साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को ‘भगवा आतंक’ के एक भयावह सिद्धांत को मूर्त रूप देने के लिए कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा मकोका के तहत जेल में बंद, प्रताड़ित और भयंकर रूप से तोड़ देने के लिए निर्ममता की सारी हदें पार करते हुए टॉर्चर किया गया था। उनके ऊपर की गई बर्बरता की कहानी वह कई बार सुना चुकी हैं। फिलहाल, वह औपचारिक रूप से बीजेपी में शामिल होकर दिग्विजय सिंह के खिलाफ मध्य प्रदेश के भोपाल से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। दिग्विजय सिंह, वह शख़्स हैं जो ‘भगवा आतंक’ सिद्धांत के प्रमुख प्रस्तावक हैं। जबकि ऐसा उन्होंने बिना किसी अधिकृत पोस्ट पर रहते हुए किया था। इससे पता चलता है कि कॉन्ग्रेस का हाथ विनाश और देश की मूल आत्मा को खोखला करने की हर लीला के पीछे कितनी गहराई से शामिल रहा है। इतिहास को जितना कुरेदा जाएगा कॉन्ग्रेस का उतना ही वीभत्स चेहरा सामने आएगा।
अब जबकि साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी और राजनीति में उनके कदमों ने कॉन्ग्रेस ही नहीं बल्कि दिग्विजय सिंह की भी नीदें उड़ा चुकी है। इस बात को और बल तब मिला जब भोपाल में बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “हम भोपाल से यह चुनाव हिन्दू धर्म को आतंकवाद से जोड़कर उसे अपमानित करने की कॉन्ग्रेसी साजिश के खिलाफ लड़ रहे हैं और दिग्विजय सिंह इस साजिश का चेहरा हैं।”
साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही कुछ मीडिया गिरोह के ‘तटस्थ’ टिप्पणीकार उन पर नफरत की बारिश करने के लिए लकड़बग्घे के रूप में बाहर आ चुके हैं, जिन्हे सिर्फ आतंकियों, समुदाय विशेष के मानवाधिकार दिखते हैं, हिन्दुओं के नहीं। इन्हें बर्बर आतंकियों में स्कूल मास्टर का मासूम बेटा नज़र आ जाएगा लेकिन एक साध्वी महिला में इस गिरोह को बिना एक भी सबूत के दुर्दांत आतंकी दिखने लगता है और उसके नाम की आड़ में ये पूरे हिन्दू और सन्यासी समाज को ही ‘भगवा आतंक’ का नाम दे देंगे लेकिन आज तक ये ‘मुस्लिम आतंक/आतंकी’ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं। वहाँ इन्हें भटके हुए नौजवान दिखते हैं जिनका कोई मज़हब नहीं है।
साध्वी प्रज्ञा ने अपने एक बयान में उस पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे को दोषी ठहराया, जो ‘भगवा आतंकी’ कथा को गढ़ने और आगे बढ़ाने और उन पर झूठे आरोप मढ़कर अवैध रूप से कैद में रखने की साजिश का सूत्रधार था। जो 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले के दौरान मारा गया था। उन्होंने कहा कि जब करकरे को जाँच एजेंसी में किसी ने कहा था कि साध्वी को बिना सबूत के नहीं रखा जाना चाहिए और इस प्रकार उनको टॉर्चर करना और उनकी नजरबंदी गैरकानूनी है, तो करकरे ने कहा कि उसे कहीं से भी सबूत जुगाड़ना पड़े या भले ही उसे गढ़ना पड़े, साध्वी प्रज्ञा को जेल में रखने के लिए, वो किसी भी हद तक जाएगा। अपने इसी बयान में साध्वी प्रज्ञा ने यह भी कहा कि करकरे को मार दिया गया क्योंकि उन्होंने उसे शाप दिया था।
#WATCH Pragya Singh Thakur:Maine kaha tera (Mumbai ATS chief late Hemant Karkare) sarvanash hoga.Theek sava mahine mein sutak lagta hai. Jis din main gayi thi us din iske sutak lag gaya tha.Aur theek sava mahine mein jis din atankwadiyon ne isko maara, us din uska anth hua (18.4) pic.twitter.com/COqhEW2Bnc
— ANI (@ANI) April 19, 2019
शाप देने की बात पर मीडिया के तमाम गिरोहों ने साध्वी प्रज्ञा के बयान पर नाराजगी जाहिर की है। क्योंकि अब उन्हें हेमंत में सिर्फ एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी नज़र आ रहा है। उसकी तमाम कारस्तानियाँ भुला दी गई हैं।
Will @BJP4India drop Pragya Thakur as its candidate from Bhopal after her disgraceful insult of Hemant Karkare, the man who died during the night of 26-11?She cursed him. Her family. And BJP leaders next to her clapped.
