Friday, November 15, 2024
Homeरिपोर्टमीडियान्यूजलॉन्ड्री और अजेंडाबाज अभिनंदन: हीनभाव से ग्रस्त, नक्सल हिमायती जो साइट से हिन्दूघृणा बाँटता...

न्यूजलॉन्ड्री और अजेंडाबाज अभिनंदन: हीनभाव से ग्रस्त, नक्सल हिमायती जो साइट से हिन्दूघृणा बाँटता है

मान लीजिए कमलेश तिवारी की हत्या हुई। जिस तरह से हुई उससे साफ है कि मुसलमानों ने की, और क्यों की। लेकिन अभिनंदन की पहली प्रतिक्रिया यह होगी कि 'साले संघियों ने कराया होगा ताकि इसका फायदा उठा सकें'। फिर वो किसी भी ऐसी अफवाह, एक भी सोशल मीडिया पोस्ट, या छोटे से लोकल फेसबुक पेज पर 'पुलिस तलाश रही है प्रेम का एंगल' को भी प्रमुखता से छाप सकता है।

न्यूज़लॉन्ड्री स्वघोषित रूप से ‘मीडिया की आलोचना करने वाला, खबर और समसामयिक विषयों की वेबसाइट’ है। हालाँकि, एक सरसरी निगाह डालने से पता चल जाता है कि हर टुटपुँजिए ‘वानाबी ऑल्टरनेटिव जर्नलिज्म पोर्टल’ की तरह इसमें अपने नाम के अलावा और किसी बात पर ढंग का काम नहीं किया गया है। नाम में लॉन्ड्री रखने भर से खबरों की धुलाई नहीं हो जाती, लेकिन ये बात ज़रूर है कि वामपंथी लम्पटों के समाज में स्वीकार्यता अवश्य बढ़ जाती है। कायदे से इसका नाम न्यूज़लौंडी या न्यूज़लौंडा होना चाहिए था क्योंकि जमीर बेच कर पत्रकारिता के नाम पर जो वैचारिक दोगलापन इस साइट पर दिखता है, उससे लॉन्ड्री शब्द का अपमान होता है।

लिबरलों और वामपंथियों के नाजायज मेल से विचित्र तरह की वक्र वैचारिक संतानों ने भारतीय मीडिया लैंडस्केप में जन्म लिया है, जिनका एकसूत्री अजेंडा एक तरह के प्रोपेगेंडा पर ज़हर उगलते रहना है। हिन्दुओं से एक अलग स्तर की घृणा की आग फैलाने वाले ‘न्यूजलौंडी’ टाइप के डिजिटल जिहादियों ने इंटरनेट के फ्री होने का फायदा उठाते हुए एक खास विचारधारा, अलग विचार, एवम् हिन्दू धर्म के प्रति जो नफ़रत फैलाई है, उसके लिए इसके सीईओ अभिनंनदन सेखरी, सिकड़ी, सिक-री (या जो भी नाम है) का गिलहरी योगदान आने वाले समय में याद रखा जा सकता है। ‘जा सकता है’ इसलिए क्योंकि वामपंथियों की आदत रही है अपने काम के लिए अपने ही कार्यकर्ताओं को निपटाते रहने का।

न्यूजलॉन्ड्री जब अस्तित्व में आई थी तो इसको लेकर खासा उत्साह था क्योंकि राडिया टेप आदि प्रकरण को ले कर आम जनता को लगा था कि सही में खबरों को धोने-सुखाने वाले लोग आए हैं। न्यूजलॉन्ड्री के शुरुआती दिनों में आनंद रंगनाथन जैसे विद्वान इससे जुड़े थे और रिपोर्टिंग एवम् विश्लेषण एक-आयामी नहीं था। तब के दिनों में हर वो मीडिया संस्थान या वैचारिक स्तम्भ लिखने वाले पत्रकार आदि इनके निशाने पर रहते थे जो पत्रकारिता का चोला ओढ़े अजेंडाबाजी में व्यस्त रहते थे।

समय बदला और फिर नक्सली विचारधारा और आतंकियों के हिमायतियों के हाथ में इसका नियंत्रण गया। अभिनंदन सेखरी जैसे नक्सल सिंपेथाइजर ने उस नक्सली की बातों का मजाक उड़ाया, जो छत्तीसगढ़ में 18 साल तक नक्सली रहने के बाद आत्मसमर्पण कर ऑपइंडिया से बातचीत करते हुए आज के कई शहरी नक्सलियों के नाम लेता पाया गया। अभिनंदन सेखरी आखिर इस बात का मखौल क्यों करेगा जहाँ कोई हार्डकोर नक्सली किसी दूसरे नक्सली का नाम ले रहा हो? क्योंकि वो नाम सुधा भारद्वाज और अरुण फरेरा जैसे लोगों के थे, जिन पर आज कल भीमा कोरेगाँव की हिंसा भड़काने और प्रधानमंत्री की हत्या की योजना के मामले अदालतों में चल रहे हैं।

