Friday, November 15, 2024
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हिन्दू राष्ट्र, मोदी आजीवन राष्ट्रपति और राहुल के 3 इस्तीफे: राजदीप सरदेसाई, ये ‘डर’ अच्छा लगा

राजदीप के इस लेख में हिन्दू प्रतीक 'स्वस्तिक' का अपमान किया गया है। इसे नाजी सलाम के साथ दिखाया गया है। राजदीप को उम्मीद है कि दिसंबर 2019 की तरह ही देश भर में भयंकर दंगे होंगे और मोदी सरकार अपदस्थ कर दी जाएगी।

डर- एक ऐसा शब्द है, ऐसी भावना है, जिसे किसी के मन में बिठा कर आप अपना काम निकाल सकते हैं। किसी को उसके काल्पनिक दुश्मन का डर दिखा कर उससे काम निकलवाया जा सकता है। पाकिस्तान, अमेरिका को धमका सकता है कि अगर उसने उसका साथ नहीं दिया तो वो चीन के क़रीब हो जाएगा। वामपंथियों की भी यही चाल रही है। वो मुस्लिमों को हिन्दुओं का डर दिखाते हैं और दलितों को कथित सवर्णों का। फिर वो बताते हैं कि इस डर को खत्म कैसे किया जाए? यहाँ हम ये भी सोच सकते हैं कि जिस डर को वामपंथी किसी के मन में बिठाने का प्रयास करते हैं, क्या उसका कुछ भाग उनके मन में भी रहता है? क्या वो अपने X मात्रा में डर को 100X बना कर पेश करते हैं।

राजदीप सरदेसाई के ताज़ा लेख से तो यही लगता है। उनका मानना है कि अगला दशक काफ़ी अशांत रहने वाला है। कारण? क्योंकि 2029 में नरेंद्र मोदी चौथी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे होंगे। सरदेसाई अपने मन में बैठे ‘डर’ को ‘जनता का डर’ और ‘ख़तरनाक भविष्य’ बता कर पेश कर रहे हैं। उनका ये डर और भी गहरा तब हो जाता है, जब वो कल्पना करते हैं कि पीएम मोदी 2029 की जीत के बाद राष्ट्रपति भी बन सकते हैं। लोकतंत्र तार-तार हो गया है और संविधान में बदलाव कर के राष्ट्रपति द्वारा ही सरकार चलाने का प्रावधान किया गया है।

क्या ये सरदेसाई का डर है? या फिर वो एक ‘डर’ का निर्माण कर रहे हैं, कल्पनाओं का आधार पर। वो डर, जिसे दिखा कर वो जनता को बरगला सकते हैं। उन्हें ये भी डर है कि धर्मनिरपेक्ष अर्थात सेक्युलर, इस शब्द को संविधान से निकाल बाहर किया जाएगा। सरदेसाई लिखते हैं कि 2029 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ हो रहे हैं, भारत हिन्दू राष्ट्र बन गया है और मोदी ज़िंदगी भर के लिए राष्ट्रपति बन गए हैं। राजदीप सरदेसाई जैसों के लिए ‘डर’ को प्लांट करना कठिन नहीं है। वो शब्दों के साथ खेल कर ऐसा कर लेते हैं। फिर इस ‘डर’ का समाधान क्या है? वही है, जो वामपंथी बताएँगे।

आप क्रोनोलॉजी समझिए। वो डर का निर्माण करेंगे, डर दिखाएँगे और फिर उसका समाधान बताएँगे। फिर अगले ही पैराग्राफ में सरदेसाई पूछते हैं कि क्या ये सिर्फ़ एक कल्पना भर है? यहाँ वो उदाहरण देने के लिए एक दशक पीछे जाते हैं। अब तक वो एक दशक आगे घूम रहे थे। बकौल सरदेसाई, जनता ने 2009 में हिंदुत्व को नकार दिया था। भले ही उस चुनाव में भाजपा की हार के हज़ार कारण हों, इसे ‘हिंदुत्व की हार’ के रूप में ही देखा जाएगा। सरदेसाई ने फरमान जारी कर दिया है तो बाकी के वामपंथी भी हुआँ-हुआँ करते हुए इसे दोहराएँगे ही। सच है, 2009 में एलके आडवाणी थके-थके लग रहे थे और वाजपेयी संन्यास ले चुके थे।

