हाल ही में, सोशल मीडिया पर संप्रदाय विशेष के एक व्यक्ति के दो लड़कियों को ‘गोद लेने’ और बाद में हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार उनकी शादी कराने की एक दिल को छू लेने वाली कहानी काफी शेयर की गई।
मीडिया में कई रिपोर्टों के मुताबिक, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के रहने वाले बाबाभाई पठान ने दो अनाथ बहनों को ‘गोद लिया’ और फिर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अपने खर्च से उनकी शादी की।
Muslim man Bababhai Pathan, from Ahmednagar, Maharashtra, has adopted two orphan sisters & wedded them from his own expenses according to the Hindu rituals. He has been widely praised for his humanitarian work across the country. pic.twitter.com/zLIQP76JnS
— Aarif Shah (@aarifshaah) August 23, 2020
इसी कहानी को आईपीएस अधिकारी दीपांशु काबरा ने भी शेयर किया। उन्होंने बाबाभाई पठान की प्रशंसा करते हुए ट्वीट किया, “मिलिए बाबाभाई पठान से। अहमदनगर, महाराष्ट्र के रहने वाले बाबाभाई ने 2 अनाथ बच्चियों को गोद लिया और हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार खुद उनकी शादी करवाई तथा एकता और मानवता की अद्वितीय मिसाल कायम की। उनके जैसे लोगों के कारण ही इंसानियत पर करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास अटल है।”
मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि संप्रदाय विशेष के व्यक्ति ने अनाथ लड़कियों को परोपकारी भाव से अपनाया और हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार उनसे शादी की। हालाँकि सच्चाई मीडिया रिपोर्ट के विपरीत है। सच्चाई यह है कि दुल्हनों को न तो गोद लिया गया, न ही अनाथ और उनकी माँ अभी भी जीवित हैं।
लोकप्रिय मराठी ब्लॉगर और स्तंभकार समीर गायकवाड़ के अनुसार, बाबाभाई पठान दुल्हन की माँ के राखी के भाई हैं और उन्होंने अहमदनगर के बोधेगाँव में भुसारे परिवार की दो बेटियों की शादी में मामा की रस्में निभाईं। दुल्हनों की माँ हर साल बाबाभाई पठान को राखी बाँधती है, क्योंकि उनका अपना कोई सगा भाई नहीं है।
इस सच्चाई के सामने आने के बाद कि लड़कियों को बाबभाई पठान द्वारा ‘अनाथ’ के रूप में नहीं अपनाया गया था, जैसा कि मीडिया में बताया जा रहा है और लड़कियों की माँ द्वारा शादियों का आयोजन किया गया था, आईपीएस काबरा ने इस घटना पर स्पष्टीकरण ट्वीट जारी करके खुद को सही किया।
अपने पिछले ट्वीट को लेकर स्पष्टीकरण देते हुए, IPS काबरा ने कहा कि उन्हें मीडिया सोर्स से अपडेट मिला है कि दोनों बहनें अनाथ नहीं थीं और उनकी माँ हर साल बाबभाई पठान को राखी बाँधती थीं, क्योंकि उनका कोई सगा भाई नहीं था।