जब जड़ में ही सड़न घुस चुकी हो तो पत्ते हरे कैसे होंगे? अभिनंदन सेखरी के प्रभाव ने कई ढंग के लोगों को छोड़ने को विवश किया, जिसमें आनंद रंगनाथन भी एक थे, और, कुछ लोगों के अनुसार, हाल के दिनों में मधु त्रेहान का अलग होना भी न्यूजलॉन्ड्री के रेबीज़ग्रस्त रिपोर्टिंग और विश्लेषण को ही बताया जाता है। लोग कहते हैं मधु त्रेहान ने काफी हद तक इस एकतरफा जाती गाड़ी को संतुलित बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन आत्ममुग्ध अभिनंदन सेखरी की नक्सली विचारधारा और अंतर्निहित हिन्दूघृणा ने न्यूजलॉन्ड्री को उसी शब्द के दायरे में बाँध दिया जिसे प्रेस्या या प्रेस्टीट्यूट कहा जाता है।

इसी शृंखला में तहलका प्रकरण पर इनकी रिपोर्टिंग से अचम्भा हुआ जब निरुपमा सेखरी ने ‘विक्टिम शेमिंग’ के नए कीर्तिमान स्थापित किए। उस रिपोर्ट को पढ़ने, और फिर यह जानने के बाद कि एक महिला ने यह खबर की है, आप मुँह में वमन कर देंगे और फेंकने को सिवाय ऐसे पत्रकार के नाम के, कोई जगह नहीं मिलेगी। इस रिपोर्ट में तरुण तेजपाल का पूरा पक्ष लेते हुए, वामपंथियों की दोगली शैली में (पहले लिखो कि मैं तरुण तेजपाल को बचा नहीं रही, और पूरा लेख यही साबित करने में लगे रहो कि वो बुद्ध का अवतार है) पीड़िता पर ऐसे सवाल किए जैसे उसने इस शारीरिक शोषण के बारे में बोल कर मानवता के खिलाफ अपराध किया हो।

मीडिया वाचडॉग यानी पत्रकारिता की धारा पर पैनी निगाह जमा कर लोगों तक उनके झूठ और प्रपंच को पकड़ने की बात कहने वाला न्यूज़लॉन्ड्री, आज भी अपने ‘अबाउट अस’ में ‘मीडिया क्रिटिक’ ही लिखता है, जबकि जिन बातों पर आक्रमणकारी हो कर यह पोर्टल अस्तित्व में आया था, आज वही सारे तिकड़म खुद करता है: एक पार्टी की गोद में लैपडान्स करना (आम आदमी पार्टी), एकतरफा रिपोर्टिंग जहाँ भाजपा सरकारों ने आज तक एक भी ढंग का काम नहीं किया है, फूहड़ लौंडों को सदी के विचारकों की तरह स्थापित करने के लिए विडियो/इंटरव्यू (राठी, बनर्जी, कामरा आदि), लगातार मुसलमानों को पीड़ित दिखाना और हिन्दुओं को एक सामान्यीकृत शोषक बताते रहना, घृणा से भरी हुई सेलेक्टिव तरीके के विश्लेषण जहाँ अपवादों को उदाहरण के तौर पर दिखाया जाता है। इन सारी बातों के लिए किसी शोध की आवश्यकता नहीं, न ही मैं कोई हायपरलिंक दूँगा। आप इनकी साइट पर जा कर किसी भी रैंडम जगह से दस लेख पढ़ लीजिए, समझ में आ जाएगा।

न्यूजलौंडी का अपना अजेंडाबाज: अभिनंदन सेखरी

अभिनंदन सेखरी के बारे में आप यह कह सकते हैं कि इस लम्मट ने अपनी अन्तश्चेतना बेच कर वामपंथी गिरोह के भीतरी कक्ष में प्रवृष्टि ली और मतिसुन्न हो कर, जमीर गिरवी रख कर न्यूजलॉन्ड्री की फंडिंग पाई। दूसरों पर तमाम तरह के आरोप मढ़ने वाले इस न्यूजलौंडी पर थोड़ा गौर करेंगे तो आप पाएँगे कि अर्णब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी से इसे और इसके कुछ कर्मचारियों को फेटिश की हद तक का प्रेम है, लेकिन हाँ कोई रवीश कुमार पर कुछ भी लिखे तो उसके व्यंग्यों को भी बेचारे फैक्टचेक कर देते हैं। (ख़ैर, व्यंग्य-कटाक्ष सबको समझ में नहीं आते, खास कर तब जब आपके वैचारिक पिता की लुंगी उतार दी गई हो तब तो आँख मूँदनी ही पड़ती है।)

