन कुलविंदर धार्मिक भी थे और जब भी गाँव आते थे तो गुरुद्वारा साहिब में सुबह-शाम पाठ किया करते थे। पंजाब पुलिस से भी उन्हें नौकरी का ऑफर आया था, लेकिन उन्होंने सीआरपीएफ को प्राथमिकता दी। उनके बलिदान पर पूरे पंजाब को गर्व है लेकिन साथ ही पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की माँग भी की जा रही है।
पुलवामा आतंकी हमले में मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित खुड़ावाल के अश्वनी कुमार काछी भी वीरगति को प्राप्त गए। सेना की गाड़ी से शहीद अश्विनी के पार्थिव शरीर को उनके पैतृक गाँव लाया गया, जहाँ पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। उनके अंतिम संस्कार के दौरान मुख्यमंत्री कमलनाथ भी उपस्थित रहे। अंतिम यात्रा में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शहीद की अर्थी को कन्धा दिया। अश्विनी के अंतिम दर्शन के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। राज्य सरकार के कई मंत्री भी इस दौरान वहाँ उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने अश्वनी के परिजनों से मुलाक़ात कर उन्हें सांत्वना दी।
अमर शहीद अश्विनी को कंधा देते वक़्त मन भाव से भर गया। आप जैसे वीरों की वजह से ही भारत माता पूरी तरह सुरक्षित है।
दिल से एक संकल्प उठा, “अश्विनी, आप का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। इन आतंकियों किसी भी क़ीमत पर छोड़ा नहीं जाएगा।” pic.twitter.com/OYWfCRTr9o
अश्वनी कुमार काछी परिवार के सबसे छोटे बेटे थे। चार भाइयों में सबसे छोटे अश्वनी की पहली पोस्टिंग साल 2017 में श्रीनगर में हुई थी। उनके बुज़ुर्ग पिता ने कहा कि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु पर गर्व है लेकिन यक़ीन नहीं होता कि वो अब इस दुनिया में नहीं है। उन्होंने सरकार से ‘ख़ून के बदले ख़ून’ की माँग की। अश्वनी की माँ ने भी सरकार से बदला लेने की माँग की। उनके बड़े भाई भी अश्वनी की याद में ग़मगीन हैं, लेकिन साथ ही उन्हें अपने भाई के बलिदान पर फ़ख़्र भी है।
अश्वनी कुमार घर के एकमात्र कमाऊ पूत थे। उनके पिता ने मज़दूरी कर बेटों को पढ़ाया- लिखाया। कॉलेज के समय से ही एनसीसी में रहे अश्वनी काफ़ी पहले से ही सीआरपीएफ में भर्ती होना चाहते थे। इसी वर्ष उनकी शादी भी तय होने वाली थी। साल के आख़िर में वह लम्बी छुट्टी लेकर घर आने वाले थे। अश्वनी की माँ अपने पाँचों बच्चों के भरण-पोषण के लिए बीड़ी बनाने का कार्य किया करती थी। जब अश्विनी की नौकरी लगी, तब उन्होंने अपनी माँ से बीड़ी बनाने वाला कार्य छुड़वा दिया था।
मुख्यमंत्री कमल नाथ ने शहीद के परिजनों को ₹1 करोड़, एक आवास और परिवार के सदस्य को शासकीय नौकरी देने की घोषणा की है। परिवार वालों के अनुसार अश्वनी अक़्सर कहा करते थे कि वो तिरंगे में लिपट कर आना चाहते हैं। स्वर्गीय अश्वनी चार भाई व एक बहन हैं। उनके पिता ने कहा कि उनकी कामना है की गाँव का हर युवा सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करें।
वीरगति को प्राप्त अश्वनी का पार्थिव शरीर हवाईमार्ग से प्रयागराज तक लाया गया और वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा उसके पैतृक ग्राम खुड़ावल तक लाया गया। उनके कोच खड़ग सिंह पटेल ने कहा कि मेरे शिष्य ने देश के लिए जान दी है, मैं उसे सलाम करता हूँ। इस बीच गर्व से भरे बुजुर्ग माता-पिता ने वीर सपूत अश्वनी के सिर पर तिलक लगाकर माला पहनाई। उनके बड़े भाई ने शहीद को मुखाग्नि दी।
पुलवामा आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए CRPF जवानों में एक नाम बिहार की राजधानी पटना स्थित मसौढ़ी के रहने वाले संजय कुमार सिन्हा का भी है। आतंकियों की इस कायरतापूर्ण कार्रवाई में बिहार के दो बहादुरों ने मातृभूमि की बलि-बेदी पर अपनी जान न्योछावर कर दी। संजय कुमार सिन्हा का पार्थिव शरीर शनिवार (फरवरी 16, 2019) दोपहर पटना एयरपोर्ट से मसौढ़ी पहुँचा, जहाँ उनके अंतिम दर्शन के लिए भरी मात्रा में लोग मौजूद रहे। फतुहा में मोक्षदायिनी गंगा तट पर स्थित त्रिवेणी घात पर उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी इस दौरान वहाँ उपस्थित थे।
