Tuesday, November 19, 2024
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अमेरिकी कैंपसों को ‘मेरिट’ वाले दिन लौटाएँगे डोनाल्ड ट्रंप? कॉलेजों को ‘वामपंथी सनक’ से मुक्त कराने का जता चुके हैं इरादा, जनिए क्या है उनका 7 सूत्री प्लान

सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर कोलिन रग्ग ने 11 नवंबर को अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का एक वीडियो साझा किया। इस वीडियो में ट्रंप ने अमेरिका में उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए एक व्यापक योजना की घोषणा की थी। वीडियो में ट्रम्प ने कहा कि ‘कट्टरपंथी मार्क्सवादी सनकी’ ने कॉलेजों में घुसपैठ की है और करदाताओं के पैसे को अपने वैचारिक एजेंडे को फैलाने में लगाया है।

यह वीडियो एक साल पहले राष्ट्रपति ट्रम्प के एजेंडा 47 के हिस्से के रूप में जारी किया गया था। वीडियो में बताया गया था कि ट्रंप उच्च शिक्षा के लिए क्या योजना बना रहे हैं। ट्रंप ने कहा कि उनकी योजना शैक्षणिक संस्थानों में योग्यता, पारदर्शिता और दक्षता बहाल करने की है। उन्होंने घोषणा की, “हमारा गुप्त हथियार कॉलेज मान्यता प्रणाली होगी।” यहाँ उनके 7-सूत्रीय प्रस्ताव का विवरण दिया गया है।

‘मान्यता सुधार’ के माध्यम से फंड जब्त करना

ट्रम्प ने उन संस्थानों की फंडिंग रोकने के लिए कॉलेज मान्यता प्रणाली का लाभ उठाने का वादा किया है, जो शिक्षा प्रणाली में बदले हुए प्रारूप के साथ चलने से इनकार करते हैं। ट्रंप इसे ‘वास्तविक मानक’ कहते हैं और वे इसे लागू करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उनका प्रशासन मान्यता देने वाले ‘कट्टरपंथी वामपंथियों’ को बर्खास्त करेगा, जिन्होंने इन कॉलेजों को मार्क्सवादी उन्मादियों का प्रभुत्व बनने दिया है। ट्रंप ने आगे कहा कि पारंपरिक मूल्यों को लागू करने और जवाबदेही में सुधार के लिए नए मान्यता देने वालों को नियुक्त किया जाएगा।

अमेरिकी परंपराओं की रक्षा करना और लागत में कटौती करना

अपने बयान में ट्रम्प ने ट्यूशन की बढ़ती लागत की आलोचना की। इसके लिए ‘व्यर्थ प्रशासनिक स्थिति’ को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि उनकी योजना कॉलेजों को अमेरिकी परंपराओं की रक्षा करने, फ्री स्पीच की रक्षा करने और अनावश्यक नौकरशाही में कटौती करने के लिए बाध्य करेगी। उनका उद्देश्य सस्ती शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रशासनिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना और उन पदों को खत्म करना है, जो ट्यूशन लागत को बढ़ाते हैं।

‘विविधता, समानता और समावेशन’ की स्थिति को खत्म करना

डोनाल्ड ट्रंप के बयान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह शिक्षा प्रणाली से विविधता, समानता और समावेशन (DEI) की खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने विविधता जैसी पहल को ‘मार्क्सवादी एजेंडा’ का हिस्सा बताया है और कहा है कि उनकी योजना डीईआई विभागों को खत्म करने की है।

इसके बजाय उन्होंने छात्रों को वास्तविक मूल्यों वाली शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए कम लागत वाले विकल्प, करियर सेवाएँ और कॉलेज प्रवेश परीक्षाओं का प्रस्ताव रखा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये कदम शैक्षणिक संस्थानों में पहचान की राजनीति से प्रेरित माहौल के बजाय योग्यता आधारित माहौल को बढ़ावा मिलेगा।

कॉलेजों में नस्लीय भेदभाव को रोकना

अपने प्रस्ताव में ट्रम्प ने कहा है कि वह न्याय विभाग को उन स्कूलों के खिलाफ फेडरल सिविल राइट मामले दर्ज करने का निर्देश देंगे, जो ‘समानता की आड़ में गैरकानूनी भेदभाव’ जारी रखते हैं। बता दें कि शैक्षणिक संस्थानों में एशियाई अमेरिकी और श्वेतों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव की खबरें आती रहती हैं। अगस्त 2020 में ऑपइंडिया ने बताया था कि कैसे येल विश्वविद्यालय पर एशियाई अमेरिकी के प्रति पक्षपात का आरोप लगा था।

नन-कमप्लाएंस के लिए बंदोबस्ती कराधान

इसके अलावा डोनाल्ड ट्रम्प ने अनुपालन नहीं करने वाले संस्थानों की बंदोबस्ती पर कर लगाने की योजना बनाई है। इन स्कूलों पर उनकी बंदोबस्ती की पूरी राशि तक जुर्माना लगाने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने सुझाव दिया कि उपाय को तेजी से पूरा करने के लिए बजट का उपयोग करेगा और उनका प्रशासन ‘अमेरिका विरोधी पागलपन’ को खत्म करने का प्रयास करेगा।

पीड़ितों की सहायता के लिए फंड को रिडायरेक्ट करेंगे

ट्रम्प ने शिक्षा विभागों में ‘अन्यायपूर्ण और अवैध नीतियों’ से प्रभावित लोगों के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में जब्त किए गए धन का उपयोग करने का भी प्रस्ताव रखा है। ट्रम्प के अनुसार, फंड को भेदभाव के पीड़ितों का सहयोग करने और पहचान-संचालित नीतियों से वंचित लोगों के लिए शैक्षिक पहुँच में सुधार करने के लिए पुनर्निर्देशित किया जाएगा।

छात्रों के लिए ‘वास्तविक शिक्षा’

शिक्षा को वैचारिक प्रभाव से मुक्त कराने के लिए ट्रम्प व्यावहारिक परिणामों और कैरियर की तैयारी पर केंद्रित नीतियों को शामिल किए हैं। उन्होंने इसे सुनिश्चित करने के लिए कॉलेज प्रवेश और निकास परीक्षा लागू करने की योजना बनाई है, ताकि छात्रों को वास्तव में अमेरिका में शिक्षा प्रणाली से लाभ हो।

अरबपति एलन मस्क ने भी इस वीडियो को शेयर किया है। बता दें कि डोनाल्ड ट्रम्प ने विवेक रामास्वामी के साथ मस्क को सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया है। 12 नवंबर को जारी एक बयान में ट्रम्प ने कहा कि मस्क और रामास्वामी उनके प्रशासन के लिए सरकारी नौकरशाही को खत्म करने, अतिरिक्त नियमों को कम करने, फिजूलखर्ची में कटौती करने और संघीय एजेंसियों के पुनर्गठन का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

उनकी योजना देश में उच्च शिक्षा में सुधार करना है, जिसका लक्ष्य वह राजनीतिक पूर्वाग्रहों को दूर करना है। उनका मानना ​​है कि शिक्षा प्रणाली को योग्यता, निष्पक्षता और अमेरिकी मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कॉलेजों को फंडिंग प्राप्त करने के तरीके में बदलाव करके और अनावश्यक भूमिकाओं में कटौती करके, वह कॉलेज को अधिक किफायती और व्यावहारिक बनाने की उम्मीद करते हैं।