ऑपइंडिया पर हिट जॉब

हाल ही में, न्यूजलौंडी ने ऑपइंडिया हिन्दी को ले कर एक तथाकथित प्रोफाइल करने की कोशिश की थी, जिसका एक ही उद्देश्य था ऑपइंडिया को ले कर अपने पूर्वग्रहों का विषवमन करना। इनके रिपोर्टर ने मुझसे फोन पर बात करते हुए ‘एथिक्स’ आदि का भी ज्ञान दिया था, और कहा था कि छापने से पहले मुझे मेरे फोन कॉल की रिकॉर्डिंग भी भेजेगा। ख़ैर, रिपोर्ट छपी न्यूजलौंडी हिन्दी पर, किसी ने देखा नहीं तीन दिन तक। फिर अचानक रवीश कुमार ने अपने पेज पर इसे जगह दे दी। ध्यान रहे कि रवीश कुमार के प्रपंचों के ऑपइंडिया एक अरसे से तथ्यों और तर्कों से काटता रहा है। इस रिपोर्ट में रवीश कुमार को ले कर ऑपइंडिया पर कई पन्ने समर्पित थे कि ऑपइंडिया ये करता है, वो करता है, ऐसे करता है, और वैसे भी करता है।

बाद में पता चला कि पूरी रिपोर्ट रवीश कुमार ने न सिर्फ छापने का विचार न्यूजलौंडी को दिया था, बल्कि उसका पूरा ड्राफ्ट पढ़ा, कुछ हिस्से लिखे और सोचा कि उनके नाम पर हो रहे ‘हमले’ के कारण लोग पढ़ लेंगे और ऑपइंडिया की थू-थू होगी। हुआ कुछ नहीं, तो फिर अपने पेज की रीच का इस्तेमाल करना चाहा। वहाँ इस रिपोर्ट को ले कर कमेंट में इतनी गालियाँ पड़ी हैं कि उस दिन से लगभग हर दिन (आप चाहें तो चेक कर लें) रवीश कुमार कम से कम एक पोस्ट में ‘आईटी सेल वाले नौजवानों की भाषा आप कमेंट में पढ़ लीजिए’ की बात अवश्य करते हैं।

ये हिट जॉब न तो रवीश के हिसाब से चल रहा था, न अभिनंदन सिक-री के, तो फिर इसका अनुवाद कराया गया अंग्रेजी में और फिर अपने इकोसिस्टम के सामूहिक फैंटेसी के उपभोग हेतु ट्विटर पर इसकी बिकवाली शुरू हुई। हालाँकि, इस पूरे रिपोर्ट पर मैंने एक विडियो में न्यूजलौंडी का घाघरा अच्छे से उतारा था, लेकिन अभिनंदन का मन नहीं भरा था, इसलिए अनुवाद करवाया। लेकिन इस रिपोर्ट के आने से एक अजीब बात हो गई, जिस कारण यह पूरा लेख लिखा जा रहा है।

इस लेख को पढ़ने के बाद न्यूजलॉन्ड्री के एक पूर्व पत्रकार ने हमसे सम्पर्क किया और कहा कि उसके पास अभिनंदन सेखरी के बारे में बहुत सारी बातें हैं कहने को। यूँ तो सेखरी की करतूतों को देखने के बाद आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये किस तरह का आवारा नक्सली है, लेकिन फिर भी किसी से फर्स्टहैंड सूचना मिल जाए तो सुनने में कोई बुराई नहीं। उसके बाद इस झबरे बालों वाले अभिनंदन के बारे में जो बातें सामने आईं वो न्यूज़लौंडी की दिशा, दशा और सेखरी के निम्न स्तर के अजेंडाबाज होने की पुष्टि करता है। यहाँ निम्न स्तर का या घटिया होने का मतलब वह अपने उद्देश्य में मनसा-वाचा-कर्मणा लगा हुआ है।

न्यूजलौंडी के अभिनंदन: हीनभावना से ग्रस्त, गालीबाज, नक्सल हिमायती

खैर, इस एक्स-न्यूजलॉन्ड्री पत्रकार ने, जो कि अभी एक राष्ट्रीय स्तर के पोर्टल के लिए काम करते हैं, अभिनंदन शेखरी के बारे में बताने से पहले नाम न छापने की अपील की। यूँ तो ये एक सामान्य अपील है, लेकिन पूछने पर जो बात पता चली वो अभिनंदन के बारे में काफी कुछ कहती है।

उसने कहा, “मैं नाम इसलिए नहीं बता सकता क्योंकि पहले भी मेरे एक सहकर्मी ने अभिनंदन के व्यवहार से दुखी हो कर नौकरी छोड़नी चाही, तो अभिनंदन ने अपनी पहुँच का इस्तेमाल करते हुए उसकी नौकरी एक लम्बे समय तक कहीं लगने ही नहीं दी। इनका एक नेक्सस है और ये खुल कर मेरे सामने बोल रहे थे कि ‘साले का करियर बर्बाद कर दूँगा’। अगर मेरा नाम आप लिखेंगे तो हो सकता है कि वो आर्टिकल के छपने के अगले दिन मुझे यहाँ की नौकरी से बाहर करा दे।”

मीडिया उद्योग में होने से इस बात की पुष्टि मैं भी कर सकता हूँ कि आपका वामपंथी बॉस अगर आपके पीछे पड़ जाए तो वो आपका करियर वाकई में बर्बाद कर सकता है। क्योंकि हर बड़े मीडिया हाउस में इनके जान-पहचान के लोग होते हैं, जिनके साथ या उनके नीचे इन्होंने काम किया होता है, चाटुकारिता से सीढ़ियाँ चढ़ी हुई होती हैं, तो ऐसे संबंधों का फायदा उठा कर करियर चौपट करना बहुत आसान है।

