Saturday, July 27, 2024
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अब तो सच बोल दे… राहुल! डोभाल और मसूद पर अपनी माँ से क्यों नहीं पूछते

आज कंधार-कंधार की रट लगाने वालों को अपनी पार्टी के दोनों सुप्रीम नेताओं- सोनिया गाँधी और डॉक्टर मनमोहन सिंह से पूछना चाहिए कि क्या उस बैठक में उन्होंने आतंकियों को रिहा करने और फँसे नागरिकों को छुड़ाने का विरोध किया था?

अक्सर झूठ बोलने वाले कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी एक बार फिर से झूठ बोलते हुए पकड़े गए हैं। मसूद अज़हर को सम्मानपूर्वक सम्बोधित करने वाले राहुल गाँधी ने अपने भाषण में एक और झूठ बोला। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों और पोस्ट्स के आधार पर झूठ बोलने वाले राहुल ने एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि कंधार प्लेन हाईजैक काण्ड के दौरान अजीत डोभाल आतंकी मसूद अज़हर को छोड़ने कंधार गए थे। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने राहुल के इस बयान का खंडन किया है। रिपोर्ट में रक्षा सूत्रों के हवाले से साफ़-साफ़ कहा गया है कि अजीत डोभाल विमान से आतंकी मसूद को छोड़ने कंधार नहीं गए थे। उस समय आईबी में एडिशनल डायरेक्टर रहे डोभाल उस विमान में मौजूद ही नहीं थे, जिसमें आतंकियों को कंधार छोड़ा गया था।

अजीत डोभाल उस नेगोशिएशन टीम का हिस्सा थे जो आतंकियों से बातचीत कर किसी फाइनल डील पर पहुँचने की कोशिश कर रही थी ताकि 150 से भी अधिक नागरिकों को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाया जा सके। तालिबानी आतंकियों को पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने अपनी पुस्तक ‘My Country, My Life’ में इसकी पुष्टि की है। तत्कालीन रॉ प्रमुख ए एस दुतल ने भी इस बात को दोहराया है। राहुल गाँधी ने एक ट्वीट में दावा किया है कि डोभाल आतंकियों को छोड़ने कंधार गए थे। राहुल गाँधी के इस दावे को यूथ कॉन्ग्रेस सोशल मीडिया प्रमुख राधिका खेरा और कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य रणदीप सुरजेवाला सहित कई नेताओं ने आगे बढ़ाया।

कंधार विमान हाईजैक कांड के दौरान विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह आतंकी मसूद अज़हर, उमर शेख और मुस्तक़ जरगर के साथ विमान से कंधार रवाना हुए थे। उनके साथ अधिकारी विवेक काटजू मौजूद थे। मसूद अज़हर ने उसके बाद पाकिस्तान पहुँच कर जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकी संगठन की स्थापना की। पठानकोट और पुलवामा में हुए हमले में इसी आतंकी संगठन का हाथ था। आतंकी उमर ने बाद में अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या कर दी थी। नवभारत टाइम्स ने अपने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि अपहरणकर्ताओं की धमकी को ध्यान में रखते हुए वाजपेयी सरकार ने तीनों आतंकियों को रिहा करने का निर्णय लिया। आतंकियों ने धमकी दी थी कि अगर उनकी माँगें नहीं मानी गई तो वे बंधक बनाए गए नागरिकों की हत्या कर देंगे।

रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि यह फ़ैसला कितना सही और कितना गलत था- इस पर बहस हो सकती है, लेकिन किसी अधिकारी का नाम लेकर उसे कटघरे में खड़ा करना सही नहीं है। अधिकारी तो बस अपनी ड्यूटी कर रहे थे, जो सरकार द्वारा उन्हें सौंपी गई थी। आपको यह भी जानना चाहिए कि कंधार काण्ड को अंजाम देने वाले आतंकियों ने पहले तो भारत की विभिन्न जेलों में बंद 36 आतंकियों को रिहा करने के साथ-साथ 14 अरब रुपए की फिरौती भी माँगी थी। वाजपेयी सरकार की कूटनीति और भारतीय वार्ताकारों की काफ़ी मशक्कत के बाद आतंकियों की माँगों को कम किया गया। वार्ताकारों के पैनल में डोभाल के साथ आईबी में कार्यरत एनएस सिद्धू और वरिष्ठ रॉ अधिकारी सीडी सहाय भी शामिल थे। वार्ताकारों के काफ़ी मोलभाव के बाद आतंकी झुके।

आज कंधार-कंधार की रट लगाने वालों को अपनी पार्टी के दोनों सुप्रीम नेताओं- सोनिया गाँधी और डॉक्टर मनमोहन सिंह से पूछना चाहिए कि क्या उस बैठक में उन्होंने आतंकियों को रिहा करने और फँसे नागरिकों को छुड़ाने का विरोध किया था? अगर नहीं, तो राहुल गाँधी सहित आज के नेताओं को अपने सीनियर्स से कोचिंग लेकर उस समय की परिस्थितियों से अवगत होना चाहिए। रुबैया के अपहरण के बाद 5 आतंकी छोड़े गए थे। इसके एक दशक बाद 150 के लगभग यात्रियों की सकुशल वापसी के लिए 3 आतंकी छोड़े गए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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