पानी की बोतलों में थूक रहा मौलवी, लेने के लिए मुस्लिमों में मची होड़: Video वायरल, जानिए इस्लाम में ‘थूक’ कितने काम की… कैसे भगाता है ‘शैतान’

सोशल मीडिया पर एक मुस्लिम मौलवी का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें वह यहाँ मौजूद अपने शागिर्दों की बोतलों में सूरा (इस्लामिक प्रार्थनाएँ) पढ़ने के बाद थूक रहा है। यह वीडियो बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने साझा किया है।

नसरीन ने वीडियो के साथ ट्वीट किया, “एक मुल्ला सूरा पढ़ रहा है और फिर पानी पर थूक रहा है या फूंक रहा है, इसे उन लोगों को दे रहा है जो मानते हैं कि यह पानी पवित्र है और इसे पीने से वे बीमारियों और परेशानियों से मुक्त हो जाएँगे। मुल्ला सयाना है और शागिर्द बेवकूफ हैं।”

इस्लाम में थूकने का महत्व

‘इस्लाम’ में थूकने के भी खास मायने हैं। खासकर, शैतान या बुरी आत्माओं को भगाने के लिहाज से। कई हदीसों में खास तरीके से थूकने को बरकत पाने और शैतान को दूर भगाने के तरीके के तौर पर वर्णित किया गया है। सहीह-अल-बुखारी (वॉल्यूम 4, पुस्तक 54, संख्या 513) के अनुसार बाईं ओर थूकने से बुरे सपनों से छुटकारा मिलता है।

किताब के अनुसार इस्लाम के पैगंबर कहते हैं, “एक अच्छा सपना अल्लाह से जुड़ा है। वहीं बुरा सपना शैतान से। जब भी किसी को बुरा सपना आए और वह डरे तब उसे अपनी बाईं ओर थूकना चाहिए, जिससे उसे अल्लाह की शरण मिले और वह बुरी आत्मा से बच जाए।”

सहीह मुस्लिम (किताब 026, संख्या 5463) में भी कहा गया है कि बाईं ओर तीन बार थूकने से शैतान से दूरी बनी रहती है। उतमन अबु-अल के मुताबिक रसूल ने कहा कि जब शैतान इबादत में खलल डाले। कुरान की आयतें पढ़ने से रोके। जब शैतान का असर होने लगे। तो अपनी बाईं ओर तीन बार थूकने से शैतान दूर रहता है।

इस्लाम के अतिरिक्त कहीं और इस प्रकार थूकना वीभत्स और अनादर का भाव उत्पन्न करता है। किसी व्यक्ति के ऊपर थूकने पर तो हाथापाई की नौबत आ जाएगी। किन्तु इस्लाम में कई ऐसे संदर्भ मिलते हैं, जिनमें बताया गया है कि पैगंबर आशीर्वाद देने के लिए लोगों को थूकते थे।

ये संदर्भ नीचे दिए हुए हैं :

1. सहीह बुखारी (वॉल्यूम 1, किताब 12, हदीस 801) महमूद बिन अर-रबी ने कहा, “मुझे याद है अल्लाह का दूत और उसके द्वारा घर पर लाया गया मुँह में भरा पानी जो उसने मुझ पर डाल दिया।”

2. उरवा अपने लोगों के पास वापस आया और बोला, “मैं कई राजाओं, सीजर, खुसरो और अन-नजाशी के पास गया किन्तु कोई भी उतना सम्माननीय नहीं है जितना मोहम्मद अपने साथियों में। यदि वह थूकेंगे तो थूक उनमें से किसी के हाथ में फैल जाएगा जो उसे अपने चेहरे और त्वचा में रगड़ लेगा।” (सहीह-अल-बुखारी, वॉल्यूम 3, किताब 50, हदीस 891)

3. जबिर-बिन-अब्दुल्लाह का वक्तव्य, “मेरी बीवी भी पैगंबर के पास एक लोई लेकर आई और पैगंबर ने उसमें थूका जिससे अल्लाह का आशीर्वाद प्राप्त हो। इसके बाद पैगंबर ने हमारे माँस पकाने वाले बर्तन में भी थूका और उसमें भी अल्लाह की मेहरबानियाँ बिखेर दी।” (सहीह अल-बुखारी, वॉल्यूम 5, किताब 59, हदीस 428)

4. इस्लामिक हदीसों में यह भी संदर्भ मिलता है कि मोहम्मद जिस पानी से स्वयं को साफ करते थे, लोग उस पानी का उपयोग अपने लिए करते थे। (सहीह अल-बुखारी, वॉल्यूम 1, किताब 8, हदीस 373)

5. अबु जुहैफा का कहना है, “मैंने बिलाल को पैगंबर द्वारा उपयोग में लाए गए पानी का उपयोग करते हुए देखा। बाकी लोग भी वही पानी उपयोग कर रहे थे और अपने शरीर पर रगड़ रहे थे। कुछ एक-दूसरे के हाथों पर लगे पानी का उपयोग करने के लिए आतुर थे।” (सहीह अल-बुखारी, वॉल्यूम 1, किताब 8, हदीस 373)

‘अब्दुल फिर तुम्हारा जीजा बन गया’: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी-जमाई को इस्लामी कट्टरपंथियों ने बनाया निशाना, जानिए किससे हुई है अंजलि की शादी

लोकसभा स्पीकर और कोटा के सांसद ओम बिरला की बेटी अंजलि बिरला की मंगलवार (12 नवम्बर, 2024) को शादी सम्पन्न हो गई। उनकी शादी में देश के दिग्गज नेता भी पहुँचे। भारतीय रेल लेखा सेवा की अधिकारी अंजलि बिरला की शादी उनके दोस्त अनीश राजानी से हुई है।

अनीश राजानी अंजलि के दोस्त थे और दोनों लम्बे समय से एक दूसरे को जानते हैं। अनीश सिंधी हिन्दू परिवार से आते हैं। कोटा में अनीश के परिवार का बड़ा कारोबार है। बताया गया है कि अनीश का परिवार हिन्दू हिट कार्यों में जुटा है और उन्होंने कई मंदिर भी बनवाए हैं।

अनीश के साथ विवाह का यह कार्यक्रम कोटा के ही GMA टाउनशिप में सम्पन्न हुई हैं। अंजलि के विवाह में राजस्थान CM भजनलाल शर्मा और मध्य प्रदेश के CM मोहन यादव भी शामिल हुए। अंजलि बिरला और अनीश राजानी की शादी की भी कुछ तस्वीरें सामने आई हैं। दोनों का साथ में डांस करने का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है।

अंजलि बिरला की शादी को लेकर एक्स (पहले ट्विटर) पर अब कुछ मुस्लिम हैंडल झूठ फैलाने में जुट रहे हैं। अंजलि और अनीश का नाम डाल कर यह धारणा बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि अंजलि बिरला की शादी एक मुस्लिम व्यक्ति से हुई है। इसके साथ ही मुस्लिम अंजलि बिरला को लेकर अपमानजनक बातें भी कर रही हैं।

ट्विटर पर लगातार झूठ फैलाने वाले इस्लामी कट्टरपंथी अली सोहराब ने भी यही प्रयास किया। उसने अनीश नाम को ‘अनीस’ लिख कर पेश किया और यह दिखाने की कोशिश की कि वह सिन्धी हिन्दू ना होकर एक मुस्लिम हैं। अली सोहराब के अलावा भी कई मुस्लिम हैंडल ऐसे ही आपत्तिजनक पोस्ट किए।