हमने उसे आश्वस्त किया तो आगे न्यूजलॉन्ड्री के वर्क कल्चर पर बताते हुए पूर्व न्यूजलॉन्ड्री पत्रकार ने दावा किया, “वर्क कल्चर वही है जो टिपिकल वामपंथी पोर्टलों का है। अभिनंदन की वैचारिक लाइन क्लियर है जहाँ वो हिन्दुओं पर हो रहे अपराधों को आम तौर पर इग्नोर कहता है, और गलती से भी कोई मुसलमान सामाजिक अपराध का भी शिकार हुआ है तो उसमें उसे किसी भी तरह हिन्दू-मुसलमान एंगल चाहिए ही। इसे आप अभिनंदन का SoP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर) कह सकते हैं। जैसे कि मान लीजिए कमलेश तिवारी की हत्या हुई। जिस तरह से हुई उससे साफ है कि मुसलमानों ने की, और क्यों की। लेकिन अभिनंदन की पहली प्रतिक्रिया यह होगी कि ‘साले संघियों ने कराया होगा ताकि इसका फायदा उठा सकें’। फिर वो किसी भी ऐसी अफवाह, एक भी सोशल मीडिया पोस्ट, या छोटे से लोकल फेसबुक पेज पर ‘पुलिस तलाश रही है प्रेम का एंगल’ को भी प्रमुखता से छाप सकता है। या फिर वो इन मौकों पर पूरी तरह से चुप रह जाएगा। अंग्रेजी में वो यहाँ तक कह देगा कि ऐसी बातों को जगह देने से सेकुलर फ्रैब्रिक टूटेगा, लोग उन्मादी हो जाएँगे।”

पुष्टि के लिए जब हमने ‘कमलेश तिवारी’ खोजने की कोशिश की, तो न हिन्दी, न अंग्रेजी में, एक भी लेख मिला जो इस हत्याकांड पर अपना वैचारिक पक्ष रख रहा हो। इसी तरह कई मौकों पर, जहाँ अपराधी मुसलमान हो तो उसकी गरीबी ऐसे खींच कर ले आएँगे जैसे कि गरीब दंगाइयों को पुलिस गरीबी देख कर छोड़ दे। हाल ही में जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने दंगाइयों से आगजनी, पत्थरबाजी, कट्टा चलाने आदि से हुई क्षति के लिए पैसा वसूलने की बात करते हुए उनके परिवारों को नोटिस भेजा तो न्यूजलौंडी के अभिनंदन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि गरीब लोग पैसा कहाँ से देंगे! ये तो इन गरीब दंगाइयों को घर से पेट्रोल और माचिस ले कर निकलने से पहले सोचना था न?

कुछ और रिपोर्ट जहाँ मुसलमान प्रेम फफक कर बाहर आता है

इसी शृंखला में एक और रिपोर्ट जामिया में हुए दंगों के बाद पुलिस द्वारा दंगाइयों को नियंत्रित करने की कोशिश को ‘आतंक की रात’ कह कर छापा। आप यह जान लीजिए कि दंगों के दूसरे ही दिन दस हार्डकोर अपराधी पुलिस द्वारा पकड़े गए, वहाँ 750 फर्जी आईकार्ड के मिलने की पुष्टि जामिया मिलिया ने ही की, और PFI के 150 इस्लामी कट्टरपंथियों के दंगे के दो दिन पहले से उसी इलाके में होने की पुष्टि पुलिस कर चुकी है। हाँ, जामिया के ‘हिन्दुओं से आजादी’, ‘गलियों में निकलने का वक्त आ गया है’, ‘तेरा मेरा रिश्ता क्या’, और ‘नारा ए तकबीर’ के नारों पर न्यूजलौंडी चुप है।

इसी तरह अलीगढ़ में पुलिस द्वारा जारी किए विडियो में छात्रों द्वारा गेट तोड़ने, आग लगाने की खबरों को दरकिनार करते हुए, वहाँ की दीवारों पर हिन्दुओं को कैलाश भेजने, खिलाफत 2.0 लिखने और कैंटीन के सामने ख़िलाफ़त के समर्थन में तख्तियाँ ले कर इकट्ठे छात्रों और ‘हिन्दुत्व की कबर खुदेगी, AMU की धरती पर’, के बावजूद न्यूजलौंडी के अजेंडाबाजों ने क्या छापा है? ‘जख्मी, पिटे, स्टन ग्रेनेड से हमले के बाद अलीगढ़ के विद्यार्थियों द्वारा ख़ौफ़नाक रात का वर्णन’! यहाँ भी एकतरफा पुलिस द्वारा नियंत्रण की कोशिश को ‘पुलिस की बर्बरता’ कह कर वामपंथी नैरेटिव को हवा देने की नाकाम चाल।

और तो और, इन्होंने अयोध्या मामले पर टीवी पर आने वाले साधुओं पर एक पूरा लेख लिखा है जिसके शीर्षक से ही हिन्दूघृणा का पहला स्वाद आप तक पहुँच जाएगा। हालाँकि, बहुत खोजने पर भी कमलेश तिवारी की हत्या को जायज ठहराने वाले कठमुल्लों या आम मुसलमान पैनलिस्टों पर कोई लेख नहीं मिला। अगर बात चीखने की ही है तो मेंहदी लगाए दाढ़ी और टोपीधारी मुल्लों पर न्यूजलौंडी अपने किसी रिपोर्टर को क्यों नहीं भेज पाता? क्योंकि इससे अभिनंदन के वैचारिक चाचा-मामा के बारे में कई बातें बाहर आ जातीं!

