Wednesday, October 2, 2024
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गणित की ‘हेराफेरी’ है राफ़ेल सौदे में दाम बढ़ने की रिपोर्ट: जेटली

अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ में फाइटर प्लेन राफ़ेल से संबंधित छपे एक लेख को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बकवास बताया। जेटली ने कहा कि राफ़ेल पर ‘द हिन्दू‘ का लेख अंकगणित की हेराफेरी पर आधारित है। उन्होंने कहा कि जो सौदा 2007 में हुआ ही नहीं, उसकी कीमत को दरकिनार कीजिए। उन्होंने राफ़ेल सौदे में घोटाला खोजने वालों को एक तरह का चैलेंज देते हुए कहा कि 2016 के दामों से इसकी तुलना कीजिए और तब घोटाला खोजकर दिखाइए।

‘द हिन्दू’ की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वायुसेना द्वारा 126 विमानों की माँग की जगह सिर्फ 36 विमान खरीदने के फैसले के कारण हर एक फाइटर जेट की कीमत में 41.42 प्रतिशत की वृद्धि हो गई। वित्त मंत्री जेटली ने इस रिपोर्ट को खारिज़ करते हुए कई ट्वीट किया। जेटली ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कीमतों का आकलन किया है और सीएजी भी उसकी जांच कर रहा है।

उपचार के लिए अमेरिका गए वित्त मंत्री जेटली ने वहीं से ट्वीट कर कॉन्ग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, “2007 में नहीं हुए सौदे के दाम को दरकिनार करके 2016 की दामों से तुलना करते हुए, फ़िर एक घोटाले का पता कीजिए।” उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि अंकगणित के आधार पर लगाए जाने वाला यह आरोप बिल्कुल बेबुनियाद व बकवास है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि 2016 की तुलना में 2007 में यूपीए सरकार के समय राफ़ेल की ऑफर कीमत अधिक थी। रक्षा मंत्रालय ने ‘द हिंदू’ के रिपोर्ट को गलत बताते हुए कहा है कि न्यूज पेपर ने अपनी रिपोर्ट में आधारहीन फ़ैक्ट व तर्क दिए हैं।

यही नहीं रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट करके इस बात की जानकारी दी कि ससंद में बहस के दौरान रक्षा मंत्री ने इन सभी आरोपों का बेहद गहराई से जवाब दिया है।

पिछले दिनों वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता पी चिदंबरम ने ‘द हिंदू’ में छपे रिपोर्ट के हवाले सरकार पर यह आरोप लगाया था कि भाजपा सरकार ने अपने फ़ायदे के लिए एक फ़्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट को अप्रत्याशित लाभ पहुँचाया।

चिंदबरम ने भाजपा सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि कॉन्ग्रेस सरकार की तुलना में भाजपा सरकार ने प्रति राफ़ेल विमान की कीमत ₹186 करोड़ ज्यादा दी है। इस तरह से वर्तमान सरकार पर हमला बोलते हुए पी चिदंबरम ने मुख्य तौर पर दो आरोप लगाया है।

चिदंबरम का पहला आरोप यह है कि सरकार ने एयर फोर्स के लिए खरीदी जाने वाली विमान की संख्या 90 से घटाकर 45 कर दी। एक तरह से यह देश की रक्षा व्यवस्था के साथ मजाक है। वहीं कॉन्ग्रेस की तरफ़ से चिदंबरम ने दूसरा आरोप यह लगाया कि 2016 की तुलना में सरकार ने प्रति लड़ाकू विमान के लिए फ्रांसीसी कंपनी को ₹186 करोड़ अधिक दिए हैं।

पी चिदंबरम के इन सभी सवालों का जवाब सरकार की मंत्री स्मृति ईरानी ने देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सरकार के पक्ष में फ़ैसला दे चुकी है, रक्षा मंत्री ने ससंद में घंटे भर विपक्ष के सभी सवालों का जवाब दिया है, कैग के पास मामले से जुड़ी सभी फ़ाईल है। ऐसे में कॉन्ग्रेस को राफ़ेल मामले में अफ़वाह फ़ैलाने का कोई हक नहीं है। इस मामले पर कॉन्ग्रेस का असली चेहरा लोगों के बीच आ गया है।

PM मोदी ने की जिस K-9 वज्र की सवारी, जानिए उसकी खास बातें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज K-9 वज्र की सवारी की। इस सेल्फ प्रोपेल्ड हॉवित्ज़र को लार्सेन एंड टर्बो नाम की कंपनी ने तैयार किया है। नवंबर 2018 को देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय सेना के तोपखाने में K-9 वज्र को शामिल करने की घोषणा की थी।