वहीं तनवीर नाम के एक शख्स ने लिखा कि आखिर क्यों मुस्लिम विरोधी नेता अपने दामाद अनीस और मुख्तार चुनते हैं। उसके पोस्ट के नीचे इस्लामी कट्टरपंथियों ने काफी भद्दे कमेन्ट किए। एक यूजर ने लिखा, “क्योकि हममें 12 बच्चे करने की क्षमता होती है।”

वहीं इम्तियाज अहमद नाम के शख्स ने DNA ही मुस्लिम बता डाला। एक और मुस्लिम मुबीन ने इसे लव जिहाद करार दिया और कहा कि मुल्ले बड़े घरों में लव जिहाद करते हैं।

इस्लामी कट्टरपन्थियों के इन ट्वीट के बाद कई लोगों ने स्पष्ट किया कि जैसा यह दावा कर रहे हैं, वैसा कुछ नहीं है और सच्चाई बताई।

बंद नहीं होगा बुलडोजर एक्शन, जानिए अब कैसे अवैध निर्माण किए जाएँगे समतल: सुप्रीम कोर्ट ने दिया है जो फैसला उसको बिंदुवार समझिए

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 नवंबर 2024) को बुलडोजर की कार्रवाई को असंवैधानिक बताया और कहा कि इमारतों को केवल इसलिए गिराना गैर-कानूनी है क्योंकि वह अपराध के आरोपित व्यक्ति का है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बुलडोजर की कार्रवाई कब हो सकती है और कब नहीं, इसको लेकर एक विस्तृत निर्देश भी जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि अधिकारी किसी आरोपित व्यक्ति के अपराध या निर्दोषता का निर्धारण नहीं कर सकते हैं और ना ही सजा के रूप में ऐसे व्यक्ति के घर को ध्वस्त कर सकते हैं। इस काम को असंवैधानिक बताते हुए पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति का अपराध निर्धारित करने और उसे दंडित करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की है।

कोर्ट ने माना कि अगर कोई दोषी है, तब भी उस व्यक्ति के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई नहीं हो सकती, क्योंकि कार्यपालिका की यह कार्रवाई अवैध है। ऐसा करना कार्यपालिका द्वारा कानून को अपने हाथ में लेने के समान होगा। कोर्ट ने कहा कि किसी का घर ध्वस्त करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार उल्लंघन है और यह आरोपित के परिवार को सामूहिक दंडित करने के समान है।

पीठ ने कहा कि हालाँकि कानून और व्यवस्था बनाए रखना और कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना राज्य का दायित्व है, लेकिन राज्य द्वारा ऐसी शक्ति का मनमाना प्रयोग नहीं किया जा सकता है और किसी व्यक्ति की संपत्ति को मनमाने ढंग से उससे नहीं छीना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका किसी मामले में न्यायपालिका को रिप्लेस नहीं कर सकता।

निर्देश का पालन नहीं करने पर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। इसके साथ ही उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्याय करने की सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए बुलडोजर की कार्रवाई को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि आरोपित व्यक्ति के घर/इमारत को तोड़ने से पहले उसकी सूचना दी जानी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि तोड़फोड़ की कार्रवाई के बीच प्रभावित व्यक्ति को अपील करने का समय दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने आगे कहा, “महिलाओं, बच्चों और वृद्धों को रात भर सड़कों पर घसीटते हुए देखना कोई सुखद दृश्य नहीं है। अगर अधिकारी कुछ समय के लिए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि उसके निर्देशों का उल्लंघन करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर न्यायालय की अवमानना ​का मुकदमा चलेगा। इसके साथ ही ऐसे अधिकारियों को ध्वस्त की गई संपत्ति को अपनी लागत पर बहाल करना। इसके साथ ही तोड़फोड़ के लिए उन्हें मुआवजा भी देना होगा।

कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके द्वारा जारी दिशा-निर्देश सड़कों, नदी तटों आदि पर बने अवैध इमारतों या संरचनाओं के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई पर लागू नहीं होंगे। कोर्ट ने कहा कि ये निर्देश सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे जाएँगे।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश

  1. यदि तोड़फोड़ का आदेश दिया जाता है तो संबंधित व्यक्ति को इसकी सूचना देनी होगी। इसके साथ ही उसे इस आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए समय देना होगा।
  2. कारण बताओ नोटिस के बिना तोड़फोड़ नहीं होगी। नोटिस को इमारत के मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा भेजना होगा। इसके साथ ही जिस इमारत को तोड़ा जना है, उस पर चिपकाना होगा। तोड़फोड़ की कार्रवाई करने से पहले नोटिस की तारीख से कम-से-कम 15 दिन का समय देना होगा।
  3. नोटिस में तोड़फोड़ के कारणों को को बताना होगा। यानी यह बताना होगा कि किस नियम के उल्लंघन पर यह कार्रवाई हो रही है। नोटिस में यह बताना होगा कि किस तारीख पर प्रभावित पक्ष के लिए व्यक्तिगत सुनवाई तय की गई है और यह किसके (किस प्राधिकारी) के समक्ष तय की गई है। इसमें उन दस्तावेज़ों की सूची भी शामिल होनी चाहिए, जिन्हें नोटिस प्राप्तकर्ता को उत्तर देते समय प्रदान करना होगा।
  4. ऐसे नोटिसों को पिछली तारीख में भेजने के किसी भी आरोप को रोकने के लिए उसका सम्मन जिले के कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को ईमेल द्वारा भेजा जाएगा। मेल की प्राप्ति की पुष्टि वाला एकनॉलेजमेंट कलेक्टर/डीएम के कार्यालय से भी जारी करना होगा। कलेक्टर/डीएम को इसके लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने और एक ईमेल पता निर्दिष्ट करना है। यह ईमेल आज से एक महीने के भीतर भवन नियमों और विध्वंस के प्रभारी सभी नगर निगम और अन्य अधिकारियों को सूचित करना होगा।
  5. तीन महीने के भीतर एक डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाना है जहाँ ऐसे नोटिस, जवाब और पारित आदेश का विवरण उपलब्ध होगा।
  6. नामित प्राधिकारी प्रभावित व्यक्ति को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देगा और ऐसी सुनवाई का विवरण दर्ज किया जाएगा।
  7. एक बार अंतिम आदेश पारित होने के बाद उसे जवाब देना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना के निर्माण का अपराध समझौता योग्य है। यदि संरचनात्मक निर्माण का केवल एक हिस्सा अवैध पाया जाता है तो इसकी जाँच की जानी चाहिए कि तोड़फोड़ ही इसका एकमात्र उपाय क्यों है। इस प्रकार पारित आदेश (यह निर्धारित करने पर कि विध्वंस की आवश्यकता है या नहीं) डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किए जाएँगे।
  8. तोड़ने के आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाना चाहिए। संपत्ति को ध्वस्त करने का कदम केवल 15 दिन की अवधि बीत जाने के बाद ही उठाया जा सकता है, यदि व्यक्ति ने अवैध संरचना को हटाए नहीं या यदि किसी अपीलीय निकाय ने इस पर रोक नहीं लगाई है। केवल अनाधिकृत और समझौता योग्य नहीं पाए जाने वाले निर्माण को ध्वस्त किया जाएगा।
  9. तोड़फोड़ से पहले संबंधित प्राधिकारी द्वारा दो पंचों (गवाहों) द्वारा हस्ताक्षरित एक विस्तृत निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
  10. तोड़फोड़ की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाएगी। वीडियो रिकॉर्डिंग को सुरक्षित रखना होगा। एक विध्वंस रिपोर्ट तैयार करना होगा, जिसमें यह दर्ज किया जाएगा कि किन अधिकारियों/पुलिस अधिकारियों/सिविल कर्मियों ने विध्वंस की कार्रवाई में भाग लिया था। इसे संबंधित नगर निगम आयुक्त को भेजी जाएगी। इस रिपोर्ट को डिजिटल पोर्टल पर भी प्रदर्शित करना होगा।