न्यूजलॉन्ड्री से पहले जुड़े पत्रकार ने बताया, “सेखरी का फंडा सीधा और सपाट है कि मुसलमानों को, नक्सलियों को, आतंकियों तक को, विक्टिम बना कर दिखाना है। ये लोग कभी भी मुसलमानों के अपराधों पर मुखर हो कर नहीं लिखते। मीडिया क्रिटिक बनने के नाम पर इनका काम बस राइट विंग वाले लोगों को टार्गेट करना है, बाकी का काम इकोसिस्टम कर देता है। मुझे घिन आती है इस आदमी से कि यह सीधे चेहरे के साथ सहकर्मियों को ऐसा लिखने को कैसे कहता है!”

आगे उसने कहा, “अभिनंदन वाकई में एक इन्सिक्योर इंसान है। वो हीनभावना से भरा हुआ है लेकिन हमेशा अपने सीईओ होने के घमंड में भरा रहता है। हर दूसरे बात पर माँ-बहन की गालियाँ देना… कुछ गालियाँ इतनी खराब की मैं बता नहीं सकता! इसके साथ कोई भी ढंग का व्यक्ति ज्यादा दिन काम नहीं कर सकता। मधु मैम ने भी शायद उसकी इन्हीं हरकतों के कारण किनारा कर लिया। कई अच्छे लोग यहाँ इसलिए नहीं टिक पाए क्योंकि अभिनंदन एक ऐसहोल है। हाँ, मैं यही कहूँगा क्योंकि उसे लगता है अंग्रेजी में गालियाँ देना कूल है।”

न्यूजलौंडी पर क्या है, किस तरह का है, यह जानने के लिए आपको किसी शोध की आवश्यकता नहीं है। साइट पर जाइए, स्क्रॉल कीजिए (क्योंकि पढ़ने लायक कुछ होता नहीं), आपको पता चल जाएगा कि अभिनन्दन शेखरी अरविंद केजरीवाल का पिट्ठू है। आम आदमी पार्टी ने जनता का रिपोर्टर जैसी वेबसाइट और अंकित लाल जैसे लोगों में पैसा क्यों खर्च किया, जबकि अभिनंदन शेखरी और न्यूज़लॉन्ड्री पब्लिक से ‘खबरें देना जनता की सेवा है’ के नाम पर पैसे उठा कर आम आदमी के समर्थन और भाजपा के विरोध में प्रचार करती ही है, यह आश्चर्य की बात है।

पूर्व कर्मचारी ने इस पर भी बताया, “मैं ये तो नहीं जानता कि आम आदमी पार्टी इन लोगों को पैसे देती है, लेकिन जिस तरह के लोगों को ये प्रमोट करते हैं जैसे कि आकाश बनर्जी, ध्रुव राठी आदि हैं, सीधे तौर पर एक राजनैतिक अजेंडे को बढ़ाने जैसा है। भाजपा को लेकर इनकी मंशा विरोध तक ही सीमित नहीं, अभिनंदन तो कहता है कि अगर तुम भाजपा के समर्थन में हो तो तुम्हें मानव नहीं कहा जा सकता। किसी पत्रकार के द्वारा इस तरह की अतिवादी सोच पर मुझे आश्चर्य होता था। लेकिन मेरे जाने के बाद ये लोग यही काम दिल्ली चुनावों को देखते हुए, और भी सक्रिय रूप से कर रहे हैं।”

प्रपंच पोर्टल की खबरों के शीर्षक देखिए, समझ जाएँगे

न्यूजलौंडी पर जिस तरह की खबरें हैं, जिन लोगों के इंटरव्यू हैं, जैसे सवाल पूछे जाते हैं, उसे देख कर पूर्व कर्मचारी की बात पर सवाल उठाना मुश्किल ही है। ये जानने के लिए हमें किसी स्वघोषित मीडिया क्रिटिक के पास जाने की आवश्यकता नहीं है कि न्यूजलॉन्ड्री इस तरह की एकतरफा, हिन्दूफोबिक, तल्ख और गैरवामपंथी विचारों के लिए अंतर्निहित घृणा से सनी पत्रकारिता क्यों करता है।

