Monday, November 25, 2024

राजनैतिक मुद्दे

कॉन्ग्रेस ज्वाइन करते ही लोग बौरा काहे जाते हैं? प्रियंका तो ‘C’ फ़ैक्टर है, पर बाकी?

जिस तरह की पार्टी है, और जैसे चाटुकार लोग हैं, वो लोगों की गालियों वाले ट्वीट को भी 'चर्चा में तो हैं हमलोग' मानकर निकल ले रहे हैं। मालिक तो पहले ही मूर्ख है, वो तो पेपर देखकर पढ़ नहीं पाता, उसको कुछ भी कह दो, क्या फ़र्क़ पड़ता है!

प्रियंका गाँधी वाड्रा, जो लगभग भगवान हैं…

प्रियंका जी को बताया गया है कि आप इंसान नहीं बल्कि लगभग अवतार हैं, कि लोग आपको सुनने नहीं बल्कि वे आपके कपड़े, नाक देखने आते हैं, वे यह भी देखने आते हैं कि भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में आपकी त्वचा में प्रचूर मॉइस्चराइजेशन आखिर कैसे बना रहता है।

पीसी चाको, कॉन्ग्रेस की चाटो! लटक कर झूलना ही बचा है अब राहुल गाँधी में

चाको और चाको टाइप्स चिरकुट लोग, भूल चुके हैं कि समय बदल गया है और गाँधी चालीसा का पाठ उन्हें सोनिया और राहुल की नज़र में तो 'अले मेला बच्चा' तक तो पहुँचा देगा लेकिन भारत की जनता से नहीं बचाएगा जिसने नेहरू और नकली गाँधियों के कुकर्मों को लगातार झेला है।

55 साल ‘करेंगे’ की जुमलेबाजी बनाम 55 महीने का ‘कर दिया’ वाला काम

इधर, 55 महीने में गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, किसानों, युवाओं और महिलाओं सहित देश के नागरिकों को आर्थिक सशक्तिकरण के साथ सामाजिक न्याय दिलाकर सशक्त...

VIDEO: कश्मीर समस्या का हल शिक्षा और नौकरियाँ नहीं हैं – पार्ट 1

इस तीन हिस्से वाली शृंखला में, नितिन गुप्ता (जो कि रिवाल्डो के नाम से भी जाने जाते हैं) कश्मीर समस्या को पुलवामा हमले के आलोक में देख रहे हैं। पहले एपिसोड में वो बता रहे हैं कि 'शिक्षा की कमी से आतंकवाद फैलता है' इस सोच का सच क्या है।

पिछले 15 साल के सारे चुनाव और बेगूसराय का वोटिंग पैटर्न कन्हैया को बनाते हैं नंबर 3

2004, 2009 और 2014 के चुनावों में पहले तीन स्थान पर जो पार्टियाँ थीं, 2015 के विधानसभा चुनावों में वामपंथी पार्टी को जितनी सीटें (शून्य) मिलीं, और बेगूसराय के भूमिहारों द्वारा कमल छाप पर मुस्लिम को भी जिताने का पैटर्न, कन्हैया कुमार को तीसरे पोजिशन से आगे नहीं ले जाता दिखता।

सोनिया गाँधी जी आपका यह वीडियो किस सन्दर्भ में था? जस्ट किडिंग, हमें तो पता ही है!

खानदान विशेष के एहसानों और पुरस्कारों के बोझ तले दबा यह मीडिया गिरोह 2014 में सवाल नहीं पूछ पाया था, शायद तब तक कभी गाँधी परिवार ने इसे एहसास भी नहीं होने दिया था कि मीडिया का काम सवाल पूछना भी हो सकता है। सवाल पूछ पाने की यह वैचारिक क्रांति इस मीडिया गिरोह में 2014 के बाद ही देखने को मिली है।

इंदिरा की नाक और राहुल का दिमाग वाली प्रियंका जी, भारत कॉन्ग्रेस की बपौती नहीं है

कॉन्ग्रेस ने पार्टी फ़ंड से इसरो नहीं बनवाया था, न ही डीआरडीओ के कर्मचारियों और वैज्ञानिकों को सोनिया गाँधी के हस्ताक्षर वाले चेक जारी हुआ करते थे। कॉन्ग्रेस के नाम ये संस्थान महज़ संयोग के कारण हैं क्योंकि सबसे पहले सत्ता में वही आई।

भारतीय कूटनीति की जीत: चीन-पाक अलग-थलग, US से आई 3 बड़ी ख़बरें करती है इसकी पुष्टि

24 घंटे के भीतर अमेरिका से तीन ख़बरें आई। तीनों एक से बढ़कर एक। तीनो ख़बरें भारतीय कूटनीति की सफलता का परिचायक तो हैं ही, साथ ही चीन-पाकिस्तान के अलग-थलग पड़ने का संकेत भी देती है।

एतना देर हो गया, सबूत नहीं माँगोगे ASAT से सेटेलाइट मार गिराने का?

इंतजार कीजिए, कोई मूर्ख नेता और धूर्त पत्रकार जल्द ही यह पूछेगा कि जो सेटैलाइट मार गिराया गया, उसका धुआँ तो आकाश में दिखा ही नहीं, उसके पुर्ज़े तो कहीं गिरे होंगे, उसका विडियो कहाँ है।

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