Tuesday, November 19, 2024
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‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’ जातिसूचक नहीं, राजस्थान हाई कोर्ट ने SC/ST ऐक्ट हटाया: कहा- लोक सेवकों की जाति के बारे में अनजान थे आरोपित, कोई गवाह भी मौजूद नहीं

राजस्थान हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’, ‘मंगनी’ आदि किसी जाति के नाम नहीं है। इसलिए इनके इस्तेमाल पर किसी के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (SC/ST ऐक्ट) के तहत आरोप नहीं लगाए जा सकते। इसके बाद कोर्ट ने चार लोगों के खिलाफ लगे इस ऐक्ट को हटा दिया।

इन चारों लोगों पर कुछ लोक सेवकों के खिलाफ इन कथित जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाकर मामला दर्ज किया गया था। ये लोक सेवक एक मामले में अतिक्रमण का निरीक्षण करने और उसे हटाने के लिए आए थे। जज बीरेंद्र कुमार ने कहा कि इन शब्दों में जाति संदर्भ नहीं था और न ही ऐसा कुछ था जो बताता हो कि किसी लोक सेवक को उनकी जाति के आधार पर अपमानित करना था।

कोर्ट ने कहा, “इस्तेमाल किए गए शब्द जातिसूचक नहीं थे और न ही ऐसा आरोप है कि याचिकाकर्ता उन लोक सेवकों की जाति को जानते थे, जो अतिक्रमण हटाने गए थे। आरोप को पढ़ने से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता लोक सेवकों को इस कारण से अपमानित नहीं करना चाहते थे कि वे SC/ST समाज से थे, बल्कि उनका बयान उनके द्वारा गलत तरीके से की जा रही माप की कार्रवाई के विरोध में था।”

यह मामला जनवरी 2011 की है। कुछ अधिकारियों ने सार्वजनिक भूमि पर कथित अतिक्रमण का निरीक्षण करने के लिए जैसलमेर के एक क्षेत्र का दौरा किया था। निरीक्षण के दौरान याचिकाकर्ताओं ने अधिकारियों को रोका और उनके साथ अपमानजनक शब्दों में दुर्व्यवहार किया था। इसके बाद उन लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।

याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल), 332 (लोक सेवक को चोट पहुँचाने के लिए चोट पहुँचाना), 34 (सामान्य इरादा) के तहत एक आपराधिक मामला के साथ-साथ और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(X) में भी केस दर्ज किया गया था।

हालाँकि, शुरुआती जाँच में पुलिस ने आरोपों को निराधार पाया और एक नकारात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके विरोध में लोक सेवकों ने ट्रायल कोर्ट का रुख किया और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक आरोप तय करने का आग्रह किया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने अपने खिलाफ मामले को रद्द करने की माँग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे लोक सेवकों की जाति से अनभिज्ञ थे और यह पुष्टि करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था कि यह घटना सार्वजनिक दृश्य में हुई थी। कोर्ट ने उनकी इस तर्क को सही पाया। 12 नवंबर के आदेश में कहा गया, “मामले में केवल मुखबिर और उसके अधिकारी ही घटना के गवाह हैं। कोई भी स्वतंत्र गवाह यह समर्थन करने के लिए नहीं आया है कि वह घटना का गवाह था।”

इसके बाद कोर्ट ने आंशिक रूप से याचिका स्वीकार कर ली और याचिकाकर्ताओं को एससी/एसटी अधिनियम मामले से बरी कर दिया। हालाँकि, न्यायालय ने पाया कि आईपीसी की धारा 353 और 332 के तहत शेष आरोपों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार हैं। इसके बाद उसने इन आरोपों को बरकरार रखा।

UPPSC अब कैसे लेगा RO-ARO और PCS की परीक्षा, पुराने पैटर्न को मंजूरी देने के बाद कैसे होगा एग्जाम, क्या होगी नई तारीख: जानें सभी सवालों के जवाब

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) ने प्रयागराज में छात्रों के प्रदर्शन के बाद PCS परीक्षा में ‘वन डे वन शिफ्ट’ बात मान ली है। आयोग ने RO/ARO परीक्षा को लेकर भी कमिटी बना दी। दोनों परीक्षाएँ अब फिलहाल के लिए टल गई हैं। यह दोनों परीक्षाएँ दिसम्बर, 2024 में होनी थी। PCS परीक्षा को पुराने पैटर्न पर करवाने को लेकर आयोग ने सहमति दे दी है। दोनों परीक्षाओं की नई तारीखें अभी सामने नहीं आई हैं। कमिटी की रिपोर्ट के बाद ही अब कुछ स्पष्ट हो सकेगा। अभ्यर्थी इसके बाद भी प्रयागराज में डटे हुए हैं।

क्यों आयोग ने बदला फैसला?

UPPSC ने इससे पहले PCS की प्री परीक्षा और RO/ARO को दो दिनों में आयोजित करने का कार्यक्रम तय किया था। इनमें से PCS परीक्षा 7-8 दिसम्बर को होती जबकि RO/ARO 22-23 दिसम्बर को आयोजित करवाई जाती। आयोग ने परीक्षा को दो दिनों में करवाने के पीछे सेंटर कम मिलने का हवाला दिया था।

आयोग ने यह परीक्षाएँ 41 जिलों में करवाने का फैसला लिया था। उसने कहा था कि अभ्यर्थियों की संख्या भी अधिक है जिस कारण से एक दिन में इन कॉलेज में परीक्षा सम्पन्न नहीं हो सकती, तभी दो बार परीक्षा करवाई जा रही है और जब दो दिन में परीक्षा होगी तो यह नियम लागू ही करना पड़ेगा। ऐसे में अभ्यर्थी इसके विरोध में आ गए।

प्रयागराज में UPPSC के मुख्यालय के बाहर सोमवार (11 नवम्बर, 2024) से हजारों अभ्यर्थियों ने डेरा डाल दिया। उन्होंने माँग की कि यह दोनों ही परीक्षाएँ एक ही दिन में करवाई जाए। अभ्यर्थी लगातार प्रदर्शन करते रहे कि उनकी माँग जब तक नहीं मानी जाएगी तब वह नहीं हटेंगे।

आयोग ने अभ्यर्थियों को वार्ता के लिए भी बुलाया लेकिन वह इसके लिए भी तैयार नहीं हुए। आखिर में आयोग ने PCS की प्री परीक्षा को लेकर एक नोटिफिकेशन जारी दी। उसने एक दिन में परीक्षा की बात कही और RO/ARO पर कमेटी बनाने को कहा।

अब परीक्षा कैसे होगी?

आयोग के UPPCS की प्री परीक्षा एक दिन में कराने के निर्णय से अंक दिए जाने में बदलाव होगा। दरअसल, जब आयोग ने दो दिन में परीक्षा करवाने का निर्णय लिया था तो इसी के साथ इसमें नॉर्मलाइजेशन भी लागू कर दिया था। अब जब परीक्षा एक दिन में होगी तो नॉर्मलाइजेशन नहीं लागू होगा। नॉर्मलाइजेशन की जरूरत तभी होती है जब कोई परीक्षा एक से अधिक पाली या दिनों में हो और उसके अलग-अलग प्रश्न पत्र आए हों।

आयोग के निर्णय के बाद यह स्थिति बदल गई है, ऐसे में अब पुराना ही पैटर्न चलेगा। RO-ARO परीक्षा के मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं है। दोनों परीक्षाओं की नई तारीखें सभी सामने नहीं आई हैं। माना जा रहा है कि RO-ARO परीक्षा पर रिपोर्ट के बाद ही तारीखों को लेकर कोई बात साफ होगी।

नॉर्मलाइजेशन से दिक्कत क्यों?