मोदी के सरकार में आने से, और तत्पश्चात् भाजपा की लगातार बनती राज्य सरकारों ने एक वैसी विचाराधारा को उभरने का मौका दिया जिन्हें एक लाइन में खारिज कर दिया जाता था। सोशल मीडिया के आने से उनकी अभिव्यक्ति को भी बल मिला है। रक्तरंजित वामपंथी विचारधारा और आतंकियों को हिमायती पत्रकारों, पोर्टलों पर लोगों ने सवाल उठाने शुरू किए तो एक तरह की घृणा से इंधन पाने वाले नितम्ब चिपका कर एक हो गए और अपने पाठकों को बरगलाना शुरू किया।

इसी कारण आपको वामपंथी पाठकों में फ्लैक्सिबिलिटी का अभाव दिखेगा। वो नाम के उदारवादी हैं, जबकि वैचारिक लोच का पूर्ण अभाव है इनके भीतर। न्यूजलौंडी जैसे पोर्टलों ने इसी जहरीले विचार को पकड़ा और अपने पाठकों को इकट्ठा करना शुरू किया। ये कुछ वैसे ही जैसे अकबरुद्दीन ओवैसी मुसलमान वोटों को इकट्ठा करने के लिए पंद्रह मिनट पुलिस हटाने की धमकी देता है। अभिनंदन सेखरी, अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे दंगाइयों का परिष्कृत संस्करण है, जिसे अंग्रेजी बोलनी आती है और वो मोदी को मोदी ही कहता है, मुडी या मोडी नहीं।

कमाल की बात यह है कि सिक-री के न्यूजलौंडी लेखक पेज पर उसके परिचय में एक लाइन लिखी हुई है, जिसका अनुवाद यह है: न्यूजट्रैक के लिए शोध करने वाले अभिनंदन बाद में ऐसे रिपोर्टर बने, जिन्होंने वैसी खबरों को किया जो बाकी छोड़ देते थे। पहली नजर में आपको ये सकारात्मक लगेगा लेकिन ये अभिनंदन की सच्चाई है कि जिन खबरों में कुछ नहीं होता, वहाँ ये हिन्दू-मुसलमान ले आता है, इसे गुरुद्वारे में सिख-मुस्लिम सद्भाव दिखता है, लेकिन पूरे भारत में हिन्दू-मुसलमान का सौहार्द नहीं दिखता। इसे तबरेज दिखता है, जुनैद दिखता है, अखलाक दिखता है, लेकिन भारत यादव, अंकित सक्सेना, ध्रुव त्यागी नहीं दिखते।

अभिनंदन के इसी टैलेंट की बात करते हुए पूर्व सहकर्मी ने बताया, “अगर कोई खबर आए, जो राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बन चुका हो, हमें लगता है कि करना चाहिए और उसमें अपराधी मुसलमान हो, तो सेखरी अलग लाइन ले लेता है: यू नो… दे आर आलरेडी लिविंग इन फियर, द फासिस्ट संघीज़ आर पुशिंग देम टू वाल एवरीव्हेयर… इन दिस एटमोस्फियर, वी जस्ट कान्ट डू दीज काइन्ड्स ऑफ स्टोरीज़! (तुम लोग समझते नहीं कि वो बेचारे किस तरह के डर में जीते हैं, ये फासीवादी संघी उन्हें हर जगह सता रहे हैं… ऐसे माहौल में हम इस तरह की खबरें नहीं कर सकते।) ऐसी स्थिति में आप कुछ नहीं कर सकते। ये आपको हर दिन सहना होता है ताकि किसी नकली डर से डरे हुए मुसलमान के अपराध की चर्चा तक न हो न्यूजलॉन्ड्री पर। हमेशा ‘कीप डिगिंग’ (खोजते रहो) कह कर कुछ ऐसा खोजने को कहा जाता है जहाँ किसी नक्सली, आतंकी या मुसलमान अपराधी का कोई मानवीय दृष्टिकोण सामने लाया जा सके। जैसे कि वो गरीब है, उसके जेल जाने से घरवालों को कौन खिलाएगा, उसकी बहन कैसे पढ़ेगी, बाप भजन गाता था… या कुछ भी इस तरह का। कभी-कभी आप अभिनंदन के ‘इविल जीनियस’ को अडमायर करने लगते हैं कि जो भी कहो, बंदा इस मामले में टैलेंटेड तो है ही!”

न्यूजलौंडी के कुछ नायाब कारनामे

वामपंथियों पर अगर किसी ने आलोचनात्मक लेख लिखा तो न्यूजलौंडी तुरंत उस पर सीधे लेख लिख कर धावा बोलती है, या फिर अपने गिरोह के द्वारा ऐसे लोगों की डिजिटल लिंचिंग में शरीक हो जाती है। अपने ही लिखे हुए लेखों को मिटाना, किसी खास पत्रकार को बचाना, उसकी साख पर किसी भी तरह की आँच न आने देना आदि आम बात है। मधु त्रेहान ने स्वयं क्लिप को हटाने की बात को स्वीकारा जहाँ जितेन्द्र सिंह नामक व्यक्ति ने सवाल उठाए कि राजदीप सरदेसाई के पास ₹52 करोड़ का बंग्ला कैसे है? उसी तरह समर हलरंकर पर न्यूजलौंडी ने एक लेख लिखा जिसमें उसने हिन्दुस्तान टाइम्स में कोई लेख लिखा था, जिस पर चोरी का आरोप लगा था। न्यूजलौंडी ‘फैक्ट्स’ को बाहर लाने की बात कर रही थी, आज आप वो लेख खोजने जाएँगे, तो हेडलाइन के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।

