पिछले वर्ष प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल की दुखद मृत्यु के अलावा आज तक गाँधीवादी सत्याग्रह में किसी के भूखा मर जाने की बात शायद ही सामने आई है। लेकिन यह भी दिलचस्प है कि इसके इतने ‘सुरक्षित’ होने के बावजूद गाँधी के नाम पर “आमरण” अनशन का रास्ता सब दूसरों को ही दिखाते हैं।
Who is a modern day Gandhi who will fast unto death against this bill. Who. #CABBill https://t.co/s8cTydnKjf
— barkha dutt (@BDUTT) December 9, 2019
बरखा दत्त को भी आजकल ऐसे किसी की तलाश है जिसे इस राह पर ढकेला जा सके। उन्होंने बाकायदा ट्वीट कर इसका ऐलान किया है। गाँधीवाद की विफ़लता का इससे बड़ा प्रमाण और कोई नहीं हो सकता।
बरखा दत्त की इस तलाश से मुझे बचपन में स्कूल में पढ़ी कौव्वे और लोमड़ी की दोस्ती वाली कहानी याद आ गई। मेहनती लोमड़ी जंगल में खुदाई करके खेत बनाती है और जुताई, बोवाई, सिंचाई, पहरेदारी, फ़सल की कटाई सब कुछ अकेले ही करती है। पूरे समय काँव-काँव करने वाला कौव्वा ऊपर बैठकर “तू चल मैं आता हूँ, चुपड़ी रोटी खाता हूँ, ठण्डा पानी पीता हूँ, हरी डाल पर बैठा हूँ” ही चिल्लाता रहता है।
पत्रकारिता का समुदाय विशेष न केवल ‘पक्षी विशेष’ की तरह कर्कश है, बल्कि ऐसे ही इस देश की आम जनता को बरगला भी रहा है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा था, ‘धिम्मी’ अन्यों व कट्टरपंथियों की फ़सल काटनी इनके आकाओं को है, जिसकी राह में यह नागरिकता (संशोधन) अधिनियम आ रहा है (क्योंकि इस अधिनियम के तहत जो लोग भारतोय नागरिक और वोटर बनेंगे, वे उन पार्टियों के बहकावे में नहीं आएँगे जिनके लिए तुष्टिकरण ही सबकुछ है )। इसके लिए भूख-हड़ताल की कीमत भी यह खुद चुकाने को तैयार नहीं हैं और न ही अपने आकाओं को कष्ट देना चाहते। इसके लिए भी वे आम जनता को ही उकसा रहे हैं।
एक चीज़ जो इसी से जुड़ी याद आ रही है, वह अन्ना आंदोलन है। उसका भी नारा था- “अन्ना, तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।” मीडिया गिरोह इसी तरह के आंदोलनों की तलाश में रहता है, जहाँ अपना कुछ दाँव पर न लगे और मलाई काटने को खूब मिले।
जिन्हें लग रहा है कि यह “गाँधी के विचारों और गाँधीवाद के साथ धोखा है”, उनके मीठे मुगालते के लिए भी कड़वी सच्चाई हाज़िर है। यह गाँधीवाद के साथ ‘धोखा’ नहीं, शुरू से गाँधीवाद की सच्चाई रही है, उसका ‘टेम्लेप्ट’ रहा है। यह बात अलग है कि गाँधीवाद के द्योता मोहनदास गाँधी अपनी ‘स्व-हिंसा’ को ‘अ-हिंसा’ इतनी कट्टरता से मान बैठे थे कि उन्हें अपने ‘टेम्लेप्ट’ का सच दिखा ही नहीं। वे जबरिया अहिंसा की गोली हिन्दुओं के गले में ठूँसते हुए खुद अनशन पर बैठे थे, और उसी समय उनका ‘अक्षर विशेष’ काट कर कॉन्ग्रेस हिन्दुओं को उनके नाम पर बरगलाने और अपनी सत्ताका जुगाड़ करने में व्यस्त थी।
प्रख्यात लेखक और जीवनीकार धनंजय कीर ने सावरकर की जीवनी के 20वें अध्याय ‘From Parity to Pakistan’ में गाँधी के संदर्भ में गोपालकृष्ण गोखले की भविष्यवाणी का ज़िक्र किया है। गोखले ने कथित तौर पर कहा था कि भले ही गाँधी अपने समय में आम आदमी के नायक, उस पर एक बड़े प्रभाव के रूप में उभरें, लेकिन जब इतिहास को एक निरपेक्ष दृष्टि से लिखा जाएगा, तो उन्हें पूर्ण रूप से विफ़ल ही माना जाएगा। यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि गोखले 1915 में ही मर गए थे- गाँधी को अतिवादी और कट्टर नैतिकता हिन्दुओं पर एकतरफ़ा लादते हुए दशकों तक देखने के पहले ही। उन्होंने शायद गाँधी के साथ व्यतीत किए हुए संक्षिप्त समय में उनमें कुछ ऐसा देखा, जो बाकी अधिकांश लोग लम्बे-लम्बे समय में भी नहीं देख पाए।
कुछेक अपवादों में श्री ऑरोबिन्दो, आम्बेडकर, सावरकर ने देखा भी, तो जबरिया की नैतिकता के भोंडे प्रदर्शन के आगे तर्क और बुद्धि की सुनने वाले बहुत ज़्यादा लोग उस समय थे नहीं।
बरखा का यह ट्वीट गोखले की उसी भविष्यवाणी की प्रतिध्वनि है।