अभ्यर्थियों का कहना है कि PCS और RO/ARO में पहली बार नॉर्मलाइजेशन लागू किया है, जो कि सही नहीं है। सरलीकरण में अलग-अलग पाली होने वाली एक ही परीक्षा के कठिनाई के स्तर को देखते हुए अंक दिए जाते हैं। इसके अंतर्गत यदि किसी परीक्षा में 3 पाली हुई, जिसमें से तीसरी पाली का प्रश्नपत्र सबसे कठिन और पहली पाली का प्रश्नपत्र सरल हुआ तथा बीच की पाली का प्रश्नपत्र सामान्य रहा तो कठिन प्रश्न पत्र वाले को अंक बढ़ा कर दिए जाएँगे।

अभ्यर्थियों का तर्क है कि कुछ लोगों के लिए एक प्रश्नपत्र कठिन हो सकता जबकि दूसरे के लिए दूसरा कठिन होगा, ऐसे में सरलीकरण की प्रक्रिया सही नहीं है। उनका कहना है कि ऐसी परिस्थिति में कोर्ट में भर्ती फंस जाएगी और फिर समय बर्बाद होगा। अभ्यर्थियों का कहना है कि यह भर्ती पहले ही गड़बड़ हो चुकी है।

अब भी प्रदर्शन क्यों कर रहे अभ्यर्थी?

आयोग के प्री परीक्षा को एक दिन में करवाने पर सहमत होने और RO/ARO को लेकर विचार करने के बाद भी अभ्यर्थी प्रयागराज से नहीं हिल रहे हैं। उनका कहना है कि प्री परीक्षा की तरह ही उन्हें RO/ARO को एक दिन में करवाने पर आयोग का नोटिफिकेशन चाहिए।

उन्होंने कहा है कि RO/ARO को लेकर कमिटी बनाने की बात कही गई है, इस कमिटी में सिवाय सरकारी अफसरों के कोई नहीं होगा और ऐसे में उनकी आवाज दब जाएगी और आंदोलन भी खत्म हो जाएगा। वह कह रहे हैं कि इस संबंध में भी जब स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, तब आन्दोलन खत्म हो जाएगा।

5000 भील योद्धा, गुरिल्ला युद्ध… और 80000 मुगल सैनिकों का सफाया: महाराणा प्रताप ने पूंजा भील को ऐसे ही नहीं दी थी राणा की उपाधि

16वीं शताब्दी के एक अद्वितीय योद्धा राणा पूंजा भील को हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के समर्थन के लिए याद किया जाता है। उनकी वीरता और रणनीति ने न केवल मुगल सेना को झकझोरा, बल्कि उन्हें भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान दिलाया। जनजातीय वीरता और संघर्ष की इस कहानी में राणा पूंजा भील का योगदान अनमोल है। ये अलग बात है कि उनके बलिदान की चर्चा अधिकतर पाठ्यक्रमों से गायब हो चुकी है और राजस्थान के बाहर बहुत कम ही लोगों को उनके बारे में पता है, लेकिन इतिहास की जड़ों में जाकर देखेंगे, तो राणा पूंजा नाम के योद्धा की धमक चहुँओर सुनाई देगी, विशेषकर मुगलों के खिलाफ संघर्ष में। आज हल्दीघाटी के युद्ध के नतीजे महाराणा प्रताप की तरफ झुकते दिखे हैं, तो उसके पीछे राणा पूंजा जैसे वीरों का अतुलनीय योगदान है।

राणा पूंजा का जन्म 1540 में वर्तमान राजस्थान के कुंभलगढ़ क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता का नाम दूदा सोलंकी और माता का नाम केरी बाई था। भील जनजाति की बहुलता वाले इस क्षेत्र पर पहले यदुवंशी राजाओं का अधिकार था, लेकिन गुजरात से आए चालुक्य वंश से संबंधित सोलंकियों ने पानरवा को अपनी कर्मभूमि बनाया। राणा पूंजा का जीवन बचपन से ही साहस और संकल्प का प्रतीक रहा। 15 वर्ष की आयु में ही पिता के निधन के बाद उन्हें पानरवा का मुखिया बना दिया गया। बचपन से ही वे धनुर्विद्या और गुरिल्ला युद्ध में निपुण थे, जिसके कारण उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई।

हल्दीघाटी युद्ध में योगदान

1576 ईस्वी का हल्दीघाटी युद्ध, महाराणा प्रताप और मुगल आक्रमणकारी अकबर के बीच लड़ा गया एक ऐतिहासिक युद्ध था। इस युद्ध में राणा पूंजा भील ने 5000 भील योद्धाओं के साथ महाराणा प्रताप का समर्थन किया। गुरिल्ला युद्ध की अपनी अद्वितीय रणनीति के कारण उन्होंने मुगल सेना को भारी क्षति पहुँचाई। पूंजा की सेना ने पहाड़ी मार्गों और घने जंगलों में छापामार रणनीति का प्रयोग कर मुगलों की आपूर्ति और सैन्य संचार को बाधित किया।

राणा पूंजा की रणनीति ने मुगलों को घेरने में मदद की, जिससे महाराणा प्रताप की सेना को नई ऊर्जा और संबल मिला। पूंजा की वीरता और सैन्य कौशल ने युद्ध के अनिर्णय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी राणा पूंजा ने मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध जारी रखा। मुगलों को कभी इस इलाके में स्थाई तौर पर पैर जमाने का मौका नहीं मिला। ये वो समय था, जब मुट्ठी भर योद्धा हजारों मुगल सैनिकों को सालों-साल तक छकाते रहे और जहाँ-तहाँ हुई मुठभेड़ों में मार गिराते रहे। महाराणा प्रताप और राणा पूंजा की जुगलबंदी ने मुगलों को लगातार चोट देने का काम किया।

महाराणा प्रताप और राणा पूंजा के पास करीब 9000 सैनिक थे, जिसमें से 5000 से कुछ अधिक सैनिक सिर्फ भील थे। उनके पास पारंपरिक तीर-कमान ही हथियार थे, जबकि करीब 90 हजार सैनिकों की मुगल फौज के पास गोला-बारूद जैसे विध्वंसक हथियार थे, लेकिन तीर-कमान, तलवार और भालों के वार से मुगलों की सेना पर ऐसा वार हुआ कि महज 10-12 हजार सैनिक ही बचे, वो भी सिर्फ इसलिए बच पाए, क्योंकि उन्होंने घुटने टेक दिए थे। खास बात ये है कि जब महाराणा प्रताप घायल हो गए थे, तब राणा पूंजा महाराणा प्रताप की वेशभूषा में मुगलों का सामना किया और अपनी युद्धकला से उन्हें पीछे लौटने को विवश कर दिया।

दरअसल, हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भीलों ने राजपूतों के साथ मिलकर गोगुंडा की घेराबंदी करके वहाँ तैनात मुगल सेना को घेरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक तरफ राजपूतों और भीलों की टुकड़ी गुरिल्ला नीति से हमले करती और मुगलों को चोट पहुँचाती, तो दूसरी तरफ गोगुंडा की घेराबंदी मुगलों तक कोई सहायता भी नहीं पहुँचने देती। ऐसे में मुगलों की सेना पूरी तरह से बेबस होती चली गई।