रक्षामंत्री ने इस कार्यक्रम में कहा था कि 2020 तक कुल 100 K-9 वज्र को सेना अपने उपयोग में ले सकेगी। ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि K-9 वज्र भारतीय सेना के लिए किस तरह से मददगार साबित होगा। हमारे आर्मी के पास पहले से मौजूद हथियारों से K-9 वज्र किस तरह से अलग और खास है।

K-9 वज्र इन वजहों से खास है

K-9 वज्र 155 एमएम की गन्स हैं। इस गन के बैरल बोर की साइज 155 एमएम होने की वजह से सेना इसके ज़रिए अपने लक्ष्य पर दमदार तरह से हमला कर सकती है। K-9 वज्र की खासियत है कि यह जमीन व रेगिस्तान दोनों ही जगह से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए बनाया गया है।

पाकिस्तान से सटे बाड़मेर व अन्य रेगिस्तानी बार्डर वाले इलाके के लिहाज से यह बेहद उपयोगी है। K-9 वज्र के ज़रिए 28 से 38 किलोमीटर के रेंज में वार किया जा सकता है। K-9 वज्र को सेना के जवान तीन तरह से यूज कर सकेंगे। बर्स्ट मोड में 30 सेकेंड के अंदर तीन राउंड फ़ायर होता है, जबकि इन्टेंस मोड में लगातार फायरिंग की जा सकती है। जबकि सस्टेन्ड में एक घंटे के अंदर 60 राउंड फ़ायरिंग की जा सकती है।

इस कंपनी को मिला जिम्मा

K-9 वज्र को साउथ कोरिया की हथियार बनाने वाली कंपनी ‘हानवा टेकविन’ की मदद से अपने ही देश में बनाया जा रहा है। भारत में K-9 वज्र को बनाने में साउथ कोरियाई कंपनी की पार्टनर ‘लार्सेन एंड टर्बो’ कंपनी होगी। K-9 वज्र को बनाने के लिए सरकार ने इन कंपनियों के साथ ₹4300 करोड़ की डील की है।

EVM है चोर मशीन, शुरू हो ‘पेपर बैलट’ की प्रक्रिया: फ़ारुख़ अब्दुल्लाह

ईवीएम एक ऐसा मुद्दा है, जिसे पिछले कुछ चुनावों के नतीजों के बाद से जमकर उछाला जा रहा है। चुनाव आयोग से विपक्ष लगातार इस बात की गुहार लगा रहा है कि इसके प्रयोग पर आगामी चुनाव में रोक लगा दी जाए, क्योंकि इसमें छेड़छाड़ की आशंका जताई जाती रही है। हालाँकि, चुनाव आयोग ने इस बात को एक सिरे से नकारते हुए कहा है कि राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव में हारने पर ईवीएम के मुद्दे को फुटबॉल की तरह उछालती हैं, ताकि खुद की हार को छिपा सकें।

मायावती से लेकर अखिलेश और राहुल से लेकर केजरीवाल तक की शिकायत बीते चुनावों के नतीजे आने के बाद यही रही है कि उनकी पार्टी ईवीएम मशीन में गड़बडी के कारण चुनाव हार गई। इनका कहना है कि ईवीएम मशीन पर किसी भी बटन को दबाने से सिर्फ बीजेपी को ही वोट जाता है।

सोचने वाली बात यह है कि विपक्ष ईवीएम में गड़बड़ी सिर्फ उसी समय बताता है जब बीजेपी चुनाव जीतती है, फिर चाहे वो 2014 में हुए लोकसभा चुनाव की बात हो या 2017 में यूपी चुनाव की। बहुमत के साथ बीजेपी सरकार जब भी चुनाव जीतती है तब ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा गर्माने लगता है, लेकिन जब चुनावों में कोई अन्य सरकार जीतती है तो ईवीएम पर बात तक नहीं की जाती।

ईवीएम में गड़बड़ी होने का रोना 2019 के आते-आते अब भी शांत नहीं हुआ है। चुनावों के आते ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारुख़ अब्दुल्ला ने ईवीएम को हटाकर दुबारा से पेपर बैलट द्वारा चुनाव किए जाने पर बात की है। उनका मानना है कि इस तरह से चुनाव की पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष ढंग से की जा सकेगी।

फारुख अबदुल्ला ने ईलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को एक ‘चोर’ कहा है, उनका कहना है कि विश्व में कोई भी देश इस मशीन का इस्तेमाल नहीं करता है।

कोलकाता ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर तृणमूल कॉन्ग्रेस द्वारा आयोजित “यूनाईटिड इंडिया रैली” में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री कहा कि ईवीएम एक ‘चोर’ मशीन है, हमें चुनाव आयोग और राष्ट्रपति से मिलकर चुनावों में इसके इस्तेमाल पर रोक लगानी चाहिए।