डाक विभाग को ‘अतिक्रमणकारी’ बता रहा था वक्फ बोर्ड, केरल हाई कोर्ट ने सजा देने से किया इनकार: कहा- उन पर नहीं चलेगा मुकदमा जिनका कब्जा 2013 से पुराना

केरल हाई कोर्ट ने एक हालिया फैसले में कहा है कि उन लोगों पर वक्फ सम्पत्ति कब्जा करने का मुकदमा नहीं चलेगा जहाँ कब्जा 2013 से पहले का है। हाई कोर्ट ने कहा है कि वक्फ सम्पत्ति पर कब्जा करने के मामले में सजा का कानून 2013 में आया था, ऐसे में इससे पहले के मामलों पर यह लागू नहीं हो सकता।

केरल हाई कोर्ट के जस्टिस पी वी कुन्हीकृष्णन ने यह निर्णय दिया है। हाई कोर्ट ने इसी के साथ उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी रोक दी जिन पर वक्फ की सम्पत्ति पर 1999 से कब्जा करने का आरोप लगाया गया था। इसी के साथ वक्फ बोर्ड का आपराधिक कार्रवाई का दावा भी खत्म हो गया।

यह मामला केरल वक्फ बोर्ड ने दायर किया था। वक्फ बोर्ड ने केरल के कोझिकोड जिले के डाक विभाग पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने वक्फ की एक सम्पत्ति पर कब्जा किया और डाकखाना चलाने के लिए वक्फ बोर्ड की अनुमति नहीं ली। यह डाकखाना 1999 में खोला गया था। वक्फ बोर्ड ने 2016 में डाक विभाग को अतिक्रमणकारी बता दिया।

वक्फ बोर्ड ने आरोप लगाया कि इस विभाग के कर्मचारियों ने अपराध किया है। वक्फ बोर्ड ने इस मामले में विभाग के दो कर्मचारियों पर वक्फ कानून की धारा 52A के तहत कार्रवाई की माँग की थी। इस धारा के तहत यदि कोई व्यक्ति बिना वक्फ बोर्ड की अनुमति के उसकी किसी सम्पत्ति का ट्रांसफर, खरीद-बिक्री या फिर कब्जा करता है, तो उसे 2 साल तक की हो सकती है।

हाई कोर्ट के सामने वक्फ के खिलाफ डाक विभाग के कर्मचारियों ने दलील दी थी कि वह 2013 से पहले उस सम्पत्ति में थे जिसे वक्फ बताया गया है। ऐसे में उनके ऊपर आपराधिक कार्रवाई का मामला नहीं बनता है। उन्होंने हाई कोर्ट से अपने खिलाफ कार्रवाई खत्म करने की माँग की थी।

केरल हाई कोर्ट ने उनकी इस दलील को सही पाया। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “वक्फ एक्ट पर गौर करने से यह नहीं पता चलता कि जो व्यक्ति इसकी धारा 52A के लागू होने से पहले भी वक्फ संपत्ति पर कब्जा में रहा है, क्या उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। स्पष्ट तौर पर डाक विभाग के पास वक्फ एक्ट की धारा 52A लागू होने से पहले भी संपत्ति का कब्जा था। डाकघर 1999 से काम कर रहा था। इसलिए मेरा मानना ​​है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा नहीं चल सकता।”

रोज हिंदुत्व को गरियाती है ‘मेकअप इतिहासकार’, एक दिन हिजाब पर मुँह खोला तो पिल पड़े इस्लामी कट्टरपंथी: लिबरल नहीं आए बचाने, कान पकड़ बोली- बोलने से पहले 2 बार सोचूँगी

इतिहास के साथ रोज छेड़छाड़ करते हुए हिन्दू प्रथाओं और राजा महाराजों को बदनाम करने वाली कथित इतिहासकार रुचिका शर्मा इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गई। रोज हिन्दुओं को गालियाँ देने वाली रुचिका शर्मा ने एक बार इस्लाम और हिजाब को लेकर हाल ही में लिखा और फिर उसे हफ़्तों तक मुस्लिमों और ‘लिबरल’ समुदाय से गालियाँ और ट्रोलिंग झेलनी पड़ गई।

रुचिका शर्मा को इसके बाद पता चल गया कि हिन्दुओं के अलावा बाकी समुदाय सहिष्णु नहीं हैं और उसने अब उन पर ना बोलने की कसम खा ली है। रुचिका शर्मा का रोना सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहा। हिन्दुओं और हिन्दू इतिहास के खिलाफ लिखे गए उसके सभी लेख और वीडियो को धड़ाधड़ शेयर करने वाले ‘लिबरल’ भी इस बार उसके बचाव में नहीं आए।

उलटे कुछ उस पर ही हमलावर हो गए। इस्लामी कट्टरपंथियों और लिबरलों से अच्छी खासी बेइज्जती पाकर रुचिका शर्मा ने समाचार वेबसाइट द प्रिंट से कहा, “मेरे साथ जो हुआ, वह बहुत कुछ बताता है। धमकियों के बाद बाद मुझे डर लग रहा है। अगली बार, मैं हिंदू धर्म के अलावा शायद किसी और मजहब पर चर्चा करने से पहले दो बार सोचूँगी।”

क्या था पूरा मामला?

यह पूरा मामला 3 नवंबर, 2024 को चालू हुआ जब रुचिका शर्मा ने इस्लामी देशों में जबरदस्ती हिजाब पहनाए जाने को लेकर बात रखी। शर्मा ने ईरानी-अमेरिकी पत्रकार मसीह अलीनेजाद का एक ट्वीट कोट करते हुए उस ईरानी छात्रा की तारीफ की जिसने हिजाब के विरोध में अपने सारे कपड़े उतार दिए थे।

रुचिका शर्मा ने लिखा, “मुझे इस महिला परगर्व है। यह आपको रोज़ाना याद दिलाता है कि हिजाब उत्पीड़न का प्रतीक है। इसकी शुरुआत महिलाओं के विरोध से हुई है और अबइसे कई महिलाओं पर अत्याचार करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।”

इसके बाद रुचिका शर्मा ने अपने एक पुराने लेख का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने हिजाब की दमनकारी प्रकृति और इसकी उत्पत्ति के बारे में लिखा था। रुचिका शर्मा ने कुछ लोगों से बहस की और बताया कि कैसे हिजाब दमनकारी है और कई तर्क दिए।

हिजाब पर बोलते ही रुचिका शर्मा ने अपने लिए समस्याओं का पहाड़ खड़ा कर लिया। इसके बाद इस्लामी कट्टरपंथी और कथित तौर अपने आप को ‘प्रोग्रेसिव’ बताने वाले मुसलमान पिल पड़े। हिजाब और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बात करने के लिए शर्मा को 10 दिनों तक तक बेरहमी से ट्रोल किया गया और धमकियाँ दी गईं।

रुचिका शर्मा को हिजाब वाले मसले में ईशनिंदा तक का आरोपित बता दिया गया। यह तब हुआ जब उसने एक कमेंट में ईश्वर को ‘आकाश में रहने वाला अदृश्य बर्गर’ बताया। यहाँ तक कि फिल्म लेख और इस्लामी कट्टरपंथी दारेब फारुकी ने उसे निशाने पर ले लिया।