किवदंतियों में कहा जाता है कि मुगल सैनिक जब अकबर से मिले, उन्होंने कहा – “बादशाह, वहाँ तो बरसात हो रही थी।” प्रचंड गर्मी में बरसात की बात सुनकर अकबर हैरत में पड़ गया, लेकिन उसे समझ आ गया कि सैनिक जिस बरसात की बात कर रहे हैं, वो महाराणा प्रताप और राणा पूंजा के वीरों की कमानों से निकले तीर थे।

उनका संघर्ष एक जनजातीय नेता के रूप में भीलों की स्वायत्तता और सम्मान के लिए था। भील योद्धाओं ने कई बार मुगल काफिलों पर हमले किए और उन्हें सफलतापूर्वक पराजित किया। राणा पूंजा की इस जुझारूपन ने मेवाड़ की सीमाओं की रक्षा सुनिश्चित की और उनकी निडरता का प्रतीक बन गया।

इतिहासकारों का मानना है कि राणा पूंजा को ‘राणा’ की उपाधि महाराणा प्रताप ने दी थी, क्योंकि उन्होंने उन्हें अपना भाई मानते हुए मेवाड़ की रक्षा में अद्वितीय योगदान दिया। मेवाड़ के राज्य प्रतीक में भी राणा पूंजा का उल्लेख है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी भूमिका को अत्यधिक सम्मानित किया गया था।

खास बात ये है कि राणा पूंजा के बाद उनके वंशजों ने भी मुगलों को पीढ़ियों तक चोट देने का काम किया। राणा पुंजा के बेटे राणा राम ने महाराणा अमर सिंह के शासनकाल के दौरान मुगल सेना पर हमले में भाग लिया, जहाँ उन्होंने मुगल सेना को लूट लिया। (श्यामलादास-भाग 2, 1987, पृष्ठ 223)। राणा राम के वंशज राणा चंद्रभान ने औरंगजेब के मेवाड़ पर आक्रमण के दौरान महाराणा राज सिंह को अपनी सेवा प्रदान की।

राणा पूंजा की वीरता को आज भी राजस्थान और भील समुदाय में गर्व के साथ याद किया जाता है। 1986 में, राजस्थान सरकार ने उनके सम्मान में ‘राणा पूंजा पुरस्कार’ की स्थापना की, जो राज्य के विशिष्ट योगदानकर्ताओं को दिया जाता है।

राणा पूँजा की पहचान को लेकर विवाद

राणा पूंजा की पहचान पर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। कुछ इतिहासकार उन्हें राजपूत मानते हैं, जबकि अधिकांश उन्हें भील समुदाय का हिस्सा बताते हैं। उनके वंशजों का यह दावा है कि वे भील नहीं थे, बल्कि वो राजपूत थे, जिन्हें भीलों का साथ प्राप्त था। उन्होंने भीलों की सैन्य टुकड़ी तैयार कर महाराणा प्रताप की सेनाओं का नेतृत्व किया। उनके भील होने के प्रमाण के रूप में उनके परिवार का जुड़ाव भील जनजाति से बताया जाता है।

महाराणा प्रताप के साथ हल्दीघाटी युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले राणा पूंजा को भील संबोधित करने पर आपत्ति जताते हुए मनोहर सिंह सोलंकी ने संभागीय आयुक्त राजेंद्र भट्ट और डूंगरपुर कलेक्टर को लिखित में शिकायत दर्ज करवाई थी। उन्होंने बताया था कि वे खुद राणा पूंजा की सोलहवीं पीढ़ी के वंशज हैं। उनका दावा है कि सोलंकी राजवंश के राणा पूंजा भीलों के सरदार थे, लेकिन इतिहास के तथ्य से परे उन्हें बार बार भील जाति से जोड़ा जाता है। लिखित आपत्ति में सोलंकी ने यह कहा सोलंकी ने दी लिखित आपत्ति में बताया कि ऐसी घटनाएं दो जातियों के बीच परस्पर सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की कोशिश है।

उन्होंने दस्तावेजों के साथ दावा किया कि महाराणा उदय सिंह का विवाह सम्बंध पानरवा के राणा हरपाल की बहन रतनबाई सोलंकिणी से रहा। महाराणा भूपाल सिंह के समय सर सुखदेप ने उल्लेखित मेवाड़ के गजट 1935 में भी पानरवा के शासकों को सोलंकी राजपूत व पदवी राणा बताया है।

1989 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा उनकी मूर्ति का अनावरण करने पर भी विवाद उत्पन्न हुआ। मेवाड़ के महाराणा महेंद्र सिंह सहित कई राजपूत वंशजों ने इसका विरोध किया और राणा पूंजा की भील पहचान को चुनौती दी।

राणा पूंजा का योगदान: एक आदर्श

राणा पूंजा का जीवन आज के समाज के लिए एक प्रेरणा है। उनका संघर्ष यह बताता है कि सच्ची वीरता और देशभक्ति जाति या पृष्ठभूमि से नहीं मापी जा सकती। उन्होंने साबित किया कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो, देश और समाज के प्रति निष्ठा सर्वोपरि होती है। उनकी कहानी न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय है। चाहे हल्दीघाटी का युद्ध हो या उसके बाद का संघर्ष, राणा पूंजा का समर्पण और साहस अद्वितीय था।

राणा पूंजा भील का जीवन बलिदान, निष्ठा और देशभक्ति का प्रतीक है। उनकी वीरता ने उन्हें न केवल मेवाड़ बल्कि पूरे भारत का महानायक बना दिया। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा और आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा लेती रहेंगी।

कभी म्यांमार में मजदूरी करने वाला सैंटियागो मार्टिन कैसे बना लॉटरी किंग: ED ने तमिलनाडु और कोलकत्ता सहित 20 से अधिक ठिकानों पर मारे छापे

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार (14 नवंबर 2024) को तमिलनाडु के लॉटरी व्यवसायी सैंटियागो मार्टिन के चेन्नई और कोयंबटूर स्थित कई ठिकनों पर छापेमारी की। इतना ही नहीं, मार्टिन और उनके दामाद आधव अर्जुन एवं अन्य सहयोगियों से जुड़े चेन्नई और कोयंबटूर, हरियाणा में फरीदाबाद, पंजाब में लुधियाना और पश्चिम बंगाल में कोलकाता के कम-से-कम 20 स्थानों की तलाशी ली गई।

चेन्नई में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की सुरक्षा कवर में ट्रिप्लिकेन, टेनाम्पेट और पोएस गार्डन में स्थित कार्यालयों की तलाशी ली गई। वहीं, कोयंबटूर में तीन स्थानों पर सुबह से शाम तक तलाशी ली गई। मार्टिन के कार्यालय, थुदियालुर के पास वेल्लाकिनार स्थित उनके आवास और कोयंबटूर में मेट्टुपालयम रोड पर मार्टिन होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज में भी तलाशी ली गई।

बता दें कि हाल ही में निचली अदालत ने मार्टिन के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने का आदेश दिया। इसके बाद मद्रास हाई कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया और ईडी को मार्टिन के खिलाफ अपनी जाँच आगे बढ़ाने की अनुमति दी थी। मद्रास हाई कोर्ट के इस निर्णय के दो सप्ताह बाद ही प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने मार्टिन के खिलाफ देश भर में 20 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी की।