अबदुल्लाह ने अपनी बातचीत में जम्मू कश्मीर की हालिया स्थिति पर बीजेपी पर आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि पिछले साढ़े चार साल में बीजेपी ने हमें सिर्फ दर्द दिया है। उनका कहना है कि बीजेपी सरकार को जाना ही चाहिए और सबको मिलकर एक ऐसी सरकार की कामना देश के लिए करनी चाहिए, जो एक नए हिन्दुस्तान का निर्माण कर सके। अब्दुल्लाह ने इस दौरान यह भी कहा कि बीजेपी को आने वाले चुनावों में हराने के लिए सभी विपक्षी पार्टियों को एक हो जाना चाहिए। उनका मानना है कि बीजेपी देश के लोगों को धर्म के आधार पर बाँट रही है।

2019 के लोकसभा चुनावों के लिए अधिकतर विपक्षी पार्टियों ने इस बात का समर्थन किया कि आगामी चुनावों में पेपर बैलट द्वारा मतदान होना चाहिए क्योंकि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है।

हालांँकि बता दें कि चुनाव आयोग के प्रमुख सुनील अरोड़ा ने इस बाता का दावा किया है कि राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव हारने की वजह से ईवीएम के मुद्दे को फुटबॉल की तरह इधर से उधर उछालते रहते हैं। सुनिल अरोड़ा से पहले उनके पूर्वाधिकारी ओपी रावत का भी यही कहना था कि राजनैतिक पार्टियाँ ईवीएम पर सवाल तभी उठाती हैं, जब वो चुनाव हारती हैं।

ओपी रावत के कहे अनुसार आज के समय में जैसे इसका प्रचलन हो चुका है कि जब वो लोग जीतते हैं, तो ईवीएम को साभार नहीं देते लेकिन जब हारते हैं तो सबसे पहले ऊँगली ईवीएम पर ही उठाते हैं।

चुनाव आयोग ने पेपर बैलट वाली प्रक्रिया से किए जाने वाले मतदान को एक सिरे से यह कहकर नकार दिया है कि पेपर बैलट की प्रक्रिया मतदान के लिए वापस लाने का कोई मतलब नहीं है।

बीजेपी का इस पूरे मामले पर कहना है कि सिर्फ विपक्षी दल अपनी भीतर की असुरक्षा को छुपाने के लिए ईवीएम मशीनों पर आरोप लगा रहे हैं।

सबरीमाला पर केरल सरकार का फ़र्ज़ीवाड़ा: 51 की सूची में नाम, लिंग, उम्र हर चीज से खिलवाड़

केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह दावा किया था प्रतिबंधित आयु वर्ग की 51 महिलाएँ अब तक सबरीमाला मंदिर में प्रवेश कर चुकी हैं। हालाँकि राज्य सरकार के इस दावे के एक दिन बाद ही एक रिपोर्ट सामने आई है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा दी गई सूची तमाम विसंगतियों से भरा और फ़र्ज़ी आँकड़ों का पुलिंदा है।

विहिप नेता और वकील प्रथमेश विश्वनाथ, जो ‘अयप्पा भक्तों’ के विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे हैं, ने इस मामले पर एक ट्वीट किया। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि केरल सरकार का 50 से कम उम्र की 51 महिलाओं का मंदिर में प्रवेश संबंधित दावा एकदम झूठा है। विश्वनाथ ने आरोप लगाया कि राज्य की कम्युनिस्ट सरकार सबरीमाला मामले में दायर समीक्षा याचिकाओं में बदलाव करने के लिए दबाव डाल रही है।

विश्वनाथ ने आरोप लगाया कि सूची में कई महिलाएँ वास्तव में 50 वर्ष से अधिक उम्र की हैं। यहाँ तक ​​कि केरल सरकार ने 51 महिलाओं की सूची को बनाने के लिए कई अन्य लोगों के उम्र और अन्य विवरण भी फ़र्ज़ी इस्तेमाल किए।

कई रिपोर्ट अब सामने आई है, जहाँ रजिस्टर्ड महिलाओं के नाम और विवरण में जालसाज़ी पाई गई है।

सूची में ‘कलावती’ के नाम से दर्ज़ मोबाइल नंबर एक ड्राइवर का पाया गया। जब टाइम्स नाउ ने उससे संपर्क किया, तो उस व्यक्ति ने पुष्टि की कि कलावती नाम की कोई महिला यहाँ नहीं है और उसके मोबाइल नंबर को फ़र्ज़ी तरीक़े से वहाँ से रजिस्टर्ड किया गया है।

इसी तरह, एक अन्य नाम ‘देवीगासीमणि’, 42 वर्षीय महिला के रूप में रजिस्टर्ड किया गया था। वह पुरुष निकला और रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर उसके दोस्त की थी। टाइम्स नाउ के पत्रकार ने बताया कि उसने 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के रूप में रजिस्टर्ड 5 रैंडम मोबाइल नम्बरों को डायल किया, जो मंदिर में प्रवेश कर चुकी थीं। हैरत की बात है कि सभी पाँच नंबर फ़र्ज़ी निकले।