राजदीप सरदेसाई का लेख इंडिया टुडे में: स्वस्तिक का अपमान

इसके बाद शुरू होता है राजदीप का असली प्रपंच। राजदीप लिखते हैं कि उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे नेता थे, जिनके बारे में धारणा बना दी गई थी कि वो विभाजन पैदा करने वाले नेता हैं। यहाँ ‘वाइब्रेंट गुजरात’ से लेकर ‘डिजिटल शिकायत प्लेटफॉर्म’ तक, सभी चीजें गौण हो जाती है और गुजरात में विकास की बात न कर मोदी को विभाजनकारी इसलिए बताया जाता है क्योंकि ये ‘धारणा’ इन्हीं वामपंथियों ने बनाई थी। 2002 दंगों को रटने वाले राजदीप को ये बखूबी पता है। लेकिन फिर भी, वो लिखते हैं कि मोदी की विभाजनकारी छवि उस समय गठबंधन सरकार चलाने के लिए उपयुक्त नहीं मानी जा रही थी।

आम धारणा वही है, जो वामपंथी लिख दें। राजदीप का यहीं से विलाप प्रारम्भ हो जाता है। वो लिखते हैं कि देखो, 2009 के सारे राजनीतिक विश्लेषण फेल हो गए और आज नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी हस्ती हैं, जिनके इर्द-गिर्द संगठन और सरकार दोनों ही घूम रही है। फिर राजदीप को इस बात से थोड़ी ख़ुशी मिलती है कि मार्च 2017 में 71% भूभाग पर राज करने वाली भाजपा राज्यों में अब मात्र 50% से भी कम पर आ गई है। राजदीप को महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के दोबारा सीएम बनने वाले प्रकरण से भी थोड़ी उम्मीद बँधती है। वे लिखते हैं कि सत्ता का समीकरण तो महज 12 घंटों में भी बदल सकता है।

राजदीप का डर फिर से आकर उनके सिर पर बैठ जाता है क्योंकि राज्यों में भाजपा की हार कैसे-कैसे हुई है, ये उन्हें भी पता है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कॉन्ग्रेस ने बहुमत न मिलने के बावजूद सरकार बनाई। जम्मू-कश्मीर 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित हो गया। महाराष्ट्र में राजग को बहुमत मिलने के बावजूद भाजपा को सत्ता से दूर रखा गया। झारखंड में भाजपा के वोट शेयर में वृद्धि हुई है। राजदीप जानते हैं कि भाजपा कमज़ोर नहीं हुई है और यही बात वो लिखते भी हैं कि भले ही राज्यों में भाजपा हार जाए, हिंदुत्व वाली विचारधारा का मुख्यधारा का नैरेटिव बन जाना खतरनाक है और ये आगे बढ़ता जाएगा।

राजदीप ने अभी मोदी का डर दिखाया। हिन्दू राष्ट्र का डर दिखाया। अब वो नया डर ये दिखाते हैं कि भले ही भाजपा और मोदी रहें न रहें, हिंदुत्व तो राजनीति में घुस चुका है। बकौल सरदेसाई, भारत के माध्यम वर्गीय परिवारों को अपनी हिन्दू जड़ों का भान हो चुका है और मुस्लिम-विरोधी प्रोपेगेंडा के प्रभाव में एक पूरी की पूरी जनरेशन बड़ी हो रही है। जैसा कि अपेक्षित है, सीएए विरोध के नाम पर मुस्लिमों की भीड़ द्वारा रेलवे को 250 करोड़ का नुकसान पहुँचाए जाने और जुमे की नमाज के बाद सार्वजनिक सम्पत्तियों को तोड़फोड़ कर दंगा करने वालों के बारे में उन्होंने कुछ नहीं लिखा।

किसने चलाया एंटी-मुस्लिम प्रोपेगेंडा? पीएम मोदी तो ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करते हैं। अगर मीडिया ने चलाया तो राजदीप भी इसके बराबर के दोषी हुए। दरअसल, राजदीप चाहते हैं कि हम इस पर बात करें कि एंटी-मुस्लिम प्रोपेगेंडा किसने चलाया। लेकिन वास्तविकता ये है कि ऐसा कोई प्रोपेगंडा बड़े स्तर पर है ही नहीं और जनता आज सोशल मीडिया के ज़माने में वो सब देख रही है, जो हो रहा है। हर घटना का सही चित्रण जनता तक पहुँच रहा है। ऐसे में राजदीप जैसों का किरदार सीमित रह गया है और यही उनके पिनपिनाने का कारण भी है।