ख़ैर, लिस्ट लम्बी है। हाल ही में, चाँदनी चौक के हौजकाजी इलाके में मुसलमानों की एक भीड़ ने हिन्दू अल्पसंख्यकों के मंदिर पर पत्थबाजी की, मूर्तियाँ खंडित की, मंदिर को क्षति पहुँचाई। हमारी अंग्रेजी की एडिटर नुपुर शर्मा ने वहाँ जा कर ग्राउंड रिपोर्ट लिखी। उसी मामले में वहाँ एक सत्रह वर्ष के बच्चे को कथित तौर पर मुसलमानों की भीड़ द्वारा मस्जिद में खींच कर ले जाने की बात सामने आई। उसके माता-पिता अपनी बात किसी के द्वारा न सुने जाने पर सड़क पर, हताशा में, आत्महत्या करने की बात कर रहे थे। नुपुर की रिपोर्ट पहली (और शायद आखिरी थी) उस बच्चे के बारे में। चार दिन बाद बच्चा किसी तरह वापस आया। अब न्यूजलौंडी जगा और कहने लगा कि बच्चा जब वापस आ गया तो इस रिपोर्ट को करने की क्या ज़रूरत थी!

मतलब, हमें चार दिन पहले पता चल जाना चाहिए था कि वो बच्चा वापस आ जाएगा। जैसे कि नजीब अहमद आज तक वापस नहीं आया, तो उसकी रिपोर्टिंग बंद हो जानी चाहिए! ये नमूने विचित्र हैं बिलकुल! इसी तरह, सीईओ सेखरी ने, जो कि केजरीवाल का पुराना साथी भी है, स्वराज्य मैग्जीन की स्वाति गोयल शर्मा को उन्मादी कह बैठा क्योंकि उन्होंने गुरुग्राम के टोपी कांड की सच्चाई बाहर लाई थी। याद हो कि मोदी के दूसरी बार सत्ता में आने के तुरंत बाद ‘जय श्री राम’ को ले कर एक फर्जी खबरों का प्रचलन दिखा था, उसी क्रम में गुरुग्राम में मोहम्मद बरकत आलम के ‘टोपी कांड’ को मुख्यधारा के मीडिया गिरोह ने ‘हेट क्राइम’ कह कर छापा था। जब न्यूजलौंडी का झूठ नाम ले कर पकड़ लिया गया तो सीईओ सेखरी अंग्रेजी में गाली-गलौज करने लगा।

आयुष्मान भारत पर इन्होंने अर्धसत्य और लम्बे-लम्बे झूठ छापे ताकि इस योजना की साख गिरे। वहाँ इन्होंने पूरा प्रोपेगेंडा पेला कि इन लोगों को बाहर रखा जाएगा, उन्हें बाहर रखा जाएगा और हमने जाँच की तो पाया न्यूजलौंडी वही कर रहा था, जिसके लिए आज कल जाना जाता है: भावहीन चेहरे के साथ प्रपंच फैलाना। इनकी हिन्दूघृणा खुल कर सामने आ गई जब इन्होंने राष्ट्रपति कोविंद और उनकी धर्मपत्नी द्वारा जगन्नाथ मंदिर में ‘पुजारियों द्वारा जातिगत भेदभाव के कारण बुरे बर्ताव’ की बात खबरों में छापी। न्यूजलौंडी ने इस खबर को बाद में बेशर्मी के साथ हटा दिया।

साथ ही, इनके अनेक ऐसे कांडों में साइट पर या अपने स्तम्भकारों की मदद से प्रधानमंत्री मोदी के बारे वैचारिक जहर उगलने से ले कर सीधे-सीधे झूठ फैलाने की बातें सामने आईं कि गुजरात चुनावों के समय वो अजमेर शरीफ में एक मुसलमान चिश्ती से मिल रहे थे ताकि मुस्लिम तुष्टीकरण से फायदा हो। जबकि वो विडियो पुरानी थी। इसी तरह, प्रधानमंत्री की बातों को संदर्भ से बाहर ले कर न्यूजलौंडी ने लिखा कि नरेन्द्र मोदी ने ‘दलित विरोधी’ बात कही है। जबकि, इसके उलट जो बात कही गई वो यह थी कि मीडिया को हर खबर में दलित-सवर्ण जैसी बात लाने से बचना चाहिए।