रिपोर्ट के अनुसार, सूची में कई नामों के सामने गलत उम्र लिखा गया है। 60 वर्ष उम्र की महिलाओं को 50 से कम उम्र की महिलाओं के रूप में दिखाया गया है।

केरल सरकार ने कल दायर अपने हलफ़नामे में दावा किया था कि सूची केरल पुलिस द्वारा बनाए गए डिजिटल क्यू मैनेजमेंट प्रणाली से प्राप्त की गई है। उन्होंने दावा किया था कि इस वर्ष 16 लाख से अधिक लोगों ने मंदिर में दर्शन करने के लिए आवेदन किया है और उनमें से 7500 से अधिक महिलाएँ हैं। उन्होंने यह भी दावा किया था कि अब तक 8.2 लाख से अधिक तीर्थयात्री यात्रा कर चुके हैं और उनमें से 51 महिलाएँ 50 वर्ष से कम उम्र की थीं।

केरल पुलिस को उच्च न्यायालय के निगरानी पैनल ने भी फटकार लगाई थी, जिसने मंदिर के भीतर CPIM के दो कार्यकर्ताओं बिंदू और कनकदुर्गा को श्राइन के अन्दर ले जाने के लिए किए गए विशेष उपायों पर भी सवाल उठाया था। केरल पुलिस मंदिर के कर्मचारियों और वीआईपी के लिए आरक्षित एक गेट के माध्यम से दोनों महिलाओं को छिपा कर अंदर ले गई थी। बता दें कि तीर्थयात्रियों को उस गेट से जाने की अनुमति नहीं है।

केरल में विपक्षी दलों और सबरीमाला कर्म समिति ने केरल सरकार के ‘फ़र्ज़ी सूची पर विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि केरल सरकार केवल हिंदुओं का अपमान करने और समीक्षा याचिकाओं में रोड़ा अटकाने के लिए ऐसा कर रही है। राज्य भाजपा अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लई ने कहा है कि यह सूची “सदी का सबसे बड़ा झूठ” है। कॉन्ग्रेस ने भी कहा कि कम्युनिस्ट सरकार ख़ुद ही “हँसी का पात्र” बन गई है।

केरल की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा की गई ज़्यादतियों और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध करने वाले शांतिपूर्ण श्रद्धालुओं पर किए गए अत्याचार ने राज्य में व्यापक अशांति और असंतोष फ़ैलाया है। सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर हजारों फ़र्ज़ी मामले दर्ज़ कर दिए हैं। इसके अलावा राज्य में श्रद्धालुओं पर हिंसा के कई उदाहरण सामने आए हैं। पीएम मोदी ने हाल ही में कोल्लम में अपने संबोधन में कहा था कि सबरीमाला में कम्युनिस्ट सरकार की कार्रवाई केरल सरकार के सबसे पापपूर्ण व्यवहारों के रूप में इतिहास में दर्ज़ की जाएगी।

केरल में RSS नेता की हत्या की साज़िश में दिल्ली पुलिस ने तीन को किया गिरफ़्तार

केरल में लगातार एक के बाद बीजेपी और RSS के नेताओं और कार्यकर्ताओं की या तो हत्या हो रही है या साज़िश के सबूत मिलते रहें हैं। आज फिर केरल के आरएसएस नेता की हत्या की साज़िश के आरोप में दिल्ली पुलिस ने 3 लोगों को गिरफ़्तार किया है।

ज़ी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, तीनों आरोपितों को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ़्तार किया है। गिरफ़्तार किए गए आरोपितों में से एक अफ़ग़ानिस्तान का नागरिक है। एक आरोपित केरल का और तीसरा दिल्ली का रहने वाला बताया जा रहा है। इन तीनों ने आरएसएस नेता की हत्या की प्लानिंग की थी ताकि दंगे भड़क सके।

ज़ी न्यूज़ के मुताबिक तीनों आरोपित केरल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के किसी नेता की हत्या की साज़िश रच रहे थे। इस साज़िश के पीछे पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने के भी सबूत मिले हैं। हालाँकि, दिल्ली पुलिस ने आरएसएस नेता का नाम उजागर नहीं किया है।

फोन इंटरसेप्ट और कई अहम ख़ोजबीन के आधार पर रॉ की मदद से इन आरोपितों को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दबोच लिया। गिरफ़्तार किए गए आरोपितों के नाम मोहम्मद सा बइफी (अफ़ग़ानिस्तान), शेख रियाजुद्दीन (दिल्ली का रहने वाला) और मुहथसिम केरल का रहने वाला है।

बिहार में कॉन्ग्रेस का हाथ थाम राजनीति करने वाली मीसा रामकृपाल का हाथ क्यों काटना चाहती हैं?