कई लोगों ने ट्विटर पर रुचिका शर्मा के खिलाफ अभियान चलाया और गिरफ्तार करने तक की माँग की। रुचिका के खिलाफ भद्दी टिप्पणियाँ की गईं। इन सब के बीच वह कोई लिबरल और कथित ‘बुद्धिजीवी’ रुचिका के बचाव में नहीं आए जो हिन्दुओं पर लिखे गए उसके उल्टे-सीधे लेख को नाचते गाते हुए साझा किया करते थे।

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस बार रुचिका की आलोचना करने वाले बहुसंख्यक हिन्दू नहीं थे। इस बार रुचिका इस्लामी कट्टरपन्थियों के हत्थे चढ़ गई थीं। इतिहास गवाह है ऐसे मामले कट्टरपन्थियों ने मात्र एक पोस्ट के कारण दरजी कन्हैया लाल जैसे व्यक्तियों की हत्या तक की है।

सच्चाई का पता चला तो प्रिंट से रोई रुचिका शर्मा

रुचिका शर्मा को इसके बाद उस सच्चाई का पता चल गया तो हमेशा भारत के वामपंथी और लिबरल रेत के भीतर दबाने की कोशिश करते हैं। यह सत्य है कि यदि आप हिन्दुओं के खिलाफ बोलेंगे तो सारे आपके समर्थन में खड़े होंगे, यहाँ तक कि कोर्ट कचहरी की लड़ाई भी लड़ लेंगे।

लेकिन जैसे ही आप इस्लाम के किसी आयाम की आलोचना करेंगे तो आप अपने आप को अकेला पाएँगे। अपनी सुविधानुसार लिबरल जमात उसे दूसरे धर्म का मसला बता कर निकल लेगी। इस मामले में मुस्लिम लिबरल तुंरत कट्टरपंथी बन जाएँगे और आपको लताड़ा जाएगा। इस सत्य का ज्ञान होने के बाद रुचिका शर्मा ने इस जमात की शिकायत द प्रिंट वेबसाईट में की।

उसने कहा, “हिजाब के खिलाफ बोलने के बाद से मेरा यह सबसे बड़ा अकेलापन का दौर है। जेएनयू के मेरे कई बुद्धिजीवी जो मेरे साथी थे, किसी ने भी मेरे समर्थन में कुछ नहीं कहा।” रुचिका ने बताया कि जब उसने 2023 में सती प्रथा पर वीडियो बनाया था, तब यही सब दौड़ दौड़ कर उसकी प्रशंसा कर रहे थे।

इस्लाम पर बोलने के खतरों और हिन्दुओं की सहनशीलता को देखने के बाद रुचिका शर्मा ने ठान लिया है वह अब बाकी मजहबों को लेकर नहीं बोलेगी। उसने प्रिंट से साफ़ तौर पर कहा कि हिन्दू धर्म के अलावा अब वह किसी मजहब पर बोलने के पहले दो बार सोचेगी।

कौन है रुचिका शर्मा?

वैसे तो ये बताना कठिन है लेकिन ऐसे समझिए कि रुचिका अपने आप को इतिहासकार बताती है। उसका कहना है कि वह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़ी हुई है और इतिहास को बोरिंग नहीं बल्कि मजेदार तरीके से बताती है। वह यूट्यूब पर इतिहास के पाठ पढ़ाने का दावा करती रहती है, इस बीच मेकअप भी करती है।

मेकअप करने के साथ किए इस मजाक को रुचिका शर्मा इतिहास पढ़ाना बताती है। वह अपने निजी विचार इतिहास के तौर पर लोगों को समझाती है। आमतौर पर देश के बाकी लिबरलों की तरह उसके निशाने पर हिन्दू धर्म, उनके रीति रिवाज और हिन्दू राजा महाराजा होते हैं। वह भी इस्लामी आक्रान्ताओं, जैसे कि औरंगजेब आदि पक्षधर है।

हिन्दुओं के खिलाफ सालों से लिख रही रुचिका शर्मा

रुचिका शर्मा के एक लेख को स्क्रॉल ने झूठे दावे पेश करने के चलते हटा दिया था। 2017 में लिखे गए इस लेख में रुचिका शर्मा ने दावा किया था कि रानी पद्मावती को राजपूत राजकुमार ने बलि चढ़ाया था, न कि इस्लामी आक्रांता अला-उद-दीन खिलजी ने। लेख को बाद में हटा दिया गया क्योंकि इसमें इतिहास के बारे में गलत तथ्य प्रस्तुत किए गए थे।

रुचिका शर्मा मुगल शासकों औरंगजेब और टीपू सुल्तान की भी प्रबल समर्थक है और यहाँ तक ​​कि अपने ट्वीट और अपनी विचारधारा में उनकी बड़ाई करती है। गौरतलब यह है कि वामपंथियों और लिबरलों के मनगढ़ंत दावों को छोड़कर इस इस्लामी आक्रांताओं के कामों पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।

रुचिका शर्मा यह तक दावा करती हैं कि सोमनाथ मंदिर पहले एक बौद्ध हॉल हुआ करता था। कहीं वह दावा करती है कि चाणक्य असली नहीं थे। इसके अलावा वह सती प्रथा को लेकर भी काफी दावे करती रही है। हालाँकि तब रुचिका को कोई डर नहीं लगा लेकिन अब सच्चाई से उसका सामना हो गया है।

मेरठ में 30 परिवारों ने की घर वापसी, हवन-पूजा कर फिर से बने हिंदू: पादरी बिज्जू मैथ्यू ने लालच दे बनाया था ईसाई, नेटवर्क मार्केंटिंग की तरह चला रहा था धर्मांतरण का रैकेट

उत्तर प्रदेश के मेरठ में ईसाई बने 150 लोगों ने घर वापसी करते हुए हिंदू धर्म अपना लिया है। 10 नवंबर को आयोजित एक समारोह में इन लोगों को पूरे वैदिक रीति-रिवाज से उनकी घर वापसी करवाई गई। इन सभी लोगों को कुछ दिन पहले पास्टर बिज्जू मैथ्यू ने लालच देकर ईसाई धर्म में धर्मांतरित कराया था। गोलाबाढ़ गाँव के रहने वाले 30 परिवारों के ये लोग प्रार्थना सभाओं में नियमित भाग लेते थे।

मूलत: केरल के रहने वाले बिज्जू मैथ्यू ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि उसने लगभग 300 परिवारों का धर्म परिवर्तित कराया है। इस दौरान वह लोगों को नकदी, शादी कराने, शिक्षा और इलाज कराने का लालच देता था। वह अपने समूह के लोगों के साथ आसपास के गाँवों में जाता था और गरीब लोगों के घर पहुँचकर उन्हें विभिन्न तरह का प्रलोभन देता था और उन्हें प्रार्थना सभा में आने के लिए कहता था।

गरीब लोगों को धर्मांतरण के लिए बिज्जू और उसकी पत्नी लड़का-लड़की की शादी कराने के लिए चर्च द्वारा खर्च उठाने, नकद पैसे देने और बीमारी दूर करने का लालच देकर ब्रेनवॉश करते थे। इसके बाद धर्मांतरित व्यक्ति को और लोगों को लाने के लिए कहा जाता था। इसे नेटवर्क मार्केटिंग की तरह अंजाम दिया जा रहा था। पास्टर बिज्जू को 20 अक्टूबर गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वह जेल में है।

यह मामला मेरठ के कंकरखेड़ा थाना क्षेत्र के रोहटा रोड पर विकास एनक्लेव कॉलोनी है। पादरी बीजू मैथ्यू अपने परिवार के साथ इस कॉलोनी में पिछले करीब 2.5 महीनों से रह रहा था। वह अपने घर पर हर रविवार को प्रार्थना सभा का आयोजन करता था। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते-जाते रहते थे। इससे स्थानीय लोगों को संदेह हुआ और उन्होंने इसकी सूचना पुलिस और हिंदू संगठनों को दी थी।

हिंदू संगठनों ने 20 अक्टूबर को जब उसके घर पर पहुँचे थे, तब वह प्रार्थना सभा में आए लोगों से कह रहा था, “जो तुमसे प्यार करे उसको प्यार करो। आज करवाचौथ का दिन है ,लेकिन परिवार तुमसे प्यार नहीं करता, परमेश्वर करता है इसलिए परमेश्वर की शरण में आओ। तुम्हें यीशु की पूजा करनी है। पैसा क्या चीज है? जो तुम चाहोगे, वह सब मिलेगा। तुम्हारे देवता क्या दे पाए आज तक?”