दरअसल, मार्च में चुनाव आयोग ने उन कंपनियों के नामों का ऐलान किया था, जिन्होंने राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए चुनावी बॉन्ड खरीदा था। इनमें सबसे अधिक बॉन्ड फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज कम्पनी ने खरीदा था। इसका मालिक घोटाले का आरोपित सैंटियागो मार्टिन है। सैंटियागो मार्टिन की कम्पनी ने 12 अप्रैल 2019 से 24 जनवरी 2024 के बीच ₹1,368 करोड़ का राजनीतिक चंदा दिया था।

‘लॉटरी किंग’ के रूप में भी जाने जाना वाला, सैंटियागो मार्टिन का केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPIM), तमिलनाडु में सत्ताधारी द्रविड़ मुन्नेत्र कजघम (DMK), पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) और कॉन्ग्रेस पार्टी के साथ काफी करीबी रिश्ता है।

CPI(M) से सैंटियागो मार्टिन का गठजोड़

सैंटियागो मार्टिन ने वर्ष 2007 में कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र देशाभिमानी को ₹50 लाख के चार चुनावी बॉन्ड के माध्यम से ₹2 करोड़ का चंदा दिया था। जब यह मामला खुला तो पार्टी लोगों के निशाने पर आ गई। पार्टी की छवि बचाने के लिए महासचिव प्रकाश करात ने पैसा स्वीकार करने के बाद उसे लौटाने का निर्णय लिया था।

वर्ष 2016 में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के करीबी माने जाने वाले एक वरिष्ठ वकील एमके दामोदरन ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर एक मामले में सैंटियागो मार्टिन की तरफ से केस लड़ा था। मुख्यमंत्री विजयन के कानूनी सलाहकार एमके दामोदरन लॉटरी घोटाले के सिलसिले में मार्च 2018 में सैंटियागो मार्टिन के लिए कोर्ट गए थे।

DMK से भी संबंध

अक्टूबर 2010 में तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल पीएस रमन ने केरल हाई कोर्ट में सैंटियागो मार्टिन का केस लड़ा था। जब इस पर केरल सरकार ने ऐतराज किया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री करूणानिधि ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और रमन को इस मामले की पैरवी छोड़नी पड़ी थी। मालिक सैंटियागो मार्टिन ने ₹50 करोड़ रुपये खर्च करके करुणानिधि की 75वीं फिल्म के निर्माण में मदद की।

उसने इसमें स्क्रिप्ट भी लिखी थी। यह भी कहा जाता है कि ‘इलैगनन‘ नाम की एक फिल्म 3 साल तक अधर में लटकी रही, इसके बाद मार्टिन ने इसे पुनः चालू किया। इस फिल्म की कहानी लिखने के लिए करूणानिधि को ₹45 लाख का भुगतान किया गया था। सिनेमा के बड़े नामों का कहना था कि इसके बदले में सेंटिआगो को बिना किसी समस्या के लॉटरी का धंधा चलाने दिया जाता था।

जनवरी 2023 में इंडिया टुडे में छपी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सैंटियागो मार्टिन के दामाद आधव अर्जुन को DMK ने साल 2024 लोकसभा चुनावों के लिए चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में नियुक्त किया था। यह भी बताया जाता है कि अर्जुन के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री दामाद सबरीसन के साथ भी बहुत अच्छे संबंध हैं।

कॉन्ग्रेस और TMC से भी जुड़े हैं तार

वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सितंबर 2010 में केरल हाई कोर्ट में घोटाले के दागी सैंटियागो मार्टिन का केस लड़ा था। हालाँकि, उन्हें कम्युनिस्टों के विरोध के चलते मामले से नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। तक कॉन्ग्रेस के मीडिया प्रमुख जनार्दन द्विवेदी ने कहा था, “पार्टी ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है, भले ही सिंघवी इस मामले से हटने की घोषणा की है।”

‘पत्रकार’ रोहिणी सिंह ने सितम्बर 2021 में एक ‘क्षेत्रीय दल’ और एक लॉटरी माफिया के बीच एक गठजोड़ की तरफ इशारा किया था। इसके बाद दिसंबर 2021 में रोहिणी सिंह ने ट्वीट किया, “अडानी और अम्बानी को भूल जाओ। लॉटरी किंग सैंटियागो मार्टिन पर नजर रखो और उस पार्टी पर नजर रखो, जिसे वह फंड करता है। देश की राजनीति में आगे का समय बड़ा दिलचस्प है।”

G2G न्यूज की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सैंटियागो की कम्पनी फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज ने वर्ष 2017 और 2021 के बीच पश्चिम बंगाल में ₹12000 करोड़ GST दिया था। रिपोर्ट में आगे लिखा गया था, “फ्यूचर गेमिंग देश के बड़े करदाताओं में से एक है। हर बार समय पर बड़ी मात्रा में करों का भुगतान करके, एक मजबूत देश के निर्माण में इसका योगदान प्रशंसनीय है।”

सैंटियागो मार्टिन की कंपनी कंपनी लम्बे समय से पश्चिम बंगाल में ‘डियर लॉटरी’ चला रही है। नवंबर 2022 में सीबीआई ने बताया था कि तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) के मंत्री अनुब्रत मंडल और उनकी बेटी ने तीन साल में 5 बार यह लॉटरी जीती है।

क्या करती है फ्यूचर गेमिंग एंड होटल्स?

एक रिपोर्ट बताती है कि फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज की स्थापना वर्ष 1991 में सैंटियागो मार्टिन ने की थी। यह कम्पनी तमिलनाडु में शुरू हुई थी, लेकिन जब यहाँ लॉटरी बंद हो गई तो मार्टिन ने अपना अधिकांश धंधा केरल और कर्नाटक में शुरू कर दिया। इस पूरे प्रकरण के केंद्र में रहने वाला सैंटियागो मार्टिन ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ लॉटरी ट्रेड एंड अलाइड इंडस्ट्रीज का अध्यक्ष हैं।

मार्टिन की इस कम्पनी में 1000 से अधिक लोग काम करते हैं। फ्यूचर गेमिंग वर्तमान में 13 राज्यों में लॉटरी चलाती है। इन राज्यों में अभी भी लॉटरी को कानूनी मान्यता है। यह राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, नागालैंड और सिक्किम हैं।

सैंटियागो मार्टिन की यह कम्पनी ‘डियर लॉटरी’ नाम से लॉटरी चलाती है। उसकी कम्पनी फ्यूचर गेमिंग दक्षिण भारत में अपनी एक अन्य कम्पनी मार्टिन कर्नाटक और पूर्वोत्तर के राज्यों में अपनी एक अन्य कम्पनी सिक्किम लॉटरी के माध्यम से धंधा करती है।

सैंटियागो मार्टिन का ‘लॉटरी घोटाला’

सैंटियागो मार्टिन पर 1 अप्रैल 2009 से 31 अगस्त 2010 के बीच में केरल में लॉटरी टिकटों की फर्जी बिक्री के माध्यम से सिक्किम सरकार को (₹910.29 करोड़) का नुकसान पहुँचाने का आरोप है। ED ने इस विषय में बताया था, “मार्टिन और उसकी सहयोगी कंपनियों और संस्थाओं ने अप्रैल 2009 से अगस्त 2010 के बीच जीतने वाले लॉटरी टिकटों के पैसों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया था।”