आज के समय में नेताओं के लिए दल-बदल की राजनीति सामान्य सी बात हो गई है। राजनीति में साथ रहते हुए कल तक जिसे ‘चाचा’ की उपाधी दी जाती थी, उसे गठबंधन से अलग होने पर ‘चोर’ कहा जाने लग जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन आश्चर्य की बात तब होती है, जब गाँधी के देश में राजनीतिक फ़ायदे व नुकशान के लिए बात खून ख़राबे तक पहुँच जाए।

राजद नेता और लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती ने कहा, “जब रामकृपाल बीजेपी में शामिल हो रहे थे, तब मेरा मन उनका हाथ गंडासे से काटने का हुआ था।” अब ज़रा सोचिए कि जब महज एक सांसद के पार्टी छोड़ने के बाद मीसा हाथ काटना चाहती है, फ़िर तो नीतीश कुमार के राजद से अलग होकर सरकार गिराने के बाद मीसा के मन में शायद मर्डर करने की बात चल रही होगी! नीचे आप भास्कर का वीडियो देखिए और राजनीतिक पतन पर सोचने को मज़बूर होइए।

मीसा के मुँह से इस बयान को सुनने के बाद राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को ज़रूर चोट पहुँचेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जब लालू यादव की बेटी मीसा ने जन्म लिया था, तो देश में लोकतांत्रिक संकट का दौर चल रहा था। लोगों से बोलने के अधिकार छिन लिए गए थे। एक तरह से लोग राजनीतिक बंदी की जिंदगी जी रहे थे।

ऐसे दौर में जब लालू के घर में बेटी पैदा हुई तो लोगों को लगा कि आगे चलकर मीसा इंदिरा जैसी महिलाओं का जवाब होगी। जिन लोगों ने उस दौर को देखा है, आज भी मीसा शब्द सुनते ही उनके शरीर के रूह खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह कहते हुए अफ़सोस होता है कि मीसा अपने नाम के मुताबिक कारनामे नहीं दिखा सकी, बल्कि मीसा ने तो इंदिरा से थोड़ा अलग पर समानांतर राह पकड़ के वो सब किया, जो कानूनी रूप से गलत है।

मीसा को आज हम जिस रूप में देख रहे हैं, दरअसल वो लालू यादव की ही देन है। एक कहावत ‘बापे पूत परापत घोड़ा, नै कुछ तो थोड़म थोड़ा’ लालू जी के प्रदेश में खूब बोला जाता है। इसका अर्थ है कि बच्चों पर बहुत ज्यादा नहीं तो भी कुछ न कुछ असर तो अपने पिता का पड़ता ही है।

मीसा ने आज रामकृपाल यादव के लिए जो हिंसक बयान दिया है, दरअसल वह मानसिकता लालू यादव की ही देन है। लालू यादव जेपी के पवित्र राजनीतिक आंदोलन से निकले हुए वो सिपाही हैं, जो अपने राजनीतिक नफ़ा-नुकसान के लिए बेहद निचले पायदान तक गए हैं।

सत्ता के लिए हिंसा का साथ देना या अपराधियों को गोदी में बिठाकर पुलिस की नज़रों से छिपा लेना लालू जी के लिए आम बात रही है। एक उदाहरण के ज़रिए इस बात को समझा जा सकता है कि अप्रैल 2016 में जब शहाबुद्दीन मर्डर केस में जेल में सजा काट रहे थे तब उसे राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का हिस्सा बनाया गया। यही नहीं, विधायक मर्डर केस में आरोपित बाहुबली राजद नेता प्रभुनाथ सिंह को भी लालू ने अपने गोद में बिठाए रखा।

बिहार का बच्चा-बच्चा यह बात जानता है कि 1990 की दौर को जातीय हिंसा, लूट-पाट व खून-ख़राबे की दौर के रूप में जाना जाता है। राम मंदिर के नाम पर आडवाणी को जेल भेजकर अपनी पीठ खुद ही थपथपाने वाले लालू यादव ने राज्य में फ़ैले जातीय हिंसा को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

जब मीसा ने गंडासे से रामकृपाल के हाथ काटने की बात कही, तब मुझे लालू के दौर में हुए बाथे और सेनारी कांड की याद आ गई। हिंसा के उस दौर में लोगों को गंडासे और तलवार से ही काटा गया था। सेनारी काँड में एक-एक परिवार के आधे दर्जन लोगों को बेरहमी से काटा गया था। जब बिहार में यह घटना घट रही थी तब लालू और राबड़ी इन घटनाओं के ज़रिए राजनीति की रोटी सेंकने में लगे हुए थे।

शायद मीसा ने लाशों पर अपने पिता को राजनीति करते हुए देखा होगा, तभी वो इस तरह की हिंसक बयान दे रही है।