“अयोध्या, काशी और मथुरा में मंदिरों का निर्माण शुरू हो जाएगा। विहिप और आरएसएस इन कार्यों में लगी होगी। 2024 में एक भव्य राम मंदिर खड़ा हो जाएगा। शिक्षा व्यवस्था हिंदुत्व के अनुसार चलेगी। अल्पसंख्यक मामले मंत्रालय को फंडिंग नहीं मिलेगी। मंदिरों की सुरक्षा के लिए एक अलग मंत्रालय बनेगा।” एक साँस में इतने सारे झूठ बोलने की काबिलियत राजदीप और उनके गैंग में ही हो सकती है। कल्पना की चाशनी में झूठ मिला कर डर के साथ परोसने पर वो काम कर जाता है। राजदीप ने भी यहाँ झूठा डर दिखाया। किसने अल्पसंख्यक मामलों मंत्रालय की फंडिंग रोकी है?

जरा वास्तविकता तो देख लें। माइनॉरिटी अफेयर्स मिनिस्ट्री को 2016-17 के बजट में 3800 करोड़ रुपए मिले थे। अगले वर्ष यह बढ़ कर 4195 करोड़ रुपया हो गया। 2018-19 और 2019-20 में ये बढ़ कर 4700 करोड़ हो गया। 2013 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अल्पसंख्यक मामले मंत्रालय को 3511 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया था। यानी मोदी सरकार के अंतर्गत पिछले 6 वर्षों में मंत्रालय को मिलने वाली धनराशि में 1200 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ है। लेकिन नहीं, मोदी तो बजट हटा देगा। क्यों हटा देगा? क्योंकि राजदीप ने लिख दिया।

लेकिन हाँ, राजदीप की सोच देखिए। वो 2029 की भविष्यवाणी करते हुए लिखते हैं कि भारत पीओके पर कब्ज़ा करने का प्रयास करेगा लेकिन वो सफल नहीं होगा। राजदीप को जानना चाहिए कि पीओके को भारत ‘Capture’ नहीं करेगा, बल्कि ‘Regain’ करेगा, जो अभी भी इसी देश का हिस्सा है। राजदीप यहाँ ‘Capture’ की जगह अंग्रेजी के कई शब्दों का प्रयोग कर सकते थे, वो ‘Take Back’ लिख सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसे अवैध कब्ज़े से छुड़ाना कहते हैं, कैप्चर करना नहीं। जम्मू-कश्मीर अलग हो जाएगा और नॉर्थ-ईस्ट में हिंसा होगी- ये राजदीप के सुनहरे ख्वाब हैं। जिस सरकार ने दशकों पुरानी बांग्लादेश सीमा विवाद की समस्या सुलझा दी, वो कश्मीर और नॉर्थ-ईस्ट गँवा देगी। झूठ, कल्पना, डर और डर का वामपंथी समाधान। 70 वर्ष पुराने भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद (कभी ईस्ट पाकिस्तान) को सुलझाया गया।

इसके बाद राजदीप हिंदी-हिन्दू-हिंदुस्तान की बात करते हुए लिखते हैं कि इससे नॉर्थ-साउथ के बीच टकराव बढ़ेगा। ये बेतुका इसीलिए है क्योंकि हिन्दू दक्षिण भारत में भी हैं और उत्तर भारत में भी। दक्षिण भारतीय मंदिर अपनी प्राचीन कलाकृतियों व ढाँचों के लिए खासे लोकप्रिय हैं। फिर राजदीप को क्यों लगता है कि हिंदुत्व से दक्षिण भारत में हिंसा होगी? ये कैसा दिवास्वप्न? राजदीप लिखते हैं कि दक्षिण भारत के सभी मुख्यमंत्री मिल कर केंद्र के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल देंगे, क्योंकि उन्हें राजस्व में ज्यादा हिस्सा चाहिए। क्या राजदीप चाहते हैं कि बिहार और यूपी जैसे ग़रीब राज्य हमेशा के लिए ग़रीब बने रहें, क्योंकि वहाँ रोज़गार की कमी है और ज़्याद टैक्स कलेक्शन नहीं हो पाता?