तब इस मामले में एजेंसी ने उनकी ₹157.7 करोड़ की चल संपत्ति (म्यूचुअल फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट) और ₹299.16 करोड़ की अचल सम्पत्ति जब्त कर ली थी। दिसंबर 2021 में ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के चलते उसकी ₹19.59 करोड़ की संपत्ति कुर्क की थी। वर्ष 2019 में आयकर विभाग ने देश भर में ‘लॉटरी मार्टिन’ के 70 ठिकानों पर छापेमारी की थी।

म्यांमार के शहर यंगून में कभी मजदूरी करने वाला सैंटियागो मार्टिन ₹7000 करोड़ का ‘लॉटरी’ का धंधा खड़ा कर चुका है। वह लगातार पैसों की गड़बड़ी और धोखाधड़ी समेत मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में साल 2011 से जाँच एजेंसियों के राडार पर हैं।


हफ्ते में 70 घंटे काम, 1 दिन की छुट्टी भी कैंसल: Infosys के नारायणमूर्ति ने दोहराई अपनी बात, बोले- मुझे मेरे हार्ड वर्क करने पर गर्व

देश की बड़ी आईटी कंपनियों में से एक इंफोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने पिछले साल एक पॉडकॉस्ट में देश के युवाओं को 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी। उनके पॉडकॉस्ट के बाद देश में वर्किंग कल्चर पर बहुत बहसें हुईं, लेकिन नारायण मूर्ति ने इस मुद्दे पर अपनी राय नहीं बदली। उन्होंने हाल में एक मंच से 70 घंटे काम करने की बात को दोहराया और कहा कि उन्हें अपने कहे पर कोई पछतावा नहीं है।

उन्होंने सीएनएबीसी टीवी 18 के ग्लोबल लीडरशिप समिट के मंच से बात करते हुए कहा, “मुझे लगता है कि इस देश में लोगों को कठिन परिश्रम करना बहुत जरूरी है क्योंकि कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। मैं माफी चाहता हूँ। मैंने अपना ओपिनियन नहीं बदला है। मैं इस विचार को अपनी कब्र तक लेकर जाऊँगा। मुझे इतना कठिन परिश्रम करने पर बहुत ज्यादा गर्व है।”

गौरतलब है कि नारायण मूर्ति ने अक्तूबर 2023 में एक पॉडकास्ट पर कहा था कि भारत की कार्य उत्पादकता दुनिया में सबसे कम है। उन्होंने भारतीय युवाओं को सलाह दी कि उन्हें हर हफ्ते 70 घंटे काम करना चाहिए, ताकि वे चीन जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें।

मूर्ति के इस बयान पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आईं। कुछ उद्योगपतियों, जैसे JSW ग्रुप के चेयरमैन सज्जन जिंदल और ओला कैब्स के CEO भाविश अग्रवाल ने उनके विचारों का समर्थन किया। जिंदल ने कहा कि भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए अधिक मेहनत की आवश्यकता है, जबकि अग्रवाल ने कहा कि यह समय आराम करने का नहीं है। दूसरी ओर, लेखक चेतन भगत और व्यवसायी अशनीर ग्रोवर ने इस विचार का विरोध किया। उनका कहना था कि काम की मात्रा से ज्यादा उसकी गुणवत्ता महत्वपूर्ण है।

बता दें कि नारायण मूर्ति ने अपने शुरुआती करियर के दौरान 70 से 90 घंटे प्रति सप्ताह काम करने का अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता ने उन्हें सिखाया था कि गरीबी से बचने का एकमात्र तरीका कड़ी मेहनत करना है। मूर्ति ने कहा कि जब तक युवा अधिक मेहनत नहीं करेंगे, तब तक भारत अन्य विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेगा।

‘वोट जिहाद’ के ₹100+ करोड़ वाले केस में ED ने मारे छापे, गुजरात-महाराष्ट्र में हुई तलाशी: सिराज अहमद पर है गड़बड़ी का आरोप

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने महाराष्ट्र और गुजरात में ‘वोट जिहाद’ के आरोपों के बाद छापेमारी की है। यह छापेमारी महाराष्ट्र के मुस्लिम व्यापारी के खिलाफ ₹125 करोड़ के गड़बड़ी के आरोपों के बाद हुई है। इस व्यापारी ने कई लोगों के खाते लेकर उनमें यह लेनदेन किया था। भाजपा ने इस पैसे का इस्तेमाल महाराष्ट्र चुनाव में वोट जिहाद के लिए करने का आरोप लगाया था।

ED ने इस मामले में महाराष्ट्र और गुजरात में गुरुवार (14 नवंबर, 2024) को छापेमारी की है। ED की यह छापेमारी महाराष्ट्र के मुंबई और मालेगाँव में हुई है। इसके अलावा गुजरात के अहमदाबाद में ED ने छापे मारे हैं। ED को शक है कि मालेगाँव के व्यापारी सिराज अहमद ने जो 100 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी की, उसमें कुछ हवाला व्यवसाय के लोग भी जुड़े हैं।

ED ने अपनी जाँच का दायरा महाराष्ट्र के मालेगाँव से बढ़ा कर उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, ओडिशा और पश्चिम बंगाल समेत देश के बाकी हिस्सों तक फैला दिया है। ED अब 2500 से अधिक लेनदेन की जाँच कर रही है। वह देश की 170 शाखाओं में हुए लेनदेन पर छानबीन कर रही है।

एजेंसी को शक है कि जिन लोगों के खाते सिराज अहमद ने लिए थे, उनमें आया यह पैसा हवाला का था और इसका मनी लाँड्रिंग से लिंक है। वह इस पैसे का इस्तेमाल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में होने के एंगल पर जाँच कर रही है। भाजपा ने इसी को लेकर वोट जिहाद का आरोप लगाया है।

क्या है मामला?

महाराष्ट्र के मालेगाँव में एक व्यापारी सिराज अहमद पर 12 लोगों के खाते लेकर उनमें करोड़ों की गड़बड़ी की। उसने लोगों को बताया कि वह कृषि के संबंध में व्यापार चालू करना चाहता है और इसके लिए खाते चाहिए। लोगों ने जब उसके खाते दिए तो वह गड़बड़ी करने लगा।

उसने खाते हासिल करने के लोगों को नौकरी का झांसा भी दिया। उसके इस झाँसे में राहुल काले, मनोज मिसाल, प्रतीक जाधव, पवन जाधव, ललित मोरे, राजेंद्र गिरी, धनराज बच्छव, भावेश घुमरे, दिवाकर घुमरे और दत्तात्रेय कैलास जैसे 12 लोग फंस गए और अपने खाते दिए। इसके बाद उन्हें पता चला कि सिराज ने करोड़ों की गड़बड़ी की है।

मालेगाँव में छावनी पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर दीपक जाधव ने मीडिया को बताया था सिराज मालेगाँव में चाय और कोल्ड ड्रिंक्स की एजेंसी चलाता है। उसने कुछ दिन पहले अपने ड्राइवर को बताया था कि उसे किसानों को भुगतान देने के लिए अन्य लोगों के नाम से बैंक खाते चाहिए।

यह खाते मक्के के व्यापार के लिए जरूरी होने की बात उसने कही थी। उसने वादा किया था कि जो भी उसे खाते देगा, उन्हें मंडी समिति में नौकरी मिलेगी। इसके बाद ड्राइवर ने अपने समेत 11 अन्य लोगों के मालेगाँव में एक सहकारी बैंक में खाते खुलवाए। इन सभी ने अपने कागज उसे दिए थे।