मीसा जब बड़ी हो रहीं थी, उसने अपने पिता को चारा घोटाला करते देखा फ़िर मर्डर के आरोपित शहाबुद्दीन व प्रभुनाथ सरीखे लोगों के साथ गलबहियाँ लगाए बैठे देखा। यही वजह है कि मीसा जब भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित होती है, या हिंसक बयान देती है। तब मुझे लगता है कि लालू की बेटी होने की वजह से मीसा के व्यवहार में यह सारी गलत चीजें आ गई है।

झारखंड में भी महागठबंधन: BJP के ख़िलाफ़ 8 पार्टियों का मोर्चा तैयार

इस समय पूरे देश में लोकसभा चुनावों की तैयारी से ज्यादा बीजेपी को सत्ता से हटाने के प्रयास चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बाद इस बात का उदाहरण झारखंड में भी देख को मिला, जहाँ पर विपक्षी दलों ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों को साथ मिलकर लड़ने का निर्णय किया है। खबरें हैं कि औपचारिक रूप से इस बात की घोषणा इस महीने के आखिर तक हो सकती है।

जनसत्ता में छपी रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा चुनाव की अगुवाई कॉन्ग्रेस द्वारा की जाएगी लेकिन विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन पार्टी का नेतृत्व करेंगे। झारखंड में कॉन्ग्रेस, आरजेडी, सीपीआई, सीपीएम, जेएमएम, सीपीआई-एमएल, मार्क्सवादी समन्वय समिति और झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक (जेवीएमपी) आदि पार्टियों के बीच गठजोड़ की बातें चल रही हैं।

इन सभी पार्टियों के गठजोड़ को लेकर हाल ही में राज्य में एक बैठक हुई थी, जिसमें जेएमएम के अध्यक्ष हेमंत सोरेन, जेवीएम अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, आरजेडी अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी, बीएसपी विधायक शिवपूजन मेहता, कॉन्ग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार और कान्ग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम के अलावा बहुत सारे वामपंथी दलों के सभी मुख्य नेता भी शामिल हुए थे।

राजनैतिक उठा-पटक के चलते एक तरफ जहाँ पर यूपी में बसपा-सपा का गठबंधन देखने को मिला है, वहीं अब झारखंड में सभी गैर-बीजेपी दल एक साथ आने जा रहे हैं। इसके अलावा ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन ने भी बीजेपी का दामन छोड़ते हुए अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। ये विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव होने के लगभग 4-5 महीने बाद होने हैं।

पिछले लोकसभा चुनावों का परिणाम याद दिलाते हुए बता दें कि 2014 में लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। बाक़ी 2 सीटें जेएमएम की झोली में गई थीं। कॉन्ग्रेस समेत अन्य दलों का 2014 में खाता भी नहीं खुल पाया था।

अभी हाल ही में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने इस बात को कहा था कि अकेले रहकर बीजेपी को हराना मुमकिन नहीं हैं, इसके लिए कॉन्ग्रेस को हर राज्य में उन पार्टियों के साथ गठबंधन पर विचार करना चाहिए जो बीजेपी को हराने के लिए कॉन्ग्रेस के साथ जुड़ना चाहते हैं।

UP में गौरक्षा: विदेशी शराब और बीयर पर विशेष शुल्क

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने गौ रक्षा को ध्यान में रखते हुए एक अहम फै़सला लिया है। यूपी कैबिनेट ने आवारा पशुओं के आश्रय गृहों को वित्तपोषित करने के लिए बीयर और विदेशी शराब की बिक्री पर एक विशेष शुल्क को मंजूरी दे दी। अब इस राजस्व का इस्तेमाल अस्थायी गाय आश्रयों को बनाने में किया जाएगा।

रेस्तराँ और होटलों में विदेशी शराब पर प्रति बोतल 10 रुपए का विशेष शुल्क जबकि बीयर पर 5 रुपए का शुल्क लगेगा। इसके अलावा इकोनॉमी ब्रांड्स के बीयर और विदेशी शराब की बॉटलिंग पर भी विशेष शुल्क लगाया गया है। ये शुल्क 1 रुपए से लेकर 3 रुपए प्रति बोतल तक है। प्रदेश में बनने वाली बीयर और शराब के आयात शुल्क पर 50 पैसे से 2 रुपए प्रति बोतल का शुल्क लगाया जाएगा।  

गौ रक्षा के लिए सालाना हो सकेगा लगभग 165 करोड़ रुपए का इंतज़ाम

आबकारी विभाग के आँकड़ों की मानें तो वर्तमान में हो रही शराब और बीयर की बिक्री के हिसाब से एक साल में गौ रक्षा के लिए लगभग 165 करोड़ रुपए जुटाया जा सकेगा। 2 जनवरी को सरकार ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा पशुओं के खतरे से निपटने के लिए राज्य में अस्थायी गौ आश्रमों की स्थापना के लिए निर्देश दिए थे।

