Saturday, November 2, 2024
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…न भाला है, यह गेहुअन करइत काला है: लंबे-नुकीले ‘मैस्कुलिन पैट्रिआर्कि’ पर यूँ बिफरा लिबरल गिरोह विशेष

कोलकाता से आए स्पेशल रसगुल्ले खाते हुए राजदीप से हमने पूछा कि क्या वो नीरज चोपड़ा को बधाई नहीं देंगे? रवीश ने कहा कि वो भाला ज़रूर अंबानी-अडानी की कंपनियों ने बनाया होगा। अभिसार शर्मा को भाले और लाठी का फर्क समझाना पड़ा।

टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने 87.58 मीटर दूर भाला क्या फेंका, इसका घाव भारत में बैठे लिबरल गिरोह के कुछ लोगों को महसूस हुआ। अब ये भाला कहाँ जाकर लगा है, ये तो देखने वाली बात होगी। लेकिन हाँ, कुछ सेक्युलर ब्रिगेड के पत्रकारों की टिप्पणियाँ ज़रूर हमारे पास आ गई हैं, जिन्हें हम आपके साथ साझा करना चाहेंगे। उससे पहले श्याम नारायण पांडेय की ये पंक्तियाँ देखिए, जो हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के भाले के बारे में बताता है:

क्षण देर न की तन कर मारा,
अरि कहने लगा न भाला है,
यह गेहुअन करइत काला है,
या महाकाल मतवाला है

हम सबसे पहले पहुँचे रवीश कुमार के पास, जो अपने घर में रखी हर नुकीली चीज को काले रंग से पेंट कर रहे थे। उन्होंने नीरज चोपड़ा के टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने की बात पर पूछा कि इससे राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव जैसे ‘किसानों’ को क्या फायदा होगा? फिर उन्होंने भाला फेंकने को एक हिंसक गेम बताते हुए कहा कि अगर भाला किसी को लग जाता तो? उन्होंने इसे खतरनाक खेल करार दिया।

रवीश ने कहा, “जब मोदी सरकार किसी व्यक्ति को ओलंपिक में भाला फेंकने की अनुमति दे सकती है तो किसानों को क्यों नहीं भाला फेंकने दिया जा रहा? कहीं भाला दिखा कर ये सरकार हमें डरा तो नहीं रही? वो भाला ज़रूर अंबानी-अडानी की कंपनियों ने बनाया होगा। भाले की जाँच होनी चाहिए। नीरज चोपड़ा ‘राजपूताना राइफल्स’ से हैं। ये जातिवाद है। कश्मीर के बच्चे जब पत्थर फेंकते हैं तो सरकार उन्हें पीटती है, यहाँ भाला फेंकने पर जश्न क्यों मनाया जा रहा?”

लौटते समय रास्ते में हमें अजीत अंजुम भी मिल गए, जिन्होंने गोल्ड मेडल की बात सुनते ही सोना के महँगा होने पर आपत्ति जताई। हमने जब उन्हें बताया कि सोने के दाम तो कई दशकों से बढ़ रहे हैं तो वो खिसिया गए। उन्होंने कहा कि पूरे देश के लोग बेवकूफ हैं, जो पेगासस को छोड़ कर सोने का जश्न मना रहे हैं। फिर वो कुछ बुदबुदाते हुए अपनी एसी कार में बैठ कर निकल लिए। जाते-जाते कह गए कि गोल्ड मेडल तो सिर्फ ‘जी न्यूज’ पर आया है, देश में नहीं।

सरदर्द की दवा खा कर जब हम आगे बढ़े तो हमारा सामना सागरिका घोष. आरफा खानुम शेरवानी और बरखा दत्त जैसे पत्रकारों से हुआ, जो ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता’ का पोस्टर लगा कर मार्च निकाल रही थीं। उन्होंने अपने संयुक्त बयान में हमें बताया, “भाला लंबा और नुकीला होता है, इसीलिए ये ब्रह्मिनिकल पैट्रिआर्कि की निशानी है। भाला मैस्कुलिन है, क्या इसे हम भाली नहीं कह सकते? हिंदी में सोना शब्द ही पुल्लिंग है। इससे हमें दिक्कत है।”

‘बेरोजगार’ पुण्य प्रसून बाजपेयी और अभिसार शर्मा हमें एक साथ ही मिल गए, जो जंगलों की ख़ाक छान रहे थे। अभिसार शर्मा ने कहा कि पुलिस आए दिन प्रदर्शनकारियों पर भाले चटकाती है, अब इसे ओलंपिक में ले जाया गया है। हमने जब उन्हें बताया कि धान और गेहूँ की तरह भाला और लाठी अलग-अलग चीजें हैं, तो वो चौंक गए। वहीं बाजपेयी ने कहा कि वो महीने के अंत में पेमेंट आने के बाद ही इस पर टिप्पणी करेंगे। पेमेंट कहाँ से आए, इस पर उन्होंने कुछ बताने से इनकार कर दिया।

फिर हम राजदीप सरदेसाई के पास पहुँचे, जहाँ वो अपने अगले न्यूज़ शो की तैयारी में लगे थे। कोलकाता से आए स्पेशल रसगुल्ले खाते हुए राजदीप से हमने पूछा कि क्या वो नीरज चोपड़ा को बधाई नहीं देंगे? उन्होंने अपने कर्मचारियों को ये पता करने को कहा कि कहीं नीरज चोपड़ा को बधाई देने से ममता बनर्जी तो नाराज़ नहीं होंगी? TMC के दफ्तर से अनुमति मिलने के बाद उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि नीरज चोपड़ा का जन्म कॉन्ग्रेस काल में हुआ था, इसीलिए इसका श्रेय पीएम मोदी को नहीं मिल सकता।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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