ये खाते 27 सितंबर को खोले गए थे। ऑपइंडिया को मिली FIR कॉपी के अनुसार, खाताधारकों में से एक ने अपने खाते की जाँच की तो पता चला कि उसके खाते से करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ है।इसके बाद उसने बाकी लोगों से संपर्क किया।

यह सभी जब बैंक पहुँचे तो उन्हें पता चला कि उनके 12 खातों में कुल ₹90 करोड़ का लेनदेन हुआ है। उन्हें चिंता हुई कि उनके खातों का अवैध गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, इसलिए उन्होंने व्यापारी के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवा दी। अब जानकारी सामने आई है कि यह गड़बड़ी ₹125 करोड़ की है।

भाजपा ने इस पैसे का इस्तेमाल वोट जिहाद के लिए किए जाने का शक जताया है। भाजपा नेता किरीट सोमैया ने इस मामले में को लेकर चुनाव आयोग को एक पत्र भी लिखा था। किरीट सोमैया ने बताया है कि सिराज अहमद को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है। उसके साथ एक और शख्स की गिरफ्तारी हुई है।

किरीट सोमैया मालेगाँव जाकर उन लोगों से भी मिले हैं, जिनके खातों में गड़बड़ी की बात कही गई है, इन लोगों ने किरीट सोमैया से माँग की है कि उन्हें न्याय मिले। किरीट सोमैया इनके साथ शुक्रवार (15 नवम्बर, 2024) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करने जा रहे हैं।

बांग्लादेशी लड़कियों को भारत में हर महीने में ₹1 लाख: घुसपैठ के बाद देह-व्यापार का धंधा, बनवाया जाता था फर्जी ID से लेकर सिम कार्ड तक, सब धराए

बांग्लादेशी घुसपैठ और अवैध देह व्यापार के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हाल ही में बड़ा खुलासा किया है। झारखंड और पश्चिम बंगाल में की गई जाँच के बाद चार आरोपितों की गिरफ्तारी हुई, जिनमें रोनी मंडल और पिंकी बसु मुखर्जी प्रमुख हैं। ये गिरोह बांग्लादेश की लड़कियों को भारत लाता था और उन्हें देह व्यापार में धकेलता था। इसके जरिए ये गिरोह मोटी कमाई करता था। इन पैसों का लेन-देन बांग्लादेश तक होता था।

घुसपैठ और गिरोह की साजिश

रोनी मंडल को इस गिरोह का सरगना माना जा रहा है, जो बांग्लादेशी लड़कियों को अवैध तरीके से भारत लाने और उनकी तस्करी में सक्रिय भूमिका निभाता था। रोनी मंडल खुद अवैध घुसपैठिया है। वहीं, पश्चिम बंगाल की पिंकी बसु मुखर्जी की भूमिका भी कम अहम नहीं थी। वह इन लड़कियों को सिमकार्ड प्रदान करती थी, जिससे इनका नेटवर्क सुरक्षित तरीके से काम कर सके।

ईडी ने जाँच में पाया कि झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के कई रईस इस गिरोह की सेवाएँ लेते थे। इन लड़कियों के माध्यम से एस्कॉर्ट सर्विस चलाई जाती थी। इन बांग्लादेशी लड़कियों को विशेष रिसॉर्ट्स में लाकर इन लोगों की माँग पूरी की जाती थी। गिरोह का मुनाफा भी तगड़ा था, जहाँ लड़कियों को हर माह 80 हजार से एक लाख रुपए तक दिए जाते थे।

केस की शुरुआत और छापेमारी

ईडी ने 4 जून, 2024 को दर्ज एक प्राथमिकी के आधार पर अपनी जाँच शुरू की। झारखंड के बरियातू थाने में कांड संख्या 188/2024 को धोखाधड़ी, जालसाजी व विदेशी अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत केस किया था। उक्त प्राथमिकी फर्जी दस्तावेज के आधार पर भारत की सीमा में दाखिल होने से संबंधित थी। दर्ज प्राथमिकी में बरियातू थाने की पुलिस ने अपने थाना क्षेत्र के बाली रिसोर्ट से गिरफ्तार बांग्लादेशी लड़कियों को आरोपित बनाया था।

इन लड़कियों में निपाह अख्तर खुशी, पायल दास उर्फ निम्पी बरूवा, अनिका दत्ता उर्फ शर्मिन अख्तर, हासी अख्तर उर्फ हासी विश्वास, प्रवीण व झुमा शामिल थीं। सभी का पता बांग्लादेश था। यह मामला फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारत में घुसपैठ को लेकर दर्ज किया गया था। इन लड़कियों के बयानों और डिजिटल उपकरणों की जाँच से बड़े पैमाने पर घुसपैठ की पुष्टि हुई।

रोनी मंडल (47) और पिंकी बसु मुखर्जी (41) के अलावा, संदीप चौधरी और पिंटू हलधर नाम के दो अन्य आरोपितों को भी गिरफ्तार किया गया। रोनी और संदीप बांग्लादेशी नागरिक हैं, जबकि पिंकी और पिंटू भारतीय नागरिकता के तहत गतिविधियों में लिप्त पाए गए। रोनी मंडल कम से कम 42 नंबरों के जरिए बांग्लादेशी लोगों के संपर्क में था। इन लोगों के पास से फर्जी आईडी, आधार, पासपोर्ट से लेकर तमाम अवैध सामग्रियाँ बरामद हुई हैं। बता दें कि 12 नंबर को ईडी ने 17 ठिकानों पर छापेमारी करके इन्हें गिरफ्तार किया है। इन लोगों के पास से भारी मात्रा में कैश भी बरामद हुआ है।

अदालत में पेशी के दौरान ईडी ने सभी आरोपितों की सात दिनों की रिमांड माँगी, ताकि पूरे नेटवर्क का भंडाफोड़ किया जा सके। ईडी ने आरोपितों की कॉल डिटेल से कई नए नामों का पता लगाया है और जल्द ही रईस ग्राहकों की पहचान कर कार्रवाई की जाएगी।

बीवी 18 साल से कम हो तो सहमति से सेक्स भी रेप: बॉम्बे हाई कोर्ट, शरीयत वाले ’15 साल की जवानी में निकाह’ पर भी पड़ सकता है असर

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई पुरुष 18 साल से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ सहमति से भी यौन संबंध बनाता है तो उस पर बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है। कोर्ट ने रेप के आरोपित एक व्यक्ति के उस तर्क को खारिज करते हुए सजा को बरकरार रखा, उसमें उसने कहा था कि पीड़िता उसकी पत्नी और उसकी सहमति से यौन संबंध बनाया गया था।

बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर पीठ के सिंगल बेंच जज गोविंद सनप ने 12 नवंबर को पारित आदेश में कहा, “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून कि पत्नी होने के नाते संभोग को बलात्कार नहीं माना जाएगा, स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस मामले में यह कहने की जरूरत है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बलात्कार है, भले ही वह शादीशुदा हो या नहीं।”

कोर्ट ने कहा, “18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ संभोग बलात्कार है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर मौजूदा मामले में पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने के बचाव को स्वीकार नहीं किया जा सकता। यहाँ तक ​​कि अगर उनके बीच तथाकथित विवाह हुआ था, फिर भी पीड़िता द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर कि यह उसकी सहमति के खिलाफ यौन संबंध बनाया गया था, बलात्कार होगा।”

बता दें कि कोर्ट एक व्यक्ति द्वारा दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था। वर्धा जिले की एक निचली अदालत द्वारा 9 सितंबर 2021 को सुनाए गए फैसले को उसने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हालाँकि, कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