— Abhisar Sharma (@abhisar_sharma) April 19, 2019
Hemant Karkare gave this interview to me a day before he was martyred in 2008. He was being hounded by right wing outfits for his arrest of Pragya Thakur and Col.Purohit and other seers, a breakthrough expose of right wing terror in Indiahttps://t.co/J2rznoaI9z
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) April 19, 2019
हालाँकि, बीजेपी ने भी प्रज्ञा ठाकुर के हेमंत करकरे की मृत्यु वाले बयान से दूरी बना ली है। बीजेपी ने उसे उनकी निजी राय कहा है। बीजेपी ने कहा है कि वह हेमंत करकरे को हुतात्मा मानती है। दूसरी तरफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने भी अपना बयान वापस ले लिया है और इसके लिए माफी माँगते हुए कहा है कि यह उनका व्यक्तिगत दर्द है।
Pragya Singh Thakur, BJP LS candidate from Bhopal, on her statement on Mumbai ATS Chief late Hemant Karkare: I felt that the enemies of the country were being benefited from it, therefore I take back my statement and apologize for it, it was my personal pain. pic.twitter.com/j7pzrKf6G5
— ANI (@ANI) April 19, 2019
अब जब इतना कुछ सामने है तो इन मीडिया गिरोहों के छद्म आक्रोश से परे, किसी को यह मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि करकरे के खिलाफ जो आरोप लगाया गया है। उसमें कितनी सच्चाई है। उसके लिए, हम एक अंदरूनी सूत्र पर भरोसा कर सकते हैं। आरवीएस मणि एक पूर्व नौकरशाह हैं जिन्होंने कॉन्ग्रेस के दौर में गृह मंत्रालय में एक अंडर-सेक्रेटरी के रूप में काम किया था। अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेरर’ में, मणि ने संपूर्ण मिलीभगत का वर्णन किया है और बताया है कि किन-किन खिलाड़ियों ने ‘भगवा आतंक’ की कहानी गढ़ने के लिए मिलीभगत की और कैसे, कई वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेता से लेकर कई अन्य लोग इस साजिश में शामिल थे।
हेमंत करकरे के संदर्भ में भी, आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक में कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेरर’ में हेमंत करकरे के साथ अपनी पहली मुठभेड़ का भी वर्णन किया है।
आरवीएस मणि नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में 2006 बम विस्फोट के बाद हेमंत करकरे के साथ अपनी बैठक के बारे में बात करते हैं। उन्होंने कहा कि वह उस समय आंतरिक सुरक्षा में काम कर रहे थे और उन्हें गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने बुलाया था। जब उन्हें अंदर ले जाया गया, तो उन्होंने शिवराज पाटिल के कक्ष में दिग्विजय सिंह और हेमंत करकरे को देखा। वह लिखते हैं कि हेमंत करकरे और दिग्विजय सिंह उनसे पूछताछ कर रहे थे, जबकि शिवराज पाटिल थोड़े असंबद्ध दिख रहे थे। उन्होंने उनसे विस्फोट के बारे में कई सवाल पूछे। आरवीएस मणि लिखते हैं कि हेमंत करकरे और दिग्विजय सिंह आरवीएस मणि की जानकारी से बहुत खुश नहीं थे कि एक विशेष मज़हबी समूह अधिकांश आतंकवादी हमलों में शामिल था।
वह लिखते हैं कि कमरे में बातचीत से, वे खुश नहीं थे कि खुफिया सूचनाओं के अनुसार, कट्टरपंथी आतंकवादियों का समर्थन कर रहे थे। उनका कहना है कि उनकी बातचीत में नांदेड़, बजरंग दल आदि के बार-बार संदर्भ थे।
वह नांदेड़ विस्फोट के बारे में आगे बात करते हैं और कहते हैं कि यह पहला मामला था जिसमें ’हिंदू आतंक’ शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया था।
आरवीएस मणि कई सवाल उठाते हैं कि दिग्विजय सिंह और हेमंत करकरे इतने करीब क्यों थे? जैसा कि दिग्विजय सिंह ने खुद भी दावा किया था। इनकी करीबी खुद ही कई सवाल खड़े करती है।
आरवीएस मणि लिखते हैं, “यह याद रखना दिलचस्प हो सकता है कि दिग्विजय सिंह ने एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया था कि वह उस समय के एक पुलिस अधिकारी के साथ व्यक्तिगत संपर्क में थे, जो उनके साथ केंद्रीय गृह मंत्री के कमरे में थे और जिन्हे नांदेड़ हमले की जानकारी थी। जिससे दिग्विजय सिंह ने कुछ विशेष सूचनाएँ हासिल करने का दावा भी किया था। सिंह ने मीडिया में इस पुलिस अधिकारी का निजी मोबाइल नंबर भी जारी कर दिया था। यह उस समय के मीडिया रिपोर्टों से सत्यापित किया जा सकता है।”
वे आगे लिखते हैं, “जो पेचीदा था, जिसे मीडिया में से किसी ने भी उस समय या फिर बाद में नहीं पूछा था कि एक राजनीतिक नेता और पड़ोसी राज्य कैडर के आईपीएस अधिकारी के बीच क्या संबंध था? दरअसल, एक राज्य का मुख्यमंत्री रहने के बाद, सिंह को अपने राज्य के कई पुलिस अधिकारी जानते होंगे। लेकिन पड़ोसी राज्य के एक सेवारत IPS अधिकारी के साथ इतना दोस्ताना व्यवहार?, एक ऐसी बात है जिसका जवाब दिया जाना चाहिए। बिना किसी विशेष मकसद के एक आईपीएस अधिकारी एक पड़ोसी राज्य के राजनेता के साथ क्या कर रहा था?