आबकारी विभाग को इन आश्रयों को बनाने और रखरखाव करने के लिए विभिन्न वस्तुओं पर शुल्क लगाने के लिए कहा गया था। आबकारी मंत्री जय प्रताप सिंह ने कहा, “इस प्रणाली से राजस्व बढ़ेगा और विभाग राज्य में सालाना 165 करोड़ रुपए का योगदान दे सकता है।”

गगनयान भारत का पहला मानव मिशन, पायलट भी हो सकते हैं अंतरिक्ष यात्री

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने शुक्रवार (जनवरी 18, 2019) को संकेत दिया कि देश के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ से जाने वाले अंतरिक्ष यात्री पायलट हो सकते हैं। इसके लिए उड़ान का पर्याप्त अनुभव रखने वाले लोगों की तलाश इसरो द्वारा की जा रही है। इसरो के चेयरमैन के. सीवन ने कहा कि मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्रियों के चयन में भारतीय वायुसेना और अन्य एजेंसियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

बता दें कि गगनयान प्रोजेक्ट की घोषणा पिछले साल पीएम मोदी ने की थी। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वर्ष 2022 तक आज़ादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर, भारत का बेटा या बेटी अंतरिक्ष में जाएगा। साल 2022 या उससे पहले ही, भारतीय वैज्ञानिकों ने मानवसहित गगनयान लेकर अंतरिक्ष में तिरंगे के साथ जाने का दृढ संकल्प लिया है। इस लक्ष्य के हासिल होते ही भारत मानव मिशन भेजने वाले दुनिया के शीर्ष देशों में चौथा देश होगा।

एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सीवन ने कहा कि पहले मानवरहित ‘गगनयान’ को दिसंबर 2020 में प्रक्षेपित किए जाने की योजना है। दूसरा मानवरहित यान जुलाई 2021 तक भेजे जाने की उम्मीद है और फिर अंतत: दिसंबर 2021 तक पहला मानवयुक्त गगनयान मिशन पूरा किए जाने की सम्भावना है।

चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 प्रतीकात्मक चित्र

बीते कुछ वर्षों में भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में कई बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इसरो प्रमुख के सीवन ने बताया कि भारत इस साल अप्रैल तक चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग के लिए भी तैयार है। चंद्रयान -2 मिशन पर कुल 800 करोड़ रुपए खर्च किया जाना है। इस मिशन की मदद से चाँद से जुड़ी कुछ अहम जानकारियाँ जुटाने की कोशिश की जाएगी। इस मिशन लेकर इसरो पूरी तैयारी कर चुका है।

गगनयान की कुछ ख़ास बातें

1- गगनयान के तहत शुरुआती ट्रेनिंग भारत में होगी जबकि इसकी एडवांस ट्रेनिंग रूस में दी जाएगी। अंतरिक्ष में जाने वाले दल में महिला अंतरिक्ष यात्री के भी शामिल होने की संभावना है।

2- गगनयान मिशन को केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक बताते हुए इसके लिए 10,000 करोड़ रुपए का फंड जारी किया था।

3- गगनयान मिशन में भारत, रूस और फ्रांस से भी मदद ले रहा है। इसरो अभी तक इस मिशन पर 173 करोड़ रुपए खर्च कर चुका है।

4- इसरो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का उपयोग करेगा।

5- अंतरिक्ष में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को ‘व्योमनॉट्स’ के नाम से जाना जाएगा। व्योम शब्द का अर्थ अंतरिक्ष होता है।

फ़ैक्ट चेक: ‘कुम्भ स्नान’ वाली नेहरू की फोटो वायरल, लेकिन पत्रकार-फ़िल्मकार कापड़ी फैला रहे फ़र्ज़ी जानकारी!

प्रयागराज में होने वाला इस वर्ष का कुंभ मेला न सिर्फ़ अपनी भव्य तैयारियों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसलिए भी केंद्र बिंदु बना हुआ है क्योंकि इस विशेष कुंभ मेले की धार्मिक मंडली की तैयारियों की समीक्षा ख़ुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। जहाँ एक तरफ इस कुंभ मेले के सफल आयोजन पर प्रधानमंत्री मोदी के कार्य की प्रशंसा हो रही है, वहीं दूसरी तरफ उनके आलोचक उन्हें घेरने से बाज नहीं आ रहे हैं।

हाल ही में, विनोद कापड़ी (फ़िल्म पिहू के निर्देशक, ज़ी न्यूज़ और इंडिया टीवी के पूर्व संपादक) ने जवाहरलाल नेहरू की एक फोटो को ट्विटर पर पोस्ट किया। इसमें उन्होंने दावा किया कि नेहरू ने 1954 के कुंभ मेले के दौरान डुबकी लगाई थी।

