चूँकि आप गोमांस खा सकती हैं, तो क्या कल आप संविधान के मौलिक अधिकारों का हवाला देकर किसी मंदिर के गर्भगृह में बैठकर गोमांस खाएँगी? क्योंकि आपके तर्क के अनुसार यह भी लिखा जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी के भारत में मंदिरों में मन का भोजन खाने पर पाबंदी हैं।
अगर जातिगत आरक्षण से आपको समस्या नहीं है, तो फिर आर्थिक आरक्षण से तो बिलकुल ही नहीं होनी चाहिए क्योंकि जातिगत आरक्षण की जड़ में यही अवधारणा है कि इन जातियों के लोग ग़रीब और वंचित हैं।
अब तक ये इसलिए ख़ारिज होता रहा है क्योंकि संविधान में इसका प्रावधान ही नहीं किया गया था। इस बार संविधान में इसका प्रावधान किया गया है, इसलिए यह संविधान सम्मत है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि कक्षा बारह तक के विद्यालय ज्ञान के उत्पादक नहीं होते जबकि विश्वविद्यालय और उच्च शोध संस्थान मौलिक ज्ञान के उत्पादन हेतु ही बने हैं। भारत की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था को पुष्ट करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक ऐसे अनेक प्रयास किये हैं जिन्हें परिवर्तित होते भारत अथवा ‘न्यू इंडिया’ की आधारशिला के रूप में देखा जा सकता है।
कृष्णन के अनुसार सौर मंडल में सारे ग्रह सूर्य की परिक्रमा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नहीं करते बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि अन्तरिक्ष (space) उन्हें संकुचित करता है।