ऑल इंडिया सर्विसेज (एआईएस) आचरण नियम स्पष्ट रूप से अधिकारियों के कार्यों के निर्वहन को छोड़कर अन्य किसी साजिश या विशेष मक़सद के तहत राजनीतिक नेताओं के साथ अखिल भारतीय सेवा कर्मियों का इस तरह का व्यवहार नियमों का उल्लंघन हैं।
आरवीएस मणि अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि इसके तुरंत बाद का घटनाक्रम यह था कि “हिंदू आतंक” रिकॉर्ड में आ गया था, जहाँ यह दावा किया गया था कि नांदेड़ के समीर कुलकर्णी कथित रूप से अपनी कार्यशाला में विस्फोटक का भंडारण कर रहे थे, जिसमें 20.4.2006 को विस्फोट हो गया।
पुस्तक के एक अन्य भाग में, आरवीएस मणि कहते हैं कि जब हेमंत करकरे एटीएस प्रमुख थे, तो अहले-ए-हदीथ/हदीस जो मालेगाँव विस्फोट में शामिल थे, इसका सबूत होने के बाद भी उसे एक साइड कर दिया गया था और इस नैरेटिव को पूरी तरह से बदल दिया गया था। मणि कहते हैं कि यह पहली बार था कि हिंदू संगठनों की भागीदारी की रिपोर्ट मुंबई एटीएस से गृह मंत्रालय को भेजी गई थी और साध्वी प्रज्ञा को मुख्य आरोपी बनाया गया था। वह कहते हैं कि उन्हें पता नहीं है कि मोटरसाइकिल, जो एटीएस के अनुसार प्रमुख साक्ष्य था (जिसकी बाद में व्याख्या हुई कि साध्वी प्रज्ञा द्वारा बेच दी गई थी) को प्लांट किया गया था या नहीं, लेकिन एटीएस द्वारा लगाए गए समय ने कई सवाल खड़े कर दिए थे। उनका कहना है कि मुंबई धमाकों के दौरान एटीएस को गिरफ्तारी करने में 5 महीने से अधिक का समय लगा जबकि मालेगाँव मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी में केवल 35 दिन लगे।
आपको बता दें, हालाँकि बाद में मीडिया द्वारा यह रिपोर्ट भी किया गया था कि एनआईए इस नतीजे पर पहुँची थी कि कर्नल पुरोहित को फँसाने के लिए महाराष्ट्र एटीएस द्वारा आरडीएक्स लगाया गया था।
यह वास्तव में एक तथ्य है कि हेमंत करकरे मुंबई हमलों के दौरान अनुकरणीय साहस दिखाते हुए बलिदान हो गए। यह भी उतना ही सच है कि कई सवाल न केवल अंदरूनी सूत्र आरवीएस मणि और पीड़िता साध्वी प्रज्ञा द्वारा उठाए गए, बल्कि कई अन्य लोगों ने भी आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे के आचरण और उनकी कॉन्ग्रेसी नेताओं से मिलीभगत के बारे में और खासतौर से ‘भगवा आतंक’ का झूठ गढ़ने के लिए उठाए हैं।
सच्चाई शायद बीच में कहीं है। जो भी हो एक दिन ज़रूर सामने आएगा। साध्वी प्रज्ञा को मकोका के तहत आरोपों से बरी कर दिया गया है। कुछ और आरोपों में भी बरी हो चुकीं हैं। फ़र्ज़ी सबूतों के आधार पर आखिर किसी को कब तक फँसाया जा सकता है। एक न एक दिन न्याय की विजय होगी। लेकिन आज भी अधिकांश मामलों में बरी होने के बाद भी मीडिया गिरोहों के स्वघोषित जज उन्हें आरोपित और अपराधी साबित करने में दिन-रात एक किए हुए हैं आखिर इन्हे नमक का क़र्ज़ जो अदा करना है। खैर, साध्वी प्रज्ञा की आवाज़ को चुप कराने की कोशिश करने वाले, इन तमाम मीडिया गिरोहों से कोई भी उम्मीद करना भी बेमानी है। ये खुद ही वकील हैं और जज भी, फैसला अगर इनके अजेंडे के हिसाब का न हो तो ये स्वायत्त संवैधानिक संस्थाओं को भी बदनाम करने से पीछे नहीं हटते।