सुबह जगते ही पहली ख़बर मिली कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट तक जाकर 3:30 से 4:00 बजे सुबह के बीच 1000 किलो के विस्फोटक 10 से 12 मिराज फ़ाइटर जेट्स के ज़रिए गिराए और आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के तीन कैम्पों को तबाह कर दिया। पाकिस्तानियों ने इस बार उरी हमले के बाद के सर्जिकल स्ट्राइक की तरह इसे नकारा नहीं है, बल्कि उन्होंने बताया कि उनकी धरती में भारतीय वायुसेना के जेट घुस आए थे, जिन्हें उन्होंने ‘भगा दिया’।
हालाँकि, रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे हमलों के लिए कुछ मिनट का समय काफी होता है। हम भारी मात्रा में विस्फोटक लेकर उड़ते हैं, हमें पता होता है कि कहाँ गिराना है, गिराते हैं, और वापस लौट आते हैं। ये बात और है कि विडियो फ़ुटेज और तमाम तरह की बातों के लिए सेना और सरकार को अब तैयार रहना होगा क्योंकि पिछली बार पाकिस्तान तो छोड़िए, अपने ही घर के लोगों ने अपनी सेना की क्षमता पर, उनकी बातों पर सवाल खड़े करते हुए सबूत माँगे थे।
आगे पाकिस्तानी सेना ने ख़बर की है कि भारतीय वायुसेना के जेट ‘जल्दबाज़ी में विस्फोटक कहीं भी गिराकर भाग गए’ और उन्हें कोई डैमेज नहीं हुआ। पाकिस्तान ने न सिर्फ स्वीकारा है, बल्कि चार तस्वीरें भी शेयर की हैं। जबकि, भारतीय सेना ने कहा है कि तीन कैम्प तबाह कर दिए गए हैं, और पाकिस्तानियों ने फर्जी तस्वीरें जारी की हैं क्योंकि वो अपने देश के लोगों के सामने डैमेज की बात स्वीकार नहीं सकते। भारतीय वायुसेना ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सेना के सूत्रों ने बताया है कि न सिर्फ लाइन ऑफ़ कंट्रोल बल्कि पाकिस्तान के भीतर जाकर इंडियन एयर फ़ोर्स ने जवाबी हमला किया है।
ज़ाहिर है कि इससे हमारी मीडिया के पत्रकार समुदाय विशेष को ये पसंद नहीं आ रहा, वो भी तब जब पाकिस्तान ने स्वयं ही स्वीकार कर लिया हो। भारतीय माओवंशी पत्रकार गिरोह के चुने हुए सदस्य अभी तक सबूत नहीं माँग रहे, और शायद ‘अपर कास्ट हिन्दू नेशनलिस्ट’ लोगों के ट्वीट के स्क्रीनशॉट्स लेने में व्यस्त हैं। सूत्र यह भी बताते हैं कि खूफिया मैग्जीन के पत्रकारों ने पाकिस्तान फोन लगाकर पूछा है कि पाकिस्तान के जिस हिस्से में बम गिराया गया, वहाँ के लोग किस जाति के थे।
पाकिस्तानी और आतंकियों के हिमायती पत्रकार समूह ने लोगों की भावनाओं का, उनके संवेदनाजन्य गुस्से को हिन्दू और सवर्ण जातियों से जोड़ते हुए, पुलवामा के बलिदानियों की जाति का विश्लेषण करते हुए बताया था कि राष्ट्रवाद की भावना सिर्फ इन्हीं हिन्दुओं में है, वो भी जो सिर्फ मेट्रो शहरों तक सीमित हैं। जबकि अपने इस वाहियात बात के लिए कोई प्रूफ नहीं दिया था। जबकि एक फेसबुक पोस्ट लिखकर हमें छोटे शहरों और गाँवों के लोगों के सेना प्रति कृतज्ञता और हमले के प्रति रोष की कई तस्वीरें मिलीं।
जब पुलवामा हमला हुआ था, तब पाकिस्तान ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। कुछ दिनों के बाद इमरान खान ने घिसे हुए कैसेट की तरह ‘एक्शेनेबल एविडेंस’ माँगा और एक भी बार हमलों की निंदा भी नहीं की। उसके बाद भारत ने लगातार कई क़दम उठाते हुए पाकिस्तान को आर्थिक रूप से क्षति पहुँचानी शुरू की, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग किया, सिंधु जल समझौते पर एक्शन लिया, कश्मीरी अलगाववादियों की सुरक्षा वापस ली और 150 को गिरफ़्तार किया, कश्मीर में अर्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त टुकड़ियाँ तैनात की, यासीन मलिक जैसे लोगों पर रेड की जा रही है।