माँ राजमणि देवी, पिता महेंद्र सिंह, पत्नी बेबी देवी, पुत्री रूबी कुमारी, टुन्नी कुमारी व पुत्र ओमप्रकाश समेत अन्य परिजनों ने शहीद संजय के अंतिम दर्शन किए। केंद्रीय मंत्रियों रविशंकर प्रसाद और रामकृपाल यादव ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की। बीते आठ फ़रवरी को ही जवान संजय छुट्टी बिताकर ड्यूटी के लिये वापस आए थे। उन्हें अपनी बड़ी बेटी रूबी की शादी की फ़िक्र सता रही थी। वापस ड्यूटी पर जाते वक़्त उन्होंने घरवालों से दोबारा आने का वादा किया था। जब उनकी मृत्यु का समाचार आया, तब उनकी पत्नी बबीता भोजन कर रही थी। यह दुःखद सूचना मिलते ही थाली उनके हाथों से गिर पड़ी और वह दहाड़ मार कर रोने लगी।
पटना स्थित जय प्रकाश नारायण हवाई अड्डा पर पुलवामा आतंकवादी हमले में शहीद हुए बिहार निवासी सी0आर0पी0एफ0 के हवलदार संजय कुमार सिन्हा जी एवं शहीद सिपाही रतन कुमार ठाकुर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए।https://t.co/Nx8E9uIVulpic.twitter.com/uxgO4dmPvl
संजय ने कहा था कि वह घर लौटते ही बेटी के लिए लड़का देखने जाएँगे। घरवाले भी उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन जब उनके वीरगति को प्राप्त होने की सूचना मिली, पूरा परिवार ही स्तब्ध रह गया और गाँव में मातम पसर गया। संजय की इच्छा थी कि उनका बेटा एक अच्छा डॉक्टर बने। बेटा सोनू मेडिकल की तैयारी भी कर रहा है। उनकी दोनों बेटियाँ स्नातक हैं। गाँववालों में आतंकियों के इस हरक़त पर भारी आक्रोश है। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार को दोबारा सर्जिकल स्ट्राइक कर के आतंकियों का सफ़ाया करना चाहिए।
जब संजय की अंतिम यात्रा शुरू हुई तब पटना एयरपोर्ट से निकले सेना के वाहन के क़ाफ़िले पर सड़क के दोनों ओर खड़े होकर लोगों ने फूल बरसाये. लोगों ने शहीद संजय अमर रहे, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाये। तिरंगा लिये लोगों ने उनके क़ाफ़िले पर जगह-जगह पुष्पों की वर्षा की और हाथ जोड़ कर श्रद्धांजलि दी। इस से पहले मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने पटना में बिहार के दोनों वीरगति को प्राप्त जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ सलामी देने के लिए सीआरपीएफ, एसएसबी और बिहार पुलिस के जवान उपस्थित थे। बिहार सरकार व सुरक्षा बलों के कई अधिकारियों ने नम आँखों के साथ शहीद के अंतिम दर्शन किए।
उधर एक अन्य ख़बर के मुताबिक़, संजय की पत्नी को अब तक मुआवज़े वाला चेक नहीं दिया जा सका है। उनके नाम में तकनीकी त्रुटि हो जाने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। डीएम रवि कुमार ने कहा कि उनके परिजनों से शपथपत्र माँगा गया है, जिसके मिलते ही उन्हें मुआवज़े का चेक सौंप दिया जाएगा। सरकारी घोषणानुसार हुतात्मा संजय की पत्नी को कुल ₹36 लाख का चेक दिया जायेगा। इनमें से ₹11 लाख बतौर मुआवज़ा व ₹25 लाख शहीद की बेटियों की शादी और संतानों की पढ़ाई के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से दिए जाएँगे।
बेबटेक इंटरनेशनल लिमिटेड कंपनी (आइटी), कोलकाता के प्रबंधक सौरभ कश्यप भी शहीद के घर पहुँचे व परिजनों को ढांढ़स बँधाया। उन्होंने संजय की बड़ी पुत्री रूबी को ₹1 लाख का चेक दिया। उनके बेटे ओम प्रकाश की मेडिकल की पढ़ाई में मदद करने का आश्वासन देते हुए सौरभ ने तीनो भाई-बहनों को अपनी कम्पनी में नौकरी देने की भी पेशकश की। वे मोहल्ले के युवकों को दौड़ने के लिए प्रेरित करते थे ताकि वे सेना अथवा अर्द्धसैनिक बल में शामिल हो सकें। पड़ोसी बताते हैं कि छुट्टी में आते थे तो सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। ग्रामीणों ने उनकी आदमकद प्रतिमा की भी माँग की है।
पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए माँ भारती के अमर सपूत तथा मेरे संसदीय क्षेत्र के मसौढ़ी निवासी अमर शहीद संजय कुमार सिन्हा जी के परिजनों से मिलकर शोक की इस कठिन घड़ी में अपनी संवेदना व्यक्त किया।
स्वर्गीय संजय के दोस्तों के अनुसार, वह सिर्फ़ एक अच्छे जवान ही नहीं बल्कि एक अच्छे विचार वाले व्यक्ति भी थे। जब भी गाँव आते तो दोस्तों से ज़रूर मिलते थे। जिस वक़्त संजय के शहीद होने की सूचना मिली, उनकी माँ घर पर नहीं थी। सूचना मिलते ही जब वो घर पहुँची तो माहौल मातम में बदल गया। संजय के पिता को इस बात का मलाल है कि वह बेटी की शादी पूरी नहीं कर सके। उनका वादा अधूरा रह गया। संजय के पिता ने सरकार से इस हमले का बदला लेने की भी अपील की।