अगर आपको लगता है कि जब आप 21 दिन तक कोरोना के संक्रमण के खतरे से घर पर बैठे हुए हैं, और ऐसे में सिर्फ पुलिस और प्रशासन ही आम आदमी की मदद कर रहे हैं तो आप एक सौ एक प्रतिशत गलत हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने दिमाग और हुनर का सौ प्रतिशत इस्तेमाल करके आजकल लोगों को घर बैठे मारक मजा दे रहे हैं। इनमें से कुछ चुनिन्दा नाम हैं- इन्टरनेट का हाशमी दवाखाना ये, दी लल्लनटॉप, छुपी हुई प्रतिभाओं का मंच टिकटोक और शाहीन बाग़ से गानों की प्रेक्टिस कर हाल ही में घर पर कैद हो चुके लेफ्टिस्ट सुर-कोकिलाएँ।
सबसे पहले बात करते हैं हाशमी दवाखाना की। हिटलर के लिंग की सटीक नाप बताकर चर्चा में आए दी लल्लनटॉप आजकल किलोमीटर के हिसाब से (लोकोक्ति) यूट्यूब पर वीडियो बनाते हुए देखे जा रहा है, इनमें से एक सबसे ज्यादा जोशीला वीडियो, जिसने घर पर बंद बैठे युवाओं का ध्यान आकर्षित किया, वो था – “सेक्स पावर बढ़ाने जैसी चाहत से आया कोरोना वायरस”
इस वीडियो की गहराई में जाने की जरूरत तो नहीं है लेकिन इस वीडियो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस वायरस के खिलाफ वैक्सीन तैयार करने में जुटे हुए वैज्ञानिकों को तो दे ही देना चाहिए। अगर यह सम्भव ना हो तो इस विडियो की यूट्यूब लिंक कम से कम से कम नॉर्थ कोरिया को तो दे ही देनी चाहिए। क्योंकि जो लोग हिटलर की मौत के इतने वर्षों बाद भी उसके गुप्तांग पर पीएचडी कर सकते हैं, वो कोरोना के लिए कोई एंटीडॉट भी जरूर तैयार कर देंगे।
यही नहीं, दी लल्लनटॉप अपनी ऑडियंस का ख़ास ध्यान रखते हुए उनके मतलब का फैक्ट चेक करते हुए यह भी साबित करते हुए देखा गया है कि सरसों के तेल से कोरोना वायरस से बचाव नहीं हो पाता है। यह वो ऑडियंस है जो दैनिक सस्ते इन्टरनेट की पूरी डेढ़ जीबी या तो टिकटॉक, या फिर दी लल्लनटॉप के चरणों में ही समर्पित करती है।
दी लल्लनटॉप के बाद नम्बर आता है उसी की सम्पादकीय नीतियों से मिलते-जुलते एक अन्य वैचारिक मंच का, जिसे ‘फाल्ट न्यूज़’ के वैज्ञानिकों ने मानव सभ्यता के लिए हुई सबसे बड़ी खोज में शरीक माना है- TikTok। किसने सोचा था कि ट्विटर और फेसबुक पर दिन-रात टिकटोकवासियों पर चुटकुले बनाने वाले लॉकडाउन की घोषणा के अगले ही मिनट पहली फुर्सत में अपने मोबाइल पर टिकटॉक इनस्टॉल करते हुए देखे जाएँगे।
यदि टिकटॉक सभ्यता का समय पर पता न चलता तो विश्व की कुछ चुनिन्दा उन्नत सभ्यताओं में से एक यह टिकटॉक भी आज विलुप्त हो चुकी होती। कुछ सूत्रों का तो यह भी कहना है कि चीन ने हमें सिर्फ वामपंथ और कोरोना जैसे वायरस ही नहीं दी बल्कि टिकटॉक भी दिया है इसलिए हमें उनका शुक्रगुजार होना चाहिए। एवेंजर्स फिल्म में थानोस ने भी कहा था कि यही ब्रह्माण्ड का संतुलन है।
इसके बाद नम्बर आता है उस हस्ती का जिसके आप दीवाने हैं। यह नाम है उस स्वर कोकिला का, जिसने तीन महीने तक शाहीन बाग़ में कुछ कविताओं की रिहर्सल तो की लेकिन करमजले कोरोना ने उसकी इस सारी तैयारियों पर पानी फेर दिया। अब उन्होंने इसका बदला लेने का खुद को वचन दे दिया है और लॉकडाउन के दौरान रोजाना ट्विटर पर अपनी सुरीली नज्में पोस्ट कर के लोगों को लॉकडाउन की बोर जिन्दगी में बाहर लाने की कोशिश कर रही हैं। हालाँकि, राष्ट्रवादी किसी का एहसान मानते नहीं हैं लेकिन वह अनवरत रूप से अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ रही हैं।
72k views. Uff. 400 trolls. What popularity. I rock. https://t.co/0kg7Ozcd3t
— Sanjukta Basu (@sanjukta) March 26, 2020
And this is the famous bit from #zananakazamana “Hawao Mein yaaro jawab milega”
— Sanjukta Basu (@sanjukta) March 25, 2020
Right wing trolls ko badi mirchi lagti hai is gaane se… 😆 pic.twitter.com/ZgnJ0P4Uir
एक नाम, जिसने सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस जितना ही समानांतर आपदा को जारी रख रखा है, वह है वाट्सएप यूनिवर्सिटी के कुलपति रवीश कुमार। रवीश कुमार ने जिस महामारी का नेतृत्व किया है, वह कोरोना से भी कई वर्ष पहले से सोशल मीडिया पर मौजूद थी, बस लोग इसकी मारक क्षमता से अनजान थे। यकीन ना हो तो खुद देख लो –
घर से निकलते ही –
कुछ दूर चलते ही –
अगर आपको लॉकडाउन के दौरान रवीश कुमार के समाज के लिए दी गए योगदान पर यकीन नहीं हो रहा है, तो उन लोगों से पूछिए जिन्हें रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पेज और प्रोफाइल से ब्लॉक कर रखा है। उनकी हालत आजकल कुछ ऐसी है –
इन सबमें सबसे दुखभरी हालात में आजकल अगर कोई है तो वो हैं देश के हर वर्ग के चहेते ‘लव मशीन शशि थरूर।’ इससे बड़ी विपत्ति क्या होगी कि आजकल उनकी तस्वीरें अकेले ही देखने को मिल रही हैं। स्वयं विचार करें।