अधिकतर जाटव समाज से जुड़े लोगों को भड़काते हुए बिज्जू कह रहा था, “समाज में तुम्हें इज्जत तक नहीं मिलती। यीशु की शरण में चले आओ। यहाँ सब कुछ मिलेगा तुम्हें।” हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों ने आरोप लगाया था कि बिज्जू और उसकी पत्नी पिछले 15 साल से मेरठ के अलग-अलग इलाके में किराए पर मकान लेते हैं और वहाँ पर प्रार्थना सभा आयोजित करके लोगों को ईसाई में धर्मांतरण करवाते हैं।

ईसाई में धर्मांतरण के लिए बिज्जू तीन लालच देता था। पहला, धर्मांतरण करने वाले परिवार के लड़का या लड़की की शादी करवाने का खर्च चर्च के लोग उठाएँगे। दूसरा, धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति या परिवार को खुद का रोजगार करने के लिए 2 से 5 लाख रुपए तक की मदद देने का वादा करता था। तीसरा, बीमारियाँ ठीक करने के लिए पवित्र जल और झाड़-फूँक का वादा करते थे।

ऐसी ही धर्मांतरित महिला ने कहा था, “हमसे कहा जाता था कि जो कुछ हम सीखते हैं, उसको आगे भी 2 लोगों को बताना और सिखाना है। उन्हें परमेश्वर की कृपा और उसके चमत्कारों के बारे में बताना है।” इस तरह से यह नेटवर्क बनता चला जाता था। एक आदमी का धर्म बदलता तो वो दूसरे आदमी को धर्मांतरण के लिए तैयार करता। उनका फोकस गरीब और महिलाओं पर होता है।

जिसे BJP बता रही ‘वोट जिहाद’ का प्लान, उसके लिए मोहम्मद सिराज ने झूठ बोल 12 हिंदुओं से लिए बैंक अकाउंट: ₹90 करोड़ का ट्रांजेक्शन, जानिए FIR की डिटेल

महाराष्ट्र के मालेगाँव में लोगों को नौकरी का झांसा देकर उनके खाते लेने वाले सिराज अहमद के बारे में नए खुलासे हुए हैं। सिराज अहमद के खिलाफ 12 लोगों ने गड़बड़ी की FIR दर्ज करवाई है। इस मामले में भाजपा नेता ने ‘वोट जिहाद’ का आरोप लगाया है।

सिराज अहमद पर आरोप है कि उसने 12 लोगों के खाते का दुरूपयोग किया और ₹90 करोड़ की गड़बड़ी की। उसने लोगों को बताया कि वह कृषि के संबंध में व्यापार चालू करना चाहता है और इसके लिए खाते चाहिए। लोगों ने जब उसके खाते दिए तो वह गड़बड़ी करने लगा।

रिपोर्ट्स में बताया गया है कि उसने खाते हासिल करने के लोगों को नौकरी का झांसा भी दिया। उसके इस झाँसे में राहुल काले, मनोज मिसाल, प्रतीक जाधव, पवन जाधव, ललित मोरे, राजेंद्र गिरी, धनराज बच्छव, भावेश घुमरे, दिवाकर घुमरे और दत्तात्रेय कैलास जैसे 12 लोग फंस गए और अपने खाते दिए। इसके बाद उन्हें पता चला कि सिराज ने करोड़ों की गड़बड़ी की है।

यह पता चलने के बाद छावनी पुलिस स्टेशन में सिराज के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जहन भारतीय न्याय संहिता की धारा 3(5), 316(5), 318 (4) (धोखाधड़ी), 336(3), 340(2) और 338 (जालसाजी) के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

मालेगाँव में छावनी पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर दीपक जाधव ने मीडिया को बताया है कि वह इन 12 लोगों के खातों के माध्यम से किए गए लेन-देन के विवरण की जाँच कर रहे हैं। अभी तक इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है।

जाधव ने बताया कि सिराज मालेगाँव में चाय और कोल्ड ड्रिंक्स की एजेंसी चलाता है। उसने कुछ दिन पहले अपने ड्राइवर को बताया था कि उसे किसानों को भुगतान देने के लिए अन्य लोगों के नाम से बैंक खाते चाहिए। यह खाते मक्के के व्यापार के लिए जरूरी होने की बात उसने कही थी। उसने वादा किया था कि जो भी उसे खाते देगा, उन्हें मंडी समिति में नौकरी मिलेगी।

इसके बाद ड्राइवर ने अपने समेत 11 अन्य लोगों के मालेगाँव में एक सहकारी बैंक में खाते खुलवाए। इन सभी ने अपने कागज उसे दिए थे। ये खाते 27 सितंबर को खोले गए थे। ऑपइंडिया को मिली FIR कॉपी के अनुसार, खाताधारकों में से एक ने अपने खाते की जाँच की तो पता चला कि उसके खाते से करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ है।

इसके बाद उसने बाकी लोगों से संपर्क किया। यह सभी जब बैंक पहुँचे तो उन्हें पता चला कि उनके 12 खातों में कुल ₹90 करोड़ का लेनदेन हुआ है। उन्हें चिंता हुई कि उनके खातों का अवैध गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, इसलिए उन्होंने व्यापारी के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवा दी।

भाजपा नेता किरीट सोमैया ने इस घटना का संज्ञान लिया है और चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कहा है कि इस पैसे का इस्तेमाल ‘वोट जिहाद’ के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि अक्टूबर,2024 में सैकड़ों करोड़ रुपये के बेनामी लेन-देन हुए हैं। कुछ पैसे का इस्तेमाल चुनाव, वोट जिहाद के लिए किया गया होगा।”

उन्होंने कहा, “कुल 17 बैंक खातों का इस्तेमाल पैसे मँगवाने और फिर उसे महाराष्ट्र के अलग अलग हिस्से में 2 दर्जन से ज्यादा बैंक खातों में भेजने के लिए किया गया है। ₹25 करोड़ के हवाला लेनदेन के बारे में कुछ जानकारी मुंबई से मिली है। लगता है कि मुंबई/अहमदाबाद के कुछ खातों में ₹50 करोड़ से अधिक भेजे गए हैं। सिराज अहमद और उनके सहयोगी नईम खान ने गुमनाम रूप से ₹125 करोड़ का इस्तेमाल किया है। ₹125 करोड़ को निकाल लिया गया है और अलग जगह भेजा गया है।”