दरअसल, अपीलकर्ता पुरुष को पुलिस ने 25 मई 2019 को गिरफ्तार किया था। उसके खिलाफ एक नाबालिग लड़की ने मामला दर्ज कराया। उस दौरान नाबालिग 31 सप्ताह की गर्भवती थी। लड़की और लड़के बीच प्रेम संबंध थे। इस दौरान अपीलकर्ता ने उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए। बाद में शादी के झूठे वादे के आधार पर ऐसा करना जारी रखा।

लड़की जब गर्भवती हुई तो उसने अपीलकर्ता से विवाह के लिए अनुरोध किया। इसके बाद लड़के ने किराए पर एक मकान लिया और वहाँ पड़ोसियों की उपस्थिति में एक-दूसरे के गले में फूलों की माला डाला। उसने लड़की को बताया कि अब वह उसकी पत्नी हो गई है। इसके बाद लड़का लड़की पर गर्भपात कराने का दबाव डालना शुरू कर दिया, लेकिन उसने ऐसा करने से मना कर दिया।

लड़की के इनकार करने पर लड़के ने उसके साथ मारपीट की। इसके बाद लड़की अपने माता-पिता के घर वापस चली गई। लड़का वहाँ भी पहुँचकर हंगामा किया और उसके साथ दो बार मारपीट की। तब पीड़िता को एहसास हुआ कि लड़के ने उसके साथ केवल शादी का दिखावा किया है, क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे वह जन्म देने को तैयार नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट का नजरिया

अक्टूबर 2017 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अगर पत्नी नाबालिग है और उसके साथ सहमति से भी सेक्स किया गया है, तब भी वह बलात्कार की श्रेणी में आएगा। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने दिया था। हालाँकि, मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट के जज संजय करोल एवं जज बीआर गवई की पीठ ने ऐसे ही मामले में सेक्स संबंध को रेप मानने से इनकार कर दिया था।

मुस्लिमों में 15 साल की लड़की की निकाह की अनुमति

नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा जाए या नहीं, इसको लेकर बहस जारी है, उसी तरह की बहस मुस्लिमों में 15 साल की लड़की के निकाह को लेकर भी है। विभिन्न हाई कोर्ट ने शरीयत एवं मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए 15 साल की नाबालिग लड़की के निकाह और यौन संबंध को जायज माना है। वहीं, कुछ हाई कोर्ट ने अपराध की श्रेणी में शामिल किया है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ में बाल विवाह को सही ठहराया गया है। सितंबर 2022 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई मुस्लिम लड़की 15 साल की हो जाती है यानी प्यूबर्टी हासिल कर लेती है तो मान लिया जाता है कि वह निकाह के काबिल हो गई है। ऐसा निकाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मान्य होगी। इसी तरह का एक फैसला दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सुनाया था। 

इस विषय पर सुनवाई करते हुए अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर किसी के पास अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है और बाल विवाह इसका उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि बाल विवाह को रोकने वाला कानून पर्सनल लॉ के नियमों से ऊपर है। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल की उम्र में निकाह को एक तरह से खारिज कर दिया था।

कोर्ट ने अपने फैसले में बाल विवाह पर गाइडलाइन जारी कर कहा था कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम को किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत परंपराओं से बाधित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद नाबालिग की सगाई कराने पर भी प्रतिबंध होगा। प्यूबर्टी की उम्र और वयस्कता को लेकर कोर्ट में मामला है।

भारत के कानून के अनुसार, शादी के समय महिला की आयु कम-से-कम 18 वर्ष और पुरुष की आयु कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए। इससे नीचे की शादी को गैर-कानूनी माना गया है। बाल विवाह को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 को लागू किया। इससे पहले इसकी जगह बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 लागू था।

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 में नाबालिग लड़की के निकाह की अनुमति है। इसमें कहा गया है कि प्यूबर्टी की उम्र (जिसे 15 साल मानी जाती है) और वयस्कता की उम्र एक समान है। इस कानून की धारा 2 में कहा गया है कि सभी विवाह शरीयत के तहत आएँगे, भले ही इसमें कोई भी रीति-रिवाज और परंपरा अपनाई गई हो। 

आतंकी-इस्लामी कट्टरपंथी अब ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन के मेहमान, कश्मीर की ‘आजादी’ पर करते हैं बात: भारतीय छात्रों ने उधेड़ी बखिया, बोले- इनका हाथ पाकिस्तान के साथ

इंग्लैंड की सत्ता भारत पर से भले ही 1947 में खत्म हो गई हो पर उसका दिमाग अभी भी वहीं अटका हुआ है। इंग्लैंड जब-तब भारत के आंतरिक मामलों में अड़ाता रहता है। अब इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन ने कश्मीर की आजादी को लेकर एक बहस आयोजित करवाई है। इस बहस में कश्मीर क्यों एक स्वतंत्र देश होना चाहिए, इस पर बात की गई है।

इस मामले पर बात करने के लिए भी ऑक्सफ़ोर्ड ने इस्लामी आतंकियों और ISI से जुड़े लोगों को न्योता दिया जिन्होंने भारत के खिलाफ जहर उगला। इस बहस के विरोध में भारतीय छात्रों ने प्रदर्शन किया और ऑक्सफ़ोर्ड पर आतंक के साथ खड़े होने का आरोप लगाया।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन ने यह बहस गुरुवार (14 नवम्बर, 2024) को आयोजित करवाई। इस बहस का शीर्षक था ‘ऑक्सफोर्ड यूनियन कश्मीर की स्वतंत्रता में विश्वास करता है।’ इस नजरिए का समर्थन करने के लिए ISI के इशारे पर काम करने वाले मुजम्मिल अयूब ठाकुर और हजारों लोगों की जान लेने वाले आतंकी संगठन JKLF के प्रोफ़ेसर जाफर खान को बुलाया।

यह वही मुजम्मिल अयूब ठाकुर है जिसका पिता अयूब ठाकुर लन्दन में ISI के लिए काम करता था। वह ISI का पैसा कश्मीर में इस्लामी आतंकी संगठनों को देता था। अयूब ठाकुर ने 70000 ब्रिटिश पाउंड आतंकी सैयद सलाहुद्दीन को तक दिए थे। उसके इन कर्मों को बेटे मुजम्मिल ने ‘जिहाद’ का नाम दिया था।

मुजम्मिल अपने बाप की तरह ही कश्मीर पर पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाता रहा है। उसके ऊपर 2022 में UAPA के तहत मामला भी दर्ज किया जा चुका है। वह उस निताशा कौल के साथ भी दिखा है जो कश्मीर के हिन्दू नरसंहार को नकारती आई है और भारत के खिलाफ लिखती बोलती है।

इसके अलावा इस बहस में ज़फर खान को भी बुलाया गया। ज़फर खान यासीन मलिक के आतंकी संगठन की डिप्लोमेटिक विंग का सरगना है और इसका काम विदेशों में भारत के खिलाफ लॉबी करना है। जफर खान लन्दन में यही काम करता है। JKLF कश्मीर से हिन्दुओं को बाहर करने और उनका नरसंहार करने के लिए जिम्मेदार संगठन है।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन में हुई इस बहस को लेकर लन्दन में रहने वाले भारतीयों में गुस्सा है। भारतीय छात्रों ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन के बाहर इस बहस के दौरान प्रदर्शन भी किया। उन्होंने यहाँ नारे भी लगाए कि ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन लगातार आतंकियों का समर्थन करती है। उन्होंने यहाँ भारत माता का जयघोष भी किया।