ताकि सनद रहे : पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी कुंभ में स्नान कर चुके हैं और जनेऊ भी धारण किए हुए हैं।#KumbhMela2019 pic.twitter.com/06DUeCHBwr

— Vinod Kapri (@vinodkapri) January 18, 2019

उनके ट्वीट का जवाब देते हुए एक यूज़र ने कॉन्ग्रेस नेता ए.गोपन्ना (A. Gopanna) की नेहरू की जीवनी – जवाहरलाल नेहरू: एन इलस्ट्रेटेड बायोग्राफी (Jawaharlal Nehru: An Illustrated Biography) – से वही फोटो पोस्ट की, जिसमें फोटो का जो कैप्शन दिया गया था, ‘1931 में इलाहाबाद में अपने पिताजी के अस्थि विसर्जन के दौरान जवाहरलाल नेहरू।’

इस प्रकरण के चलते कापड़ी और उस ट्विटर यूज़र के बीच शब्द-जंग छिड़ गई। कापड़ी ने दावा किया कि यह फोटो नेहरू के पिता के अस्थि विसर्जन की नहीं हो सकती क्योंकि उस समय नेहरू की उम्र 42 वर्ष की थी। कापड़ी ने तर्क दिया कि जो फोटो उन्होंने पोस्ट की, उसमें नेहरू बड़े दिख रहे हैं। इसलिए वह फोटो 1954 के कुंभ की ही है, जब नेहरू की उम्र 65 वर्ष थी।

बता दें कि ए गोपन्ना एक कॉन्ग्रेसी नेता हैं और फ़िलहाल वो एक प्रवक्ता होने के अलावा तमिलनाडु कॉन्ग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष भी हैं। कॉन्ग्रेस नेता ए गोपन्ना ने नेहरू की जीवनी में नेहरू की इस फोटो को शामिल करते हुए कहा था कि यह 1931 में नेहरू द्वारा अपने पिता के अस्थि को विसर्जित करने से संबंधित है। पिछले साल मई में उनके द्वारा रचित ‘भारत के पहले प्रधानमंत्री की उनकी सचित्र जीवनी’ का अनावरण भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा किया गया था। इसलिए, बहुत कम संभावना है कि गोपन्ना अपनी पुस्तक में नेहरू की छवि को ग़लत बताएंगे।

इसके अलावा, ट्विटर यूज़र द्वारा ट्वीट की गई फोटो को पत्रकार विकास पाठक ने भी पिछले साल मई में पोस्ट किया था।

बता दें कि इस फोटो का उपयोग इंडिया टुडे के एक लेख में भी किया गया है। इसमें यह दावा किया गया कि यह फोटो नेहरू की माँ के अस्थि विसर्जन (1938) की है। नेहरू की माँ के अस्थि विसर्जन वाला तथ्य ओपन मैगज़ीन में प्रकाशित एक लेख में 1938 में भी दिया गया।
ए गोपन्ना लिखित जीवनी, इंडिया टुडे और ओपन मैगज़ीन के लेख से तो यही स्पष्ट होता है कि नेहरू की यह फोटो उनके माता या पिताजी के अस्थि विसर्जित करने से संबंधित है। दोनों ही मीडिया तंत्रों में से किसी ने भी इस फोटो को 1954 के कुंभ से नहीं जोड़ा है।

यदि हम केंद्रीय कारागार नैनी से नेहरू की एक और फोटो को देखें, जो 19 अक्टूबर 1930 से 26 जनवरी 1931 के बीच उनके पाँचवें कारावास के दौरान ली गई थी, तो नेहरू अपनी उस फोटो में विवादित फोटो से मिलते-जुलते दिखते हैं।

नेहरू अपने पाँचवें कारावास के दौरान नैनी सेंट्रल जेल में, सौजन्य: http://nehruportal.nic.in

जब कॉन्ग्रेस पार्टी के एक नेता ने अपनी पुस्तक में इस विवादित फोटो को जवाहरलाल नेहरू के पिताजी के अस्थि विसर्जन से संबंधित दिखाया है और कुछ मीडिया हाउसों ने उसी फोटो को उनकी माँ के अस्थि विसर्जन से संबंधित कर प्रकाशित किया है तो फिर इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि यह फोटो 1954 के कुम्भ के आस-पास की तो बिल्कुल नहीं है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब विनोद कापड़ी को झूठ फैलाते हुए पकड़ा गया हो। इससे पहले, कापड़ी को हिंसा के बारे में झूठ फैलाते पकड़ा गया था, जिसका संबंध उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की हिंसा से था। जब झूठ पकड़ा गया, तो उन्होंने पुलिस पर ही उलटे-सीधे सवाल खड़े कर दिए थे।