Saturday, May 18, 2024
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‘दविंदर सिंह के विरुद्ध जाँच की जरूरत नहीं…मोदी सरकार क्या छिपा रही’: सोशल मीडिया में किए जा रहे दावों में कितनी सच्चाई

ट्विटर पर इस संबंध में 1 अगस्त को किसी आनंद नाम के यूजर ने अपना थ्रेड शेयर किया था। इसमें दावा था कि केंद्र सरकार के उपराज्यपाल नहीं चाहते कि आतंकियों की मदद करने वाले दविंदर सिंह के विरुद्ध कार्रवाई हो।

जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग (Jammu and Kashmir’s General Administration Department) द्वारा 20 मई 2021 को जारी किए गए एक आदेश को लेकर 2 अगस्त को कई पत्रकारों, कई कॉन्ग्रेसी नेताओं व कई बुद्धिजीवियों ने केंद्रीय सरकार पर तंज कसे। ये आदेश निलंबित पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह के सस्पेंशन से संबंधित था जिसके लिंक कुछ समय पहले आतंकी संगठनों से पाए गए थे।

आदेश के दूसरे पैराग्राफ में बताया गया था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत उपराज्यपाल इस बात से संतुष्ट थे कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में दविंदर सिंह के मामले और तत्काल प्रभाव से उसकी बर्खास्तगी केस में आगे की जाँच की कोई आवश्यकता नहीं। इसी पैरा को पढ़ कर पत्रकारों, कॉन्ग्रेसियों और अन्य विपक्ष दल के नेताओं समेत बुद्धिजीवियों ने बिन सोचे समझे केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह पर तमाम सवाल उठाए।

ट्विटर पर इस संबंध में 1 अगस्त को किसी आनंद नाम के यूजर ने अपना थ्रेड शेयर किया था। इसमें दावा था कि केंद्र सरकार के उपराज्यपाल नहीं चाहते कि आतंकी दविंदर सिंह के विरुद्ध कार्रवाई हो। अपने अगले ट्वीट में आनंद ने लिखा, “आप जानते हैं कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में’ क्या मतलब है!! क्या यह आतंकवादी गतिविधियों में राज्य की मिलीभगत जैसा नहीं है? या फिर अब आतंकवाद की जाँच जरूरी ही नहीं रह गई?”

इसी तरह कॉन्ग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला भी सामने आए और इस मामले पर प्रश्न उठाए। उन्होंने कहा, “दविंदर सिंह कौन है? क्यों सरकार उसके विरुद्ध जाँच नहीं करवाना चाहती? क्या जाँच से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होगा? उसका पुलवामा में रोल क्या था? उसके साथ गिरफ्तार कौन हुए थे? उसके साथियों का क्या नाम है? मोदी सरकार क्या छिपा रही है? देश को सब जानने का हक है।”

द हिंदू की राष्ट्रीय संपादक सुहासिनी हैदर ने इस मामले पर हैरानी जताई और लिखा, “वास्तव में चौंकाने वाला … उस समय जब आतंकवाद के झूठे आरोपों में सैंकड़ों जेल में बंद हैं, तब राज्य एक पुलिस अधिकारी को बचाना चाहता है जिसे कथिततौर पर आतंकियों को साथ बैठाकर ले जाते पकड़ा गया था, उसको जाँच से मुक्ति दे दी गई है?”

आम आदमी पार्टी के सोशल मीडिया टीम सदस्य ने लिखा, ”दिल्ली चुनाव से कुछ दिन पहले जनवरी 2020 में आतंकियों को दिल्ली ले जाना, वो भी जब शाहीन बाग के विरोध के कारण हालात बेहद अस्थिर थे। यह समझने के लिए आपको आइंस्टीन होने की आवश्यकता नहीं है कि यह किसकी योजना थी! अब भारत सरकार उसके खिलाफ जाँच नहीं चाहती है।”

पत्रकार आदित्य मेनन ने आरोप लगाया कि इस बात की हमेशा संभावना थी कि सिंह को हल्के में छोड़ दिया जाएगा। वह कहते हैं कि इस बात की पूरी जाँच होनी चाहिए कि आखिर दविंदर सिंह किसके आदेश पर काम कर रहा था और क्या हमारे सुरक्षा प्रतिष्ठान आतंकियों से जुड़े हैं।