सोमैया ने यह भी कहा कि मालेगाँव एक ऐसी जगह है, जहाँ काफी आक्रामक तरीके से वोट जिहाद चल रहा है। उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को सिर्फ 100 वोट मिले, जबकि कॉन्ग्रेस उम्मीदवार को 194000 वोट मिले। उन्होंने आरोपित सिराज और उसके सहयोगी के खिलाफ सख्त सजा की भी माँग की है।

इस्लाम कबूलना तो दूर, मुस्लिमों के पाले में खड़े होने के भी पक्षधर नहीं थे अम्बेडकर: माफीनामे के बाद कॉन्ग्रेस नेता को पढ़ना चाहिए ‘मजहब’ पर बाबा साहेब के विचार

कर्नाटक में दलित और मुस्लिम वोटरों को एक साथ लुभाने के लिए एक कॉन्ग्रेस नेता सीमा लांघ गया। पूर्व MLA अजीमपीर खदरी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार के लिए वोट माँगते हुए दावा कर दिया कि डॉ भीमराव अम्बेडकर इस्लाम कबूल करने वाले थे और इसके लिए उन्होंने तैयारी भी कर ली थी। खदरी ने कहा कि अगर डॉ अम्बेडकर इस्लाम कबूल कर लेते तो देश के सभी दलित भी मुस्लिम बन गए होते। इसके बाद उन्होंने कॉन्ग्रेस सरकार के दलित मंत्रियों के मुस्लिम नाम भी दे दिए।

खदरी ने क्या कहा?

कर्नाटक के हावेरी में दलितों के आदि जाम्बव समुदाय के एक समारोह में बोलते हुए अजीमपीर खदरी ने कहा, “डॉ. बीआर अंबेडकर इस्लाम स्वीकार करने के लिए तैयार थे। लेकिन आखिरी समय में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया… अगर अंबेडकर ने इस्लाम धर्म अपना लिया होता तो देश के सभी दलित मुसलमान बन जाते। तब मंत्री G परमेश्वर को पीर साब, आरबी तिम्मापुर को रहीम साब खान और एल हनुमंतैया को हुसैन साब कहा जाता।” खदरी के इस बयान पर विवाद हो गया। लोगों ने इस पर नाराजगी जताई तो खदरी ने माफ़ी माँग ली।

खदरी ने बाद में डैमेज कंट्रोल के लिए भले ही माफी माँग ली हो लेकिन उनका यह बयान कि डॉ अम्बेडकर इस्लाम कबूल करने वाले थे, सत्यता के पैमाने पर रंच मात्र भी सही उतरता। डॉ अम्बेडकर इस्लाम की खामियों के धुर आलोचक थे और अब्रामिक मजहबों (यहूदी, ईसाइयत और इस्लाम) में इस्लाम की आलोचना सबसे अधिक करते थे।

डॉ अम्बेडकर ने क्यों नहीं अपनाया इस्लाम?

डॉ अम्बेडकर ने इस्लाम और ईसाइयत को विदेशी मजहब माना। वह धर्म के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं मानते थे, लेकिन धर्म भी उनको भारतीय संस्कृति के अनुकूल स्वीकार्य था। इसी वजह से उन्होंने ईसाइयों और इस्लाम के मौलवियों का आग्रह ठुकरा कर बौद्ध धर्म अपनाया क्योंकि बौद्ध भारत की संस्कृति से निकला एक धर्म है।

इस्लाम को लेकर क्या सोचते थे अम्बेडकर?

इस्लाम को लेकर जो विचार 1940 के दशक में छपी एक किताब में डॉ अम्बेडकर ने दिए थे, इससे उन्हें आज इस्लामोफोबिक कह दिया जाता। ‘पाकिस्तान या भारत का विभाजन’ किताब में अम्बेडकर के अनुसार, “हिंदू धर्म के बारे में कहा जाता है कि यह लोगों को बाँटता है और इसके उलट इस्लाम के बारे में कहा जाता है कि यह लोगों को आपस में जोड़ता है। असल में यह केवल आधा सच है। क्योंकि इस्लाम जितनी मजबूती से जोड़ता है, उतनी ही मजबूती से बांटता भी है।”

आगे उन्होंने लिखा, “इस्लाम एक बंद कॉर्पोरेशन है और यह मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद करता है, वह असल में काफी तगड़ा अलगाववादी है। इस्लाम का भाईचारा विश्व के सभी लोगों का आपस में भाईचारा नहीं है। यह मुसलमानों का केवल मुसलमानों के लिए भाईचारा है। यह है भाईचारा, लेकिन इसका फायदा सिर्फ इसी कॉर्पोरेशन के लोगों तक ही सीमित है। जो लोग इस कॉर्पोरेशन से बाहर हैं, उनके लिए इसमें बेईज्जती और दुश्मनी के अलावा कुछ नहीं है।”

सरकार और इस्लाम साथ में संभव नहीं

डॉक्टर अम्बेडकर के अनुसार, “इस्लाम का दूसरा दोष यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की व्यवस्था है और स्थानीय सरकार की व्यवस्था से मेल नहीं खाती क्योंकि मुसलमान की निष्ठा उसके देश में नहीं बल्कि उस मजहब पर टिकी होती है जिससे वह जुड़ा हुआ है। मुसलमान के लिए इबी बेने इबी पैट्रिया [जहाँ मेरा भला हो, वहाँ मेरा देश है] अकल्पनीय है। जहाँ भी इस्लाम का शासन है, वहाँ उसका अपना देश है। दूसरे शब्दों में, इस्लाम कभी भी एक सच्चे मुसलमान को भारत को अपनी मातृभूमि के रूप में अपनाने और एक हिंदू को अपना सगा-संबंधी मानने की अनुमति नहीं दे सकता”

देश के कानून से अपने कानून को ऊपर रखता है मुसलमान

डॉ अम्बेडकर ने मुस्लिमों के जहाँ वह रहते हैं, उस कानून को ना मानने और कुरान को उससे ऊपर रखने को लेकर कहा था, “एक और सिद्धांत पर ध्यान देने की जरूरत है, वह है इस्लाम का सिद्धांत, जो कहता है कि किसी ऐसे देश में, जो मुस्लिम के शासन के अधीन नहीं है, जहाँ कहीं भी मुस्लिम कानून और देश के कानून के बीच संघर्ष है, तो मुस्लिम कानून देश के कानून पर हावी होना चाहिए। एक मुसलमान को मुस्लिम कानून का पालन करने और देश के कानून की अवहेलना करने पर सही माना जाएगा।”

मुसलामानों को हिन्दुओं को शासन स्वीकार नहीं

बीते कुछ समय पहले प्रतिबंधित इस्लामी कट्टरपंथी संगठन PFI के बारे में खुलासा हुआ था कि वह भारत में 1947 तक इस्लामी राज लाना चाहता है। इसको डॉ अम्बेडकर ने काफी पहले पहचान लिया था। उन्होंने इस विषय में कहा, “इस्लाम विश्व को दो भागों में बाँटता है, जिन्हें वे दारुल-इस्लाम तथा दारुल हरब मानते हैं। जिस देश में मुस्लिमों का शासन है, वह दारुल इस्लाम की श्रेणी में आता है। और जिस किसी देश में जहाँ मुसलमान रहते हैं परन्तु उनका राज नहीं है, वह दारुल-हरब होगा। इसके अनुसार उनके लिए भारत दारुल हरब है। इस तरह वे मानव मात्र में भाईचारे में बिल्कुल भरोसा नहीं रखते हैं। यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमान हिन्दू सरकार के शासन को स्वीकार नहीं करेंगे।”