यूनियन के भीतर भी एक भारतीय छात्र ने JKLF की पोल खोल दी और कहा कि यह वही संगठन है जिसने नरसंहार में हिस्सा लिया है। भारतीय छात्र ने आरोप लगाया कि ओक्स्फ्रोड़ यूनियन पाकिस्तान के लिए बैटिंग कर रही है। इसका एक वीडियो भी वायरल हो रहा है।

ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों ने इस आयोजन को लेकर एक पत्र भी लिखा है और कहा है कि वह इससे काफी गुस्सा और डरे हुए हैं। उन्होंने कहा है कि ऐसे संगठनों को निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए ना कि किसी का एजेंडा चलाना चाहिए। ब्रिटिश हिन्दुओं के संगठन इनसाईट यूके ने भी इसको लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी।

गौरतलब है कि इस बहस में शामिल होने को लेकर भारतीय फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री को बुलाया था लेकिन उन्होंने यहाँ जाने से मना कर दिया था। इसके अलावा भारतीय पत्रकार आदित्य राज कौल ने भी यहाँ जाने से इनकार किया था।

अंग्रेज अफसर ने इंस्पेक्टर सदरुद्दीन को दी चिट… 500 जनजातीय लोगों पर बरसने लगी गोलियाँ: जब जंगल बचाने को बलिदान हो गईं टुरिया की महिलाएँ

आजादी की लड़ाई जीतने में किसी एक वर्ग का या किसी एक समुदाय का हाथ नहीं बल्कि ये संघर्ष हर भारतीय का था। स्वतंत्रता सेनानी सिर्फ शहर या गाँव से नहीं थे बल्कि जनजातीय समुदाय के भी थे जिन्होंने देश के जंगलों को बचाने के लिए एक समय में अपनी जान की परवाह नहीं की। उनके बलिदान का एक सबसे बड़ा उदाहरण मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के टुरिया गाँव में हुआ जंगल सत्याग्रह है।

जनजातीय गौरव दिवस के मौके पर आइए जानते हैं टुरिया के जंगल सत्याग्रह के बारे में…

टुरिया में जंगल सत्याग्रह का आरंभ 1930 में तब हुआ था जब एक ओर स्वतंत्रता पाने की इच्छा हिंदुस्तानियों में चरम पर थी, दूसरी ओर विदेशी अपने सख्त कानून बनाकर देश पर कब्जा करे रखना चाहते थे। उनकी नजर भारतीयों के नमक से लेकर जंगलों की लकड़ियों तक पर थी।

ऐसे में भारतीयों ने पहले नमक आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ उनके आगे अपना विरोध दिखाया। बाद में इसी आंदोलन का एक विकसित रूप मध्य प्रदेश के जिलों में जंगल सत्याग्रह के तौर पर देखने को मिला।

अंग्रेज चूँकि नमक की भाँति ही जंगल में जाकर लकड़ी लेने वाले लोगों पर भी जुर्माना लगाते थे, इसलिए तय किया गया कि जिस तरह अंग्रेजों का बनाया नमक कानून समुद्र के पानी से नमक तैयार करके तोड़ा गया वैसे ही वो लोग उसी रास्ते पर चलते हुए जंगल कानून जंगल में जाकर घास काटकर तोड़ेंगे…।

इस तरह मध्य प्रदेश के सिवनी से जंगल-सत्याग्रह की शुरूआत 9 अक्टूबर 1930 को हुई। सत्याग्रह में जनजातीय लोगों की तादाद ज्यादा थी जिनका नेतृत्व मूकाजी सोनवाणे कर रहे थे। बैठकों में फैसला लिया गया कि सत्याग्रह के तौर पर वह लोग 16 किमी दूर स्थित चंदन बगीचे में घास काटेंगे।

काम शुरू हुआ तो ब्रिटिशों ने पहले तो अपने कानून के तहत सत्याग्रहियों पर जुर्माना लगाना शुरू किया, मगर जब जंगल जाकर घास काटने वालों की संख्या बढ़ने लगी, जब जनजातीय महिलाएँ और पुरुष हाथों में हँसिए लेकर एकत्रित होने लगे और वन कानून तोड़ने की ओर आगे बढ़ने लगे तब डिप्टी कमिश्नर सीमन ने इस आंदोलन को कुचलने का फैसला लिया। उसने ये आंदोलन रुकवाने के लिए पुलिस बल भेजा, जिसमें लगभग 100 हथियारबंद पुलिसकर्मी शामिल थे।

सीमेन का मकसद जनजातीय लोगों को सबक सिखाना था ताकि वो दोबारा अपनी आवाज न उठाएँ। इसके लिए उसने इंस्पेक्टर सदरुद्दीन को एक चिट दी जिसमें लिखा था- टीच देम लेसन। आदेश पाने के बाद सदरुद्दीन ने पहले आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मूका लहर को गिरफ्तार किया। बाद में जनजातीय लोगों की भीड़ पर खुलेआम गोली चलवाई, सिर्फ इसलिए क्योंकि वे अपने नेता को बचाने के लिए विरोध करने उतरे थे।

इस गोलीकांड के बाद वहाँ भगदड़ मची। गोलीबारी में कई लोग घायल हुए जबकि 4 लोग मारे भी गए। इनमें विरझू भाई के साथ तीन जनजातीय महिलाएँ – मुड्डे बाई, रेनो बाई, देभो बाई का नाम शामिल था। कहा जाता है कि अंग्रेजों की फौज ने इन बलिदानियों के अंतिम संस्कार तक के लिए इनके शव घरवालों को वापस नहीं किए थे। वहीं इतना का खून बहाने के बावजूद सीमेन शांत नहीं था। उसने ग्रामीणों पर मुकदमे चलवाए।

केस अदालत तक पहुँचा, मगर वहाँ खुलासा हुआ कि सीमेन ने सत्याग्राहियों पर किस तरह के संदेश के साथ हमला कराया था। इसके बाद कोर्ट में हुए बवाल के बाद सीमेन का ट्रांसफर कराया गया। वहीं टुरिया सत्याग्रह आग की तरह पूरे प्रांत में फैल गई।

लोग गोलीकांड की घटना सुनने के बाद ब्रिटिश प्रशासन की क्रूरता से अधिक वाकिफ हो गए। इस तरह पैदा हुआ जनआक्रोश स्वतंत्रता की लड़ाई में काम आया। टुरिया जंगल सत्याग्रह ने ये साबित किया जनजातीय समुदाय ने आजादी की लड़ाई में कम भूमिका नहीं निभाई। उनका बलिदान साहसिकता की मिसाल है। इस बलिदान के बाद ब्रिटिश सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ा, वहीं कई अन्य आंदोलनों को प्रेरणा मिली और जनजातीय समुदाय की आवाज राष्ट्रीय स्तर पर उठने लगी।

आज किताबों में हमें इस टुरिया जंगल सत्याग्रह से जुड़ी कम ही जानकारियाँ जानने को मिलती हैं, लेकिन भारत सरकार की इंडियन कल्चर साइट पर, ब्लॉग्स में इस ऐतिहासिक घटना के बारे में पढ़ने को मिलता है। इसके साथ लेखक, घनश्याम सक्सेना अपनी किताब ‘जंगल सत्य और जंगल सत्याग्रह’ में भी इस पूरी घटना का जिक्र करते हैं।