इसी प्रकार द वायर, न्यूजक्लिक, और जनता का रिपोर्टर में स्तंभकार रवि नय्यर, कॉन्ग्रेस समर्थक संजुक्ता बासु, पत्रकार औरंगजेब भी इस मामले में सवाल खड़े किए।

किसी ने अनुच्छेद 311 समझने की कोशिश नहीं की

दिलचस्प बात ये है इतने सारे लोगों में कोई भी आर्टिकल 311 के दूसरे पैराग्राफ को ढंग से नहीं समझ पाया। उन्होंने बस बिना संदर्भ के इस लाइन को पढ़ा कि ‘आगे जाँच की जरूरत नहीं है’ और लगे ट्वीट पर ट्वीट करने। किसी ने नहीं सोचा ये अनुच्छेद है क्या।

इस अनुच्छेद 311 के तहत संघ या राज्य के अधीन कार्यरत सरकारी कर्मचारी को उनके पद से बर्खास्त करने‚ हटाने अथवा रैंक कम करने से संबंधित प्रावधान शामिल हैं‚ यद्यपि ऐसा केवल उपयुक्त जाँच के बाद ही किया जा सकता है। अनुच्छेद 311 उन कर्मचारियों को सुनवाई का स्पष्ट अधिकार प्रदान करता है‚ जिनके विरुद्ध इस अनुच्छेद को लागू किया गया है।

वहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में, कुछ खंड सरकार को कोई पूछताछ न करने की अनुमति प्रदान करते हैं। उक्त अधिनियम के खंड (2) के उपखंड (सी) के तहत, ये कहा गया है कि अगर राष्ट्रपति या राज्यपाल संतुष्ट हैं तो राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में, व्यक्ति को बिना किसी जाँच के बर्खास्त या हटाया जा सकता है।

NIA ने फाइल की हुई है चार्जशीट

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने जुलाई 2020 में दविंदर सिंह के खिलाफ पहले ही चार्जशीट जमा कर दी थी। उसका नाम हिजबुल-मुजाहिद्दीन के आतंकवादी सैयद नवीद सहित छह लोगों के खिलाफ चार्जशीट में शामिल था। जून 2020 में एनआईए ने पुष्टि की थी कि उनके पास निलंबित पुलिस अधिकारी के खिलाफ ‘पर्याप्त सबूत’ हैं और वह समय आने पर उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करेगी। दविंदर को आतंकवाद विरोधी यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था।

दविंदर सिंह का आतंकी कनेक्शन

बता दें कि डीएसपी दविंदर सिंह इस्लामिक आतंकी संगठन से जुड़ा था। वह न केवल नवीद को ले जाने और पनाह देने के लिए पैसे ले रहा था, बल्कि साल भर उनको सहायता देने के लिए भी पैसे ले रहा था। सिंह आतंकवादियों को फँसाने, उनको मारने, उनकी गिरफ्तारी, उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने के कई अभियानों में शामिल था।

इस मामले के अन्य आरोपित हिजबुल के दो आतंकवादी नवीद मुश्ताक उर्फ ​​बाबू, रफी अहमद राथर और वकील इरफान शफी मीर हैं। तीनों को दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के वानपोह इलाके में राजमार्ग पर एक चौकी से डीएसपी के साथ गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार होने वाला 5वाँ व्यक्ति नवीद का भाई इरफान मुश्ताक था। कथित तौर पर साजिश में शामिल होने के आरोप में उसे 23 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद छठा आरोपित तनवीर अहमद वानी था।

11 सरकारी कर्मचारियों की बर्खास्तगी

जुलाई 2021 में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के बेटों सहित 11 सरकारी कर्मचारियों को टेरर फंडिंग मामले में निकाल दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत प्रदान किए गए प्रावधानों के अनुसार ही सभी ग्यारह को बर्खास्त किया गया था।

निष्कर्ष: केंद्र सरकार ने यह बिलकुल नहीं कहा कि दविंदर सिंह मामले में किसी जाँच की जरूरत नहीं है। पत्रकारों, नेताओं और बुद्धिजीवियों द्वारा साझा की गई जानकारी गलत है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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