राजदीप सरदेसाई के लेख में एक अच्छी बात ये भी है कि बाकी वामपंथियों की तरह वो भी कॉन्ग्रेस से ख़ासे निराश हैं। भन्नाते हुए उन्होंने लिखा है कि 2029 तक राहुल गाँधी 3 बार इस्तीफा देकर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बन चुके होंगे और प्रियंका गाँधी को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा चुका होगा। कॉन्ग्रेस की हालत सचमुच आज ऐसी हो गई है कि राजदीप जैसा कट्टर मोदी-विरोधी भी उस पर अगले 10 साल बाद भी दाँव लगाने को तैयार नहीं है। तो फिर मोदी को चुनौती कौन देगा? राजदीप सरदेसाई देंगे। उनका गैंग देगा। अगर आपको यकीन न हो रहा हो तो उनके अगले शब्द पढ़िए। उन्हें अपने गैंग पर कितना भरोसा है।

हाँ, राजदीप लिखते हैं कि सिविल सोसायटी साथ आकर तानाशाही के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएगा। राजदीप ने यहाँ ये नहीं बताया कि उसमें कौन लोग होंगे। क्या इस सोसायटी में ‘अवॉर्ड वापसी गैंग’ शामिल होगा? वही गैंग, जो मामला ठंडा पड़ते ही लौटाए हुए रुपए वापस ले लेता है। या फिर उसमें शेरो-शायरी ट्वीट करने वाले लोग शामिल होंगे? या फिर पत्थर फेंकने और ट्रेन जलाने वाले भी सिविल सोसायटी के अंतर्गत ही आते हैं? राजदीप के संघर्ष में कौन लोग शामिल होंगे, उसे आप भी देखिए। यहाँ हम उन्हें परिभाषित करने का भी प्रयास करेंगे।

  • सिविल सोसायटी: अवॉर्ड वापसी गैंग और शेरो-शायरी ट्वीट करने वाले लोग
  • प्रबुद्ध जन: झूठे ट्वीट करने वाले और ट्विटर पर गाली-गलौज करने वाले
  • बेरोज़गार युवक: कुर्ता-पायजामा पहन और इस्लामी टोपी लगा कर ट्रेन जलाने वाले
  • दुखी किसान: योगेंद्र यादव और नक्सली अखिल गोगोई, जो ख़ुद को किसान नेता कहते हैं
  • दबा दिए गए समुदाय: मौलवी-मौलाना और चर्च के पादरियों का समूह

राजदीप एक हाइपर-डिजिटलाइज्ड इकोसिस्टम को उम्मीद के रूप में दखते हैं। इसके लिए उन्हें इंग्लैंड का उदाहरण देखना चाहिए। अधिकतर सेलेब्रिटी, वामपंथी पत्रकार और कथित विचारक लेबर पार्टी के जेरेमी कोर्बिन के पक्ष में थे। दुनिया भर से ट्वीट्स आ रहे थे। वो जम्मू-कश्मीर के आतंकियों के समर्थक हैं। दुनिया भर के वामपंथियों के डिजिटल प्रचार-प्रसार के बावजूद कंज़र्वेटिव पार्टी के बोरिस जॉनसन की जीत हुई और लेबर को दशकों की बुरी हार मिली। बोरिस हिन्दू मंदिरों में जाते हैं और गोपूजा करते हैं। इन सबसे क्या पता चलता है? यही कि ‘सेलेब्रिटी बैकिंग’ जनसमर्थन नहीं होता है।

ठीक वैसे ही, भारत में अनुराग कश्यप, स्वरा भास्कर, फरहान अख्तर, ज़ीशान अयूब, राहत इंदौरी, मुनव्वर राणा और इरफ़ान हबीब सरीखे लोगों ने अगर किसी चीज को नकार दिया तो इसका ये अर्थ कतई नहीं है कि जनता भी उनके समर्थन में है। 2019 लोकसभा चुनाव ने भी इसकी पुष्टि की है। राजदीप को डर है कि भारत ‘हिन्दू खिलाफत’ बन सकता है। उनके लिए चन्द्रगुप्त मौर्य की ये पंक्तियाँ ठीक रहेंगी, जिसे दिनकर ने ‘मगध महिमा’ में पिरोया है:

भरतभूमि है एक, हिमालय से आसेतु निरन्तर,
पश्चिम में कम्बोज-कपिश तक उसकी ही सीमा है।
किया कौन अपराध, गए जो हम अपनी सीमा तक?