इसके बाद से पाकिस्तान बिलबिलाया हुआ था, और वहाँ की मीडिया में हास्यास्पद रूप से टमाटरों की ख़रीद न होने पर अपने ‘एटमी ताकत’ होने की बात भी की गई थी। इसके साथ ही वाघा बॉर्डर पर सैकड़ों करोड़ों के माल के साथ फँसे पाकिस्तानी व्यापारियों के पास कहीं जाने को नहीं।
जब पाकिस्तान को लग गया कि इस बार शायद भारत दोबारा हर तरफ से घेर कर मारेगा, तब इमरान खान ने ‘शांति का एक मौका दीजिए‘ की अपील की थी। शांति के लिए भारत ने, और खासकर मोदी सरकार ने इतने मौक़े दिए कि उनके समर्थक और विरोधी दोनों ही उनके सीने का नाप माँगने लगे थे। लेकिन पाकिस्तान की तरफ से आतंकी हमले रुके नहीं, कश्मीर में लगातार आतंकी पनपते ही रहे।
यही कारण था कि पुलवामा हमलों के बाद पूरे देश में, छोटे से लेकर बड़े शहरों में, बच्चे-युवा-बुज़ुर्गों, सोशल मीडिया पर, स्कूलों में, हर जगह रोष था, और जवानों के बलिदान के बदले पाकिस्तानियों को सबक सिखाने की माँग की जा रही थी। लेकिन वामपंथी मीडिया को ये पसंद नहीं था। ऐसे माहौल में संवेदना और क्रोध दोनों ही एक सामान्य और सहज भाव बनकर सामने आते हैं, उस वक्त वामपंथी मीडिया गिरोह के लोगों ने जनसामान्य की भावनाओं का मजाक उड़ाया और बलिदानियों की जाति बताकर पूरे नैरेटिव को मोड़ने की कोशिश की।
हालाँकि, ये लोग भूल गए कि भारतीय नागरिक हर ऐसे मौक़े पर सेना के साथ डटकर खड़े रहते हैं, और इनके जैसे पाकिस्तान-हिमायती पत्रकारों और छद्मबुद्धिजीवियों को चुन-चुनकर लताड़ते हैं। कल ही ‘राष्ट्रीय समर स्मारक’ पर राजनीति करते हुए कपिल सिब्बल ने पूछा कि स्मारक बनाने से क्या होता है!
सुबह जब से यह ख़बर आई है, पाकिस्तानियों के ट्विटर हैंडलों को पढ़कर प्रतीत होता है कि वो ख़ौफ़ में हैं। साथ ही, जैसे-जैसे इस स्ट्राइक की डीटेल्स आ रही हैं, भारत से प्रेम करने वाले लोग संतुष्टि से सरकार को, सेना को आभार प्रकट कर रहे हैं कि ऐसा करना बहुत ज़रूरी था।
अब वामपंथी मीडिया गिरोह के धूर्त पत्रकारों का इंतजार है कि वो कैसे हमें ज्ञान देते हैं कि ‘जब पाकिस्तान शांति के लिए हाथ बढ़ा रहा है, तब हम उस पर हमला क्यों कर रहे हैं’। अब हमें वही पत्रकार, जो मोदी के सीने का नाप माँग रहे थे, बताएँगे कि शांति का कोई विकल्प नहीं, युद्ध से कुछ नहीं मिलता। मोदी विरोधी नेता और दोनों हाथों में लड्डू लेकर घूमने वाले लोगों ने सुर बदल लिए हैं।
यूजुअल सस्पैक्ट्स ने ट्वीट करते हुए सवाल उठाना शुरु कर दिया है।
If this is Balakote in KPK it’s a major incursion & a significant strike by IAF planes. However if it’s Balakote in Poonch sector, along the LoC it’s a largely symbolic strike because at this time of the year forward launch pads & militant camps are empty & non-functional.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) February 26, 2019
भारत के लोग, राष्ट्रवादी लोग जो हर उम्र, जगह, जाति, धर्म और समुदाय से आते हैं, वो लगातार फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप्प के ज़रिए अपनी बातों को शेयर कर रहे हैं। इसमें आश्चर्य नहीं होगा कि एक दिन बाद माओवंशियों के गिरोह का कोई पत्रकार इस हेडलाइन के साथ आर्टिकल न लिख दे: वॉर मोंगरिंग अपर कास्ट हिन्दूज बेइंग फ़ॉर ब्लड ऑन सोशल मीडिया। मतलब, ‘युद्ध की बात करने वाले उच्च जाति के हिन्दू सोशल मीडिया पर ख़ून और हिंसा की बातें कर रहे हैं’।
ज़ाहिर है कि कोई भी राष्ट्रवादी ऐसी हेडलाइन पढ़कर आह्लादित ही होगा।
नोट: लेख सुबह 10 बजे के करीब लिखा गया था, और समय बीतने के साथ धूर्त पत्रकार मंडली अपना नैरेटिव उसी पैटर्न पर फैलाती पाई गई।