मुसलमान के लिए हिन्दू काफिर

यह स्पष्ट है कि जो लोग मुस्लिम नहीं है, उन्हें इस्लाम काफिर मानता है। इसको लेकर डॉ अम्बेडकर ने लिखा, “मुसलमानों के लिए हिंदू काफिर है और काफिर सम्मान के लायक नहीं है। वह निम्न कुल का है और उसका कोई स्टेटस नहीं है। इसलिए काफिर द्वारा शासित देश मुसलमान के लिए दार-उल-हरब है। ऐसे में यह साबित करने के लिए कोई और सबूत ज़रूरी नहीं लगता कि मुसलमान हिंदू शासन का पालन नहीं करेंगे।”

आगे उन्होंने लिखा, “सम्मान और सहानुभूति की भावना, जो लोगों को सरकार का पालन करने के लिए प्रेरित करती हैं, यहाँ मौजूद नहीं हैं। लेकिन अगर फिर भी सबूत की ज़रूरत है, तो इसकी कोई कमी नहीं है। असल में यह इतने ज्यादा है हैं कि इनमें से क्या पेश किया जाए और क्या छोड़ा जाए, इसकी समस्या है… ख़िलाफ़त आंदोलन के दौरान, जब हिंदू मुसलमानों की मदद करने के लिए इतना कुछ कर रहे थे, मुसलमान यह नहीं भूले कि उनकी तुलना में हिंदू एक नीच और हीन कौम है।”

डॉक्टर अम्बेडकर के इन विचारों को पढ़ने से स्पष्ट है कि वह इस्लाम कबूल करने की तरफ कभी नहीं बढ़ सकते थे। फिर भी मात्र वोटों के लिए इतिहास को अपने हिसाब तोड़ना मरोड़ना और भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण शख्सियत के बारे में इस तरह से गलत जानकारी फैलाना कॉन्ग्रेस नेता ने सही समझा। दलितों और उनके लिए सम्माननीय लोगों के प्रति कॉन्ग्रेस और उसके नेता कितने संवेदनशील हैं, यह बयान साफ़ दिखाता है। अंत में याद रखना होगा कि इसी कॉन्ग्रेस ने डॉ अम्बेडकर ने दशकों तक वह सम्मान नहीं दिया था, जिसके वह हकदार थे।

गैर मुस्लिमों को जबरन नहीं परोसा जाएगा ‘हलाल मांस’, एअर इंडिया का बड़ा फैसला: जानें यह कैसे सही दिशा में कदम

धार्मिक विविधता का सम्मान करते हुए देश की प्रमुख एयरलाइन एअर इंडिया ने फैसला किया है कि वह अब गैर-मुस्लिम यात्रियों को हलाल माँस नहीं परोसेगी। एअर इंडिया हलाल खाना उन्हीं लोगों को खिलाएगी जिन्होंने इसे चुना होगा। एअर इंडिया ने इसको लेकर नियम जारी किए हैं।

एअर इंडिया की उड़ानों में हलाल खाने के अलावा, ग्लूटेन-फ्री भोजन, मांसाहारी भोजन, शाकाहारी भोजन, जैन भोजन, कोशर भोजन, हिंदू भोजन और बाकी विकल्प भी शामिल किए हैं। एअर इंडिया का यह कदम सभी धर्मों और उनके खाने के प्रति प्राथमिकताओं को लेकर बड़ा कदम है।

एयर इंडिया द्वारा उठाया गया कदम स्वागत योग्य है क्योंकि यह उन लोगों पर हलाल खाना नहीं थोपता जो इसे नहीं खाना चाहते। इसे पहले, एअर इंडिया की उड़ानों और असल में तो बाकी जगह हलाल मांस ही लगातार परोसा जा रहा था। ऐसा इसलिए था क्योंकि हिंदू और सिख अक्सर यह नहीं पूछते थे कि यह मांस कैसे तैयार किया गया है।

इसके विपरीत, मुसलमान अपने खाने-पीने और इसके तैयार किए जाने के बारे में विशेष रूप प्रश्न करते हैं और उसी जगह खाते हैं जहाँ यह नियम पालन किए गए हों। वह उन जगहों पर नहीं खाते जहाँ हलाल मांस नहीं परोसा जाता है। इसको जबरदस्ती थोपे जाने को लेकर बीते कुछ सालों से हिन्दुओं और सिखों ने प्रश्न उठाने चालू किए हैं। अब एअर इंडिया केवल मुसलमानों बल्कि सभी समुदायों के खाने की प्राथमिकताओं का सम्मान करने वाली कुछ एयरलाइन में से एक बन गई है।

भारत विविधताओं का देश है। यह जरूरी है कि हर धर्म के लोगों को अपने हिसाब से खाने की स्वतंत्रता हो। एअर इंडिया की वेबसाइट पर अब उपलब्ध मेनू में धर्म और भोजन की प्राथमिकताओं के आधार पर अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग विकल्प हैं। इनमें जैन और हिन्दू के साथ ही शाकाहारी और फलाहारी भोजन का विकल्प भी मौजूद है।

क्या है हलाल?

हलाल और हराम दो शब्द हैं। हलाल का मतलब है जिसकी अनुमति हो और हराम का मतलब है जिसकी अनुमति ना हो। हलाल मुस्लिमों के खाने-पीने के सामान और विशेष कर मांस से सम्बन्धित है। यानी जो हलाल उत्पाद हैं, उन्हें मुस्लिम खा सकते हैं। जो उत्पाद या हराम हैं, उन्हें मुस्लिम नहीं खा सकते।

मांस का हलाल होना इस बात का प्रमाणन है कि वह उसी तरीके से काटा गया है, जैसा इस्लामी किताबों में बताया गया है। यानी मांस काटने की एक निश्चित इस्लामी विधि ही हलाल है। मांस का हलाल होना इस बात से प्रमाणित होता है कि उस पशु को किसने काटा है, कैसे काटा है, किस दिशा में काटा है और उसको काटने वाले का मजहब क्या है।

हर धार्मिक पसंद का हो सम्मान

एअर इंडिया नए नियमों के बाद अब भोजन के कई प्रकार उपलब्ध कराएगा। हालाँकि, यह ध्यान देने वाली बात है कि कोशर खाना, कोशर-प्रमाणित और हलाल खाना, हलाल-प्रमाणित किचन में बनाया जाता है। बाकी जैन या हिन्दू भोजन सामान्य किचन में बनाया जाता है, इसके लिए कोई प्रमाणन नहीं किया जाता है।

ऐसे में अगला कदम किचन काउंटरों का विभाजन किया जाए और यह बात पक्की की जाए कि शाकाहारी और मांसाहारी खाना अलग-अलग तरीके से तैयार किए जाते हैं। ऐसे में सभी के खाने की आदतों का सम्मान करना संभव होगा। एअर इंडिया का यह कदम आगे इन सब चीजों का रास्ता प्रशस्त कर सकती है।

हलाल के साथ ही उसकी काफी बड़ी एक अर्थव्यवस्था भी चलती है। एअर इंडिया के अलावा बाकी एयरलाइन और बाकी जगहों पर जो लोग मुस्लिम नहीं हैं और फिर भी हलाल खाते हैं, वह जाने-अनजाने में अपने बिल का एक हिस्सा हलाल को दे रहे होते हैं। यदि एअर इंडिया के नक्शेकदम पर बाकी एयरलाइन और रेस्टोरेंट जैसी जगहें चलें तो इसमें भी कमी आएगी।

यह लेख मूल रूप से अनुराग ने अंग्रेजी में लिखा है, इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।