इसका अर्थ ये है कि भारत ने आज तक कभी भी न तो किसी देश पर आक्रमण किया है और न ही अपनी सीएमओं का उल्लंघन किया है। खिलाफत के लिए ख़ून बहाने वालों की कोई सीमा नहीं है। वो दुनिया के किसी भी कोने में खलीफा-राज़ के लिए रक्तपात कर सकते हैं। आज़ादी से पहले भारत में भी हुआ था। अब भी होता है। जबकि ‘हिन्दू राष्ट्र’ कोई दस्तावेजी चीज नहीं है, ये एक भावनात्मक प्रतीक है, जो लोगों के आस्था और विश्वास पर निर्भर करता है। ‘हिन्दू राष्ट्र’ प्रेम से आते हैं। खिलाफत तलवार से। हिन्दू राष्ट्र एक सोच है, जबकि खिलाफत जबरदस्ती है। हिन्दू राष्ट्र एक अवधारणा है, जबकि खिलाफत वर्चस्व की खूनी जंग।

राजदीप सरदेसाई अंत में जयप्रकाश नारायण के ‘सम्पूर्ण क्रांति’ की बात करते हैं। लेकिन, वो ये भूल जाते हैं कि देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक, जेपी के चेले सत्ता से विपक्ष तक फैले हुए हैं। इनमें रामविलास, मुलायम, लालू और देवगौड़ा जैसे अवसरवादियों की भी तादाद है। और हाँ, इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगा कर लोकतंत्र की हत्या की थी। इसके उलट वामपंथियों के ‘लोकतंत्र की हत्या’ के आरोपों के बीच मोदी सरकार दोबारा पहले से भी ज़्यादा प्रचंड बहुमत के साथ चुन कर आई है।

अन्ना हजारे ने 2011 में भी अनशन किया था, उन्होंने 2019 में भी किया। उनका ताज़ा अनशन फ्लॉप रहा, क्योंकि जनता मोदी सरकार से ख़ुश है। 2011 के अन्ना आंदोलन या 1974 के जेपी आंदोलन के समय जनता सरकारों से त्रस्त थी। राजदीप ने इस अंतर को आसानी से छिपा लिया। जेपी की ज़रूरत भारत-भूमि को तभी पड़ती है जब सरकार से जनता नाख़ुश हो और उससे कोई उम्मीद न बची हो। जेपी जैसा महानायक वामपंथी गैंग के नेतृत्व के लिए नहीं आता, बल्कि जनता के लिए आता है। वामपंथियों का नेतृत्व तो अवॉर्ड वापसी गैंग करता है, अंतरराष्ट्रीय पोर्टलों पर अंग्रेजी में लेख लिख कर भारत को बदनाम करने की साज़िश करने वाले उनके नेतृत्वकर्ता हैं।

अंत में बताते चलें कि राजदीप के इस लेख में हिन्दू प्रतीक ‘स्वस्तिक’ का अपमान किया गया है। इसे नाजी सलाम के साथ दिखाया गया है। राजदीप को उम्मीद है कि दिसंबर 2019 की तरह ही देश भर में भयंकर दंगे होंगे और मोदी सरकार अपदस्थ कर दी जाएगी। राजदीप याद रखें कि यूपी में एक-एक पत्थर से हुआ नुकसान दंगाइयों से कैसे वसूला जा रहा है। साथ ही वो ‘डर का माहौल’ बनाने के लिए कल्पना और झूठ का मिश्रण न करें, क्योंकि जनता उनके या उनके गैंग पर भरोसा नहीं करने वाली। अच्छा होगा कि वो आत्मनिरीक्षण करें कि उनके लाख चिल्लाने के बावजूद जनता उनके जैसे लोगों को लग्गतार क्यों नकार रही है?

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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