अगर कल वाली (जनवरी 5, 2020) JNU हिंसा की बात करें तो न्यूजलौंडी के बिके जमीर की बात और निखर कर सामने आती है। पूर्वग्रह से ग्रस्त, आम जनता द्वारा लगातार नंगे किए जाने के बावजूद, अंतिम साँस की हुकहुकी पर चलते इस वामपंथी पोर्टल ने इस हिंसा के लिए ABVP को जिम्मेदार ठहराने का मन बना लिया था। इस कारण, जब इस पार्टी के बच्चे AIIMS में चिकित्सा के लिए पहुँचे तो इन्होंने एक डॉक्टर भट्टी को कहीं से निकाला और उनसे कहलवाया कि ‘ABVP वालों की चोटें फर्जी लग रही थीं।’ चूँकि खबर न्यूजलौंडी की थी तो पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा ने इस पर पड़ताल की। पता चला कि डॉक्टर साहब, डॉक्टर कम अजेंडाबाजी और राजनीति में ज्यादा सक्रिय हैं। डॉक्टर साहब CAA-NRC प्रदर्शनों के लिए प्रदर्शनकारी जुटाने के काम में अपने फेसबुक पेज पर व्यस्त पाए गए हैं। और अगर इतना ही काम नहीं था तो पता चला कि डॉ भट्टी कॉन्ग्रेस के मेडिकल सेल के नेशनल कन्वीनर हैं।

2018 की जनवरी में प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ की एक महिला पत्रकार, दमयंती धर, ने यह शिकायत अपने एडिटर से की कि जब वो एक डॉक्टर का इंटरव्यू ले रही थीं, तब एक कथित दलित एक्टिविस्ट केवल राठौड़ और कई अन्य लोगों ने उनके साथ न सिर्फ धक्का-मुक्की की, बल्कि गालियाँ दी, मोबाइल छीने, विडियो डिलीट किया और उनके साथ जो हुआ वो रिकॉर्ड करते रहे। एडिटर ने कहा ‘जाने दो, ये सब तो पत्रकारिता में चलता रहता है’। दमयंती ने तब लिखा था कि उन्हें उस दिन समझ में आया कि वामपंथी एडिटरों का दोगलापन कैसा होता है। अब असली बात, न्यूजलौंडी जो खुद को मीडिया पर नजर रखने वाला कुत्ता कहता है, वो कुत्तपनी कर गया और उसने इस पर कोई रिपोर्ट नहीं की। ये जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि इनकी बिरादरी के पत्रकारों पर अगर कोई जोर से चिल्लाता भी है, तो झबरा अभिनंदन झाऊँ-झाऊँ करते हुए 360° देखने लगता है कि कहीं कोई भगवा रंग तो नहीं दिख रहा।

ये तो कुछ ऐसी खबरें हैं जो बताती हैं कि इनसे गलतियाँ नहीं होतीं, बल्कि सोच-समझ कर, योजनाबद्ध तरीके से न्यूजलौंडी इस तरह के ‘हिट जॉब’ में शामिल रहता है। नैरेटिव बना कर चुनाव की पूर्व संध्या पर वैचारिक लेखों के माध्यम से गैरभाजपा पार्टियों के लिए न्यूजरूम कैम्पेनिंग से ले कर, लोगों में हिन्दू-मुस्लिम घृणा फैलाने की बातें करना इनके कई अजेंडे में से एक है। ईकोसिस्टम के सहयोग से एक ही तरह की खबरें, वैचारिक स्तंभों के नाम पर, ‘हम तो निष्पक्ष हैं’ के चोले में, न्यूज़लौंडी और अभिनंदन सेखरी ने लगातार लिखी हैं, लिखवाई हैं।

न्यूजलौंडी पर विषयों का चयन भी उसकी विचारधारा के हिसाब से होता है, आम आदमी पार्टी की विचारधारा के हिसाब से होता है, और इस बात से होता है कि पाठकों का ध्रुवीकरण करने के लिए किस एंगल से, क्या बातें कहना उचित रहेगा। वैचारिक दंगाई, या विचारों का दोगलापन जैसे वाक्यांश अगर भौतिक शरीर पा जाते तो उनकी शक्ल अभिनंदन सेखरी से मिलती और बाल झबरा कुत्ते से। इसकी फर्जी, प्रपंची पत्रकारिता कैसी है, वो बताने के लिए मैं (दोबारा) यहाँ कोई हायपरलिंक नहीं दूँगा क्योंकि ऐसे पोर्टलों पर आपका एक विजिट भी उस पाप में आपका योगदान होगा, जो इस राष्ट्र को तोड़ रहा है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘गालीबाज’ देवदत्त पटनायक का संस्कृति मंत्रालय वाला सेमिनार कैंसिल: पहले बनाया गया था मेहमान, विरोध के बाद पलटा फैसला

साहित्य अकादमी ने देवदत्त पटनायक को भारतीय पुराणों पर सेमिनार के उद्घाटन भाषण के लिए आमंत्रित किया था, जिसका महिलाओं को गालियाँ देने का लंबा अतीत रहा है।

नाथूराम गोडसे का शव परिवार को क्यों नहीं दिया? दाह संस्कार और अस्थियों का विसर्जन पुलिस ने क्यों किया? – ‘नेहरू सरकार का आदेश’...

नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के साथ ये ठीक उसी तरह से हुआ, जैसा आजादी से पहले सरदार भगत सिंह और उनके साथियों के साथ अंग्रेजों ने किया था।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -